Monday 9 September 2019

गणेश जी की 4 सुंदर कथाएं

गणेश जी की 4 सुंदर कथाएं
भगवान गणपति के अवतरण व उनकी लीलाओं तथा उनके मनोरम स्वरूपों का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में प्राप्त होता है। कल्पभेद से उनके अनेक अवतार हुए हैं।
1..पद्म पुराण के अनुसार एक बार श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के उबटन से एक आकर्षक कृति बनाई। फिर उस आकृति को उन्होंने गंगा में डाल दिया। गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गई। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।
2.लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिए वर मांगा। आशुतोष शिव ने 'तथास्तु' कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया।
समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने पुष्प-वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार-बार प्रणाम किया। भगवान शिव ने गणेश जी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया।
3 .इसी तरह से ब्रह्म वैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण तथा शिव पुराण में भी भगवान गणेश जी के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएं मिलती हैं प्रजापति विश्वकर्मा की रिद्धी-सिद्धि नामक दो कन्याएं गणेश जी की पत्नियां हैं। सिद्धि से शुभ और रिद्धी से लाभ नाम के दो कल्याणकारी पुत्र हुए।
4 .गणेश चालीसा में वर्णित है : एक बार माता पार्वती ने विलक्षण पुत्र प्राप्ति हेतु बड़ा तप किया। जब यज्ञ पूरा हुआ अब श्री गणेश ब्राह्मण का रूप धर कर पहुंचें। अतिथि मानकर माता पार्वती ने उनका सत्कार किया। श्री गणेश ने प्रसन्न होकर वर दिया कि माते, पुत्र के लिए जो तप आपने किया है उससे आपको विशिष्ट बुद्धि वाला पुत्र बिना गर्भ के ही प्राप्त होगा। वह गणनायक होगा, गुणों की खान होगा। ऐसा कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए और पालने में बालक का स्वरूप धारण कर लिया। माता पार्वती की खुशी का ठिकाना न रहा। आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। भव्य उत्सव मनाया जाने लगा। चारों दिशाओं से देवी-देवता विलक्षण पार्वती नंदन को देखने पहुंचने लगे। शनिदेव भी पहुंचे। लेकिन वे अपने दृष्टि अवगुण की वजह से बालक के सामने जाने से बचने लगे। माता पार्वती ने आग्रह किया कि क्या शनि देव को उनका उत्सव और पुत्र प्राप्ति अच्छी नहीं लगी? संकोच के साथ शनि देव सुंदर बालक को देखने पहुंचे। लेकिन यह क्या
शनिदेव की नजर पड़ते ही बालक का सिर आकाश में उड़ गया। माता पार्वती विलाप करने लगी। कैलाश में हाहाकार मच गया। हर तरफ यही चर्चा होने लगी कि शनि ने पार्वती पुत्र का नाश किया है। तुरंत भगवान विष्णु ने गरूड़ देव को आदेश दिया कि जो भी पहला प्राणी नजर आए उसका सिर काटकर ले आओ.... उन्हें रास्ते में सबसे पहले हाथी मिला। गरूड़ देव हाथी का सिर लेकर आए। बालक के धड़ के ऊपर उसे रखा। भगवान शंकर ने उन पर प्राण मंत्र छिड़का। सभी देवताओं ने मिलकर उनका गणेश नामकरण किया और उन्हें प्रथम पुज्य होने का वरदान भी दिया। इस प्रकार श्री गणेश का जन्म हुआ।
    
  Gyanchand Bundiwal.
Kundan Jewellers 
We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices.
हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष  होल सेल भाव में मिलते हैं और  ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 
website www.kundanjewellersnagpur.com

