Friday 29 August 2014

Vakratunda Mahakaaya. Soorya-koti samaprabha.

 Vakratunda MahakaayaSoorya-koti samaprabha. Nirvighnam kuru me Deva. Sarva-karyeshu Sarvadaa
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वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं

. वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! गणपती बाप्पा मोरया !! !! मंगलमुर्ती मोरया
 वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! गणपती बाप्पा मोरया !! !! मंगलमुर्ती मोरया
 वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! गणपती बाप्पा मोरया !! !! मंगलमुर्ती मोरया
 वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! गणपती बाप्पा मोरया !! !! मंगलमुर्ती मोरया
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 वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! गणपती बाप्पा मोरया !! !! मंगलमुर्ती मोरया



Photo: वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! गणपती बाप्पा मोरया !! !! मंगलमुर्ती मोरया
 वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! गणपती बाप्पा मोरया !! !! मंगलमुर्ती मोरया
 वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! गणपती बाप्पा मोरया !! !! मंगलमुर्ती मोरया
 वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! गणपती बाप्पा मोरया !! !! मंगलमुर्ती मोरया

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा .

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा .
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी .
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया .
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा .
लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी .
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
Photo: गौरीनंदन लंबोदर श्री गजानन, गणेश
गजानन म्हारे घर आओ, विनायक म्हारे घर आओ,
संग ल्याओ शुभ और लाभ गजानन रिद्ध-सिद्ध न ल्याओ.. गजानन म्हारे घर आओ...
थे आओ प्रभु आओ गजानन ब्रह्मा जी न ल्याओ, विनायक ब्रह्मा जी न ल्याओ,
वेदाँ क संग गायत्री माँ, वेदाँ क संग गायत्री माँ, सरस्वती न ल्याओ ! गजानन म्हारे घर आओ..
थे आओ प्रभु आओ गजानन, विष्णु जी न ल्याओ, विनायक विष्णु जी न ल्याओ,
कहियो चक्र सुदर्शन संग म लक्ष्मी जी न ल्याओ...गजानन म्हारे घर आओ
थे आओ प्रभु आओ गजानन शिव जी न ल्याओ, विनायक शिव जी न ल्याओ,
डमरू और त्रिशूल क सागे, गौरां न ल्याओ...गजानन म्हारे घर आओ.

गणपति के प्रिय मोदक का महत्‍व

गणपति के प्रिय मोदक का महत्‍व
मोदक’ महाराष्ट्र में खाया जाने वाला, गणेशजी का सबसे प्रिय व्यंजन है। महाराष्ट्र में गणेश पूजा के अवसर पर मोदक घर-घर में बनाया जाता है। आज जानिए ‘मोदक’ का महत्‍व और पौराणिक क‍था।
‘मोद’ यानी आनंद व ‘क’ का अर्थ है छोटा-सा भाग। अतः मोदक यानी आनंद का छोटा-सा भाग। मोदक का आकार नारियल समान, यानी ‘ख’ नामक ब्रह्मरंध्र के खोल जैसा होता है। कुंडलिनी के ‘ख’ तक पहुंचने पर आनंद की अनुभूति होती है।
हाथ में रखे मोदक का अर्थ है कि उस हाथ में आनंद प्रदान करने की शक्ति है। ‘मोदक’ मान का प्रतीक है, इसलिए उसे ज्ञानमोदक भी कहते हैं।
पौराणिक महिमा
पूर्वकाल में पार्वती देवी को देवताओं ने अमृत से तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक दिया। मोदक देखकर दोनों बालक (कार्तिकेय तथा गणेश) माता से मांगने लगे।
तब माता ने मोदक के महत्व का वर्णन कर कहा कि तुममें से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके सर्वप्रथम सभी तीर्थों का भ्रमण कर आएगा, उसी को मैं यह मोदक दूंगी।
माता की ऐसी बात सुनकर कार्तिकेय ने मयूर पर आरूढ़ होकर मुहूर्तभर में ही सब तीर्थों का स्नान कर लिया। इधर गणेश जी का वाहन मूषक होने के कारण वे तीर्थ भ्रमण में असमर्थ थे। तब गणेशजी श्रद्धापूर्वक माता-पिता की परिक्रमा करके पिताजी के सम्मुख खड़े हो गए।
यह देख माता पार्वतीजी ने कहा कि समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन- ये सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते।
इसलिए यह गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणों से भी बढ़कर है। अतः यह मोदक मैं गणेश को ही अर्पण करती हूं। माता-पिता की भक्ति के कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले पूजा होगी।
बुधवार को जरूर लगाएं श्री गणेश को मोदक का भोग
हिन्दू धर्म परंपराओं में बुधवार का दिन सभी सुखों का मूल बुद्धि के दाता भगवान श्री गणेश की उपासना का दिन है श्री गणेश की प्रसन्नता के लिए अनेक विधि-विधान शास्त्रों में बताए गए हैं, जो सरल भी हैं व शुभ फलदायी भी।
इसी कड़ी में श्री गणेश को विशेष रूप से ‘मोदक’ या ‘लड्डू’ चढ़ाने की भी परंपरा है। माना जाता है कि श्री गणेश को मोदक बहुत प्रिय है। आखिर श्री गणेश को मोदक ही प्रिय क्यों है
दरअसल, हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक कलियुग में भगवान गणेश के धूम्रकेतु रूप की पूजा की जाती है। जिनकी दो भुजाएं है। किंतु मनोकामना सिद्धि के लिये बड़ी आस्था से भगवान गणेश का चार भुजाधारी स्वरूप पूजनीय है। जिनमें से एक हाथ में अंकुश, दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में मोदक व चौथे में आशीर्वाद है। इनमें खासतौर पर श्री गणेश के हाथ में मोदक प्रतीक रूप में जीवन से जुड़े संदेश देता है।
दरअसल, मोदक का अर्थ है-जो मोद (आनन्द) देता है, जिससे आनन्द प्राप्त हो, संतोष हो, इसके अर्थ में गहराई यह है कि तन का आहार हो या मन के विचार वह सात्विक और शुद्ध होना जरूरी है। तभी आप जीवन का वास्तविक आनंद पा सकते हैं।
मोदक ज्ञान का प्रतीक भी है। जैसे मोदक को थोड़ा-थोड़ा और धीरे-धीरे खाने पर उसका स्वाद और मिठास अधिक आनंद देती है और अंत में मोदक खत्म होने पर आप तृप्त हो जाते हैं, उसी तरह वैसे ही ऊपरी और बाहरी ज्ञान व्यक्ति को आनंद नही देता परंतु ज्ञान की गहराई में सुख और सफलता की मिठास छुपी होती है। इस प्रकार जो अपने कर्म के फलरूपी मोदक भगवान के हाथ में रख देता है उसे प्रभु आशीर्वाद देते हैं। यही श्री गणेश के हाथ में मोदक होने और उनके प्रिय भी होने के पीछे का संदेश है।
॥।'Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.

गणेश चतुर्थी ,,,,चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए

गणेश चतुर्थी ,,,,चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए,,,गणेश चतुर्थी के दिन भगवान विनायक का जन्मोत्सव शुरू हो जाएगा। यद्यपि चंद्रमा उनके पिता शिव के मस्तक पर विराजमान हैं, किंतु गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए ,,शास्त्रीय मान्यता है कि इस दिन चंद्रदर्शन से मनुष्य को निश्चय ही मिथ्या कलंक का सामना करना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार भाद्र शुक्ल चतुर्थी के दिन श्रीकृष्ण ने चंद्रमा का दर्शन कर लिया।,,,फलस्वरूप उन पर भी मणि चुराने का कलंक लगा। ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि इस दिन किसी भी सूरत में चंद्रमा का दर्शन करने से बचना चाहिए। शास्त्रों में इसे कलंक चतुर्थी भी कहा गया है,,,चंद्रदर्शन देता मिथ्या कलंक
जब श्री गणेश का जन्म हुआ, तब उनके गज बदन को देख कर चंद्रमा ने हंसी उड़ाई। क्रोध में गणेश जी ने चंद्रमा को शाप दे दिया कि उस दिन से जो भी व्यक्ति चंद्रमा का दर्शन करेगा, उसे कलंक भोगने पड़ेंगे।
चंद्रमा के क्षमा याचना करने पर गणपति ने अपने शाप की अवधि घटाकर केवल अपने जन्मदिवस के लिए कर दी। फलस्वरूप यदि गलती से चंद्रमा का दर्शन गणेश चतुर्थी के दिन हो जाए तो गणेश सहस्त्रनाम का पाठ कर दोष निवारण करना चाहिए।,,,,गणपति की बेडोल काया देख कर चंद्रमा उन पर हंसे थे, इसलिए श्रीगणेश ने उन्हें श्रापित कर दिया था।,,,गणपति के श्राप के कारण चतुर्थी का चंद्रमा दर्शनीय होने के बावजूद दर्शनीय नहीं है। गणेश ने कहा था कि इस दिन जो भी तुम्हारा दर्शन करेगा, उसे कोई न कोई कलंक भुगतना पडे़गा। इस दिन यदि चंद्रदर्शन हो जाए, तो चांदी का चंद्रमा दान करना चाहिए।
यदि अनिच्छा से चन्द्रदर्शन हो जाय तो निम्नलिखित मंत्र से पवित्र किया हुआ जल पीना चाहिए। मंत्र इस प्रकार हैः
सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः।।

