Tuesday, 24 December 2019

सूर्य ग्रहण गुरुवार 26 दिसंबर 2019

सूर्य ग्रहण गुरुवार 26 दिसंबर 2019 ग्रहण प्रारम्भ काल , 08.11.00
परमग्रास ,09.31.,,,ग्रहण समाप्ति काल ,11.08
खण्डग्रास की अवधि ,02 घण्टे 57 मिनट्स
सूतक प्रारम्भ ,17.42 ,, दिसम्बर को,,सूतक समाप्त .11, 08
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक प्रारम्भ ,03. 29
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक समाप्त , 11,08
,,यह सूर्य ग्रहण धनु राशि और मूल नक्षत्र में लगेगा। धनु राशि तथा मूल नक्षत्र से संबंधित व्यक्तियों के जीवन पर इसका प्रभाव पड़ेगा। इन राशियों और नक्षत्र से संबंधित लोगों को सूर्य ग्रहण के समय सतर्क रहने की आवश्यकता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण उस समय घटित होता है, जब चंद्रमा पृथ्वी से बहुत दूर होते हुए भी पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है। इस कारण चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी को अपनी छाया में नहीं ले पाता है। वलयाकार सूर्य ग्रहण में सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होता रहता है। इस घटना को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।

सूर्य ग्रहण के समय क्या करें
ग्रहण के समय मंत्र जाप करना चाहिए। इस दौरान पूजा-पाठ नहीं करनी चाहिए। ग्रहण समाप्ति के बाद पूरे घर की सफाई करनी चाहिए। ग्रहण से पहले खाने-पीने की चीजों में तुलसी के पत्ते डालकर रखना चाहिए। इससे खाने पर ग्रहण की नकारात्मक किरणों का असर नहीं होता है।
अमावस्या पर करें पितर देवताओं का पूजन
अमावस्या तिथि पर घर के पितर देवताओं की पूजा करनी चाहिए। इस तिथि पर इनके लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है।
ग्रहण को लेकर देश-दुनिया में हैं क्या मान्यताएं?
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार किसी भी ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता है। जहां सूर्य ग्रहण को लेकर कुछ मान्यताएं हैं, तो वहीं कई मिथक और अंधविश्वास भी हैं और ये सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि कई देशों में भी हैं। इस सूर्य ग्रहण को लेकर भी कई अंधविश्वास और मिथक देखने को मिल रहे हैं।
जानिए सूर्य ग्रहण को लेकर क्या-क्या हैं मान्यताएं?
हिन्दू धर्म में ग्रहण से जुड़ीं धार्मिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यतानुसार पुराने समय में समुद्र मंथन हुआ था। इसमें देवताओं और दानवों ने भाग लिया था। जब समुद्र मंथन से अमृत निकला तो इसके लिए देवताओं और दानवों के बीच युद्ध होने लगा। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और देवताओं को अमृतपान करवाया। उस समय राहु नाम का असुर ने भी देवताओं का वेश धारण करके अमृतपान कर लिया था।
चंद्र और सूर्य ने राहु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को बता दिया। विष्णुजी ने क्रोधित होकर राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया, क्योंकि राहु ने भी अमृत पी लिया था इस कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई। इस घटना के बाद राहु चंद्र और सूर्य से शत्रुता रखता है और समय-समय पर इन ग्रहों को ग्रसता है। इसी घटना को सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण कहते हैं।
वियतनाम और ग्रीक की है ये कहानियां
जहां भारत में सूर्य और चंद्र ग्रहण को लेकर ये मान्यताएं हैं, तो वहीं वियतनाम में इसे लेकर अलग ही बातें कही जाती हैं। वियतनाम में लोगों का मानना है कि सूर्य ग्रहण इसलिए होता है, क्योंकि एक बड़ा मेंढक उसे निगल लेता है।
प्राचीन काल में ग्रीक के लोगों का मानना था कि सूर्य ग्रहण नाराज देवताओं का संकेत था और यह आपदा और विनाश की शुरुआत थी।
अफ्रीका में पूर्वोत्तर टोगो के बाटाम्मालिबा लोग मानते हैं कि सूर्य और चंद्रमा ग्रहण के दौरान लड़ाई करते हैं।
गर्भवती महिलाओं के लिए कहा जाता है हानिकारक
कई लोगों को लगता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान स्नान करने से उन पर बुराई का प्रभाव नहीं पड़ेगा। माना जाता है कि गंगा में डुबकी लेना या इसका पानी खुद पर छिड़कना बुरी बलों के प्रभाव को कम करता है।
सूर्य ग्रहण के दौरान खाना भी नहीं पकाया जाता। सूर्य की रोशनी कम होने के कारण कहा जाता है कि इससे खाने में बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं। इसलिए बचा हुआ खाना भी ग्रहण से पहले खत्म कर लिया जाता है।
* गर्भवती महिलाओं के लिए भी सूर्य ग्रहण हानिकारक माना जाता है। इन महिलाओं को बुरी ताकतों के प्रति अधिक संवेदनशील माना जाता है। भारत के कुछ हिस्सों में उन्हें पैरों को क्रॉस करके बैठने की भी अनुमति नहीं होती है।