श्री गजानन महाराज बावन्नी जय जय सद्गुरु गजानन

श्री गजानन महाराज बावन्नी || जय जय सद्गुरु गजानन ।रक्षक तूची भक्तजना ।।१।। निर्गुण तू परमात्मा तू ।सगुण रुपात गजानन तू ।।२।। सदेह तू परि विदेह तू ।देह असूनि देहातील तू ।।३।। माघ वद्य सप्तमी दिनी । शेगांवात प्रगटोनी ।।४।। उष्ट्या पञावळी निमित्त । विदेहत्व तव हो प्रगट ।।५।। बंकटलालावरी तुझी । कृपा जाहली ती साची ।।६।। गोसाव्याच्या नवसासाठी । गांजा घेसी लावुनी ओठी ।।७।। तव पदतीर्थे वाचविला । जानराव तो भक्तभला ।।८।। जानकीराम चिंचवणे । नासवुनी स्वरुपी आणणे ।।९।। मुकिन चंदुचे कानवले । खाऊनी कृतार्थ त्या केले ।।१०।। विहिरामाजी जलविहिना । केले देवा जलभरना ।।११।। मद्य माश्यांचे डंख तुवा । सहन सुखे केले देवा ।।१२।। त्यांचे काटे योगबले । काढुनि सहजी दाखविले ।।१३।। कुश्ती हरिशी खेळोनी । शक्ती दर्शन घडवोनी ।।१४।। वेद म्हणूनी दाखविला । चकित द्रविड ब्राम्हण झाला ।।१५।। जळत्या पर्यकावरती । ब्रम्हगिरीला ये प्रचिती ।।१६।। टाकळीकर हरिदासाचा । अश्र्व शांत केला साचा ।।१७।। बाळकृष्ण बाळापूरचा । समर्थ भक्तचि जो होता ।।१८।। रामदासरुपे त्याला । दर्शन देवुनि तोषविला ।।१९।। सुकलालाची गोमाता । व्दाड बहू होती ताता ।।२०।। कृपा तुझी होतांच क्षणी । शांत जाहली ती जननी ।।२१।। घुडे लश्मन शेगांवी । येता व्याधी तूं निरवी ।।२२।। दांभिकता परि ती त्याची । तू न चालवूनी घे साची ।।२३।। भास्कर पाटील तव भक्त । उध्दरिलासी तू त्वरीत ।।२४।। आध्न्या तव शिरसा वंद्य । काकहि मानति तुज वंद्य ।।२५।। विहिरीमाजी रक्षीयला । देवां तू गणु जवर्याला ।।२६।। पितांबराकरवी लीला । वठला आंबा पल्लविला ।।२७।। सुबुध्दी देशी जोश्याला । माफ करी तो दंडाला ।।२८।। सवडद येथील गंगाभारती । थुंकुनि वारली रक्तपिती ।।२९। पुंडलिकाचे गंडातर । निष्ठा जाणुनि केले दूर ।।३०।। ओंकारेश्र्वरी फुटली नौका । तारी नर्मदा शणात एका ।।३१।। माधवनाथा समवेत । केले भोजन अदृष्य ।।३२। लोकमान्य त्या टिळकांना । प्रसाद तूंची पाठविला ।।३३।। कवर सुताची कांदा भाकर । भक्शीलीस प्रेमाखातर ।।३४।। नग्न बैसुनी गाडीत । लिला दाविली विपरीत ।।३५।। बायजे चिती तव भक्ती । पुंडलिकावर विरक्त प्रिती ।।३६।। बापुना मनी विठ्ठल भक्ती | स्वये होशि तू विठ्ठल मूर्ती ।।३७।। कवठ्याचा त्या वारकर्याला । मरीपासूनी वाचविला ।।३८।। वासुदेव यति तुज भेटे । प्रेमाची ती खुण पटे ।।३९।। उध्दट झाला हवालदार । भस्मिभूत झाले घरदार ।।४०।। देहांताच्या नंतरही । कितीजना अनुभव येई ।।४१।। पडत्या मजुरा झेलियले । बघती जन आश्चर्य भले ।।४२।। आंगावरती खांब पडे । स्ञी वांचे आश्चर्य घडे ।।४३।। गजाननाच्या अदभुत लीला । अनुभव येती आज मितीला ।।४४।। शरण जाऊनी गजानना । दुःख तयाते करि कथना ।।४५। कृपा करी तो भक्तांसी | धावुन येतो वेगासी।।४६।। गजाननाची बावन्नी । नित्य असावी ध्यानीमनी ।।४७।। बावन्न गुरुवारी नेमे । करा पाठ बहूं भक्तीने ।।४८। विघ्ने सारी पडती दूर । सर्व सुखांचा येई पुर ।।४९।। चिंता सार्या दूर करी । संकटातुनी पार करी ।।५०।। सदाचार रत सदभक्ता । फळ लाभे बघता बघता ।।५१।। भक्त गण बोले जय बोला । गजाननाची जय बोला ।।५२।। जय बोला हो जय बोला । गजाननाची जय बोला।। अनंत कोटी ब्रम्हांडनायक महाराजाधिराज योगीराज परब्रम्ह सच्चिदानंद भक्त प्रतिपालक शेगांव निवासी समर्थ सदगुरु श्री गजानन महाराज की जय ।। गण गण गणात बोतेे ।।। Gyanchand Bundiwal. Kundan Jewellers We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices. हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष होल सेल भाव में मिलते हैं और ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 website www.kundanjewellersnagpur.com

