Sunday 24 August 2014

शनि ग्रह का प्रभाव और उपाय


शनि ग्रह का प्रभाव और उपाय,,, सर्वप्रथम भगवान भैरव की उपासना करें ॐ भैरवाय नम:।   https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5    शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं। छायादान करें- अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसों का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापो की क्षमा मांगते हुए रख आएं। दांत साफ रखें। अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें। मंत्र- ॐ शं शनैश्चराय नम: ।
सावधानी : कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में हो तो भिखारी को तांबा या तांबे का सिक्का कभी दान न करें अन्यथा पुत्र को कष्ट होगा। यदि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला का निर्माण न कराएं। अष्टम भाव में हो तो मकान न बनाएं, न खरीदें। उपरोक्त उपाय भी लाल किताब के जानकार व्यक्ति से पूछकर ही करें।,,,,,
देवता: भैरव जी,,,,
गोत्र: कश्यप,,,
जाति: क्षत्रिय,,,,
रंग: श्याम, नीला,,,,
वाहन: गिद्ध, भैंसा,,,,
दिशा: वायव्य ,,,
वस्तु: लोहा, फौलाद,,,,
पोशाक: जुराब, जूता,,
पशु: भैंस या भैंसा,,,,
वृक्ष: कीकर, आक, खजूर का वृक्ष,,
राशि: बु.शु.रा.। सू, चं.मं.। बृह.,,,,
भ्रमण: अढ़ाई वर्ष,,,
शरीर के अंग: दृष्टि, बाल, भवें, कनपटी,,,,
पेशा: लुहार, तरखान, मोची,,,
सिफत: मुर्ख, अक्खड़, कारिगर,,,,
गुण: देखना, भालना, चालाकी, मौत, बीमारी,,,
शक्ति: जादूमंत्र देखने दिखाने की शक्ति, मंगल के साथ हो तो सर्वाधिक बलशाली।
राशि: मकर और कुम्भ का स्वामी। तुला में उच्च का और मेष में नीच का माना गया है। ग्यारहवां भाव पक्का घर।
अन्य नाम: यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी और पंगु इत्यादि।
पुराणों के अनुसार शनि के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं।
शनि के फेर से देवी-देवताओं को तो छोड़ो शिव को भी बैल बनकर जंगल-जंगल भटकना पड़ा। रावण को असहाय बनकर मौत की शरण में जाना पड़ा। शनि को सूर्य का पुत्र माना जाता है। उनकी बहन का नाम देवी यमुना है।
पुराण कथा : वैसे तो शनि के संबंध में कई कथाएं है। ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, पर यह श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण : खगोल विज्ञान के अनुसार शनि का व्यास 120500 किमी, 10 किमी प्रति सेकंड की औसत गति से यह सूर्य से औसतन डेढ़ अरब किमी. की दूरी पर रहकर यह ग्रह 29 वर्षों में सूर्य का चक्कर पूरा करता है।

गुरु शक्ति पृथ्‍वी से 95 गुना अधिक और आकार में बृहस्पती के बाद इसी का नंबर आता है। अपनी धूरी पर घूमने में यह ग्रह नौ घंटे लगाता है।
*ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,
इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। लेकिन बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि यह नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
न्यायाधीश है शनि : मान्यता है कि सूर्य है राजा, बुध है मंत्री, मंगल है सेनापति, शनि है न्यायाधीश, राहु-केतु है प्रशासक, गुरु है अच्छे मार्ग का प्रदर्शक, चंद्र है माता और मन का प्रदर्शक, शुक्र है- पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति तथा वीर्य बल। जब समाज में कोई व्यक्ति अपराध करता है तो शनि के आदेश के तहत राहु और केतु उसे दंड देने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। शनि की कोर्ट में दंड पहले दिया जाता है, बाद में मुकदमा इस बात के लिए चलता है कि आगे यदि इस व्यक्ति के चाल-चलन ठीक रहे तो दंड की अवधि बीतने के बाद इसे फिर से खुशहाल कर दिया जाए या नहीं।

