माँ ललिता दस महाविद्याओं में से एक हैं.
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ललिता जयंती का व्रत भक्तजनों के लिए बहुत ही फलदायक होता है. ऐसी मान्यता है कि यदि कोई इस दिन मां ललिता देवी की पूजा भक्ति-भाव सहित करता है तो उसे देवी मां की कृपा अवश्य प्राप्त होती है और जीवन में हमेशा सुख शांति एवं समृद्धि बनी रहती है।
श्री ललिता जयंती कथा
देवी ललिता आदि शक्ति का वर्णन देवी पुराण में प्राप्त होता है. जिसके अनुसार पिता दक्ष द्वारा अपमान से आहत होकर जब दक्ष पुत्री सती ने अपने प्राण उत्सर्ग कर दिये तो सती के वियोग में भगवान शिव उनका पार्थिव शव अपने कंधों में उठाए चारों दिशाओं में घूमने लगते हैं. इस महाविपत्ति को यह देख भगवान विष्णु चक्र द्वारा सती के शव के 108 भागों में विभाजित कर देते हैं. इस प्रकार शव के टूकडे़ होने पर सती के शव के अंश जहां गिरे वहीं शक्तिपीठ की स्थापना हुई. उसी में एक माँ ललिता का स्थान भी है. भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से विख्यात हुईं इन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा.
एक अन्य कथा अनुसार ललिता देवी का प्रादुर्भाव तब होता है जब ब्रह्मा जी द्वारा छोडे गये चक्र से पाताल समाप्त होने लगा. इस स्थिति से विचलित होकर ऋषि-मुनि भी घबरा जाते हैं, और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगती है. तब सभी ऋषि माता ललिता देवी की उपासना करने लगते हैं. उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी जी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं. सृष्टि पुन: नवजीवन को पाती है.
श्री ललिता जयंती महत्व
मां ललिता देवी मंदिर में हमेशा ही भक्तों का तांता लगा रहता है, परन्तु जयंती के अवसर पर मां की पूजा-आराधना का कुछ विशेष ही महत्व होता है.
यह पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यतानुसार इस दिन देवी ललिता भांडा नामक राक्षस को मारने के लिए अवतार लेती हैं. राक्षस भांडा कामदेव के शरीर के राख से उत्पन्न होता है. इस दिन भक्तगण षोडषोपचार विधि से मां ललिता का पूजन करते है. इस दिन मां ललिता के साथ साथ स्कंदमाता और शिव शंकर की भी शास्त्रानुसार पूजा की जाती है.
श्री ललिता पूजा
देवी ललिता जी का ध्यान रुप बहुत ही उज्जवल व प्रकाश मान है.
माँ की पूजा तीन स्वरूपों में होती है
1. बाल सुंदरी 8 वर्षीया कन्या रूप में
2. षोडशी त्रिपुर सुंदरी - 16 वर्षीया सुंदरी
3. ललिता त्रिपुर सुंदरी- युवा स्वरूप
माँ की दीक्षा और साधना भी इसी क्रम में करनी चाहिए। ऐसा देखा गया है की सीधे ललिता स्वरूप की साधना करने पर साधक को शुरू में कई बार आर्थिक संकट भी आते हैं और फिर धीरे धीरे साधना बढ़ने पर लाभ होता है।
बृहन्नीला तंत्र के अनुसार काली के दो भेद कहे गए हैं कृष्ण वर्ण और रक्त वर्ण।
कृष्ण वर्ण काली दक्षिणकालिका स्वरुप है और
रक्त वर्ण त्रिपुर सुंदरी स्वरुप।
अर्थात माँ ललिता त्रिपुर सुंदरी रक्त काली स्वरूपा हैं।
महा विद्याओं में कोई स्वरुप भोग देने में प्रधान है तो कोई स्वरूप मोक्ष देने में परंतु त्रिपुरसुंदरी अपने साधक को दोनों ही देती हैं।
शुक्ल पक्ष के समय प्रात:काल माता की पूजा उपासना करनी चाहिए. कालिकापुराण के अनुसार देवी की दो भुजाएं हैं, यह गौर वर्ण की, रक्तिम कमल पर विराजित हैं.
