Sunday 20 May 2018

विन्ध्येश्वरी माँ विन्ध्येश्वरी, नमो नमो

माँ विन्ध्येश्वरी विन्ध्येश्वरी, नमो नमो,https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5
,साधना एवं मंत्र तुरंत सफलता के लिए माँ विंध्यवासिनी की पूजा करना चाहिए।  यह साधना अत्यंत गोपनीय है। इसके माध्यम से किसी भी कार्य में तुरंत सफलता प्राप्त होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो तुरंत सफलता प्राप्ति के लिए विंध्यवासिनी साधना उपयोगी होती है।
विनियोग
ॐ अस्य विंध्यवासिनी मन्त्रस्य
विश्रवा ऋषि अनुष्टुपछंद: विंध्यवासिनी
देवता मम अभिष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।
न्यास
ॐ विश्रवा ऋषये नम: शिरसि
अनुष्टुप छंदसे नम: मुखे ।।2।।
विंध्यवासिनी देवतायै नम: हृदि ।।3।।
विनियोगाय नम: सर्वांगे ।।4।।
करन्यास
एहं हिं अंगुष्ठाभ्यां नम:।।1।।
यक्षि-यक्षि तर्जनीभ्यां नम:।।2।।
महायक्षि मध्यमाभ्यां नम: ।।3।।
वटवृक्षनिवासिनी अनामिकाभ्यां नम:।।4।।
शीघ्रं मे सर्वसौख्यं कनिष्ठिकाभ्यां नम:।।5।।
कुरू-कुरू स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्यां नम:।।6।।
ध्यान
अरूणचंदन वस्त्र विभूषितम।
सजलतोयदतुल्यन रूरूहाम्।।
स्मरकुरंगदृशं विंध्यवासिनी।
क्रमुकनागलता दल पुष्कराम्।।
प्रयोग विधि
इस महत्वपूर्ण एवं अत्यंत गोपनीय साधना को भाग्यशाली साधक ही कर पाता है। अमावस्या की रात को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर सामने विंध्यवासिनी साधना मंत्र प्रतिष्ठापित करे। सामने की तरफ सात गोल सुपारी रख लें। घी का दीपक एवं 7 अगरबत्ती जलाएँ।
सप्त सुपारी पूजा
ॐ कामदायै नम:।।1।।
ॐ मानदायै नम:।।2।।
ॐ नक्तायै नम: ।।3।।
ॐ मधुरायै नम: ।।4।।
ॐ मधुराननायै नम: ।।5।।
ॐ नर्मदायै नम: ।।6।।
ॐ भोगदायै नम:।।7।।
तत्पश्चात सोने के बेहद बारीक तार से विंध्येश्वरी यंत्र को लपेटें तथा सफलता के लिए प्रार्थना करें। जिस कार्य में तुरंत सफलता चाहिए उसका सिलसिलेवार स्मरण करें। जैसे उस कार्य के आरंभ से लेकर मंत्र साधना तक क्या-क्या उतार-चढ़ाव आए। कितनी बाधाएँ आईं और सफलता के संबंध में आपकी शंकाएँ क्या-क्या हैं।
पूजन के बाद स्फटिक की माला से मंत्र का जाप करें। 11 दिन तक रोज 51 माला मंत्र जप विंध्यवासिनी यंत्र के सामने आवश्यक है।
मंत्र
एह्ये हि यक्षि महायक्षि
विंध्यवासिनी शीघ्रं मे
सर्व तंत्र सिद्धि कुरू-कुरू स्वाहा।
यह साधना 11 दिनों तक नियमित रूप से की जानी चाहिए। सौभाग्यशाली साधकों के मार्ग में साधना के दौरान कोई बाधा नहीं आती। इस साधना के सफल होने के बाद अन्य कोई साधना निष्फल नहीं होती। साथ ही तुरंत सफलता प्राप्ति हेतु यह साधना अत्यंत उपयोगी है।
श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा
नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब । सन्तजनों के काज में करती नहीं विलम्ब ।।
जय जय जय विन्ध्याचल रानी । आदि शक्ति जग विदित भवानी ।।
सिंहवाहिनी जय जग माता । जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता ।।
कष्ट निवारिणि जय जग देवी । जय जय जय असुरासुर सेवी ।।
महिमा अमित अपार तुम्हारी । शेष सहस मुख वर्णत हारी । ।
दीनन के दुख हरत भवानी । नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी ।।
सब कर मनसा पुरवत माता । महिमा अमित जगत विख्याता ।।
जो जन ध्यान तुम्हारो लावे । सो तुरतहि वांछित फल पावे ।।