26 दिसंबर 2019 को यह ग्रहण लगेगा और समस्त 12 राशियों पर असर होगा।
इस महीने में सूर्य, मंगल, बुध और शुक्र राशि बदल रहे हैं। चंद्रमा हर ढाई दिन में राशि परिवर्तन करेगा। ग्रहों के इस परिवर्तन और सूर्यग्रहण का असर सभी राशियों पर अलग-अलग दिखाई देगा।
मेष-कामों में सफलता मिलेगी। बिजनेस में सोचे हुए काम भी पूरे होंगे। लोगों की मदद करेंगे। बड़े और महत्वपूर्ण लोगों से मुलाकात के योग बन रहे हैं। कोर्ट-कचहरी के कामों में सफलता मिल सकती है। पुरानी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। वैवाहिक जीवन सुखमय रहेगा।
उपाय- हनुमानजी की पूजा करें।
वृष- बड़े लोगों से सहयोग मिलेगा। आर्थिक स्थिति मजबूत रहेगी। लोगों से संबंध सुधारने की कोशिश करेंगे। आत्मविश्वास बढ़ेगा। बिजनेस में जोखिम लेंगे और सफल भी होंगे। महीने के बीच में आपको सम्मान मिलेगा। इन दिनों में आपको पुराने किए गए कामों की तारीफ और फायदा दोनों मिलेगा।
उपाय- भगवान विष्णु को पीला वस्त्र अर्पित करें।
मिथुन- कोर्ट केस के मामलों में आपको सफलता मिलेगी। साझेदारी के कामों में भी फायदा होगा। महीने के बीच में कुछ ऐसे काम शुरू करेंगे जिससे आपको फायदा होगा। आपका सम्मान भी बढ़ेगा। इन दिनों में सम्पत्ति के मामलों में भी आप भाग्यशाली हो सकते हैं। पुरानी बीमारियों से निजात मिलेगी।
उपाय- ॐ गं गणपतयै नम: ये मंत्र 3 बार बोलकर घर से निकलें।
कर्क- कामों में सफलता मिलेगी। किसी नेता अधिकारी या बड़े आदमी से मुलाकात होने से फायदा होगा। भावुक रहेंगे, रुके हुए काम भी पूरे हो जाएंगे। बीमा, शेयर या किसी तरह के निवेश में आप व्यस्त हो सकते हैं। खरीदारी में समय बीतेगा। सोसाइटी में इज्जत बढ़ेगी।
उपाय- गाय को हरा चारा खिलाएं।
सिंह- पारिवारिक विवाद खत्म होंगे। रुका हुआ या उधार पैसा मिलेगा। बिजनेस में स्थितियां सुधर जाएगी। फायदा होगा। समाज में सम्मान मिलेगा। सम्पत्ति के विवाद किसी की मदद से पूरे हो जाएंगे। नौकरी और बिजनेस में स्थितियां आपके फेवर में रहेंगी।
उपाय- राशि स्वामी सूर्य को जल चढ़ाएं।
कन्या- पार्टनर से संबंधों में सुधार होगा। परिवार के साथ समय बीतेगा। दोस्तों से सहयोग मिलेगा। नए काम करने का मन बना सकते हैं। एक्स्ट्रा इनकम के योग हैं। बिजनेस में भी फायदा हो सकता है।
उपाय- देवी लक्ष्मी को कमल के फूल चढ़ाएं।
तुला- संतान पक्ष से शुभ समाचार मिल सकता है। रोजमर्रा के काम आसानी से हो जाएंगे। स्वास्थ्य भी ठीक रहेगी। सोचे हुए काम पूरे हो सकते हैं। किसी प्रिय साथी से मुलाकात हो सकती है।
उपाय- शिवलिंग का अभिषेक गाय के दूध से करें।
वृश्चिक- ऑफिस और फील्ड में साथ के कुछ लोगों से मदद मिलेगी। सोचे हुए कुछ काम पूरे हो जाएंगे। संतान से सहयोग मिल सकता है। अचानक धन लाभ होने के योग भी बनेंगे। अधूरे काम पूरे होने के चांस ज्यादा रहेंगे।
उपाय- चींटियों के लिए आटे में शक्कर मिलाकर डालें।
धनु- दोस्तों और भाइयों का सहयोग मिलेगा। आपके बहुत से शौक पूरे हो सकते हैं। भोग और विलासिता पर खर्चा और बढ़ सकता है। जीवन में कुछ अच्छे और सुखद बदलाव लाने वाला समय रहेगा। आपके बहुत से रुके हुए काम पूरे हो सकते हैं।
उपाय- पीपल पर जल चढ़ाएं और दीपक लगाएं।
मकर- धन लाभ हो सकता है। रोजमर्रा के काम पूरे होंगे फालतू खर्च से थोड़ी राहत मिल सकती है। इन दिनों में आपकी कुछ योजनाएं पूरी हो जाएंगी और उससे आपको फायदा भी मिल सकता है। संतान से सुख मिल सकता है।
उपाय- सुहागिन महिला को लाल चूड़ियां और कुंकुम भेंट करें।
कुंभ - उधार दिया पैसा वापस मिल सकता है। निवेश से फायदा हो सकता है। आप अपने काम से लोगों को प्रभावित भी करेंगे। रोजमर्रा के काम पूरे तो हो जाएंगे। साथ ही कुछ जरूरी कामों से भी आपको फायदा मिल सकता है।
उपाय- भगवान श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित करें।
मीन- धन लाभ हो सकता है। रोजमर्रा के काम पूरे होंगे। फालतू खर्च से थोड़ी राहत मिल सकती है। आपकी योजनाएं भी पूरी होंगी। आपको योजनाओं से फायदा भी मिल सकता है। संतान से सुख मिल सकता है। साथ के कुछ लोग जरूरी कामों में मदद करेंगे।
उपाय- गरीबों को कंबल और तिल का दान करें।

