Saturday, 28 March 2015

रामनवमी

रामनवमी ऐसा ही एक पर्व है,, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रतिवर्ष नये विक्रम सवंत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को एक पर्व राम जन्मोत्सव का जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है, समस्त देश में मनाया जाता है। इस देश की राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियाँ रही हैं जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है। रामनवमी, भगवान राम की स्‍मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें "मर्यादा पुरूषोतम" कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्‍मदिन की स्‍मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्‍य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्‍य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्‍या में उनके जन्‍मोत्‍सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्‍य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है।  
भगवान विष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है पर उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए और आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है।
राम का जन्म,,,पुरूषोतम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता हैं। इस दिन सरयू नदी में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।
रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्‍यक सामग्री रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख हैं। पूजा के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्‍य परिवार के सभी सदस्‍यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है।
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मंगल भवन अमंगल हारी, दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि॥

Saturday, 21 March 2015

नवरात्रि व्रत चैत्र शुक्ल नवरात्र वर्ष के चार नवरात्रि में दो मुख्य चैत्र और आश्विन के नवरात्र हैं।

नवरात्रि  व्रत  चैत्र शुक्ल नवरात्र   वर्ष के चार  नवरात्रि में दो मुख्य चैत्र और आश्विन के नवरात्र हैं। इनमें भी चैत्र नवरात्र की अपनी विशिष्टता और महत्ता है। इसकी विशिष्टता का कारण इस अवधि में सूक्ष्म वातावरण में दिव्य हलचलों का होना है।
ये चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघकी शुक्ल प्रतिपदासे नवमीतक नौ दिनके होते हैं; परंतु प्रसिद्धिमें चैत्र और आश्विनके नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं । इनमें भी देवीभक्त आश्विनके नवरात्र आधिक करते हैं । इनको यथाक्रम वासन्ती और शारदीय कहते हैं । इनका आरम्भ चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदाको होता है । अतः यह प्रतिपदा ’ सम्मुखी ’ शुभ होती है ।