Friday 6 September 2019

चौसठ योगिनी तंत्र।

चौसठ योगिनी तंत्र।
आदिशक्ति का सीधा सा सम्बन्ध है इस शब्द का जिसमे प्रकृति या ऐसी शक्ति का बोध होता जो उत्पन्न करने और पालन करने का दायित्व निभाती है जिसने भी इस शक्ति की शरणमें खुद को समर्पित कर दिया उसे फिर किसी प्रकार कि चिंता करने कि कोई आवश्यकता नहीं वह परमानन्द हो जाता है चौसठ योगिनियां वस्तुतः माता आदिशक्ति कि सहायक शक्तियों के रूप में मानी जाती हैं। जिनकी मदद से माता आदिशक्ति इस संसार का राज काज चलाती हैं एवं श्रृष्टि के अंत काल में ये मातृका शक्तियां वापस माँ आदिशक्ति में पुनः विलीन हो जाती हैं और सिर्फ माँ आदिशक्ति ही बचती हैं फिर से पुनर्निर्माण के लिए। बहुत बार देखने में आता है कि लोग वर्गीकरण करने लग जाते हैं और उसी वर्गीकरण के आधार पर साधकगण अन्य साधकों को हीन - हेय दृष्टि से देखने लग जाते हैं क्योंकि उनकी नजर में उनके द्वारा पूजित रूप को वे मूल या प्रधान समझते हैं और अन्य को द्वितीय भाव से देखते हैं जबकि ऐसा उचित नहीं है हर साधक का दुसरे साधक के लिए सम भाव होना चाहिए मैं किन्तु नैतिक दृष्टिकोण और अध्यात्मिकता के आधार पर यदि देखा जाये तो न तो कोई उच्च है न कोई हीन हम आराधना करते हैं तो कोई अहसान नहीं करते यह सिर्फ अपनी मानसिक शांति और संतुष्टि के लिए है और अगर कोई दूसरा करता है तो वह भी इसी उद्देश्य कि पूर्ती के लिए। अब अगर हम अपने विषय पर आ जाएँ तो इस मृत्यु लोक में मातृ शक्ति के जितने भी रूप विदयमान हैं सब एक ही विराट महामाया आद्यशक्ति के अंग, भाग, रूप हैं साधकों को वे जिस रूप की साधना करते हैं उस रूप के लिए निर्धारित व्यवहार और गुणों के अनुरूप फल प्राप्त होता है। चौसठ योगिनियां वस्तुतः माता दुर्गा कि सहायक शक्तियां है जो समय समय पर माता दुर्गा कि सहायक शक्तियों के रूप में काम करती हैं एवं दुसरे दृष्टिकोण से देखा जाये तो यह मातृका शक्तियां तंत्र भाव एवं शक्तियोंसे परिपूरित हैं और मुख्यतः तंत्र ज्ञानियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं।
चौसठ योगिनियों के नाम। (1)―बहुरूप, (3)―तारा, (3)―नर्मदा, (4)―यमुना, (5)―शांति, (6)―वारुणी (7)―क्षेमंकरी, (8)―ऐन्द्री, (9)―वाराही, (10)―रणवीरा, (11)―वानर-मुखी, (12)―वैष्णवी, (13)―कालरात्रि, (14)―वैद्यरूपा, (15)―चर्चिका, (16)―बेतली, (17)―छिन्नमस्तिका, (18)―वृषवाहन, (19)―ज्वाला कामिनी, (20)―घटवार, (21)―कराकाली, (22)―सरस्वती, (23)―बिरूपा, (24)―कौवेरी, (25)―भलुका, (26)―नारसिंही, (27)―बिरजा, (28)―विकतांना, (29)―महालक्ष्मी, (30)―कौमारी, (31)―महामाया, (32)―रति, (33)―करकरी, (34)―सर्पश्या, (35)―यक्षिणी, (36)―विनायकी, (37)―विंध्यवासिनी, (38)―वीर कुमारी, (39)―माहेश्वरी, (40)―अम्बिका, (41)―कामिनी, (42)―घटाबरी, (43)―स्तुती, (44)―काली, (45)―उमा, (46)―नारायणी, (47)―समुद्र, (48)―ब्रह्मिनी, (49)―ज्वाला मुखी, (50)―आग्नेयी, (51)―अदिति, (51)―चन्द्रकान्ति, (53)―वायुवेगा, (54)―चामुण्डा, (55)―मूरति, (56)―गंगा, (57)―धूमावती, (58)―गांधार, (59)―सर्व मंगला, (60)―अजिता, (61)―सूर्यपुत्री (62)―वायु वीणा, (63)―अघोर, (64)―भद्रकाली।
चौसठ योगनियों के मंत्र।1)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा।
2)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा।
3)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा।
4)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा।
5)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा।
6)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा।
7)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा।
8)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा।
9)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा।
10)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा।
11)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा।
12)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बलाका काम सेविता स्वाहा।
13)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा।
14)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा।
15)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा।
16)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा।
17)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा।
18)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भगमालिनी तारिणी स्वाहा।
19)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा।
20)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा।
21)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा।
22)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा।
23)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा।
24)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा।
25)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा।
26)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा।
27)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा।
28)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विजया देवी वसुदा स्वाहा।
29)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा।
30)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा।
31)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा।
32)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा।
33)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री डाकिनी मदसालिनी स्वाहा।
34)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री राकिनी पापराशिनी स्वाहा।
35)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा।
36)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा।
37)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा।
38)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा।
39)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा।
40)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री षोडशी लतिका देवी स्वाहा।
41)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा।
42)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा।
43)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा।
44)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा।
45)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा।
46)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातंगी कांटा युवती स्वाहा।
47)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा।
48)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा।
49)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा।
50)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मोहिनी माता योगिनी स्वाहा।
51)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा।
52)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा।
53)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नारसिंही वामदेवी स्वाहा।
54)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा।
55)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा।
56)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा।
57)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा।
58)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा।
59)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा।
60)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा।
61)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा।
62)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा।
63)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा।
64)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा
Gyanchand Bundiwal. Kundan Jewellers We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices. हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष होल सेल भाव में मिलते हैं और ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 website www.kundanjewellersnagpur.com
महालक्ष्मी व्रत,,महाराष्ट्रीयन परिवारों में खास माना जाने वाला
महालक्ष्मी व्रत इस वर्ष तीन दिवसीय पर्व का विसर्जन,
कई स्थानों पर प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से भी महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ होता है, जो 16 दिनों तक चलता है। इस दिन राधाष्टमी भी है। हर वर्ष श्री राधाष्टमी से ही महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ होता है। कई महाराष्ट्रीयन घरों में यह पर्व 3 दिन का ही मनाया जाता है, जिसे तीन दिवसीय महालक्ष्मी पर्व के नाम से जाना जाता है। कई स्थानों पर यह पर्व 8 दिन तो कई जगहों पर 16 दिन तक मनाया जाता है। इसमें खास कर गौरी यानी पार्वती और मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है।
मत-मतांतर के चलते श्री महालक्ष्मी व्रत 6 सितंबर 2019 से प्रारंभ होकर 21 सितंबर 2019 तक मनाया जाएगा। शास्त्रों में इस व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। कहा गया है कि इस व्रत को रखने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
मां महालक्ष्मी का यह पर्व सुख-संपन्नता देने वाला माना गया है। इस पर्व के तहत महाराष्ट्रीयन परिवार में 'महालक्ष्मी आली घरात सोन्याच्या पायानी, भर भराटी घेऊन आली, सर्वसमृद्धि घेऊन आली' ऐसी पंक्तियों के साथ महालक्ष्मी की अगवानी की जाती है।
माता लक्ष्मी अपने परिवार के साथ हमारे घर में आएं। घरों में सुख-संपन्नता और सदैव लक्ष्मी का वास हो, कुछ ऐसी ही मनोकामना के साथ महाराष्ट्रीयन परिवार 3 दिवसीय महालक्ष्मी उत्सव का आयोजन करते हैं। इन परिवारों में यह परंपरा कई पी़ढि़यों से चली आ रही है। महालक्ष्मी व्रत में घर को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है और तीन दिनों तक विविध आयोजन किए जाते हैं।
56 भोग का प्रसाद ,, इस अवसर पर महालक्ष्मी जी को छप्पन भोग लगाया जाता है। सोलह सब्जियों को एक साथ मिलाकर भोग लगाया जाता है। साथ ही ज्वार के आटे की अम्बिल और पूरन पोली का महाप्रसाद प्रमुख होता है। 56 भोगों में पुरणपोळी, सेवइयां, चावल की खीर, पातळभाजी, तिल्ली, खोपरा, खसखस तथा मूंगफली के दाने की चटनी, लड्डू, करंजी, मोदक, कुल्डई, पापड़, अरबी के पत्ते के भजिए आदि सामग्री का केले के पत्ते पर भोग लगाया जाएगा। परंपरानुसार ब्राह्मण, बटुकों व सुहागिनों को भोजन व प्रसाद का वितरण किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि माता लक्ष्मी की आराधना से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
इन तीनों दिनों में महालक्ष्मी की प्रतिमा ज्येष्ठा व कनिष्का का विशेष श्रृंगार किया जाएगा। महालक्ष्मीजी की बिदाई में दाल-चावल, सेवईं की खीर का भोग लगाया जाता है। आखिरी दिन महालक्ष्मी का विधिवत विसर्जन किया जाता है। इसके साथ ही अधिकांश परिवारों द्वारा गणेशजी का विसर्जन भी किया जाता है।
पढ़ें जेठानी-देवरानी की कथा ,, ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी के जिस रूप की पूजा की जाती है वो जेठानी-देवरानी हैं। अपने दो बच्चों के साथ वो इन दिनों मायके आती हैं। मायके में आने पर तीन दिनों तक उनका भव्य स्वागत किया जाता है। पहले दिन स्थापना, दूसरे दिन भोग और तीसरे दिन हल्दी कुमकुम के साथ माता की विदाई। इसके साथ ही महाराष्ट्रीयन समाज में छह दिवसीय गणपति उत्सव की भी समाप्ति हो जाती है।
कई स्थानों पर महालक्ष्मी उत्सव बेहद ही उत्साह और उम्दा तरीके से मनाया जाता है। महालक्ष्मी उत्सव के दौरान लक्ष्मी जी के पंडाल को आकर्षक तरीके से सजाया जाता है। महालक्ष्मी की पूजा फुलहरा बांधकर की जाती है। घरों में तरह-तरह के पकवान बनते हैं। यह पूजा विशेष कर घर की बहुओं द्वारा की जाती है। महिलाएं साथ में मिलकर ढोलक-मंजीरों के साथ भजन-कीर्तन गाती हैं।
कहा जाता है कि लक्ष्मी की इन मूर्तियों में कोई भी बदलाव तभी किया जा सकता है जब घर में कोई शादी हो या किसी बच्चे का जन्म हुआ हो। माता की प्रतिमाओं के अंदर गेहूं और चावल भरे जाते हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि घर धन-धान्य से भरा-पूरा रहे।। Gyanchand Bundiwal. Kundan Jewellers We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices. हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष होल सेल भाव में मिलते हैं और ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 website www.kundanjewellersnagpur.com