Photo: गणेश चतुर्थी ,,,,चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए,,,गणेश चतुर्थी के दिन भगवान विनायक का जन्मोत्सव शुरू हो जाएगा। यद्यपि चंद्रमा उनके पिता शिव के मस्तक पर विराजमान हैं, किंतु गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए ,,शास्त्रीय मान्यता है कि इस दिन चंद्रदर्शन से मनुष्य को निश्चय ही मिथ्या कलंक का सामना करना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार भाद्र शुक्ल चतुर्थी के दिन श्रीकृष्ण ने चंद्रमा का दर्शन कर लिया।,,,फलस्वरूप उन पर भी मणि चुराने का कलंक लगा। ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि इस दिन किसी भी सूरत में चंद्रमा का दर्शन करने से बचना चाहिए। शास्त्रों में इसे कलंक चतुर्थी भी कहा गया है,,,चंद्रदर्शन देता मिथ्या कलंक
जब श्री गणेश का जन्म हुआ, तब उनके गज बदन को देख कर चंद्रमा ने हंसी उड़ाई। क्रोध में गणेश जी ने चंद्रमा को शाप दे दिया कि उस दिन से जो भी व्यक्ति चंद्रमा का दर्शन करेगा, उसे कलंक भोगने पड़ेंगे।
चंद्रमा के क्षमा याचना करने पर गणपति ने अपने शाप की अवधि घटाकर केवल अपने जन्मदिवस के लिए कर दी। फलस्वरूप यदि गलती से चंद्रमा का दर्शन गणेश चतुर्थी के दिन हो जाए तो गणेश सहस्त्रनाम का पाठ कर दोष निवारण करना चाहिए।,,,,गणपति की बेडोल काया देख कर चंद्रमा उन पर हंसे थे, इसलिए श्रीगणेश ने उन्हें श्रापित कर दिया था।,,,गणपति के श्राप के कारण चतुर्थी का चंद्रमा दर्शनीय होने के बावजूद दर्शनीय नहीं है। गणेश ने कहा था कि इस दिन जो भी तुम्हारा दर्शन करेगा, उसे कोई न कोई कलंक भुगतना पडे़गा। इस दिन यदि चंद्रदर्शन हो जाए, तो चांदी का चंद्रमा दान करना चाहिए।

Sunday 24 August 2014

शनि ग्रह का प्रभाव और उपाय


शनि ग्रह का प्रभाव और उपाय,,, सर्वप्रथम भगवान भैरव की उपासना करें ॐ भैरवाय नम:।   https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5    शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं। छायादान करें- अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसों का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापो की क्षमा मांगते हुए रख आएं। दांत साफ रखें। अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें। मंत्र- ॐ शं शनैश्चराय नम: ।
सावधानी : कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में हो तो भिखारी को तांबा या तांबे का सिक्का कभी दान न करें अन्यथा पुत्र को कष्ट होगा। यदि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला का निर्माण न कराएं। अष्टम भाव में हो तो मकान न बनाएं, न खरीदें। उपरोक्त उपाय भी लाल किताब के जानकार व्यक्ति से पूछकर ही करें।,,,,,
देवता: भैरव जी,,,,
गोत्र: कश्यप,,,
जाति: क्षत्रिय,,,,
रंग: श्याम, नीला,,,,
वाहन: गिद्ध, भैंसा,,,,
दिशा: वायव्य ,,,
वस्तु: लोहा, फौलाद,,,,
पोशाक: जुराब, जूता,,
पशु: भैंस या भैंसा,,,,
वृक्ष: कीकर, आक, खजूर का वृक्ष,,
राशि: बु.शु.रा.। सू, चं.मं.। बृह.,,,,
भ्रमण: अढ़ाई वर्ष,,,
शरीर के अंग: दृष्टि, बाल, भवें, कनपटी,,,,
पेशा: लुहार, तरखान, मोची,,,
सिफत: मुर्ख, अक्खड़, कारिगर,,,,
गुण: देखना, भालना, चालाकी, मौत, बीमारी,,,
शक्ति: जादूमंत्र देखने दिखाने की शक्ति, मंगल के साथ हो तो सर्वाधिक बलशाली।
राशि: मकर और कुम्भ का स्वामी। तुला में उच्च का और मेष में नीच का माना गया है। ग्यारहवां भाव पक्का घर।
अन्य नाम: यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी और पंगु इत्यादि।
पुराणों के अनुसार शनि के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं।
शनि के फेर से देवी-देवताओं को तो छोड़ो शिव को भी बैल बनकर जंगल-जंगल भटकना पड़ा। रावण को असहाय बनकर मौत की शरण में जाना पड़ा। शनि को सूर्य का पुत्र माना जाता है। उनकी बहन का नाम देवी यमुना है।
पुराण कथा : वैसे तो शनि के संबंध में कई कथाएं है। ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, पर यह श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण : खगोल विज्ञान के अनुसार शनि का व्यास 120500 किमी, 10 किमी प्रति सेकंड की औसत गति से यह सूर्य से औसतन डेढ़ अरब किमी. की दूरी पर रहकर यह ग्रह 29 वर्षों में सूर्य का चक्कर पूरा करता है।

गुरु शक्ति पृथ्‍वी से 95 गुना अधिक और आकार में बृहस्पती के बाद इसी का नंबर आता है। अपनी धूरी पर घूमने में यह ग्रह नौ घंटे लगाता है।
*ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,
इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। लेकिन बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि यह नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
न्यायाधीश है शनि : मान्यता है कि सूर्य है राजा, बुध है मंत्री, मंगल है सेनापति, शनि है न्यायाधीश, राहु-केतु है प्रशासक, गुरु है अच्छे मार्ग का प्रदर्शक, चंद्र है माता और मन का प्रदर्शक, शुक्र है- पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति तथा वीर्य बल। जब समाज में कोई व्यक्ति अपराध करता है तो शनि के आदेश के तहत राहु और केतु उसे दंड देने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। शनि की कोर्ट में दंड पहले दिया जाता है, बाद में मुकदमा इस बात के लिए चलता है कि आगे यदि इस व्यक्ति के चाल-चलन ठीक रहे तो दंड की अवधि बीतने के बाद इसे फिर से खुशहाल कर दिया जाए या नहीं।

शनि को यह पसंद नहीं : शनि को पसंद नहीं है जुआ-सट्टा खेलना, शराब पीना, ब्याजखोरी करना, परस्त्री गमन करना, अप्राकृतिक रूप से संभोग करना, झूठी गवाही देना, निर्दोष लोगों को सताना, किसी के पीठ पीछे उसके खिलाफ कोई कार्य करना, चाचा-चाची, माता-पिता, सेवकों और गुरु का अपमान करना, ईश्वर के खिलाफ होना, दांतों को गंदा रखना, तहखाने की कैद हवा को मुक्त करना, भैंस या भैसों को मारना, सांप, कुत्ते और कौवों को सताना। शनि के मूल मंदिर जाने से पूर्व उक्त बातों पर प्रतिबंध लगाएं।
शुभ की निशानी : शनि की स्थिति यदि शुभ है तो व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रगति करता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। बाल और नाखून मजबूत होते हैं। ऐसा व्यक्ति न्यायप्रिय होता है और समाज में मान-सम्मान खूब रहता हैं।
अशुभ की निशानी : शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षति ग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह नाश होता है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी।

शनैश्चराय नमः.ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमःनीलांजन समाभासम रविपुत्रं यमाग्रजम छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम नमामि शनैश्चरम
शनि की साढेसाती तथा ढैय्या के प्रभाव को कम करने के हमारे ग्रन्थो में अनेक उपचार बतलाये गये हैं। जिनके प्रयोग से इसके कुप्रभाव से वचा जा सकता है। ये उपचार इस प्रकार हैं -1. शनि के वैदिक या बीज मंत्र का 23000 की संख्या में जाप करें। 2. शनिवार के दिन हनुमान जी की आराधना, चालीसा का पाठ, सुन्दर काण्ड का पाठ करें।3. शनिवार के दिन तैलदान, शनि स्तोत्र का पाठ करें।4.नीलम रत्न धारण करना भी लाभकारी होता है परन्तु पहले किसी ज्योतिषी का परामर्श अवश्य ले लें।5. शनि का बीज मंत्र - ऊँ प्रां प्रीं पौं स: शनये नम:।6. शनि का वैदिक मंत्र - ऊँ शन्नौ देवीरभिष्टयऽआपोभवन्तु पीतये। शंय्योरभिस्रवन्तु न:।7. शनि का तांत्रिक मंत्र - ऊँ शं शनैश्चराय नम:।8. शनि शान्ति के लिये दान-वस्तु - लोहा, तिल, तैल, कृष्णवस्त्र, उडद, नीलम, कुथली,।
शनि साढेसाती शनि साढेसाती में प्राप्त होने वाले अशुभ फलों से बचने के लिये अपने धैर्य व सहनशक्ति में वृ्धि करने के लिये शनि के उपाय करने चाहिए. विपरीत समय में व्यक्ति की संघर्ष करने की क्षमता बढ जाती है. तथा ऎसे समय में व्यक्ति अपनी पूर्ण दूरदर्शिता से निर्णय लेता है. जिसके कारण निर्णयों में त्रुटियां होने की संभावनाएं कम हो जाती है.
शनि स्तोत्र का पाठ करते समय व्यक्ति में शनि के प्रति पूर्ण श्रद्धा व विश्वास होना अनिवार्य है. बिना श्रद्धा के लाभ प्राप्त होने की संभावनाएं नहीं बनती है.
शनि स्तोत्र पाठ - नीलांजन समाभासम रविपुत्रं यमाग्रजम छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम नमामि शनैश्चरम सूर्यपुत्रो दीर्घदेही विशालाक्षा श्विप्रिया: मंदचारा प्रसन्नात्मा पीडाम हरतु में शनि
कोणस्थ, पिंगलो, बभ्रु, कृ्ष्णो, र्रौद्रान्तको, यम: सौरि: शनिश्चरो मंद: पिंपलादेन संस्तुत:
शनि स्तोत्रम नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय च नमोस्तुते
नमस्ते बभ्रु रुपाय कृ्ष्णाय च नमोस्तुते
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च
नमस्ते यम संज्ञाय नमस्ते सौरये विभो
नमस्ते मंद संज्ञाय शनेश्वर नमोस्तुते
प्रसाद कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च
कोणस्थ पिंगलों, बभ्रु, कृ्ष्णों, रौद्रान्तक यम:
सौरि:, शनिश्चरो मंद: पिपलादेन संस्तुत:
एतानि दश नमानि प्रात: उत्थाय य: पठेत
शनेश्वचर कृ्ता पीडा न कदाचित भविष्यति
जिन व्यक्तियों की जन्म राशि पर शनि की साढेसाती का प्रभाव चल रहा है, उन व्यक्तियों को इस पाठ का जाप प्रतिदिन करना चाहिए. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की शनि की ढैय्या या लघु कल्याणी की अवधि चल रही हों, उनके लिये भी यह पाठ लाभकारी सिद्ध हो सकता है
Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557