26 दिसंबर 2019 को पड़ने वाले सूर्य ग्रहण का सूतक ग्रहण से बारह घण्टे पूर्व 25 दिसंबर की रात्रि बजे से प्रारंभ हो जाएगा और ग्रहण की समाप्ति के साथ ही समाप्त होगा। अतः इसी समय से सूतक संबंधित सभी नियम प्रभावी होंगे और इस समय को भगवान की भक्ति में स्वयं को लगाना श्रेष्ठ रहेगा । ग्रहण एक प्रकार की खगोलीय घटना हैं। जिनमें चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर, और पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर काटते हुए जब तीनों एक सीधी रेखा में अवस्थिति होते हैं। तब ग्रहण लगता है । : दूसरी दशा मे जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आता है, और सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता तो ऐसे मे सूर्यग्रहण लगता है, और सूर्यग्रहण की यह स्थिति अमावस्या को ही बनती है । हर साल लगभग 5 से 7 सूर्य और चंद्र ग्रहण लगते हैं। जब पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा आ जाता है तब सूर्य ग्रहण लगता है। सूर्य ग्रहण की घटना अमावस्या के दिन ही घटित होती है। इस बार सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य आग से भरी अंगूठी के आकार का दिखाई देगा। इसे वैज्ञानिकों की भाषा में वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है- ग्रहण की कंकण आकृति केवल दक्षिण भारत में दिखेगी। शेष भारत में इस ग्रहण को खण्डग्रास के रूप में देखा जा सकेगा। वैदिक ज्योतिष में ग्रहण का महत्व:-* *ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह सूर्य ग्रहण धनु राशि और मूल नक्षत्र में घटित होगा। इसके परिणाम स्वरूप धनु राशि और मूल नक्षत्र से संबंधित जातकों के लिए विशेष रूप से प्रभावशाली रहेगा और ऐसे जातकों को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। हिन्दू वैदिक ज्योतिष के अनुसार मनुष्य के जीवन में आने वाले समस्त सुख-दुःख उसके अपने कर्म के साथ-साथ ग्रहो के गोचर और नक्षत्रो के प्रभाव पर भी निर्भर करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों का बड़ा महत्व है। इनमें सूर्य और चंद्रमा भी आते हैं, इसी वजह से सूर्य और चंद्र ग्रहण का महत्व बढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि कोई भी ग्रहण घटित होने से पहले ही उसका असर दिखना शुरू हो जाता है और ग्रहण होने के समाप्त होने के बाद भी इसका प्रभाव कई दिनों तक देखने को मिलता है। ग्रहण का प्रभाव न केवल मनुष्यों पर बल्कि जल, जीव और प्रकृति के अन्य घटकों पर भी पड़ता है। इन्हीं कारणों से ग्रहण मानव समुदाय को व्यापक रूप से प्रभावित करता है। ग्रहण का वैदिक ज्योतिष के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है चाहे वह सूर्य ग्रहण हो अथवा चंद्र ग्रहण। सूर्य जहां आत्मा का कारक है वही चंद्रमा मन का और इन दोनों पर ग्रहण लगना अर्थात मन और आत्मा पर ग्रहण लगने जैसा है। विज्ञान के आधार पर ग्रहण केवल एक खगोलीय घटना है लेकिन ज्योतिष के क्षेत्र में यह अत्यंत ही गहन और महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि इसका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व तथा पूरी प्रकृति पर पड़ता है। सूर्य ग्रहण का प्रभाव:- सूर्य ग्रहण का प्रभाव विशेष रूप से संपूर्ण पृथ्वी और प्रकृति पर पड़ता है क्योंकि संपूर्ण जगत को प्रकाश देने वाले सूर्य देव का प्रभावित होना संपूर्ण सृष्टि के लिए अशुभ माना जाता है। इसका प्रभाव मुख्य रूप से छः माह अथवा साल भर तक रह सकता है। यह सूर्य ग्रहण पौष अमावस्या के दिन बृहस्पतिवार को धनु राशि और मूल नक्षत्र में तथा वृद्धि योग में घटित होगा, इस कारण इसका अशुभ प्रभाव विशेष रूप से ब्राह्मण और स्त्रियों पर पड़ेगा और उनके लिए यह ग्रहण अनुकूल नहीं रहेगा। इसके अतिरिक्त वर्षा की कमी तथा दुर्भिक्ष और अकाल जैसी स्थिति आ सकती है। घी, हल्दी और रूई आदि के भावों में विशेष वृद्धि हो सकती है तथा फलों के व्यापारी, वैद्य, डॉक्टर और दवा से संबंधित कार्य करने वाले लोगों को समस्या हो सकती है। पौष महीने में तथा धनु राशि में सूर्य ग्रहण होने के कारण सभी प्रकार के धान्य पदार्थ तेजी में रहेंगे तथा वर्षा मध्यम होगी। इस ग्रहण का प्रभाव मूल नक्षत्र पर होने के कारण बिनौला, बाजरा, इलायची, शक्कर, ज्वार, आदि के भाव में भी तेजी देखने को मिलेगी। इस ग्रहण के दौरान धनु राशि में सूर्य के साथ साथ चंद्रमा, बुध, गुरु, शनि और केतु की युति होगी तथा यह सभी ग्रह राहु केतु के अक्ष में होंगे। इसके अतिरिक्त मूल नक्षत्र जिसमें यह ग्रहण घटित हो रहा है सूर्य, बृहस्पति और बुध तीनों इसी नक्षत्र में स्थित होंगे। ग्रहों के इस गठजोड़ का व्यापक प्रभाव पड़ेगा और इसलिए यह सूर्य ग्रहण अधिक व्यापक रूप से अपना असर दिखाएगा।* *संक्षेप मे ग्रहण का शुभ अथवा अशुभ प्रभाव सम्पूर्ण पृथ्वी, चराचर प्राणी जगत, देश-राज्य, देश-राज्यो के राजाओं-राष्टपति-प्रधानमंत्री अर्थात शासको पर, राजनीति पर, जनता, पशु-पक्षियों, तथा बारह राशियों के आधार पर सभी मनुष्यों पर अच्छा-बुरा प्रभाव होता है ।* *ग्रहण के प्रभाव से विभिन्न देशों में परस्पर युद्ध, हिंसक घटनाएं, दुर्घटनाएं तथा प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, सूखा, ज्वालामुखी, भूकंप तथा महामारी इत्यादि भयानक घटनाएं होती हैं ।* *परंतु ग्रहण से केवल प्रकृति, देश, राजा, राजनेता अथवा सरकारो पर ही बुरा प्रभाव नही होता अपितु राशिनुसार विभिन्न मनुष्यों पर भी इसका शुभ अथवा अशुभ प्रभाव होता है

शत्रुओं की संख्या अधिक है व आप परेशान के लिए इस मंत्र का जाप करें-
ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:।
वाक् सिद्धि के लिए ॐ ह्लीं दूं दूर्गाय: नम:
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए तांत्रिक मंत्र ॐ श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं ॐ स्वाहा:।
नौकरी एवं व्यापार में वृद्धि के लिए इस मंत्र का जाप पूरे ग्रहण के दौरान करते रहें-
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।
मुकदमे में विजय के लिए-
ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ओम् स्वाहा।।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं, उर्वारुक्मिव बंधनात्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्" इसके अलावा गायत्री मंत्र का जाप करना शुभ होता है. ,,ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्" सूर्य मंत्र जाप भी कल्याण करता है. ॐ घृणि सूर्याय नम: देवकीसुत गोविंद, वासुदेव जगत्पते, देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं भजे। देव देव जगन्नाथ गोत्रवृद्धिकरं प्रभो, देहि में तनयं शीघ्रं, आयुष्मन्तं यशस्विनम्।।

1. ग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल प्राप्त होता है।
2. ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक नरक में वास करता है।
3. ग्रहण में 3 प्रहर (9) घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (4.30 घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं।
4. ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियां डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।
5. ग्रहण वेध के प्रारंभ में तिल या कुशमिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।
6. ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देवपूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल (वस्त्र सहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियां सिर धोए बिना भी स्नान कर सकती हैं।
7. ग्रहण पूर्ण होने पर जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।
8. ग्रहणकाल में स्पर्श किए हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्र सहित स्नान करना चाहिए।
9. ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।
10. ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए, बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना चाहिए।
11. ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मलमूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन- ये सब कार्य वर्जित हैं।
12. ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
13. गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। 3 दिन या 1 दिन उपवास करके स्नान-दानादि का ग्रहण में महाफल है किंतु संतानयुक्त गृहस्थ को ग्रहण और संक्रांति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए।
14 . भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चंद्रग्रहण में किया गया पुण्य कर्म (जप, ध्यान, दान आदि) 1 लाख गुना और सूर्यग्रहण में 10 लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगाजल पास में हो तो चंद्रग्रहण में 1 करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में 10 करोड़ गुना फलदायी होता है।
15. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, ईष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें। न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है। ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से 12 वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है।
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Wednesday, 13 November 2019

