Sunday 21 September 2014

आदिशक्ति मां दुर्गा . या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

आदिशक्ति मां दुर्गा ...
दुर्गा अवतार की कथा है कि असुरों द्वारा संत्रस्त देवताओं का उद्धार करने के लिए प्रजापति ने उनका तेज एकत्रित किया था और उसे काली का रूप देकर प्रचण्ड शक्ति उत्पन्न की थी. दुर्गा सप्तशती के सर्ग 10/18 में अनुसार संपूर्ण देवताओं के तेज में महिषासुरमर्दिनी दुर्गा का जन्म हुआ. भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से उनके सिर में बाल निकल आए.
विष्णु भगवान के तेज से उनकी भुजाएँ उत्पन्न हुईं. चन्द्रमा के तेज से दोनों स्तनों का और इन्द्र के तेज से कटिप्रदेश का प्रादुर्भाव हुआ. वरुण के तेज से जंघा और पिंडली तथा पृथ्वी के तेज से नितंबभाग प्रकट हुआ. ब्रह्मा के तेज से दोनों चरण और सूर्य के तेज से उनकी उँगलियाँ प्रकट हुईं. वसुओं के तेज से हाथों की उँगलियाँ और कुबेर के तेज से नासिका प्रकट हुई. उस देवी के दाँत प्रजापति के तेज से और तीनों नेत्र अग्नि के तेज से प्रकट हुए. उनकी भौंहें संध्या के और कान वायु के तेज से उत्पन्न हुए थे. इसी प्रकार अन्यान्य देवताओं के तेज से भी उस कल्याणमयी देवी का आविर्भाव हुआ. प्रकट हुई दुर्गाशक्ति को समर्थ और शक्तिशाली करने के लिए सभी देवताओं ने अपनी विशिष्टता, प्रतिभा का सामूहिक दान किया.
सभी शक्तियों और देवताओं के तेज से उत्पन्न उस चण्डी ने अपने पराक्रम से असुरों को समूल नाश किया और देवताओं को उनका उचित स्थान दिलाया था . इस कथा का आशय यही है कि सामूहिकता की शक्ति असीम है. इसका जिस भी प्रयोजन में उपयोग किया जाएगा, उसी में असाधारण सफलता मिलती चली जाएगी. दुर्गा का वाहन सिंह है. वह पराक्रम का प्रतीक है. दुर्गा की संघर्ष की देवी है.
जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करने के लिए हर किसी को आंतरिक दुर्बलताओं और स्वभावगत दुष्प्रवृत्तियों से निरंतर जूझना पड़ता है. बाह्य जीवन में अवांछनीयताओं एवं अनीतियों के आक्रमण होते रहते हैं और अवरोध सामने खड़े रहते हैं. उनसे संघर्ष करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं है. शांति से रहना तो सभी चाहते हैं, पर आक्रमण और अवरोधों से बच निकलना कठिन है . उससे संघर्ष करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं. ऐसे साहस का, शौर्य-पराक्रम का उद्भव गायत्री महाशक्ति के अंतगर्त दुर्गा तत्त्व के उभरने पर संभव होता है. गायत्री उपासना से साधक के अंतराल में उसी स्तर की प्रखरता उभरती है. इसे दुर्गा का अनुग्रह साधक को उपलब्ध हुआ माना जाता है.देवी भागवत पुराण के अनुसार प्रत्येक कन्या को देवी का स्वरुप ही माना जाता है !   2 से 10 वर्ष की आयु के मध्य अलग-अलग आयु के अनुसार देवी के अलग -अलग नाम होते हैं ----
2 साल की कन्या ----- कुमारी 
3 साल की कन्या ----- त्रिमूर्ति 
4  साल की कन्या ---कल्याणी 
5 साल की कन्या ---- रोहिणी 
6  साल की कन्या ---- कालिका 
7  साल की कन्या ---- चंडिका 
8  साल की कन्या ---- शाम्भवी 
9  साल की कन्या ---- दुर्गा 
10  साल की कन्या ----सुभद्रा    के रूप में होती है !
।!!! Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557 !!!

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