Thursday 21 August 2014

बछ बारस गाय बछड़े की पूजा (वत्स द्वादशी )

बछ बारस , ,07 सितम्बर 2018,,गाय बछड़े की पूजा (वत्स द्वादशी ) 
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चाकू का काटा नहीं खायेंगी माताएं प्राचीन हिंदू परंपरा के अनुसार सुहागिनें और माताएं मंगलवार को बछ बारस (वत्स द्वादशी) पर्व मनाएंगी। इस पर्व में हषरेल्लास के साथ बछड़े वाली गाय की पूजा करते हुए संतान की सकुशलता की कामना की जाएगी। परंपरा के अनुसार इस दिन महिलाएं चाकू से कटी भोजन सामग्री से परहेज करेंगी।
मक्का की रोटी से खोलेंगी व्रत ,,,,,वत्स द्वादशी के मौके पर सुहागिनों द्वारा संतान सुख और माताओं द्वारा संतान की सकुशलता की कामना की जाएगी। इस मौके पर व्रतधारी महिलाएं गाय और बछड़े की पूजा करेंगी। व्रत खोलने के लिए भोजन में कड़ी और मक्का की रोटी, मूंग, चने के बरवे, भुजिया आदि बनाए जाएंगे।
संतान को झेलाएंगी खोपरे ,,,गाय, बछड़े की पूजा के बाद महिलाओं द्वारा अपनी संतान को नारियल और खोपरे झेलाकर, तिलक लगाकर उनकी सकुशलता व लंबी उम्र की कामना की जाएगी। पूजा अनुष्ठान के बाद बहुएं परिवार की बड़ी, बुजुर्ग महिलाओं को चरण स्पर्श किया जाएगा।
बछ बारस व्रत की कथा ,,,,एक परिवार में सास और बहू साथ रहती थी। उनके घर में गाय और उसके दो बछड़े थे, जिन्हें सास बच्चों से भी ज्यादा प्यार से रखती थी। घर से पूजा कार्य के लिए निकली सास ने बहू से गंवलिया और जंवलिया (गेहूं व जौ) पकाने को कहा। गाय के बछड़ों का नाम भी गंवलिया और जंवलिया होने से नादान बहू ने दोनों बछड़ों को काट कर पकाने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया। पूजा कर वापस लौटी सास ने घर में गाय के बछड़े नहीं होने पर बहू से जवाब मांगा। बहू ने कहा कि मैंने गंवलिया और जंवलिया को तो पकाने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया है। यह सुनकर पीड़ा में डूबी सास ने दोनों बछड़े वापस लौटाने की कामना भगवान से की। ईश्वर की कृपा से वे दोनों बछड़े दौड़कर आ गए, जिन्हें बहू ने चूल्हे पर चढ़ा दिया था।
ॐ सर्वदेवमये देवि लोकानां शुभनन्दिनि।मातर्ममाभिषितं सफलं कुरु नन्दिनि।।
ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट नमो नम: स्वाहा।।
बछ यानि बछड़ा, गाय के छोटे बच्चे को कहते है । इस दिन को मनाने का उद्देश्य गाय व बछड़े का महत्त्व समझाना है। यह दिन गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। गोवत्स का मतलब भी गाय का बच्चा ही होता है।
बछ बारस का यह दिन कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है । कृष्ण भगवान को गाय व बछड़ा बहुत प्रिय थे तथा गाय में सैकड़ो देवताओं का वास माना जाता है।
गाय व बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का , गाय में निवास करने वाले देवताओं का और गाय का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है ऐसा माना जाता है।
बछ बारस ,,,इस दिन महिलायें बछ बारस का व्रत रखती है। यह व्रत सुहागन महिलाएं सुपुत्र प्राप्ति और पुत्र की मंगल कामना के लिए व परिवार की खुशहाली के लिए करती है। गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है।
इस दिन गाय का दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही , मक्खन , घी आदि का उपयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा गेहूँ और चावल तथा इनसे बने सामान नहीं खाये जाते ।
भोजन में चाकू से कटी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करते है। इस दिन अंकुरित अनाज जैसे चना , मोठ , मूंग , मटर आदि का उपयोग किया जाता है। भोजन में बेसन से बने आहार जैसे कढ़ी , पकोड़ी , भजिये आदि तथा मक्के , बाजरे ,ज्वार आदि की रोटी तथा बेसन से बनी मिठाई का उपयोग किया जाता है।
सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर शुद्ध कपड़े पहने।
दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को साफ पानी से नहलाकर शुद्ध करें।
गाय और बछड़े को नए वस्त्र ओढ़ाएँ।
फूल माला पहनाएँ।
उनके सींगों को सजाएँ।
उन्हें तिलक करें।
गाय और बछड़े को भीगे हुए अंकुरित चने , अंकुरित मूंग , मटर , चने के बिरवे , जौ की रोटी आदि खिलाएँ।
गौ माता के पैरों धूल से खुद के तिलक लगाएँ।
इसके बाद बछ बारस की कहानी सुने। बछ बारस की कहानी यहाँ क्लीक करके पढ़ें।
इस प्रकार गाय और बछड़े की पूजा करने के बाद महिलायें अपने पुत्र के तिलक लगाकर उसे नारियल देकर उसकी लंबी उम्र और सकुशलता की कामना करें। उसे आशीर्वाद दें।
बड़े बुजुर्ग के पाँव छूकर उनसे आशीर्वाद लें। अपनी श्रद्धा और रिवाज के अनुसार व्रत या उपवास रखें। मोठ या बाजरा दान करें। सासुजी को बयाना देकर आशीर्वाद लें।
यदि आपके घर में खुद की गाय नहीं हो तो दूसरे के यहाँ भी गाय बछड़े की पूजा की जा सकती है। ये भी संभव नहीं हो तो गीली मिट्टी से गाय और बछड़े की आकृति बना कर उनकी पूजा कर सकते है।
बछ बारस
कुछ लोग सुबह आटे से गाय और बछड़े की आकृति बनाकर पूजा करते है। शाम को गाय चारा खाकर वापस आती है तब उसका पूजन धुप, दीप , चन्दन , नैवेद्य आदि से करते है।
!!! Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557

अजा एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकाद्शी


अजा एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकाद्शी अजा एकादशी के नाम से जानी जाती है| इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है| इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा पूजा की जाती है| इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होती है| इस बार अजा एकादशी का व्रत
अजा एकादशी की व्रत विधि- अजा एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से प्रारंभ हो जाता है| एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें। भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का जप एवं उनकी कथा सुनें। रात को भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं।
अजा एकादशी व्रत कथा- कुन्ती पुत्र अर्जुन बोले - "हे जनार्दन ! अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइए ! उस एकादशी का क्या नाम है तथा इसका व्रत करने की क्या विधि है उसका व्रत करने से क्या फल मिलता है
श्री कृष्ण बोले - "हे पार्थ ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा कहते हैं । इसके व्रत करने से समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं । जो मनुष्य इस दिन भक्‍तिपूर्वक भगवान् की पूजा करते हैं तथा व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं । इस लोक और परलोक में सहायता करने वाली इस एकादशी व्रत के समान विश्‍व में दूसरा कोई व्रत नहीं है । अब ध्यानपूर्वक इस एकादशी की कथा सुनो - प्राचीनकाल में आयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था । उसका नाम हरिश्‍चन्द्र था। वह अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी था । दैवयोग से उसने अपना राज्य स्वप्‍न में एक ऋषि को दान कर दिया और परिस्थितिवश उसे अपनी पत्‍नी और पुत्र को भी बेच देना पड़ा । स्वयं वह एक चाण्डाल का सेवक बन गया । उसने उस चाण्डाल के यहां कफन लेने का काम किया । परन्तु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य को न छोड़ा । जब इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गये तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुःख हुआ और वह इससे मुक्‍त होने का उपाय खोजने लगा । वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगा कि मैं क्या करुं ? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्‍ति पाऊं

एक समय की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठा था कि गौतम ऋषि वहां आ पहुंचे । राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुःखभरी कथा सुनाने लगा । राजा की दुःखभरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुःखी हुए और राजा से बोले - ’हे राजन् ! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है । तुम उस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो । इससे तुम्हारे समस्त पाप नष्‍ट हो जायेंगे ।’

*ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,
गौतम ऋषि राजा से इस प्रकार कहकर अन्तर्धान हो गये । अजा नाम की एकादशी आने पर राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिपूर्वक व्रत तथा रात्रि-जागरण किया । उसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्‍ट हो गये । उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी । उसने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महादेवजी तथा इन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया । उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा स्त्री को वस्‍त्र तथा आभूषणों से युक्‍त देखा । व्रत के प्रभाव से उसको पुनः राज्य मिला । वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था । किन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से सारा षड्‌यंत्र समाप्‍त हो गया और अन्त समय में राजा हरिश्‍चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया ।
हे राजन् ! यह सब अजा एकादशी के व्रत का प्रभाव था । जो मनुष्य इस व्रत को विधिविधानपूर्वक करते हैं तथा रात्रि-जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं और अन्त में वे स्वर्ग को जाते हैं । इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्‍वमेध यज्ञ का फल मिलता है|