गुरु नानक जयंती

गुरु नानक जयंती कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जी का जन्मदिन मनाया जाता है| 15 अप्रैल 1469 को पंजाब के तलवंडी जो कि अब पाकिस्तान में हैं
और जिसे ननकाना साहिब के नाम से भी जाना जाता है, में गुरु नानक ने माता तृप्ता व कृषक पिता कल्याणचंद के घर जन्म लिया| गुरू नानक जी की जयंती गुरुपूरब या गुरु पर्व सिख समुदाय में मनाया जाने वाला सबसे सम्मानित और महत्त्वपूर्ण दिन है| गुरू नानक जयंती के अवसर पर गुरु नानक जी के जन्म को स्मरण करते हैं| नानक सिखों के प्रथम (आदि गुरु) हैं| इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं | लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है| नानक दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - अनेक गुण अपने आप में समेटे हुए थे
"अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बन्दे
एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे"
सभी इंसान उस ईश्वर के नूर से ही जन्मे हैं, इसलिये कोई बड़ा छोटा नहीं है कोई आम या खास नहीं है | सब बराबर हैं
छुटपन में ही गुरूजी में प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे| लड़कपन में ही ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहने लगे| इनका पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता था| महज 7-8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया, क्योंकि भगवत प्राप्ति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक हार मान गए तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ आये| जिसके बाद अधिक समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे| बचपन में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गाँव वाले इन्हें दिव्य आत्मा मानने लगे| नानकजी में सर्व प्रथम श्रद्धा रखने वाले उनके गांव के शासक राय बुलार और उनकी बहन नानकी थीं
गुरु नानक देव जी ने भक्ति के अमृत भक्ति रस के बारे में बात की| गुरुजी भक्ति योग में पूरी तरह से विसर्जित एक भक्त थे| गुरु नानक देव जी ने कहा, “सांसारिक मामलों में इतने भी मत उलझों कि आप ईश्वर के नाम को भूल जाओ| उन्होंने सनातन मत की मूर्तिपूजा के विपरीत परमात्मा की उपासना का एक अलग मार्ग प्रसस्त किया| नानकजी ने हिंदू धर्म मे फैली कुरीतियों का सदैव विरोध किया| उनके दर्शन सूफियों जैसे थे| साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नज़र डाली| संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है| गुरूजी के उपदेश का सार यही है कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू तथा मुसलमान दोनों के लिये है|

एक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि।
सालाही सालाही एती सुरति न पाइया।
नदिआ अते वाह पवही समुंदि न जाणी अहि।
जगत में झूठी देखी प्रीत।
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत।।
मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत।।
धनु धरनी अरु संपति जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चाले, कहा ताहि लपटाई।।
पवणु गुरु पानी पिता माता धरति महतु।
दिवस रात दुई दाई दाइआ खेले सगलु जगतु।।
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि ने बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई।।
हुकमी उत्तम नीचु हुकमि लिखिच दुखसुख पाई अहि।
इकना हुकमी बक्शीस इकि हुकमी सदा भवाई अहि।।
हरि बुनि तेरो को न सहाई।
काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई।।
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत।।
गुरुजी की दस शिक्षाएं
1 - परम पिता परमेश्वर एक हैं
2 - सदैव एक ही ईश्वर की आराधना करो
3 - ईश्वर सब जगह और हर प्राणी में विद्यमान हैं
4 - ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भी भय नहीं रहता
5 - ईमानदारी और मेहनत से पेट भरना चाहिए
6 - बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न ही किसी को सताएं
7 – हमेशा खुश रहना चाहिए, ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा याचना करें
8 - मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरत मंद की सहायता करें
9 - सभी को समान नज़रिए से देखें, स्त्री-पुरुष समान हैं
10 - भोजन शरीर को जीवित रखने के लिए आवश्यक है| परंतु लोभ-लालच के लिए संग्रह करने की आदत बुरी है।  Gyanchand Bundiwal.
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Thursday, 7 November 2019

तुलसी विवाह, 20 सरलतम

तुलसी विवाह, 20 सरलतम बातें
1 शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
2 तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।
3 तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।  Image may contain: one or more people and plant
4 तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
5 गमले में सालिग्राम जी रखें।
6 सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।
7 तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
8 गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
9 अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।
10 देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।
11 कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
12 प्रसाद चढ़ाएं।
13 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
14 प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें।
15 प्रसाद वितरण अवश्य करें।
16 पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-
उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।
17 इस लोक आह्वान का भोला सा भावार्थ है - हे सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें।
1 8 इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी देव को जगाया जाता है-
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
19 तुलसी नामाष्टक पढ़ें
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता।।
20. मां तुलसी से उनकी तरह पवित्रता का वरदान मांगें।
देवउठनी एकादशी है। आज के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम से कराने की परंपरा है। शालिग्राम विष्णु जी के स्वरूप हैं। यह पृथ्वी पर पत्थर के रूप में विराजमान हैं। विष्णु के वरदान के कारण शालिग्राम के पत्थर नेपाल में बहने वाली गंडकी नदी से ही प्राप्त होते हैं। यह नदी तुलसी का ही एक रूप है। माना जाता है कि इनकी पूजा से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
क्या है तुलसी से जुड़ी कथा
शास्त्रों के अनुसार तुलसी पतिव्रता और धार्मिक आचरण वाली स्त्री थी। इसका विवाह शंखचूड़ नाम के शक्तिशाली दैत्य से हुआ था। एक बार शंखचूड़ और देवताओं के बीच युद्ध हुआ। शंखचूड़ ने सभी देवताओं को पराजित कर दिया। लेकिन कोई भी देवता उसे मार पाने में सक्षम नहीं हो पाए, क्योंकि शंखचूड़ के लिए तुलसी का सतीत्व रक्षा कवच बना हुआ था।
शंखचूड़ से त्रस्त होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे। तब विष्णु ने बताया कि स्वयं उन्होंने ही शंखचूड़ के पिता दंभ को ऐसे पराक्रमी पुत्र का वरदान दिया था। इस कारण वे शंखचूड़ का वध नहीं कर सकते हैं। विष्णु ने सभी देवताओं को शिवजी से प्रार्थना करने के लिए कहा।इसके बाद सभी देवता शिवजी के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की। शिवजी देवताओं और सृष्टि के कल्याण के लिए तैयार हो गए। शिवजी भी तुलसी के सतीत्व रूपी रक्षा कवच के कारण असुरराज को खत्म नहीं कर पा रहे थे।
तुलसी ने दिया विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप
शंखचूड़ को परास्त करने के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और तुलसी के शील का हरण कर लिया। इस प्रकार तुलसी का सतीत्व भंग हो गया। इस कारण शंखचूड़ का रक्षा कवच भी खत्म हो गया और शिवजी ने असूर का संहार कर दिया।
जब तुलसी को यह बात पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु ने तुलसी के श्राप को स्वीकार किया और कहा कि तुम पृथ्वी पर तुलसी पौधे तथा गंडकी नदी के रूप में सदैव रहोगी। भक्तजन तुम्हारा और मेरा विवाह करवाकर पुण्य लाभ अर्जित करेंगे। गंडकी नदी व तुलसी का पौधा तुलसी का ही रूप है। गंडकी नदी में पाई जाने वाली शालिग्राम शिला को ही भगवान विष्णु माना जाता था।। 