महालक्ष्मी व्रत ,,इस व्रत को राधाष्टमी के दिन ही किया जाता है

महालक्ष्मी व्रत ,,इस व्रत को राधाष्टमी के दिन ही किया जाता है  
अर्थात भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन से किया जाता है. इस व्रत को लगातार 16 दिनों तक रखा जाता है. सबसे पहले नीचे दिए मंत्र को पढ़कर संकल्प करें
करिष्येsहं महालक्ष्मी व्रतते त्वत्परायणा।
अविघ्नेन मे मातु समाप्तिं त्वत्प्रसादत:।।
अर्थात हे देवी! मैं आपकी सेवा में तत्पर होकर आपके इस महाव्रत का पलन करुँगा/करुँगी. आपकी कृपा से यह व्रत बिना विघ्नों के पूर्ण हो जाए.
व्रत का विधान ,,सोलह तार का एक डोरा अथवा धागा लेकर उसमें सोलह ही गाँठे लगा लें. इसके बाद हल्दी की गाँठ को पीसकर उसका पीला रँग डोरे पर लगा लें जिससे यह पीला हो जाएगा. पीला होने के बाद इसे हाथ की कलाई पर बाँध लेते हैं. यह व्रत आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी तक चलता है. जब व्रत पूरा हो जाए तब एक वस्त्र से मंडप बनाया जाता है जिसमें महालक्ष्मी जी की मूर्त्ति रखी जाती है और पंचामृत से स्नान कराया जाता है. उसके बाद सोलह श्रृंगार से पूजा की जाती है. रात में तारों को अर्ध्य देकर लक्ष्मी जी की प्रार्थना की जाती है.
व्रत करने वाले को ब्राह्मण को भोजन कराना चहिए. उनसे हवन कराकर खीर की आहुति देनी चाहिए. चंदन, अक्षत, दूब, तालपत्र, फूलमाला, लाल सूत, नारियल, सुपारी अत्था भिन्न-भिन्न पदार्थ किसी नए सूप में 16-16 की संख्या में रखते हैं. फिर दूसरे नए सूप से इन सभी को ढककर नीचे दिया मंत्र बोलते हैं
क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्रसहोदरा ।
व्रतेनानेन सन्तुष्टा भव भर्तोवपुबल्लभा ।।
इसका अर्थ है “क्षीरसागर में प्रकट हुई लक्ष्मी, चन्द्रमा की बहन, श्रीविष्णुवल्लभ, महालक्ष्मी इस व्रत से सन्तुष्ट हों.”
इसके बाद 4 ब्राह्मण तथा 16 ब्राह्मणियों को भोजन कराना चाहिए और सामर्थ्यानुसार दक्षिणा भी देनी चाहिए. उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण कर लेना चाहिए. जो लोग इस व्रत को करते हैं वह इस लोक का सुख भोगकर अन्त समय में लक्ष्मी लोक जाते हैं.
श्रीमहालक्ष्मी जी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता , मैया जय लक्ष्मी माता,
तुमको निस दिन सेवत, हरी, विष्णु दाता
ॐ जय लक्ष्मी माता
उमा राम ब्रह्माणी, तुम ही जग माता, मैया, तुम ही जग माता ,
सूर्यचंद्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता .
ॐ जय लक्ष्मी माता .
दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पति दाता, मैया सुख सम्पति दाता
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि सिद्दी धन पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता.
जिस घर में तुम रहती, तह सब सुख आता,
मैया सब सुख आता, ताप पाप मिट जाता, मन नहीं घबराता.
ॐ जय लक्ष्मी माता.
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो,
मैया माँ स्वीकार करो, ज्ञान प्रकाश करो माँ, मोहा अज्ञान हरो.
ॐ जय लक्ष्मी माता.
महा लक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गावे
मैया निस दिन जो गावे,
और आनंद समाता, पाप उतर जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता. 
Gyanchand Bundiwal.
Kundan Jewellers 
We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices.
हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष  होल सेल भाव में मिलते हैं और  ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 
website www.kundanjewellersnagpur.com

