Saturday 23 June 2018

गायत्री जयंती

गायत्री जयंती,,,,गायत्री मां से ही चारों वेदों की उत्पति मानी जाती हैं। इसलिये वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है। मान्यता है कि चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है अकेले गायत्री मंत्र को समझने मात्र से चारों वेदों का ज्ञान मिलता जाता है।
कौन हैं गायत्री,,,,,चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है इसलिये इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। माना जाता है कि समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण ज्ञान-गंगा भी गायत्री को कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है।
कैसे हुआ गायत्री का विवाह,,,,,कहा जाता है कि एक बार भगवान ब्रह्मा यज्ञ में शामिल होने जा रहे थे। मान्यता है कि यदि धार्मिक कार्यों में पत्नी साथ हो तो उसका फल अवश्य मिलता है लेकिन उस समय किसी कारणवश ब्रह्मा जी के साथ उनकी पत्नी सावित्रि मौजूद नहीं थी इस कारण उन्होंनें यज्ञ में शामिल होने के लिये वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया। उसके पश्चात एक विशेष वर्ग ने देवी गायत्री की आराधना शुरु कर दी।
कैसे हुआ गायत्री का अवतरण,,,माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रुप में की। आरंभ में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाये उसी तरह विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण तक पंहुचाया।
कब मनाई जाती है गायत्री जयंती...,,गायत्री जयंती की तिथि को लेकर भिन्न-भिन्न मत सामने आते हैं। कुछ स्थानों पर गंगा दशहरा और गायत्री जयंती की तिथि एक समान बताई जाती है तो कुछ इसे गंगा दशहरे से अगले दिन यानि ज्येष्ठ मास की एकादशी को मनाते हैं। वहीं श्रावण पूर्णिमा को भी गायत्री जयंती के उत्सव को मनाया जाता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन गायत्री जयंती को अधिकतर स्थानों पर स्वीकार किया जाता है। लेकिन अधिक मास में गंगा दशहरा अधिक शुक्ल दशमी को ही मनाया जाता है जबकि गायत्री जयंती अधिक मास में नहीं मनाई जाती।
गायत्री की महिमा,,,,गायत्री की महिमा में प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक भारत के विचारकों तक अनेक बातें कही हैं। वेद, शास्त्र और पुराण तो गायत्री मां की महिमा गाते ही हैं।
अथर्ववेद में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है।
महाभारत के रचयिता वेद व्यास कहते हैं गायत्री की महिमा में कहते हैं जैसे फूलों में शहद, दूध में घी सार रूप में होता है वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री है। यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाये तो यह कामधेनू (इच्छा पूरी करने वाली दैवीय गाय) के समान है। जैसे गंगा शरीर के पापों को धो कर तन मन को निर्मल करती है उसी प्रकार गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है।
गायत्री को सर्वसाधारण तक पहुंचाने वाले विश्वामित्र कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मंत्र निकाला है। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला मंत्र और कोई नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से गायत्री का जप करता है वह पापों से वैसे ही मुक्त हो जाता है जैसे केंचुली से छूटने पर सांप होता है।

गायत्री जयन्ती मनाई जाती है। गायत्री लाखों और करोड़ों हिन्दुओं का इष्ट है। यह हमारे जीवन का सब से आवश्यक तत्व है, प्रकाश स्तम्भ है, अज्ञानान्धकार में भटकने वालों को मार्गदर्शन करता है, संसार सागर में डुबकियाँ लगाने वालों को बचाकर पार लगा देता है, प्राणी इस संसार के गोरखधंधे से घबरा जाता है तो मानो अपने प्रिय पुत्र पर वरद हस्त फेर कर उसे साँत्वना देता है, मनुष्य जगत की ठोकरों से तंग आ जाता है तो उसे धैर्य और सहन शक्ति प्रदान करता है ताकि वह कष्ट और कठिनाईयों के बीच भी हंसता रहे, मृत्यु भी सामने आए तो उस से भी संघर्ष करने की ठान ले। गायत्री माता इतनी दयालु हैं कि वह अपने पुत्र का दुःख सहन नहीं कर सकती और उसे दुःख से सुख, अज्ञान से ज्ञान, असत्य से सत्य की ओर ले जाती है। उसके त्रितापों को नष्ट कर देती है। उसके अभावों का दूर करती है लौकिक और पारलौकिक सब प्रकार की उन्नति में सहायक सिद्ध होती है। मनुष्य को मनुष्य बनना सिखाती है। उसे अपने पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्यों का ज्ञान कराती है ताकि वह पथभ्रष्ट न जाए। दुष्ट, कुकर्मी, ठग, चोर, बेईमान, व्यसनी, छली, कपटी, स्वार्थी व्यक्तियों को सन्मार्ग पर लाने का यह अमोध अस्त्र है जो हजारों और लाखों बार आजमाया हुआ है।