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Tuesday, 5 November 2019

कंस वध भगवान श्री कृष्ण और बलराम

कंस वध भगवान श्री कृष्ण और बलराम ने चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल और तोशल ।
इन पाँचों पहलवानो को मारा। इसके बाद जो बचे वो जान बचाकर भाग गए। उनके भाग जाने पर भगवान श्रीकृष्ण और बलरामजी अपने दोस्त ग्वाल-बालों को खींच-खींचकर उनके साथ भिड़ने और नाच-नाचकर भेरीध्वनि के साथ अपने नूपुरों की झनकार को मिलाकर मल्लक्रीडा । कुश्ती के खेल करने लगे।
भगवान श्रीकृष्ण और बलराम की इस अद्भुत लीला को देखकर सभी दर्शकों को बड़ा आनन्द हुआ। श्रेष्ठ ब्राम्हण और साधु पुरुष ‘धन्य है, धन्य है, ऐसा कहकर आशीर्वाद दे रहे थे और प्रसन्न हो रहे थे। लेकिन कंस को बहुत दुःख हुआ।
कंस चिढ गया। जब उसके प्रधान पहलवान मार डाले गये और बचे हुए सब-के-सब भाग गये, तब भोजराज कंस ने अपने बाजे-गाजे बंद करा दिये और अपने सेवकों को यह आज्ञा दी ।‘अरे, वसुदेव के इन दुश्चरित्र लड़कों को नगर से बाहर निकाल दो। गोपों का सारा धन छीन लो और दुर्बुद्धि नन्द को कैद कर लो। वसुदेव भी बड़ा कुबुद्धि और दुष्ट है। उसे शीघ्र मार डालो और उग्रसेन मेरा पिता होने पर भी अपने अनुयायियों के साथ शत्रुओं से मिला हुआ है। इसलिये उसे भी जीता मत छोडो’।
जब कंस इस तरह की बकवास कर रहा था भगवान से रहा नही गया और अविनाशी श्रीकृष्ण कुपित होकर फुर्ती से पुरे वेग से उछलकर लीला से ही उसके ऊँचे मंच पर जा चढ़े।
कंस ने भगवान को देखा तो उसे भगवान के रूप में साक्षात मृत्यु दिखाई पड़ रही है। भगवान कृष्ण उसके सामने आये तब वह सहसा अपने सिंहासन से उठ खड़ा हुआ और हाथ में ढाल तथा तलवार उठा ली । हाथ में तलवार लेकर वह चोट करने का मौका ढूँढता हुआ पैंतरा बदलने लगा। आकाश में उड़ते हुए बाज की तरह वह कभी दायीं ओर जाता तो कभी बायीं ओर
कृष्ण द्वारा कंस का उद्धार
परन्तु भगवान से कौन बच सकता है। जैसे गरुड़ साँप को पकड़ लेते हैं, वैसे ही भगवान ने बलपूर्वक उसे पकड़ लिया। भगवान को आज याद आ रहा है की इस कंस ने मेरी माँ देवकी के केश पकडे थे और पिता को जेल में डाला था। इसने मेरे माता पिता, और प्रजा के साथ बहुत अन्याय किया है। इसी समय कंस का मुकुट गिर गया और भगवान ने उसके केश पकड़कर उसे भी उस ऊँचे मंच से रंगभूमि में गिरा दिया। और फिर सम्पूर्ण त्रिलोकी का भार लेकर भगवान श्री कृष्ण उसके ऊपर कूद गए। भगवान के कूदते ही कंस की मृत्यु हो गई।
सबके देखते-देखते भगवान श्रीकृष्ण कंस की लाश को धरती पर उसी प्रकार घसीटने लगे, जैसे सिंह हाथी को घसीटे। सबके मुँह से ‘हाय! हाय!’ की बड़ी ऊँची आवाज सुनायी पड़ी ।
कंस हमेशा बड़ी घबड़ाहट के साथ श्रीकृष्ण का ही चिन्तन करता रहता था। वह खाते-पीते, सोते-चलते, बोलते और साँस लेते सब समय अपने सामने चक्र हाथ में लिये भगवान श्रीकृष्ण को ही देखता रहता था। इस नित्य चिन्तन के फलस्वरूप—वह चाहे द्वेषभाव से ही क्यों न किया गया हो । उसे भगवान के उसी रूप की प्राप्ति हुई, सारुप्य मुक्ति हुई, जिसकी प्राप्ति बड़े-बड़े तपस्वी योगियों के लिये भी कठिन है। भगवान की दयालुता देखिये, भगवान ने इस कंस को भी मुक्ति प्रदान कर दी।
जब कंस मरा तो कंस के कंक और न्यग्रोध आदि आठ छोटे भाई थे। वे अपने बड़े भाई का बदला लेने के लिये क्रोध से आगबबूले होकर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम की ओर दौड़े । जब भगवान बलरामजी ने देखा कि वे बड़े वेग से युद्ध के लिये तैयार होकर दौड़े आ रहे हैं, तब उन्होंने परिघ उठाकर उन्हें वैसे ही मार डाला, जैसे सिंह पशुओं को मार डालता है ।
उस समय आकाश में दुन्दुभियाँ बजने लगीं। भगवान के विभूतिस्वरुप ब्रम्हा, शंकर आदि देवता बड़े आनन्द से पुष्पों की वर्षा करते हुए उनकी स्तुति करने लगे। अप्सराएँ नाचने लगीं ।
महाराज! कंस और उसके भाइयों कि स्त्रियाँ अपने आत्मीय स्वजनों की मृत्यु से अत्यन्त दुःखित हुईं। वे अपने सिर पीटती हुई आँखों में आँसू भरे वहाँ आयीं । वीरशय्या पर सोये हुए अपने पतियों से लिपटकर वे शोकग्रस्त हो गयीं और बार-बार आँसू बहाती हुई ऊँचे स्वर से विलाप करने लगीं । ‘हा नाथ! हे प्यारे! हे धर्मज्ञ! हे करुणामय! हे अनाथवत्सल! आपकी मृत्यु से हम सबकी मृत्यु हो गयी। आज हमारे घर उजड़ गये। हमारी सन्तान अनाथ हो गयी । पुरुषश्रेष्ठ! इस पुरी के आप ही स्वामी थे। आपके विरह से इसके उत्सव समाप्त हो गये और मंगलचिन्ह उतर गये।
यह हमारी ही भाँति विधवा होकर शोभाहीन हो गयी । स्वामी! आपने निरपराध प्राणियों के साथ घोर द्रोह किया था, अन्याय किया था; इसी से आपकी यह गति हुई। सच है, जो जगत् के जीवों से द्रोह करता है, उनका अहित करता है, ऐसा कौन पुरुष शान्ति पा सकता है ? ये भगवान श्रीकृष्ण जगत् के समस्त प्राणियों की उत्पत्ति और प्रलय के आधार हैं। यही रक्षक भी हैं। जो इसका बुरा चाहता है, इनका तिरस्कार करता है; वह कभी सुखी नहीं हो सकता ।
श्रीशुकदेवजी कहते हैं ।परीक्षित! भगवान श्रीकृष्ण ही सारे संसार के जीवनदाता हैं। उन्होंने रानियों को ढाढ़स बँधाया, सान्त्वना दी; फिर लोक-रीति के अनुसार मरने वालों का जैसा क्रिया-कर्म होता है, वह सब कराया।



