Sunday 4 April 2021

शीतला माता की पूजा और कहानी

 शीतला माता की पूजा और कहानी  

होली के बाद शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इसे बसौड़ा पर्व भी कहा जाता है 

इस दिन माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाया जाता है. और इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलता है. मां शीतला की पूजा से शरीर निरोगी होता है और चेचक जैसे संक्रामक रोग में भी मां भक्तों की रक्षा करती हैं 


शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी पूजा  एकमात्र ऐसा व्रत ये एकमात्र ऐसा व्रत है जिसमें बासी भोजन चढ़ाया और खाया जाता है. इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता और भोजन एक दिन पहले बन जाता है.


मां शीतला की पूजा-अर्चना में स्‍वच्‍छता का पूरा ख्‍याल रखना चाहिए. इस दिन प्रात: काल उठ कर स्नान करना चाहिए. फिर व्रत का संकल्प लें और पूरे विधि-विधान से मां शीतला की पूजा करनी चाहिए। 


शीतला माता का स्वरुप 


शास्त्रों के अनुसार शीतला माता गर्दभ यानी गधे की सवारी करती हैं. उन्होंने अपने एक हाथ में कलश पकड़ा हुआ है और दूसरे हाथ में झाडू है. ऐसा माना जाता है कि इस कलश में लगभग  सभी देवी देवताओं का वास रहता है


जो भक्त सच्चे मन से मां शीतला की पूजा-अर्चना और यह व्रत करता है उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. माना जाता है कि मां शीतला का व्रत करने से शरीर निरोगी होता है. रोगों से भी मां अपने भक्तों की रक्षा करती हैं 


दरिद्रता दूर होती है 


ऐसी मान्‍यता है कि झाड़ू से दरिद्रता दूर होती है और कलश में धन कुबेर का वास होता है. माता शीतला अग्नि तत्व की विरोधी हैं 


शीतला माता की कहानी  


यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही है, ना मेरी पुजा है।


माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) निचे फेका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड गये। शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी।

 

शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा हे। कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वही अपने घर के बहार एक कुम्हारन (महिला) बेठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पुरे शरीर में तपन है। इसके पुरे शरीर में (छाले) फफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नही कर पा रही है।


तब उस कुम्हारन ने कहा है माँ तू यहाँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली है माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी (जुवार) के आटे कि राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।


तब उस कुम्हारन ने कहा आ माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु और कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगी) कागसी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख वालो के अंदर छुपी हैं। यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उस बूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। मैं कोई भुत प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ। मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पुजा करता है। इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।

माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा बिठाऊ। तब माता बोली है बेटी तु किस सोच मे पड गई। 

तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहा- है माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता है बिखरी हुई हे में आपको कहा बिठाऊ। 

मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन। तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले।

तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है। माता मेरी इच्छा है। अब आप इसी (डुंगरी) गाँव मे स्थापित होकर यही रहो और जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना और आपकी पुजा करने वाली नारि जाति (महिला) का अखंड सुहाग रखना। 

उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को कपडे धुलने ना दे और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़ाकर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये।

तब माता बोली तथा अस्तु है बेटी जो तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु । है बेटी तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पुजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील कि डुंगरी। 

शील कि डुंगरी में शीतला माता का मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी पर वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है। इस कथा को पढ़ने से घर कि दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती है।


शीतला अष्टमी बसौडा विशेष

व्रत महात्म्य एवं विधि यह व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी या लोकाचार में होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार को भी किया जाता है। शुक्रवार को भी इसके पूजन का विधान है, परंतु रविवार, शनिवार अथवा मंगलवार को शीतला का पूजन न करें। इन वारों में यदि अष्टमी तिथि पड़ जाए तो पूजन अवश्य कर लेना चाहिए। 


इस व्रत के प्रभाव से व्रती का परिवार ज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े-फुंसियों, नेत्रों से संबंधित सभी विकार, शीतला माता की फूंसियों के चिह्न आदि रोगों तथा शीतला जनित दोषों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत के करने से शीतला देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं। हर गांव, नगर तथा शहर में शीतला जी का मठ होता है। मठ में शीतला का स्वरूप भी अलग-अलग तरह का देखा जाता है। शीतलाष्टकम् में शीतला माता को रासभ (गर्दभ-गधा) के ऊपर सवार दर्शनीय रूप में वर्णित किया गया है। अतः व्रत के दिन शीतलाष्टक का पाठ करें। व्रत की विधि: शीतलाष्टमी व्रत करने वाले व्रती को पूर्व विद्धा अष्टमी तिथि ग्रहण करनी चाहिए। इस दिन सूर्योदय वेला में ठंडे पानी से स्नान कर निम्नलिखित संकल्प करना चाहिए। 


