Thursday 20 February 2020

महा शिवरात्रि पर केसे करे शिव पूजा

महा शिवरात्रि पर केसे करे शिव पूजा ।https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5 सामान्य मंत्रो से सम्पूर्ण शिवपूजन प्रकार और पद्धति शिवपूजन में ध्यान रखने जैसे कुछ खास बाते (१) स्नान कर के ही पूजा में बेठे (२) साफ सुथरा वस्त्र धारण कर ( हो शके तो शिलाई बिना का तो बहोत अच्छा ) (३) आसन एक दम स्वच्छ चाहिए ( दर्भासन हो तो उत्तम ) (४) पूर्व या उत्तर दिशा में मुह कर के ही पूजा करे (५) बिल्व पत्र पर जो चिकनाहट वाला भाग होता हे वाही शिवलिंग पर चढ़ाये ( कृपया खंडित बिल्व पत्र मत चढ़ाये ) (६) संपूर्ण परिक्रमा कभी भी मत करे ( जहा से जल पसार हो रहा हे वहा से वापस आ जाये ) (७) पूजन में चंपा के पुष्प का प्रयोग ना करे (८) बिल्व पत्र के उपरांत आक के फुल, धतुरा पुष्प या नील कमल का प्रयोग अवश्य कर शकते हे (९) शिव प्रसाद का कभी भी इंकार मत करे ( ये सब के लिए पवित्र हे ) 10 पूजन सामग्री ,,शिव की मूर्ति या शिवलिंगम, अबीर- गुलाल, चन्दन ( सफ़ेद ) अगरबत्ती धुप ( गुग्गुल ) बिलिपत्र बिल्व फल, तुलसी, दूर्वा, चावल, पुष्प, फल,मिठाई, पान-सुपारी,जनेऊ, पंचामृत, आसन, कलश, दीपक, शंख, घंट, आरती यह सब चीजो का होना आवश्यक है। 11 पूजन विधि ,,जो इंसान भगवन शंकर का पूजन करना चाहता हे उसे प्रातः कल जल्दी उठकर प्रातः कर्म पुरे करने के बाद पूर्व दिशा या इशान कोने की और अपना मुख रख कर .. प्रथम आचमन करना चाहिए बाद में खुद के ललाट पर तिलक करना चाहिए बाद में निन्म मंत्र बोल कर शिखा बांधनी चाहिए 12 शिखा मंत्र ह्रीं उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी मस्शोणित भक्षणे। तिष्ठ देवी शिखा मध्ये चामुंडे ह्य पराजिते।। 13 आचमन मंत्र,ॐ केशवाय नमः / ॐ नारायणाय नमः / ॐ माधवाय नमः तीनो बार पानी हाथ में लेकर पीना चाहिए और बाद में ॐ गोविन्दाय नमः बोल हाथ धो लेने चाहिए बाद में बाये हाथ में पानी ले कर दाये हाथ से पानी .. अपने मुह, कर्ण, आँख, नाक, नाभि, ह्रदय और मस्तक पर लगाना चाहिए और बाद में ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय बोल कर खुद के चारो और पानी के छीटे डालने चाहिए ह्रीं नमो नारायणाय बोल कर प्राणायाम करना चाहिए 14 स्वयं एवं सामग्री पवित्रीकरण,,'ॐ अपवित्र: पवित्रो व सर्वावस्था गतोपी व। य: स्मरेत पूंडरीकाक्षम सह: बाह्याभ्यांतर सूचि।। ( बोल कर शरीर एवं पूजन सामग्री पर जल का छिड़काव करे - शुद्धिकरण के लिए ) 15 न्यास,, निचे दिए गए मंत्र बोल कर बाजु में लिखे गए अंग पर अपना दाया हाथ का स्पर्श करे। ह्रीं नं पादाभ्याम नमः / ( दोनों पाव पर ), ह्रीं मों जानुभ्याम नमः / ( दोनों जंघा पर ) ह्रीं भं कटीभ्याम नमः / ( दोनों कमर पर ) ह्रीं गं नाभ्ये नमः / ( नाभि पर ) ह्रीं वं ह्रदयाय नमः / ( ह्रदय पर ) ह्रीं ते बाहुभ्याम नमः / ( दोनों कंधे पर ) ह्रीं वां कंठाय नमः / ( गले पर ) ह्रीं सुं मुखाय नमः / ( मुख पर ) ह्रीं दें नेत्राभ्याम नमः / ( दोनों नेत्रों पर ) ह्रीं वां ललाटाय नमः / ( ललाट पर ) ह्रीं यां मुध्र्ने नमः / ( मस्तक पर ) ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः / ( पुरे शरीर पर ) तत्पश्चात भगवन शंकर की पूजा करे 15 पूजन विधि निन्म प्रकार से हे तिलक मन्त्र,, स्वस्ति तेस्तु द्विपदेभ्यश्वतुष्पदेभ्य एवच / स्वस्त्यस्त्व पादकेभ्य श्री सर्वेभ्यः स्वस्ति सर्वदा // 16 नमस्कार मंत्र हाथ मे अक्षत पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोलकर नमस्कार करें। श्री गणेशाय नमः इष्ट देवताभ्यो नमः कुल देवताभ्यो नमः ग्राम देवताभ्यो नमः स्थान देवताभ्यो नमः सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः गुरुवे नमः मातृ पितरेभ्यो नमः ॐ शांति शांति शांति 17 गणपति स्मरण ,, सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गज कर्णक लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक।। धुम्र्केतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः द्वाद्शैतानी नामानी यः पठेच्छुनुयादापी।। विध्याराम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमेस्त्था। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।। शुक्लाम्बर्धरम देवं शशिवर्ण चतुर्भुजम। प्रसन्न वदनं ध्यायेत्सर्व विघ्नोपशाताये।। वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि सम प्रभु। निर्विघम कुरु में देव सर्वकार्येशु सर्वदा।। 18 संकल्प ,दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले 'ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे ---*--- नगरे ---**--- ग्रामे वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम्‌ तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम्‌ शुभ पुण्य तिथौ,, ज्ञानचंद बुंदिवाल ,, दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन्‌ महागणपति प्रीत्यर्थम्‌ यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।'' इसके पश्चात्‌ हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें। 19 नोट ,यहाँ पर अपने नगर का नाम बोलें -यहाँ पर अपने ग्राम का नाम बोलें , यहाँ पर अपना कुल गौत्र बोलें , यहाँ पर अपना नाम बोलकर ,ज्ञानचंद बुंदिवाल, आदि बोलें 20 द्विग्रक्षण - मंत्र यादातर संस्थितम भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वात:/ स्थानं त्यक्त्वा तुं तत्सर्व यत्रस्थं तत्र गछतु // यह मंत्र बोल कर चावालको अपनी चारो और डाले। 21 वरुण पूजन अपाम्पताये वरुणाय नमः। सक्लोप्चारार्थे गंधाक्षत पुष्पह: समपुज्यामी। यह बोल कर कलश के जल में चन्दन - पुष्प डाले और कलश में से थोडा जल हाथ में ले कर निन्म मंत्र बोल कर पूजन सामग्री और खुद पर वो जल के छीटे डाले 22 दीप पूजन दिपस्त्वं देवरूपश्च कर्मसाक्षी जयप्रद:। साज्यश्च वर्तिसंयुक्तं दीपज्योती जमोस्तुते।। ( बोल कर दीप पर चन्दन और पुष्प अर्पण करे ) 23 शंख पूजन, लक्ष्मीसहोदरस्त्वंतु विष्णुना विधृत: करे। निर्मितः सर्वदेवेश्च पांचजन्य नमोस्तुते।। ( बोल कर शंख पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये ) 24 घंट पूजन , देवानं प्रीतये नित्यं संरक्षासां च विनाशने। घंट्नादम प्रकुवर्ती ततः घंटा प्रपुज्यत।। ( बोल कर घंट नाद करे और उस पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये ) 25 ध्यान मंत्र ध्यायामि दैवतं श्रेष्ठं नित्यं धर्म्यार्थप्राप्तये। धर्मार्थ काम मोक्षानाम साधनं ते नमो नमः।। ( बोल कर भगवान शंकर का ध्यान करे ) 26 आहवान मंत्र आगच्छ देवेश तेजोराशे जगत्पतये। पूजां माया कृतां देव गृहाण सुरसतम।। ( बोल कर भगवन शिव को आह्वाहन करने की भावना करे ) 27 आसन मंत्र, सर्वकश्ठंयामदिव्यम नानारत्नसमन्वितम। कर्त्स्वरसमायुक्तामासनम प्रतिगृह्यताम।। ( बोल कर शिवजी कोई आसन अर्पण करे ) 28 खाध्य प्रक्षालन उष्णोदकम निर्मलं च सर्व सौगंध संयुत। पद्प्रक्षलानार्थय दत्तं ते प्रतिगुह्यतम।। ( बोल कर शिवजी के पैरो को पखालने हे ) 29 अर्ध्य मंत्र जलं पुष्पं फलं पत्रं दक्षिणा सहितं तथा। गंधाक्षत युतं दिव्ये अर्ध्य दास्ये प्रसिदामे।। ( बोल कर जल पुष्प फल पात्र का अर्ध्य देना चाहिए ) पंचामृत स्नान 30 पायो दाढ़ी धृतम चैव शर्करा मधुसंयुतम। पंचामृतं मयानीतं गृहाण परमेश्वर।। ( बोल कर पंचामृत से स्नान करावे ) 31 स्नान मंत्र गंगा रेवा तथा क्षिप्रा पयोष्नी सहितास्त्था। स्नानार्थ ते प्रसिद परमेश्वर।। (बोल कर भगवन शंकर को स्वच्छ जल से स्नान