संतान संप्तमी का व्रत पुत्र प्राप्ति

संतान संप्तमी का व्रत पुत्र प्राप्ति,
पुत्र रक्षा तथा पुत्र अभ्युदय के लिए भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है। इस व्रत का विधान दोपहर तक रहता है। इस दिन शिव-पार्वती के साथ-साथ जाम्बवती, श्यामसुंदर तथा उनके बच्चे साम्ब की पूजा भी की जाती है। माताएं पार्वती का पूजन करके पुत्र प्राप्ति तथा उसके अभ्युदय का वरदान मांगती हैं। इस व्रत को 'मुक्ताभरण' भी कहते हैं।
भाद्रपद माह की सप्तमी तिथि को किए जाने वाले इस व्रत का अत्यंत महत्व है। संतान सप्तमी के व्रत से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है जिसे पूजन के दौरान पढ़ा एवं सुना जाता है। आप भी पढ़ें संतान सप्तमी की कथा

एक बार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि किसी समय मथुरा में लोमश ऋषि आए थे। मेरे माता-पिता देवकी तथा वसुदेव ने भक्तिपूर्वक उनकी सेवा की तो ऋषि ने उन्हें कंस द्वारा मारे गए पुत्रों के शोक से उबरने के लिए आदेश दिया- हे देवकी! कंसने तुम्हारे कई पुत्रों को पैदा होते ही मारकर तुम्हें पुत्रशोक दिया है। इस दुःख से मुक्त होने के लिए तुम 'संतान सप्तमी' का व्रत करो। राजा नहुष की रानी चंद्रमुखी ने भी यह व्रत किया था। तब उसके भी पुत्र नहीं मरे। यह व्रत तुम्हें भी पुत्रशोक से मुक्त करेगा।
देवकी ने पूछा- हे देव! मुझे व्रत का पूरा विधि-विधान बताने की कृपा करें ताकि मैं विधिपूर्वक व्रत संपन्न करूं। लोमश ऋषि ने उन्हें व्रत का पूजन-विधान बताकर व्रतकथा भी बताई।

नहुष अयोध्यापुरी का प्रतापी राजा था। उसकी पत्नी का नाम चंद्रमुखी था। उसके राज्य में ही विष्णुदत्त नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम रूपवती था। रानी चंद्रमुखी तथा रूपवती में परस्पर घनिष्ठ प्रेम था। एक दिन वे दोनों सरयू में स्नान करने गईं। वहां अन्य स्त्रियां भी स्नान कर रही थीं। उन स्त्रियों ने वहीं पार्वती-शिव की प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक उनका पूजन किया। तब रानी चंद्रमुखी तथा रूपवती ने उन स्त्रियों से पूजन का नाम तथा विधि के बारे में पूछा।
उन स्त्रियों में से एक ने बताया- हमने पार्वती सहित शिव की पूजा की है। भगवान शिव का डोरा बांधकर हमने संकल्प किया है कि जब तक जीवित रहेंगी, तब तक यह व्रत करती रहेंगी। यह 'मुक्ताभरण व्रत' सुख तथा संतान देने वाला है।

उस व्रत की बात सुनकर उन दोनों सखियों ने भी जीवन-पर्यन्त इस व्रत को करने का संकल्प करके शिवजी के नाम का डोरा बांध लिया। किन्तु घर पहुंचने पर वे संकल्प को भूल गईं। फलतः मृत्यु के पश्चात रानी वानरी तथा ब्राह्मणी मुर्गी की योनि में पैदा हुईं।
कालांतर में दोनों पशु योनि छोड़कर पुनः मनुष्य योनि में आईं। चंद्रमुखी मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ की रानी बनी तथा रूपवती ने फिर एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया। इस जन्म में रानी का नाम ईश्वरी तथा ब्राह्मणी का नाम भूषणा था। भूषणा का विवाह राजपुरोहित अग्निमुखी के साथ हुआ। इस जन्म में भी उन दोनों में बड़ा प्रेम हो गया।

व्रत भूलने के कारण ही रानी इस जन्म में भी संतान सुख से वंचित रही। प्रौढ़ावस्था में उसने एक गूंगा तथा बहरा पुत्र जन्मा, मगर वह भी नौ वर्ष का होकर मर गया। भूषणा ने व्रत को याद रखा था। इसलिए उसके गर्भ से सुन्दर तथा स्वस्थ आठ पुत्रों ने जन्म लिया।
रानी ईश्वरी के पुत्रशोक की संवेदना के लिए एक दिन भूषणा उससे मिलने गई। उसे देखते ही रानी के मन में डाह पैदा हुई। उसने भूषणा को विदा करके उसके पुत्रों को भोजन के लिए बुलाया और भोजन में विष मिला दिया। परन्तु भूषणा के व्रत के प्रभाव से उनका बाल भी बांका न हुआ।

इससे रानी को और भी अधिक क्रोध आया। उसने अपने नौकरों को आज्ञा दी कि भूषणा के पुत्रों को पूजा के बहाने यमुना के किनारे ले जाकर गहरे जल में धकेल दिया जाए। किन्तु भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से इस बार भी भूषणा के बालक व्रत के प्रभाव से बच गए। परिणामतः रानी ने जल्लादों को बुलाकर आज्ञा दी कि ब्राह्मण बालकों को वध-स्थल पर ले जाकर मार डालो किन्तु जल्लादों द्वारा बेहद प्रयास करने पर भी बालक न मर सके। यह समाचार सुनकर रानी को आश्चर्य हुआ। उसने भूषणा को बुलाकर सारी बात बताई और फिर क्षमायाचना करके उससे पूछा- किस कारण तुम्हारे बच्चे नहीं मर पाए?
भूषणा बोली- क्या आपको पूर्वजन्म की बात स्मरण नहीं है? रानी ने आश्चर्य से कहा- नहीं, मुझे तो कुछ याद नहीं है?