मम गेहे शीतला रोग जनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धये शीतलाष्टमीव्रतमहं करिष्ये। 


इस दिन शीतला माता को भोग लगाने वाले पदार्थ मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, साग, दाल, मीठा भात, फीका भात, मौंठ, मीठा बाजरा, बाजरे की मीठी रोटी, दाल की भरवा पूड़ियां, रस, खीर आदि एक दिन पूर्व ही सायंकाल में बना लिए जाते हैं। रात्रि में ही दही जमा दिया जाता है। इसीलिए इसे बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। जिस दिन व्रत होता है उस दिन गर्म पदार्थ नहीं खाये जाते। इसी कारण घर में चूल्हा भी नहीं जलता। इस व्रत में पांचों उंगली हथेली सहित घी में डुबोकर रसोईघर की दीवार पर छापा लगाया जाता है। उस पर रोली और अक्षत चढ़ाकर शीतलामाता के गीत गाए जाते हैं। सुगंधित गंध, पुष्पादि और अन्य उपचारों से शीतला माता का पूजन कर शीतलाष्टकम् का पाठ करना चाहिए। शीतला माता की कहानी सुनें। रात्रि में दीपक जलाने चाहिए एवं जागरण करना चाहिए। बसौड़ा के दिन प्रातः एक थाली में पूर्व संध्या में तैयार नैवेद्य में से थोड़ा-थोड़ा सामान रखकर, हल्दी, धूपबत्ती, जल का पात्र, दही, चीनी, गुड़ और अन्य पूजनादि सामान सजाकर परिवार के सभी सदस्यों के हाथ से स्पर्श कराके शीतला माता के मंदिर जाकर पूजन करना चाहिए। छोटे-छोटे बालकों को साथ ले जाकर उनसे माता जी को ढोक भी दिलानी चाहिए। होली के दिन बनाई गई गूलरी (बड़कुल्ला) की माला भी शीतला मां को अर्पित करने का विधान है। चैराहे पर जल चढ़ाकर पूजा करने की परंपरा भी है। शीतला मां के पूजनोपरांत गर्दभ का भी पूजन कर मंदिर के बाहर काले श्वान (कुत्ते) के पूजन एवं गर्दभ (गधा) को चने की दाल खिलाने की परंपरा भी है। 

घर आकर सभी को प्रसाद एवं मोठ-बाजरा का वायना निकालकर उस पर रुपया रखकर अपनी सासूजी के चरण स्पर्श कर देने की प्रथा का भी अवश्य पालन करना चाहिए। 

इसके बाद किसी वृद्धा मां को भोजन कराकर और वस्त्र दक्षिणादि देकर विदा करना चाहिए। यदि घर-परिवार में शीतला माता के कुण्डारे भरने की प्रथा हो तो कुंभकार के यहां से एक बड़ा कुण्डारा तथा दस छोटे कुण्डारे मंगाकर छोटे कुण्डारों को बासी व्यंजनों से भरकर बड़े कुण्डारे में रख जलती हुई होली को दिखाए गए कच्चे सूत से लपेट कर भीगे बाजरे एवं हल्दी से पूजन करें। 

इसके बाद परिवार के सभी सदस्य ढोक (नमस्कार) दें। पुनः सभी कुण्डारों को गीत गाते हुए शीतला माता के मंदिर में जाकर चढ़ा दें। वापसी के समय भी गीत गाते हुए आयें। 

पुत्र जन्म और विवाह के समय जितने कुण्डारे हमेशा भरे जाते हैं। 

उतने और भरकर शीतला मां को चढ़ाने का विधान भी है। पूजन के लिए जाते समय नंगे पैर जाने की परंपरा है। 


किसी गांव में एक बुढ़िया माई रहती थी। शीतला माता का जब बसौड़ा आता तो वह ठंडे भोजन से उनका कुण्डे भरकर पूजन करती थी और स्वयं ठंडा भोजन ही करती थी। 

उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था। एक दिन उस गांव में आग लग गयी, जिसमें उस बुढ़िया मां की झोपड़ी को छोड़कर सभी लोगों की झोपड़ियां जल गईं, जिससे सबको बड़ा दुःख और बुढ़िया की झोपड़ी को देखकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ। 

