बछ बारस , ,07 सितम्बर 2018,,गाय बछड़े की पूजा (वत्स द्वादशी )
चाकू का काटा नहीं खायेंगी माताएं प्राचीन हिंदू परंपरा के अनुसार सुहागिनें और माताएं मंगलवार को बछ बारस (वत्स द्वादशी) पर्व मनाएंगी। इस पर्व में हषरेल्लास के साथ बछड़े वाली गाय की पूजा करते हुए संतान की सकुशलता की कामना की जाएगी। परंपरा के अनुसार इस दिन महिलाएं चाकू से कटी भोजन सामग्री से परहेज करेंगी।
मक्का की रोटी से खोलेंगी व्रत ,,,,,वत्स द्वादशी के मौके पर सुहागिनों द्वारा संतान सुख और माताओं द्वारा संतान की सकुशलता की कामना की जाएगी। इस मौके पर व्रतधारी महिलाएं गाय और बछड़े की पूजा करेंगी। व्रत खोलने के लिए भोजन में कड़ी और मक्का की रोटी, मूंग, चने के बरवे, भुजिया आदि बनाए जाएंगे।
मक्का की रोटी से खोलेंगी व्रत ,,,,,वत्स द्वादशी के मौके पर सुहागिनों द्वारा संतान सुख और माताओं द्वारा संतान की सकुशलता की कामना की जाएगी। इस मौके पर व्रतधारी महिलाएं गाय और बछड़े की पूजा करेंगी। व्रत खोलने के लिए भोजन में कड़ी और मक्का की रोटी, मूंग, चने के बरवे, भुजिया आदि बनाए जाएंगे।
संतान को झेलाएंगी खोपरे ,,,गाय, बछड़े की पूजा के बाद महिलाओं द्वारा अपनी संतान को नारियल और खोपरे झेलाकर, तिलक लगाकर उनकी सकुशलता व लंबी उम्र की कामना की जाएगी। पूजा अनुष्ठान के बाद बहुएं परिवार की बड़ी, बुजुर्ग महिलाओं को चरण स्पर्श किया जाएगा।
बछ बारस व्रत की कथा ,,,,एक परिवार में सास और बहू साथ रहती थी। उनके घर में गाय और उसके दो बछड़े थे, जिन्हें सास बच्चों से भी ज्यादा प्यार से रखती थी। घर से पूजा कार्य के लिए निकली सास ने बहू से गंवलिया और जंवलिया (गेहूं व जौ) पकाने को कहा। गाय के बछड़ों का नाम भी गंवलिया और जंवलिया होने से नादान बहू ने दोनों बछड़ों को काट कर पकाने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया। पूजा कर वापस लौटी सास ने घर में गाय के बछड़े नहीं होने पर बहू से जवाब मांगा। बहू ने कहा कि मैंने गंवलिया और जंवलिया को तो पकाने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया है। यह सुनकर पीड़ा में डूबी सास ने दोनों बछड़े वापस लौटाने की कामना भगवान से की। ईश्वर की कृपा से वे दोनों बछड़े दौड़कर आ गए, जिन्हें बहू ने चूल्हे पर चढ़ा दिया था।
ॐ सर्वदेवमये देवि लोकानां शुभनन्दिनि।मातर्ममाभिषितं सफलं कुरु नन्दिनि।।
ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट नमो नम: स्वाहा।।
बछ बारस व्रत की कथा ,,,,एक परिवार में सास और बहू साथ रहती थी। उनके घर में गाय और उसके दो बछड़े थे, जिन्हें सास बच्चों से भी ज्यादा प्यार से रखती थी। घर से पूजा कार्य के लिए निकली सास ने बहू से गंवलिया और जंवलिया (गेहूं व जौ) पकाने को कहा। गाय के बछड़ों का नाम भी गंवलिया और जंवलिया होने से नादान बहू ने दोनों बछड़ों को काट कर पकाने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया। पूजा कर वापस लौटी सास ने घर में गाय के बछड़े नहीं होने पर बहू से जवाब मांगा। बहू ने कहा कि मैंने गंवलिया और जंवलिया को तो पकाने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया है। यह सुनकर पीड़ा में डूबी सास ने दोनों बछड़े वापस लौटाने की कामना भगवान से की। ईश्वर की कृपा से वे दोनों बछड़े दौड़कर आ गए, जिन्हें बहू ने चूल्हे पर चढ़ा दिया था।
ॐ सर्वदेवमये देवि लोकानां शुभनन्दिनि।मातर्ममाभिषितं सफलं कुरु नन्दिनि।।
ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट नमो नम: स्वाहा।।
बछ यानि बछड़ा, गाय के छोटे बच्चे को कहते है । इस दिन को मनाने का उद्देश्य गाय व बछड़े का महत्त्व समझाना है। यह दिन गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। गोवत्स का मतलब भी गाय का बच्चा ही होता है।
बछ बारस का यह दिन कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है । कृष्ण भगवान को गाय व बछड़ा बहुत प्रिय थे तथा गाय में सैकड़ो देवताओं का वास माना जाता है।
गाय व बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का , गाय में निवास करने वाले देवताओं का और गाय का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है ऐसा माना जाता है।
बछ बारस ,,,इस दिन महिलायें बछ बारस का व्रत रखती है। यह व्रत सुहागन महिलाएं सुपुत्र प्राप्ति और पुत्र की मंगल कामना के लिए व परिवार की खुशहाली के लिए करती है। गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है।
