वशीकरण मन्त्र
1..ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं वाराह-दन्ताय भैरवाय नमः।”
विधि- ‘शूकर-दन्त’ को अपने सामने रखकर उक्त मन्त्र का होली, दीपावली, दशहरा आदि में १०८ बार जप करे। फिर इसका ताबीज बनाकर गले में पहन लें। ताबीज धारण करने वाले पर जादू-टोना, भूत-प्रेत का प्रभाव नहीं होगा। लोगों का वशीकरण होगा। मुकदमें में विजय प्राप्ति होगी। रोगी ठीक होने लगेगा। चिन्ताएँ दूर होंगी और शत्रु परास्त होंगे। व्यापार में वृद्धि होगी।
2,, कामिया सिन्दूर-मोहन मन्त्र
“हथेली में हनुमन्त बसै, भैरु बसे कपार।
नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार।
मोहन रे मोहन्ता वीर, सब वीरन में तेरा सीर।
सबकी नजर बाँध दे, तेल सिन्दूर चढ़ाऊँ तुझे।
तेल सिन्दूर कहाँ से आया ? कैलास-पर्वत से आया।
कौन लाया, अञ्जनी का हनुमन्त, गौरी का गनेश लाया।
काला, गोरा, तोतला-तीनों बसे कपार।
बिन्दा तेल सिन्दूर का, दुश्मन गया पाताल।
दुहाई कमिया सिन्दूर की, हमें देख शीतल हो जाए।
सत्य नाम, आदेश गुरु की। सत् गुरु, सत् कबीर।
विधि- आसाम के ‘काम-रुप कामाख्या, क्षेत्र में ‘कामीया-सिन्दूर’ पाया जाता है। इसे प्राप्त कर लगातार सात रविवार तक उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें। इससे मन्त्र सिद्ध हो जाएगा। प्रयोग के समय ‘कामिया सिन्दूर’ पर ७ बार उक्त मन्त्र पढ़कर अपने माथे पर टीका लगाए। ‘टीका’ लगाकर जहाँ जाएँगे, सभी वशीभूत होंगे।
आकर्षण एवं वशीकरण के प्रबल सूर्य मन्त्र
१॰ “ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्र-किरणाय ऐं अतुल-बल-पराक्रमाय नव-ग्रह-दश-दिक्-पाल-लक्ष्म ी-देव-वाय, धर्म-कर्म-सहितायै ‘अमुक’ नाथय नाथय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, दासानुदासं कुरु-कुरु, वश कुरु-कुरु स्वाहा।”
विधि- सुर्यदेव का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का १०८ बार जप प्रतिदिन ९ दिन तक करने से ‘आकर्षण’ का कार्य सफल होता है।
२॰ “ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं ‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।”
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में २०००० जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन १०८ बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।
बजरङग वशीकरण मन्त्र
“ॐ पीर बजरङ्गी, राम लक्ष्मण के सङ्गी। जहां-जहां जाए, फतह के डङ्के बजाय। ‘अमुक’ को मोह के, मेरे पास न लाए, तो अञ्जनी का पूत न कहाय। दुहाई राम-जानकी की।”
विधि- ११ दिनों तक ११ माला उक्त मन्त्र का जप कर इसे सिद्ध कर ले। ‘राम-नवमी’ या ‘हनुमान-जयन्ती’ शुभ दिन है। प्रयोग के समय दूध या दूध निर्मित पदार्थ पर ११ बार मन्त्र पढ़कर खिला या पिला देने से, वशीकरण होगा।
आकर्षण हेतु हनुमद्-मन्त्र-तन्त्र
“ॐ अमुक-नाम्ना ॐ नमो वायु-सूनवे झटिति आकर्षय-आकर्षय स्वाहा।”
विधि- केसर, कस्तुरी, गोरोचन, रक्त-चन्दन, श्वेत-चन्दन, अम्बर, कर्पूर और तुलसी की जड़ को घिस या पीसकर स्याही बनाए। उससे द्वादश-दल-कलम जैसा ‘यन्त्र’ लिखकर उसके मध्य में, जहाँ पराग रहता है, उक्त मन्त्र को लिखे। ‘अमुक’ के स्थान पर ‘साध्य’ का नाम लिखे। बारह दलों में क्रमशः निम्न मन्त्र लिखे- १॰ हनुमते नमः, २॰ अञ्जनी-सूनवे नमः, ३॰ वायु-पुत्राय नमः, ४॰ महा-बलाय नमः, ५॰ श्रीरामेष्टाय नमः, ६॰ फाल्गुन-सखाय नमः, ७॰ पिङ्गाक्षाय नमः, ८॰ अमित-विक्रमाय नमः, ९॰ उदधि-क्रमणाय नमः, १०॰ सीता-शोक-विनाशकाय नमः, ११॰ लक्ष्मण-प्राण-दाय नमः और १२॰ दश-मुख-दर्प-हराय नमः।
यन्त्र की प्राण-प्रतिष्ठा करके षोडशोपचार पूजन करते हुए उक्त मन्त्र का ११००० जप करें। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए लाल चन्दन या तुलसी की माला से जप करें। आकर्षण हेतु अति प्रभावकारी है।
वशीकरण हेतु कामदेव मन्त्र
“ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन स्वाहा।”
विधि- कामदेव के उक्त मन्त्र को तीनों काल, एक-एक माला, एक मास तक जपे, तो सिद्ध हो जायेगा। प्रयोग करते समय जिसे देखकर जप करेंगे, वही वश में होगा