नवरात्रोंके आरम्भमें अमायुक्त प्रतिपदा अच्छी नहीं । आरम्भमें घटस्थापनके समय यदि चित्रा और वैधूति हो तो उनका त्याग कर देना चाहिये; क्योंकि चित्रामें धनका और वैधृतिमें पुत्रका नाश होता है । घटस्थापनका समय ’ प्रातःकाल ’ है । अतः उस दिन चित्रा या वैधृति रात्रितक रहें ( और रात्रिमें नवरात्रोंका स्थापन या आरम्भ होता नहीं, ) तो या तो वैधृत्यादिके आद्य तीन अंश त्यागकर चौथे अंशमें करे या मध्याह्लके समय ( अभिजित मुहूर्तमें ) स्थापन करे । स्मरण रहे कि देवीका आवाहन, प्रवेशन, नित्यार्चन और विसर्जन – ये सब प्रातःकालमें शुभ होते हैं । यदि नवरात्रोंमें घटस्थापन करनेके बाद सूतक हो जाय तो को‌ई दोष नहीं, परंतु पहले हो जाय तो पूजनादि स्वयं न करे ।
नवरात्रका प्रयोग प्रारम्भ करनेके पहले सुगन्धयुक्त तैलके उद्वर्तनादिसे मङ्गलस्त्रान करके नित्यकर्म करे और स्थिर शान्तिके पवित्र स्थानमें शुभ मृत्तिकाकी वेदी बनाये । उसमें जौ और गेहूँ – इन दोनोंको मिलाकर बोये । वहीं सोने, चाँदी, ताँबे या मिट्टीके कलशको यथाविधि स्थापन करके गणेशादिका पूजन और पुण्याहवाचन करे और पीछे देवी ( या देव ) के समीप शुभासनपर पूर्व ( या उत्तर ) मुख बैठकर
“मम महामायाभगवती ( वा मायाधिपति भगवत ) प्रीतये ( आयुर्बलवित्तारोयसमादरादिप्राप्तये वा ) नवरात्रव्रतमहं करिष्ये ।”
यह संकल्प करके मण्डलके मध्यमें रखे हु‌ए कलशपर सोने, चाँदी, धातु, पाषाण, मृत्तिका या चित्रमय मूर्ति विराजमान करे और उसका आवाहन आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्त्रान, वस्त्र, गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, नीराजन, पुष्पाञ्जलि, नमस्कार और प्रार्थना आदि उपचारोंसे पूजन करे ।
स्त्री हो या पुरुष, सबको नवरात्र करना चाहिये । यदि कारणवश स्वयं न कर सकें तो प्रतिनिधि ( पति – पत्नी, ज्येष्ठ पुत्र, सहोदर या ब्राह्मण ) द्वारा करायें । नवरात्र नौ रात्रि पूर्ण होनेसे पूर्ण होता है । इसलिये यदि इतना समय न मिले या सामर्थ्य न हो तो सात, पाँच, तीन या एक दिन व्रत करे और व्रतमें भी उपवास, अयाचित, नक्त या एकभुक्त – जो बन सके यथासामर्थ्य वही कर ले ।
यदि सामर्थ्य हो तो नौ दिनतक नौ ( और यदि सामर्थ्य न हो तो सात, पाँच, तीन या एक ) कन्या‌ओंको देवी मानका उनको गन्ध – पुष्पादिसे अर्चित करके भोजन कराये और फिर आप भोजन करे । व्रतीको चाहिये कि उन दिनोंमें भुशयन, मिताहार, ब्रह्मचर्यका पालन, क्षमा, दया, उदारता एवं उत्साहदिकी वृद्धि और क्रोध, लोभ, मोहादिका त्याग रखे ।
चैत्रके नवरात्रमें शक्तिकी उपासना तो प्रसिद्ध ही हैं, साथ ही शक्तिधरकी उपासना भी की जाती है । उदाहरणार्थ एक ओर देवीभागवत कालिकापुराण, मार्कण्डेयपुराण, नवार्णमन्त्नके पुरश्चरण और दुर्गापाठकी शतसहस्त्रायुतचण्डी आदि होते हैं तो दूसरी ओर श्रीमद्भागवत, अध्यात्मरामायण, वाल्मीकीय रामायण, तुलसीकृत रामायण, राममन्त्न – पुरश्चरण एक – तीन – पाँच – सात दिनकी या नवाह्लिक अखण्ड रामनामधव्नि और रामलीला आदि किये जाते हैं । यही कारण है कि ये ’ देवी – नवरात्र ’ और ’ राम – नवरात्र ’ नामोंसे प्रसिद्ध हैं ।
इस प्रकार नौ रात्रि व्यतीत होनेपर दसवें दिन प्रातःकालमें विसर्जन करे तो सब प्रकारके विपुल सुख – साधन सदैव प्रस्तुत रहते हैं और भगवान ( या भगवती ) प्रसन्न होते हैं ।