तु ही वैष्णवी तुही रुद्राणी । तुही शारदा अरु ब्रहमाणी ।।
रमा राधिका श्यामा काली । तुही मात सन्तन प्रतिपाली ।।
उमा माधवी चण्डी ज्वाला । वेगि मोहि पर होहु दयाला ।।
तुही हिंगलाज महारानी । तुही शीतला अरु विज्ञानी ।।
दुर्गा दुर्ग विनाशिनि माता । तुही लक्ष्मी जग सुखदाता ।।
तुही जान्हवी अरु इन्द्राणी । हेमावती अम्ब निर्वाणी ।।
अष्टभुजी वाराहिनि देवी । करत विष्णु शिव जाकर सेवी ।।
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी । भद्रकाली सुन विनय हमारी ।।
वज्रधारिणी शोक विनाशिनी । आयु रक्षिणी विन्ध्यनिवासिनी ।।
जया और विजया बैताली । मातु सुगन्धा अरु विकराली ।।
नाम अनन्त तुम्हार भवानी । बरनै किमि मानुष अज्ञानी ।।
जा पर कृपा मातु तव होई । तो वह करै चहै मन जोई ।।
कृपा करहु मो पर महारानी । सिद्घ करहु अम्बे मम बानी ।।
जो नर धरै मातु कर ध्याना । ताकर सदा होय कल्याना ।।
विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै । जो देवी का जाप करावै ।।
जो नर कहं ऋण होय अपारा । सो नर पाठ करै शत बारा ।।
निश्चय ऋण मोचन होई जाई । जो नर पाठ करै मन लाई ।।
अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावै । या जग में सो अति सुख पावै ।।
जाको व्याधि सतावै भाई । जाप करत सब दूरि पराई ।।
जो नर अति बन्दी महं होई । बार हजार पाठ कर सोई ।।
निश्चय बन्दी ते छुटि जाई । सत्य वचन मम मानहु भाई ।।
जा पर जो कछु संकट होई । निश्चय देविहिं सुमिरै सोई ।।
जो नर पुत्र होय नहि भाई । सो नर या विधि करे उपाई ।।
पाँच वर्ष सो पाठ करावै । नौरातर में विप्र जिमावै ।।
निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी । पुत्र देहि ता कहं गुणखानी ।।
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै । विधि समेत पूजन करवावै ।।
नितप्रति पाठ करै मन लाई । प्रेम सहित नहिं आन उपाई ।।
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा । रंक पढ़त होवे अवनीसा ।।
यह जनि अचरज मानहुं भाई । कृपा दृष्टि ता पर होइ जाई ।।
जय जय जय जगमातु भवानी । कृपा करहुं मोहि निज जन जानी ।।
श्री विंध्यवासिनी माता स्तोत्रम्
ध्यानः नंद गोप गृहे जाता यशोदा गर्भसम्भवा|
ततस्तो नाश यष्यामि विंध्याचल निवासिनी ||
निशुम्भशुम्भमर्दिनी, प्रचंडमुंडखंडनीम |
वने रणे प्रकाशिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||१||
त्रिशुलमुंडधारिणीं, धराविघातहारणीम |
गृहे गृहे निवासिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||२||
दरिद्रदु:खहारिणीं, संता विभूतिकारिणीम |
वियोगशोकहारणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||३||
लसत्सुलोललोचनां, लता सदे वरप्रदाम |
कपालशूलधारिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||४||
करे मुदागदाधरीं, शिवा शिवप्रदायिनीम |
वरां वराननां शुभां, भजामि विंध्यवासिनीम ||५||
ऋषीन्द्रजामिनींप्रदा,त्रिधास्वरुपधारिणींम |
जले थले निवासिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||६||
विशिष्टसृष्टिकारिणीं, विशालरुपधारिणीम |
महोदरे विलासिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||७||
पुरंदरादिसेवितां, मुरादिवंशखण्डनीम |
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||८||
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Sunday 6 May 2018

