Friday 24 January 2020

शनि देव

शनि देव के एक राशि में ढाई साल तक समय बिताने के लिहाज से सभी 12 राशियों का एक चक्कर लगाने में लगभग 30 साल का समय लगता है। जैसे कि इस समय शनि धनु राशि में गोचर है अब दोबारा धनु राशि में आने के लिए शनि को 30 वर्षों का समय लगेगा। शनि के किसी 1 राशि में गोचर होने से 7 राशियों पर इसका प्रभाव पड़ता है। 3 राशियों पर शनि की साढ़ेसाती चढ़ती है। 2 राशियों पर शनि की ढैय्या लगती है और अन्य 2 राशियों पर शनि की नजर हमेशा लगी रहती है। शनि ग्रह की एक राशि में मंद चाल से किसी व्यक्ति के पूरे जीवन में औसतन 2 से 3 बार साढ़ेसाती लग सकती है। शनि की साढ़ेसाती ,,,जब शनि का गोचर किसी एक राशि में होता है तो शनि उस राशि में ढाई साल तक रहते हैं। ढाई साल के बाद ही शनि का राशि परिवर्तन दूसरी राशि में होता है। ज्योतिष गणना के अनुसार चंद्र राशि से जब शनि 12वें भाव, पहले भाव व द्वितीय भाव से निकलते हैं। उस अवधि को शनि की साढ़े साती कहा जाता है। शनि जिस राशि में गोचर करते हैं तो राशि क्रम के हिसाब से उस राशि के आगे और पीछे वाली राशि पर भी अपना असर डालते हैं। इस तरह से शनि एक राशि पर साढ़े सात साल तक रहते हैं। इस साढ़े सात साल के समय को ही शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है। फिर जैसे-जैसे शनि आगे बढ़ता है साढ़ेसाती उतरती जाती है। शनि की ढैय्या,,,शनि जब गोचर में जन्म राशि से चतुर्थ और अष्टम भाव में रहता है तब इसे शनि की ढैय्या कहते है। शनि की ढय्या एक राशि पर साढ़े सात साल और दूसरी पर लगभग 16 साल में आती है। शनि के ढैय्या किसी राशि पर इसको पता लगाने के लिए शनि जिस राशि में रहता है उससे क्रम अनुसार पहले की चौथी और बाद वाली छठी राशि पर शनि की ढैय्या रहती है। मेष आपकी राशि के जातकों के लिए शनि देव अपनी ही राशि मकर में गोचर करते हुए दशम कर्मभाव में जा रहे हैं जिससे पंचमहापुरुष योग में से एक शशक योग का निर्माण होगा जो फलित ज्योतिष के श्रेष्ठतम योगों में से एक है। ऐसे में 24 जनवरी 2020 को मकर राशि में शनि का गोचरआपको रोजगार के कई नए- नए अवसर प्रदान करेंगे। देश-विदेश में आपको नए मौके मिलेंगे। प्रॉपर्टी खरीदने और नए निवेश के लिए यह सही समय है। मेष राशि,,साढ़ेसाती- 29 मार्च 2025 से 31 मई 2032 तक ढय्या- 13 जुलाई 2034 से 27 अगस्त 2036 तक - 12 दिसंबर 2043 से 8 दिसंबर 2046 तक वृष ,,आपकी राशि से नवम भाग्य भाव में गोचर शनि का चांदी के पाए पर होकर गोचर करना अति भाग्यवर्धक सिद्ध होगा। पिछले ढाई साल से चल रही शनि की ढैय्या समाप्त होगी जिससे आपकी परेशानियां खत्म होने के संकेत हैं। साल 2020 वृष राशि के जातकों के लिए शुभ है। आय बढ़ाने के संकेत हैं। वृष राशि ,,साढ़ेसाती- 3 जून 2027 से 13 जुलाई 2034 तक ढय्या - 27 अगस्त 2036 से 22 अक्टूबर 2038 तक मिथुन,,,शनि के मकर राशि में प्रवेश करने से मिथुन राशि वालों के ऊपर शनि की ढैय्या शुरू हो जाएगी। आपकी राशि से आठवें भाव में शनिदेव का गोचर कई तरह के मिलेजुले फल देगा क्योंकि, इस भाव में गोचर करते हुए इनकी लघु कल्याणी ढैय्या का शुभारंभ करना आपके लिए कई तरह से परीक्षा लेने वाला सिद्ध होगा इसलिए वर्ष पर्यंत आपको अपने कार्य तथा निर्णय बहुत सावधानीपूर्वक करने होंगे।