वृंदावन में कालिया और धनुक का सामना करने के कारण दोनों भाइयों की ख्याति के चलते कंस समझ गया था कि ज्योतिष भविष्यवाणी अनुसार इतने बलशाली किशोर तो वसुदेव और देवकी के पुत्र ही हो सकते हैं। तब कंस ने दोनों भाइयों को पहलवानी के लिए निमंत्रण दिया, क्योंकि कंस चाहता था कि इन्हें पहलवानों के हाथों मरवा दिया जाए, लेकिन दोनों भाइयों ने पहलवानों के शिरोमणि चाणूर और मुष्टिक को मारकर कंस को पकड़ लिया और सबके देखते-देखते ही उसको भी मार दिया। कंस का वध करने के पश्चात कृष्ण और बलदेव ने कंस के पिता उग्रसेन को पुन: राजा बना दिया। उग्रसेन के 9 पुत्र थे, उनमें कंस ज्येष्ठ था। उनके नाम हैं- न्यग्रोध, सुनामा, कंक, शंकु अजभू, राष्ट्रपाल, युद्धमुष्टि और सुमुष्टिद। उनके कंसा, कंसवती, सतन्तू, राष्ट्रपाली और कंका नाम की 5 बहनें थीं। अपनी संतानों सहित उग्रसेनकुकुर-वंश में उत्पन्न हुए कहे जाते हैं और उन्होंने व्रजनाभ के शासन संभालने के पूर्व तक राज किया। कृष्ण बचपन में ही कई आकस्मिक दुर्घटनाओं का सामना करने तथा किशोरावस्था में कंस के षड्यंत्रों को विफल करने के कारण बहुत लोकप्रिय हो गए थे। कंस के वध के बाद उनका अज्ञातवास भी समाप्त हुआ और उनके सहित राज्य का भय भी। तब उनके पिता और पालक ने दोनों भाइयों की शिक्षा और दीक्षा का इंतजाम किया Gyanchand Bundiwal. Kundan Jewellers We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices. हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष होल सेल भाव में मिलते हैं और ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 website www.kundanjewellersnagpur.com

Monday, 9 September 2019

गणेश जी की 4 सुंदर कथाएं

गणेश जी की 4 सुंदर कथाएं
भगवान गणपति के अवतरण व उनकी लीलाओं तथा उनके मनोरम स्वरूपों का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में प्राप्त होता है। कल्पभेद से उनके अनेक अवतार हुए हैं।
1..पद्म पुराण के अनुसार एक बार श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के उबटन से एक आकर्षक कृति बनाई। फिर उस आकृति को उन्होंने गंगा में डाल दिया। गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गई। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।
2.लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिए वर मांगा। आशुतोष शिव ने 'तथास्तु' कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया।
समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने पुष्प-वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार-बार प्रणाम किया। भगवान शिव ने गणेश जी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया।
3 .इसी तरह से ब्रह्म वैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण तथा शिव पुराण में भी भगवान गणेश जी के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएं मिलती हैं प्रजापति विश्वकर्मा की रिद्धी-सिद्धि नामक दो कन्याएं गणेश जी की पत्नियां हैं। सिद्धि से शुभ और रिद्धी से लाभ नाम के दो कल्याणकारी पुत्र हुए।
4 .गणेश चालीसा में वर्णित है : एक बार माता पार्वती ने विलक्षण पुत्र प्राप्ति हेतु बड़ा तप किया। जब यज्ञ पूरा हुआ अब श्री गणेश ब्राह्मण का रूप धर कर पहुंचें। अतिथि मानकर माता पार्वती ने उनका सत्कार किया। श्री गणेश ने प्रसन्न होकर वर दिया कि माते, पुत्र के लिए जो तप आपने किया है उससे आपको विशिष्ट बुद्धि वाला पुत्र बिना गर्भ के ही प्राप्त होगा। वह गणनायक होगा, गुणों की खान होगा। ऐसा कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए और पालने में बालक का स्वरूप धारण कर लिया। माता पार्वती की खुशी का ठिकाना न रहा। आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। भव्य उत्सव मनाया जाने लगा। चारों दिशाओं से देवी-देवता विलक्षण पार्वती नंदन को देखने पहुंचने लगे। शनिदेव भी पहुंचे। लेकिन वे अपने दृष्टि अवगुण की वजह से बालक के सामने जाने से बचने लगे। माता पार्वती ने आग्रह किया कि क्या शनि देव को उनका उत्सव और पुत्र प्राप्ति अच्छी नहीं लगी? संकोच के साथ शनि देव सुंदर बालक को देखने पहुंचे। लेकिन यह क्या
शनिदेव की नजर पड़ते ही बालक का सिर आकाश में उड़ गया। माता पार्वती विलाप करने लगी। कैलाश में हाहाकार मच गया। हर तरफ यही चर्चा होने लगी कि शनि ने पार्वती पुत्र का नाश किया है। तुरंत भगवान विष्णु ने गरूड़ देव को आदेश दिया कि जो भी पहला प्राणी नजर आए उसका सिर काटकर ले आओ.... उन्हें रास्ते में सबसे पहले हाथी मिला। गरूड़ देव हाथी का सिर लेकर आए। बालक के धड़ के ऊपर उसे रखा। भगवान शंकर ने उन पर प्राण मंत्र छिड़का। सभी देवताओं ने मिलकर उनका गणेश नामकरण किया और उन्हें प्रथम पुज्य होने का वरदान भी दिया। इस प्रकार श्री गणेश का जन्म हुआ।
    