2,,,तुलसी यक्षिणी प्रयोग
प्रस्तुत साधना उन लोगो के लिये वरदानnसामान है जो सरकारी नोकरी पाना चाहते है।
क्युकी तुलसी यक्षिणी को ही राज्य पद
यक्षिणी भी कहा जाता है।अर्थात राज्य
पद देने वाली।अतः ये साधना राजनीती में भी सफलता देने वाली है।
यदि आपकी पदोन्नति नहीं हो रही है
तो,भी यह साधना की जा सकती है।
या सरकारी नोकरी की इच्छा रखते है
तो भी यह दिव्य साधना अवश्य संपन्न
करे।निश्चित आपकी कामना पूर्ण हो जाएगी। विधि : साधना किसी भी शुक्रवार
की रात्रि से आरम्भ करे,समय रात्रि १०
बजे के बाद का हो,आपका मुख उत्तर
दिशा की और हो,आपके आसन वस्त्र
सफ़ेद हो।प्रातः तुलसी की जड़ निकाल
कर ले आये और उसे साफ करके सुरक्षित रख ले,जड़ लाने के पहले निमंत्रण
अवश्य दे।अब अपने सामने एक
तुलसी का पौधा रखे और उसका सामान्य
पूजन करे,दूध से बनी मिठाई का भोग
लगाये और तील के तेल का दीपक लगाये।
तुलसी की जड़ को अपने आसन के निचे रखे।अब स्फटिक माला से मंत्र की १०१
माला संपन्न करे।यह क्रम तीन दिन तक
रखे,आखरी दिन घी में पञ्च
मेवा मिलाकर यथा संभव आहुति दे।बाद
में उस जड़ को सफ़ेद कपडे में लपेट कर
अपनी बाजु पर बांध ले।मिठाई नित्य स्वयं ही खाए।इस तरह ये दिव्य
साधना संपन्न होती है।अगर आप ये
साधना ग्रहण काल में करते है तो मात्र एक
ही दिन में पूर्ण हो जाएगी।
अन्यथा उपरोक्त विधि से तो अवश्य कर
ही ले।कभी कभी इस साधना में प्रत्यक्षीकरण होते देखा गया है।अगर
ऐसा हो तो घबराये नहीं देवी से वर मांग
ले।प्रत्यक्षीकरण न
भी हो तो भी साधना अपना पूर्ण फल
देती ही है,आवश्यकता है पूर्ण
श्रधा की।माँ सबका कल्याण करे।
मंत्र :ॐ क्लीं क्लीं नमः
जय माँ - -कामदेव वशीकरण मंत्र- -
जब किसी व्यक्ति को किसी से प्रेम
हो जाए या वह आसक्त हो। विवाहित
स्त्री या पुरुष की अपने जीवनसाथी से
... संबंधों में कटुता हो गई हो या कोई युवक
या युवती अपने रुठे साथी को मनाना चाहते
हो। किंतु तमाम कोशिशों के बाद भी वह मन के अनुकूल परिणाम नहीं पाता। तब उसके
लिए तंत्र क्रिया के अंतर्गत कुछ मंत्र के
जप प्रयोग बताए गए हैं। जिससे कोई अपने
साथी को अपनी भावनाओं के वशीभूत कर
सकता है। धर्मशास्त्र में कामदेव को प्रेम, सौंदर्य और
काम का देव माना गया है। इसलिए परिणय,
प्रेम-संबंधों में कामदेव की उपासना और
आराधना का महत्व बताया गया है। इसी क्रम
में तंत्र विज्ञान में कामदेव वशीकरण मंत्र
का जप करने का महत्व बताया गया है। इस मंत्र का जप हानिरहित होकर अचूक
भी माना जाता है।
मंत्र,,,ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह
लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं
कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन
स्वाहा"
कामदेव के इस मन्त्र को सुबह, दोपहर और
रात्रिकाल में एक-एक माला जप का करें। माना जाता है कि यह जप एक मास तक करने
पर सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्धि के बाद
जब आप इस मंत्र का मन में जप कर
जिसकी तरफ देखते हैं, वह आपके वशीभूत
या वश में हो जाता है।
3,,,तंत्र मुद्रा
तंत्र-शास्त्र भारतवर्ष की बहुत प्राचीन साधन-प्रणाली है । इसकी विशेषता यह बतलाई गई है कि इसमें आरम्भ ही से कठिन साधनाओं और कठोर तपस्याओं का विधान नहीं है, वरन् वह मनुष्य के भोग की तरह झुके हुए मन को उसी मार्ग पर चलाते हुए धीरे-धीरे त्याग की ओर प्रवृत्त करता है । इस दृष्टि से तंत्र को ऐसा साधन माना गया कि जिसका आश्रय लेकर साधारण श्रेणी के व्यक्ति भी आध्यात्मिक मार्ग में अग्रसर हो सकते हैं ।
यह सत्य है कि बीच के काल में तंत्र का रूप बहुत विकृत हो गया और इसका उपयोग अधिकांश मे मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि जैसे जघन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाने लगा, पर तंत्र का शुद्ध रूप ऐसा नहीं है । उसका मुख्य उद्देश्य एक-एक सीढ़ी पर चढ़कर आत्मोन्नति के शिखर पर पहुँचता ही है ।
