Sunday, 17 January 2016

गुरु गोबिंद सिंह जी को त्याग और वीरता की मूर्ति भी माना जाता है.

 गुरु गोबिंद सिंह जी को त्याग और वीरता की मूर्ति भी माना जाता है. को त्याग और वीरता की मूर्ति भी माना जाता है.
सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ”
गुरु गोविंद साहब को सिखों का अहम गुरु माना जाता है. उनकी सबसे बड़ी विशेषता उनकी बहादुरी थी. उनके लिए यह शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं “सवा लाख से एक लड़ाऊँ.” उनके अनुसार शक्ति और वीरत के संदर्भ में उनका एक सिख सवा लाख लोगों के बराबर है
गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: २२ दिसम्बर १६६६, मृत्यु: ७ अक्टूबर १७०८) सिखों के दसवें गुरु थे। उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था। उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त ११ नवम्बर सन १६७५ को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। उन्होने सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। बिचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ, गुरू गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है।
उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ १४ युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम,उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं।
गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।
गुरु गोबिंद साहिब,,,श्री गुरु गो‍बिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरू हैं. इनका जन्म पौष सुदी 7वीं सन 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ. उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे. उन्हीं के वचनानुसार बालक का नाम गोविंद राय रखा गया और सन 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए. इनका बचपन बिहार के पटना में ही बीता. जब 1675 में श्री गुरु तेगबहादुर जी दिल्ली में हिंन्दु धर्म की रक्षा के लिए शहीद हुए तब गुरु गोबिंद साहब जी गुरु गद्दी पर विराजमान हुए
खालसा पंथ की स्थापना
गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की. ख़ालसा यानि ख़ालिस (शुद्ध) जो मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हो और समाज के प्रति समर्पण का भाव रखता हो. पांच प्यारे बनाकर उन्हें गुरु का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन जाते हैं और कहते हैं-जहां पाँच सिख इकट्ठे होंगे, वहीं मैं निवास करूंगा. उन्होंने सभी जातियों के भेद-भाव को समाप्त करके समानता स्थापित की और उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी पैदा की. गोबिंद सिंह जी ने एक नया नारा दिया था वाहे गुरु जी का ख़ालसा, वाहे गुरु जी की फतेह. दमदमा साहिब में आपने अपनी याद शक्ति और ब्रह्मबल से श्री गुरुग्रंथ साहिब का उच्चारण किया और लिखारी (लेखक) भाई मनी सिंह जी ने गुरुबाणी को लिखा.
पांच ककार,,,,युद्ध की प्रत्येक स्थिति में सदा तैयार रहने के लिए उन्होंने सिखों के लिए पांच ककार अनिवार्य घोषित किए, जिन्हें आज भी प्रत्येक सिख धारण करना अपना गौरव समझता है:-
(1) केश: जिसे सभी गुरु और ऋषि-मुनि धारण करते आए थे.
(2) कंघा: केशों को साफ करने के लिए लकड़ी का कंघा.
(3) कच्छा: स्फूर्ति के लिए.
(4) कड़ा: नियम और संयम में रहने की चेतावनी देने के लिए.
(5) कृपाण: आत्मरक्षा के लिए.
वीरता और धैर्यशीलता की मिसाल
गुरु गोबिंद सिंह ने अपनी जिंदगी में वह सब देखा था जिसे देखने के बाद शायद एक आम मनुष्य अपने मार्ग से भटक या डगमगा जाए लेकिन उनके साथ ऐसा नहीं हुआ. परदादा गुरु अर्जुनदेव की शहादत, दादा गुरु हरगोविंद द्वारा किए गए युद्ध, पिता गुरु तेगबहादुर की शहीदी, चार में से बड़े दो पुत्रों (साहिबजादा आजीत सिंह एवं साहिबजादा जुझार सिंह) का चमकौर के युद्ध में शहीद होना और छोटे दो पुत्रों (साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह) को जिंदा दीवार में चुनवा दिया जाना, वीरता व बलिदान की विलक्षण मिसालें हैं. इस सारे घटनाक्रम में भी अड़िग रहकर गुरुगोबिंद सिंह संघर्षरत रहे, यह कोई सामान्य बात नहीं है
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोबिन्द
गुरु मेरा पार ब्रह्म, गुरु भगवंत
गुरु मेरा देऊ, अलख अभेऊ, सर्व पूज चरण गुरु सेवऊ
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोबिन्द, गुरु मेरा पार ब्रह्म, गुरु भगवंत
गुरु का दर्शन .... देख - देख जीवां, गुरु के चरण धोये -धोये पीवां
गुरु बिन अवर नहीं मैं ठाऊँ, अनबिन जपऊ गुरु गुरु नाऊँ
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोबिन्द, गुरु मेरा पार ब्रह्म, गुरु भगवंत
गुरु मेरा ज्ञान, गुरु हिरदय ध्यान, गुरु गोपाल पुरख भगवान
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोबिन्द, गुरु मेरा पार ब्रह्म, गुरु भगवंत
ऐसे गुरु को बल-बल जाइये ..-2 आप मुक्त मोहे तारें ..
गुरु की शरण रहो कर जोड़े, गुरु बिना मैं नहीं होर
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोबिन्द, गुरु मेरा पार ब्रह्म, गुरु भगवंत
गुरु बहुत तारे भव पार, गुरु सेवा जम से छुटकार
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोबिन्द, गुरु मेरा पार ब्रह्म, गुरु भगवंत
अंधकार में गुरु मंत्र उजारा, गुरु के संग सजल निस्तारा
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोबिन्द, गुरु मेरा पार ब्रह्म, गुरु भगवंत
गुरु पूरा पाईया बडभागी, गुरु की सेवा जिथ ना लागी
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोबिन्द, गुरु मेरा पार ब्रह्म, गुरु भगवंत
'Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.

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