Thursday, 14 July 2016

देवशयनी एकादशी 1, जुलाई ,बुधवार ,2020 हरिशयनी एकादशी'

देवशयनी एकादशी 1, जुलाई ,बुधवार ,2020  हरिशयनी एकादशी' 1,जुलाई, बुधवार 2020 तिथि प्रारम्भ  30,जून, 2020, को 19,49, बजे

एकादशी तिथि समाप्त ,1,जुलाई ,2020, को 17,29, बजे ,,

https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5।,,,,,,,,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557

देवशयनी एकादशी,,,आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है।पुराणों में ऎसा उल्लेख है, कि इस दिन से भगवान श्री विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते है. और कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी दिन से चौमासे का आरम्भ माना जाता है। इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। इसी कारण इस एकादशी को 'हरिशयनी एकादशी' तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को 'प्रबोधिनी एकादशी' कहते हैं। इन चार महीनों में भगवान विष्णु के क्षीरसागर में शयन करने के कारण विवाह आदि कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। धार्मिक दृष्टि से यह चार मास भगवान विष्णु का निद्रा काल माना जाता है। इन दिनों में तपस्वी भ्रमण नहीं करते, वे एक ही स्थान पर रहकर तपस्या (चातुर्मास) करते हैं। इन दिनों केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है, क्योंकि इन चार महीनों में भू-मण्डल (पृथ्वी) के समस्त तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण में इस एकादशी का विशेष माहात्म्य लिखा है।  देवशयनी एकादशी के दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं

इस व्रत को करने से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, सभी पाप नष्ट होते हैं तथा भगवान हृषीकेश प्रसन्न होते हैं। सभी एकादशियों को भगवान विष्णु की पूजा-आराधना की जाती है, परंतु आज की रात्रि से भगवान का शयन प्रारम्भ होने के कारण उनकी विशेष विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन उपवास करके भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करके, उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म सुशोभित कर उन्हें पीताम्बर, पीत वस्त्रों व पीले दुपट्टे से सजाया जाता है। पंचामृत से स्नान करवाकर, तत्पश्चात भगवान की धूप,दीप, पुष्प आदि से पूजा कर आरती उतारी जाती है। भगवान को पान (ताम्बूल), सुपारी (पुंगीफल) अर्पित करने के बाद निम्न मन्त्र द्वारा स्तुति की जाती है।

सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।

देवशयनी एकादशी व्रत कथा

देवशयनी एकादशी व्रत कथा==देवशयनी  एकादशी से संबन्धित एक पौराणिक कथा प्रचलित है. सूर्यवंशी मान्धाता नम का एक राजा था. वह सत्यवादी, महान, प्रतापी और चक्रवती था. वह अपनी प्रजा का पुत्र समान ध्यान रखता है. उसके राज्य में कभी भी अकाल नहीं पडता था.एक समय राजा के राज्य में अकाल पड गया. और प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यन्त दु:खी रहने लगी. राज्य में यज्ञ होने बन्द हो गयें. एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर प्रार्थना करने लगी की हे राजन, समस्त विश्व की सृष्टि का मुख्य कारण वर्षा है. इसी वर्षा के अभाव से राज्य में अकाल पड गया है. और अकाल से प्रजा अन्न की कमी से मर रही है.

यह देख दु;खी होते हुए राजा ने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान, मुझे इस अकाल को समाप्त करने का कोई उपाय बताईए. यह प्रार्थना कर मान्धाता मुख्य व्यक्तियोम को साथ लेकर वन की और चल दिया. घूमते-घूमते वे ब्रह्मा के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंच गयें. उस स्थान पर राजा रथ से उतरा और आश्रम में गया. वहां मुनि अभी प्रतिदिन की क्रियाओं से निवृ्त हुए थें. राजा ने उनके सम्मुख प्रणाम क्या, और मुनि ने उनको आशिर्वाद दिया, फिर राजा से बोला, कि हे महर्षि, मेरे राज्य में तीन वर्ष से वर्षा नहीं हो रही है. चारों और अकाल पडा हुआ है. और प्रजा दु:ख भोग रही है. राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट मिलता है. ऎसा शास्त्रों में लिखा है, जबकि मैं तो धर्म के सभी नियमों का पालन करता हूँ.

इस पर ऋषि बोले की हे राजन, यदि तुम ऎसा ही चाहते हो, तो आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की एकादशी का विधि-पूर्वक व्रत करो. एक व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी. और प्रजा सुख प्राप्त करेगी.मुनि की बात सुनकर राजा अपने नगर में वापस आया और उसने एकादशी का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से राज्य में वर्षा हुई और मनुष्यों को सुख प्राप्त हुआ. देवशयनी एकाद्शी व्रत को करने से भगवान श्री विष्णु प्रसन्न होते है. अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले व्यक्तियों को इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए.