गुड़ी पाडवा

गुड़ी पड़वा मंगलवार, अप्रैल 13, 2021 
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 12 अप्रैल 2021 दिन सोमवार की सुबह 08 बजे से।
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 13 अप्रैल 2021 दिन मंगलवार की सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक।
आप को नव विक्रम सम्वत्सर-2078- और चैत्र नवरात्रि एवं गुड़ी पाडवा के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
गुड़ी पाडवा चैत्र शुद्ध प्रतिपदा वर्ष के साढ़े तीन शुभ मुहूर्तों में से एक माना जाता है। सोने की लंका विजय के पश्चात भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का दिन भी चैत्र शुद्ध प्रतिपदा ही था। तब अयोध्यावासियों ने घर-घर गुढ़ी तोरण लगाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की थी। तभी से इस परंपरा का पालन किया जाने लगा।
इस त्योहार में मोक्षद्वार का गुरुमंत्र छिपा है। तनकर खड़ी बांस की गुड़ी ' परमार्थ में पूर्ण शरणागति का संदेश देती है, वहीं पाड़वा अर्थात साष्टांग नमस्कार (सिर, हाथ, पैर, हृदय, आंख, जांघ, वचन और मन) आठ अंगों से भूमि पर लेटकर किए जाने वाले प्रणाम का संकेत है। इस त्योहार में आदर्श जीवन का प्रतिबिंब नजर आता है कि विनय से ही विद्या प्राप्त की जा सकती है।
'गुढ़ी' की लाठी को तेल हल्दी लगाकर सजाते हैं। उस पर चांदी या तांबे का लोटा उल्टा डाल रेशमी वस्त्र पहना फूलों और शक्कर के हार और नीम की टहनी बांध दरवाजे पर खड़ी करते हैं।
तनी हुई रीढ़ से इज्जत के साथ गर्दन हमेशा ऊंची रख जीना यही तो 'गुढ़ी' हमें सिखाती है। इस प्रकल्प में ईश्वरीय अनुष्ठान भी जरूरी है यह सीख भी कहीं न कहीं छिपी हुई है। बांस की लाठी में रीढ़ की समानता नजर आती है तो चांदी का कलश मस्तक का प्रतीक है।
यह कलश ब्रह्मांड की विद्युत तरंगों को खींच कलशरूपी पिरामिड से नीचे की दिशा में शक्ति को फैलाता है। उत्तम चैत्र मास और ऋतु वसंत का यह दिन जब सूर्य किरणों में नई चमक होती है तो तनी हुई रीढ़ पर अधिष्ठित कलश सूर्य किरणों को एकत्र कर उन्हें परावर्तित भी करता है।
गुढ़ी का संदेश यही है कि हम सूर्य से शक्ति पाएं और समाज के शुभकर्मों में लगाएं। स्नान, सुगंधित वस्तुओं, षडरस (मीठा, नमकीन, कडुवा, चरपरा, कसैला और खट्टा इन छह रसों), रेशमी वस्त्रालंकार, पकवान इन तमाम वस्तुओं का उपभोग इस अवसर पर जरूरी होता है।
ऋतु के संधिकाल में तृष्णा हरण हेतु शक्कर और अमृत गुणों से भरपूर रोगरोधक नीम और गुड़ धनिए की योजना हमारे बुजुर्गों के आयुर्वेद समन्वय के नजरिए को दर्शाती है। ब्रह्मपुराण, अथर्ववेद और शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी।
महाभारत में युधिष्ठिर का राज्यारोहण इसी दिन माना जाता है। इस दिन प्रात: सूर्य को अर्घ दिया जाता है। गुड़ी ब्रह्मध्वज के प्रतीक के तौर पर लगाई जाती है। महाराष्ट्र में छत्रपत्रि शिवाजी की विजय ध्वजा के प्रतीक के तौर पर इसे लगाया जाता है।
चैत्र ही ऐसा महीना है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पुष्पित होती हैं। प्रकृति में जीवन का नया संचार होता है। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस भी माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है इसलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।
इस दिन को आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में 'उगादि' और महाराष्ट्र में 'गुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है। आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में आम इसी दिन से खाया जाता है। आज भी हमारे यहां शिक्षा, राजकीय कोष या किसी भी शुभ कार्य के लिए इस अवसर को चुना जाता है और उसके पीछे मान्यता यही है कि इस अवसर पर मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन सभी आलस्य त्याग सचेतन हो जाते हैं वंसतोत्सव का भी यही आधार है। जब चहुंओर नवीनता का भाव रहता है तो हम भी नयावर्ष क्यों न मनाएं। इसी कारण यहां से नववर्ष की शुरुआत मानी है।

Friday, 20 March 2015

Nau Durga Raksha mantra

Nau Durga Raksha mantra

Om Shailputri Maiya Rakhsa Karo Om Jag-Jana-ni Devi Rakhsa Karo Om Nav Durga Namah Om JagJanani Namah