Photo: अजा एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकाद्शी अजा एकादशी के नाम से जानी जाती है| इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है| इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा पूजा की जाती है| इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होती है| इस बार अजा एकादशी का व्रत 
अजा एकादशी की व्रत विधि-   अजा एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से प्रारंभ हो जाता है| एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं। 
इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें। भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। 
विष्णु सहस्त्रनाम का जप एवं उनकी कथा सुनें। रात को भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। 
अजा एकादशी व्रत कथा-   कुन्ती पुत्र अर्जुन बोले - "हे जनार्दन ! अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइए ! उस एकादशी का क्या नाम है तथा इसका व्रत करने की क्या विधि है   उसका व्रत करने से क्या फल मिलता है 
श्री कृष्ण बोले - "हे पार्थ ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा कहते हैं । इसके व्रत करने से समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं । जो मनुष्य इस दिन भक्‍तिपूर्वक भगवान् की पूजा करते हैं तथा व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं । इस लोक और परलोक में सहायता करने वाली इस एकादशी व्रत के समान विश्‍व में दूसरा कोई व्रत नहीं है । अब ध्यानपूर्वक इस एकादशी की कथा सुनो -       प्राचीनकाल में आयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था । उसका नाम हरिश्‍चन्द्र था। वह अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी था । दैवयोग से उसने अपना राज्य स्वप्‍न में एक ऋषि को दान कर दिया और परिस्थितिवश उसे अपनी पत्‍नी और पुत्र को भी बेच देना पड़ा । स्वयं वह एक चाण्डाल का सेवक बन गया । उसने उस चाण्डाल के यहां कफन लेने का काम किया । परन्तु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य को न छोड़ा । जब इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गये तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुःख हुआ और वह इससे मुक्‍त होने का उपाय खोजने लगा । वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगा कि मैं क्या करुं ? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्‍ति पाऊं 

एक समय की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठा था कि गौतम ऋषि वहां आ पहुंचे । राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुःखभरी कथा सुनाने लगा । राजा की दुःखभरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुःखी हुए और राजा से बोले - ’हे राजन् ! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है । तुम उस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो । इससे तुम्हारे समस्त पाप नष्‍ट हो जायेंगे ।’
गौतम ऋषि राजा से इस प्रकार कहकर अन्तर्धान हो गये । अजा नाम की एकादशी आने पर राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिपूर्वक व्रत तथा रात्रि-जागरण किया । उसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्‍ट हो गये । उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी । उसने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महादेवजी तथा इन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया । उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा स्त्री को वस्‍त्र तथा आभूषणों से युक्‍त देखा । व्रत के प्रभाव से उसको पुनः राज्य मिला । वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था । किन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से सारा षड्‌यंत्र समाप्‍त हो गया और अन्त समय में राजा हरिश्‍चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया ।
हे राजन् ! यह सब अजा एकादशी के व्रत का प्रभाव था । जो मनुष्य इस व्रत को विधिविधानपूर्वक करते हैं तथा रात्रि-जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं और अन्त में वे स्वर्ग को जाते हैं । इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्‍वमेध यज्ञ का फल मिलता है|

Wednesday 13 August 2014

नृसिंहकवचस्तोत्रम् ||नरसिंह कवच Narasinha-kavacha

नृसिंहकवचस्तोत्रम् ||नरसिंह कवच Narasinha-kavacha
नृसिंहकवचं वक्ष्ये प्रह्लादेनोदितं पुरा | सर्वरक्षकरं पुण्यं सर्वोपद्रवनाशनम् |१||
सर्व सम्पत्करं चैव स्वर्गमोक्षप्रदायकम् |ध्यात्वा नृसिंहं देवेशं हेमसिंहासनस्थितम् ||२||
विवृतास्यं त्रिनयनं शरदिन्दुसमप्रभम् | लक्ष्म्यालिङ्गितवामाङ्गम् विभूतिभिरुपाश्रितम् ||३||
चतुर्भुजं कोमलाङ्गं स्वर्णकुण्डलशोभितम् |सरोजशोभितोरस्कं रत्नकेयूरमुद्रितम् ||४||
तप्त काञ्चनसंकाशं पीतनिर्मलवाससम् |इन्द्रादिसुरमौलिष्ठः स्फुरन्माणिक्यदीप्तिभिः ||५||
विरजितपदद्वन्द्वम् च शङ्खचक्रादिहेतिभिः |गरुत्मत्मा च विनयात् स्तूयमानम् मुदान्वितम् ||६||
स्व हृत्कमलसंवासं कृत्वा तु कवचं पठेत् |नृसिंहो मे शिरः पातु लोकरक्षार्थसम्भवः ||७||
सर्वगेऽपि स्तम्भवासः फलं मे रक्षतु ध्वनिम् |नृसिंहो मे दृशौ पातु सोमसूर्याग्निलोचनः ||८||
स्मृतं मे पातु नृहरिः मुनिवार्यस्तुतिप्रियः |नासं मे सिंहनाशस्तु मुखं लक्ष्मीमुखप्रियः ||९||
सर्व विद्याधिपः पातु नृसिंहो रसनं मम |वक्त्रं पात्विन्दुवदनं सदा प्रह्लादवन्दितः ||१०||
नृसिंहः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ भूभृदनन्तकृत् |दिव्यास्त्रशोभितभुजः नृसिंहः पातु मे भुजौ ||११||
करौ मे देववरदो नृसिंहः पातु सर्वतः |हृदयं योगि साध्यश्च निवासं पातु मे हरिः ||१२||
मध्यं पातु हिरण्याक्ष वक्षःकुक्षिविदारणः |नाभिं मे पातु नृहरिः स्वनाभिब्रह्मसंस्तुतः ||१३||
ब्रह्माण्ड कोटयः कट्यां यस्यासौ पातु मे कटिम् |गुह्यं मे पातु गुह्यानां मन्त्राणां गुह्यरूपदृक् ||१४||
ऊरू मनोभवः पातु जानुनी नररूपदृक् |जङ्घे पातु धराभर हर्ता योऽसौ नृकेशरी ||१५||
सुर राज्यप्रदः पातु पादौ मे नृहरीश्वरः |सहस्रशीर्षापुरुषः पातु मे सर्वशस्तनुम् ||१६||
महोग्रः पूर्वतः पातु महावीराग्रजोऽग्नितः |महाविष्णुर्दक्षिणे तु महाज्वलस्तु नैरृतः ||१७||
पश्चिमे पातु सर्वेशो दिशि मे सर्वतोमुखः |नृसिंहः पातु वायव्यां सौम्यां भूषणविग्रहः ||१८||
ईशान्यां पातु भद्रो मे सर्वमङ्गलदायकः |संसारभयतः पातु मृत्योर्मृत्युर्नृकेशई ||१९||
इदं नृसिंहकवचं प्रह्लादमुखमण्डितम् |भक्तिमान् यः पठेन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते ||२०||
पुत्रवान् धनवान् लोके दीर्घायुरुपजायते |कामयते यं यं कामं तं तं प्राप्नोत्यसंशयम् ||२१||
सर्वत्र जयमाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् |भूम्यन्तरीक्षदिव्यानां ग्रहाणां विनिवारणम् ||२२||
वृश्चिकोरगसम्भूत विषापहरणं परम् |ब्रह्मराक्षसयक्षाणां दूरोत्सारणकारणम् ||२३||
भुजेवा तलपात्रे वा कवचं लिखितं शुभम् |करमूले धृतं येन सिध्येयुः कर्मसिद्धयः ||२४||
देवासुर मनुष्येषु स्वं स्वमेव जयं लभेत् |एकसन्ध्यं त्रिसन्ध्यं वा यः पठेन्नियतो नरः ||२५||
सर्व मङ्गलमाङ्गल्यं भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति |
द्वात्रिंशतिसहस्राणि पठेत् शुद्धात्मनां नृणाम् ||२६||
कवचस्यास्य मन्त्रस्य मन्त्रसिद्धिः प्रजायते |अनेन मन्त्रराजेन कृत्वा भस्माभिर्मन्त्रानाम् ||२७||
तिलकं विन्यसेद्यस्तु तस्य ग्रहभयं हरेत् |त्रिवारं जपमानस्तु दत्तं वार्याभिमन्त्र्य च ||२८||
प्रसयेद् यो नरो मन्त्रं नृसिंहध्यानमाचरेत् |तस्य रोगः प्रणश्यन्ति ये च स्युः कुक्षिसम्भवाः ||२९||
गर्जन्तं गार्जयन्तं निजभुजपतलं स्फोटयन्तं हतन्तं रूप्यन्तं तापयन्तं दिवि भुवि दितिजं क्षेपयन्तं क्षिपन्तम् |
क्रन्दन्तं रोषयन्तं दिशि दिशि सततं संहरन्तं भरन्तं वीक्षन्तं पूर्णयन्तं करनिकरशतैर्दिव्यसिंहं नमामि ||३०||
||इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे प्रह्लादोक्तं श्रीनृसिंहकवचं सम्पूर्णम्

सातुड़ी तीज कजली तीज बड़ी तीज,, नीमड़ी माता की कहानी,, सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि ,, सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि

सातुड़ी तीज कजली तीज बड़ी तीज ,, 06 अगस्त , 2020,, नीमड़ी माता की कहानी,, सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि ,, रक्षा बंधन के दो दिन बाद भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कजली तीज , बड़ी तीज या सातुड़ी तीज का त्यौहार व्यापक रूप से मनाया जाता है। व्रत के पूर्व की तैयारी - बड़ी तीज के एक दिन पूर्व सिर धोकर , चारों हाथ पैरों के मेहंदी लगाई जाती है। सवा किलो या सवा पाव चने की दाल को सेक कर और पीस कर उसमें पिसी हुई शक्कर और घी मिला कर सातू तैयार किया जाता है। सातू जौ , गेहूं ,चावल या चने आदि का भी मनाया जा सकता है। पूजन सामग्री - एक छोटा सातू का लड्डू , नीम के पेड़ की एक छोटी टहनी , दीपक , केला ,अमरुद , ककड़ी , दूध मिश्रित जल , कच्चा दूध , मोती की लड़ , पूजा की थाली व जल का कलश। पूजन की तैयारी - मिट्टी व गोबर से दीवार के सहारे एक छोटा सा ढेर बनाकर उसके बीच में नीम के पेड़ की टहनी रोप देते हैं। इस नीम की टहनी के चारों तरफ कच्चा दूध मिश्रित जल डाल देते हैं। इसके पास एक दीपक जलाकर रख देते हैं। पूजा विधान - इस दिन पूरे दिन उपवास किया जाता है और शाम को नीमडी माता का पूजन किया जाता हैं सर्वप्रथम नीमडी माता के जल के छींटे , फिर रोली के छींटे दें और चाँवल चढ़ाएँ। इसके बाद पीछे दीवार पर रोली , मेहंदी और काजल की तेरह बिंदियाँ अपनी अंगुली से लगायें। फिर नीमडी माता के मोली चढ़ाएं , मेहंदी , काजल और वस्त्र भी चढ़ाएं। दीवार पर लगायी गयी बिंदियों पर भी मेहंदी की सहायता से लच्छा चिपका दें। फिर नीमडी माता के ऋतु फल दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन करके कथा या कहानी सुननी चाहिये। रात को चाँद उगने पर उसकी तरफ जल के छींटे देवें फिर चाँदी की अंगूठी व गेहूं हाथ में लेकर जल से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। ( इस दिन चँद्रमा के उगने का समय ऊपर दिया हुआ है।) इसके बाद व्रत खोला जाता है। एक साहूकार था ,उसके सात बेटे थे। उसका सबसे छोटा बेटा पांगला (पाव से अपाहिज़ ) था। वह रोजाना एक वेश्या के पास जाता था। उसकी पत्नी बहुत पतिव्रता थी। खुद उसे कंधे पर बिठा कर वेश्या के यहाँ ले जाती थी। बहुत गरीब थी। जेठानियों के पास काम करके अपना गुजारा करती थी। भाद्रपद के महीने में कजली तीज के दिन सभी ने तीज माता के व्रत और पूजा के लिए सातु बनाये। छोटी बहु गरीब थी उसकी सास ने उसके लिए भी एक सातु का छोटा पिंडा बनाया। शाम को पूजा करके जैसे ही वो सत्तू पासने लगी उसका पति बोला मुझे वेश्या के यहाँ छोड़ कर आ हर दिन की तरह उस दिन भी वह पति को कंधे पैर बैठा कर छोड़ने गयी , लेकिन वो बोलना भूल गया की तू जा। वह बाहर ही उसका इंतजार करने लगी इतने में जोर से वर्षा आने लगी और बरसाती नदी में पानी बहने लगा । कुछ देर बाद नदी आवाज़ से आवाज़ आई “आवतारी जावतारी दोना खोल के पी। पिव प्यारी होय “ आवाज़ सुनकर उसने नदी की तरफ देखा तो दूध का दोना नदी में तैरता हुआ आता दिखाई दिया। उसने दोना उठाया और सात बार उसे पी कर दोने के चार टुकड़े किये और चारों दिशाओं में फेंक दिए। उधर तीज माता की कृपा से उस वेश्या ने अपना सारा धन उसके पति को वापस देकर सदा के लिए वहाँ से चली गई। पति ने सारा धन लेकर घर आकर पत्नी को आवाज़ दी ” दरवाज़ा खोल ” तो उसकी पत्नी ने कहा में दरवाज़ा नहीं खोलूँगी। तब उसने कहा कि अब में वापस नहीं जाऊंगा। अपन दोनों मिलकर सातु पासेगें। लेकिन उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ, उसने कहा मुझे वचन दो वापस वेश्या के पास नहीं जाओगे। पति ने पत्नी को वचन दिया तो उसने दरवाज़ा खोला और देखा उसका पति गहनों और धन माल सहित खड़ा था। उसने सारे गहने कपड़े अपनी पत्नी को दे दिए। फिर दोनों ने बैठकर सातु पासा। सुबह जब जेठानी के यहाँ काम करने नहीं गयी तो बच्चे बुलाने आये काकी चलो सारा काम पड़ा है। उसने कहा अब तो मुझ पर तीज माता की पूरी कृपा है अब मै काम करने नहीं आऊंगी। बच्चो ने जाकर माँ को बताया की आज से काकी काम करने नहीं आएगी उन पर तीज माता की कृपा हुई है वह नए – नए कपडे गहने पहन कर बैठी है और काका जी भी घर पर बैठे है। सभी लोग बहुत खुश हुए। हे तीज माता !!! जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसे ही वैसी ही सब पर प्रसन्न होना ,सब के दुःख दूर करना। बोलो तीज माता की जय ! सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि चार बड़े पिंडे सातु के बनाएँ एक सासू का , एक मंदिर का , एक पति का , एक खुद का सातु के सत्रह पिंडे सवा पाव -सवा पाव के बनाये ( सोलह सुहागन के लिए , एक सांख्या के लिए सत्रह स्टील के प्याले ,, मंगवा ले। पिंडों को प्लेटो में रख कर , कुमकुम टीका करे और सब पर लच्छा , सुपारी , सिक्का , गिट लगाये।चाहें तो साथ में बिंदी का एक पत्ता भी रख सकते है। अब ये सातु पिंड वाली प्लेट एक एक करके सोलह सुहागनों को दे दें । एक बड़े पिंडे पर बेस ( साड़ी ब्लाउज ) , सुहाग का सामान (काजल , बिंदी ,चूड़ी आदि ) और रूपये रख कर (51 ,101 इच्छानुसार ) कलपना निकाले व सासु जी को दें और पाँव छू कर आशीर्वाद लें। ये कलपना या बयाना होता है। इसे सासू न हो तो ननद को या किसी बुजुर्ग स्त्री को जिसने आपके साथ पूजा की हो उसे दे सकते है। इसे सबसे पहले करके बाद में सोलह सुहागन को सातु दिया जा सकता है। एक बड़ा पिंडा मंदिर में दे दें। एक बड़ा पिंडा पति को झिला दें। एक पिंडा खुद के लिए रख लें। अब संखिया (देवर या घर का कोई भी लड़का जैसे भांजा , भतीजा जा आपसे उम्र में छोटा हो – सगे भाई के अलावा ) को टावेल या पेंट शर्ट व सातु वाली प्लेट , कुछ पैसे इच्छानुसार दे और कान में धीरे से बोले मेरी बड़ी तीज का उद्यापन की हामी भरना , मैने उद्यापन किया है मान लेना “ इसी तरह सातुड़ी तीज का उद्यापन सम्पन्न होता है। है तीज माता सबके जीवन में खुशहाली रखना। बोलो तीज माता की जय नीमड़ी माता की कहानी एक शहर में एक सेठ- सेठानी रहते थे । वह बहुत धनवान थे लेकिन उनके पुत्र नहीं था। सेठानी ने भादुड़ी बड़ी तीज ( सातुड़ी तीज ) का व्रत करके कहा कि ” हे नीमड़ी माता मेरे बेटा हो जायेगा , तो मै आपको सवा मण का सातु चढ़ाऊगी “। माता की कृपा से सेठानी को नवें महीने लड़का हो गया। सेठानी ने सातु नहीं चढ़ाया। समय के साथ सेठानी को सात बेटे हो गए लेकिन सेठानी सातु चढ़ाना भूल गयी। पहले बेटे का विवाह हो गया। सुहागरात के दिन सोया तो आधी रात को साँप ने आकर डस लिया और उसकी मृत्यु हो गयी। इसी तरह उसके छः बेटो की विवाह उपरान्त मृत्यु हो गयी। सातवें बेटे की सगाई आने लगी सेठ-सेठानी मना करने लगे तो गाँव वालो के बहुत कहने व समझाने पर सेठ-सेठानी बेटे की शादी के लिए तैयार हो गए। तब सेठानी ने कहा गाँव वाले नहीं मानते हैं तो इसकी सगाई दूर देश में करना। सेठ जी सगाई करने के लिए घर से चले ओर बहुत दूर एक गाँव आये। वहाँ चार-पांच लड़कियाँ खेल रही थी जो मिटटी का घर बनाकर तोड़ रही थी। उनमे से एक लड़की ने कहा में अपना घर नहीं तोडूंगी। सेठ जी को वह लड़की समझदार लगी। खेलकर जब लड़की वापस अपने घर जाने लगी तो सेठ जी भी पीछे -पीछे उसके घर चले गए। सेठजी ने लड़की के माता पिता से बात करके अपने लड़के की सगाई व विवाह की बात पक्की कर दी। घर आकर विवाह की तैयारी करके बेटे की बारात लेकर गया और बेटे की शादी सम्पन्न करवा दी। इस तरह सातवे बेटे की शादी हो गयी। बारात विदा हुई लंबा सफर होने के कारण लड़की की माँ ने लड़की से कहा कि मै यह सातु व सीख डाल रही हूं। रास्ते में कहीं पर शाम को नीमड़ी माता की पूजा करना, नीमड़ी माता की कहानी सुनना , सातु पास लेना व कलपना निकल कर सासु जी को दे देना। बारात धूमधाम से निकली। रास्ते में बड़ी तीज का दिन आया ससुर जी ने बहु को खाने का कहा। बहु बोली आज मेरे तीज का उपवास है ,शाम को नीमड़ी माता का पूजन करके नीमड़ी माता की कहानी सुनकर ही भोजन करुँगी। एक कुएं के पास नीमड़ी नजर आई तो सेठ जी ने गाड़ी रोक दी। बहु नीमड़ी माता की पूजा करने लगी तो नीमड़ी माता पीछे हट गयी। बहु ने पूछा ” हे माता आप पीछे क्यों हट रही हो “। इस पर माता ने कहा तेरी सास ने कहा था पहला पुत्र होने पर सातु चढ़ाऊंगी और सात बेटे होने के बाद , उनकी शादी हो जाने के बाद भी अभी तक सातु नहीं चढ़ाया। वो भूल चुकी है। बहु बोली हमारे परिवार की भूल को क्षमा कीजिये , सातु मैं चढ़ाऊंगी। कृपया मेरे सारे जेठ को वापस कर दो और मुझे पूजन करने दो। माता नववधू की भक्ति व श्रद्धा देखकर प्रसन्न हो गई। बहु ने नीमड़ी माता का पूजन किया ,और चाँद को अर्ध्य दिया ,सातु पास लिया और कलपना ससुर जी को दे दिया। प्रातः होने पर बारात अपने नगर लौट आई। जैसे ही बहु से ससुराल में प्रवेश किया उसके छहों जेठ प्रकट हो गए। सभी बड़े खुश हुए उन सभी को गाजे बाजे से घर में लिया। सासु बहु के पैर पकड़ का धन्यवाद करने लगी तो बहु बोली सासु जी आप ये क्या करते हो , जो बोलवा करी है उसे याद कीजिये । सासु बोली ” मुझे तो याद नहीं तू ही बता दे ” बहु बोली आपने नीमड़ी माता के सातु चढाने का बोला था सो पूरा नहीं किया। तब सासू को याद आई। बारह महीने बाद जब कजली तीज आई , सभी ने मिल कर कर सवा सात मण का सातु तीज माता को चढ़ाया। श्रद्धा और भक्ति भाव से गाजे बाजे के साथ नीमड़ी माँ की पूजा की। बोलवा पूरी करी। हे भगवान उनके आनंद हुआ वैसा सबके होवे। खोटी की खरी ,अधूरी की पूरी।बोलो नीमड़ी माता की जय सातुड़ी तीज का उद्यापन सातुड़ी तीज का व्रत महिलाएँ उत्साह के साथ हर वर्ष करती है। तीज के व्रत का उद्यापन करना रीती रिवाज का एक अभिन्न अंग है। शादी ह जाने के पश्चात् महिलाओं द्वारा इस व्रत का उद्यापन विधि पूर्वक किया जाता है। उद्यापन करने के बाद ही व्रत किया जाना सम्पूर्ण माना जाता है। भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि जिसे सातुड़ी तीज ,कजली तीज या बड़ी तीज कहते है उसकी उद्यापन विधि के बारे में संपूर्ण विवरण प्रस्तुत है। कुछ लोग उद्यापन को उजमन या उजवना भी कहते है। उद्यापन के बाद भी कुछ लोग तीज का व्रत पहले की तरह करते रहते है। कुछ लोग उद्यापन करने के सिर्फ अगले साल तीज का व्रत नहीं करते उसके बाद आने वाले सालो में अपनी सुविधा के अनुसार व्रत करते हैं सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि चार बड़े पिंडे सातु के बनाएँ (एक सासू का , एक मंदिर का , एक पति का , एक खुद का सातु के सत्रह पिंडे सवा पाव -सवा पाव के बनाये ( सोलह सुहागन के लिए , एक सांख्या के लिए सत्रह स्टील के प्याले ( प्लेट ) मंगवा ले। पिंडों को प्लेटो में रख कर , कुमकुम टीका करे और सब पर लच्छा , सुपारी , सिक्का , गिट लगाये।चाहें तो साथ में बिंदी का एक पत्ता भी रख सकते है। अब ये सातु पिंड वाली प्लेट एक एक करके सोलह सुहागनों को दे दें । एक बड़े पिंडे पर बेस ( साड़ी ब्लाउज ) , सुहाग का सामान (काजल , बिंदी ,चूड़ी आदि ) और रूपये रख कर (51 ,101 इच्छानुसार ) कलपना निकाले व सासु जी को दें और पाँव छू कर आशीर्वाद लें। ये कलपना या बयाना होता है। इसे सासू न हो तो ननद को या किसी बुजुर्ग स्त्री को जिसने आपके साथ पूजा की हो उसे दे सकते है। इसे सबसे पहले करके बाद में सोलह सुहागन को सातु दिया जा सकता है। एक बड़ा पिंडा मंदिर में दे दें। एक बड़ा पिंडा पति को झिला दें। एक पिंडा खुद के लिए रख लें। अब संखिया (देवर या घर का कोई भी लड़का जैसे भांजा , भतीजा जा आपसे उम्र में छोटा हो –सगे भाई के अलावा ) को टावेल या पेंट शर्ट व सातु वाली प्लेट , कुछ पैसे इच्छानुसार दे और कान में धीरे से बोल मेरी बड़ी तीज का उद्यापन की हामी भरना , मैने उद्यापन किया है मान लेना “ इसी तरह सातुड़ी तीज का उद्यापन सम्पन्न होता है। है तीज माता सबके जीवन में खुशहाली रखना। बोलो तीज माता की जय ॥https://wa.me/c/918275555557 Kundan Jewellers (Gems For Everyone & Testing Lab Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.