कराये और चन्दन पुष्प चढ़ाये ) 32 संकल्प मन्त्र अनेन स्पन्चामृत पुर्वरदोनोने आराध्य देवता: प्रियत्नाम। ( तत पश्यात शिवजी कोई चढ़ा हुवा पुष्प ले कर अपनी आख से स्पर्श कराकर उत्तर दिशा की और फेक दे ,बाद में हाथ को धो कर फिर से चन्दन पुष्प चढ़ाये ) 33 अभिषेक मंत्र सहस्त्राक्षी शतधारम रुषिभी: पावनं कृत। तेन त्वा मभिशिचामी पवामान्य : पुनन्तु में।। ( बोल कर जल शंख में भर कर शिवलिंगम पर अभिषेक करे ) बाद में शिवलिंग या प्रतिमा को स्वच्छ जल से स्नान कराकर उनको साफ कर के उनके स्थान पर विराजमान करवाए 34 वस्त्र मंत्र सोवर्ण तन्तुभिर्युकतम रजतं वस्त्र्मुत्तमम। परित्य ददामि ते देवे प्रसिद गुह्यतम।। ( बोल कर वस्त्र अर्पण करने की भावना करे ) 35 जनेऊ मन्त्र नवभिस्तन्तुभिर्युकतम त्रिगुणं देवतामयम। उपवीतं प्रदास्यामि गृह्यताम परमेश्वर।। ( बोल कर जनेऊ अर्पण करने की भावना करे ) 36 चन्दन मंत्र मलयाचम संभूतं देवदारु समन्वितम। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रति गृह्यताम।। ( बोल कर शिवजी को चन्दन का लेप करे ) 37 अक्षत मंत्र अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कंकुमुकदी सुशोभित। माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर।। (बोल चावल चढ़ाये ) 38 पुष्प मंत्र नाना सुगंधी पुष्पानी रुतुकलोदभवानी च। मायानितानी प्रीत्यर्थ तदेव प्रसिद में।। ( बोल कर शिवजी को विविध पुष्पों की माला अर्पण करे ) 39 बिल्वपत्र मन्त्र त्रिदलं त्रिगुणा कारम त्रिनेत्र च त्र्ययुधाम। त्रिजन्म पाप संहारमेकं बिल्वं शिवार्पणं।। ( बोल कर बिल्वपत्र अर्पण करे ) 40 दूर्वा मन्त्र दुर्वकुरण सुहरीतन अमृतान मंगलप्रदान। आतितामस्तव पूजार्थं प्रसिद परमेश्वर शंकर :।। ( बोल करे दूर्वा दल अर्पण करे ) 41 सौभाग्य द्रव्य हरिद्राम सिंदूर चैव कुमकुमें समन्वितम। सौभागयारोग्य प्रीत्यर्थं गृहाण परमेश्वर शंकर :।। ( बोल कर अबिल गुलाल चढ़ाये और होश्के तो अलंकर और आभूषण शिवजी को अर्पण करे ) 42 धुप मन्त्र वनस्पति रसोत्पन्न सुगंधें समन्वित :। देव प्रितिकारो नित्यं धूपों यं प्रति गृह्यताम।। ( बोल कर सुगन्धित धुप करे ) 43 दीप मन्त्र त्वं ज्योति : सर्व देवानं तेजसं तेज उत्तम :.। आत्म ज्योति: परम धाम दीपो यं प्रति गृह्यताम।। ( बोल कर भगवन शंकर के सामने दीप प्रज्वलित करे ) 44 नैवेध्य मन्त्र नैवेध्यम गृह्यताम देव भक्तिर्मेह्यचलां कुरु। इप्सितम च वरं देहि पर च पराम गतिम्।। ( बोल कर नैवेध्य चढ़ाये ) 45 भोजन (नैवेद्य मिष्ठान मंत्र) ॐ प्राणाय स्वाहा. ॐ अपानाय स्वाहा. ॐ समानाय स्वाहा ॐ उदानाय स्वाहा. ॐ समानाय स्वाहा ( बोल कर भोजन कराये ) नैवेध्यांते हस्तप्रक्षालानं मुख्प्रक्षालानं आरामनियम च समर्पयामि निम्न ५ मंत्र से भोजन करवाए और ३ बार जल अर्पण करें और बाद में देव को चन्दन चढ़ाये। 45 मुखवास मंत्र एलालवंग संयुक्त पुत्रिफल समन्वितम। नागवल्ली दलम दिव्यं देवेश प्रति गुह्याताम।। ( बोल कर पान सोपारी अर्पण करे ) 46 दक्षिणा मंत्र ह्रीं हेमं वा राजतं वापी पुष्पं वा पत्रमेव च। दक्षिणाम देवदेवेश गृहाण परमेश्वर शंकर।। ( बोल कर अपनी शक्ति अनुसार दक्षिणा अर्पण करे ) 47 आरती मंत्र सर्व मंगल मंगल्यम देवानं प्रितिदयकम। निराजन महम कुर्वे प्रसिद परमेश्वर।। ( बोल कर एक बार आरती करे ) बाद में आरती की चारो और जल की धरा करे और आरती पर पुष्प चढ़ाये सभी को आरती दे और खुद भी आरती ले कर हाथ धो ले। 48 पुष्पांजलि मंत्र पुष्पांजलि प्रदास्यामि मंत्राक्षर समन्विताम। तेन त्वं देवदेवेश प्रसिद परमेश्वर।। ( बोल कर पुष्पांजलि अर्पण करे ) 49 प्रदक्षिणा, यानी पापानि में देव जन्मान्तर कृतानि च। तानी सर्वाणी नश्यन्तु प्रदिक्षिने पदे पदे।। ( बोल कर प्रदिक्षिना करे ) बाद में शिवजी के कोई भी मंत्र स्तोत्र या शिव शहस्त्र नाम स्तोत्र का पाठ करे अवश्य शिव कृपा प्राप्त होगी। पूजा में हुई अशुद्धि के लिये निम्न स्त्रोत्र पाठ से क्षमा याचना करें। 