Om Bhramcharni Maiya Rakhsa Karo Om Bhavatarani Devi Rakhsa Karo Om Nav Durga …..
Om Chandraghanta Chandi Rakhsa Karo Om Bhayaharini Maiya Rakhsa Karo Om Nav Durga …..
Om Kushmanda Tum Hi Rakhsa Karo Om Shakthirupa Maiya Rakhsa Karo
Om Nav Durga …..
Om Skandmata Mata Maiya Rakhsa Karo Om Jagadamba Jana-ni Rakhsa Karo
Om Nav Durga …..
Om Kaatyayani Maiya Rakhsa Karo Om Pap-nashini Ambe Rakhsa Karo Om Nav Durga …..
Om Kaalratri Kali Rakhsa Karo Om Sukhadati Maiya Rakhsa Karo Om Nav Durga …..
Om Mahagauri Maiya Rakhsa Karo Om Bhaktidati Rakhsa Karo Om Nav Durga …..
Om Siddhiratri Maiya Rakhsa Karo Om Nav Durga Devi Rakhsa Karo Om Nav Durga ….

नव दुर्गा रक्षा मंत्र

नव दुर्गा रक्षा मंत्र 
नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप – श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री – की पूजा की जाती है। यह क्रम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रातकाल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।
ॐ शैलपुत्री मैया रक्षा करो ॐ जगजननि देवी रक्षा करो ॐ नव दुर्गा नमः ॐ जगजननी नमः
ॐ ब्रह्मचारिणी मैया रक्षा करो ॐ भवतारिणी देवी रक्षा करो ॐ नव दुर्गा नमः ॐ जगजननी नमः
ॐ चंद्रघणटा चंडी रक्षा करो ॐ भयहारिणी मैया रक्षा करो ॐ नव दुर्गा नमः ॐ जगजननी नमः
ॐ कुषमांडा तुम ही रक्षा करो  ॐ शक्तिरूपा मैया रक्षा करो ॐ नव दुर्गा नमः ॐ जगजननी नमः
ॐ स्कन्दमाता माता मैया रक्षा करो ॐ जगदम्बा जननि रक्षा करो ॐ नव दुर्गा नमः ॐ जगजननी नमः
ॐ कात्यायिनी मैया रक्षा करो ॐ पापनाशिनी अंबे रक्षा करो ॐ नव दुर्गा नमः ॐ जगजननी नमः
ॐ कालरात्रि काली रक्षा करो ॐ सुखदाती मैया रक्षा करो  ॐ नव दुर्गा नमः ॐ जगजननी नमः
ॐ महागौरी मैया रक्षा करो ॐ भक्तिदाती रक्षा करो ॐ नव दुर्गा नमः ॐ जगजननी नमः
 ॐ सिद्धिरात्रि मैया रक्षा करो ॐ नव दुर्गा देवी रक्षा करो ॐ नव दुर्गा नमः ॐ जगजननी नमः
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हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत २०७२ कीलक नामक संवत्सर एवं नवरात्रि की सभी को हार्दिक शुभकामनायें। आओ, हम इस अवसर पर अपनी गौरवशाली संस्कृति और धर्म की रक्षा का संकल्प लें।सूर्य की प्रथम किरण के साथ अपने अपने घरों में और मंदिरों में नव वर्ष का स्वागत करें
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता हैं, इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका होती है। ‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा‘ के रूप में मनाया जाता है।
कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधवारें, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पिक्षयों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुंरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं। चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है।
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नवरात्रि में कैसे करें 12 राशियों के 12 नवरात्रि मंत्र