ढाई साल चुनौतियों से भरे रहेंगे। नौकरी के मामले में साल 2021 कुछ अच्छे परिणाम नहीं लेकर आएगा। साढ़ेसाती- 8 अगस्त 2029 से 27 अगस्त 2036 तक ढैय्या- 24 जनवरी 2020 से 29 अप्रैल 2022 तक,,,22 अक्टूबर 2038 से 29 जनवरी 2041 तक आपकी राशि से सप्तमभाव में शनिदेव का गोचर कई मायनों में आपकी परीक्षा भी लेगा और कार्य अथवा व्यापार की दृष्टि से आपको सफल भी बनाएगा, क्योंकि ये आपकी राशि से केंद्र भाव में गोचर करते हुए 'शशक' योग का निर्माण भी करेंगे, जिसके फलस्वरूप आपके लिए शनिजन्य सभी कार्यों में लाभ होगा किंतु ये अष्टम भाव के स्वामी भी हैं इसलिए कार्य बिना रुकावटों के संपन्न कर पाना आसान नहीं होगा। साल 2020 के मुकाबले 2021 में ज्यादा प्रगति होगी। साढेसाती- 31 मई 2032 से 22 अक्टूबर 2038 तक ढैय्या- - 29 अप्रैल 2022 स 29 मार्च 2025 तक,,, - 29 जनवरी 2041 से 12 दिसंबर 2043 तक सिंह आपकी राशि से छठें शत्रुभाव में शनि का गोचर अप्रत्याशित परिणाम दिलाने वाला सिद्ध होगा। फलित ज्योतिष के अनुसार तीसरे, छठे, और ग्यारहवें भाव में शनि गोचर कर रहे हों या किसी भी जातक की जन्मकुंडली के इन भावों में बैठे हों तो सभी अरिष्टों का शमन करते हुए उसे जीवन के सर्वोच्च शिखर तक पहुचाते हैं । साढ़ेसाती- 13 जुलाई 2034 से 29 जनवरी 2041 तक ढैय्या- 29 मार्च 2025 से 3 जून 2027 तक -12 दिसंबर 2043 से 8 दिसंबर 2046 तक कन्या ,,शनि के मकर राशि में प्रवेश से 26 जनवरी 2017 से चली आ रही शनि की शनि की ढैय्या समाप्त हो जाएगी। शनि की ढैय्या का उतरना आपके लिए शुभ परिणाम लाएगा। आय में बढ़ोत्तरी होगी। व्यवसाय में तरक्की और यश की प्राप्ति होगी। साढ़ेसाती- 27 अगस्त 2036 से 12 दिसंबर 2043 तक ढैय्या- 3 जून 2027 से 8 अगस्त 2029 तक तुला राशि ,,,24 जनवरी को मकर राशि में शनि का गोचर होने से तुला राशि पर चतुर्थ शनि की ढैय्या चलेगी। तुला राशि के जातकों पर शनि की विशेष कृपा रहती है। शनि की ढैय्या शुरू होने से कार्यों का दबाव रहेगा। सेहत से जुड़ी कुछ तकलीफों का समाना करना पड़ सकता है। साढ़ेसाती- 22 अक्टूबर 2038 से 8 दिसंबर 2046 तक ढैय्या- 24 जनवरी 2020 से 29 अप्रैल 2022 तक,, - 8 अगस्त 2029 से 31 मई 2020 तक वृश्चिक राशि ,,,24 जनवरी को जैसे ही शनि मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा वैसे ही वृश्चिक राशि से शनि की साढ़ेसाती की अवधि पूरी हो जाएगी। शनि के मकर राशि में जाने से अब से आपको सभी तरह की सुख सुविधा प्राप्त होने लगेगी। रुका हुआ काम पूरा होगा। भाग्य का साथ मिलता रहेगा। नौकरी और अपना बिजनेस करने वाले जातकों के लिए शनि का मकर राशि में गोचर शुभ परिणाम देगा। साढ़ेसाती- 28 जनवरी 2041 से 3 दिसंबर 2049 तक ढैय्या- 29 अप्रैल 2022 से 29 मार्च 2025 तक,,, - 31 मई 2032 से 13 जुलाई 2034 तक धनु राशि ,,,शनि के मकर राशि में प्रवेश करने से धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती का अंतिम चरण होगा। शनिदेव आपके धन स्थान से गोचर करेंगे। जिस कारण से आपको धन के मामले में सफलता प्राप्त होगा। शनि की साढ़ेसाती का अंतिम चरण होने से परेशानियां कम होने लगेंगी। साढ़ेसाती- 12 दिसंबर 2043 से 3 दिसंबर 2049 तक ढैय्या- 29 मार्च 2025 से 3 जून 2027 तक,,- 13 जुलाई 2034 से 27 अगस्त 2036 तक मकर राशि ,,24 जनवरी को शनि 30 वर्षों के बाद मकर राशि में आ रहे हैं। मकर राशि स्वयं शनि की राशि है। शनि के मकर राशि में आने शनि की साढ़ेसाती का दूसरा चरण शुरू हो जाएगा। जिससे कार्यक्षेत्र पर दबाव बढ़ेगा और परेशानियां पहले के मुकाबले ज्यादा आएंगी। शनि का दूसरा चरण बहुत ही घातक होता है। साढ़ेसाती- 26 जनवरी 2017 से 29 मार्च 2025 तक य्या- 3 जून 2027 से 8 अगस्त 2029 तक,,,- 27 अगस्त 2036 से 22 अक्टूबर 2038 तक कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती का पहला चरण रहेगा। परेशानियां बढ़ने लगेंगी। साढ़ेसाती- 24 जनवरी 2020 से 3 जून 2027 तक ढय्या- 8 अगस्त 2029 से 31 मई 2032 तक.,,- 22 अक्टूबर 2038 से 29 जनवरी 2041 तक मीन राशि ,,शनि के मकर राशि में गोचर से आपके लाभ भाव में गोचर करेंगे। जिस कारण से शनि के शुभ परिणाम मिलते हैं। साढ़ेसाती- 29 अप्रैल 2022 से 8 अगस्त 2029 तक ढय्या- 31 मई 2032 से 13 जुलाई 2034 तक,, - 29 जनवरी 2041 से 12 दिसंबर 2043 तक 24 जनवरी को शनि ढाई साल के बाद राशि बदल रहे हैं। शनि धनु को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में