Saturday, 23 June 2018

गायत्री जयंती

गायत्री जयंती,,,,गायत्री मां से ही चारों वेदों की उत्पति मानी जाती हैं। इसलिये वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है। मान्यता है कि चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है अकेले गायत्री मंत्र को समझने मात्र से चारों वेदों का ज्ञान मिलता जाता है।
कौन हैं गायत्री,,,,,चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है इसलिये इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। माना जाता है कि समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण ज्ञान-गंगा भी गायत्री को कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है।
कैसे हुआ गायत्री का विवाह,,,,,कहा जाता है कि एक बार भगवान ब्रह्मा यज्ञ में शामिल होने जा रहे थे। मान्यता है कि यदि धार्मिक कार्यों में पत्नी साथ हो तो उसका फल अवश्य मिलता है लेकिन उस समय किसी कारणवश ब्रह्मा जी के साथ उनकी पत्नी सावित्रि मौजूद नहीं थी इस कारण उन्होंनें यज्ञ में शामिल होने के लिये वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया। उसके पश्चात एक विशेष वर्ग ने देवी गायत्री की आराधना शुरु कर दी।
कैसे हुआ गायत्री का अवतरण,,,माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रुप में की। आरंभ में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाये उसी तरह विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण तक पंहुचाया।
कब मनाई जाती है गायत्री जयंती...,,गायत्री जयंती की तिथि को लेकर भिन्न-भिन्न मत सामने आते हैं। कुछ स्थानों पर गंगा दशहरा और गायत्री जयंती की तिथि एक समान बताई जाती है तो कुछ इसे गंगा दशहरे से अगले दिन यानि ज्येष्ठ मास की एकादशी को मनाते हैं। वहीं श्रावण पूर्णिमा को भी गायत्री जयंती के उत्सव को मनाया जाता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन गायत्री जयंती को अधिकतर स्थानों पर स्वीकार किया जाता है। लेकिन अधिक मास में गंगा दशहरा अधिक शुक्ल दशमी को ही मनाया जाता है जबकि गायत्री जयंती अधिक मास में नहीं मनाई जाती।
गायत्री की महिमा,,,,गायत्री की महिमा में प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक भारत के विचारकों तक अनेक बातें कही हैं। वेद, शास्त्र और पुराण तो गायत्री मां की महिमा गाते ही हैं।
अथर्ववेद में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है।
महाभारत के रचयिता वेद व्यास कहते हैं गायत्री की महिमा में कहते हैं जैसे फूलों में शहद, दूध में घी सार रूप में होता है वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री है। यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाये तो यह कामधेनू (इच्छा पूरी करने वाली दैवीय गाय) के समान है। जैसे गंगा शरीर के पापों को धो कर तन मन को निर्मल करती है उसी प्रकार गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है।
गायत्री को सर्वसाधारण तक पहुंचाने वाले विश्वामित्र कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मंत्र निकाला है। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला मंत्र और कोई नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से गायत्री का जप करता है वह पापों से वैसे ही मुक्त हो जाता है जैसे केंचुली से छूटने पर सांप होता है।

गायत्री जयन्ती मनाई जाती है। गायत्री लाखों और करोड़ों हिन्दुओं का इष्ट है। यह हमारे जीवन का सब से आवश्यक तत्व है, प्रकाश स्तम्भ है, अज्ञानान्धकार में भटकने वालों को मार्गदर्शन करता है, संसार सागर में डुबकियाँ लगाने वालों को बचाकर पार लगा देता है, प्राणी इस संसार के गोरखधंधे से घबरा जाता है तो मानो अपने प्रिय पुत्र पर वरद हस्त फेर कर उसे साँत्वना देता है, मनुष्य जगत की ठोकरों से तंग आ जाता है तो उसे धैर्य और सहन शक्ति प्रदान करता है ताकि वह कष्ट और कठिनाईयों के बीच भी हंसता रहे, मृत्यु भी सामने आए तो उस से भी संघर्ष करने की ठान ले। गायत्री माता इतनी दयालु हैं कि वह अपने पुत्र का दुःख सहन नहीं कर सकती और उसे दुःख से सुख, अज्ञान से ज्ञान, असत्य से सत्य की ओर ले जाती है। उसके त्रितापों को नष्ट कर देती है। उसके अभावों का दूर करती है लौकिक और पारलौकिक सब प्रकार की उन्नति में सहायक सिद्ध होती है। मनुष्य को मनुष्य बनना सिखाती है। उसे अपने पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्यों का ज्ञान कराती है ताकि वह पथभ्रष्ट न जाए। दुष्ट, कुकर्मी, ठग, चोर, बेईमान, व्यसनी, छली, कपटी, स्वार्थी व्यक्तियों को सन्मार्ग पर लाने का यह अमोध अस्त्र है जो हजारों और लाखों बार आजमाया हुआ है।