 नवरात्रि में कैसे करें 12 राशियों के  12 नवरात्रि मंत्र

नवरात्रि के पावन महोत्सव पर प्रस्तुत है आपकी राशि का पौराणिक मंत्र। राशि का मंत्र जप कर देवी को प्रसन्न करना अत्यंत आसान है। 
समय की कमी और अ‍त्यधिक व्यस्तता के चलते अगर आप नहीं कर पा रहे हैं विधिवत पूजन तो हर प्रकार की कृपा प्राप्ति के लिए पढ़ें सिर्फ अपनी ही राशि का मंत्र-    मेषॐ ह्रीं उमा देव्यै नम:। अथवा ॐ ऐं सरस्वत्यै नम :।
वृषॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिका देव्यै नम:।
मिथुन ॐ दुं दुर्गायै नम:।
कर्कॐ ललिता देव्यै नम:।
सिंहॐ ऐं महासरस्वती देव्यै नम:।
कन्याॐ शूल धारिणी देव्यै नम:।
तुला ॐ ह्रीं महालक्ष्म्यै नम:।
वृश्चिकॐ शक्तिरूपायै नम: या ॐ क्लीं कामाख्यै नम:।
धनुॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
मकरॐ पां पार्वती देव्यै नम:।
कुंभ ॐ पां पार्वती देव्यै नम:।
मीन ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं दुर्गा देव्यै नम:।
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नव रात्रि पर दुर्गा देवी पूजा की संक्षिप्त विधि

नव रात्रि पर दुर्गा देवी पूजा की संक्षिप्त विधि,,,
सबसे पहले आसन पर बैठकर जल से तीन बार शुद्ध जल से आचमन करे- ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ नारायणाय नम: फिर हाथ में जल लेकर हाथ धो लें। हाथ में चावल एवं फूल लेकर अंजुरि बांध कर दुर्गा देवी का ध्यान करें। 
आगच्छ त्वं महादेवि। स्थाने चात्र स्थिरा भव। 
यावत पूजां करिष्यामि तावत त्वं सन्निधौ भव।। 
श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:' आसनार्थे पुष्पानी समर्पयामि।- भगवती को आसन दें।
श्री दुर्गादेव्यै नम: पाद्यम, अर्ध्य, आचमन, स्नानार्थ जलं समर्पयामि। - आचमन ग्रहण करें।
श्री दुर्गा देवी दुग्धं समर्पयामि - दूध चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी दही समर्पयामि - दही चढा़एं।
श्री दुर्गा देवी घृत समर्पयामि - घी चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी मधु समर्पयामि - शहद चढा़एं
श्री दुर्गा देवी शर्करा समर्पयामि - शक्कर चढा़एं।
श्री दुर्गा देवी पंचामृत समर्पयामि - पंचामृत चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी गंधोदक समर्पयामि - गंध चढाएं।
श्री दुर्गा देवी शुद्धोदक स्नानम समर्पयामि - जल चढा़एं।
आचमन के लिए जल लें,
श्री दुर्गा देवी वस्त्रम समर्पयामि - वस्त्र, उपवस्त्र चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी सौभाग्य सूत्रम् समर्पयामि-सौभाग्य-सूत्र चढाएं।
श्री दुर्गा-देव्यै पुष्पमालाम समर्पयामि-फूल, फूलमाला, बिल्व पत्र, दुर्वा चढ़ाएं।
श्री दुर्गा-देव्यै नैवेद्यम निवेदयामि-इसके बाद हाथ धोकर भगवती को भोग लगाएं।
श्री दुर्गा देव्यै फलम समर्पयामि- फल चढ़ाएं।
तांबुल (सुपारी, लौंग, इलायची) चढ़ाएं- श्री दुर्गा-देव्यै ताम्बूलं समर्पयामि।
मां दुर्गा देवी की आरती करें।
देवी पूजा की संक्षिप्त विधि है।
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Sunday, 8 March 2015