श्री महावीर तीर्थंकर चालीसा Shri Mahaveer Swami Chalisa

श्री महावीर तीर्थंकर चालीसा Shri Mahaveer Swami Chalisa
शीश नवा अरिहन्त को, सिद्धन करूँ प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार।
महावीर भगवान को, मन-मन्दिर में धार।
चौपाई
जय महावीर दयालु स्वामी, वीर प्रभु तुम जग में नामी।
वर्धमान है नाम तुम्हारा, लगे हृदय को प्यारा प्यारा।
शांति छवि और मोहनी मूरत, शान हँसीली सोहनी सूरत।
तुमने वेश दिगम्बर धारा, कर्म-शत्रु भी तुम से हारा।
क्रोध मान अरु लोभ भगाया, महा-मोह तुमसे डर खाया।
तू सर्वज्ञ सर्व का ज्ञाता, तुझको दुनिया से क्या नाता।
तुझमें नहीं राग और द्वेष, वीर रण राग तू हितोपदेश।
तेरा नाम जगत में सच्चा, जिसको जाने बच्चा बच्चा।
भूत प्रेत तुम से भय खावें, व्यन्तर राक्षस सब भग जावें।
महा व्याध मारी न सतावे, महा विकराल काल डर खावे।
काला नाग होय फन धारी, या हो शेर भयंकर भारी।
ना हो कोई बचाने वाला, स्वामी तुम्हीं करो प्रतिपाला।
अग्नि दावानल सुलग रही हो, तेज हवा से भड़क रही हो।
नाम तुम्हारा सब दुख खोवे, आग एकदम ठण्डी होवे।
हिंसामय था भारत सारा, तब तुमने कीना निस्तारा।
जनम लिया कुण्डलपुर नगरी, हुई सुखी तब प्रजा सगरी।
सिद्धारथ जी पिता तुम्हारे, त्रिशला के आँखों के तारे।
छोड़ सभी झंझट संसारी, स्वामी हुए बाल-ब्रह्मचारी।
पंचम काल महा-दुखदाई, चाँदनपुर महिमा दिखलाई।
टीले में अतिशय दिखलाया, एक गाय का दूध गिराया।
सोच हुआ मन में ग्वाले के, पहुँचा एक फावड़ा लेके।
सारा टीला खोद बगाया, तब तुमने दर्शन दिखलाया।
जोधराज को दुख ने घेरा, उसने नाम जपा जब तेरा।
ठंडा हुआ तोप का गोला, तब सब ने जयकारा बोला।
मंत्री ने मन्दिर बनवाया, राजा ने भी द्रव्य लगाया।
बड़ी धर्मशाला बनवाई, तुमको लाने को ठहराई।
तुमने तोड़ी बीसों गाड़ी, पहिया खसका नहीं अगाड़ी।
ग्वाले ने जो हाथ लगाया, फिर तो रथ चलता ही पाया।
पहिले दिन बैशाख बदी के, रथ जाता है तीर नदी के।
मीना गूजर सब ही आते, नाच-कूद सब चित उमगाते।
स्वामी तुमने प्रेम निभाया, ग्वाले का बहु मान बढ़ाया।
हाथ लगे ग्वाले का जब ही, स्वामी रथ चलता है तब ही।
मेरी है टूटी सी नैया, तुम बिन कोई नहीं खिवैया।
मुझ पर स्वामी जरा कृपा कर, मैं हूँ प्रभु तुम्हारा चाकर।
तुम से मैं अरु कछु नहीं चाहूँ, जन्म-जन्म तेरे दर्शन पाऊँ।
चालीसे को चन्द्र बनावे, बीर प्रभु को शीश नवावे।
सोरठा
नित चालीसहि बार, बाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार, वर्धमान के सामने।।
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।।
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श्री पितर चालीसा Shri Pitar Chalisa

श्री पितर चालीसा Shri Pitar Chalisa
हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद,
चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ।
सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी।
हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी।।
चौपाई
पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर।
परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा।
मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे।
जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं।
चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा।
नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का।
प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते।
झुंझनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे।
प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा।
पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी।
तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे।
नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी।
छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते।
तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी।
भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे।
ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे।
सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी।
शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते।
जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पूजे पित्तर भाई।
हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा।
गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की।
बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा।
चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते।
जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते।
धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है।
श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी।
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।
तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई।
चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी।
नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई।
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत।
सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी।
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे।
सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे।
तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे।
सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई।
मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।
अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।
दोहा ||https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5।,,,,,,,,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557
पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम।
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम।
झुंझनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान।
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।।
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम।
पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।।