50 देव्पराधक्षमापनस्तोत्रम्।। न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:। न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्। तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला: परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुत:। मदीयोऽयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया। तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि। इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा निरातङ्को रङ्को विहरित चिरं कोटिकनकै:। तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं जन: को जानीते जननि जपनीयं चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति:। कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् न मोक्षस्याकाड्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन:। अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत: नाराधितासि विधिना विविधोपचारै: किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि:। श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि। नैतच्छठत्वं मम भावयेथा: क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि। अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम् मत्सम: पातकी नास्ति पापन्घी त्वत्समा न हि। एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु।।। Gyanchand Bundiwal. 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Thursday 13 February 2020

यशोदा जयंती पुराणिक कथा

यशोदा जयंती पुराणिक कथा : एक समय माता यशोदा ने भवगवान विष्णु की घोर तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वर मांगने को कहा. माता ने बोले हे ईश्वर! मेरी तपस्या तभी पूर्ण होगी जब आप मुझे, मेरे पुत्र के रूप में प्राप्त होंगे. भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें कहा कि आने वाले काल में में वासुदेव एवं देवकी माँ के घर जन्म लूंगा लेकिन मुझे मातृत्व का सुख आपसे ही प्राप्त होगा. समय के साथ ऐसा ही हुआ एवं भगवान कृष्ण देवकी एवं वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में प्रकट हुए, क्योंकि कंस को मालूम था कि उनका वध देवकी एवं वासुदेव की संतान द्वारा ही होगा तो उन्होंने अपनी बहन एवं वासुदेव को कारावास में डाल दिया. जब कृष्ण का जन्म हुआ तो वासुदेव उन्हें नंद बाबा एवं यशोदा मैय्या के घर छोड़ आए ताकि उनका अच्छे से पालन पोषण हो सके. तत्पश्चात माता यशोदा ने ही कृष्ण को मातृत्व का सुख दिया. माता यशोदा एवं कृष्ण की लीलाएं तो जग जाहिर हैं. कभी माखन चोर बने, तो कभी पूतना का वध किया. मां की डांट पड़ने पर अपने मुंह को खोल कर पूरे ब्रह्मांड के दर्शन भी करवा दिए. उनकी ऐसी अद्भुद लीलाएं देख कर मां यशोदा को एहसास हो गया की कृष्ण ही भगवान विष्णु का रूप हैं. वह कृतघ्न हो गयी एवं और भी वात्सल्य से भर गयीं. जसोदा हरि पालने झुलावै. हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥ मेरे लाल कौ आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै. तू काहैं नहि बेगहि आवै, तोकौ कान्ह बुलावै॥ कबहुं पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुं अधर फरकावै. सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥ इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै. जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नंद-भामिनि पावै॥ यशोदा जयंती पूजा विधि आज के दिन मां यशोदा को दिल से याद करें, उनका आवाहन करें एवं उनसे संतान सुख के लिए आशीर्वाद मांगें. मां तो सभी के लिए वात्सल्य से भारी हुई हैं. आपकी मनोकामनाओं को अवश्य पूर्ण करेंगी. अगर आप संतान से सम्बंधित कष्टों से गुजर रहे हैं या फिर संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं तो आपको आज के दिन प्रातः काल उठ कर स्नान आदि कर स्वच्छ होकर मां यशोदा का ध्यान करना चाहिए एवं कृष्ण के लड्डू गोपाल रूप का ध्यान करना चाहिए. मां को लाल चुनरी चड़ाएं, पंजीरी एवं मीठा रोठ एवं थोड़ा सा मख्खन लड्डू गोपाल के लिए भी भोग के लिए रखें. मन ही मन अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें, शुभ होगा. Gyanchand Bundiwal. Kundan Jewellers We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices. हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष होल सेल भाव में मिलते हैं और ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 website www.kundanjewellersnagpur.com

Wednesday 12 February 2020

Parshvanath 108 Names of Shri Ajhara Parshvanath

Parshvanath Parshvanath 108 Names of Shri Ajhara Parshvanath Shri Mahadeva Parshvanath Shri Alokik Parshvanath Shri Makshi Parshvanath Shri Amijhara Parshvanath Shri Mandovara Parshvanath Shri Amrutjhara Parshvanath Shri Manoranjan Parshvanath Shri Ananda Parshvanath Shri Manovanchit Parshvanath Shri Antariksh Parshvanath Shri Muhri Parshvanath Shri Ashapuran Parshvanath Shri Muleva Parshvanath Shri Avanti Parshvanath Shri Nageshvar Parshvanath Shri Bareja Parshvanath Shri Nagphana Parshvanath Shri Bhabha Parshvanath Shri Navasari Parshvanath Shri Bhadreshvar Parshvanath Shri Nakoda Parshvanath Shri Bhateva Parshvanath Shri Navapallav Parshvanath Shri Bhayabhanjan Parshvanath Shri Navkhanda Parshvanath Shri Bhidbhanjan Parshvanath Shri Navlakha Parshvanath Shri Bhiladiya Parshvanath Shri Padmavati Parshvanath Shri Bhuvan Parshvanath Shri Pallaviya Parshvanath Shri Champa Parshvanath Shri Panchasara Parshvanath Shri Chanda Parshvanath Shri Phalvridhi Parshvanath Shri Charup Parshvanath Shri Posali Parshvanath Shri Chintamani Parshvanath Shri Posina Parshvanath Shri Chorvadi Parshvanath Shri Pragatprabhavi Parshvanath Shri Dada Parshvanath Shri Ranakpura Parshvanath Shri Dharnendra Parshvanath Shri Ravana Parshvanath Shri Dhingadmalla Parshvanath Shri Shankhala Parshvanath Shri Dhiya Parshvanath Shri Stambhan Parshvanath Shri Dhrutkallol Parshvanath Shri Sahastraphana Parshvanath Shri Dokadiya Parshvanath Shri Samina Parshvanath Shri Dosala Parshvanath Shri Sammetshikhar Parshvanath Shri Dudhyadhari Parshvanath Shri Sankatharan Parshvanath Shri Gadaliya Parshvanath Shri Saptaphana Parshvanath Shri Gambhira Parshvanath Shri Savara Parshvanath Shri Girua Parshvanath Shri Serisha Parshvanath Shri Godi Parshvanath Shri Sesali Parshvanath Shri Hamirpura Parshvanath Shri Shamala Parshvanath Shri Hrinkar Parshvanath Shri Shankeshver Parshvanath Shri Jiravala Parshvanath Shri Sirodiya Parshvanath Shri Jotingada Parshvanath Shri Sogatiya Parshvanath Shri Jagavallabh Parshvanath Shri Somchintamani Parshvanath Shri Kesariya Parshvanath Shri Sphuling Parshvanath Shri Kachulika Parshvanath Shri Sukhsagar Parshvanath Shri Kalhara Parshvanath Shri Sultan Parshvanath