तुलसी विवाह, 20 सरलतम बातें
1 शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
2 तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।
3 तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।
4 तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
5 गमले में सालिग्राम जी रखें।
6 सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।
7 तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
8 गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
9 अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।
10 देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।
11 कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
12 प्रसाद चढ़ाएं।
13 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
14 प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें।
15 प्रसाद वितरण अवश्य करें।
16 पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-
उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।
17 इस लोक आह्वान का भोला सा भावार्थ है - हे सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें।
1 8 इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी देव को जगाया जाता है-
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥'
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
19 तुलसी नामाष्टक पढ़ें
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता।।
20. मां तुलसी से उनकी तरह पवित्रता का वरदान मांगें।
देवउठनी एकादशी है। आज के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम से कराने की परंपरा है। शालिग्राम विष्णु जी के स्वरूप हैं। यह पृथ्वी पर पत्थर के रूप में विराजमान हैं। विष्णु के वरदान के कारण शालिग्राम के पत्थर नेपाल में बहने वाली गंडकी नदी से ही प्राप्त होते हैं। यह नदी तुलसी का ही एक रूप है। माना जाता है कि इनकी पूजा से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
क्या है तुलसी से जुड़ी कथा
शास्त्रों के अनुसार तुलसी पतिव्रता और धार्मिक आचरण वाली स्त्री थी। इसका विवाह शंखचूड़ नाम के शक्तिशाली दैत्य से हुआ था। एक बार शंखचूड़ और देवताओं के बीच युद्ध हुआ। शंखचूड़ ने सभी देवताओं को पराजित कर दिया। लेकिन कोई भी देवता उसे मार पाने में सक्षम नहीं हो पाए, क्योंकि शंखचूड़ के लिए तुलसी का सतीत्व रक्षा कवच बना हुआ था।
शंखचूड़ से त्रस्त होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे। तब विष्णु ने बताया कि स्वयं उन्होंने ही शंखचूड़ के पिता दंभ को ऐसे पराक्रमी पुत्र का वरदान दिया था। इस कारण वे शंखचूड़ का वध नहीं कर सकते हैं। विष्णु ने सभी देवताओं को शिवजी से प्रार्थना करने के लिए कहा।इसके बाद सभी देवता शिवजी के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की। शिवजी देवताओं और सृष्टि के कल्याण के लिए तैयार हो गए। शिवजी भी तुलसी के सतीत्व रूपी रक्षा कवच के कारण असुरराज को खत्म नहीं कर पा रहे थे।
तुलसी ने दिया विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप
शंखचूड़ को परास्त करने के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और तुलसी के शील का हरण कर लिया। इस प्रकार तुलसी का सतीत्व भंग हो गया। इस कारण शंखचूड़ का रक्षा कवच भी खत्म हो गया और शिवजी ने असूर का संहार कर दिया।
जब तुलसी को यह बात पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु ने तुलसी के श्राप को स्वीकार किया और कहा कि तुम पृथ्वी पर तुलसी पौधे तथा गंडकी नदी के रूप में सदैव रहोगी। भक्तजन तुम्हारा और मेरा विवाह करवाकर पुण्य लाभ अर्जित करेंगे। गंडकी नदी व तुलसी का पौधा तुलसी का ही रूप है। गंडकी नदी में पाई जाने वाली शालिग्राम शिला को ही भगवान विष्णु माना जाता था।।
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1 शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
2 तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।
3 तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।
4 तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
5 गमले में सालिग्राम जी रखें।
6 सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।
7 तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
8 गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
9 अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।
10 देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।
11 कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
12 प्रसाद चढ़ाएं।
13 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
14 प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें।
15 प्रसाद वितरण अवश्य करें।
16 पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-
उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।
17 इस लोक आह्वान का भोला सा भावार्थ है - हे सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें।
1 8 इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी देव को जगाया जाता है-
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥'
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
19 तुलसी नामाष्टक पढ़ें
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता।।
20. मां तुलसी से उनकी तरह पवित्रता का वरदान मांगें।
देवउठनी एकादशी है। आज के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम से कराने की परंपरा है। शालिग्राम विष्णु जी के स्वरूप हैं। यह पृथ्वी पर पत्थर के रूप में विराजमान हैं। विष्णु के वरदान के कारण शालिग्राम के पत्थर नेपाल में बहने वाली गंडकी नदी से ही प्राप्त होते हैं। यह नदी तुलसी का ही एक रूप है। माना जाता है कि इनकी पूजा से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
क्या है तुलसी से जुड़ी कथा
शास्त्रों के अनुसार तुलसी पतिव्रता और धार्मिक आचरण वाली स्त्री थी। इसका विवाह शंखचूड़ नाम के शक्तिशाली दैत्य से हुआ था। एक बार शंखचूड़ और देवताओं के बीच युद्ध हुआ। शंखचूड़ ने सभी देवताओं को पराजित कर दिया। लेकिन कोई भी देवता उसे मार पाने में सक्षम नहीं हो पाए, क्योंकि शंखचूड़ के लिए तुलसी का सतीत्व रक्षा कवच बना हुआ था।
शंखचूड़ से त्रस्त होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे। तब विष्णु ने बताया कि स्वयं उन्होंने ही शंखचूड़ के पिता दंभ को ऐसे पराक्रमी पुत्र का वरदान दिया था। इस कारण वे शंखचूड़ का वध नहीं कर सकते हैं। विष्णु ने सभी देवताओं को शिवजी से प्रार्थना करने के लिए कहा।इसके बाद सभी देवता शिवजी के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की। शिवजी देवताओं और सृष्टि के कल्याण के लिए तैयार हो गए। शिवजी भी तुलसी के सतीत्व रूपी रक्षा कवच के कारण असुरराज को खत्म नहीं कर पा रहे थे।
तुलसी ने दिया विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप
शंखचूड़ को परास्त करने के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और तुलसी के शील का हरण कर लिया। इस प्रकार तुलसी का सतीत्व भंग हो गया। इस कारण शंखचूड़ का रक्षा कवच भी खत्म हो गया और शिवजी ने असूर का संहार कर दिया।
जब तुलसी को यह बात पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु ने तुलसी के श्राप को स्वीकार किया और कहा कि तुम पृथ्वी पर तुलसी पौधे तथा गंडकी नदी के रूप में सदैव रहोगी। भक्तजन तुम्हारा और मेरा विवाह करवाकर पुण्य लाभ अर्जित करेंगे। गंडकी नदी व तुलसी का पौधा तुलसी का ही रूप है। गंडकी नदी में पाई जाने वाली शालिग्राम शिला को ही भगवान विष्णु माना जाता था।।
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