तब सब लोग उस बुढ़िया के पास आए और इसका कारण पूछा। बुढ़िया ने कहा कि मैं तो बसौडे़ के दिन शीतला माता की पूजा करके ठंडी रोटी खाती हूं, तुम लोग यह काम नहीं करते। इसी कारण मेरी झोपड़ी शीतला मां की कृपा से बच गई और तुम सबकी झोपड़ियां जल गईंं। तभी से शीतलाष्टमी (बसौड़े) के दिन पूरे गांव में शीतला माता की पूजा होने लगी तथा सभी लोग एक दिन पहले के बने हुए बासी पदार्थ (व्यंजन) ही खाने लगे। हे शीतला माता! जैसे आपने उस बुढ़िया की रक्षा की, वैसे ही सबकी रक्षा करना। 


बासी भोजन से ही शीतला माता की पूजा वैशाख माह के कृष्ण पक्ष के किसी भी सोमवार या किसी दूसरे शुभवार को भी करने का विधान है। वैशाख मास में इसे बूढ़ा बसौड़ा के नाम से तथा चैत्र कृष्ण पक्ष में बसौड़ा के नाम से जाना जाता है। 

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष के दो सोमवारों और सर्दियों के किसी भी माह के दो सोमवारों को भी शीतला माता का पूजन स्त्रियों के द्वारा किया जाता है, परंतु चैत्र कृष्ण पक्ष का बसौड़ा सर्वत्र मनाया जाता है।


शीतला माता की अन्य कथा 


यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। 

यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही है, ना मेरी पुजा है।


माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) निचे फेका। 

वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड गये। शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी।


शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा हे। कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वही अपने घर के बहार एक कुम्हारन (महिला) बेठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पुरे शरीर में तपन है। इसके पुरे शरीर में (छाले) फफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नही कर पा रही है।


तब उस कुम्हारन ने कहा है माँ तू यहाँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली है माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी (जुवार) के आटे कि राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।


तब उस कुम्हारन ने कहा आ माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु और कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगी) कागसी बालो में करती रही। 

अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख वालो के अंदर छुपी हैं। 

यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उसबूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। 

मैं कोई भुत प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ। मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पुजा करता है। 

इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।


माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा बिठाऊ। तब माता बोली है बेटी तु किस सोच मे पड गई। तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहा- है माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता है बिखरी हुई हे में आपको कहा बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन। तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले।


तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इक्छा है अब आप इसी (डुंगरी) गाँव मे स्थापित होकर यही रहो और जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना और आपकी पुजा करने वाली नारि जाति (महिला) का अखंड सुहाग रखना। उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को पकड़े धुलने ना दे और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़कर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये।


तब माता बोली तथा अस्तु है बेटी जो तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु । 

है बेटी तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पुजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील कि डुंगरी। 

शील कि डुंगरी भारत का एक मात्र मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है। 


दोहा  जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान। 

होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान ॥


घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार। 

शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार ॥


माता शीतला स्तुतिमन्त्र 


शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत् पिता । 

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ।।


श्री शीतला चालीसा  । चौपाई  

जय जय श्री शीतला भवानी । जय जग जननि सकल गुणधानी ॥

गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती । पूरन शरन चंद्रसा साजती ॥


अग्नि सी जलत शरीरा । शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥

मात शीतला तव शुभनामा । सबके काहे आवही कामा ॥


शोक हरी शंकरी भवानी । बाल प्राण रक्षी सुखदानी ॥

सूचि बार्जनी कलश कर राजै । मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥


चौसट योगिन संग दे दावै । पीड़ा ताल मृदंग बजावै ॥

नंदिनाथ भय रो चिकरावै । सहस शेष शिर पार ना पावै ॥


धन्य धन्य भात्री महारानी । सुर नर मुनी सब सुयश बधानी ॥

ज्वाला रूप महाबल कारी । दैत्य एक अग्नि भारी ॥


हर हर प्रविशत कोई दान क्षत । रोग रूप धरी बालक भक्षक ॥

हाहाकार मचो जग भारी । सत्यो ना जब कोई संकट कारी ॥


तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा । कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा ॥

अग्नि हि पकड़ी करी लीन्हो । मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो ॥


बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा । मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा ॥

अब नही मातु काहू गृह जै हो । जह अपवित्र वही घर रहि हो ॥


पूजन पाठ मातु जब करी है । भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥

अब भगतन शीतल भय जै हे । अग्नि भय घोर न सै हे ॥


श्री शीतल ही बचे कल्याना । बचन सत्य भाषे भगवाना ॥

कलश शीतलाका करवावै । वृजसे विधीवत पाठ करावै ॥


अग्नि भय गृह गृह भाई । भजे तेरी सह यही उपाई ॥

तुमही शीतला जगकी माता । तुमही पिता जग के सुखदाता ॥


तुमही जगका अतिसुख सेवी । नमो नमामी शीतले देवी ॥

नमो सूर्य करवी दुख हरणी । नमो नमो जग तारिणी धरणी ॥


नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी । दुख दारिद्रा निस निखंदिनी ॥

श्री शीतला शेखला बहला । गुणकी गुणकी मातृ मंगला ॥


मात शीतला तुम धनुधारी । शोभित पंचनाम असवारी ॥

राघव खर बैसाख सुनंदन । कर भग दुरवा कंत निकंदन ॥


सुनी रत संग शीतला माई । चाही सकल सुख दूर धुराई ॥

कलका गन गंगा किछु होई । जाकर मंत्र ना औषधी कोई ॥


हेत मातजी का आराधन । और नही है कोई साधन ॥

निश्चय मातु शरण जो आवै । निर्भय ईप्सित सो फल पावै ॥


कोढी निर्मल काया धारे । अंधा कृत नित दृष्टी विहारे ॥

बंधा नारी पुत्रको पावे । जन्म दरिद्र धनी हो जावे ॥


सुंदरदास नाम गुण गावत । लक्ष्य मूलको छंद बनावत ॥

या दे कोई करे यदी शंका । जग दे मैंय्या काही डंका ॥


कहत राम सुंदर प्रभुदासा । तट प्रयागसे पूरब पासा ॥

ग्राम तिवारी पूर मम बासा । प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा ॥


अब विलंब भय मोही पुकारत । मातृ कृपाकी बाट निहारत ॥

बड़ा द्वार सब आस लगाई । अब सुधि लेत शीतला माई ॥


चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय ।

सपनेउ दुःख व्यापे नही नित सब मंगल होय ॥

बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू ।

जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू ॥

इति श्री शीतला चालीसा समाप्त  


श्री शीतलाष्टक स्तोत्र 


ॐ अस्य श्रीशीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः शीतली देवता लक्ष्मी बीजम् भवानी शक्तिः सर्व अग्नि निवृत्तये जपे विनियोगः   


ईश्वर उवाच।। 

वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।। मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं कृत मस्तकाम्।१।

वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम्।।

यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत् ।२।

शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः।। विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।३।

यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः ।।

अग्नि भयं घोरं गृहे तस्य न जायते ।४।

शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।।

प्रनष्टचक्षुषः पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ।५।

शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान् ।

अग्नि विदीर्णानां त्वमेका अमृत वर्षिणी।६।

गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।। त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम् ।७।

न मन्त्रा   नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते ।। त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम्।८।

मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम् ।। यस्त्वां संचिन्तये  द्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ।९।

अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।।  

अग्नि भयं घोरं गृहे तस्य न जायते ।१०।

श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः ।। उपसर्ग विनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत्।११।

शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।१२।

रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः ।।

शीतला वाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ।१३।

एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।।

तस्य  गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न जायते।१४।

शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित् ।।

दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति युताय वै।१५।


श्रीस्कन्दपुराणे शीतलाअष्टक स्तोत्रं ।।

माता शीतला जी की आरती

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता | 


रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,

ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता | 


विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,

वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता |  


इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,

सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता |  


घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,

करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता |  


ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,

भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता | 


जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता,

सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता |  


रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,

कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता |  


बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,

ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता |  


शीतल करती जननी तुही है जग त्राता,

उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता |  


दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,

भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता | 


जय हो श्री शीतला माता की सभी भक्तों के परिवारों को सह कुशल मंगल रखें।

Thursday 12 November 2020

श्री कुबेर चालीसा

 श्री कुबेर चालीसा दोहा जैसे अटल हिमालय और जैसे अडिग सुमेर ।

ऐसे ही स्वर्ग द्वार पै, अविचल खड़े कुबेर ॥

विघ्न हरण मंगल करण, सुनो शरणागत की टेर ।

भक्त हेतु वितरण करो, धन माया के ढ़ेर ॥

चौपाई ,जै जै जै श्री कुबेर भण्डारी ।

धन माया के तुम अधिकारी ॥

तप तेज पुंज निर्भय भय हारी ।

पवन वेग सम सम तनु बलधारी ॥

स्वर्ग द्वार की करें पहरे दारी ।

सेवक इंद्र देव के आज्ञाकारी ॥

यक्ष यक्षणी की है सेना भारी ।

सेनापति बने युद्ध में धनुधारी ॥

महा योद्धा बन शस्त्र धारैं ।

युद्ध करैं शत्रु को मारैं ॥

सदा विजयी कभी ना हारैं ।

भगत जनों के संकट टारैं ॥

प्रपितामह हैं स्वयं विधाता ।

पुलिस्ता वंश के जन्म विख्याता ॥

विश्रवा पिता इडविडा जी माता ।

विभीषण भगत आपके भ्राता ॥

शिव चरणों में जब ध्यान लगाया ।

घोर तपस्या करी तन को सुखाया ॥

शिव वरदान मिले देवत्य पाया ।

अमृत पान करी अमर हुई काया ॥

धर्म ध्वजा सदा लिए हाथ में ।

देवी देवता सब फिरैं साथ में ।

पीताम्बर वस्त्र पहने गात में ॥

बल शक्ति पूरी यक्ष जात में ॥

स्वर्ण सिंहासन आप विराजैं ।

त्रिशूल गदा हाथ में साजैं ॥

शंख मृदंग नगारे बाजैं ।

गंधर्व राग मधुर स्वर गाजैं ॥

चौंसठ योगनी मंगल गावैं ।

ऋद्धि सिद्धि नित भोग लगावैं ॥

दास दासनी सिर छत्र फिरावैं ।

यक्ष यक्षणी मिल चंवर ढूलावैं ॥

ऋषियों में जैसे परशुराम बली हैं ।

देवन्ह में जैसे हनुमान बली हैं ॥

पुरुषोंमें जैसे भीम बली हैं ।

यक्षों में ऐसे ही कुबेर बली हैं ॥

भगतों में जैसे प्रहलाद बड़े हैं ।

पक्षियों में जैसे गरुड़ बड़े हैं ॥

नागों में जैसे शेष बड़े हैं ।

वैसे ही भगत कुबेर बड़े हैं ॥

कांधे धनुष हाथ में भाला ।

गले फूलों की पहनी माला ॥

स्वर्ण मुकुट अरु देह विशाला ।

दूर दूर तक होए उजाला ॥

कुबेर देव को जो मन में धारे ।

सदा विजय हो कभी न हारे ।।

बिगड़े काम बन जाएं सारे ।

अन्न धन के रहें भरे भण्डारे ॥

कुबेर गरीब को आप उभारैं ।

कुबेर कर्ज को शीघ्र उतारैं ॥

कुबेर भगत के संकट टारैं ।

कुबेर शत्रु को क्षण में मारैं ॥

शीघ्र धनी जो होना चाहे ।

क्युं नहीं यक्ष कुबेर मनाएं ॥

यह पाठ जो पढ़े पढ़ाएं ।

दिन दुगना व्यापार बढ़ाएं ॥

भूत प्रेत को कुबेर भगावैं ।

अड़े काम को कुबेर बनावैं ॥

रोग शोक को कुबेर नशावैं ।

कलंक कोढ़ को कुबेर हटावैं ॥