तंत्र-शास्त्र में जो पंच-प्रकार की साधना बतलाई गई है, उसमें मुद्रा साधन बड़े महत्व का और श्रेष्ठ है । मुद्रा में आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि योग की सभी क्रियाओं का समावेश होता है । मुद्रा की साधना द्वारा मनुष्य शारीरिक और मानसिक शक्तियों की वृद्धि करके अपने आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है । मुद्राएँ अनेक हैं । घेरण्ड संहिता में उनकी संख्या २५ बतलाई गई है, पर शिव-संहिता में उनमें से मुख्य मुद्राओं को छांट कर इस की ही गणना कराई है जो इस प्रकार है-
(१) महामुद्रा (२) महाबन्ध (३) महाभेद (४) खेचरी (५) जालन्धर बन्द (६) मूूलबन्ध (७) विपरीत-करणी (८) उड्डीयान (९) वज्ा्रोजी और (१०) शक्ति चालिनी ।
तंत्र मार्ग में कुण्डलिनी शक्ति की बड़ी महिमा बतलाई गई है । इसके जागृत होने से षटचक्र भेद हो जाते हैं और प्राणवायु सहज ही में सुषुम्ना से बहने लगती है इससे चित्त स्थिर हो जाता है और मोक्ष मार्ग खुल जाता है । इस शक्ति को जागृत करने में मुद्राओं से विशेष सहायता मिलती है । इनकी विधि योग ग्रंथों में इस प्रकार बतलाई गई है-
महामुद्रा-
गुरु के उपदेशानुसार बाँये टखने (पैर की पिंडली और पंजे के बीच की दोनों तरफ उठी हुई मोटी हड्डी) से योनि मण्डल (गुदा और लिगेन्द्रय के बीच का स्थान) को दबाकर दाहिने पैर को फैला कर दोनों हाथों से पकड़ ले और शरीर के नवों द्वारों को संयत करके छाती के ऊपरी भाग पर ठुड्डी का लगा दें । चित्त को चैतन्य रूप परमात्मा की तरफ प्रेरित करके कुम्भक प्राणायाम द्वारा वायु को धारण करे । इस मुद्रा का पहले बाँये अंग में अभ्यास करके फिर दाँये अंग में करे और अभ्यास करते समय मन एकाग्र करके उसी नियम से प्राणायाम करता रहे ।
इस मुद्रा से देह सारी नाड़ियाँ चलने लगती हैं । जीवनी शक्ति स्वरूप शुक्र स्तम्भित हो जाता है, सारे रोग मिट जाते हैं, शरीर पर निर्मल लावण्य छा जाता है, बुढ़ापा और अकाल मृत्यु का आक्रमण नहीं होने पाता और मनुष्य जितेन्द्रिय होकर भवसागर से पार हो जाता है ।
खेचरी मुद्रा-
इस मुद्रा से प्राणायाम को सिद्ध करने और सामधि लगाने में विशेष सहायता मिलती है । इसके लिए जिह्र और तालु को जोड़ने वाले मांस-तंतु को धीरे-धीरे काटा जाता है, अर्थात एक दिन जौ भर काट कर छोड़ दिया जाता है, फिर तीन-चार दिन बाद थोड़ा सा और काट दिया जाता है । इस प्रकार थोड़ा काटने से उस स्थान की रक्त वाहिनी शिरायें अपना स्थान भीतर की तरफ बनाती जाती हैं और किसी भय की सम्भावना नहीं रहती । जीभ को काटने के साथ ही प्रतिदिन धीरे-धीरे बाहर की तरफ खींचने का अभ्यास करता जाय ।
इस अभ्यास करने से कुछ महिनों में जीभ इतनी लम्बी हो जाती है कि यदि उसे ऊपर की तरफ लौटा जाय तो वह श्वांस जाने वाले छेदों को भीतर से बन्द कर देती है । इससे समाधि के समय सांस का आना जाना पूर्णतः रोक दिया जाता है ।
विपरीत करणी मुद्रा-
योगियों ने मनुष्य के शरीर में दो मुख्य नाड़ियाँ बतलाई हैं । एक सूर्यनाड़ी और दूसरी चन्द्र नाड़ी । सूर्य नाड़ी नाभि के पास है और चन्द्रनाड़ी तालु के मध्य में है । मस्तक में रहने वाले सहस्रा दल कमल से जो अमृत झरता है वह सूर्य नाड़ी के मुख में जाता है । इसी से अन्त में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है । यहि अमृत चन्द्रनाड़ी के मुख में गिरने लग तो मनुष्य निरोगी, बलवान और दीर्घजीवी हो सकता है ।
इसके लिए तेज शास्त्र में साधक को आदेश दिया गया है कि सूर्यनाड़ी को ऊपर और चन्द्रनाड़ी को नीचे ले आवे । इसके लिए जो मुद्रा बतलाई गई है उसकी विधि शीर्षासन की है, अर्थात मस्तक को जमीन पर टिका कर दोनों पैरों को सीधे ऊपर की तरफ तान दें और दोनों हाथ की हथेलियों को मस्तक के नीचे लगा दें । तब कुम्भक प्राणायाम करें ।
योगि मुद्रा
इसके लिए सिद्धासन पर बैठकर दोनों अंगुठों से दोनों कान, दोनों तर्जनी उँगलियों से दोनों मध्यमा (बीच की उंगली) से दोनों नाक के छेद और दोनों अनामिका से मुंह बन्द करना चाहिए । फिर काकी मुद्रा (कौवे की चौच के समान होठो को आगे बढ़ाकर साँस खीचना) से प्राण वायु के भीतर खींच कर अपान वायु से मिला देना चाहिए । शरीर में स्थित छहों चक्रों का ध्यान करके 'हूँ' और 'हंस' इन दो मंत्रों द्वारा सोयी हुई कुण्डलिनी का जगाना चाहिये ।
