Thursday, 21 August 2014

अजा एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकाद्शी


अजा एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकाद्शी अजा एकादशी के नाम से जानी जाती है| इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है| इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा पूजा की जाती है| इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होती है| इस बार अजा एकादशी का व्रत
अजा एकादशी की व्रत विधि- अजा एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से प्रारंभ हो जाता है| एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें। भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का जप एवं उनकी कथा सुनें। रात को भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं।
अजा एकादशी व्रत कथा- कुन्ती पुत्र अर्जुन बोले - "हे जनार्दन ! अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइए ! उस एकादशी का क्या नाम है तथा इसका व्रत करने की क्या विधि है उसका व्रत करने से क्या फल मिलता है
श्री कृष्ण बोले - "हे पार्थ ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा कहते हैं । इसके व्रत करने से समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं । जो मनुष्य इस दिन भक्‍तिपूर्वक भगवान् की पूजा करते हैं तथा व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं । इस लोक और परलोक में सहायता करने वाली इस एकादशी व्रत के समान विश्‍व में दूसरा कोई व्रत नहीं है । अब ध्यानपूर्वक इस एकादशी की कथा सुनो - प्राचीनकाल में आयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था । उसका नाम हरिश्‍चन्द्र था। वह अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी था । दैवयोग से उसने अपना राज्य स्वप्‍न में एक ऋषि को दान कर दिया और परिस्थितिवश उसे अपनी पत्‍नी और पुत्र को भी बेच देना पड़ा । स्वयं वह एक चाण्डाल का सेवक बन गया । उसने उस चाण्डाल के यहां कफन लेने का काम किया । परन्तु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य को न छोड़ा । जब इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गये तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुःख हुआ और वह इससे मुक्‍त होने का उपाय खोजने लगा । वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगा कि मैं क्या करुं ? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्‍ति पाऊं

एक समय की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठा था कि गौतम ऋषि वहां आ पहुंचे । राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुःखभरी कथा सुनाने लगा । राजा की दुःखभरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुःखी हुए और राजा से बोले - ’हे राजन् ! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है । तुम उस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो । इससे तुम्हारे समस्त पाप नष्‍ट हो जायेंगे ।’

*ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,
गौतम ऋषि राजा से इस प्रकार कहकर अन्तर्धान हो गये । अजा नाम की एकादशी आने पर राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिपूर्वक व्रत तथा रात्रि-जागरण किया । उसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्‍ट हो गये । उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी । उसने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महादेवजी तथा इन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया । उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा स्त्री को वस्‍त्र तथा आभूषणों से युक्‍त देखा । व्रत के प्रभाव से उसको पुनः राज्य मिला । वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था । किन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से सारा षड्‌यंत्र समाप्‍त हो गया और अन्त समय में राजा हरिश्‍चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया ।
हे राजन् ! यह सब अजा एकादशी के व्रत का प्रभाव था । जो मनुष्य इस व्रत को विधिविधानपूर्वक करते हैं तथा रात्रि-जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं और अन्त में वे स्वर्ग को जाते हैं । इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्‍वमेध यज्ञ का फल मिलता है|

Photo: अजा एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकाद्शी अजा एकादशी के नाम से जानी जाती है| इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है| इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा पूजा की जाती है| इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होती है| इस बार अजा एकादशी का व्रत 
अजा एकादशी की व्रत विधि-   अजा एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से प्रारंभ हो जाता है| एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं। 
इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें। भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। 
विष्णु सहस्त्रनाम का जप एवं उनकी कथा सुनें। रात को भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। 
अजा एकादशी व्रत कथा-   कुन्ती पुत्र अर्जुन बोले - "हे जनार्दन ! अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइए ! उस एकादशी का क्या नाम है तथा इसका व्रत करने की क्या विधि है   उसका व्रत करने से क्या फल मिलता है 
श्री कृष्ण बोले - "हे पार्थ ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा कहते हैं । इसके व्रत करने से समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं । जो मनुष्य इस दिन भक्‍तिपूर्वक भगवान् की पूजा करते हैं तथा व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं । इस लोक और परलोक में सहायता करने वाली इस एकादशी व्रत के समान विश्‍व में दूसरा कोई व्रत नहीं है । अब ध्यानपूर्वक इस एकादशी की कथा सुनो -       प्राचीनकाल में आयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था । उसका नाम हरिश्‍चन्द्र था। वह अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी था । दैवयोग से उसने अपना राज्य स्वप्‍न में एक ऋषि को दान कर दिया और परिस्थितिवश उसे अपनी पत्‍नी और पुत्र को भी बेच देना पड़ा । स्वयं वह एक चाण्डाल का सेवक बन गया । उसने उस चाण्डाल के यहां कफन लेने का काम किया । परन्तु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य को न छोड़ा । जब इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गये तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुःख हुआ और वह इससे मुक्‍त होने का उपाय खोजने लगा । वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगा कि मैं क्या करुं ? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्‍ति पाऊं 

एक समय की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठा था कि गौतम ऋषि वहां आ पहुंचे । राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुःखभरी कथा सुनाने लगा । राजा की दुःखभरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुःखी हुए और राजा से बोले - ’हे राजन् ! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है । तुम उस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो । इससे तुम्हारे समस्त पाप नष्‍ट हो जायेंगे ।’
गौतम ऋषि राजा से इस प्रकार कहकर अन्तर्धान हो गये । अजा नाम की एकादशी आने पर राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिपूर्वक व्रत तथा रात्रि-जागरण किया । उसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्‍ट हो गये । उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी । उसने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महादेवजी तथा इन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया । उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा स्त्री को वस्‍त्र तथा आभूषणों से युक्‍त देखा । व्रत के प्रभाव से उसको पुनः राज्य मिला । वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था । किन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से सारा षड्‌यंत्र समाप्‍त हो गया और अन्त समय में राजा हरिश्‍चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया ।
हे राजन् ! यह सब अजा एकादशी के व्रत का प्रभाव था । जो मनुष्य इस व्रत को विधिविधानपूर्वक करते हैं तथा रात्रि-जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं और अन्त में वे स्वर्ग को जाते हैं । इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्‍वमेध यज्ञ का फल मिलता है|

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