Sunday, 15 September 2013

वामन जयंती भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी,16-09-2013,सोमवार


वामन जयंती भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी,16-09-2013,सोमवार,, को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रुप में मनाया जाता है
वामन जयंती कथा,,,,,,,,,,,वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है. भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है इसके विषय में श्रीमद्भगवदपुराण में विस्तार से उल्लेख है. वामन अवतार कथानुसार देव और दैत्यों के युद्ध में दैत्य पराजित होने लगते हैं. पराजित दैत्य मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले जाते हैं और दूसरी ओर दैत्यराज बलि इन्द्र के वज्र से मृत हो जाते हैं तब दैत्यगुरु शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे दैत्य को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं. राजा बलि के लिए शुक्राचार्यजी एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथ अग्नि से दिव्य रथ, बाण, अभेद्य कवच पाते हैं इससे असुरों की शक्ति में वृद्धि हो जाती है और असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है.
इंद्र को राजा बलि की इच्छा का ज्ञान होता है कि राजा बलि इस सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जाएंगे, तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं. भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और भगवान विष्णु वामन रुप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं. दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यपजी के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है. तब भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं.
महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए. तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं. उस समय राजा बलि नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम यज्ञ कर रहे होते हैं.
वामन अवतारी श्रीहरि, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच जाते हैं. ब्राह्मण बने श्रीविष्णु भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं. राजा बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्रीविष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते हैं. वामन रुप में भगवान एक पग में स्वर्गादि उर्ध्व लोकों को ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं. अब तीसरा पीजी रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता है. बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया. ऎसे मे राजा बलि यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा. आखिरकार बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देता है और कहता है तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए. वामन भगवान ने ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को पटल लोक में रहने का आदेश करते हैं. बलि सहर्ष भवदाज्ञा को शिरोधार्य करता है.
बलि के द्वारा वचनपालन करने पर, भगवान श्रीविष्णु अत्यन्त प्रसन्न्द होते हैं और दैत्यराज बलि को वर् माँगने को कहते हैं. इसके बदले में बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लेता है, श्रीविष्णु को अपना वचन का पालन करते हुए, पातललोक में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार करते हैं..
(भगवान कैसे इस वरदान से मुक्त होते हैं, ये चर्चा फिर कभी)
* वामन जयंती महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर इस दिन श्रवण नक्षत्र हो तो इस व्रत की महत्ता और भी बढ़ जाती है. भक्तों को इस दिन उपवास करके वामन भगवान की स्वर्ण प्रतिमा बनवाकर पंचोपचार सहित उनकी पूजा करनी चाहिए. जो भक्ति श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक वामन भगवान की पूजा करते हैं वामन भगवान उनको सभी कष्टों से उसी प्रकार मुक्ति दिलाते हैं जैसे उन्होंने देवताओं को राजा बलि के कष्ट से मुक्त किया था.

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