Monday 24 October 2016

धनत्रयोदशी 28 अक्टूबर शुक्रवार ,, दीपावली 30 अक्टूबर रविवार

धनत्रयोदशी 28 अक्टूबर शुक्रवार ,, दीपावली 30 अक्टूबर रविवार
इस दिन धातु के सामान , घरेलू सामान , मोटर वाहन , पूजन सामान, मुर्तियाँ, चाँदी , सोना , रत्न , दवा , झाडु आदि की खरीद की जाती है ,
इस दिन खाता बही . चौपड़ा , कलम दवात आदि की खरीददारी का शुभ समय -
सुबह - 9:00 से 11:00 ; शाम -2:28 से 4:00 , 5:34 से 9:45 .
लक्ष्मी पूजन -वृषभ लग्न- 6 : 33 से 8:30 । सिंह लग्न- रात -1 :03 से 3 :1 4 तक ,
इस दिन रात मे भी लक्ष्मी और धन्वनतरि जी की पूजन किया जाता है ।
यमराज दीपक - शाम को यमराज को प्रसन्न करने के लिऐ चार मुख या एक मुख का तेल का नया मिठ्ठी का दीपक रात मे जलाकर घर के दक्षिण दिशा मे रखा जाता है ।
29 अक्टूबर शनिवार - छोटी दिवाली
देव दीपक , नरक चतुर्दशी , हनुमान जी की जयंती
मँगल वार को हनुमान जयंती 30 साल बाद
इस दिन हनुमान जी की जयन्ती मानी जाती है , मेष लग्न , हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिऐ लडडु दीपक आदि का दान किया जाता है , इस शाम को देव घरों, मन्दिरो मे घी का दीपक दान करना चाहिए ,इसे छोटी दीपावली भी कहते है ।
30 अक्टूबर- रविवार - दीपावली
इस दिन श्री गणेशजी, महालक्ष्मी , कुबेर , महाकाली, महासरस्वती , विश्वकर्मा , तुला , खाता - बही , ऋद्दि -सिद्धि , योग क्षेम , स्वास्तिक का पूजन किया जाता है , इस दिन - रात पूजा करने का विधान है,
चोघडिया से पूजन का मुहूर्त
शुभ काल -गृहस्थ एवँ सभी ।
महेन्द्र, गौधुलि और इन्द्र काल राजा - राज अधिकारी , नेता गण । अमृत दवा- व्यापारी , अनाज , होटल , स्टेशनरी , रसायन , विद्यार्थी के लिऐ शुभ है ।
इस दिन राहू काल -दोपहर से है ,
लग्न या राशि के अनुसार पूजन समय
राशि या लग्न से 6, 8, 12 वे लग्न मे पूजन न करे
दिपावली की सुबह - सुबह मे दरिद्रा को घर से निकालने का भी विधान सुप बजाकर है ।
दीपावली लक्ष्मी पूजन शुभ महूर्त
श्रीमहालक्ष्मी पूजन प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग २ घण्टे २४ मिनट तक रहता है। कुछ स्त्रोत लक्ष्मी पूजा को करने के लिए महानिशिता काल भी बताते हैं। हमारे विचार में महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानते हैं, उनके लिए यह समय ज्यादा उपयुक्त होता है। सामान्य लोगों के लिए हम प्रदोष काल मुहूर्त उपयुक्त बताते हैं।
श्रीमहालक्ष्मी पूजन को करने के लिए हम चौघड़िया मुहूर्त को देखने की सलाह नहीं देते हैं क्योंकि वे मुहूर्त यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं। लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है। ऐसा माना जाता है कि अगर व्यपार में चर लग्न में लक्ष्मी पूजन किया जाता है।तो सदैव व्यपार में धनागमन का आदान प्रदान होता रहता है।और स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है। इसीलिए लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है। वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है।
लक्ष्मी पूजा के लिए हम यथार्थ समय उपलब्ध कराते हैं। हमारे दर्शाये गए मुहूर्त के समय में अमावस्या, प्रदोष काल और स्थिर लग्न सम्मिलित होते हैं। हमेशा अपने मित्रो को स्थान के अनुसार मुहूर्त उपलब्ध कराते हैं इसीलिए
यह महूर्त नागपुर के सूर्यादय के अनुसार है इसीलिए आपको लक्ष्मी पूजा का शुभ समय देखने से पहले मुझे अपने अपने शहर का नाम बता देना चाहिए ताकि आप लोग उपयुक्त समय में पूजन कर सको!!