Sunday 10 August 2014

नारियल पूर्णिमा

नारियल पूर्णिमा,,,श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षा बंधनके दिन ही मनाया
जानेवाला श्रावणमासका महत्त्वपूर्ण त्यौहार है... नारियल पूर्णिमा....
नारियल पूर्णिमा प्राकृतिक परिवर्तनपर आधारित त्यौहार है । वर्षाकालके आरंभमें प्रथम दो महीने समुद्री व्यापार अथवा समुद्री-यात्रा करना संभव नहीं होता है । परंतु श्रावण पूर्णिमाके कालमें वर्र्षाका परिमाण घटता है । आंधी अथवा तूफानके कारण उफननेवाला समुद्र भी इस कालमें शांत होता है । इसलिए इस दिन समुद्रतट पर जाकर समुद्रकी अर्थात वरुणदेवताकी पूजा की जाती है । वरुण देवता जलपर नियंत्रण रखनेवाले देवता हैं । पूजाके कारण वरुणदेवता प्रसन्न होते हैं, इस कारण समुद्री संकटोंका सामना नहीं करना पडता । यह त्यौहार संपूर्ण भारतखंडके समुद्री तटोंपर बडी धूमधामसे मनाया जाता है ।इस दिन समुद्रको अर्पण किए जानेवाले नारियल सजाकर जुलूसके साथ समुद्रतट पर ले जाते हैं । वहां पहुंचनेपर समुद्रकी पूजा करते हैं, तथा श्रद्धाभावसहित उस नारियलको अर्पण करते हैं समुद्रदेवताका भावपूर्ण वंदन करनेसे व्यक्तिमें भावके वलय जागृत होते हैं ।
नारियलका पूजन करनेसे उसमें परमेश्वरीय तत्त्वके वलय कार्यरत होते हैं ।
नारियलमें चैतन्यके वलय कार्यरत होते हैं ।
. समुद्रदेवताको शरणागत भावसे नारियल अर्पण करनेसे समुद्रकी ओर चैतन्यके प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं ।
समुद्रदेवताका भावपूर्ण पूजन करनेसे परमेश्वरीय तत्त्वके प्रवाह समुद्रकी ओर आकृष्ट होते हैं ।
. अप्रकट रूपमें विद्यमान परमेश्वरीय तत्त्व वलयके रूपमें प्रकट होकर कार्यरत होते हैं ।
वरुणदेवताके तत्त्व वलयके रूपमें कार्यरत होते हैं ।
निर्गुण तत्त्व समुद्रमें अधिक मात्रामें वलयके रूपमें कार्यरत होते हैं ।
समुद्रमें आनंद, चैतन्य एवं शक्ति के वलय आकृष्ट होते हैं एवं समुद्रमें आनंद, चैतन्य एवं शक्ति के वलय जागृत होते हैं । इन वलयोंसे व्यक्ति की ओर आनन्द, चैतन्य एवं शक्ति के प्रवाह प्रक्षेपित होनेसे व्यक्तिमें आनन्द , चैतन्य तथा शक्तिके वलय जागृत होते हैं ।
 ॥Astrologer Gyanchand Bundiwal। nagpur M. 0 8275555557

