Sunday, 15 September 2013

डोल ग्यारस:,,,जलझूलनी एकादशी


डोल ग्यारस:,,,जलझूलनी एकादशी ,,,,,, कृष्ण जन्म के ग्यारहवें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था। इसी दिन को 'डोल ग्यारस' के रूप में मनाया जाता है। जलवा पूजन के बाद ही संस्कारों की शुरूआत होती है। जलवा पूजन को कुआँ पूजन भी कहा जाता है।
'डोल ग्यारस' के अवसर पर कृष्ण मंदिरों में पूजा-अर्चना होती है तथा भगवान कृष्ण की मूर्ति को 'डोल' में विराजमान कर उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है। इस अवसर पर कई शहरों में मेले, चल समारोह और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है।
ग्यारस का महत्व : शुक्ल-कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को चंद्रमा की ग्यारह कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है। फलत: शरीर की अस्वस्था और मन की चंचलता स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। इसी कारण उपवास द्वारा शरीर को संभालना और इष्टपूजन द्वारा मन को नियंत्रण में रखना एकादशी व्रत विधान का मुख्य रहस्य है।
एकादशी तिथि (ग्यारस) का वैसे भी सनातन धर्म में बहुत महत्‍व माना गया है। ऐसी मान्‍यता है, कि डोल ग्‍यारस का व्रत रखे बगैर जन्‍माष्‍टमी का व्रत पूर्ण नहीं होता। एकादशी तिथि में भी शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रेष्ठ माना गया है। शुक्ल पक्षों में भी पद्मीनी एकादशी का पुराणों में बहुत महत्व बताया गया है।
एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान कृष्ण की भक्ति करना चाहिए। इस व्रत में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस व्रत को करने से सभी तरह की कामना पूर्ण होती है तथा रोग और शोक मिट जाते हैं।

'Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.

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