बही खाता खरीदने का महूर्त
(1)- शुक्रवार - 28 अक्टूबर 2016 -
धनतेरस , प्रदोष , धन्वनतरि जयन्ती , महाशिवरात्रि
कार्त्तिक बदी ( कृष्ण पक्ष. ) त्रयोदशी हस्त नक्षत्र -शनिवार सुबह 6:41 तक ।
त्रयोदशी - गुरुवार शाम 5:12 से शुक्रवार शाम 6:17 तक ,.
धनतेरस -
(2) शनिवार - 29 अक्टूबर 2016 -
नरक चतुर्दशी , हनुमान जयन्ती
(3 )रविवार - 30 अक्टूबर 2016 -
कार्त्तिक बदी ( कृष्ण )अमावस्या रवि वार - चित्रा नक्षत्र
दीपावली पर्व दिवस
नोट - अमावस्या - शनि वार -रात -7:55 से रवि वार -शाम -9:33 तक है । इसलिऐ काली पूजा पण्डालो मे शनिवार- रात- 29 अक्टूबर की रात मे होगी ।
हर्षीकेश पँचाग से सूर्योदय अनुसार लग्न सारणी
प्रदोषकाल- 17:05 से 19:30 तक
तुला लग्न - सुबह -07:47 तक
वृश्चिक लग्न- 07:47 से 10 :04 तक
धनु लग्न- सुबह 10:04 से 12:10 तक
मकर - दोपहर -12:10 से 01:57 तक
कुंभ लग्न - दोपहर वाद - 1:57 से 3:28 तक
मीन - दोपहर - 3:28 से 4:56 तक
मेष लग्न - शाम 4:56 से 6 :35 तक
वृष लग्न - शाम 6:33 से 08 :30 तक
मिथुन लग्न - रात - 8 :30 से 10 : 43 तक
कर्क लग्न - रात - 10 :43 से 01:03 तक
सिंह लग्न - रात्रिकाल 01: 03 से 03:15 तक
नोट ,,,,,,,,,,वृषभ और सिंह लग्न स्थाई लग्न मे लक्ष्मी कही पूजा शुभ मानी जाती है
नोट ,,,,वृषभ और सिंह लग्न स्थाई लग्न मे लक्ष्मी कही पूजा शुभ मानी जाती है
सर्वोत्तम समय
यह समय सबसे उत्तम बताया गया है।जिसमे प्रदोष काल वृषलग्न भी रहेगा। समय 6 :33 से 8:30 तक!!