तब उसने कहा- सुनो, पूर्वजन्म में तुम राजा नहुष की रानी थी और मैं तुम्हारी सखी। हम दोनों ने एक बार भगवान शिव का डोरा बांधकर संकल्प किया था कि जीवन-पर्यन्त संतान सप्तमी का व्रत किया करेंगी। किन्तु दुर्भाग्यवश हम भूल गईं और व्रत की अवहेलना होने के कारण विभिन्न योनियों में जन्म लेती हुई अब फिर मनुष्य जन्म को प्राप्त हुई हैं। अब मुझे उस व्रत की याद हो आई थी, इसलिए मैंने व्रत किया। उसी के प्रभाव से आप मेरे पुत्रों को चाहकर भी न मरवा सकीं।
यह सब सुनकर रानी ईश्वरी ने भी विधिपूर्वक संतान सुख देने वाला यह मुक्ताभरण व्रत रखा। तब व्रत के प्रभाव से रानी पुनः गर्भवती हुई और एक सुंदर बालक को जन्म दिया। उसी समय से पुत्र-प्राप्ति और संतान की रक्षा के लिए यह व्रत प्रचलित है

संतान सप्तमी व्रत किया जाता है। आज यानी 5 सितंबर, गुरुवार को किया जा रहा है। यह व्रत संतान की प्राप्ति, उसकी कुशलता और उन्नति के लिए किया जाता है।
जानिए संतान सप्तमी का व्रत करने की
सरल विधि ,,,संतान सप्तमी के दिन सुबह ज्ल्दी उठकर, स्नानादि करके स्वच्छ कपड़े पहनें और भगवान शिव और मां गौरी के समक्ष प्रणाम कर व्रत का संकल्प लें।
अब अपने व्रत की शुरुआत करें और निराहार रहते हुए शुद्धता के साथ पूजन का प्रसाद तैयार कर लें।
इसके लिए खीर-पूरी व गुड़ के 7 पुए या फिर 7 मीठी पूरी तैयार कर लें।
यह पूजा दोपहर के समय तक कर लेनी चाहिए।
पूजा के लिए धरती पर चौक बनाकर उस पर चौकी रखें और उस पर शंकर पार्वती की मूर्ति स्थापित करें।
अब कलश स्थापित करें, उसमें आप के पत्तों के साथ नारियल रखें।
दीपक जलाएं और आरती की थाली तैयार कर लें जिसमें हल्दी, कुंकुम, चावल, कपूर, फूल, कलावा आदि अन्य सामग्री रखें।
अब 7 मीठी पूड़ी को केले के पत्ते में बांधकर उसे पूजा में रखें और संतान की रक्षा व उन्नति के लिए प्रार्थना करते हुए पूजन करते हुए भगवान शिव को कलावा अर्पित करें।
पूजा करते समय सूती का डोरा या चांदी की संतान सप्तमी की चूडी हाथ में पहननी चाहिए।
यह व्रत माता-पिता दोनो भी संतान की कामना के लिए कर सकते हैं।
पूजन के बाद धूप, दीप नेवैद्य अर्पित कर
संतान सप्तमी की कथा पढ़ें या सुनें और बाद में कथा की पुस्तक का पूजन करें।
व्रत खोलने के लिए पूजन में चढ़ाई गई मीठी सात पूड़ी या पुए खाएं और अपना व्रत खोलें। Gyanchand Bundiwal. Kundan Jewellers We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices. हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष होल सेल भाव में मिलते हैं और ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 website www.kundanjewellersnagpur.com

दूर्वा अष्टमी भगवान गणेश की पूजा जिस चीज के बिना अधूरी

दूर्वा अष्टमी भगवान गणेश की पूजा जिस चीज के बिना अधूरी मानी जाती है
   और है दूर्वा घास . राक्षस को जिन्दा निगल जाने के बाद गणेश जी के पेट में उठे हुए दर्द को इसने अपने अमृत तुल्य गुण के कारण शांत कर दिया था |
,,दूर्वा क्यों मानी जाती है पवित्र
आइये अब जानते है दूर्वा की उत्पति की कहानी
दूर्वा इतनी पवित्र और पूजनीय इसलिए है क्योकि यह भगवान विष्णु के द्वारा ही उत्पन्न हुई है | भविष्य पुराण में बताया गया है की जब देवताओ और असुरो के बीच समुन्द्र मंथन किया गया तब क्षीर सागर में भगवान विष्णु ने मंदराचल पर्वत को अपने जांघ पर धारण दिया और फिर मंथन के समय रगड लगने से विष्णु जी रोम समुन्द्र में गिर गये | फिर इन्हे समुन्द्र की लहरों के द्वारा उछाला गया और ये धरती पर आ कर दूर्वा घास का रूप ले लिए |
मंथन में जब धन्वन्तरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए तब देवताओ ने इस कलश को इस दूर्वा पर ही रखा था | इसी अमृत को छूने मात्र से दूर्वा अमर हो गयी |
इसी कारण यह देवताओ , मनुष्यों द्वारा वन्दनीय मानी जाने लगी |
दूर्वाष्टमी दूर्वा अष्टमी का व्रत और पूजा विधि
भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी को देवताओ ने गंध , पुष्प , धुप दीप , मिठाई , फल ,अक्षत , माला आदि से दूर्वा का पूजन किया | कहते है इस दिन दूर्वा का पूजन करने से वंश का कभी क्षय नही होता | दूर्वा के अंगो की तरह उसके कुल की वृधि होती है | दूर्वा की पूजा करने से सौभाग्य और नाना प्रकार के सुखो की प्राप्ति होती है |
दूर्वा पूजन में मुख्य मंत्र
त्वं दूर्वे अमृतनजन्मासी वन्दिता च सुरासुरैः |सौभाग्यं संतति कृत्वा सर्वकार्य करी भव ।।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्विस्तृतासि महीतले ।तथा ममापि संतानं देहि त्वमजरामरे ।।
मंत्र अर्थ :
हे दूर्वे! तुम अमृताजन्मा हो। देवता और असुरों के द्वारा. वन्दित हो।
हमें सौभाग्य और संतान प्राप्त करवाके सभी कार्यो को पूर्ण करवाओ |
जैसे आप धरती पर अपनी शाखा प्रशाखा के रूप में फैली हो वैसे ही हमें पुत्र पौत्रादी प्रदान करो |
दूर्वा घास के स्वास्थ्य फायदे
1 इसमे एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबिल तत्व होते है जो प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है |
2 दूर्वा में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-सेप्टिक गुण होते है जो त्वचा सम्बन्धी रोगों को दूर करता है |
3 नागे पाँव सुबह के समय दूर्वा पर चलने से आँखों की रोशनी बढती है |
4 दूब के रस को हरा रक्त कहा जाता है, क्‍योंकि इसे पीने से एनीमिया की समस्‍या को ठीक किया जा सकता है।
  Gyanchand Bundiwal.
Kundan Jewellers 
We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices.
हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष  होल सेल भाव में मिलते हैं और  ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557 
website www.kundanjewellersnagpur.com