शनि को यह पसंद नहीं : शनि को पसंद नहीं है जुआ-सट्टा खेलना, शराब पीना, ब्याजखोरी करना, परस्त्री गमन करना, अप्राकृतिक रूप से संभोग करना, झूठी गवाही देना, निर्दोष लोगों को सताना, किसी के पीठ पीछे उसके खिलाफ कोई कार्य करना, चाचा-चाची, माता-पिता, सेवकों और गुरु का अपमान करना, ईश्वर के खिलाफ होना, दांतों को गंदा रखना, तहखाने की कैद हवा को मुक्त करना, भैंस या भैसों को मारना, सांप, कुत्ते और कौवों को सताना। शनि के मूल मंदिर जाने से पूर्व उक्त बातों पर प्रतिबंध लगाएं।
शुभ की निशानी : शनि की स्थिति यदि शुभ है तो व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रगति करता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। बाल और नाखून मजबूत होते हैं। ऐसा व्यक्ति न्यायप्रिय होता है और समाज में मान-सम्मान खूब रहता हैं।
अशुभ की निशानी : शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षति ग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह नाश होता है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी।

शनैश्चराय नमः.ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमःनीलांजन समाभासम रविपुत्रं यमाग्रजम छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम नमामि शनैश्चरम
शनि की साढेसाती तथा ढैय्या के प्रभाव को कम करने के हमारे ग्रन्थो में अनेक उपचार बतलाये गये हैं। जिनके प्रयोग से इसके कुप्रभाव से वचा जा सकता है। ये उपचार इस प्रकार हैं -1. शनि के वैदिक या बीज मंत्र का 23000 की संख्या में जाप करें। 2. शनिवार के दिन हनुमान जी की आराधना, चालीसा का पाठ, सुन्दर काण्ड का पाठ करें।3. शनिवार के दिन तैलदान, शनि स्तोत्र का पाठ करें।4.नीलम रत्न धारण करना भी लाभकारी होता है परन्तु पहले किसी ज्योतिषी का परामर्श अवश्य ले लें।5. शनि का बीज मंत्र - ऊँ प्रां प्रीं पौं स: शनये नम:।6. शनि का वैदिक मंत्र - ऊँ शन्नौ देवीरभिष्टयऽआपोभवन्तु पीतये। शंय्योरभिस्रवन्तु न:।7. शनि का तांत्रिक मंत्र - ऊँ शं शनैश्चराय नम:।8. शनि शान्ति के लिये दान-वस्तु - लोहा, तिल, तैल, कृष्णवस्त्र, उडद, नीलम, कुथली,।
शनि साढेसाती शनि साढेसाती में प्राप्त होने वाले अशुभ फलों से बचने के लिये अपने धैर्य व सहनशक्ति में वृ्धि करने के लिये शनि के उपाय करने चाहिए. विपरीत समय में व्यक्ति की संघर्ष करने की क्षमता बढ जाती है. तथा ऎसे समय में व्यक्ति अपनी पूर्ण दूरदर्शिता से निर्णय लेता है. जिसके कारण निर्णयों में त्रुटियां होने की संभावनाएं कम हो जाती है.
शनि स्तोत्र का पाठ करते समय व्यक्ति में शनि के प्रति पूर्ण श्रद्धा व विश्वास होना अनिवार्य है. बिना श्रद्धा के लाभ प्राप्त होने की संभावनाएं नहीं बनती है.
शनि स्तोत्र पाठ - नीलांजन समाभासम रविपुत्रं यमाग्रजम छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम नमामि शनैश्चरम सूर्यपुत्रो दीर्घदेही विशालाक्षा श्विप्रिया: मंदचारा प्रसन्नात्मा पीडाम हरतु में शनि
कोणस्थ, पिंगलो, बभ्रु, कृ्ष्णो, र्रौद्रान्तको, यम: सौरि: शनिश्चरो मंद: पिंपलादेन संस्तुत:
शनि स्तोत्रम नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय च नमोस्तुते
नमस्ते बभ्रु रुपाय कृ्ष्णाय च नमोस्तुते
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च
नमस्ते यम संज्ञाय नमस्ते सौरये विभो
नमस्ते मंद संज्ञाय शनेश्वर नमोस्तुते
प्रसाद कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च
कोणस्थ पिंगलों, बभ्रु, कृ्ष्णों, रौद्रान्तक यम:
सौरि:, शनिश्चरो मंद: पिपलादेन संस्तुत:
एतानि दश नमानि प्रात: उत्थाय य: पठेत
शनेश्वचर कृ्ता पीडा न कदाचित भविष्यति
जिन व्यक्तियों की जन्म राशि पर शनि की साढेसाती का प्रभाव चल रहा है, उन व्यक्तियों को इस पाठ का जाप प्रतिदिन करना चाहिए. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की शनि की ढैय्या या लघु कल्याणी की अवधि चल रही हों, उनके लिये भी यह पाठ लाभकारी सिद्ध हो सकता है
Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557



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