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महानिशा काल महूर्त
महानिशा काल = रात 11:03 से ,,12 :47 मिनट तक
सिंह लग्न - रात 1:03 से रात 03 :15 तक

दीपावली धनतेरस की कथा दिपावली पूजा

दीपावली धनतेरस की कथा दिपावली पूजा
दिपावली पूजा शनिवार ,14 नवंबर 2020 और धनतेरस: 13 नवंबर 2020 छोटी
नवम्बर 13, 2020, शुक्रवार प्रदोष व्रत
कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी प्रारम्भ 21, 30 रात , नवम्बर 12 , समाप्त - 17,59 शाम, नवम्बर 13
और बड़ी दिवाली 14 नवंबर 2020
गोवर्धन पूजा 15 नवंबर 2020
भाई दूज 16 नवंबर 2020
लक्ष्मी पूजा शनिवार, नवम्बर 14, 2020
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 17,33 पी एम से 19,32 पी एम
अवधि - 01 घण्टा 59 मिनट्स
प्रदोष काल - 17,32 पी एम से 20,07 पी एम
वृषभ काल - 17, 33 पी एम से 19, 32 पी एम
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 14, 2020 को 14, 17 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त - नवम्बर 15, 2020 को 10,36 ए एम बजे
अन्य शहरों में लक्ष्मी पूजा मुहूर्त
17,58 पी एम से 19,59 पी एम - पुणे
17,28 पी एम से 19,24 पी एम - नई दिल्ली
17,41 पी एम से 19,43 पी एम - चेन्नई
17,37 पी एम से 19,33 पी एम - जयपुर
17,42 पी एम से 17,42 पी एम - हैदराबाद
17,29 पी एम से 19,25 पी एम - गुरुग्राम
17,26 पी एम से 19,21 पी एम - चण्डीगढ़
16,54 पी एम से 18,52 पी एम - कोलकाता
18,01 पी एम से 20,01 पी एम - मुम्बई
17,52 पी एम से 19,54 पी एम - बेंगलूरु
17,57 पी एम से 19,55 पी एम - अहमदाबाद
17,28 पी एम से 19,23 पी एम - नोएडा
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 23,33 पी एम से 00,24 ए एम, नवम्बर 15
अवधि - 00 घण्टे 51 मिनट्स
निशिता काल - 23,33 पी एम से 00 24 ए एम, नवम्बर 15
सिंह लग्न - 00, 01 ए एम से 02,10 ए एम, नवम्बर 15
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 14, 2020 को 14,17 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त - नवम्बर 15, 2020 को 10,36 ए एम बजे
दीवाली लक्ष्मी पूजा के लिये शुभ चौघड़िया मुहूर्त
अपराह्न मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) - 14,17 पी एम से 16,09 पी एम
सायाह्न मुहूर्त (लाभ) - 17,32 पी एम से 19:09 पी एम
रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) - 20,45 पी एम से 01,35 ए एम, नवम्बर 15
उषाकाल मुहूर्त (लाभ) - 04,48 ए एम से 06,24 ए एम, नवम्बर 15
धनतेरस पर भगवान यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो धनतेरस के दिन दीपदान करता है 
उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। इस मान्यता के पीछे पुराणों में वर्णित एक कथा है, जो इस प्रकार है।
एक समय यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण का हरण करते समय किसी पर दयाभाव भी आया है, तो वे संकोच में पड़कर बोले- नहीं महाराज यमराज ने उनसे दोबारा पूछा तो उन्होंने संकोच छोड़कर बताया कि एक बार एक ऐसी घटना घटी थी, जिससे हमारा हृदय कांप उठा था
हेम नामक राजा की पत्नी ने जब एक पुत्र को जन्म दिया तो ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगा, उसके चार दिन बाद ही मर जाएगा। यह जानकर उस राजा ने बालक को यमुना तट की एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया।
एक दिन जब महाराजा हंस की युवा बेटी यमुना तट पर घूम रही थी तो उस ब्रह्मचारी युवक ने मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन पूरा होते ही वह राजकुमार मर गया।
अपने पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलखकर रोने लगी। उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा।
उस राजकुमार के प्राण हरण करते समय हमारे आंसू नहीं रुक रहे थे।
तभी एक यमदूत ने पूछा -क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है?