गायत्री मन्त्र देखने में तो बहुत छोटा सा 24 अक्षरों का मन्त्र दीखता है परन्तु इसमें गजब शक्ति है। हृदय परिवर्तन की यह रामबाण औषधि है। इससे अनेक प्रकार की ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसमें अनेक प्रकार की विद्याओं का संकेत मिलता है। इसमें वह तत्व ज्ञान भरा पड़ा है जिसे अपनाकर मनुष्य अजर-अमर हो जाता है। इसके एक-एक अक्षर में वह शिक्षाएं भरी पड़ी हैं जिसे अपने जीवन में उतार कर मनुष्य धन्य हो सकता है।

यही कारण है कि आदि काल से ऋषियों ने इस परम पुनीत मंत्र को अपनाया है और इसके बिना जल ग्रहण न करने का आदेश दिया है। इसका चमत्कार प्रभाव उन्होंने अनुभव कर लिया था तभी बच्चों के थोड़ा समझदार होते ही इसकी दीक्षा दे देते हैं, और उसे जीवन भर धारण किए रहने की शिक्षा देते हैं कि इसी के सहारे अपनी जीवन नाव पार करना। जो मनुष्य इतने महान, प्रेरणादायक और कल्याण कारी तत्व को भूल जाता है, वह पतन के मार्ग पर चलना आरम्भ कर देता है।

गायत्री माता के चार पुत्र चार वेद हैं। गायत्री के एक-एक चरण की व्याख्या स्वरूप चार वेद बने हैं। इस महामन्त्र का जो अर्थ और रहस्य है, उसका प्रकटीकरण चारों वेदों में ही हुआ है। बीज रूप में जो गायत्री में है, वह विस्तार से वेदों में है। वेद को ईश्वरीय ज्ञान माना जाता है। यह पवित्र हृदय ऋषियों के स्वच्छ, अन्तःकरणों में अवतरित हुआ था। गायत्री की घोर तपश्चर्या करके ही वह इसकी सामर्थ्य प्राप्त कर सके थे, गायत्री के मन्थन का यह परिणाम था। गायत्री हमारी भौतिक व आध्यात्मिक दोनों प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। वेद में भी दोनों प्रकार के विषय हैं। यह ज्ञान और विज्ञान का भण्डार हैं। इसने मनुष्य जाति को सब प्रकार की विद्याओं का विज्ञान दिया है, इसने उस की सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान किया है। यह वह अमृत है जिसे पीकर उसके आन्तरिक नेत्र खुल जाते हैं, उसे वास्तविकता का ज्ञान होता है, उसके मनः क्षेत्र में ज्ञान का उदय होता है, वह अपने और समाज के जीवन को सत्पथ पर ले जाता है।

परन्तु खेद की बात है कि हम अपने अमूल्य रत्नों को भूल गए। हमारे स्वार्थों ने हमें इन से अलग कर दिया। फलस्वरूप इस जीवन विद्या से वंचित रहने लगे। दीपक के अभाव से जैसे मनुष्य अंधेरे में ठोकरें खाता है। हम भी दिन-दिन अवनति की ओर जाने लगे। जिन लोगों ने इन्हें अपनाया वह इनसे यथेष्ट लाभ उठा चुके हैं और उठा रहे हैं।

