Wednesday 13 November 2019

गुरु नानक जयंती

गुरु नानक जयंती कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जी का जन्मदिन मनाया जाता है| 15 अप्रैल 1469 को पंजाब के तलवंडी जो कि अब पाकिस्तान में हैं
और जिसे ननकाना साहिब के नाम से भी जाना जाता है, में गुरु नानक ने माता तृप्ता व कृषक पिता कल्याणचंद के घर जन्म लिया| गुरू नानक जी की जयंती गुरुपूरब या गुरु पर्व सिख समुदाय में मनाया जाने वाला सबसे सम्मानित और महत्त्वपूर्ण दिन है| गुरू नानक जयंती के अवसर पर गुरु नानक जी के जन्म को स्मरण करते हैं| नानक सिखों के प्रथम (आदि गुरु) हैं| इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं | लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है| नानक दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - अनेक गुण अपने आप में समेटे हुए थे
"अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बन्दे
एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे"
सभी इंसान उस ईश्वर के नूर से ही जन्मे हैं, इसलिये कोई बड़ा छोटा नहीं है कोई आम या खास नहीं है | सब बराबर हैं
छुटपन में ही गुरूजी में प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे| लड़कपन में ही ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहने लगे| इनका पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता था| महज 7-8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया, क्योंकि भगवत प्राप्ति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक हार मान गए तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ आये| जिसके बाद अधिक समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे| बचपन में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गाँव वाले इन्हें दिव्य आत्मा मानने लगे| नानकजी में सर्व प्रथम श्रद्धा रखने वाले उनके गांव के शासक राय बुलार और उनकी बहन नानकी थीं
गुरु नानक देव जी ने भक्ति के अमृत भक्ति रस के बारे में बात की| गुरुजी भक्ति योग में पूरी तरह से विसर्जित एक भक्त थे| गुरु नानक देव जी ने कहा, “सांसारिक मामलों में इतने भी मत उलझों कि आप ईश्वर के नाम को भूल जाओ| उन्होंने सनातन मत की मूर्तिपूजा के विपरीत परमात्मा की उपासना का एक अलग मार्ग प्रसस्त किया| नानकजी ने हिंदू धर्म मे फैली कुरीतियों का सदैव विरोध किया| उनके दर्शन सूफियों जैसे थे| साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नज़र डाली| संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है| गुरूजी के उपदेश का सार यही है कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू तथा मुसलमान दोनों के लिये है|

एक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि।
सालाही सालाही एती सुरति न पाइया।
नदिआ अते वाह पवही समुंदि न जाणी अहि।
जगत में झूठी देखी प्रीत।
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत।।
मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत।।
धनु धरनी अरु संपति जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चाले, कहा ताहि लपटाई।।
पवणु गुरु पानी पिता माता धरति महतु।
दिवस रात दुई दाई दाइआ खेले सगलु जगतु।।
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि ने बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई।।
हुकमी उत्तम नीचु हुकमि लिखिच दुखसुख पाई अहि।
इकना हुकमी बक्शीस इकि हुकमी सदा भवाई अहि।।
हरि बुनि तेरो को न सहाई।
काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई।।
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत।।
गुरुजी की दस शिक्षाएं
1 - परम पिता परमेश्वर एक हैं
2 - सदैव एक ही ईश्वर की आराधना करो
3 - ईश्वर सब जगह और हर प्राणी में विद्यमान हैं
4 - ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भी भय नहीं रहता
5 - ईमानदारी और मेहनत से पेट भरना चाहिए
6 - बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न ही किसी को सताएं
7 – हमेशा खुश रहना चाहिए, ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा याचना करें
8 - मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरत मंद की सहायता करें
9 - सभी को समान नज़रिए से देखें, स्त्री-पुरुष समान हैं
10 - भोजन शरीर को जीवित रखने के लिए आवश्यक है| परंतु लोभ-लालच के लिए संग्रह करने की आदत बुरी है।  Gyanchand Bundiwal.
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Thursday 7 November 2019