श्री नवग्रह चालीसा Navghraha Chalisa

श्री नवग्रह चालीसा Navghraha Chalisa
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चौपाई श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय।
नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय।।
जय जय रवि शशि सोम बुध जय गुरु भृगु शनि राज।
जयति राहु अरु केतु ग्रह करहुं अनुग्रह आज।।
श्री सूर्य स्तुति
प्रथमहि रवि कहं नावौं माथा, करहुं कृपा जनि जानि अनाथा।
हे आदित्य दिवाकर भानू, मैं मति मन्द महा अज्ञानू।
अब निज जन कहं हरहु कलेषा, दिनकर द्वादश रूप दिनेशा।
नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर, अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर।
श्री चन्द्र स्तुति
शशि मयंक रजनीपति स्वामी, चन्द्र कलानिधि नमो नमामि।
राकापति हिमांशु राकेशा, प्रणवत जन तन हरहुं कलेशा।
सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर, शीत रश्मि औषधि निशाकर।
तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा, शरण शरण जन हरहुं कलेशा।
श्री मंगल स्तुति
जय जय जय मंगल सुखदाता, लोहित भौमादिक विख्याता।
अंगारक कुज रुज ऋणहारी, करहुं दया यही विनय हमारी।
हे महिसुत छितिसुत सुखराशी, लोहितांग जय जन अघनाशी।
अगम अमंगल अब हर लीजै, सकल मनोरथ पूरण कीजै।
श्री बुध स्तुति
जय शशि नन्दन बुध महाराजा, करहु सकल जन कहं शुभ काजा।
दीजै बुद्धि बल सुमति सुजाना, कठिन कष्ट हरि करि कल्याणा।
हे तारासुत रोहिणी नन्दन, चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन।
पूजहिं आस दास कहुं स्वामी, प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी।
श्री बृहस्पति स्तुति
जयति जयति जय श्री गुरुदेवा, करूं सदा तुम्हरी प्रभु सेवा।
देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी, इन्द्र पुरोहित विद्यादानी।
वाचस्पति बागीश उदारा, जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा।
विद्या सिन्धु अंगिरा नामा, करहुं सकल विधि पूरण कामा।
श्री शुक्र स्तुति
शुक्र देव पद तल जल जाता, दास निरन्तन ध्यान लगाता।
हे उशना भार्गव भृगु नन्दन, दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन।
भृगुकुल भूषण दूषण हारी, हरहुं नेष्ट ग्रह करहुं सुखारी।
तुहि द्विजबर जोशी सिरताजा, नर शरीर के तुमही राजा।
श्री शनि स्तुति
जय श्री शनिदेव रवि नन्दन, जय कृष्णो सौरी जगवन्दन।
पिंगल मन्द रौद्र यम नामा, वप्र आदि कोणस्थ ललामा।
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा, क्षण महं करत रंक क्षण राजा।
ललत स्वर्ण पद करत निहाला, हरहुं विपत्ति छाया के लाला।
श्री राहु स्तुति
जय जय राहु गगन प्रविसइया, तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया।
रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा, शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा।
सैहिंकेय तुम निशाचर राजा, अर्धकाय जग राखहु लाजा।
यदि ग्रह समय पाय हिं आवहु, सदा शान्ति और सुख उपजावहु।
श्री केतु स्तुति
जय श्री केतु कठिन दुखहारी, करहु सुजन हित मंगलकारी।
ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला, घोर रौद्रतन अघमन काला।
शिखी तारिका ग्रह बलवान, महा प्रताप न तेज ठिकाना।
वाहन मीन महा शुभकारी, दीजै शान्ति दया उर धारी।
नवग्रह शांति फल
तीरथराज प्रयाग सुपासा, बसै राम के सुन्दर दासा।
ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी, दुर्वासाश्रम जन दुख हारी।
नवग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु, जन तन कष्ट उतारण सेतू।
जो नित पाठ करै चित लावै, सब सुख भोगि परम पद पावै।।
दोहा
धन्य नवग्रह देव प्रभु, महिमा अगम अपार।
चित नव मंगल मोद गृह जगत जनन सुखद्वार।।
यह चालीसा नवोग्रह, विरचित सुन्दरदास।
पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख, सर्वानन्द हुलास।।
Doha
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