अभी तक वेद विद्या को सर्वसाधारण के लिए सुलभ बनाने के लिए दो कठिनाइयाँ सामने आ रही थी। एक तो यह कि जो हिन्दी भाष्य उपलब्ध थे, उनके अर्थ इस प्रकार से किए गए थे कि उनको समझना कठिन था और दूसरी यह कि उनका मूल्य इतना अधिक रखा गया था कि वह साधारण व्यक्तियों कि लिए खरीदना सम्भव न था। गायत्री तपोभूमि ने इन दोनों कठिनाईयों को दूर करने का प्रयत्न किया है। परम पूज्य प्रातः स्मरणीय वेद पूर्ति तपोनिष्ठ आचार्य जी महाराज ने चारों वेदों का सरल भाष्य इस ढंग से किया है कि उसे कोई हिन्दी पढ़ा लिखा व्यक्ति भी पढ़ और समझ सके। दूसरे उसका मूल्य इतना कम रखा गया है कि उसे हर एक व्यक्ति गरीब, अमीर खरीद सकता है। ऋग्वेद की 1, अथर्व वेद की 2, यजुर्वेद की 3 और साम वेद की 4

गायत्री जयंती के दिन गायत्री माता का गुण गान गाया जाता है, घर-घर में उसके व्यापक प्रचार के संकल्प किए जाते हैं, सभा, आयोजन, यज्ञ और जुलूस निकाले जाते हैं ताकि अग्नि पर पड़ी राख की भाँति यदि गायत्री विद्या का हमारे जीवन से लोप हो गया हो तो, हम उसे पुनः स्मरण करें और अपने जीवन में चरितार्थ करें। माँ अपने पुत्रों को अपनी छाती से अलग नहीं कर सकती। उसे उन्हें चिपकाए रहने में ही प्रसन्नता अनुभव होती है। गायत्री जयन्ती को वेद जयन्ती भी मानना चाहिए। इस दिन गायत्री परिवार की प्रत्येक शाखा में वेद भगवान की स्थापना हो। प्रदर्शन से उसकी व्यापक जानकारी होती है। वेद भगवान के जुलूस निकाले जाएँ जिस तरह सिख लोग गुरु ग्रन्थ साहब की पूजा पर्व पर करते हैं। वेद भगवान का जय-जय कार हो लाखों हिन्दुओं ने अभी तक वेद भगवान के दर्शन तक न किए होंगे। गाजे बाजे, कीर्तन आदि के साथ निकले जुलूस का जनता पर एक छाप पड़ेगी कि वेद भारतीय संस्कृति के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। स्वस्तिवाचन, हवन, भजन आदि के साथ सुन्दर चाँदी के सिंहासन पर वेद भगवान की स्थापना करनी चाहिए। वेद कथा का प्रबन्ध करना चाहिए। सभा और सम्मेलन करके वेद भगवान की महत्ता हिन्दु जगत पर स्थापित करनी चाहिए ताकि हम और उनका आकर्षण बढ़े और हमारा राष्ट्र दिन-दिन नैतिक व साँस्कृतिक पुनरुत्थान की ओर बढ़े।