तिलक लगाने की परंपरा भारतीय संस्कृति

तिलक लगाने की परंपरा भारतीय संस्कृति अति प्राचीन है। प्रारंभ से ही माना जाता है कि मस्तस्क पर तिलक लगाने से व्यक्ति का गौरव बढ़ता है। हिंदू संस्कृति में तिलक एक पहचान चिह्न का काम करता है। तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। तिलक लगाने से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है। मन इधर-उधर की फालतू बातों में नहीं भटकता है। तिलक ,,,,,, आवश्यक है
पूजा और भक्ति का एक प्रमुख अंग तिलक है। भारतीय संस्कृति में पूजा-अर्चना, संस्कार विधि, मंगल कार्य, यात्रा गमन, शुभ कार्यों के प्रारंभ में माथे पर तिलक लगाकर उसे अक्षत से विभूषित किया जाता है।उत्तर भारत में आज भी तिलक-आरती के साथ आदर सत्कार-स्वागत कर तिलक लगाया जाता है।
तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाए जाते हैं जो हमारे चिंतन-मनन का स्थान है- यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसे आज्ञा-चक्र भी कहते हैं।इसी चक्र के एक ओर दाईं ओर अजिमा नाड़ी होती है तथा दूसरी ओर वर्णा नाड़ी है।इन दोनों के संगम बिंदु पर स्थित चक्र को निर्मल,विवेकशील, ऊर्जावान, जागृत रखने के साथ ही तनावमुक्त रहने हेतु ही तिलक लगाया जाता है।इस बिंदु पर यदि सौभाग्यसूचक द्रव्य जैसे चंदन,केशर, कुमकुम आदि का तिलक लगाने से सात्विक एवं तेजपूर्ण होकर आत्मविश्वास में अभूतपूर्ण वृद्धि होती है, मन में निर्मलता, शांति एवं संयम में वृद्धि होती है।
तिलक कितने प्रकार के होते,,,,,,
मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि। सनातन धर्म में शैव, शाक्त,वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं। चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।
चन्दन के प्रकार .............. हरि चंदन, गोपी चंदन, सफेद चंदन, लाल चंदन,गोमती और गोकुल चंदन।
तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। आइए जानते हैं कितने तरह के होते हैं तिलक। सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।
शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है।
शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।
वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें प्रमुख हैं-लालश्री तिलक-इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है। **विष्णुस्वामी तिलक यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भौंहों के बीच तक आता है।
रामानंद तिलक विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है।
श्यामश्री तिलक इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।
अन्य तिलक गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। कई साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।
पूजन में तिलक का महत्व
पूजन में तिलक लगाना महत्वहपूर्ण एवं लाभकारी है। तिलक ललाट पर या छोटी सी बिंदी के रूप में दोनों भौहों के मध्य लगाया जाता है। मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। इनसे मेघाशक्ति बढ़ती है तथा मानसिक थकावट के विकार नहीं होते हैं।
मस्तक पर चंदन का तिलक सुगंध के साथ-साथ शीतलता देता है।
ईश्वर को चंदन अर्पण करने का भाव यह है कि हमारा जीवन आपकी कृपा रूपी सुगंध से भर जाए एवं हम व्यवहार से शीतल रहें अर्थात् ठंडे दिमाग से कार्य करें। अधिकतर उत्तेजना में कार्य बिगड़ता है और चंदन लगाने से उत्तेजना नियंत्रित होती है। चंदन का तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है।
*स्त्रियों को माथे पर कस्तूरी की बिंदी लगानी चाहिए। गणेश जी, हनुमान जी, दुर्गा माता जी या अन्य मूर्तियों से सिंदूर लेकर ललाट पर नहीं लगाना चाहिए, कारण है कि सिंदूर उष्ण होता है।
*वस्त्र धारण करने के उपरान्तल उत्तर की ओर मुंह करके ललाट पर तिलक लगाना चाहिए। श्वेत चन्दन, रक्त चंदन, कुंकुम, मृत्रिका विल्वपत्र भस्म आदि कई पदार्थों से साधक तिलक लगाते हैं। विप्र यदि बिना तिलक के संध्या तर्पण करता है तो वह सर्वथा निष्फल जाता है।
एक ही साधक को उर्ध्व् पुण्डर तथा भस्म से त्रिपुंड नहीं लगाना चाहिए। चन्दन से दोनों प्रकार के तिलक किए जा सकते हैं।
ललाट के मध्यभाग में दोनों भौहों से कुछ ऊपर ललाट बिंदु कहलाता है। सदैव इसी स्थान पर तिलक लगाना चाहिए।