जीवात्मा के साथ कुण्डलिनी को युक्त करके सहस्र दल कमल पर ले जाकर ऐसा चिंतन करना कि मैं स्वयं शक्तिमय होकर शिव के साथ नाना प्रकार का बिहार कर रहा हूँ । फिर ऐसा चिंतन करना चाहिए कि 'शिवशक्ति के संयोग से आनन्द स्वरूप होकर मैं ही ब्रह्म रूप में स्थित हूँ ।' यह योनि मुद्रा बहुत शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाली है और साधक इसके द्वारा अनायास ही समाधिस्थ हो सकता है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मुद्राओं में शारीरिक मानसिक और आत्मिक तीनों प्रकार के अभ्यासों को ऐसा समन्वय किया गया है कि मनुष्य भीतरी शारीरिक शक्तियाँ, मानसिक जाग्रत हो जाती हैं और वह ऊँचें दर्जे के आत्मिक अभ्यास के योग्य हो जाता है पर का बात एक ध्यान रखना परमावश्यक है और वह यह कि मुद्राओं का अभ्यास किसी से सुन कर या पढ़ कर सही करना चाहिए, वरन् योग्य गुरु से सीख कर ही उसका अभ्यास करना अनिवार्य है ।
4,,,घोर रूपिणी वशीकरण साधना
यह साधना बहुत ही तीक्ष्ण प्रवाभ रखती है | इसका उपयोग शत्रु वशीकरण के लिए और रूठी हुई पत्नी जा पति को वश में करने के लिए किया जाता है |यह भी ध्यान रखे के किसी भी अनुचित कार्य के लिए यह प्रयोग न करे अथवा आपको हानि होगी | यहा सिर्फ जिज्ञाशा के लिए यह प्रयोग दे रहा हु इसे अपने उच्च अधिकारी पत्नी अथवा पति को अनुकूल बनाने के लिए प्रयोग करे |
साधना विधि ,,,,किसी भी अमावश ,ग्रहण काल ,दीपावली आदि शुभ महूरत में शुरू कर इसका जाप 7 दिन में 11000 कर के सिद्ध कर ले फिर किसी भी ख्द्य पदारथ भोजन आदि जब भी आप करने बैठे उसे 7 वार अभिमंत्रिक कर जिसका भी नाम लेकर खाया जाता है उसका निहचय ही वशीकरण हो जाता है और वह आपके अनुकूल कार्य करने लगेगा और आपकी आज्ञा का पालन करेगा |
१. किसी बेजोट पे एक लाल कपड़ा विशा दे उसके उपर एक नारियल तिल की ढेरी पे स्थाप्त करे |
२. नारियल का पूजन करे उस पे सिंदूर का तिलक करे धूप दीप आदि से घोर रूपिणी को स्मरण करते हुये पूजन करे |
३. भोग मिठाई का लगाए |
४. दिशा दक्षिण की तरफ मुख रखे |
५. आसन कंबल का ले जा कोई भी ऊनी आसन ले ले |
६. माला काले हकीक जा रुद्राक्ष की ठीक रहती है |
७. वस्त्र किसी भी तरह के पहन ले |इस साधना को शाम 8 से 10 व्जे के बीच कभी भी शुरू कर ले |
८. मंत्र जाप पूरा हो जाए तो नारियल किसी भी शिव मंदिर जा काली के मंदिर में कुश दक्षणा के साथ चढ़ा दे और सफलता के लिए प्रार्थना करे |
९. गुरु पूजन और गणेश पूजन हर साधना में अनिवार्य होता है इसका ध्यान रखे |
मंत्र,,,,ॐ नमः कट विकट घोर रूपिणी स्वाहा |
5,,,अद्भुत समोहन प्राप्ति ,,,,श्री ज्वाला मालनी साधना
सुख स्मृधी पे ग्रहण होता है गृह कलेश क्यू के घर में तनाव पूर्ण महोल ही प्रमथिक होता इसके साथ ही यदि आपका उचधिकारी आपके अनुकूल नहीं है | या आपके बच्चे या आपकी पत्नी आपके अनुकूल न हो तो भी जीवन में उदासीनता घर कर जाती है |यह साधना एक अद्भुत साधना है जो के साधक को ऐसा दिव्य स्मोहन देती है जिस से उसके कार्य सहज ही होने लगते है लोग उसकी बात का आदर करते है उसकी वाणी में अद्भुत प्रभाव आ जाता है छोटे बड़े सभ उसको इज़त देते है | वह अपने आस पास के महोल को और लोगो को अपने अनुकूल रखने और परिचित जा अपरिचित व्यक्ति के साथ मधुर संबंध बनाने और अपने व्यक्तिगत जीवन की आ रही अनेक स्मस्याओ को दूर करने में सक्षम हो जाता है |
विधि ,,,,,१. यह साधना 11 दिन की है | इस में हर रोज 11 माला जप अनिवर्य है |
२. इस में आसन पीले रंग का लेना है और आपकी दिशा उतर की तरफ मुख रहेगा |
३. देवी भगवती जा ज्वालामालनी का चित्र स्थाप्त करे | चित्र का पूजन धूप दीप नवेद पुष्प अक्षत फल आदि से करे | भोग में आप किसी भी तरह की मिठाई इस्तेमाल कर सकते है | एक पनि वाले नारियल को तिलक कर मौली बांध कर देवी माँ को अर्पित करे |
४. फिर मूँगे की माला से निम्न मंत्र की ११ माला ११ दिन तक करे |
५. ११ दिन के बाद सभी पुजा की हुई समगरी जल प्रवाह करदे | फल आदि प्रसाद अपने परिवार में बाँट दे |
६. गुरु पूजन और गणेश पूजन हर साधना में अनवर्य होता है इस बात को हमेशा याद रखे |