तुला, वृश्चिक और धनु राशि के जातकों पर इस शनि गोचर का उनके जीवन में कैसा असर पड़ेगा आइए विस्तार से जानते हैं। तुला राशि,,आपकी राशि के लिए अकेले राजयोग कारक ग्रह शनिदेव चतुर्थ भाव में गोचर करते हुए ‘शशक’ योग का निर्माण करेंगे जो आपके अत्यंत कामयाबी दिलाने वाला सिद्ध होगा। साथ ही त्रिकोण का भी शुभ प्रभाव आपको मिलेगा क्योंकि, पंचमभाव के स्वामी शनि का स्वग्रही होकर केंद्रभाव में अपने ही घर में रहना आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है अतः यह परिवर्तन आपके लिए अत्यंत शुभ फलदाई होने वाला है। तुला राशि और शनि गोचर 2020,,किसी भी जातक की जन्मकुंडली यदि वह तुला लग्न अथवा तुला राशि में जन्मा हो तो मकर राशि में गोचर करते हुए शनिदेव उसके लिए हमेशा शुभ फलदाई कह गए हैं। ये वर्ष इस राशि के लोगों के लिए सफलताओं के सर्वोच्च शिखर तक ले जाएगा। यदि आप सन्मार्ग पर चलते हुए अच्छे कर्म करेंगे और दूसरों की भावनाओं का आदर करेंगे तो आपकी अभीष्ट सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी। जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से माता, भूमि भवन, वाहन, अचल संपत्ति, मानसिक सुख आदि का विचार किया जाता है इसीलिए अधिकांशतः शनिदेव इन्हीं भागों को प्रभावित करेंगे। ये आपके पंचम भाव के भी स्वामी है जिसके फलस्वरूप इस वर्ष आपको संतान संबंधी चिंता से मुक्ति मिलेगी। यदि आप विद्यार्थी हैं तो शिक्षा अथवा प्रतियोगिता से संबंधित किसी भी क्षेत्र में अपना परचम लहरा सकते हैं। शनिदेव की दशम भाव पर भी दृष्टि पड़ रही है, ये दृष्टि आपके कार्य को प्रभावित करेगी। हो सकता है कार्यक्षेत्र में कुछ तनाव भी हो लेकिन यदि आप उच्चाधिकारियों से मधुर संबंध स्थापित किए रहेंगे और अपने आसपास कार्य करने वाले लोगों को अपने पक्ष में रखेंगे अथवा मेलजोल बनाकर रखेंगे तो परेशानियां स्वत: ही हल होती जाएंगी। राजनीति अथवा राजनेताओं से गहरे संबंध बनेंगे यदि चुनाव से संबंधित कोई कार्य संपन्न करना चाह रहे हैं तो अवसर अच्छा है। नौकरी में भी परिवर्तन चाह रहे हों तो नए अनुबंध पर सकते हैं। यहीं से शनिदेव की उच्चदृष्टि आपके ऊपर पड़ रही है अतः यदि आप न्याय संगत कार्य करेंगे और असहाय लोगों की मदद करते हुए आगे बढ़ेंगे, तो जीवन के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचेंगे इसमें कोई संदेह नहीं है, किंतु इस बात का सदैव ध्यान रखें कि इनकी दृष्टि आप पर है इसलिए जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशील रहें। वृश्चिक राशि,,,आपकी राशि से पराक्रम भाव में शनि देव का गोचर किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि, ज्योतिष के अनुसार तीसरे भाव में शनिदेव रहें तो सभी अरिष्टों का शमन करते हैं किंतु भाइयों के सुख में न्यूनता भी लाते हैं। इस वर्ष अपनी जिद एवं आवेश पर नियंत्रण रखते हुए योजनाओं को गोपनीय रखकर कार्य करेंगे तो सफलता की संभावना सर्वाधिक रहेगी। इस भाव से छोटे भाई बहन, पराक्रम, धैर्य-शौर्य, गले के रोग, श्वास संबंधी रोग तथा ऊर्जा शक्ति आदि का विचार किया जाता है अतः शनिदेव का गोचर इस वर्ष इन भागों को अधिक प्रभावित करेगा इसलिए सावधान रहें। काफी दिनों से रुका आ रहा सरकार से संबंधित कार्यो का निपटारा होगा नौकरी में पदोन्नति होगी मान-सम्मान की भी वृद्धि होगी। यहां से इनकी दृष्टि पंचम भाव पर पड़ रही है जिसके फलस्वरूप संतान से संबंधित चिंता रहेगी भी और उससे मुक्ति भी मिलेगी। नव दंपत्ति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग बनेंगे और आध्यात्म की ओर रुझान बढ़ेगा। विद्यार्थियों का मन पठन-पाठन में अधिक लगेगा। समय आ गया है की पूरी शक्ति लगा दें ताकि परीक्षा में अच्छे अंक हासिल हो सके। भाग्यभाव पर सप्तम दृष्टि भाग्य उन्नति एवं विदेश यात्रा के