गायत्री मन्त्र देखने में तो बहुत छोटा सा 24 अक्षरों का मन्त्र दीखता है परन्तु इसमें गजब शक्ति है। हृदय परिवर्तन की यह रामबाण औषधि है। इससे अनेक प्रकार की ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसमें अनेक प्रकार की विद्याओं का संकेत मिलता है। इसमें वह तत्व ज्ञान भरा पड़ा है जिसे अपनाकर मनुष्य अजर-अमर हो जाता है। इसके एक-एक अक्षर में वह शिक्षाएं भरी पड़ी हैं जिसे अपने जीवन में उतार कर मनुष्य धन्य हो सकता है।

यही कारण है कि आदि काल से ऋषियों ने इस परम पुनीत मंत्र को अपनाया है और इसके बिना जल ग्रहण न करने का आदेश दिया है। इसका चमत्कार प्रभाव उन्होंने अनुभव कर लिया था तभी बच्चों के थोड़ा समझदार होते ही इसकी दीक्षा दे देते हैं, और उसे जीवन भर धारण किए रहने की शिक्षा देते हैं कि इसी के सहारे अपनी जीवन नाव पार करना। जो मनुष्य इतने महान, प्रेरणादायक और कल्याण कारी तत्व को भूल जाता है, वह पतन के मार्ग पर चलना आरम्भ कर देता है।

गायत्री माता के चार पुत्र चार वेद हैं। गायत्री के एक-एक चरण की व्याख्या स्वरूप चार वेद बने हैं। इस महामन्त्र का जो अर्थ और रहस्य है, उसका प्रकटीकरण चारों वेदों में ही हुआ है। बीज रूप में जो गायत्री में है, वह विस्तार से वेदों में है। वेद को ईश्वरीय ज्ञान माना जाता है। यह पवित्र हृदय ऋषियों के स्वच्छ, अन्तःकरणों में अवतरित हुआ था। गायत्री की घोर तपश्चर्या करके ही वह इसकी सामर्थ्य प्राप्त कर सके थे, गायत्री के मन्थन का यह परिणाम था। गायत्री हमारी भौतिक व आध्यात्मिक दोनों प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। वेद में भी दोनों प्रकार के विषय हैं। यह ज्ञान और विज्ञान का भण्डार हैं। इसने मनुष्य जाति को सब प्रकार की विद्याओं का विज्ञान दिया है, इसने उस की सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान किया है। यह वह अमृत है जिसे पीकर उसके आन्तरिक नेत्र खुल जाते हैं, उसे वास्तविकता का ज्ञान होता है, उसके मनः क्षेत्र में ज्ञान का उदय होता है, वह अपने और समाज के जीवन को सत्पथ पर ले जाता है।

परन्तु खेद की बात है कि हम अपने अमूल्य रत्नों को भूल गए। हमारे स्वार्थों ने हमें इन से अलग कर दिया। फलस्वरूप इस जीवन विद्या से वंचित रहने लगे। दीपक के अभाव से जैसे मनुष्य अंधेरे में ठोकरें खाता है। हम भी दिन-दिन अवनति की ओर जाने लगे। जिन लोगों ने इन्हें अपनाया वह इनसे यथेष्ट लाभ उठा चुके हैं और उठा रहे हैं।

अभी तक वेद विद्या को सर्वसाधारण के लिए सुलभ बनाने के लिए दो कठिनाइयाँ सामने आ रही थी। एक तो यह कि जो हिन्दी भाष्य उपलब्ध थे, उनके अर्थ इस प्रकार से किए गए थे कि उनको समझना कठिन था और दूसरी यह कि उनका मूल्य इतना अधिक रखा गया था कि वह साधारण व्यक्तियों कि लिए खरीदना सम्भव न था। गायत्री तपोभूमि ने इन दोनों कठिनाईयों को दूर करने का प्रयत्न किया है। परम पूज्य प्रातः स्मरणीय वेद पूर्ति तपोनिष्ठ आचार्य जी महाराज ने चारों वेदों का सरल भाष्य इस ढंग से किया है कि उसे कोई हिन्दी पढ़ा लिखा व्यक्ति भी पढ़ और समझ सके। दूसरे उसका मूल्य इतना कम रखा गया है कि उसे हर एक व्यक्ति गरीब, अमीर खरीद सकता है। ऋग्वेद की 1, अथर्व वेद की 2, यजुर्वेद की 3 और साम वेद की 4