अनामिका उंगली से तिलक करने से शान्ति मिलाती है, मध्यमा से आयु बढ़ाती है, अंगूठे से तिलक करना पुष्टिदायक कहा गया है, तथा तर्जनी से तिलक करने पर मोक्ष मिलता है।
विष्णु संहिता के अनुसार देव कार्य में अनामिका, पितृ कार्य में मध्यमा,ऋषि कार्य में कनिष्ठिका तथा तांत्रिक कार्यों में प्रथमा अंगुली का प्रयोग होता है।
सिर, ललाट, कंठ, हृदय, दोनों बाहुं, बाहुमूल, नाभि, पीठ, दोनों बगल में, इस प्रकार बारह स्थानों पर तिलक करने का विधान है!
विष्णु आदि देवताओं की पूजा में पीत चंदन, गणपति-पूजन में हरिद्राचन्दन, पितृ कार्यों में रक्त चन्दन, शिव पूजा में भस्म, ऋषि पूजा में श्वेत चन्दन, मानव पूजा में केशर व चन्दन, लक्ष्मी पूजा में केसर एवं तांत्रिक कार्यों में सिंदूर का प्रयोग तिलक के लिए करना चाहिए।
ग्रहों के अनुकूल रंग का तिलक करें...............
आप अपने कार्य के लिए जाने से पहले अपने राशि के स्वामी ग्रह को प्रसन्न करने के लिए ग्रहों के अनुकूल रंग का तिलक करें। इससे निश्चित ही आपको अपने काम में सफलता मिलेगी।
मेष.. मेष राशि वाले लाल कुमकुम का तिलक लगाएं।
वृष.वृष राशि के स्वामी शुक्र हैं इसलिए किसी भी हर कार्य में सफलता के लिए दही का तिलक लगाएं।
मिथुन.इस राशि वालो को बुध को बली करने के लिए अष्टगंध का तिलक लगाना चाहिए।
कर्क .कर्क राशि के स्वामी चन्द्र को प्रसन्न करने के लिए सफेद चंदन का तिलक लगाएं।
सिंह..इस राशि के स्वामी सूर्य को बली करने के लिए लाल चंदन का तिलक लगाएं।
कन्या..कन्या राशि के स्वामी बुध को बली करने के लिए अष्टगंध का तिलक लगाएं।
तुला.....तुला वाले जातकों को दही का तिलक लगाना चाहिए।
वृश्चिक.....इस राशि के वालों को सिंदुर का तिलक लगाना चाहिए।
धनु ....इस राशि के स्वामी गुरू हैं इसलिए हल्दी का तिलक लगाएं।
मकर..मकर राशि के स्वामी शनि को प्रसन्न करने के लिए काजल का तिलक लगाना चाहिए।
कुंभ.....कुंभ के स्वामी भी शनि है इसलिए काजल या भस्म का तिलक लगाएं।
मीन. मीन राशि वाले केसर का तिलक करें
सात वार के सात विजयी तिलक, जगाएंगे भाग्य.
सोमवार .......सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं। चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं। इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं।
मंगलवार : मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है। मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है। इससे मन की उदासी और निराशा हट जाती है और दिन शुभ बनता है।
बुधवार : बुधवार को जहां मां दुर्गा का दिन माना गया है वहीं यह भगवान गणेश का दिन भी है। इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह। इस दिन सूखे सिंदूर (जिसमें कोई तेल न मिला हो) का तिलक लगाना चाहिए। इस तिलक से बौद्धिक क्षमता तेज होती है और दिन शुभ रहता है।
गुरुवार : गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। बृहस्पति ऋषि देवताओं के गुरु हैं। इस दिन के खास देवता हैं ब्रह्मा। इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति ग्रह। गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। इस दिन सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए। हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं। इससे मन में पवित्र और सकारात्मक विचार तथा अच्छे भावों का उद्भव होगा जिससे दिन भी शुभ रहेगा और आर्थिक परेशानी का हल भी निकलेगा।
शुक्रवार : शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। इस दिन का ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है। हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है वहीं इससे भौतिक सुख-सुविधाओं में भी वृद्धि होती है। इस दिन सिंदूर भी लगा सकते हैं।
शनिवार : शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है।इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह। शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं और किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने देते। दिन शुभ रहता है।
रविवार : रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन रहता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य ग्रह जो ग्रहों के राजा हैं।इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं। भगवान विष्णु की कृपा रहने से जहां मान-सम्मान बढ़ता है वहीं निर्भयता आती है।
॥.Astrologer Gyanchand Bundiwal। nagpur . 0 8275555557