Photo: नारियल पूर्णिमा,,,श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षा बंधनके दिन ही मनाया
जानेवाला श्रावणमासका महत्त्वपूर्ण त्यौहार है... नारियल पूर्णिमा....
नारियल पूर्णिमा प्राकृतिक परिवर्तनपर आधारित त्यौहार है । वर्षाकालके आरंभमें प्रथम दो महीने समुद्री व्यापार अथवा समुद्री-यात्रा करना संभव नहीं होता है । परंतु श्रावण पूर्णिमाके कालमें वर्र्षाका परिमाण घटता है । आंधी अथवा तूफानके कारण उफननेवाला समुद्र भी इस कालमें शांत होता है । इसलिए इस दिन समुद्रतट पर जाकर समुद्रकी अर्थात वरुणदेवताकी पूजा की जाती है । वरुण देवता जलपर नियंत्रण रखनेवाले देवता हैं । पूजाके कारण वरुणदेवता प्रसन्न होते हैं, इस कारण समुद्री संकटोंका सामना नहीं करना पडता । यह त्यौहार संपूर्ण भारतखंडके समुद्री तटोंपर बडी धूमधामसे मनाया जाता है ।इस दिन समुद्रको अर्पण किए जानेवाले नारियल सजाकर जुलूसके साथ समुद्रतट पर ले जाते हैं । वहां पहुंचनेपर समुद्रकी पूजा करते हैं, तथा श्रद्धाभावसहित उस नारियलको अर्पण करते हैं समुद्रदेवताका भावपूर्ण वंदन करनेसे व्यक्तिमें भावके वलय जागृत होते हैं ।
नारियलका पूजन करनेसे उसमें परमेश्वरीय तत्त्वके वलय कार्यरत होते हैं ।
नारियलमें चैतन्यके वलय कार्यरत होते हैं ।
. समुद्रदेवताको शरणागत भावसे नारियल अर्पण करनेसे समुद्रकी ओर चैतन्यके प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं ।
समुद्रदेवताका भावपूर्ण पूजन करनेसे परमेश्वरीय तत्त्वके प्रवाह समुद्रकी ओर आकृष्ट होते हैं ।
. अप्रकट रूपमें विद्यमान परमेश्वरीय तत्त्व वलयके रूपमें प्रकट होकर कार्यरत होते हैं ।
वरुणदेवताके तत्त्व वलयके रूपमें कार्यरत होते हैं ।
निर्गुण तत्त्व समुद्रमें अधिक मात्रामें वलयके रूपमें कार्यरत होते हैं ।
समुद्रमें आनंद, चैतन्य एवं शक्ति के वलय आकृष्ट होते हैं एवं समुद्रमें आनंद, चैतन्य एवं शक्ति के वलय जागृत होते हैं । इन वलयोंसे व्यक्ति की ओर आनन्द, चैतन्य एवं शक्ति के प्रवाह प्रक्षेपित होनेसे व्यक्तिमें आनन्द , चैतन्य तथा शक्तिके वलय जागृत होते हैं ।

रक्षा बंधन


रक्षा बन्धन  राखी बाँधने का  मुहूर्त ,शनिवार,,29,,अगस्त को रक्षा बन्धन अनुष्ठान का समय = 13:50 से 20:58,, अवधि = 7 घण्टे 8 मिनट्स
श्रावण पूर्णिमा रक्षा बन्धन के लिये अपराह्न का मुहूर्त = 13:50 से 16:10 अवधि = 2 घण्टे 20 मिनट्स,,रक्षा बन्धन के लिये प्रदोष काल का मुहूर्त = 18:42 से 20:58,,,अवधि = 2 घण्टे 15 मिनट्स
भद्रा  28 अगस्त को रात 3.35 बजे से लग जायेगा और यह रक्षाबंधन पर्व यानी 29 अगस्त के दोपहर 1.40 बजे तक रहेगा। 9 घंटे 11 मिनट तक का है
भाई और बहन का लगाव एक अद्भुत प्रेम है। इस रिश्तें में एक-दूसरे के प्रति मन का, भावनाओं का, सेवा का, ममता का व सुरक्षा का समपर्ण है। लेकिन वासना की बू लेशमात्र भी नहीं है। इस अनमोल रिश्तें में अब मानसिक दरार दिखलाई पड़ने लगी है। ’’भैया को दीन्ही महल अटारी, हमका दीया परदेश’’ शिक्षा दीप्ति स्त्रियों के ’’कान्ता-सम्मित उपदेशों’’ का असर इतना तो हुआ कि पैतृक सम्मपत्ति में लड़कियों को हिस्सा मिला। मगर इसका नतीजा यह है कि भाईयों के मन में बहनों की खातिर संशय बैठ गया। उन्हे लगने लगा कि यह माॅ-बाप की सेवा के नाम पर बहनें बार-2 मायके आने लगी और अपने नयें घर पर माॅ-बाप को महीनों रखने लगी। कहीं उन्हें पोट कर सम्पत्ति का अधिकांश हिस्सा अपने नाम न लिखवा लें। इस मानसिक भ्रम के कारण भाईयों को बहनों में अपना प्रतिद्वंद्वी दिखने लगा।
राक्षा सूत्र बाॅधते समय क्या करें-
1 रक्षाबन्धन के दिन सर्वप्रथम गणेश जी को राखी बाॅधे तत्पश्चात अन्य लोगों को बाॅधें।
2 राखी बॅधवाने वाले व्यक्ति का मुॅख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
3 रक्षा सूत्र बॅधवाते वक्त सिर पर रूमाल या कोई कपड़ा अवश्य रखें।
4 महिलावर्ग रखी बाॅधते समय लाल, गुलाबी, पीले या केसरिया रंग कपड़े पहने तो विशेष लाभ होगा।
5 सर्वप्रथम कलाई में कलावा बाॅधे उसके बाद अन्य कोई फैशनेबल राखी बाॅधे।
6 बहने जों रक्षा सूत्र बाॅधें उसे एक वर्ष तक कलाई में बाॅधे रखे और दूसरे वर्ष पुराना वाला रक्षा सूत्र उतार कर किसी नदीं में प्रवाहित करके पुनः नया रक्षा सूत्र बहनों से बॅधवायें। ऐसा करने पर आपकी सुख, समृद्धि व स्वास्थ्य की रक्षा पूरे वर्ष होती रहेगी।
7 येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामानुवध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
बहने राखी बाॅधते समय उपरोक्त मन्त्र का उच्चारण करें।
8 राखी बाॅधवाते समय दाहिने हाथ की मुठ्ठी में फॅूल अवश्य रखें।
9 रक्षा सूत्र शत-प्रतिशत सूती धागे का ही होना चाहिए।
10 राखी को 7 या 5 बार घुमाकर ही हाथ में बाॅधना चाहिए।
रक्षा सूत्र क्यों बाॅधा जाता है ?
1 कलावा या मोली बाॅधने की प्रथा तब से चली आ रही है, जब से दानवीर राजा बलि की वीरता की रक्षा के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बाॅधा था। शास्त्रों में इस श्लोक का उल्लेख मिलता भी मिलता है।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामानुवध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
2 रक्षासूत्र बाॅधने से त्रिदेव ब्रहमा, विष्णु, महेश व तीनों देवियाॅ लक्ष्मी, सरस्वती व दुर्गा की कृपा बनी रहती है।
3 शरीर की संरचना का प्रमुख नियन्त्रण हाथ की कलाई में होता है। इसलिए कलाई में रक्षा सूत्र बाॅधने से आत्म-विश्वास आता है एंव तीनों दोष वात, पित्त व कफ में सन्तुलन बना रहता है, जिससे स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
4 कलावा या मोली बाॅधने से ब्लडप्रेशर व तनाव का रोग कम होता है।
यदि बहन भाई से रूष्ठ है तो क्या करें-
जन्मकुण्डली में बहन का कारक ग्रह बुध होता है। यदि आपका बुध अशुभ है, पापी है या नीच का है तो बहन से आपके रिश्तें मधुर नहीं रहेंगे। किसी भी प्रकार की नोंक-झोक चलती रहेगी।
1 बहन से रिश्तें मधुर हो जायें इसके लिए आपको रक्षा बन्धन के दिन अपनी बहन को हरें रंग साड़ी, हरे रंग की चूडियाॅ उपहार में दें।
2 नाक व कान में पहनें वाली कोई वस्तु भेंट करने से भी रिश्तें अच्छें हो जाते है।
3 रक्षा बन्धन के दिन बहन को सौंफ युक्त मीठा पान खिलायें।
4 विष्णु सह्रसनाम का पाठ करें।
5 अपनी बहन को हरे रंग की ब्रेसलेट या कोई अन्य उपहार जो हरें रंग का हो उसे दें।
यदि भाई नाराज है तो बहनें क्या करें-
भाई का कारक ग्रह मंगल होता है। स्त्रियों की कुण्डली में मंगल अशुभ, नीच का या भावसन्धि में फॅसा है तो भाई से रिश्तें अच्छे नहीं रहेंगे।
1 बहनें रक्षा बन्धन के दिन सबसे पहले हनुमान जी को रखी बाॅधे और उसके बाद भाई को राखी बाॅधते वक्त हनुमान जी की दाहिने भुजा से लिया हुआ वन्दन भाई को लगायें। ऐसा करने से आपस में प्रेम सम्बन्ध मजबूत होंगे।
2 आज के दिन बहनें सुन्दर काण्ड का पाठ करके भाई को राखी बाॅधें तथा बेसन लडडू खिलायें।
3 बहनें अपनें भाईयों को गहरे लाल रंग का कोई उपहार दें।
4 रक्षाबन्धन के दिन बहनें अपनें भाईयों को अपने हाथों से भोजन करायें तथा केसर युक्त कोई मीठी वस्तु अवश्य खिलायें।
5 भाई को राखी बाॅधते समय बहन मन में कार्तिकेय भगवान का स्मरण करें। हे कार्तिकेय जी मेरे और भाई के बीच रिश्तें हमेशा मधुर बनें।