Shri Kalikund Parshvanath Shri Surajmandan Parshvanath Shri Kalpadhrum Parshvanath Shri Svayambhu Parshvanath Shri Kalyan Parshvanath Shri Tankala Parshvanath Shri Kamitpuran Parshvanath Shri Uvasaggaharam Parshvanath Shri Kankan Parshvanath Shri Vadi Parshvanath Shri Kansari Parshvanath Shri Vahi Parshvanath Shri Kareda Parshvanath Shri Vanchara Parshvanath Shri Koka Parshvanath Shri Varanasi Parshvanath Shri Kukadeshvar Parshvanath Shri Varkana Parshvanath Shri Kunkumarol Parshvanath Shri Vighnapahar Parshvanath Shri Lodhan Parshvanath Shri Vignahara Parshvanath Shri Lodrava Parshvanath Shri Vijaychintamani Parshvanath Shri Manmohan Parshvanath Shri Vimal Parshvanath Gyanchand Bundiwal. Kundan Jewellers We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices. हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष होल सेल भाव में मिलते हैं और ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 website www.kundanjewellersnagpur.com

Guru Dev 108 Names of ,,Om gurave namah,

Guru Dev 108 Names of ,,Om gurave namah, Om gurave namah Om gunakaraya namah, Om goptre namah, Om gocaraya namah, Om gopatipriyaya namah, Om gunive namah Om gunavatam shrepthaya namah, Om gurunam gurave namah, Om avyayaya namah, Om jetre namah, Om jayantaya namah, Om jayadaya namah, Om jivaya namah, Om anantaya namah, Om jayavahaya namah, Om amgirasaya namah, Om adhvaramaktaya namah, Om viviktaya namah, Om adhvarakritparaya namah, Om vacaspataye namah, Om vashine namah, Om vashyaya namah, Om varishthaya namah, Om vagvacaksanaya namah, Om cittashuddhikaraya namah, Om shrimate namah, Om caitraya namah, Om citrashikhandijaya namah, Om brihadrathaya namah, Om brihadbhanave namah, Om brihaspataye namah, Om abhishtadaya namah, Om suracaryaya namah, Om suraradhyaya namah, Om surakaryakritodyamaya namah, Om girvanaposhakaya namah, Om dhanyaya namah, Om gishpataye namah, Om girishaya namah, Om anaghaya namah, Om dhivaraya namah, Om dhishanaya namah, Om divyabhushanaya namah, Om devapujitaya namah, Om dhanurddharaya namah, Om daityahantre namah, Om dayasaraya namah, Om dayakaraya namah, Om dariddyanashanaya namah, Om dhanyaya namah, Om daksinayanasambhavaya namah, Om dhanurminadhipaya namah, Om devaya namah, Om dhanurbanadharaya namah, Om haraye namah, Om angarovarshasamjataya namah, Om angirah kulasambhavaya namah, Om sindhudeshaadhipaya namah, Om dhimate namah, Om svarnakayaya namah, Om caturbhujaya namah, Om hemangadaya namah, Om hemavapushe namah, Om hemabhushanabhushitaya namah, Om pushyanathaya namah, Om pushyaragamanimandanamandi kashapushpasamanabhaya namah, Om indradyamarasamghapaya namah, Om asamanabalaya namah, Om satvagunasampadvibhavasave bhusurabhishtadaya namah, Om bhuriyashase namah, Om punyavivardhanaya namah, Om dharmarupaya namah, Om dhanaadhyaksaya namah, Om dhanadaya namah, Om dharmapalanaya namah, Om sarvavedaarthatattvajnaya namah, Om sarvapadvinivarakaya namah, Om sarvapapaprashamanaya namah, Om svramatanugatamaraya namah rigvedaparagaya namah, Om riksarashimargapracaravate sadaanandaya namah, Om satyasamdhaya namah, Om satyasamkalpamanasaya namah, Om sarvagamajnaya namah, Om sarvajnaya