कुबेर चढ़े को और चढ़ादे ।

कुबेर गिरे को पुन: उठा दे ॥

कुबेर भाग्य को तुरंत जगा दे ।

कुबेर भूले को राह बता दे ॥

प्यासे की प्यास कुबेर बुझा दे ।

भूखे की भूख कुबेर मिटा दे ॥

रोगी का रोग कुबेर घटा दे ।

दुखिया का दुख कुबेर छुटा दे ॥

बांझ की गोद कुबेर भरा दे ।

कारोबार को कुबेर बढ़ा दे ॥

कारागार से कुबेर छुड़ा दे ।

चोर ठगों से कुबेर बचा दे ॥

कोर्ट केस में कुबेर जितावै ।

जो कुबेर को मन में ध्यावै ॥

चुनाव में जीत कुबेर करावैं ।

मंत्री पद पर कुबेर बिठावैं ॥

पाठ करे जो नित मन लाई ।

उसकी कला हो सदा सवाई ॥

जिसपे प्रसन्न कुबेर की माई ।

उसका जीवन चले सुखदाई ॥

जो कुबेर का पाठ करावै ।

उसका बेड़ा पार लगावै ॥

उजड़े घर को पुन: बसावै ।

शत्रु को भी मित्र बनावै ॥

सहस्त्र पुस्तक जो दान कराई ।

सब सुख भोद पदार्थ पाई ।

प्राण त्याग कर स्वर्ग में जाई ।

मानस परिवार कुबेर कीर्ति गाई ॥

दोहा ॥

शिव भक्तों में अग्रणी,

श्री यक्षराज कुबेर ।

हृदय में ज्ञान प्रकाश भर,

कर दो दूर अंधेर ॥

कर दो दूर अंधेर अब,

जरा करो ना देर ।

शरण पड़ा हूं आपकी,

दया की दृष्टि फेर ।

इति श्री कुबेर चालीसा 


ॐ जै यक्ष कुबेर हरे, स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे। शरण पड़े भगतों के, भण्डार कुबेर भरे। ॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे 

शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े, स्वामी भक्त कुबेर बड़े। दैत्य दानव मानव से, कई-कई युद्ध लड़े ॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे 

स्वर्ण सिंहासन बैठे, सिर पर छत्र फिरे, स्वामी सिर पर छत्र फिरे। योगिनी मंगल गावैं, सब जय जय कार करैं॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे

गदा त्रिशूल हाथ में, शस्त्र बहुत धरे, स्वामी शस्त्र बहुत धरे। दुख भय संकट मोचन, धनुष टंकार करें॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे 

भांति भांति के व्यंजन बहुत बने, स्वामी व्यंजन बहुत बने। मोहन भोग लगावैं, साथ में उड़द चने॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे 

बल बुद्धि विद्या दाता, हम तेरी शरण पड़े, स्वामी हम तेरी शरण पड़े, अपने भक्त जनों के, सारे काम संवारे॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे 

मुकुट मणी की शोभा, मोतियन हार गले, स्वामी मोतियन हार गले। अगर कपूर की बाती, घी की जोत जले॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे 

यक्ष कुबेर जी की आरती, जो कोई नर गावे, स्वामी जो कोई नर गावे । कहत प्रेमपाल स्वामी, मनवांछित फल पावे। इति श्री कुबेर आरती ॥


Gyanchand Bundiwal

Astrologer and Gemologist.

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Sunday 25 October 2020

माता काली पूजा व मंत्र

माता  काली पूजा मंत्र  कलिकाल में हनुमान, दुर्गा, कालिका, भैरव, शनिदेव को जाग्रत देव माना गया है। भगवान शंकर की चार पत्नियां में से एक मां काली को सबसे जाग्रत देवी माना गया है। शिव की पहली पत्नी दक्ष-प्रसूति कन्या सती थी। दूसरी हिमालय पुत्री पार्वती थी। तीसरी उमा और चौथी कालिका।कालिका की उपासना जीवन में सुख, शांति, शक्ति, विद्या देने वाली बताई गई है, लेकिन यदि उनकी उपासना में कोई भूल होती है तो फिर इसका परिणाम भी भुगतना होता है।

कालका के दरबार में जो एक बार चला जाता है उसका नाम  पता दर्ज हो जाता है। यहां यदि दान मिलता है तो दंड भी। आशीर्वाद मिलता है तो शाप भी। यदि मन्नत पूर्ण होने के बदले में जो भी वचन दिया है तो उसे तुरंत ही पूरा कर दें। जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने के पश्चात् पतंगा भस्म हो जाता है, उसी प्रकार काली देवी के संपर्क में आने के उपरांत साधक के समस्त राग, द्वेष, विघ्न आदि भस्म हो जाते हैं।

कालीका के प्रमुख तीन स्थान है:  कोलकाता में कालीघाट पर जो एक शक्तिपीठ भी है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भैरवगढ़ में गढ़कालिका मंदिर इसे भी शक्तिपीठ में शामिल किया गया है और गुजरात में पावागढ़ की पहाड़ी पर स्थित महाकाली का जाग्रत मंदिर चमत्कारिक रूप से मनोकामना पूर्ण करने वाला है।

10 महाविद्याओं में से साधक महाकाली की साधना को सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मानते हैं, जो किसी भी कार्य का तुरंत परिणाम देती हैं। साधना को सही तरीके से करने से साधकों को अष्टसिद्धि प्राप्त होती है। काली की पूजा या साधना के लिए किसी गुरु या जानकार व्यक्ति की मदद लेना जरूरी है।