देवशयनी एकादशी व्रत विधि

देवशयनी एकादशी व्रत को करने के लिये व्यक्ति को इस व्रत की तैयारी दशमी तिथि की रात्रि से ही करनी होती है. दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में किसी भी प्रकार का तामसिक प्रवृ्ति का भोजन नहीं होना चाहिए. भोजन में नमक का प्रयोग नही होना चाहिए . और व्यक्ति को भूमि पर शयन करना चाहिए. और जौ, मांस, गेहूं तथा मूंग की दान का सेवन करने से बचना चाहिए. यह व्रत दशमी तिथि से शुरु होकर द्वादशी तिथि के प्रात:काल तक चलता है. दशमी तिथि और एकाद्शी तिथि दोनों ही तिथियों में सत्य बोलना और दूसरों को दु:ख या अहित होने वाले शब्दों का प्रयोग करने से बचना चाहिए.

एकाद्शी तिथि में व्रत करने के लिये सुबह जल्दी उठना चाहिए. 

नित्यक्रियाओं को करने के बाद, स्नान करना चाहिए. एकादशी तिथि का स्नान अगर किसी तीर्थ स्थान या पवित्र नदी में किया जाता है, तो वह विशेष रुप से शुभ रहता है. किसी कारण वश अगर यह संभव न हो, तो उपवासक इस दिन घर में ही स्नान कर सकता है. स्नान करने के लिये भी मिट्टी, तिल और कुशा का प्रयोग करना चाहिए.

स्नान कार्य करने के बाद भगवान श्री विष्णु जी का पूजन करना चाहिए. पूजन करने के लिए धान्य के ऊपर कुम्भ रख कर, कुम्भ को लाल रंग के वस्त्र से बांधना चाहिए. इसके बाद कुम्भ की पूजा करनी चाहिए. जिसे कुम्भ स्थापना के नाम से जाना जाता है. कुम्भ के ऊपर भगवान की प्रतिमा या तस्वीर रख कर पूजा करनी चाहिए. भगवान श्री हरि विष्णु की सोने ,चाँदी ,तांबे या पीतल की प्रतिमा स्थापित करे .भगवान श्री हरी विष्णु को प्रिय पीतांबर वस्त्र धारण कराए .ये सभी क्रियाएं करने के बाद धूप, दीप और पुष्प से पूजा करनी चाहीए. व्रत कथा सुननी चाहिए . विष्णु स्त्रोत , विष्णु  सहस्त्रनाम का पाठ करेइसके बाद आरती का प्रसाद वितरण करे.

विधि पूर्वक व्रत के पालन से शास्त्रों के अनुसार व्रती सभी पापों और दोषों से मुक्त हो जाता है

देवशयनी एकादशी का महत्व

देवशयनी एकादशी बहुत महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती हैं भारतीय कॅलंडर के अनुसार. पुराणो के अनुसार भगवान इस दिन आराम करने क्षीर सागर चले जाते हैं और 4 माह बाद आते हैं . इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता हैं जो भी बहुत महत्वपूर्ण दिन हैं. देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं. इस अवधि में भगवान विष्णु आराम करते हैं और श्रद्धालु  भगवान के प्रति बहुत अध्यात्मिक होते हैं. यह समय भक्तों द्वारा भगवान में अधिक से अधिक आस्था और भक्ति को दर्शाता हैं. यह दिन भक्तों को संसारिक कामों से मुक्ति और स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद करता हैं.

यह माना जाता हैं की जो व्यक्ति इस दिन पर व्रत,जाप, तप, नियम, उपवास रखता हैं उसकी सभी इच्छायें पूरी हो जाती हैं और वह इस तरह की तपस्या से अधिक से अधिक शुभदायक फल प्राप्त करता हैं. यह दिन हमे जीवन में कई तरह की चुनोतियों का सामना करने के लिए शक्ति प्रदान करता हैं. इस दिन किसी धार्मिक गतिविधियों का आयोजन नही किया जाता हैं .यह दिन हमारे सभी इच्छाओं को पूरा करने और मोक्ष और मुक्ति के मार्ग पर ले जाने में मदद करता हैं. देवशयनी एकादशी का दिन सबसे शुद्धतम और अनुकूल समय माना जाता हैं

Latest Blog

शीतला माता की पूजा और कहानी

 शीतला माता की पूजा और कहानी   होली के बाद शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इसे बसौड़ा पर्व भी कहा जाता है  इस दिन माता श...