Sunday 15 September 2013

विशवकर्मा-पुजा

प्राचीन ग्रंथो उपनिषद एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पायेगें कि आदि काल से ही विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित है । भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कोर्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा किया गया है । पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होनेवाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है । कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है । ये "शिल्पशास्त्र" के आविष्कर्ता हैं। पुराणानुसार यह प्रभास वसु के पुत्र हैं। "महाभारत" में इन्हें लावण्यमयी के गर्भ से जन्मा बताया है। विश्वकर्मा रचना के पति हैं। देवताओं के विमान भी विश्वकर्मा बनाते हैं। इन्हें अमर भी कहते हैं। "रामायण" के अनुसार विश्वकर्मा ने राक्षसों के लिए लंका की सृष्टि की। सूर्य की पत्नी संज्ञा इन्हीं की पुत्री थी। सूर्य के ताप को संज्ञा सहन नहीं कर सकी, तब विश्वकर्मा ने सूर्य तेज का आठवां अंश काट उससे चक्र, वज्र आदि शस्त्र बनाकर देवताओं को प्रदान किए ! विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का वर्धकी या देव-बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है। यही मान्यता अनेक पुराणों में आई है, जबकि शिल्प के ग्रंथों में वह सृष्टिकर्ता भी कहे गए हैं। स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। कहा जाता है कि वह शिल्प के इतने ज्ञाता थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने में समर्थ थे।
विश्व के सबसे पहले तकनीकी ग्रंथ विश्वकर्मीय ग्रंथ ही माने गए हैं। विश्वकर्मीयम ग्रंथ इनमें बहुत प्राचीन माना गया है, जिसमें न केवल वास्तुविद्या, बल्कि रथादि वाहन व रत्नों पर विमर्श है। विश्वकर्माप्रकाश, जिसे वास्तुतंत्र भी कहा गया है, विश्वकर्मा के मतों का जीवंत ग्रंथ है। इसमें मानव और देववास्तु विद्या को गणित के कई सूत्रों के साथ बताया गया है, ये सब प्रामाणिक और प्रासंगिक हैं। मेवाड़ में लिखे गए अपराजितपृच्छा में अपराजित के प्रश्नों पर विश्वकर्मा द्वारा दिए उत्तर लगभग साढ़े सात हज़ार श्लोकों में दिए गए हैं। संयोग से यह ग्रंथ 239 सूत्रों तक ही मिल पाया है।'Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.

 

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