Thursday, 6 February 2014

रथ सप्तमी माघ मास की सूर्य सप्तमी को जो व्यक्ति सूर्य की पूजा

रथ सप्तमी माघ मास की सूर्य सप्तमी को जो व्यक्ति सूर्य की पूजा करके मीठा भोजन अथवा फलाहार करता है उसे पूरे साल सूर्य की पूजा करने का पुण्य एक ही बार में प्राप्त हो जाता है। इस व्रत के महत्व के विषय में भविष्य पुराण में कहा गया है कि यह व्रत सौभाग्य, रुप और संतान सुख प्रदान करने वाला है।
माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय में स्नान करके सूर्य को दीप दान करना उत्तम फलदायी माना गया है। प्रातः काल किसी अन्य के जलाशय में स्नान करने से पूर्व स्नान किया जाय तो यह बड़ा ही पुण्यदायी होता है। भविष्य पुराण में इस संदर्भ में एक कथा है कि एक गणिका ने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया था।
इसे जब अपने अंत समय का ख्याल आया तो वशिष्ठ मुनि के पास गयी। गणिका ने मुनि से अपनी मुक्ति का उपाय पूछा। इसके उत्तर में मुनि ने कहा कि, माघ मास की सप्तमी अचला सप्तमी है।
इस दिन किसी अन्य के जल में स्नान करके जल को चल बनाने से पूर्व स्नान किया जाए और सूर्य को दीप दान करें तो महान पुण्य प्राप्त होता है। गणिका ने मुनि के बताए विधि के अनुसार माघी सप्तमी का व्रत किया जिससे शरीर त्याग करने के बाद उसे इन्द्र की अप्सराओं का प्रधान बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।


पूरे साल भले ही आप नमक खाएं लेकिन साल में एक दिन ऎसा है जिस दिन नमक का त्याग करना चाहिए। 
यह दिन माघ मास की शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि है।   इस सप्तमी को शास्त्रों में अचला सप्तमी, भानु सप्तमी, अर्क, रथ और पुत्र सप्तमी भी कहा गया है। भविष्य पुराण में इस सप्तमी को वर्ष भर की सप्तमी में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।
माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है. कथा के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान हो गया था. एक बार दुर्वसा ऋषि श्रीकृष्ण से मिलने के लिए आये. दुर्वासा ऋषि अत्यंत क्रोधी स्वभाव के थे. उनके क्रोध से सभी परिचित थे परन्तु शाम्ब को अनके क्रोध का ज्ञान नहीं था. दुर्वासा ऋषि बहुत तप करते थे. जब वह श्रीकृष्ण से मिलने आये तब भी एक बहुत लम्बे समय तक तप करके आये थे. तप करने से उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था. श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ने जब दुर्वासा ऋषि के कमजोर शरीर को देखा तब वह जोर से हंसने लगा. दुर्वासा ऋषि को शाम्ब के हंसने का जब कारण पता चला तब अपने क्रोधी स्वभाव के कारण उन्हें बहुत क्रोध आ गया और शाम्ब की धृष्ठता को देखकर उन्हों ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया. ऋषि के श्राप देते ही शाम्ब के शरीर पर तुरन्त असर होना आरम्भ हो गया. 

शाम्ब के शरीर की चिकित्सकों ने हर तरह से चिकित्सा की परन्तु कुछ भी लाभ नहीं हुआ. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र शाम्ब को सूर्य भगवान की उपासना करने के लिए कहा. शाम्ब अपने पिता की आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना करनी आरम्भ कर दी. कुछ समय बीतने के बाद शाम्ब कुष्ठ रोग से मुक्त हो गये. 

उपरोक्त कथा के अतिरिक्त रथ आरोग्य सप्तमी के साथ एक अन्य कथा भी जुडी़ है. उस कथा के अनुसार छठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के दरबार में एक कवि थे जिनका नाम मयूरभट्ट था. मयूर भट्ट एक बार कुष्ठ रोग से पीडि़त हो गये. रोग से पीडि़त होने पर मयूर भट्ट ने सूर्य सप्तक की रचना की. इस रचना के पूर्ण होते ही सूर्य्देव ने प्रसन्न होकर उन्हें रोगमुक्त कर दिया.
सूर्य सप्तमी के अन्य नाम | 
सूर्य की रोग शमन शक्ति का उल्लेख वेदों में, पुराणों में और योग शास्त्र आदि में विस्तार से किया गया है. आरोग्य कारक शरीर को प्राप्त करने के लिए अथवा शरीर को निरोग रखने के लिए सूर्य की उपासना सर्वदा शुभ फलदायी होगी. माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी आदि के विभिन्न नाम से जाना जाता है. इस दिन जो भी व्यक्ति सूर्यदेव की उपासना करता है वह सदा निरोगी रहता है.
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ॐ घृणि सूर्याय नम:। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:। ॐ ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य श्रीं ॐ । ॐ आदित्याय विद्महे मार्तण्डाय धीमहि तन्न सूर्य: प्रचोदयात्। ॐघृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य: ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा । ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या,गृहाणार्घय दिवाकर:। ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ। ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः


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