मंत्र ,,ॐ नमो आकर्षिनी ज्वाला मालनी देव्यै स्वाहा
1..ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं वाराह-दन्ताय भैरवाय नमः।”
विधि- ‘शूकर-दन्त’ को अपने सामने रखकर उक्त मन्त्र का होली, दीपावली, दशहरा आदि में १०८ बार जप करे। फिर इसका ताबीज बनाकर गले में पहन लें। ताबीज धारण करने वाले पर जादू-टोना, भूत-प्रेत का प्रभाव नहीं होगा। लोगों का वशीकरण होगा। मुकदमें में विजय प्राप्ति होगी। रोगी ठीक होने लगेगा। चिन्ताएँ दूर होंगी और शत्रु परास्त होंगे। व्यापार में वृद्धि होगी।
2,, कामिया सिन्दूर-मोहन मन्त्र
“हथेली में हनुमन्त बसै, भैरु बसे कपार।
नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार।
मोहन रे मोहन्ता वीर, सब वीरन में तेरा सीर।
सबकी नजर बाँध दे, तेल सिन्दूर चढ़ाऊँ तुझे।
तेल सिन्दूर कहाँ से आया ? कैलास-पर्वत से आया।
कौन लाया, अञ्जनी का हनुमन्त, गौरी का गनेश लाया।
काला, गोरा, तोतला-तीनों बसे कपार।
बिन्दा तेल सिन्दूर का, दुश्मन गया पाताल।
दुहाई कमिया सिन्दूर की, हमें देख शीतल हो जाए।
सत्य नाम, आदेश गुरु की। सत् गुरु, सत् कबीर।
विधि- आसाम के ‘काम-रुप कामाख्या, क्षेत्र में ‘कामीया-सिन्दूर’ पाया जाता है। इसे प्राप्त कर लगातार सात रविवार तक उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें। इससे मन्त्र सिद्ध हो जाएगा। प्रयोग के समय ‘कामिया सिन्दूर’ पर ७ बार उक्त मन्त्र पढ़कर अपने माथे पर टीका लगाए। ‘टीका’ लगाकर जहाँ जाएँगे, सभी वशीभूत होंगे।
आकर्षण एवं वशीकरण के प्रबल सूर्य मन्त्र
१॰ “ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्र-किरणाय ऐं अतुल-बल-पराक्रमाय नव-ग्रह-दश-दिक्-पाल-लक्ष्म
विधि- सुर्यदेव का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का १०८ बार जप प्रतिदिन ९ दिन तक करने से ‘आकर्षण’ का कार्य सफल होता है।
२॰ “ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं ‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।”
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में २०००० जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन १०८ बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।
बजरङग वशीकरण मन्त्र
“ॐ पीर बजरङ्गी, राम लक्ष्मण के सङ्गी। जहां-जहां जाए, फतह के डङ्के बजाय। ‘अमुक’ को मोह के, मेरे पास न लाए, तो अञ्जनी का पूत न कहाय। दुहाई राम-जानकी की।”
विधि- ११ दिनों तक ११ माला उक्त मन्त्र का जप कर इसे सिद्ध कर ले। ‘राम-नवमी’ या ‘हनुमान-जयन्ती’ शुभ दिन है। प्रयोग के समय दूध या दूध निर्मित पदार्थ पर ११ बार मन्त्र पढ़कर खिला या पिला देने से, वशीकरण होगा।
आकर्षण हेतु हनुमद्-मन्त्र-तन्त्र
“ॐ अमुक-नाम्ना ॐ नमो वायु-सूनवे झटिति आकर्षय-आकर्षय स्वाहा।”
विधि- केसर, कस्तुरी, गोरोचन, रक्त-चन्दन, श्वेत-चन्दन, अम्बर, कर्पूर और तुलसी की जड़ को घिस या पीसकर स्याही बनाए। उससे द्वादश-दल-कलम जैसा ‘यन्त्र’ लिखकर उसके मध्य में, जहाँ पराग रहता है, उक्त मन्त्र को लिखे। ‘अमुक’ के स्थान पर ‘साध्य’ का नाम लिखे। बारह दलों में क्रमशः निम्न मन्त्र लिखे- १॰ हनुमते नमः, २॰ अञ्जनी-सूनवे नमः, ३॰ वायु-पुत्राय नमः, ४॰ महा-बलाय नमः, ५॰ श्रीरामेष्टाय नमः, ६॰ फाल्गुन-सखाय नमः, ७॰ पिङ्गाक्षाय नमः, ८॰ अमित-विक्रमाय नमः, ९॰ उदधि-क्रमणाय नमः, १०॰ सीता-शोक-विनाशकाय नमः, ११॰ लक्ष्मण-प्राण-दाय नमः और १२॰ दश-मुख-दर्प-हराय नमः।
यन्त्र की प्राण-प्रतिष्ठा करके षोडशोपचार पूजन करते हुए उक्त मन्त्र का ११००० जप करें। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए लाल चन्दन या तुलसी की माला से जप करें। आकर्षण हेतु अति प्रभावकारी है।
वशीकरण हेतु कामदेव मन्त्र
“ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन स्वाहा।”
विधि- कामदेव के उक्त मन्त्र को तीनों काल, एक-एक माला, एक मास तक जपे, तो सिद्ध हो जायेगा। प्रयोग करते समय जिसे देखकर जप करेंगे, वही वश में होगा
2,,,तुलसी यक्षिणी प्रयोग
प्रस्तुत साधना उन लोगो के लिये वरदानnसामान है जो सरकारी नोकरी पाना चाहते है।