योग बनाएगी। धर्म-कर्म में रूचि बढ़ेगी, तीर्थ यात्रा करेंगे और मांगलिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लेंगे। विदेश यात्रा हेतु वीजा का आवेदन करना अथवा दूसरे देश की नागरिकता हासिल करने के लिए आवेदन करना सफल रहेगा। इनकी उच्च दृष्टि आपके व्ययभाव पर भी पड़ रही है जिसके फलस्वरूप भागदौड़ और व्यय की अधिकता रहेगी आर्थिक तंगी से बचें, यात्रा सावधानीपूर्वक करें दुर्घटना से बचें। धनु राशि,,,,राशि से द्वितीय धन भाव में शनिदेव का अपनी ही राशि में होकर गोचर करना मिलाजुला फल देगा। आर्थिक दृष्टि से तो यह योग अच्छा कहा जाएगा किंतु पारिवारिक दृष्टि से कुछ अशांति का सामना करना पड़ सकता है। आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनेंगे, रुके हुए धन के वापस भी मिलने की संभावना है इसलिए परिवार में बिखराव को बचाते हुए अपना ध्यान कार्य-व्यापार की ओर अधिक ध्यान लगाएंगे तो आर्थिक तंगी से भी मुक्ति मिलेगी और कर्ज से भी छुटकारा मिलेगा। स्वास्थ्य की दृष्टि से जोड़ों-घुटनों में दर्द एवं आंख की बीमारी से बचना पड़ेगा। इस भाव से धन-धान्य, संपत्ति, कुटुम्ब, मृत्यु, वाणी, सत्य असत्य का संभाषण, जिह्वा, मुख के रोग, अच्छे-बुरे पड़ोसियों, दाहिनी आंख आदि के विषय में विचार किया जाता है। धनु राशि,,इनकी सप्तम मारक दृष्टि आपके अष्टम आयु भाव पर पड़ रही है जिसके फलस्वरूप आपको हर समय स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहना पड़ेगा षडयंत्र का शिकार होने से भी बचके रहना पड़ेगा। बेहतर रहेगा कि आप कार्यक्षेत्र से अपने काम संपन्न करके सीधे घर आए। यहां से इनकी दशम उच्च दृष्टि आपके लाभ भाव पर पड़ रही है अतः यह दृष्टि आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि, ये आपके लिए कामयाबियों के मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर करने में मदद करेगी। आय के स्रोत भी बढ़ेंगे और इसी दृष्टि के फलस्वरूप नौकरी में पदोन्नति एवं सम्मान प्राप्ति के भी योग बनेंगे। अपने कार्य व्यापार के प्रति सूझबूझ एवं संयम से चलते हुए कार्य करेंगे तो धन लाभ अधिक होगा जिससे आपकी आर्थिक तंगी भी दूर होगी और जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन कर पाएंगे Gyanchand Bundiwal. 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Sunday 5 January 2020

पौष पुत्रदा एकादशी

पुत्रदा एकादशी का महत्‍व सभी एकादश‍ियों में पुत्रदा एकादशी का विशेष स्‍थान है. मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रभाव से योग्‍य संतान की प्राप्‍ति होती है. इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु की आराधना की जाती है. कहते हैं कि जो भी भक्‍त पुत्रदा एकादशी का व्रत पूरे तन, मन और जतन से करते हैं उन्‍हें संतान रूपी रत्‍न मिलता है. ऐसा भी कहा जाता है कि जो कोई भी पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ता है, सुनता है या सुनाता है उसे स्‍वर्ग की प्राप्‍ति होती है. पुत्रदा एकादशी की व्रत विधि 1- एकादशी के दिन सुबह उठकर भगवान विष्‍णु का स्‍मरण करें. 2- फिर स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें. 3- अब घर के मंदिर में श्री हरि विष्‍णु की मूर्ति या फोटो के सामने दीपक जलाकर व्रत का संकल्‍प लें और कलश की स्‍थापना करें. 4- अब कलश में लाल वस्‍त्र बांधकर उसकी पूजा करें. 5- भगवान विष्‍णु की प्रतिमा या फोटो को स्‍नान कराएं और वस्‍त्र पहनाएं. 6- अब भगवान विष्‍णु को नैवेद्य और फलों का भोग लगाएं. 7- इसके बाद विष्‍णु को धूप-दीप दिखाकर विधिवत् पूजा-अर्चना करें और आरती उतारें. 8- पूरे दिन निराहार रहें. शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार करें. 