इसी दिन गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस दिन तप की प्रतिमूर्ति भागीरथ ने गंगा का अवतरण किया था। घोर तप के फलस्वरूप ही वह प्यासी जनता को तृप्त कर सके थे। भागीरथ की आत्मा हमें पुकार-पुकार कर कह रही है केवल योजनाओं और बातों से काम न चलेगा वरन् काम के लिए कमर कसनी होगी और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने जीवनों को खपाना होगा तभी गंगा प्रसन्न होगी और मुँह माँगा वरदान देंगी। अनैतिकता झूठ, छल, कपट, बेईमानी, नास्तिकता, लोभ, स्वार्थीपन, अन्धविश्वास के इस युग में ज्ञान गंगा को अवतरित करने के लिए घोर परिश्रम करना होगा। गायत्री माता को घर-घर पहुँचाने के लिए परिजनों को जो कष्ट मुसीबतें और संघर्षों का सामना करना पड़ा वैसे ही समय परिश्रम और तप की बलि अब भी देनी होगी। एक शाखा में एक वेद की स्थापना तो सरल है। कुछ सदस्य मिलकर इस कार्य को कर सकते हैं गाँव मुहल्ले से चन्दा इकट्ठा कर सकते हैं। परन्तु यहाँ तक हमें सीमित नहीं रहना है। हमें तो सारे विश्व को वेद ज्ञान ने सींचना है। संसार में वेदों की धूम मचा देनी है और एक बार फिर दिखा देना है कि भारत जगतगुरु है और सारे विश्व को अध्यात्म ज्ञान देने का अधिकारी है, वह सबका नेतृत्व करेगा और वेदों की अद्वितीय महत्ता को और स्थापना करेगा। गायत्री का न अक्षर हमें यह शिक्षा देता है कि जो कुछ तुम्हारे पास है परहित के लिए लुटा दो। अपने पास कुछ मत रखो। वेद सृष्टि का आदि ज्ञान है। हमें इस बीज को सब ओर बखेर देना हैं ताकि उससे सुन्दर फल देने वाले कल्याणकारी और शान्तिदायक पेड़ उगे और उसकी छाया में बैठकर विश्व सुख और समृद्धि का अनुभव करे।

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
गायत्री मंत्र से सभी सनातनी लोग भली-भांती परिचित होते हैं। बचपन में स्कूल के दिनों से ही इस मन्त्र का जाप शुरू करवा दिया जाता है और जीवन के अंतिम पड़ाव ‘बुढ़ापे’ तक यह जप चलता रहता है। हिन्दू धर्म का सबसे सरल मन्त्र यही है और वेदों में इस मन्त्र को ईश्वर की प्राप्ति का मन्त्र बताया गया है।

यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3. 62. 10 के मेल से गायत्री मन्त्र का निर्माण हुआ है। इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है, इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसके उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है।
गायत्री मन्त्र का शाब्दिक अर्थ
ॐ - सर्वरक्षक परमात्मा
भू: - प्राणों से प्यारा
भुव: - दुख विनाशक
स्व: - सुखस्वरूप है
तत् -उस
सवितु: - उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक
वरेण्य - वरने योग्य
भुर्ग: - शुद्ध विज्ञान स्वरूप का
देवस्य - देव के
धीमहि - हम ध्यान करें
धियो - बुद्धियों को
य: - जो
न: - हमारी
प्रचोदयात - शुभ कार्यों में प्रेरित करें।
भावार्थ : उस सर्वरक्षक प्राणों से प्यारे, दु:खनाशक, सुखस्वरूप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतरात्मा में धारण करें तथा वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।
गायत्री मन्त्र का लाभ...गायत्री मंत्र के निरंतर जाप से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। यदि घर का कोई सदस्य बीमार है या घर में सुख-शांति नहीं आ रही है तो प्रतिदिन घंटा-आधा घंटा इस मन्त्र का जाप किया जाए। बीमार व्यक्ति को दवा देने से पहले, (व्यक्ति के पास बैठकर एवं दवा को हाथ में लेकर) इस मन्त्र के जाप से लाभ प्राप्त हो सकता है। दैवीय कृपा प्राप्त करने और धन प्राप्त करने के लिए भी यह मन्त्र शुभ बताया गया है।
अगर आप विद्यार्थी हैं तो इस मन्त्र के जाप से आपकी स्मरण शक्ति भी बढ़ सकती है। ब्रह्मचार्य की रक्षा के लिए भी गायत्री मन्त्र उपयोगी बताया गया है। अब क्योकि इस मन्त्र की शुरुआत ही ॐ से होती है तो मस्तिष्क के शान्ति के लिए यह मन्त्र अच्छा रहता है। आप बेशक किसी भी ईष्ट देव की पूजा करते हैं, पूजा के प्रारंभ में आप गायत्री मन्त्र का जाप कर सकते हैं। यह शुरूआती बीज मन्त्र भी माना जाता है।

ध्यान रखें कि गायत्री मंत्र का जाप हमेशा रुद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए
!Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557

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