गायत्री जयंती के दिन गायत्री माता का गुण गान गाया जाता है, घर-घर में उसके व्यापक प्रचार के संकल्प किए जाते हैं, सभा, आयोजन, यज्ञ और जुलूस निकाले जाते हैं ताकि अग्नि पर पड़ी राख की भाँति यदि गायत्री विद्या का हमारे जीवन से लोप हो गया हो तो, हम उसे पुनः स्मरण करें और अपने जीवन में चरितार्थ करें। माँ अपने पुत्रों को अपनी छाती से अलग नहीं कर सकती। उसे उन्हें चिपकाए रहने में ही प्रसन्नता अनुभव होती है। गायत्री जयन्ती को वेद जयन्ती भी मानना चाहिए। इस दिन गायत्री परिवार की प्रत्येक शाखा में वेद भगवान की स्थापना हो। प्रदर्शन से उसकी व्यापक जानकारी होती है। वेद भगवान के जुलूस निकाले जाएँ जिस तरह सिख लोग गुरु ग्रन्थ साहब की पूजा पर्व पर करते हैं। वेद भगवान का जय-जय कार हो लाखों हिन्दुओं ने अभी तक वेद भगवान के दर्शन तक न किए होंगे। गाजे बाजे, कीर्तन आदि के साथ निकले जुलूस का जनता पर एक छाप पड़ेगी कि वेद भारतीय संस्कृति के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। स्वस्तिवाचन, हवन, भजन आदि के साथ सुन्दर चाँदी के सिंहासन पर वेद भगवान की स्थापना करनी चाहिए। वेद कथा का प्रबन्ध करना चाहिए। सभा और सम्मेलन करके वेद भगवान की महत्ता हिन्दु जगत पर स्थापित करनी चाहिए ताकि हम और उनका आकर्षण बढ़े और हमारा राष्ट्र दिन-दिन नैतिक व साँस्कृतिक पुनरुत्थान की ओर बढ़े।

इसी दिन गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस दिन तप की प्रतिमूर्ति भागीरथ ने गंगा का अवतरण किया था। घोर तप के फलस्वरूप ही वह प्यासी जनता को तृप्त कर सके थे। भागीरथ की आत्मा हमें पुकार-पुकार कर कह रही है केवल योजनाओं और बातों से काम न चलेगा वरन् काम के लिए कमर कसनी होगी और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने जीवनों को खपाना होगा तभी गंगा प्रसन्न होगी और मुँह माँगा वरदान देंगी। अनैतिकता झूठ, छल, कपट, बेईमानी, नास्तिकता, लोभ, स्वार्थीपन, अन्धविश्वास के इस युग में ज्ञान गंगा को अवतरित करने के लिए घोर परिश्रम करना होगा। गायत्री माता को घर-घर पहुँचाने के लिए परिजनों को जो कष्ट मुसीबतें और संघर्षों का सामना करना पड़ा वैसे ही समय परिश्रम और तप की बलि अब भी देनी होगी। एक शाखा में एक वेद की स्थापना तो सरल है। कुछ सदस्य मिलकर इस कार्य को कर सकते हैं गाँव मुहल्ले से चन्दा इकट्ठा कर सकते हैं। परन्तु यहाँ तक हमें सीमित नहीं रहना है। हमें तो सारे विश्व को वेद ज्ञान ने सींचना है। संसार में वेदों की धूम मचा देनी है और एक बार फिर दिखा देना है कि भारत जगतगुरु है और सारे विश्व को अध्यात्म ज्ञान देने का अधिकारी है, वह सबका नेतृत्व करेगा और वेदों की अद्वितीय महत्ता को और स्थापना करेगा। गायत्री का न अक्षर हमें यह शिक्षा देता है कि जो कुछ तुम्हारे पास है परहित के लिए लुटा दो। अपने पास कुछ मत रखो। वेद सृष्टि का आदि ज्ञान है। हमें इस बीज को सब ओर बखेर देना हैं ताकि उससे सुन्दर फल देने वाले कल्याणकारी और शान्तिदायक पेड़ उगे और उसकी छाया में बैठकर विश्व सुख और समृद्धि का अनुभव करे।

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
गायत्री मंत्र से सभी सनातनी लोग भली-भांती परिचित होते हैं। बचपन में स्कूल के दिनों से ही इस मन्त्र का जाप शुरू करवा दिया जाता है और जीवन के अंतिम पड़ाव ‘बुढ़ापे’ तक यह जप चलता रहता है। हिन्दू धर्म का सबसे सरल मन्त्र यही है और वेदों में इस मन्त्र को ईश्वर की प्राप्ति का मन्त्र बताया गया है।

यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3. 62. 10 के मेल से गायत्री मन्त्र का निर्माण हुआ है। इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है, इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसके उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है।
गायत्री मन्त्र का शाब्दिक अर्थ
ॐ - सर्वरक्षक परमात्मा
भू: - प्राणों से प्यारा
भुव: - दुख विनाशक
स्व: - सुखस्वरूप है
तत् -उस
सवितु: - उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक
वरेण्य - वरने योग्य
भुर्ग: - शुद्ध विज्ञान स्वरूप का
देवस्य - देव के
धीमहि - हम ध्यान करें
धियो - बुद्धियों को
य: - जो
न: - हमारी
प्रचोदयात - शुभ कार्यों में प्रेरित करें।
भावार्थ : उस सर्वरक्षक प्राणों से प्यारे, दु:खनाशक, सुखस्वरूप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतरात्मा में धारण करें तथा वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।
गायत्री मन्त्र का लाभ...गायत्री मंत्र के निरंतर जाप से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। यदि घर का कोई सदस्य बीमार है या घर में सुख-शांति नहीं आ रही है तो प्रतिदिन घंटा-आधा घंटा इस मन्त्र का जाप किया जाए। बीमार व्यक्ति को दवा देने से पहले, (व्यक्ति के पास बैठकर एवं दवा को हाथ में लेकर) इस मन्त्र के जाप से लाभ प्राप्त हो सकता है। दैवीय कृपा प्राप्त करने और धन प्राप्त करने के लिए भी यह मन्त्र शुभ बताया गया है।
अगर आप विद्यार्थी हैं तो इस मन्त्र के जाप से आपकी स्मरण शक्ति भी बढ़ सकती है। ब्रह्मचार्य की रक्षा के लिए भी गायत्री मन्त्र उपयोगी बताया गया है। अब क्योकि इस मन्त्र की शुरुआत ही ॐ से होती है तो मस्तिष्क के शान्ति के लिए यह मन्त्र अच्छा रहता है। आप बेशक किसी भी ईष्ट देव की पूजा करते हैं, पूजा के प्रारंभ में आप गायत्री मन्त्र का जाप कर सकते हैं। यह शुरूआती बीज मन्त्र भी माना जाता है।

ध्यान रखें कि गायत्री मंत्र का जाप हमेशा रुद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए
!Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557

Saturday, 16 June 2018

वशीकरण मन्त्र ,,,,मोहन मन्त्र

वशीकरण मन्त्र

1..ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं वाराह-दन्ताय भैरवाय नमः।”
विधि- ‘शूकर-दन्त’ को अपने सामने रखकर उक्त मन्त्र का होली, दीपावली, दशहरा आदि में १०८ बार जप करे। फिर इसका ताबीज बनाकर गले में पहन लें। ताबीज धारण करने वाले पर जादू-टोना, भूत-प्रेत का प्रभाव नहीं होगा। लोगों का वशीकरण होगा। मुकदमें में विजय प्राप्ति होगी। रोगी ठीक होने लगेगा। चिन्ताएँ दूर होंगी और शत्रु परास्त होंगे। व्यापार में वृद्धि होगी।
2,, कामिया सिन्दूर-मोहन मन्त्र
“हथेली में हनुमन्त बसै, भैरु बसे कपार।
नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार।
मोहन रे मोहन्ता वीर, सब वीरन में तेरा सीर।
सबकी नजर बाँध दे, तेल सिन्दूर चढ़ाऊँ तुझे।
तेल सिन्दूर कहाँ से आया ? कैलास-पर्वत से आया।
कौन लाया, अञ्जनी का हनुमन्त, गौरी का गनेश लाया।
काला, गोरा, तोतला-तीनों बसे कपार।
बिन्दा तेल सिन्दूर का, दुश्मन गया पाताल।
दुहाई कमिया सिन्दूर की, हमें देख शीतल हो जाए।
सत्य नाम, आदेश गुरु की। सत् गुरु, सत् कबीर।
विधि- आसाम के ‘काम-रुप कामाख्या, क्षेत्र में ‘कामीया-सिन्दूर’ पाया जाता है। इसे प्राप्त कर लगातार सात रविवार तक उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें। इससे मन्त्र सिद्ध हो जाएगा। प्रयोग के समय ‘कामिया सिन्दूर’ पर ७ बार उक्त मन्त्र पढ़कर अपने माथे पर टीका लगाए। ‘टीका’ लगाकर जहाँ जाएँगे, सभी वशीभूत होंगे।
आकर्षण एवं वशीकरण के प्रबल सूर्य मन्त्र
१॰ “ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्र-किरणाय ऐं अतुल-बल-पराक्रमाय नव-ग्रह-दश-दिक्-पाल-लक्ष्मी-देव-वाय, धर्म-कर्म-सहितायै ‘अमुक’ नाथय नाथय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, दासानुदासं कुरु-कुरु, वश कुरु-कुरु स्वाहा।”
विधि- सुर्यदेव का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का १०८ बार जप प्रतिदिन ९ दिन तक करने से ‘आकर्षण’ का कार्य सफल होता है।
२॰ “ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं ‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।”
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में २०००० जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन १०८ बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।
बजरङग वशीकरण मन्त्र
“ॐ पीर बजरङ्गी, राम लक्ष्मण के सङ्गी। जहां-जहां जाए, फतह के डङ्के बजाय। ‘अमुक’ को मोह के, मेरे पास न लाए, तो अञ्जनी का पूत न कहाय। दुहाई राम-जानकी की।”
विधि- ११ दिनों तक ११ माला उक्त मन्त्र का जप कर इसे सिद्ध कर ले। ‘राम-नवमी’ या ‘हनुमान-जयन्ती’ शुभ दिन है। प्रयोग के समय दूध या दूध निर्मित पदार्थ पर ११ बार मन्त्र पढ़कर खिला या पिला देने से, वशीकरण होगा।
आकर्षण हेतु हनुमद्-मन्त्र-तन्त्र
“ॐ अमुक-नाम्ना ॐ नमो वायु-सूनवे झटिति आकर्षय-आकर्षय स्वाहा।”
विधि- केसर, कस्तुरी, गोरोचन, रक्त-चन्दन, श्वेत-चन्दन, अम्बर, कर्पूर और तुलसी की जड़ को घिस या पीसकर स्याही बनाए। उससे द्वादश-दल-कलम जैसा ‘यन्त्र’ लिखकर उसके मध्य में, जहाँ पराग रहता है, उक्त मन्त्र को लिखे। ‘अमुक’ के स्थान पर ‘साध्य’ का नाम लिखे। बारह दलों में क्रमशः निम्न मन्त्र लिखे- १॰ हनुमते नमः, २॰ अञ्जनी-सूनवे नमः, ३॰ वायु-पुत्राय नमः, ४॰ महा-बलाय नमः, ५॰ श्रीरामेष्टाय नमः, ६॰ फाल्गुन-सखाय नमः, ७॰ पिङ्गाक्षाय नमः, ८॰ अमित-विक्रमाय नमः, ९॰ उदधि-क्रमणाय नमः, १०॰ सीता-शोक-विनाशकाय नमः, ११॰ लक्ष्मण-प्राण-दाय नमः और १२॰ दश-मुख-दर्प-हराय नमः।
यन्त्र की प्राण-प्रतिष्ठा करके षोडशोपचार पूजन करते हुए उक्त मन्त्र का ११००० जप करें। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए लाल चन्दन या तुलसी की माला से जप करें। आकर्षण हेतु अति प्रभावकारी है।
वशीकरण हेतु कामदेव मन्त्र
“ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन स्वाहा।”
विधि- कामदेव के उक्त मन्त्र को तीनों काल, एक-एक माला, एक मास तक जपे, तो सिद्ध हो जायेगा। प्रयोग करते समय जिसे देखकर जप करेंगे, वही वश में होगा