10 महाविद्याओं में से एक मां काली के 4 रूप हैं:  दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली। हालांकि मां कालिका की साधना के कई रूप हैं लेकिन भक्तों को केवल सात्विक भक्ति ही करना चाहिए। शमशान काली, काम कला काली, गुह्य काली, अष्ट काली, दक्षिण काली, सिद्ध काली, भद्र काली आदि कई मान से मां की साधना होती है।

महाकाली को खुश करने के लिए उनकी फोटो या प्रतिमा के साथ महाकाली के मंत्रों का जाप भी किया जाता है। इस पूजा में महाकाली यंत्र का प्रयोग भी किया जाता है। इसी के साथ चढ़ावे आदि की मदद से भी मां को खुश करने की कोशिश की जाती है। अगर पूरी श्रद्धा से मां की उपासना की जाए तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। अगर मां प्रसन्न हो जाती हैं तो मां के आशीर्वाद से आपका जीवन पलट सकता है, भाग्य खुल सकता है और आप फर्श से अर्श पर पहुंच सकते हो।

जीवनरक्षक मां काली : माता काली की पूजा या भक्ति करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं। वे अपने भक्तों को सभी तरह की परेशानियों से बचाती हैं।

लंबे समय से चली रही बीमारी दूर हो जाती हैं।

ऐसी बीमारियां जिनका इलाज संभव नहीं है, वह भी काली की पूजा से समाप्त हो जाती हैं।

काली के पूजक पर काले जादू, टोने-टोटकों का प्रभाव नहीं पड़ता।

हर तरह की बुरी आत्माओं से माता काली रक्षा करती हैं।

कर्ज से छुटकारा दिलाती हैं।

बिजनेस आदि में रही परेशानियों को दूर करती हैं।

जीवनसाथी या किसी खास मित्र से संबंधों में रहे तनाव को दूर करती हैं।

बेरोजगारी, करियर या शिक्षा में असफलता को दूर करती हैं।

कारोबार में लाभ और नौकरी में प्रमोशन दिलाती हैं।

हर रोज कोई कोई नई मुसीबत खड़ी होती हो तो काली इस तरह की घटनाएं भी रोक देती हैं।

शनि-राहु की महादशा या अंतरदशा, शनि की साढ़े साती, शनि का ढइया आदि सभी से काली रक्षा करती हैं।

पितृदोष और कालसर्प दोष जैसे दोषों को दूर करती हैं।

काली मंत्र : कालिका माता का यह अचूक मंत्र है। इससे माता जल्द से सुन लेती हैं, लेकिन आपको इसके लिए सावधान रहने की जरूरत है। आजमाने के लिए मंत्र का इस्तेमाल करें। यदि आप काली के भक्त हैं तो ही करें।

मंत्र  :  नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर जिह्वा वाली,

चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं पान मिठाई,

अब बोलो काली की दुहाई।

इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने से आर्थिक लाभ मिलता है। इससे धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती है। माता काली की कृपा से सब काम संभव हो जाते हैं। 15 दिन में एक बार किसी भी मंगलवार या शुक्रवार के दिन काली माता को मीठा पान मिठाई का भोग लगाते रहें।

देवी के समक्ष धूप : मुकदमे या कर्जे की समस्या हो तो नौ दिन देवी के समक्ष गुग्गुल की सुगंध की धूप जलाएं। सामान्य रूप से गुप्त नवरात्रि में देवी की कृपा के लिए नौ दिन देवी के सामने अखंड दीपक जलाएं दुर्गा सप्तशती या देवी के मन्त्रों का जाप करें।

लक्ष्मी बंधन : यदि ऐसा लगता है कि किसी ने लक्ष्मी बांध रखी है तो माता कालीका को प्रतिदिन दो लकड़ी वाली (बांस वाली नहीं) अगरबत्ती लगाएं या एक धूपबत्ती लगाएं। प्रत्येक शुक्रवार को काली के मंदिर में जाकर पूजा करें और माता से प्रार्थना करें हर तरह के बंधन को काटने की।

कालिका माता से क्षमा : अगर किसी मानसिक कलह, तनाव या परेशानी से जूझ रहे हैं तो शुक्रवार के दिन मां कालिका के मंदिर में जाकर उनसे अपने द्वारा किए गए सभी जाने-अनजाने पापों की क्षमा मांग लें और फिर कभी कोई बुरा कार्य नहीं करने का वादा कर लें। ध्यान रहे, वादा निभा सकते हों तो ही करें अन्यथा आप मुसीबत में पड़ सकते हैं। यदि आपने ऐसा 5 शुक्रवार को कर लिया तो तुरंत ही आपके संकट दूर हो जाएंगे।