तुलसी विवाह, 20 सरलतम

तुलसी विवाह, 20 सरलतम बातें
1 शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
2 तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।
3 तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।  Image may contain: one or more people and plant
4 तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
5 गमले में सालिग्राम जी रखें।
6 सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।
7 तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
8 गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
9 अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।
10 देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।
11 कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
12 प्रसाद चढ़ाएं।
13 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
14 प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें।
15 प्रसाद वितरण अवश्य करें।
16 पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-
उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।
17 इस लोक आह्वान का भोला सा भावार्थ है - हे सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें।
1 8 इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी देव को जगाया जाता है-
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
19 तुलसी नामाष्टक पढ़ें
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता।।
20. मां तुलसी से उनकी तरह पवित्रता का वरदान मांगें।
देवउठनी एकादशी है। आज के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम से कराने की परंपरा है। शालिग्राम विष्णु जी के स्वरूप हैं। यह पृथ्वी पर पत्थर के रूप में विराजमान हैं। विष्णु के वरदान के कारण शालिग्राम के पत्थर नेपाल में बहने वाली गंडकी नदी से ही प्राप्त होते हैं। यह नदी तुलसी का ही एक रूप है। माना जाता है कि इनकी पूजा से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
क्या है तुलसी से जुड़ी कथा
शास्त्रों के अनुसार तुलसी पतिव्रता और धार्मिक आचरण वाली स्त्री थी। इसका विवाह शंखचूड़ नाम के शक्तिशाली दैत्य से हुआ था। एक बार शंखचूड़ और देवताओं के बीच युद्ध हुआ। शंखचूड़ ने सभी देवताओं को पराजित कर दिया। लेकिन कोई भी देवता उसे मार पाने में सक्षम नहीं हो पाए, क्योंकि शंखचूड़ के लिए तुलसी का सतीत्व रक्षा कवच बना हुआ था।
शंखचूड़ से त्रस्त होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे। तब विष्णु ने बताया कि स्वयं उन्होंने ही शंखचूड़ के पिता दंभ को ऐसे पराक्रमी पुत्र का वरदान दिया था। इस कारण वे शंखचूड़ का वध नहीं कर सकते हैं। विष्णु ने सभी देवताओं को शिवजी से प्रार्थना करने के लिए कहा।इसके बाद सभी देवता शिवजी के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की। शिवजी देवताओं और सृष्टि के कल्याण के लिए तैयार हो गए। शिवजी भी तुलसी के सतीत्व रूपी रक्षा कवच के कारण असुरराज को खत्म नहीं कर पा रहे थे।
तुलसी ने दिया विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप
शंखचूड़ को परास्त करने के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और तुलसी के शील का हरण कर लिया। इस प्रकार तुलसी का सतीत्व भंग हो गया। इस कारण शंखचूड़ का रक्षा कवच भी खत्म हो गया और शिवजी ने असूर का संहार कर दिया।
जब तुलसी को यह बात पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु ने तुलसी के श्राप को स्वीकार किया और कहा कि तुम पृथ्वी पर तुलसी पौधे तथा गंडकी नदी के रूप में सदैव रहोगी। भक्तजन तुम्हारा और मेरा विवाह करवाकर पुण्य लाभ अर्जित करेंगे। गंडकी नदी व तुलसी का पौधा तुलसी का ही रूप है। गंडकी नदी में पाई जाने वाली शालिग्राम शिला को ही भगवान विष्णु माना जाता था।। 