यमराज बोले- हां उपाय तो है। अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस के दिन पूजन और दीपदान विधिपूर्वक करना चाहिए।
जहां यह पूजन होता है, वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। कहते हैं कि तभी से धनतेरस के दिन यमराज के पूजन के पश्चात दीपदान करने की परंपरा प्रचलित हुई।
पूजन विधि - इस दिन सायंकाल घर के बाहर मुख्य दरवाजे पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर यमराज के निर्मित्त दक्षिण की ओर मुंह करके दीपदान करना चाहिए। दीपदान करते समय यह मंत्र बोलना चाहिए-
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।।
रात्रि को घर की स्त्रियां इस दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती हैं और जल, रोली, चावल, फूल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर यमराज का पूजन करती हैं।
हल जूती मिट्टी को दूध में भिगोकर सेमर वृक्ष की डाली में लगाएं और उसको तीन बार अपने शरीर पर फेर कर कुंकुम का टीका लगाएं और दीप प्रज्जवलित करें।
इस प्रकार यमराज की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है तथा परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। दीपदान का महत्व धर्मशास्त्रों में भी उल्लेखित है-
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे। यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति।। अर्थात- कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को यमराज के निमित्त दीपदान करने से मृत्यु का भय समाप्त होता है।
भगवान यमराज के अलावा धनतेरस पर भगवान धन्वन्तरि का भी पूजन होता है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार देवताओं व दैत्यों ने जब समुद्र मंथन किया तो उसमें से कई रत्न निकले।
समुद्र मंथन के अंत में भगवान धनवंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। उस दिन कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी ही थी।
इसलिए तब से इस तिथि को भगवान धनवंतरि का प्रकटोत्सव मनाए जाने का चलन प्रारंभ हुआ।
पुराणों में धनवंतरि को भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना गया है।
पूजन विधि- सर्वप्रथम नहाकर साफ वस्त्र धारण करें। भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धन्वन्तरि का आह्वान इस मंत्र से करें-
सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं, अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।
इसके पश्चात पूजन स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़ें।
भगवान धन्वन्तरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के बर्तन में खीर का भोग लगाएं। (अगर चांदी का पात्र उपलब्ध न हो तो अन्य पात्र में भी भोग लगा सकते हैं।) इसके बाद पुन: आचमन के लिए जल छोड़ें।
मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। भगवान धन्वन्तरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वन्तरि को अर्पित करें।
रोग नाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें
ॐ रं रूद्र रोग नाशाय धनवंतर्ये फट्।।
इसके बाद भगवान धनवंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन के अंत में कर्पूर आरती करें।
धनतेरस पर बर्तन खरीदने का महत्व है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय धनवंतरि हाथ में अमृत का कलश लेकर निकले थे।
इस कलश के लिए देवताओं और दानवों में भारी युद्ध भी हुआ था। इस कलश में अमृत था और इसी से देवताओं को अमरत्व प्राप्त हुआ। तभी से धनतेरस पर प्रतीक स्वरूप बर्तन खरीदने की परंपरा है।
इस बर्तन की भी पूजा की जाती है और खुद व परिवार की बेहतर सेहत के लिए प्रार्थना की जाती है।
धनतेरस के पावन पर्व की पावन आप सभी भाईयो और बहनो के जीवन में आरोग्य और सौभाग्य प्राप्ति की भगवान धन्वन्तरि से कामना करता हूँ
शुभ महूर्त - सोना, चाँदी, बर्तन,बही खता, ट्रक, मोटर,कार,इंजन,मोटर साइकल आदि!!
भाग्योदय के लिए क्या करें
आज भगवान धन्वन्तरि का पूजन करे।
और घी का दीपक प्रज्वलित करे। समस्त भारत भूखंड के प्रत्येक कोने में दीपावली के दो दिन पूर्व हम समस्त भारतवासी धनतेरस पर्व को किसी न किसी रूप में मनाते हैं।
यह महापर्व कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भारत में ही नहीं अपितु सारे विश्व में वैद्य समाज द्वारा भगवान धन्वन्तरि की पूजा-अर्चना कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट कर मनाया जाता है तथा उनसे यह प्रार्थना की जाती है कि वे समस्त विश्व को निरोग कर समग्र मानव समाज को रोग विहीन कर उन्हें दीर्घायुष्य प्रदान करें।
वहीं दूसरी ओर समस्त नर-नारी उनकी स्मृति में धन्वन्तरि त्रयोदशी को नए बर्तन, आभूषण आदि खरी कर उन्हें शुभ एवं मांगलिक मानकर उनकी पूजा करते हैं। उनके मन में यह एक दृढ़ धारणा तथा विश्वास रहता है कि वह वर्तन तथा आभूषण हमें श्रीवृद्धि के साथ धन-धान्य से संपन्न रखेगा तथा कभी रिक्तता का आभास नहीं होगा।
चंचल लाभ व अमृत शुभ के चोधड़िये में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण गहने प्रॉपर्टी आदी खरीदना शुभफलदाई है!!
