Thursday 9 April 2015

शुभ रात्री कृष्ण रात्री जय श्री कृष्णा आ जा री निंदिया आ जा, कान्हा को सुला जा

शुभ रात्री  कृष्ण रात्री  जय श्री कृष्णा  आ जा री निंदिया आ जा, कान्हा को सुला जा
कान्हा है शैतान हमारा रूठ बितता है दिन सारा हाट बाट औ'बृज गली में
नींद करे चट फेरी  शाम को आवे लाल सुलावे उड़ जा बड़ी सवेरी!
आ जा निंदिया आ जा तेरी कान्हा जोहे बाट कान्हा को सुला जा
सोने के हैं पाए जिसके रूपे की है खाट मखमल का है कान्हा बिछौना तकिया झालरदार
सवा लाख हैं मोती जिसमें लटकें लाल हज़ार  आ जा री निंदिया आ जा  कान्हा को सुला जा
नींद कहे मैं आती हूँ  सँग में सपने लाती हूँ
निंदिया आवे निंदिया जाय, निंदिया बैठी घी गुड़ खाय भोर पंख ले के उड़ जाय!
वर्षा के मौसम में जुड़ जाता पानी बरसे झम झम कर, बिजली चमके चम-चम कर
भोर का जागा कान्हा , मेरी गोद में सोवे बन बन कर निरख निरख छवि तन-मन वारूँ लोरी सुनाऊं चुन चुन कर  आ जा री निंदिया कान्हा को सुला जा


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