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श्री गजानन महाराज बावन्नी जय जय सद्गुरु गजानन

श्री गजानन महाराज बावन्नी || जय जय सद्गुरु गजानन ।रक्षक तूची भक्तजना ।।१।। निर्गुण तू परमात्मा तू ।सगुण रुपात गजानन तू ।।२।। सदेह तू परि विदेह तू ।देह असूनि देहातील तू ।।३।। माघ वद्य सप्तमी दिनी । शेगांवात प्रगटोनी ।।४।। उष्ट्या पञावळी निमित्त । विदेहत्व तव हो प्रगट ।।५।। बंकटलालावरी तुझी । कृपा जाहली ती साची ।।६।। गोसाव्याच्या नवसासाठी । गांजा घेसी लावुनी ओठी ।।७।। तव पदतीर्थे वाचविला । जानराव तो भक्तभला ।।८।। जानकीराम चिंचवणे । नासवुनी स्वरुपी आणणे ।।९।। मुकिन चंदुचे कानवले । खाऊनी कृतार्थ त्या केले ।।१०।। विहिरामाजी जलविहिना । केले देवा जलभरना ।।११।। मद्य माश्यांचे डंख तुवा । सहन सुखे केले देवा ।।१२।। त्यांचे काटे योगबले । काढुनि सहजी दाखविले ।।१३।। कुश्ती हरिशी खेळोनी । शक्ती दर्शन घडवोनी ।।१४।। वेद म्हणूनी दाखविला । चकित द्रविड ब्राम्हण झाला ।।१५।। जळत्या पर्यकावरती । ब्रम्हगिरीला ये प्रचिती ।।१६।। टाकळीकर हरिदासाचा । अश्र्व शांत केला साचा ।।१७।। बाळकृष्ण बाळापूरचा । समर्थ भक्तचि जो होता ।।१८।। रामदासरुपे त्याला । दर्शन देवुनि तोषविला ।।१९।। सुकलालाची गोमाता । व्दाड बहू होती ताता ।।२०।। कृपा तुझी होतांच क्षणी । शांत जाहली ती जननी ।।२१।। घुडे लश्मन शेगांवी । येता व्याधी तूं निरवी ।।२२।। दांभिकता परि ती त्याची । तू न चालवूनी घे साची ।।२३।। भास्कर पाटील तव भक्त । उध्दरिलासी तू त्वरीत ।।२४।। आध्न्या तव शिरसा वंद्य । काकहि मानति तुज वंद्य ।।२५।। विहिरीमाजी रक्षीयला । देवां तू गणु जवर्याला ।।२६।। पितांबराकरवी लीला । वठला आंबा पल्लविला ।।२७।। सुबुध्दी देशी जोश्याला । माफ करी तो दंडाला ।।२८।। सवडद येथील गंगाभारती । थुंकुनि वारली रक्तपिती ।।२९। पुंडलिकाचे गंडातर । निष्ठा जाणुनि केले दूर ।।३०।। ओंकारेश्र्वरी फुटली नौका । तारी नर्मदा शणात एका ।।३१।। माधवनाथा समवेत । केले भोजन अदृष्य ।।३२। लोकमान्य त्या टिळकांना । प्रसाद तूंची पाठविला ।।३३।। कवर सुताची कांदा भाकर । भक्शीलीस प्रेमाखातर ।।३४।। नग्न बैसुनी गाडीत । लिला दाविली विपरीत ।।३५।। बायजे चिती तव भक्ती । पुंडलिकावर विरक्त प्रिती ।।३६।। बापुना मनी विठ्ठल भक्ती | स्वये होशि तू विठ्ठल मूर्ती ।।३७।। कवठ्याचा त्या वारकर्याला । मरीपासूनी वाचविला ।।३८।। वासुदेव यति तुज भेटे । प्रेमाची ती खुण पटे ।।३९।। उध्दट झाला हवालदार । भस्मिभूत झाले घरदार ।।४०।। देहांताच्या नंतरही । कितीजना अनुभव येई ।।४१।। पडत्या मजुरा झेलियले । बघती जन आश्चर्य भले ।।४२।। आंगावरती खांब पडे । स्ञी वांचे आश्चर्य घडे ।।४३।। गजाननाच्या अदभुत लीला । अनुभव येती आज मितीला ।।४४।। शरण जाऊनी गजानना । दुःख तयाते करि कथना ।।४५। कृपा करी तो भक्तांसी | धावुन येतो वेगासी।।४६।। गजाननाची बावन्नी । नित्य असावी ध्यानीमनी ।।४७।। बावन्न गुरुवारी नेमे । करा पाठ बहूं भक्तीने ।।४८। विघ्ने सारी पडती दूर । सर्व सुखांचा येई पुर ।।४९।। चिंता सार्या दूर करी । संकटातुनी पार करी ।।५०।। सदाचार रत सदभक्ता । फळ लाभे बघता बघता ।।५१।। भक्त गण बोले जय बोला । गजाननाची जय बोला ।।५२।। जय बोला हो जय बोला । गजाननाची जय बोला।। अनंत कोटी ब्रम्हांडनायक महाराजाधिराज योगीराज परब्रम्ह सच्चिदानंद भक्त प्रतिपालक शेगांव निवासी समर्थ सदगुरु श्री गजानन महाराज की जय ।। गण गण गणात बोतेे ।।। Gyanchand Bundiwal. Kundan Jewellers We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices. हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष होल सेल भाव में मिलते हैं और ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 website www.kundanjewellersnagpur.com