क्युकी तुलसी यक्षिणी को ही राज्य पद
यक्षिणी भी कहा जाता है।अर्थात राज्य
पद देने वाली।अतः ये साधना राजनीती में भी सफलता देने वाली है।
यदि आपकी पदोन्नति नहीं हो रही है
तो,भी यह साधना की जा सकती है।
या सरकारी नोकरी की इच्छा रखते है
तो भी यह दिव्य साधना अवश्य संपन्न
करे।निश्चित आपकी कामना पूर्ण हो जाएगी। विधि : साधना किसी भी शुक्रवार
की रात्रि से आरम्भ करे,समय रात्रि १०
बजे के बाद का हो,आपका मुख उत्तर
दिशा की और हो,आपके आसन वस्त्र
सफ़ेद हो।प्रातः तुलसी की जड़ निकाल
कर ले आये और उसे साफ करके सुरक्षित रख ले,जड़ लाने के पहले निमंत्रण
अवश्य दे।अब अपने सामने एक
तुलसी का पौधा रखे और उसका सामान्य
पूजन करे,दूध से बनी मिठाई का भोग
लगाये और तील के तेल का दीपक लगाये।
तुलसी की जड़ को अपने आसन के निचे रखे।अब स्फटिक माला से मंत्र की १०१
माला संपन्न करे।यह क्रम तीन दिन तक
रखे,आखरी दिन घी में पञ्च
मेवा मिलाकर यथा संभव आहुति दे।बाद
में उस जड़ को सफ़ेद कपडे में लपेट कर
अपनी बाजु पर बांध ले।मिठाई नित्य स्वयं ही खाए।इस तरह ये दिव्य
साधना संपन्न होती है।अगर आप ये
साधना ग्रहण काल में करते है तो मात्र एक
ही दिन में पूर्ण हो जाएगी।
अन्यथा उपरोक्त विधि से तो अवश्य कर
ही ले।कभी कभी इस साधना में प्रत्यक्षीकरण होते देखा गया है।अगर
ऐसा हो तो घबराये नहीं देवी से वर मांग
ले।प्रत्यक्षीकरण न
भी हो तो भी साधना अपना पूर्ण फल
देती ही है,आवश्यकता है पूर्ण
श्रधा की।माँ सबका कल्याण करे।
मंत्र :ॐ क्लीं क्लीं नमः
जय माँ - -कामदेव वशीकरण मंत्र- -
जब किसी व्यक्ति को किसी से प्रेम
हो जाए या वह आसक्त हो। विवाहित
स्त्री या पुरुष की अपने जीवनसाथी से
... संबंधों में कटुता हो गई हो या कोई युवक
या युवती अपने रुठे साथी को मनाना चाहते
हो। किंतु तमाम कोशिशों के बाद भी वह मन के अनुकूल परिणाम नहीं पाता। तब उसके
लिए तंत्र क्रिया के अंतर्गत कुछ मंत्र के
जप प्रयोग बताए गए हैं। जिससे कोई अपने
साथी को अपनी भावनाओं के वशीभूत कर
सकता है। धर्मशास्त्र में कामदेव को प्रेम, सौंदर्य और
काम का देव माना गया है। इसलिए परिणय,
प्रेम-संबंधों में कामदेव की उपासना और
आराधना का महत्व बताया गया है। इसी क्रम
में तंत्र विज्ञान में कामदेव वशीकरण मंत्र
का जप करने का महत्व बताया गया है। इस मंत्र का जप हानिरहित होकर अचूक
भी माना जाता है।
मंत्र,,,ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह
लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं
कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन
स्वाहा"
कामदेव के इस मन्त्र को सुबह, दोपहर और
रात्रिकाल में एक-एक माला जप का करें। माना जाता है कि यह जप एक मास तक करने
पर सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्धि के बाद
जब आप इस मंत्र का मन में जप कर
जिसकी तरफ देखते हैं, वह आपके वशीभूत
या वश में हो जाता है।
3,,,तंत्र मुद्रा
तंत्र-शास्त्र भारतवर्ष की बहुत प्राचीन साधन-प्रणाली है । इसकी विशेषता यह बतलाई गई है कि इसमें आरम्भ ही से कठिन साधनाओं और कठोर तपस्याओं का विधान नहीं है, वरन् वह मनुष्य के भोग की तरह झुके हुए मन को उसी मार्ग पर चलाते हुए धीरे-धीरे त्याग की ओर प्रवृत्त करता है । इस दृष्टि से तंत्र को ऐसा साधन माना गया कि जिसका आश्रय लेकर साधारण श्रेणी के व्यक्ति भी आध्यात्मिक मार्ग में अग्रसर हो सकते हैं ।
यह सत्य है कि बीच के काल में तंत्र का रूप बहुत विकृत हो गया और इसका उपयोग अधिकांश मे मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि जैसे जघन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाने लगा, पर तंत्र का शुद्ध रूप ऐसा नहीं है । उसका मुख्य उद्देश्य एक-एक सीढ़ी पर चढ़कर आत्मोन्नति के शिखर पर पहुँचता ही है ।
तंत्र-शास्त्र में जो पंच-प्रकार की साधना बतलाई गई है, उसमें मुद्रा साधन बड़े महत्व का और श्रेष्ठ है । मुद्रा में आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि योग की सभी क्रियाओं का समावेश होता है । मुद्रा की साधना द्वारा मनुष्य शारीरिक और मानसिक शक्तियों की वृद्धि करके अपने आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है । मुद्राएँ अनेक हैं । घेरण्ड संहिता में उनकी संख्या २५ बतलाई गई है, पर शिव-संहिता में उनमें से मुख्य मुद्राओं को छांट कर इस की ही गणना कराई है जो इस प्रकार है-