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Tuesday 5 November 2019

कंस वध भगवान श्री कृष्ण और बलराम

कंस वध भगवान श्री कृष्ण और बलराम ने चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल और तोशल ।
इन पाँचों पहलवानो को मारा। इसके बाद जो बचे वो जान बचाकर भाग गए। उनके भाग जाने पर भगवान श्रीकृष्ण और बलरामजी अपने दोस्त ग्वाल-बालों को खींच-खींचकर उनके साथ भिड़ने और नाच-नाचकर भेरीध्वनि के साथ अपने नूपुरों की झनकार को मिलाकर मल्लक्रीडा । कुश्ती के खेल करने लगे।
भगवान श्रीकृष्ण और बलराम की इस अद्भुत लीला को देखकर सभी दर्शकों को बड़ा आनन्द हुआ। श्रेष्ठ ब्राम्हण और साधु पुरुष ‘धन्य है, धन्य है, ऐसा कहकर आशीर्वाद दे रहे थे और प्रसन्न हो रहे थे। लेकिन कंस को बहुत दुःख हुआ।
कंस चिढ गया। जब उसके प्रधान पहलवान मार डाले गये और बचे हुए सब-के-सब भाग गये, तब भोजराज कंस ने अपने बाजे-गाजे बंद करा दिये और अपने सेवकों को यह आज्ञा दी ।‘अरे, वसुदेव के इन दुश्चरित्र लड़कों को नगर से बाहर निकाल दो। गोपों का सारा धन छीन लो और दुर्बुद्धि नन्द को कैद कर लो। वसुदेव भी बड़ा कुबुद्धि और दुष्ट है। उसे शीघ्र मार डालो और उग्रसेन मेरा पिता होने पर भी अपने अनुयायियों के साथ शत्रुओं से मिला हुआ है। इसलिये उसे भी जीता मत छोडो’।
जब कंस इस तरह की बकवास कर रहा था भगवान से रहा नही गया और अविनाशी श्रीकृष्ण कुपित होकर फुर्ती से पुरे वेग से उछलकर लीला से ही उसके ऊँचे मंच पर जा चढ़े।
कंस ने भगवान को देखा तो उसे भगवान के रूप में साक्षात मृत्यु दिखाई पड़ रही है। भगवान कृष्ण उसके सामने आये तब वह सहसा अपने सिंहासन से उठ खड़ा हुआ और हाथ में ढाल तथा तलवार उठा ली । हाथ में तलवार लेकर वह चोट करने का मौका ढूँढता हुआ पैंतरा बदलने लगा। आकाश में उड़ते हुए बाज की तरह वह कभी दायीं ओर जाता तो कभी बायीं ओर
कृष्ण द्वारा कंस का उद्धार
परन्तु भगवान से कौन बच सकता है। जैसे गरुड़ साँप को पकड़ लेते हैं, वैसे ही भगवान ने बलपूर्वक उसे पकड़ लिया। भगवान को आज याद आ रहा है की इस कंस ने मेरी माँ देवकी के केश पकडे थे और पिता को जेल में डाला था। इसने मेरे माता पिता, और प्रजा के साथ बहुत अन्याय किया है। इसी समय कंस का मुकुट गिर गया और भगवान ने उसके केश पकड़कर उसे भी उस ऊँचे मंच से रंगभूमि में गिरा दिया। और फिर सम्पूर्ण त्रिलोकी का भार लेकर भगवान श्री कृष्ण उसके ऊपर कूद गए। भगवान के कूदते ही कंस की मृत्यु हो गई।
सबके देखते-देखते भगवान श्रीकृष्ण कंस की लाश को धरती पर उसी प्रकार घसीटने लगे, जैसे सिंह हाथी को घसीटे। सबके मुँह से ‘हाय! हाय!’ की बड़ी ऊँची आवाज सुनायी पड़ी ।
कंस हमेशा बड़ी घबड़ाहट के साथ श्रीकृष्ण का ही चिन्तन करता रहता था। वह खाते-पीते, सोते-चलते, बोलते और साँस लेते सब समय अपने सामने चक्र हाथ में लिये भगवान श्रीकृष्ण को ही देखता रहता था। इस नित्य चिन्तन के फलस्वरूप—वह चाहे द्वेषभाव से ही क्यों न किया गया हो । उसे भगवान के उसी रूप की प्राप्ति हुई, सारुप्य मुक्ति हुई, जिसकी प्राप्ति बड़े-बड़े तपस्वी योगियों के लिये भी कठिन है। भगवान की दयालुता देखिये, भगवान ने इस कंस को भी मुक्ति प्रदान कर दी।
जब कंस मरा तो कंस के कंक और न्यग्रोध आदि आठ छोटे भाई थे। वे अपने बड़े भाई का बदला लेने के लिये क्रोध से आगबबूले होकर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम की ओर दौड़े । जब भगवान बलरामजी ने देखा कि वे बड़े वेग से युद्ध के लिये तैयार होकर दौड़े आ रहे हैं, तब उन्होंने परिघ उठाकर उन्हें वैसे ही मार डाला, जैसे सिंह पशुओं को मार डालता है ।
उस समय आकाश में दुन्दुभियाँ बजने लगीं। भगवान के विभूतिस्वरुप ब्रम्हा, शंकर आदि देवता बड़े आनन्द से पुष्पों की वर्षा करते हुए उनकी स्तुति करने लगे। अप्सराएँ नाचने लगीं ।
महाराज! कंस और उसके भाइयों कि स्त्रियाँ अपने आत्मीय स्वजनों की मृत्यु से अत्यन्त दुःखित हुईं। वे अपने सिर पीटती हुई आँखों में आँसू भरे वहाँ आयीं । वीरशय्या पर सोये हुए अपने पतियों से लिपटकर वे शोकग्रस्त हो गयीं और बार-बार आँसू बहाती हुई ऊँचे स्वर से विलाप करने लगीं । ‘हा नाथ! हे प्यारे! हे धर्मज्ञ! हे करुणामय! हे अनाथवत्सल! आपकी मृत्यु से हम सबकी मृत्यु हो गयी। आज हमारे घर उजड़ गये। हमारी सन्तान अनाथ हो गयी । पुरुषश्रेष्ठ! इस पुरी के आप ही स्वामी थे। आपके विरह से इसके उत्सव समाप्त हो गये और मंगलचिन्ह उतर गये।
यह हमारी ही भाँति विधवा होकर शोभाहीन हो गयी । स्वामी! आपने निरपराध प्राणियों के साथ घोर द्रोह किया था, अन्याय किया था; इसी से आपकी यह गति हुई। सच है, जो जगत् के जीवों से द्रोह करता है, उनका अहित करता है, ऐसा कौन पुरुष शान्ति पा सकता है ? ये भगवान श्रीकृष्ण जगत् के समस्त प्राणियों की उत्पत्ति और प्रलय के आधार हैं। यही रक्षक भी हैं। जो इसका बुरा चाहता है, इनका तिरस्कार करता है; वह कभी सुखी नहीं हो सकता ।
श्रीशुकदेवजी कहते हैं ।परीक्षित! भगवान श्रीकृष्ण ही सारे संसार के जीवनदाता हैं। उन्होंने रानियों को ढाढ़स बँधाया, सान्त्वना दी; फिर लोक-रीति के अनुसार मरने वालों का जैसा क्रिया-कर्म होता है, वह सब कराया।