11 या 21 शुक्रवार कालिका के मंदिर जाएं और क्षमा मांगते हुए अपनी क्षमता अनुसार नारियल, हार-फूल चढ़ाकर प्रसाद बांटें। माता कालिका की पूजा लाल कुमकुम, अक्षत, गुड़हल के लाल फूल और लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करके भी कर सकते हैं। भोग में हलवे या दूध से बनी मिठाइयों को भी चढ़ा सकते हैं।

अगर पूरी श्रद्धा से मां की उपासना की जाए तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। अगर मां प्रसन्न हो जाती हैं, तो मां के आशीर्वाद से आपका जीवन बहुत ही सुखद हो जाता है।

शनिदोष से मुक्ति हेतु : शनिवार के सरसों के तेल, काले तिल, काली उड़द आदि लेकर माता कालीका का विवि विधान से पूजन करेंगे तो शनिदोष दूर होगा।

महाकाली शाबर मन्त्र : माता कालिका का यह साबर मंत्र है इसे साधना करना हो तभी पढ़े अन्यथा पढ़े। इसे शुद्ध और पवित्र होकर ही पढ़ें अन्यथा आपके साथ बुरा घटित हो सकता है। अच्छा होगा की किसी जानकार से पूछकर ही पढ़ें। 

निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वहानी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी। जिह्वा ज्वाला दन्त काली। मद्यमांस कारी श्मशान की राणी। मांस खाये रक्त-पी-पीवे। भस्मन्ति माई जहां पर पाई तहां लगाई। सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगीन, नागों की नागीन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली।

क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

काली माता के मंत्र

एकाक्षर मंत्र : क्रीं   इसे चिंतामणि काली का विशेष मंत्र भी कहा जाता है।

द्विअक्षर मंत्रक्रीं क्रीं   तांत्रिक साधनाएं और मंत्र सिद्धि हेतु।

त्रिअक्षरी मंत्रक्रीं क्रीं क्रीं   तांत्रिक साधना के पहले और बाद में जपा जाता है।

ज्ञान प्रदाता मन्त्रह्रीं   दक्षिण काली का मंत्र ज्ञान हेतु

मन्त्र : क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा    दुखों का निवारण करके घन-धान्य की वृद्धि एवं पारिवारिक शांति हेतु।

छह अक्षरों का मंत्र : क्रीं क्रीं फट स्वाहा    सम्मोहन आदि तांत्रिक सिद्धियों के लिए।

आठ अक्षरों का मंत्रक्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा    पासना के अंत में जप करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

नवार्ण मंत्र ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै:    इसका प्रत्येक अक्षर एक ग्रह को नियंत्रित करता है। इस मंत्र का जप नवरात्रों में विशेष फलदायी होता है।

ग्यारह अक्षरों का यह मन्त्र : ऐं नमः क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा    मन्त्र अत्यंत दुर्लभ और सर्वसिंद्धियों को प्रदान करने वाला है।

उपरोत्त्क पांच, छह, आठ और ग्यारह अक्षरों के इन मन्त्रों को दो लाख की संख्या में जपने का विधान है। तभी यह मन्त्र सिद्ध होता है।

क्रीं हूं हूं ह्रीं हूं हूं क्रीं स्वाहा।

क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा।

नमः आं आं क्रों क्रों फट स्वाहा कालिका हूं।

क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा।

माता  की सरल भक्ति ही करें : शुक्रवार के दिन पवित्र होकर   (मांस मदिरा छोड़कर)  माता के मंदिर में जाकर गुग्गल की धूप लगाने के बाद गुलाब के फूल चढ़ाएं और माता की मूर्ति के समक्ष बैठकर प्रार्थना करें।

माता  की काली  21 शुक्रवार को तक करने के बाद इक्सीसवें शुक्रवार को माता को काली चूनरी, चूढ़ी, बिछियां आदि अर्पित करके माता को पांच तरह की मिठाई का भोग लगाएं। माता प्रसन्न होगी तो सौ प्रतिशत आपकी रह तरह की मनोकामनापूर्ण होगी। संकट जड़ से कट जाएंगे। धन की समस्या समाप्त हो जाएगी।

चेतावनी : यहां कालका माता की पूजा संबंधी सामान्य जानकारी दी जा रही है। किसी विशेषज्ञ से पूछकर ही माता की पूजा करना चाहिए।

 

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