2,,,तुलसी यक्षिणी प्रयोग 
प्रस्तुत साधना उन लोगो के लिये वरदानnसामान है जो सरकारी नोकरी पाना चाहते है।

 क्युकी तुलसी यक्षिणी को ही राज्य पद
यक्षिणी भी कहा जाता है।अर्थात राज्य
पद देने वाली।अतः ये साधना राजनीती में भी सफलता देने वाली है।
यदि आपकी पदोन्नति नहीं हो रही है
तो,भी यह साधना की जा सकती है।
या सरकारी नोकरी की इच्छा रखते है
तो भी यह दिव्य साधना अवश्य संपन्न
करे।निश्चित आपकी कामना पूर्ण हो जाएगी। विधि : साधना किसी भी शुक्रवार
की रात्रि से आरम्भ करे,समय रात्रि १०
बजे के बाद का हो,आपका मुख उत्तर
दिशा की और हो,आपके आसन वस्त्र
सफ़ेद हो।प्रातः तुलसी की जड़ निकाल
कर ले आये और उसे साफ करके सुरक्षित रख ले,जड़ लाने के पहले निमंत्रण
अवश्य दे।अब अपने सामने एक
तुलसी का पौधा रखे और उसका सामान्य
पूजन करे,दूध से बनी मिठाई का भोग
लगाये और तील के तेल का दीपक लगाये।
तुलसी की जड़ को अपने आसन के निचे रखे।अब स्फटिक माला से मंत्र की १०१
माला संपन्न करे।यह क्रम तीन दिन तक
रखे,आखरी दिन घी में पञ्च
मेवा मिलाकर यथा संभव आहुति दे।बाद
में उस जड़ को सफ़ेद कपडे में लपेट कर
अपनी बाजु पर बांध ले।मिठाई नित्य स्वयं ही खाए।इस तरह ये दिव्य
साधना संपन्न होती है।अगर आप ये
साधना ग्रहण काल में करते है तो मात्र एक
ही दिन में पूर्ण हो जाएगी।
अन्यथा उपरोक्त विधि से तो अवश्य कर
ही ले।कभी कभी इस साधना में प्रत्यक्षीकरण होते देखा गया है।अगर
ऐसा हो तो घबराये नहीं देवी से वर मांग
ले।प्रत्यक्षीकरण न
भी हो तो भी साधना अपना पूर्ण फल
देती ही है,आवश्यकता है पूर्ण
श्रधा की।माँ सबका कल्याण करे।
मंत्र :ॐ क्लीं क्लीं नमः
जय माँ - -कामदेव वशीकरण मंत्र- -
जब किसी व्यक्ति को किसी से प्रेम
हो जाए या वह आसक्त हो। विवाहित
स्त्री या पुरुष की अपने जीवनसाथी से
... संबंधों में कटुता हो गई हो या कोई युवक
या युवती अपने रुठे साथी को मनाना चाहते
हो। किंतु तमाम कोशिशों के बाद भी वह मन के अनुकूल परिणाम नहीं पाता। तब उसके
लिए तंत्र क्रिया के अंतर्गत कुछ मंत्र के
जप प्रयोग बताए गए हैं। जिससे कोई अपने
साथी को अपनी भावनाओं के वशीभूत कर
सकता है। धर्मशास्त्र में कामदेव को प्रेम, सौंदर्य और
काम का देव माना गया है। इसलिए परिणय,
प्रेम-संबंधों में कामदेव की उपासना और
आराधना का महत्व बताया गया है। इसी क्रम
में तंत्र विज्ञान में कामदेव वशीकरण मंत्र
का जप करने का महत्व बताया गया है। इस मंत्र का जप हानिरहित होकर अचूक
भी माना जाता है।
 मंत्र,,,ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह
लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं
कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन
स्वाहा"
कामदेव के इस मन्त्र को सुबह, दोपहर और
रात्रिकाल में एक-एक माला जप का करें। माना जाता है कि यह जप एक मास तक करने
पर सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्धि के बाद
जब आप इस मंत्र का मन में जप कर
जिसकी तरफ देखते हैं, वह आपके वशीभूत
या वश में हो जाता है।