वृंदावन में कालिया और धनुक का सामना करने के कारण दोनों भाइयों की ख्याति के चलते कंस समझ गया था कि ज्योतिष भविष्यवाणी अनुसार इतने बलशाली किशोर तो वसुदेव और देवकी के पुत्र ही हो सकते हैं। तब कंस ने दोनों भाइयों को पहलवानी के लिए निमंत्रण दिया, क्योंकि कंस चाहता था कि इन्हें पहलवानों के हाथों मरवा दिया जाए, लेकिन दोनों भाइयों ने पहलवानों के शिरोमणि चाणूर और मुष्टिक को मारकर कंस को पकड़ लिया और सबके देखते-देखते ही उसको भी मार दिया। कंस का वध करने के पश्चात कृष्ण और बलदेव ने कंस के पिता उग्रसेन को पुन: राजा बना दिया। उग्रसेन के 9 पुत्र थे, उनमें कंस ज्येष्ठ था। उनके नाम हैं- न्यग्रोध, सुनामा, कंक, शंकु अजभू, राष्ट्रपाल, युद्धमुष्टि और सुमुष्टिद। उनके कंसा, कंसवती, सतन्तू, राष्ट्रपाली और कंका नाम की 5 बहनें थीं। अपनी संतानों सहित उग्रसेनकुकुर-वंश में उत्पन्न हुए कहे जाते हैं और उन्होंने व्रजनाभ के शासन संभालने के पूर्व तक राज किया। कृष्ण बचपन में ही कई आकस्मिक दुर्घटनाओं का सामना करने तथा किशोरावस्था में कंस के षड्यंत्रों को विफल करने के कारण बहुत लोकप्रिय हो गए थे। कंस के वध के बाद उनका अज्ञातवास भी समाप्त हुआ और उनके सहित राज्य का भय भी। तब उनके पिता और पालक ने दोनों भाइयों की शिक्षा और दीक्षा का इंतजाम किया Gyanchand Bundiwal. Kundan Jewellers We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices. हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष होल सेल भाव में मिलते हैं और ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 website www.kundanjewellersnagpur.com

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