(१) महामुद्रा (२) महाबन्ध (३) महाभेद (४) खेचरी (५) जालन्धर बन्द (६) मूूलबन्ध (७) विपरीत-करणी (८) उड्डीयान (९) वज्ा्रोजी और (१०) शक्ति चालिनी ।
तंत्र मार्ग में कुण्डलिनी शक्ति की बड़ी महिमा बतलाई गई है । इसके जागृत होने से षटचक्र भेद हो जाते हैं और प्राणवायु सहज ही में सुषुम्ना से बहने लगती है इससे चित्त स्थिर हो जाता है और मोक्ष मार्ग खुल जाता है । इस शक्ति को जागृत करने में मुद्राओं से विशेष सहायता मिलती है । इनकी विधि योग ग्रंथों में इस प्रकार बतलाई गई है-
महामुद्रा-
गुरु के उपदेशानुसार बाँये टखने (पैर की पिंडली और पंजे के बीच की दोनों तरफ उठी हुई मोटी हड्डी) से योनि मण्डल (गुदा और लिगेन्द्रय के बीच का स्थान) को दबाकर दाहिने पैर को फैला कर दोनों हाथों से पकड़ ले और शरीर के नवों द्वारों को संयत करके छाती के ऊपरी भाग पर ठुड्डी का लगा दें । चित्त को चैतन्य रूप परमात्मा की तरफ प्रेरित करके कुम्भक प्राणायाम द्वारा वायु को धारण करे । इस मुद्रा का पहले बाँये अंग में अभ्यास करके फिर दाँये अंग में करे और अभ्यास करते समय मन एकाग्र करके उसी नियम से प्राणायाम करता रहे ।
इस मुद्रा से देह सारी नाड़ियाँ चलने लगती हैं । जीवनी शक्ति स्वरूप शुक्र स्तम्भित हो जाता है, सारे रोग मिट जाते हैं, शरीर पर निर्मल लावण्य छा जाता है, बुढ़ापा और अकाल मृत्यु का आक्रमण नहीं होने पाता और मनुष्य जितेन्द्रिय होकर भवसागर से पार हो जाता है ।
खेचरी मुद्रा-
इस मुद्रा से प्राणायाम को सिद्ध करने और सामधि लगाने में विशेष सहायता मिलती है । इसके लिए जिह्र और तालु को जोड़ने वाले मांस-तंतु को धीरे-धीरे काटा जाता है, अर्थात एक दिन जौ भर काट कर छोड़ दिया जाता है, फिर तीन-चार दिन बाद थोड़ा सा और काट दिया जाता है । इस प्रकार थोड़ा काटने से उस स्थान की रक्त वाहिनी शिरायें अपना स्थान भीतर की तरफ बनाती जाती हैं और किसी भय की सम्भावना नहीं रहती । जीभ को काटने के साथ ही प्रतिदिन धीरे-धीरे बाहर की तरफ खींचने का अभ्यास करता जाय ।
इस अभ्यास करने से कुछ महिनों में जीभ इतनी लम्बी हो जाती है कि यदि उसे ऊपर की तरफ लौटा जाय तो वह श्वांस जाने वाले छेदों को भीतर से बन्द कर देती है । इससे समाधि के समय सांस का आना जाना पूर्णतः रोक दिया जाता है ।
विपरीत करणी मुद्रा-
योगियों ने मनुष्य के शरीर में दो मुख्य नाड़ियाँ बतलाई हैं । एक सूर्यनाड़ी और दूसरी चन्द्र नाड़ी । सूर्य नाड़ी नाभि के पास है और चन्द्रनाड़ी तालु के मध्य में है । मस्तक में रहने वाले सहस्रा दल कमल से जो अमृत झरता है वह सूर्य नाड़ी के मुख में जाता है । इसी से अन्त में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है । यहि अमृत चन्द्रनाड़ी के मुख में गिरने लग तो मनुष्य निरोगी, बलवान और दीर्घजीवी हो सकता है ।
इसके लिए तेज शास्त्र में साधक को आदेश दिया गया है कि सूर्यनाड़ी को ऊपर और चन्द्रनाड़ी को नीचे ले आवे । इसके लिए जो मुद्रा बतलाई गई है उसकी विधि शीर्षासन की है, अर्थात मस्तक को जमीन पर टिका कर दोनों पैरों को सीधे ऊपर की तरफ तान दें और दोनों हाथ की हथेलियों को मस्तक के नीचे लगा दें । तब कुम्भक प्राणायाम करें ।
योगि मुद्रा
इसके लिए सिद्धासन पर बैठकर दोनों अंगुठों से दोनों कान, दोनों तर्जनी उँगलियों से दोनों मध्यमा (बीच की उंगली) से दोनों नाक के छेद और दोनों अनामिका से मुंह बन्द करना चाहिए । फिर काकी मुद्रा (कौवे की चौच के समान होठो को आगे बढ़ाकर साँस खीचना) से प्राण वायु के भीतर खींच कर अपान वायु से मिला देना चाहिए । शरीर में स्थित छहों चक्रों का ध्यान करके 'हूँ' और 'हंस' इन दो मंत्रों द्वारा सोयी हुई कुण्डलिनी का जगाना चाहिये ।