3,,,तंत्र मुद्रा 
तंत्र-शास्त्र भारतवर्ष की बहुत प्राचीन साधन-प्रणाली है । इसकी विशेषता यह बतलाई गई है कि इसमें आरम्भ ही से कठिन साधनाओं और कठोर तपस्याओं का विधान नहीं है, वरन् वह मनुष्य के भोग की तरह झुके हुए मन को उसी मार्ग पर चलाते हुए धीरे-धीरे त्याग की ओर प्रवृत्त करता है । इस दृष्टि से तंत्र को ऐसा साधन माना गया कि जिसका आश्रय लेकर साधारण श्रेणी के व्यक्ति भी आध्यात्मिक मार्ग में अग्रसर हो सकते हैं ।

यह सत्य है कि बीच के काल में तंत्र का रूप बहुत विकृत हो गया और इसका उपयोग अधिकांश मे मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि जैसे जघन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाने लगा, पर तंत्र का शुद्ध रूप ऐसा नहीं है । उसका मुख्य उद्देश्य एक-एक सीढ़ी पर चढ़कर आत्मोन्नति के शिखर पर पहुँचता ही है ।

तंत्र-शास्त्र में जो पंच-प्रकार की साधना बतलाई गई है, उसमें मुद्रा साधन बड़े महत्व का और श्रेष्ठ है । मुद्रा में आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि योग की सभी क्रियाओं का समावेश होता है । मुद्रा की साधना द्वारा मनुष्य शारीरिक और मानसिक शक्तियों की वृद्धि करके अपने आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है । मुद्राएँ अनेक हैं । घेरण्ड संहिता में उनकी संख्या २५ बतलाई गई है, पर शिव-संहिता में उनमें से मुख्य मुद्राओं को छांट कर इस की ही गणना कराई है जो इस प्रकार है-

(१) महामुद्रा (२) महाबन्ध (३) महाभेद (४) खेचरी (५) जालन्धर बन्द (६) मूूलबन्ध (७) विपरीत-करणी (८) उड्डीयान (९) वज्ा्रोजी और (१०) शक्ति चालिनी ।

तंत्र मार्ग में कुण्डलिनी शक्ति की बड़ी महिमा बतलाई गई है । इसके जागृत होने से षटचक्र भेद हो जाते हैं और प्राणवायु सहज ही में सुषुम्ना से बहने लगती है इससे चित्त स्थिर हो जाता है और मोक्ष मार्ग खुल जाता है । इस शक्ति को जागृत करने में मुद्राओं से विशेष सहायता मिलती है । इनकी विधि योग ग्रंथों में इस प्रकार बतलाई गई है-

महामुद्रा-
गुरु के उपदेशानुसार बाँये टखने (पैर की पिंडली और पंजे के बीच की दोनों तरफ उठी हुई मोटी हड्डी) से योनि मण्डल (गुदा और लिगेन्द्रय के बीच का स्थान) को दबाकर दाहिने पैर को फैला कर दोनों हाथों से पकड़ ले और शरीर के नवों द्वारों को संयत करके छाती के ऊपरी भाग पर ठुड्डी का लगा दें । चित्त को चैतन्य रूप परमात्मा की तरफ प्रेरित करके कुम्भक प्राणायाम द्वारा वायु को धारण करे । इस मुद्रा का पहले बाँये अंग में अभ्यास करके फिर दाँये अंग में करे और अभ्यास करते समय मन एकाग्र करके उसी नियम से प्राणायाम करता रहे ।