नोट,,,,,,,,,आज प्रीति योग में रात्रि काल में पीपल के पेड़ में तेल का दीपक करना शुभफलदायी
पॉच दिन तक मनाएँ उत्सव
धन त्रयोदशी
जिन लोगो का रोग समाप्त नही हो रहा वे ,जिनको अकाल मृत्यु का दोष निवारण करने भगवान धनवन्तरी के साथ दीपदान करे
लक्ष्मीपूजन करे !
मृत्युना पाश हस्तेन कालेन भार्यया सह !
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतामिति ||
रूप चौदस,,,,प्रात: सूर्योदय के पहले उठकर तेलमालिश करे,उबटन लगाए,अपामार्ग से दातुन करे ,स्नान
जिनको प्राकृतिक सुंदरता प्राप्त करनी हो या जो व्यक्ति पापनाश हेतु प्रयासरत हो ,जिसको मृत्यु का भय सता रहा हो वे प्रदोष के समय चारबत्ती वाला दीपक जलाकर निम्न मंत्र से दीपदान करे.
दत्तोदीप चतुर्दश्यां नरक प्रीतयेमया |
चतुर्वर्ती समायुक्त:सर्वपापनुत्तये ||
अमावस,,,,दीपमालिका जलाकर यमराज के निमित्त दीपदान करे |धनदा माता का पूजन करे !
अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने
धनंमे जुषतां देवि सर्व कामांश्च देहि मे ||
पुत्र पौत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वत्तरी रथम्
प्रजानां भवसिमाता आयुष्मन्तं करोतु मे ||
प्रतिपदा,,,,,,,,,गोवर्धन पूजा इस पर्व को गोसंरक्षणपूजा के रूप मे मनाएँ !निम्नमंत्र से गौ पूजा करे
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक |
विष्णुवाहकृतोच्छाय गवां रक्षण प्रदोभव||
यमद्वितीया
भैयादूज के दिन भाई की आरोग्यता और आयुष्य कामना हेतु बहने यमराज-यमुना-चित्रगुप्त का पूजन कर भाई का पूजन करे !जो बहने भाई को घर पर बुलाकर उनका आशीर्वाद लेती हे उनके घर धनधान्य सौभाग्य की प्राप्ति होती है !
