Friday 22 February 2013

हनुमान अष्टक !! श्री राम जय राम जय जय राम

 हनुमान अष्टक !! श्री राम जय राम जय जय राम !!
बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अँधियारो ।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ॥
... देवन आन करि बिनती तब, छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 1 ॥
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महा मुनि शाप दिया तब, चाहिय कौन बिचार बिचारो ॥
के द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 2 ॥
अंगद के संग लेन गये सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाय इहाँ पगु धारो ॥
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया-सुधि प्राण उबारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 3 ॥
रावन त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सों कहि शोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो ॥
चाहत सीय अशोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 4 ॥
बाण लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावण मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ॥
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्राण उबारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 5 ॥
रावण युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो ॥
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 6 ॥
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पाताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि, देउ सबै मिति मंत्र बिचारो ॥
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावण सैन्य समेत सँहारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 7 ॥
काज किये बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसों नहिं जात है टारो ॥
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो !

रामदेव जी

रामदेव जी
बाल लीला में कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाना
एक दिन भगवान रामदेव जी खेलते खेलते जंगल में बढ़ते ही जा रहे थे। आगे चलने पर बाबा रामदेव जी को एक पहाड़ नजर आया। उस पहाड़ पर चढ़े तो वहां से थोड़ी दूरी पर एक कुटिया नजर आयी तब भगवान उस कुटिया के पास पहुंचे तो देखते हैं वहां पर एक बाबा जी घ्यान मग्न बैठे थे। भगवान रामदेव जी ने गुरू जी के चरणों में सिर झुकाकर नमस्कार किया। तब गुरू जी ने पूछा बालक कहां से आये हो तुम्हें मालूम नहीं यहां पर एक भैरव नाम का राक्षस रहता है जो जीवों को मारकर खा जाता है। तुम जल्दी से यहां से चले जाओ उसके आने का वक्त हो गया है। वह तुम्हें भी मारकर खा जाएगा और मेरे को बाल हत्या लग जाएगी, इसलिये तुम इस कुटिया से कहीं दूर चले जाओ। भगवान बाबा रामदेव जी मीठे शब्दों में कहते हैं - मैं क्षत्रीय कुल का सेवक हूँ स्वामी ! भाग जाउंगा तो कुल पर कलंक का टीका लग जायेगा। मैं रात्री भर यहाँ रहूँगा प्रभात होते ही चला जाउंगा और वहीं पर भैरव राक्षस के आने पर रामदेवजी ने उसका वध कर प्रजा का कल्याण किया।

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