इस मुद्रा से देह सारी नाड़ियाँ चलने लगती हैं । जीवनी शक्ति स्वरूप शुक्र स्तम्भित हो जाता है, सारे रोग मिट जाते हैं, शरीर पर निर्मल लावण्य छा जाता है, बुढ़ापा और अकाल मृत्यु का आक्रमण नहीं होने पाता और मनुष्य जितेन्द्रिय होकर भवसागर से पार हो जाता है ।

खेचरी मुद्रा-
इस मुद्रा से प्राणायाम को सिद्ध करने और सामधि लगाने में विशेष सहायता मिलती है । इसके लिए जिह्र और तालु को जोड़ने वाले मांस-तंतु को धीरे-धीरे काटा जाता है, अर्थात एक दिन जौ भर काट कर छोड़ दिया जाता है, फिर तीन-चार दिन बाद थोड़ा सा और काट दिया जाता है । इस प्रकार थोड़ा काटने से उस स्थान की रक्त वाहिनी शिरायें अपना स्थान भीतर की तरफ बनाती जाती हैं और किसी भय की सम्भावना नहीं रहती । जीभ को काटने के साथ ही प्रतिदिन धीरे-धीरे बाहर की तरफ खींचने का अभ्यास करता जाय ।

इस अभ्यास करने से कुछ महिनों में जीभ इतनी लम्बी हो जाती है कि यदि उसे ऊपर की तरफ लौटा जाय तो वह श्वांस जाने वाले छेदों को भीतर से बन्द कर देती है । इससे समाधि के समय सांस का आना जाना पूर्णतः रोक दिया जाता है ।

विपरीत करणी मुद्रा-
योगियों ने मनुष्य के शरीर में दो मुख्य नाड़ियाँ बतलाई हैं । एक सूर्यनाड़ी और दूसरी चन्द्र नाड़ी । सूर्य नाड़ी नाभि के पास है और चन्द्रनाड़ी तालु के मध्य में है । मस्तक में रहने वाले सहस्रा दल कमल से जो अमृत झरता है वह सूर्य नाड़ी के मुख में जाता है । इसी से अन्त में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है । यहि अमृत चन्द्रनाड़ी के मुख में गिरने लग तो मनुष्य निरोगी, बलवान और दीर्घजीवी हो सकता है ।

इसके लिए तेज शास्त्र में साधक को आदेश दिया गया है कि सूर्यनाड़ी को ऊपर और चन्द्रनाड़ी को नीचे ले आवे । इसके लिए जो मुद्रा बतलाई गई है उसकी विधि शीर्षासन की है, अर्थात मस्तक को जमीन पर टिका कर दोनों पैरों को सीधे ऊपर की तरफ तान दें और दोनों हाथ की हथेलियों को मस्तक के नीचे लगा दें । तब कुम्भक प्राणायाम करें ।

योगि मुद्रा
इसके लिए सिद्धासन पर बैठकर दोनों अंगुठों से दोनों कान, दोनों तर्जनी उँगलियों से दोनों मध्यमा (बीच की उंगली) से दोनों नाक के छेद और दोनों अनामिका से मुंह बन्द करना चाहिए । फिर काकी मुद्रा (कौवे की चौच के समान होठो को आगे बढ़ाकर साँस खीचना) से प्राण वायु के भीतर खींच कर अपान वायु से मिला देना चाहिए । शरीर में स्थित छहों चक्रों का ध्यान करके 'हूँ' और 'हंस' इन दो मंत्रों द्वारा सोयी हुई कुण्डलिनी का जगाना चाहिये ।

जीवात्मा के साथ कुण्डलिनी को युक्त करके सहस्र दल कमल पर ले जाकर ऐसा चिंतन करना कि मैं स्वयं शक्तिमय होकर शिव के साथ नाना प्रकार का बिहार कर रहा हूँ । फिर ऐसा चिंतन करना चाहिए कि 'शिवशक्ति के संयोग से आनन्द स्वरूप होकर मैं ही ब्रह्म रूप में स्थित हूँ ।' यह योनि मुद्रा बहुत शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाली है और साधक इसके द्वारा अनायास ही समाधिस्थ हो सकता है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मुद्राओं में शारीरिक मानसिक और आत्मिक तीनों प्रकार के अभ्यासों को ऐसा समन्वय किया गया है कि मनुष्य भीतरी शारीरिक शक्तियाँ, मानसिक जाग्रत हो जाती हैं और वह ऊँचें दर्जे के आत्मिक अभ्यास के योग्य हो जाता है पर का बात एक ध्यान रखना परमावश्यक है और वह यह कि मुद्राओं का अभ्यास किसी से सुन कर या पढ़ कर सही करना चाहिए, वरन् योग्य गुरु से सीख कर ही उसका अभ्यास करना अनिवार्य है ।