Photo: रक्षा बंधन का मुहूर्त = 13=28 से 16=10.....10 अगस्त को सुबह से लेकर 1.38 मिनट तक भद्रा काल है। इसके बाद राखी त्योहार मनाना शुभ फलदायी होगा। रविवार का दिन होने के कारण 4.30 से 6 बजे तक राहु काल रहेगा। इसलिए इस समय के बाद भी राखी का त्योहार मनाने से बचना अच्छा होगा। शाम 6.30 से 7.30 तक शुभ और 7.30 से रात 9 बजे तक अमृत का चौघडिया रहेगा। चर के चौघडिया में भी रात 9 से 10.30 बजे तक रक्षासूत्र बांधा जा सकेगा।
भाई और बहन का लगाव एक अद्भुत प्रेम है। इस रिश्तें में एक-दूसरे के प्रति मन का, भावनाओं का, सेवा का, ममता का व सुरक्षा का समपर्ण है। लेकिन वासना की बू लेशमात्र भी नहीं है। इस अनमोल रिश्तें में अब मानसिक दरार दिखलाई पड़ने लगी है। ’’भैया को दीन्ही महल अटारी, हमका दीया परदेश’’ शिक्षा दीप्ति स्त्रियों के ’’कान्ता-सम्मित उपदेशों’’ का असर इतना तो हुआ कि पैतृक सम्मपत्ति में लड़कियों को हिस्सा मिला। मगर इसका नतीजा यह है कि भाईयों के मन में बहनों की खातिर संशय बैठ गया। उन्हे लगने लगा कि यह माॅ-बाप की सेवा के नाम पर बहनें बार-2 मायके आने लगी और अपने नयें घर पर माॅ-बाप को महीनों रखने लगी। कहीं उन्हें पोट कर सम्पत्ति का अधिकांश हिस्सा अपने नाम न लिखवा लें। इस मानसिक भ्रम के कारण भाईयों को बहनों में अपना प्रतिद्वंद्वी दिखने लगा। 
रक्षा बन्धन का शुभ मुहूर्त- रक्षाबन्धन अपरान्हव्यापिनी श्रावण पूर्णिमा में मनाया जाता है। भद्रा में यह निषिद्ध है। 10 अगस्त को अपरान्ह 1:38मि0 तक भद्रा रहेगी। अतः अपरान्ह 1:40 मि0 से 3:30 मि0 तक शुभ मुहूर्त है। वैसे भद्रा के बाद पूरे दिन  मूहूर्त रहेगा।
राक्षा सूत्र बाॅधते समय क्या करें-
1  रक्षाबन्धन के दिन सर्वप्रथम गणेश जी को राखी बाॅधे तत्पश्चात अन्य लोगों को बाॅधें।
2  राखी बॅधवाने वाले व्यक्ति का मुॅख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
3   रक्षा सूत्र बॅधवाते वक्त सिर पर रूमाल या कोई कपड़ा अवश्य रखें।
4  महिलावर्ग रखी बाॅधते समय लाल, गुलाबी, पीले या केसरिया रंग कपड़े पहने तो विशेष लाभ होगा।
5  सर्वप्रथम कलाई में कलावा बाॅधे उसके बाद अन्य कोई फैशनेबल राखी बाॅधे। 

6  बहने जों रक्षा सूत्र बाॅधें उसे एक वर्ष तक कलाई में बाॅधे रखे और दूसरे वर्ष पुराना वाला रक्षा सूत्र उतार कर किसी नदीं में प्रवाहित करके पुनः नया रक्षा सूत्र बहनों से बॅधवायें। ऐसा करने पर आपकी सुख, समृद्धि व स्वास्थ्य की रक्षा पूरे वर्ष होती रहेगी।

7  येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
   तेन त्वामानुवध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
 बहने राखी बाॅधते समय उपरोक्त मन्त्र का उच्चारण करें।
8   राखी बाॅधवाते समय दाहिने हाथ की मुठ्ठी में फॅूल अवश्य रखें।
9  रक्षा सूत्र शत-प्रतिशत सूती धागे का ही होना चाहिए।
10  राखी को 7 या 5 बार घुमाकर ही हाथ में बाॅधना चाहिए।
रक्षा सूत्र क्यों बाॅधा जाता है ?
1  कलावा या मोली बाॅधने की प्रथा तब से चली आ रही है, जब से दानवीर राजा बलि की वीरता की रक्षा के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बाॅधा था। शास्त्रों में इस श्लोक का उल्लेख मिलता भी मिलता है। 
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामानुवध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
2   रक्षासूत्र बाॅधने से त्रिदेव ब्रहमा, विष्णु, महेश व तीनों देवियाॅ लक्ष्मी, सरस्वती व दुर्गा की कृपा बनी रहती है।
3  शरीर की संरचना का प्रमुख नियन्त्रण हाथ की कलाई में होता है। इसलिए कलाई में रक्षा सूत्र बाॅधने से आत्म-विश्वास आता है एंव तीनों दोष वात, पित्त व कफ में सन्तुलन बना रहता है, जिससे स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
4   कलावा या मोली बाॅधने से ब्लडप्रेशर व तनाव का रोग कम होता है।
यदि बहन भाई से रूष्ठ है तो क्या करें-
जन्मकुण्डली में बहन का कारक ग्रह बुध होता है। यदि आपका बुध अशुभ है, पापी है या नीच का है तो बहन से आपके रिश्तें मधुर नहीं रहेंगे। किसी भी प्रकार की नोंक-झोक चलती रहेगी।
1 बहन से रिश्तें मधुर हो जायें इसके लिए आपको रक्षा बन्धन के दिन अपनी बहन को हरें रंग साड़ी, हरे रंग की चूडियाॅ उपहार में दें। 
2  नाक व कान में पहनें वाली कोई वस्तु भेंट करने से भी रिश्तें अच्छें हो जाते है।
3  रक्षा बन्धन के दिन बहन को सौंफ युक्त मीठा पान खिलायें।
4  विष्णु सह्रसनाम का पाठ करें।
5  अपनी बहन को हरे रंग की ब्रेसलेट या कोई अन्य उपहार जो हरें रंग का हो उसे दें।
यदि भाई नाराज है तो बहनें क्या करें-
भाई का कारक ग्रह मंगल होता है। स्त्रियों की कुण्डली में मंगल अशुभ, नीच का या भावसन्धि में फॅसा है तो भाई से रिश्तें अच्छे नहीं रहेंगे।
1 बहनें रक्षा बन्धन के दिन सबसे पहले हनुमान जी को रखी बाॅधे और उसके बाद भाई को राखी बाॅधते वक्त हनुमान जी की दाहिने भुजा से लिया हुआ वन्दन भाई को लगायें। ऐसा करने से आपस में प्रेम सम्बन्ध मजबूत होंगे।
2 आज के दिन बहनें सुन्दर काण्ड का पाठ करके भाई को राखी बाॅधें तथा बेसन लडडू खिलायें।
3 बहनें अपनें भाईयों को गहरे लाल रंग का कोई उपहार दें।
4 रक्षाबन्धन के दिन बहनें अपनें भाईयों को अपने हाथों से भोजन करायें तथा केसर युक्त कोई मीठी वस्तु अवश्य खिलायें।
5 भाई को राखी बाॅधते समय बहन मन में कार्तिकेय भगवान का स्मरण करें। हे कार्तिकेय जी मेरे और भाई के बीच रिश्तें हमेशा मधुर बनें।

Thursday 7 August 2014

ॐ गुरु दत्ता नमो नमः

ॐ गुरु दत्ता नमो नमः ll
ॐ दत्‍तात्रेय हरे कृष्‍ण उन्‍मत्‍तानन्‍ददायक दिगंबर मुने बाल पिशाच ज्ञानसागर ll
ॐ आं ह्रीं क्रों एहि दत्‍तात्रेयाय स्‍वाहा ll
ॐ ऐं क्रों क्‍लीं क्‍लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं सौ: दत्‍तात्रेयाय स्‍वाहा ll
ॐ द्रां ह्रीं क्रो ॐ दत्तात्रेया विद्महे योगीश्‍राय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात् ll
ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्‍राय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात् ll
ॐ दत्तात्रेया विद्महे ,दिगंबराय धीमहीतन्नो दत: प्रचोदयात् ll
ॐ दत्‍तात्रेयाय विद्महे अवधूताय धीमहि तन्‍नो दत्‍त: प्रचोदयात्‌ ll
ॐ दत्‍तात्रेयाय विद्महे l अत्री पुत्राय धीमहि तन्‍नो दत्‍त: प्रचोदयात्‌ ll
श्री दत्तात्रेययांची आरती
आरती ओवाळू गुरुसी l ब्रह्माविष्णुमहेशाशी ll ध्रु.ll
दिधले आत्मदान जगति l म्हणवुनि श्रीदत्त तुज म्हणती ll
ब्रह्मारूपे जग सृजसी l विष्णू तूचि प्रतिपाळिसी l
हर हरिसी भार उतरविसी l पार देऊनी आत्मज्ञान प्रणती l
किती तव स्मरणे जगी तरती ll १ ll
निर्गुण चित्धन वस्तुसी l अत्नीअनसूयात्मज म्हणती l
लीला दावूनी उध्दरसी l मानवदेहा जरी धरिसी l
परि नससि देह, हाचि संदेह l हृदयी असूनि ही मूर्ती l
जाणीव लोपली अंधमती l आरती ओवाळू श्रीगुरूसी ll २ ll

Wednesday 6 August 2014

गणेश पञ्चरत्नं संपूर्णम्

मुदा करात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकं कलाधरावतंसकं विलासि लोक रक्षकम्
अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकं नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम् ॥
नतेतराति भीकरं नवोदितार्क भास्वरं नमत् सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥
समस्त लोक शंकरं निरास्त दैत्य कुन्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रं अक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥
अकिंचनार्ति मर्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् ।
प्रपञ्चनाश भीषणं धनंजयादि भूषणं कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥
नितान्त कान्त दन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तराय कृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेकमेव चिन्तयामि सन्ततम् ॥
महागणेश पञ्चरत्नं आदरेण योन्ऽवहं प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम्
अरोगतां अदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्ट भूतिमभ्युपैति सोऽचिरत् ॥
॥ इति श्री शंकराचार्य विरचितं श्री महागणेश पञ्चरत्नं संपूर्णम् ॥

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