9- दूसरे दिन ब्राह्मणों को खाना खिलाएं और यथा सामर्थ्‍य दान देकर व्रत का पारण करें. पुत्रदा एकादशी के नियम 10 - जो लोग पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहते हैं उन्‍हें एक दिन पहले यानी कि दशमी के दिन से व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए. 11 - दशमी के दिन सूर्यास्‍त के बाद भोजन ग्रहण न करें और रात में सोने से पहले भगवान विष्‍णु का ध्‍यान करें. 12 - व्रत के दिन पानी में गंगाजल डालकर स्‍नान करना चाहिए. 13 - दशमी और एकादशी के दिन मांस, लहसुन, प्‍याज, मसूर की दाल का सेवन वर्जित है. 14 - रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए. 15 - एकादशी के दिन गाजर, शलजम, गोभी और पालक का सेवन न करें. पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा 16 पौराणिक कथा के अनुसार भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके कोई पुत्र नहीं था. उसकी स्त्री का नाम शैव्या था. वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी. राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा. राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था. वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा. बिना संतान के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा. जिस घर में संतान न हो उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है. इसलिए संतान उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए । जिस मनुष्य ने संतान का मुख देखा है, वह धन्य है. उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं. पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में संतान, धन आदि प्राप्त होते हैं. राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था. एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया. एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा. उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं. हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है. इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं. वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया. इसी प्रकार आधा दिन बीत गया. वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों? राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा. थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा. उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे. उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे. उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे. राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया. राजा को देखकर मुनियों ने कहा- "हे राजन हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं. तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो." राजा ने पूछा- "महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहां आए हैं. कृपा करके बताइए." मुनि कहने लगे, "हे राजन आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं. यह सुनकर राजा कहने लगा, "महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक संतान का वरदान दीजिए." मुनि बोले- "हे राजन आज पुत्रदा एकादशी है. आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में संतान होगी. मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया. इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया. कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ. वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ. मान्‍यता है कि संतान की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए. कहते हैं कि जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है  Gyanchand Bundiwal.
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