ललिता देवी की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है. दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है. इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है।
ये श्री यंत्र की मूल अधिष्ठात्री देवी हैं। आज श्री यंत्र को पंचामृत से स्नान करवा कर यथोचित पूजन और ललिता सहस्त्रनाम, ललिता त्रिशति ललितोपाख्यान और श्री सूक्त का पाठ करें।
ध्यान,,,बालार्क युत तैजसं त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लसिनीं।
नानालंकृतिराजमानवपुषं बालोडुराट शेखराम्।।
हस्तैरिक्षु धनुः सृणि सुमशरं पाशं मुदा विभ्रतीं।
श्री चक्र स्थितःसुन्दरीं त्रिजगतधारभूतां भजे।।
मन्त्र... ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नमः।
इस ध्यान मन्त्र से माँ को रक्त पुष्प , वस्त्र आदि चढ़ाकर अधिकाधिक जप करें। आपकी आर्थिक भौतिक समस्याएं समाप्त होंगी।
माँ ललिताम्बा सबका कल्याण करें।
!!Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557
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ललिता जयंती का व्रत भक्तजनों के लिए बहुत ही फलदायक होता है. ऐसी मान्यता है कि यदि कोई इस दिन मां ललिता देवी की पूजा भक्ति-भाव सहित करता है तो उसे देवी मां की कृपा अवश्य प्राप्त होती है और जीवन में हमेशा सुख शांति एवं समृद्धि बनी रहती है।
श्री ललिता जयंती कथा
देवी ललिता आदि शक्ति का वर्णन देवी पुराण में प्राप्त होता है. जिसके अनुसार पिता दक्ष द्वारा अपमान से आहत होकर जब दक्ष पुत्री सती ने अपने प्राण उत्सर्ग कर दिये तो सती के वियोग में भगवान शिव उनका पार्थिव शव अपने कंधों में उठाए चारों दिशाओं में घूमने लगते हैं. इस महाविपत्ति को यह देख भगवान विष्णु चक्र द्वारा सती के शव के 108 भागों में विभाजित कर देते हैं. इस प्रकार शव के टूकडे़ होने पर सती के शव के अंश जहां गिरे वहीं शक्तिपीठ की स्थापना हुई. उसी में एक माँ ललिता का स्थान भी है. भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से विख्यात हुईं इन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा.
एक अन्य कथा अनुसार ललिता देवी का प्रादुर्भाव तब होता है जब ब्रह्मा जी द्वारा छोडे गये चक्र से पाताल समाप्त होने लगा. इस स्थिति से विचलित होकर ऋषि-मुनि भी घबरा जाते हैं, और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगती है. तब सभी ऋषि माता ललिता देवी की उपासना करने लगते हैं. उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी जी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं. सृष्टि पुन: नवजीवन को पाती है.
श्री ललिता जयंती महत्व
मां ललिता देवी मंदिर में हमेशा ही भक्तों का तांता लगा रहता है, परन्तु जयंती के अवसर पर मां की पूजा-आराधना का कुछ विशेष ही महत्व होता है.
यह पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यतानुसार इस दिन देवी ललिता भांडा नामक राक्षस को मारने के लिए अवतार लेती हैं. राक्षस भांडा कामदेव के शरीर के राख से उत्पन्न होता है. इस दिन भक्तगण षोडषोपचार विधि से मां ललिता का पूजन करते है. इस दिन मां ललिता के साथ साथ स्कंदमाता और शिव शंकर की भी शास्त्रानुसार पूजा की जाती है.
श्री ललिता पूजा
देवी ललिता जी का ध्यान रुप बहुत ही उज्जवल व प्रकाश मान है.
माँ की पूजा तीन स्वरूपों में होती है
1. बाल सुंदरी 8 वर्षीया कन्या रूप में
2. षोडशी त्रिपुर सुंदरी - 16 वर्षीया सुंदरी
3. ललिता त्रिपुर सुंदरी- युवा स्वरूप
माँ की दीक्षा और साधना भी इसी क्रम में करनी चाहिए। ऐसा देखा गया है की सीधे ललिता स्वरूप की साधना करने पर साधक को शुरू में कई बार आर्थिक संकट भी आते हैं और फिर धीरे धीरे साधना बढ़ने पर लाभ होता है।
बृहन्नीला तंत्र के अनुसार काली के दो भेद कहे गए हैं कृष्ण वर्ण और रक्त वर्ण।
कृष्ण वर्ण काली दक्षिणकालिका स्वरुप है और
रक्त वर्ण त्रिपुर सुंदरी स्वरुप।
अर्थात माँ ललिता त्रिपुर सुंदरी रक्त काली स्वरूपा हैं।
महा विद्याओं में कोई स्वरुप भोग देने में प्रधान है तो कोई स्वरूप मोक्ष देने में परंतु त्रिपुरसुंदरी अपने साधक को दोनों ही देती हैं।
शुक्ल पक्ष के समय प्रात:काल माता की पूजा उपासना करनी चाहिए. कालिकापुराण के अनुसार देवी की दो भुजाएं हैं, यह गौर वर्ण की, रक्तिम कमल पर विराजित हैं.
ललिता देवी की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है. दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है. इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है।
ये श्री यंत्र की मूल अधिष्ठात्री देवी हैं। आज श्री यंत्र को पंचामृत से स्नान करवा कर यथोचित पूजन और ललिता सहस्त्रनाम, ललिता त्रिशति ललितोपाख्यान और श्री सूक्त का पाठ करें।
ध्यान,,,बालार्क युत तैजसं त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लसिनीं।
नानालंकृतिराजमानवपुषं बालोडुराट शेखराम्।।
हस्तैरिक्षु धनुः सृणि सुमशरं पाशं मुदा विभ्रतीं।
श्री चक्र स्थितःसुन्दरीं त्रिजगतधारभूतां भजे।।
मन्त्र... ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नमः।
इस ध्यान मन्त्र से माँ को रक्त पुष्प , वस्त्र आदि चढ़ाकर अधिकाधिक जप करें। आपकी आर्थिक भौतिक समस्याएं समाप्त होंगी।
माँ ललिताम्बा सबका कल्याण करें।
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