दीवाली के दौरान लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किए जाने वाले उपाय
16 पाठ धनतेरस से दीपावली तक रोज करे ।
॥वैभव प्रदाता श्री सूक्त॥
हरिः ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्र​जाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥३॥
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥४॥
प्रभासां यशसा लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥५॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥६॥
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥७॥
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद गृहात् ॥८॥
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥९॥
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥१०॥
कर्दमेन प्रजाभूता सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥११॥
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस गृहे ।
नि च देवी मातरं श्रियं वासय कुले ॥१२॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१३॥
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१४॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम् ॥१५॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥१६॥
पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षी पद्मासम्भवे ।
त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥१७॥
अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने ।
धनं मे जुषताम् देवी सर्वकामांश्च देहि मे ॥१८॥
पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥१९॥
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नुते ॥२०॥
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु ॥२१॥
न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः ।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥२२॥
वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।
रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥२३॥
पद्मप्रिये पद्म पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥२४॥
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।
गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ॥२५॥
लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥२६॥
लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥२७॥
श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥२८॥
सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥२९॥
वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीस्वरीं त्वाम् ॥३०॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥३१॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥३२॥
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
विष्णोः प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥३३॥
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥३४॥
श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महियते ।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥३५॥
ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥३६॥
य एवं वेद ॐ महादेव्यै च विष्णुपत्नीं च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥३७॥
भगवद चिन्तन
धनत्रयोदशी समुद्र मंथन के समय हाथों में अमृत कलश लिए भगवान विष्णु के धन्वन्तरि रूप में प्रगट होने का पावन दिवस है। भगवान् धन्वन्तरि आयुर्वेद के जनक और वैद्य के रूप में भी जाने जाते हैं।
आज के दिन नई वस्तुएं खरीदने का भी प्रचलन है। घर में नया सामान आए ये अच्छी बात है मगर हमारे जीवन में कुछ नए विचार, नए उत्साह, नए संकल्प आएं यह भी जरुरी है। घर की समृद्धि के लिए आपके हार और कार ही नहीं आपके विचार भी सुंदर होने चाहिए।
हम वैष्णवों का सबसे बड़ा धन तो श्री कृष्ण ही हैं। वो धन है तो हम वास्तविक धनवान हैं। कृष्ण रुपी धन के विना दरिद्रता कभी ख़तम नहीं होती। धन- ते- रस ..... हो सकता है कुछ लोगों को ऐसा लगता हो। पर हम तो ऐसा सोचते हैं ....
धन (कृष्ण) - ते - रस।
धन त्रयोदशी की सभी को बधाई।
लाल आसन पर बैठ कर उतर के तरफ मुख कर के जाप करे ।
गणेश जी का मंत्र ॐ गौं गणेशं ऋणं छिंदी वरेण्यम् हूँ फट् 21 माला
लक्ष्मी जी का मंत्र ॐ श्री श्रीयै नमः 21