इस दिन गाय का दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही , मक्खन , घी आदि का उपयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा गेहूँ और चावल तथा इनसे बने सामान नहीं खाये जाते ।
भोजन में चाकू से कटी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करते है। इस दिन अंकुरित अनाज जैसे चना , मोठ , मूंग , मटर आदि का उपयोग किया जाता है। भोजन में बेसन से बने आहार जैसे कढ़ी , पकोड़ी , भजिये आदि तथा मक्के , बाजरे ,ज्वार आदि की रोटी तथा बेसन से बनी मिठाई का उपयोग किया जाता है।
सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर शुद्ध कपड़े पहने।
दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को साफ पानी से नहलाकर शुद्ध करें।
गाय और बछड़े को नए वस्त्र ओढ़ाएँ।
फूल माला पहनाएँ।
उनके सींगों को सजाएँ।
उन्हें तिलक करें।
गाय और बछड़े को भीगे हुए अंकुरित चने , अंकुरित मूंग , मटर , चने के बिरवे , जौ की रोटी आदि खिलाएँ।
गौ माता के पैरों धूल से खुद के तिलक लगाएँ।
इसके बाद बछ बारस की कहानी सुने। बछ बारस की कहानी यहाँ क्लीक करके पढ़ें।
इस प्रकार गाय और बछड़े की पूजा करने के बाद महिलायें अपने पुत्र के तिलक लगाकर उसे नारियल देकर उसकी लंबी उम्र और सकुशलता की कामना करें। उसे आशीर्वाद दें।
बड़े बुजुर्ग के पाँव छूकर उनसे आशीर्वाद लें। अपनी श्रद्धा और रिवाज के अनुसार व्रत या उपवास रखें। मोठ या बाजरा दान करें। सासुजी को बयाना देकर आशीर्वाद लें।
यदि आपके घर में खुद की गाय नहीं हो तो दूसरे के यहाँ भी गाय बछड़े की पूजा की जा सकती है। ये भी संभव नहीं हो तो गीली मिट्टी से गाय और बछड़े की आकृति बना कर उनकी पूजा कर सकते है।
बछ बारस
कुछ लोग सुबह आटे से गाय और बछड़े की आकृति बनाकर पूजा करते है। शाम को गाय चारा खाकर वापस आती है तब उसका पूजन धुप, दीप , चन्दन , नैवेद्य आदि से करते है।
!!! Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557
बछ बारस का यह दिन कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है । कृष्ण भगवान को गाय व बछड़ा बहुत प्रिय थे तथा गाय में सैकड़ो देवताओं का वास माना जाता है।
गाय व बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का , गाय में निवास करने वाले देवताओं का और गाय का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है ऐसा माना जाता है।
बछ बारस ,,,इस दिन महिलायें बछ बारस का व्रत रखती है। यह व्रत सुहागन महिलाएं सुपुत्र प्राप्ति और पुत्र की मंगल कामना के लिए व परिवार की खुशहाली के लिए करती है। गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है।
इस दिन गाय का दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही , मक्खन , घी आदि का उपयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा गेहूँ और चावल तथा इनसे बने सामान नहीं खाये जाते ।
भोजन में चाकू से कटी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करते है। इस दिन अंकुरित अनाज जैसे चना , मोठ , मूंग , मटर आदि का उपयोग किया जाता है। भोजन में बेसन से बने आहार जैसे कढ़ी , पकोड़ी , भजिये आदि तथा मक्के , बाजरे ,ज्वार आदि की रोटी तथा बेसन से बनी मिठाई का उपयोग किया जाता है।
सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर शुद्ध कपड़े पहने।
दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को साफ पानी से नहलाकर शुद्ध करें।
गाय और बछड़े को नए वस्त्र ओढ़ाएँ।
फूल माला पहनाएँ।
उनके सींगों को सजाएँ।
उन्हें तिलक करें।
गाय और बछड़े को भीगे हुए अंकुरित चने , अंकुरित मूंग , मटर , चने के बिरवे , जौ की रोटी आदि खिलाएँ।
गौ माता के पैरों धूल से खुद के तिलक लगाएँ।
इसके बाद बछ बारस की कहानी सुने। बछ बारस की कहानी यहाँ क्लीक करके पढ़ें।
इस प्रकार गाय और बछड़े की पूजा करने के बाद महिलायें अपने पुत्र के तिलक लगाकर उसे नारियल देकर उसकी लंबी उम्र और सकुशलता की कामना करें। उसे आशीर्वाद दें।
बड़े बुजुर्ग के पाँव छूकर उनसे आशीर्वाद लें। अपनी श्रद्धा और रिवाज के अनुसार व्रत या उपवास रखें। मोठ या बाजरा दान करें। सासुजी को बयाना देकर आशीर्वाद लें।
यदि आपके घर में खुद की गाय नहीं हो तो दूसरे के यहाँ भी गाय बछड़े की पूजा की जा सकती है। ये भी संभव नहीं हो तो गीली मिट्टी से गाय और बछड़े की आकृति बना कर उनकी पूजा कर सकते है।
बछ बारस
कुछ लोग सुबह आटे से गाय और बछड़े की आकृति बनाकर पूजा करते है। शाम को गाय चारा खाकर वापस आती है तब उसका पूजन धुप, दीप , चन्दन , नैवेद्य आदि से करते है।
!!! Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557