Friday, 6 September 2019

चौसठ योगिनी तंत्र।

चौसठ योगिनी तंत्र।
आदिशक्ति का सीधा सा सम्बन्ध है इस शब्द का जिसमे प्रकृति या ऐसी शक्ति का बोध होता जो उत्पन्न करने और पालन करने का दायित्व निभाती है जिसने भी इस शक्ति की शरणमें खुद को समर्पित कर दिया उसे फिर किसी प्रकार कि चिंता करने कि कोई आवश्यकता नहीं वह परमानन्द हो जाता है चौसठ योगिनियां वस्तुतः माता आदिशक्ति कि सहायक शक्तियों के रूप में मानी जाती हैं। जिनकी मदद से माता आदिशक्ति इस संसार का राज काज चलाती हैं एवं श्रृष्टि के अंत काल में ये मातृका शक्तियां वापस माँ आदिशक्ति में पुनः विलीन हो जाती हैं और सिर्फ माँ आदिशक्ति ही बचती हैं फिर से पुनर्निर्माण के लिए। बहुत बार देखने में आता है कि लोग वर्गीकरण करने लग जाते हैं और उसी वर्गीकरण के आधार पर साधकगण अन्य साधकों को हीन - हेय दृष्टि से देखने लग जाते हैं क्योंकि उनकी नजर में उनके द्वारा पूजित रूप को वे मूल या प्रधान समझते हैं और अन्य को द्वितीय भाव से देखते हैं जबकि ऐसा उचित नहीं है हर साधक का दुसरे साधक के लिए सम भाव होना चाहिए मैं किन्तु नैतिक दृष्टिकोण और अध्यात्मिकता के आधार पर यदि देखा जाये तो न तो कोई उच्च है न कोई हीन हम आराधना करते हैं तो कोई अहसान नहीं करते यह सिर्फ अपनी मानसिक शांति और संतुष्टि के लिए है और अगर कोई दूसरा करता है तो वह भी इसी उद्देश्य कि पूर्ती के लिए। अब अगर हम अपने विषय पर आ जाएँ तो इस मृत्यु लोक में मातृ शक्ति के जितने भी रूप विदयमान हैं सब एक ही विराट महामाया आद्यशक्ति के अंग, भाग, रूप हैं साधकों को वे जिस रूप की साधना करते हैं उस रूप के लिए निर्धारित व्यवहार और गुणों के अनुरूप फल प्राप्त होता है। चौसठ योगिनियां वस्तुतः माता दुर्गा कि सहायक शक्तियां है जो समय समय पर माता दुर्गा कि सहायक शक्तियों के रूप में काम करती हैं एवं दुसरे दृष्टिकोण से देखा जाये तो यह मातृका शक्तियां तंत्र भाव एवं शक्तियोंसे परिपूरित हैं और मुख्यतः तंत्र ज्ञानियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं।
चौसठ योगिनियों के नाम। (1)―बहुरूप, (3)―तारा, (3)―नर्मदा, (4)―यमुना, (5)―शांति, (6)―वारुणी (7)―क्षेमंकरी, (8)―ऐन्द्री, (9)―वाराही, (10)―रणवीरा, (11)―वानर-मुखी, (12)―वैष्णवी, (13)―कालरात्रि, (14)―वैद्यरूपा, (15)―चर्चिका, (16)―बेतली, (17)―छिन्नमस्तिका, (18)―वृषवाहन, (19)―ज्वाला कामिनी, (20)―घटवार, (21)―कराकाली, (22)―सरस्वती, (23)―बिरूपा, (24)―कौवेरी, (25)―भलुका, (26)―नारसिंही, (27)―बिरजा, (28)―विकतांना, (29)―महालक्ष्मी, (30)―कौमारी, (31)―महामाया, (32)―रति, (33)―करकरी, (34)―सर्पश्या, (35)―यक्षिणी, (36)―विनायकी, (37)―विंध्यवासिनी, (38)―वीर कुमारी, (39)―माहेश्वरी, (40)―अम्बिका, (41)―कामिनी, (42)―घटाबरी, (43)―स्तुती, (44)―काली, (45)―उमा, (46)―नारायणी, (47)―समुद्र, (48)―ब्रह्मिनी, (49)―ज्वाला मुखी, (50)―आग्नेयी, (51)―अदिति, (51)―चन्द्रकान्ति, (53)―वायुवेगा, (54)―चामुण्डा, (55)―मूरति, (56)―गंगा, (57)―धूमावती, (58)―गांधार, (59)―सर्व मंगला, (60)―अजिता, (61)―सूर्यपुत्री (62)―वायु वीणा, (63)―अघोर, (64)―भद्रकाली।
चौसठ योगनियों के मंत्र।1)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा।
2)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा।
3)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा।
4)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा।
5)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा।
6)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा।
7)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा।
8)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा।
9)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा।
10)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा।
11)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा।
12)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बलाका काम सेविता स्वाहा।
13)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा।
14)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा।
15)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा।
16)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा।
17)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा।
18)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भगमालिनी तारिणी स्वाहा।
19)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा।
20)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा।
21)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा।
22)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा।
23)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा।
24)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा।
25)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा।
26)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा।
27)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा।
28)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विजया देवी वसुदा स्वाहा।
29)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा।
30)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा।
31)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा।
32)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा।
33)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री डाकिनी मदसालिनी स्वाहा।
34)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री राकिनी पापराशिनी स्वाहा।
35)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा।
36)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा।
37)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा।
38)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा।
39)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा।
40)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री षोडशी लतिका देवी स्वाहा।
41)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा।
42)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा।
43)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा।
44)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा।
45)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा।
46)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातंगी कांटा युवती स्वाहा।
47)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा।
48)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा।
49)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा।
50)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मोहिनी माता योगिनी स्वाहा।
51)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा।
52)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा।
53)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नारसिंही वामदेवी स्वाहा।
54)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा।
55)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा।
56)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा।
57)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा।
58)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा।
59)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा।
60)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा।
61)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा।
62)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा।
63)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा।
64)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा
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