Thursday, 5 March 2015

होली की शुभकामनाएं ,,,,,,फागुन आ गयो रे गिरधारी छोड़ मुरली और पकड़ ले पिचकारी

आपको तथा आपके पूरे परिवार को मेरे तरफ से रंग रंगीली होली की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ,,,,,,फागुन आ गयो रे गिरधारी छोड़ मुरली और पकड़ ले पिचकारी 
रंग दे गुलाल नाल दुनिया सारीना लाल ना काला 
ना हरा ना पीला अपने ही रंग में रंग गिरधारी
ऐसा मजीठ रंग दे रंग उतर ना पाए
चाहे यतन करे दुनिया सारी बाजे ढोल मृदंग और घुंघरू 
और बाजे मुरलिया प्यारीनाचे सब मस्त दीवाने
भूल कर दुनिया सारी संग सखियन की टोली ले कर
आ गयी राधा प्यारी होरी में मचावे हुडदंग
भरभर मारे पिचकारी युग युग जीवे ये युगल जोड़ी

Monday, 2 March 2015

मंगलकारी शिव का नाम ।चरण हैं शिव के सुख का धाम ॥

मंगलकारी शिव का नाम ।
चरण हैं शिव के सुख का धाम ॥
पात पात में वो घाट में, फैली उनकी माया ।
जिस के मन में वो बस जाए, मंदिर बनती काया ।
जिस पर शिव जी कृपा करते, बनते काम तमाम ॥
वो ही जगत का करता धर्ता, वो ही जग के सवामी ।
भक्त जनों के मन की जाने, वो ही अन्तर्यामी ।
उनकी शरण में जा के मनवा, पाता है विश्राम ॥

श्रीरामदूतम नमो नमः ,ॐ नमो अंजनी सुताय नमः

श्रीरामदूतम नमो नमः ,ॐ नमो अंजनी सुताय नमः ! श्रीरामदूतम नमो नमः ,ॐ नमो अंजनी सुताय नमः !श्रीरामदूतम नमो नमः ,ॐ नमो अंजनी सुताय नमः !श्रीरामदूतम नमो नमः ,ॐ नमो अंजनी सुताय नमः !श्रीरामदूतम नमो नमः ,ॐ नमो अंजनी सुताय नमः !श्रीरामदूतम नमो नमः ,ॐ नमो अंजनी सुताय नमः !

जागो हे महा काल, जागो जीवन आधार,

जागो हे महा काल, जागो जीवन आधार,
भस्म करो पापी के पाप को,धरती पुकारे प्रभु आपको ।
तुम को जगा रहा नीला गगन ।तुम को जगाये प्रभु पूरा पवन ॥
कंदों पे नुसत धरो, डमरू पे ताल दो ।तीसरे नयन की आज ज्वाला निकाल दो ॥
फूंक दो यह कष्टों की कालिमा ।भर दो कानो में नयी लालिमा ॥
अवन्तिकायां विहितावतारम् मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम। 
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहं सुरेशम्।।
ॐ नम: शिवाय शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नम: ॐ

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