namah, Om sarvavedantavide namah, Om brahmaputraya namah, Om brahmaneshaya namah, Om brahmavidyaavisharadaya namah, Om samanaadhikanirbhuktaya namah, Om sarvalokavashamvadaya namah, Om sasuraasuragandharvavanditaya satyabhashanaya namah, Om brihaspataye namah, Om suracaryaya namah, Om dayavate namah, Om shubhalaksanaya namah, Om lokatrayagurave namah, Om shrimate namah, Om sarvagaya namah, Om sarvato vibhave namah, Om sarveshaya namah, Om sarvadatushtaya namah, Om sarvadaya namah, Om sarvapujitaya namah Gyanchand Bundiwal. Kundan Jewellers We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices. हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष होल सेल भाव में मिलते हैं और ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 website www.kundanjewellersnagpur.com

Tuesday 4 February 2020

जया एकादशी , अजा तथा ,भीष्म एकादशी भी कहते हैं

जया एकादशी , अजा तथा ,भीष्म एकादशी भी कहते हैं। 05 फरवर (बुधवार) जया एकादशी जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। जया एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से निवेदन कर जया एकादशी का महात्म्य, कथा तथा व्रत विधि के बारे में पूछा था। तब श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि जया एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है। इस एकादशी का व्रत विधि-विधान करने से तथा ब्राह्मण को भोजन कराने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को जया एकादशी से संबंधित कथा भी सुनाई थी। माघ शुक्ल (जया) एकादशी व्रत कथा धर्मराज युधिष्ठिर बोले - हे भगवन्! आपने माघ के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का अत्यन्त सुंदर वर्णन किया। आप स्वदेज, अंडज, उद्भिज और जरायुज चारों प्रकार के जीवों के उत्पन्न, पालन तथा नाश करने वाले हैं। अब आप कृपा करके माघ शुक्ल एकादशी का वर्णन कीजिए। इसका क्या नाम है, इसके व्रत की क्या विधि है और इसमें कौन से देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन्! इस एकादशी का नाम 'जया एकादशी' है। इसका व्रत करने से मनुष्य ब्रह्महत्यादि पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है तथा इसके प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। अब मैं तुमसे पद्मपुराण में वर्णित इसकी महिमा की एक कथा सुनाता हूँ। देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सब देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहते थे। एक समय इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और गंधर्व गान कर रहे थे। उन गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे। साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे। पुष्पवती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी। उसने अपने रूप लावण्य और हावभाव से माल्यवान को वश में कर लिया। हे राजन्! वह पुष्पवती अत्यन्त सुंदर थी। अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गान करने लगे परंतु परस्पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था। इनके ठीक प्रकार न गाने तथा स्वर ताल ठीक नहीं होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया और उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर उनको शाप दे दिया। इंद्र ने कहा हे मूर्खों ! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, इसलिए तुम्हारा धिक्कार है। अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्म का फल भोगो। इंद्र का ऐसा शाप सुनकर वे अत्यन्त दु:खी हुए और हिमालय पर्वत पर दु:खपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें गंध, रस तथा स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं था। वहाँ उनको महान दु:ख मिल रहे थे। उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी। उस जगह अत्यन्त शीत था, इससे उनके रोंगटे खड़े रहते और मारे शीत के दाँत बजते रहते। एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन-से पाप किए थे, जिससे हमको यह दु:खदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई। इस पिशाच योनि से तो नर्क के दु:ख सहना ही उत्तम है। अत: हमें अब किसी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए। इस प्रकार विचार करते हुए वे अपने दिन व्यतीत कर रहे थे। दैव्ययोग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई। उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया। केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय महान दु:ख से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे। उस रात को अत्यन्त ठंड थी, इस कारण वे दोनों शीत के मारे अति दुखित होकर मृतक के समान आपस में चिपटे हुए पड़े रहे। उस रात्रि को उनको निद्रा भी नहीं आई। हे राजन् ! जया एकादशी के उपवास और रात्रि के जागरण से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गई। अत्यन्त सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्गलोक को प्रस्थान किया। उस समय आकाश में देवता उनकी स्तुति करते हुए पुष्पवर्षा करने लगे। स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र इनको पहले रूप में देखकर अत्यन्त आश्चर्यचकित हुआ और पूछने लगा कि तुमने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया, सो सब बतालाओ। माल्यवान बोले कि हे देवेन्द्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है। तब इंद्र बोले कि हे माल्यवान! भगवान की कृपा और एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई, वरन् हम लोगों के भी वंदनीय हो गए क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, अत: आप धन्य है। अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो। !!!! Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557 !!! श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजा युधिष्ठिर ! इस जया एकादशी के व्रत से बुरी योनि छूट जाती है। जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए। जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करते हैं। 05 फरवर (बुधवार) जया एकादशी 19 फरवरी(बुधवार) विजया एकादशी 06 मार्च (शुक्रवार) आमलकी एकादशी 19 मार्च (बृहस्पतिवार) पापमोचिनी एकादशी 20 मार्च (शुक्रवार) वैष्णव पापमोचिनी एकादशी 04 अप्रैल (शनिवार) कामदा एकादशी 18 अप्रैल (शनिवार)बरूथिनी एकादशी 03 मई (रविवार) मोहिनी एकादशी 04 मई (सोमवार) गौण मोहिनी एकादशी ,,वैष्णव मोहिनी एकादशी 18 मई (सोमवार) अपरा एकादशी 02 जून (मंगलवार) निर्जला एकादशी 17 जून (बुधवार) योगिनी एकादशी 01 जुलाई (बुधवार) देवशयनी एकादशी 16 जुलाई (बृहस्पतिवार) कामिका एकादशी 30 जुलाई (बृहस्पतिवार) श्रावण पुत्रदा एकादशी 15 अगस्त (शनिवार) अजा एकादशी 29 अगस्त (शनिवार) परिवर्तिनी एकादशी 13 सितम्ब (रविवार) इन्दिरा एकादशी 27 सितम्बर (रविवार) पद्मिनी एकादशी 13 अक्टूबर (मंगलवार) परम एकादशी 27 अक्टूबर (मंगलवार) पापांकुशा एकादशी 11 नवम्बर (बुधवार) रमा एकादशी 25 नवम्बर (बुधवार) देवुत्थान एकादशी 26 नवम्बर (बृहस्पतिवार) वैष्णव देवुत्थान एकादशी 11 दिसम्बर (शुक्रवार) उत्पन्ना एकादशी 25 दिसम्बर (शुक्रवार) मोक्षदा एकादशी Gyanchand Bundiwal. 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