4,,,घोर रूपिणी वशीकरण साधना 
यह साधना बहुत ही तीक्ष्ण प्रवाभ रखती है | इसका उपयोग शत्रु वशीकरण के लिए और रूठी हुई पत्नी जा पति को वश में करने के लिए किया जाता है |यह भी ध्यान रखे के किसी भी अनुचित कार्य के लिए यह प्रयोग न करे अथवा आपको हानि होगी | यहा सिर्फ जिज्ञाशा के लिए यह प्रयोग दे रहा हु इसे अपने उच्च अधिकारी पत्नी अथवा पति को अनुकूल बनाने के लिए प्रयोग करे |
साधना विधि ,,,,किसी भी अमावश ,ग्रहण काल ,दीपावली आदि शुभ महूरत में शुरू कर इसका जाप 7 दिन में 11000 कर के सिद्ध कर ले फिर किसी भी ख्द्य पदारथ भोजन आदि जब भी आप करने बैठे उसे 7 वार अभिमंत्रिक कर जिसका भी नाम लेकर खाया जाता है उसका निहचय ही वशीकरण हो जाता है और वह आपके अनुकूल कार्य करने लगेगा और आपकी आज्ञा का पालन करेगा |
१. किसी बेजोट पे एक लाल कपड़ा विशा दे उसके उपर एक नारियल तिल की ढेरी पे स्थाप्त करे |
२. नारियल का पूजन करे उस पे सिंदूर का तिलक करे धूप दीप आदि से घोर रूपिणी को स्मरण करते हुये पूजन करे |
३. भोग मिठाई का लगाए |
४. दिशा दक्षिण की तरफ मुख रखे |
५. आसन कंबल का ले जा कोई भी ऊनी आसन ले ले |
६. माला काले हकीक जा रुद्राक्ष की ठीक रहती है |
७. वस्त्र किसी भी तरह के पहन ले |इस साधना को शाम 8 से 10 व्जे के बीच कभी भी शुरू कर ले |
८. मंत्र जाप पूरा हो जाए तो नारियल किसी भी शिव मंदिर जा काली के मंदिर में कुश दक्षणा के साथ चढ़ा दे और सफलता के लिए प्रार्थना करे |
९. गुरु पूजन और गणेश पूजन हर साधना में अनिवार्य होता है इसका ध्यान रखे |
मंत्र,,,,ॐ नमः कट विकट घोर रूपिणी स्वाहा |


5,,,अद्भुत समोहन प्राप्ति ,,,,श्री ज्वाला मालनी साधना 
सुख स्मृधी पे ग्रहण होता है गृह कलेश क्यू के घर में तनाव पूर्ण महोल ही प्रमथिक होता इसके साथ ही यदि आपका उचधिकारी आपके अनुकूल नहीं है | या आपके बच्चे या आपकी पत्नी आपके अनुकूल न हो तो भी जीवन में उदासीनता घर कर जाती है |यह साधना एक अद्भुत साधना है जो के साधक को ऐसा दिव्य स्मोहन देती है जिस से उसके कार्य सहज ही होने लगते है लोग उसकी बात का आदर करते है उसकी वाणी में अद्भुत प्रभाव आ जाता है छोटे बड़े सभ उसको इज़त देते है | वह अपने आस पास के महोल को और लोगो को अपने अनुकूल रखने और परिचित जा अपरिचित व्यक्ति के साथ मधुर संबंध बनाने और अपने व्यक्तिगत जीवन की आ रही अनेक स्मस्याओ को दूर करने में सक्षम हो जाता है |
विधि ,,,,,१. यह साधना 11 दिन की है | इस में हर रोज 11 माला जप अनिवर्य है |
२. इस में आसन पीले रंग का लेना है और आपकी दिशा उतर की तरफ मुख रहेगा |
३. देवी भगवती जा ज्वालामालनी का चित्र स्थाप्त करे | चित्र का पूजन धूप दीप नवेद पुष्प अक्षत फल आदि से करे | भोग में आप किसी भी तरह की मिठाई इस्तेमाल कर सकते है | एक पनि वाले नारियल को तिलक कर मौली बांध कर देवी माँ को अर्पित करे |
४. फिर मूँगे की माला से निम्न मंत्र की ११ माला ११ दिन तक करे |
५. ११ दिन के बाद सभी पुजा की हुई समगरी जल प्रवाह करदे | फल आदि प्रसाद अपने परिवार में बाँट दे |
६. गुरु पूजन और गणेश पूजन हर साधना में अनवर्य होता है इस बात को हमेशा याद रखे |
मंत्र ,,ॐ नमो आकर्षिनी ज्वाला मालनी देव्यै स्वाहा 

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