जीवात्मा के साथ कुण्डलिनी को युक्त करके सहस्र दल कमल पर ले जाकर ऐसा चिंतन करना कि मैं स्वयं शक्तिमय होकर शिव के साथ नाना प्रकार का बिहार कर रहा हूँ । फिर ऐसा चिंतन करना चाहिए कि 'शिवशक्ति के संयोग से आनन्द स्वरूप होकर मैं ही ब्रह्म रूप में स्थित हूँ ।' यह योनि मुद्रा बहुत शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाली है और साधक इसके द्वारा अनायास ही समाधिस्थ हो सकता है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मुद्राओं में शारीरिक मानसिक और आत्मिक तीनों प्रकार के अभ्यासों को ऐसा समन्वय किया गया है कि मनुष्य भीतरी शारीरिक शक्तियाँ, मानसिक जाग्रत हो जाती हैं और वह ऊँचें दर्जे के आत्मिक अभ्यास के योग्य हो जाता है पर का बात एक ध्यान रखना परमावश्यक है और वह यह कि मुद्राओं का अभ्यास किसी से सुन कर या पढ़ कर सही करना चाहिए, वरन् योग्य गुरु से सीख कर ही उसका अभ्यास करना अनिवार्य है ।
4,,,घोर रूपिणी वशीकरण साधना
यह साधना बहुत ही तीक्ष्ण प्रवाभ रखती है | इसका उपयोग शत्रु वशीकरण के लिए और रूठी हुई पत्नी जा पति को वश में करने के लिए किया जाता है |यह भी ध्यान रखे के किसी भी अनुचित कार्य के लिए यह प्रयोग न करे अथवा आपको हानि होगी | यहा सिर्फ जिज्ञाशा के लिए यह प्रयोग दे रहा हु इसे अपने उच्च अधिकारी पत्नी अथवा पति को अनुकूल बनाने के लिए प्रयोग करे |
साधना विधि ,,,,किसी भी अमावश ,ग्रहण काल ,दीपावली आदि शुभ महूरत में शुरू कर इसका जाप 7 दिन में 11000 कर के सिद्ध कर ले फिर किसी भी ख्द्य पदारथ भोजन आदि जब भी आप करने बैठे उसे 7 वार अभिमंत्रिक कर जिसका भी नाम लेकर खाया जाता है उसका निहचय ही वशीकरण हो जाता है और वह आपके अनुकूल कार्य करने लगेगा और आपकी आज्ञा का पालन करेगा |
१. किसी बेजोट पे एक लाल कपड़ा विशा दे उसके उपर एक नारियल तिल की ढेरी पे स्थाप्त करे |
२. नारियल का पूजन करे उस पे सिंदूर का तिलक करे धूप दीप आदि से घोर रूपिणी को स्मरण करते हुये पूजन करे |
३. भोग मिठाई का लगाए |
४. दिशा दक्षिण की तरफ मुख रखे |
५. आसन कंबल का ले जा कोई भी ऊनी आसन ले ले |
६. माला काले हकीक जा रुद्राक्ष की ठीक रहती है |
७. वस्त्र किसी भी तरह के पहन ले |इस साधना को शाम 8 से 10 व्जे के बीच कभी भी शुरू कर ले |
८. मंत्र जाप पूरा हो जाए तो नारियल किसी भी शिव मंदिर जा काली के मंदिर में कुश दक्षणा के साथ चढ़ा दे और सफलता के लिए प्रार्थना करे |
९. गुरु पूजन और गणेश पूजन हर साधना में अनिवार्य होता है इसका ध्यान रखे |
मंत्र,,,,ॐ नमः कट विकट घोर रूपिणी स्वाहा |
5,,,अद्भुत समोहन प्राप्ति ,,,,श्री ज्वाला मालनी साधना
सुख स्मृधी पे ग्रहण होता है गृह कलेश क्यू के घर में तनाव पूर्ण महोल ही प्रमथिक होता इसके साथ ही यदि आपका उचधिकारी आपके अनुकूल नहीं है | या आपके बच्चे या आपकी पत्नी आपके अनुकूल न हो तो भी जीवन में उदासीनता घर कर जाती है |यह साधना एक अद्भुत साधना है जो के साधक को ऐसा दिव्य स्मोहन देती है जिस से उसके कार्य सहज ही होने लगते है लोग उसकी बात का आदर करते है उसकी वाणी में अद्भुत प्रभाव आ जाता है छोटे बड़े सभ उसको इज़त देते है | वह अपने आस पास के महोल को और लोगो को अपने अनुकूल रखने और परिचित जा अपरिचित व्यक्ति के साथ मधुर संबंध बनाने और अपने व्यक्तिगत जीवन की आ रही अनेक स्मस्याओ को दूर करने में सक्षम हो जाता है |
विधि ,,,,,१. यह साधना 11 दिन की है | इस में हर रोज 11 माला जप अनिवर्य है |
२. इस में आसन पीले रंग का लेना है और आपकी दिशा उतर की तरफ मुख रहेगा |
३. देवी भगवती जा ज्वालामालनी का चित्र स्थाप्त करे | चित्र का पूजन धूप दीप नवेद पुष्प अक्षत फल आदि से करे | भोग में आप किसी भी तरह की मिठाई इस्तेमाल कर सकते है | एक पनि वाले नारियल को तिलक कर मौली बांध कर देवी माँ को अर्पित करे |
४. फिर मूँगे की माला से निम्न मंत्र की ११ माला ११ दिन तक करे |
५. ११ दिन के बाद सभी पुजा की हुई समगरी जल प्रवाह करदे | फल आदि प्रसाद अपने परिवार में बाँट दे |
६. गुरु पूजन और गणेश पूजन हर साधना में अनवर्य होता है इस बात को हमेशा याद रखे |
मंत्र ,,ॐ नमो आकर्षिनी ज्वाला मालनी देव्यै स्वाहा
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