दिपावली के पांच महोत्सव पर ध्यान दे, पंच महोत्सव के दिनों में ये चीजें कभी किसी को भेंट न करें-
घर में गणेश जी और महालक्ष्मी की मूर्त स्वयं तो लाएं लेकिन किसी को गिफ्ट न दें।
पंच महोत्सव में 5 धातुओं से बनी कोई भी चीज तोहफे में न दें जैसे सोना, चांदी, तांबा, कांसा और पीत्तल लेकिन इसे अपने घर में जरूर लाएं।
स्टील और लोहे से बनी कोई भी चीज गिफ्ट करें लेकिन अपने घर न लाएं।
रेशमी कपड़ें अपने लिए खरीदें लेकिन गिफ्ट नहीं करें।
धनतेरस के दिन कुछ भी शापिंग करें तो अपने लिए खरीदें, किसी के लिए भेंट न लें।
तेल, लकड़ी से इस्तेमाल होने वाली कोई वस्तु न खरीदें।
काले रंग का कोई भी सामान न ही अपने घर लाएं और न ही गिफ्ट करें।
सूरज ढलने के बाद घर में झाड़ू-पोंछा न करे ।
दीपावली पर लक्ष्मी प्राप्ति के सरल उपाय
दीपावली के दिन प्रातः काल मां लक्ष्मी के मंदिर जाकर लक्ष्मी जी को पोशाक चढ़ाएं, खुशबुदार गुलाब की अगरबत्ती जलाएं, धन प्राप्ति का मार्ग खुलेगा।
दीपावली के दिन प्रातः गन्ना लाकर रात्रि में लक्ष्मी पूजन के साथ गन्ने की भी पूजा करने से आपकी धन संपत्ति में वृद्धि होगी। - दीपावली की रात पूजन के पश्चात् नौ गोमती चक्र तिजोरी में स्थापित करने से वर्षभर समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है।
अगर घर में धन नहीं रूकता तो नरक चतुर्दशी के दिन श्रद्धा और विश्वास के साथ लाल चंदन, गुलाब के फूल व रोली लाल कपड़े में बांधकर पूजें और फिर उसे अपनी तिजोरी में रखें, धन घर में रूकेगा और बरकत होगी।
दीपावली से आरंभ करते हुए प्रत्येक अमावस्या बकी शाम किसी अपंग भिखारी या विकलांग व्यक्ति को भोजन कराएं तो सुख, समृद्धि में वृद्धि होती है।
काफी प्रयास के बाद भी नौकरी न मिलने पर दीपावली की शाम लक्ष्मी पूजन के समय थोड़ी सी चने की दाल लक्ष्मीजी पर छिड़क कर पूजा समाप्ति के पश्चात इकट्ठी करके पीपल के पेड़ पर समर्पित कर दें।
दुकानदार, व्यवसायी दीपावली की रात्रि को साबुत फिटकरी का टुकड़ा लेकर उसे दुकान में चारों तरफ घुमाएं और किसी चैराहे पर आकर उसे उत्तर दिशा की तरफ फेंक दें। ऐसा करने से ज्यादा ग्राहक आएंगे और धन लाभ में वृद्धि होगी।
दीपावली की रात पांच साबुत सुपारी, काली हल्दी, पांच कौड़ी लेकर गंगाजल से धोकर लाल कपड़े में बांधकर दीपावली पूजन के समय चांदी की कटोरी या थाली में रखकर पूजा करें, अगले दिन सवेरे अपनी तिजोरी में रखें। मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। पाठकगण दीपावली की रात्रि में उपाय करके देखें, मां लक्ष्मी की कृपा अवश्य होगी। हम दीपावली का त्यौहार क्यूँ मनाते है?
इसका अधिकतर उत्तर मिलता है राम जी के वनवास से लौटने की ख़ुशी में।
सच है पर अधूरा।। अगर ऐसा ही है तो फिर हम सब दीपावली पर भगवन राम की पूजा क्यों नहीं करते? लक्ष्मी जी और गणेश भगवन की क्यों करते है?
सोच में पड़ गए न आप भी।
इसका उत्तर आप तक पहुँचाने का प्रयत्न कर रहा हूँ अगर कोई त्रुटि रह जाये तो क्षमा कीजियेगा।
देवी लक्ष्मी जी का प्राकट्य
देवी लक्ष्मी जी कार्तिक मॉस की अमावस्या के दिन समुन्दर मंथन में से अवतार लेकर प्रकट हुई थी।
भगवन विष्णु द्वारा लक्ष्मी जी को बचाना
भगवन विष्णु ने आज ही के दिन अपने पांचवे अवतार वामन अवतार में देवी लक्ष्मी को राजा बालि से मुक्त करवाया था।
नरकासुर वध कृष्ण द्वारा
इस दिन भगवन कृष्ण ने राक्षसों के राजा नरकासुर का वध कर उसके चंगुल से 16000 औरतों को मुक्त करवाया था। इसी ख़ुशी में दीपावली का त्यौहार दो दिन तक मनाया गया। इसे विजय पर्व के नाम से भी जाना जाता है।
पांडवो की वापसी,
महाभारत में लिखे अनुसार कार्तिक अमावस्या को पांडव अपना 12 साल का वनवास काट कर वापिस आये थे जो की उन्हें चौसर में कौरवो द्वारा हरये जाने के परिणाम स्वरूप मिला था। इस प्रकार उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई।
राम जी की विजय पर
रामायण के अनुसार ये चंद्रमा के कार्तिक मास की अमावस्या के नए दिन की शुरुआत थी जब भगवन राम माता सीता और लक्ष्मण जी अयोध्या वापिस लौटे थे रावण और उसकी लंका का दहन करके। अयोध्या के नागरिकों ने पुरे राज्य को इस प्रकार दीपमाला से प्रकाशित किया था जैसा आजतक कभी भी नहीं हुआ था।
 
 Gyanchand Bundiwal
Astrologer and Gemologist.
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