Tuesday 3 September 2019

ऋषि पंचमी कथा

ऋषि पंचमी कथा 
सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा हुए थे।     वह ऋषियों के समान थे। उन्हीं के राज में एक कृषक सुमित्र था। उसकी पत्नी जयश्री अत्यंत  पतिव्रता थी।
एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी, तो वह रजस्वला हो गई। उसको रजस्वला होने का पता लग गया फिर भी वह घर के कामों में लगी रही। कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। जयश्री तो कुतिया बनीं और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के कारण बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था।

इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा। वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए।

जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी। पुत्र की बहू के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारी।

बेचारी कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी। चौके में जो झूठन आदि बची रहती थी, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को डाल देती थी, लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फिकवा दी। सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया।

रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनके न खाने योग्य कर दिया था। इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया।

तब वह बैल बोला, हे भद्रे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनी में आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुता रहा। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया।

अपने माता-पिता की इन बातों को सुचित्र सुन रहा था, उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया। वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता किन कर्मों के कारण इन नीची योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको छुटकारा मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नीसहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका फल अपने माता-पिता को दो।

भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना। इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नीसहित विधि-विधान से पूजन व्रत किया। उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है।

ऋषि पंचमी व्रत  जानें 5 रोचक बातें और लाभ
1 ऋषि पंचमी का व्रत महिलाओं के साथ-साथ विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं द्वारा किया जाता है, लेकिन यह अन्य व्रत-उपवास की तरह  सिर्फ सुहाग या मनवांछित वर पाने के लिए नहीं किया जाता, बल्कि इसकाा विशेष प्रयोजन होता है।
2 ऋषि पंचमी का व्रत खास तौर से अप्रत्यक्ष या अनजाने में महिलाओं द्वारा हुए पापकर्मों को नष्ट करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। यही कारण है कि इसे हर उम्र और वर्ग की महिलाएं विशेष तौर पर करती हैं।
3 खास तौर से महिलाओं की माहवारी के दौरान अनजाने में हुई धार्मिेक गलतियों और उससे मिलने वाले दोषों से रक्षा करने के लिए यह व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
4 ऋषि पंचमी के व्रत की एक और सबसे खास बात यह है कि इस व्रत में किसी देवी-देवता की पूजा नहीं की जाती, बल्कि इस दिन विशेष रूप से सप्तर्ष‍ियों का पूजन किया जाता है।
5 इस व्रत में अपामार्ग नामक पौधे का विशेष महत्व होता है, जिसके तने से दातुन और स्नान किए बिना ऋषि पंचमी का यह पवित्र व्रत पूर्ण नहीं होता। समस्त पापों का नाश करने वाला यह व्रत अत्यंत पुण्य फलदायी है।

ऋषि पंचमी   पौराणिक एवं प्रामाणिक कथा
एक समय राजा सिताश्व धर्म का अर्थ जानने की इच्छा से ब्रह्मा जी के पास गए और उनके चरणों में शीश नवाकर बोले- हे आदिदेव! आप समस्त धर्मों के प्रवर्तक और गुढ़ धर्मों को जानने वाले हैं।

आपके श्री मुख से धर्म चर्चा श्रवण कर मन को आत्मिक शांति मिलती है। भगवान के चरण कमलों में प्रीति बढ़ती है। वैसे तो आपने मुझे नाना प्रकार के व्रतों के बारे में उपदेश दिए हैं। अब मैं आपके मुखारविन्द से उस श्रेष्ठ व्रत को सुनने की अभिलाषा रखता हूं, जिसके करने से प्राणियों के समस्त पापों का नाश हो जाता है।

राजा के वचन को सुन कर ब्रह्माजी ने कहा- हे श्रेष्ठ, तुम्हारा प्रश्न अति उत्तम और धर्म में प्रीति बढ़ाने वाला है। मैं तुमको समस्त पापों को नष्ट करने वाला सर्वोत्तम व्रत के बारे में बताता हूं। यह व्रत ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को करने वाला प्राणी अपने समस्त पापों से सहज छुटकारा पा लेता है।
ऋषि पंचमी की व्रतकथा

विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था। उस ब्राह्मण के एक पुत्र तथा एक पुत्री दो संतान थी। विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद वह विधवा हो गई। दुखी ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे।

एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या ने सारी बात मां से कही। मां ने पति से सब कहते हुए पूछा- प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है
उत्तंक ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया- पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। इसने रजस्वला होते ही बर्तन छू दिए थे। इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं।

धर्म-शास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है। यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे दुख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी।

पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला।

ऋषि पंचमी पर होगा सप्त ऋषि पूजन
ब्रह्म पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पंचमी को सप्त ऋषि पूजन व्रत का विधान है। इस दिन चारों वर्ण की स्त्रियों को चाहिए कि वे यह व्रत करें। यह व्रत जाने-अनजाने हुए पापों के पक्षालन के लिए स्त्री तथा पुरुषों को अवश्य करना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष माहात्म्य है।
कैसे करें व्रत
प्रातः नदी आदि पर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
तत्पश्चात घर में ही किसी पवित्र स्थान पर पृथ्वी को शुद्ध करके हल्दी से चौकोर मंडल (चौक पूरें) बनाएं। फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना करें।
इसके बाद गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से सप्तर्षियों का पूजन करें।
तत्पश्चात निम्न मंत्र से अर्घ्य दें
'कश्यपो त्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥

ऋषि पंचमी व्रत से पाप का नाश
1,जाने अंजाने में सभी से कोई न कोई पाप हो ही जाता है। जैसे पांव पड़ने पर जीवों की हत्या, किसी को अपशब्द कहने से वाणी का पाप लगता है। किसी के हृदय को ठेस पहुंचाने से मानस पाप लगता है। आप सोच रहे होंगे कि ऐसे पाप से कैसे मुक्ति पाई जाये। तो इसके लिए भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आती है ऋषि पंचमी। अंजाने में हुए पाप से मुक्ति तभी मिलती है जब ऋषि पंचमी का व्रत रखा जाये। इस व्रत में सप्तऋषियों समेत अरुन्धती का पूजन होता है।
ऋषि पंचमी व्रत
1,प्रात:काल से दोपहर तक उपवास करके दोपहर को तालाब में जाकर अपामार्ग की दातून से दांत साफ कर, शरीर में  मिट्टी लगाकर स्नान करना चाहिये।
3,घर लौटकर गोबर से पूजा का स्थान लीपना चाहिये।
4,सर्वतोभद्रमंडल बनाकर, मिट्टी या तांबे के कलश के कलश में जौ भर कर स्थापना करें।
5, पंचरत्न,फूल,गंध,अक्षत से पूजन कर व्रत का संकल्प करें।
6, कलश के पास अष्टदल कमल बनाकर, उसके दलों में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जगदग्नि और वशिष्ठ  ऋषियों की पत्नी की प्रतिष्ठा करें।
7,इन सभी सप्तऋषियों का 16 वस्तुओं से पूजन करें।
8,ऋषि पंचमी में साठी का चावल और दही खाई जाती है।
9, नमक और हल से जुते अन्न इस व्रत में नहीं खाये जाते हैं।
10,पूजन के बाद कलश सामग्री को किसी ब्राह्मण को दान करें।
11, पूजा के बाद ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करें।
12,सतयुग में सुमित नाम के ब्राह्मण ने अपने माता-पिता को ऋषि पंचमी व्रत से ही, पशु योनि से मुक्ति दिलाई थी। इसीलिए जिनसे भी कोई अंजाने में पाप हो जाये, उन्हें भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को पड़ने वाला ये व्रत ज़रुर करना चाहिये।

अब व्रत कथा सुनकर आरती कर प्रसाद वितरित करें।
तदुपरांत अकृष्ट (बिना बोई हुई) पृथ्वी में पैदा हुए शाकादि का आहार लें।
इस प्रकार सात वर्ष तक व्रत करके आठवें वर्ष में सप्त ऋषियों की सोने की सात मूर्तियां बनवाएं।
तत्पश्चात कलश स्थापन करके यथाविधि पूजन करें।
अंत में सात गोदान तथा सात युग्मक-ब्राह्मण को भोजन करा कर उनका विसर्जन करें।

Gyanchand Bundiwal.
Kundan Jewellers
We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices.
हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष  होल सेल भाव में मिलते हैं और  ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557
website www.kundanjewellersnagpur.com

गणेश जी की 4 सुंदर कथा

गणेश जी की 4 सुंदर कथा    
भगवान गणपति के अवतरण व उनकी लीलाओं तथा उनके मनोरम स्वरूपों का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में प्राप्त होता है। कल्पभेद से उनके अनेक अवतार हुए हैं।
1..पद्म पुराण के अनुसार एक बार श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के उबटन से एक आकर्षक कृति बनाई। फिर उस आकृति को उन्होंने गंगा में डाल दिया। गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गई। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।
2.लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिए वर मांगा। आशुतोष शिव ने 'तथास्तु' कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया।
समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने पुष्प-वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार-बार प्रणाम किया। भगवान शिव ने गणेश जी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया।

3 .इसी तरह से ब्रह्म वैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण तथा शिव पुराण में भी भगवान गणेश जी के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएं मिलती हैं प्रजापति विश्वकर्मा की रिद्धी-सिद्धि नामक दो कन्याएं गणेश जी की पत्नियां हैं। सिद्धि से शुभ और रिद्धी से लाभ नाम के दो कल्याणकारी पुत्र हुए।
4 .गणेश चालीसा में वर्णित है : एक बार माता पार्वती ने विलक्षण पुत्र प्राप्ति हेतु बड़ा तप किया। जब  यज्ञ पूरा हुआ अब श्री गणेश ब्राह्मण का रूप धर कर पहुंचें। अतिथि मानकर माता पार्वती ने उनका सत्कार किया। श्री गणेश ने प्रसन्न होकर वर दिया कि माते, पुत्र के लिए जो तप आपने किया है उससे आपको विशिष्ट बुद्धि वाला पुत्र बिना गर्भ के ही प्राप्त होगा। वह गणनायक होगा, गुणों की खान होगा। ऐसा कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए और पालने में बालक का स्वरूप धारण कर लिया। माता पार्वती की खुशी का ठिकाना न रहा।  आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। भव्य उत्सव मनाया जाने लगा। चारों दिशाओं से देवी-देवता विलक्षण पार्वती नंदन को देखने पहुंचने लगे। शनिदेव भी पहुंचे। लेकिन वे अपने दृष्टि अवगुण की वजह से बालक के सामने जाने से बचने लगे। माता पार्वती ने आग्रह किया कि क्या शनि देव को उनका उत्सव और पुत्र प्राप्ति अच्छी नहीं लगी? संकोच के साथ शनि देव सुंदर बालक को देखने पहुंचे। लेकिन यह क्या
शनिदेव की नजर पड़ते ही बालक का सिर आकाश में उड़ गया। माता पार्वती विलाप करने लगी। कैलाश में हाहाकार मच गया। हर तरफ यही चर्चा होने लगी कि शनि ने पार्वती पुत्र का नाश किया है। तुरंत भगवान विष्णु ने गरूड़ देव को आदेश दिया कि जो भी पहला प्राणी नजर आए उसका सिर काटकर ले आओ.... उन्हें रास्ते में सबसे पहले हाथी मिला। गरूड़ देव हाथी का सिर लेकर आए। बालक के धड़ के ऊपर उसे रखा। भगवान शंकर ने उन पर प्राण मंत्र छिड़का। सभी देवताओं ने मिलकर उनका गणेश नामकरण किया और उन्हें प्रथम पुज्य होने का वरदान भी दिया। इस प्रकार श्री गणेश का जन्म हुआ।  Gyanchand Bundiwal.
Kundan Jewellers
We deal in all types of gemstones and rudraksha. Certificate Gemstones at affordable prices.
हमारे यहां सभी प्रकार के नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष  होल सेल भाव में मिलते हैं और  ज्योतिष रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करें मोबाइल 8275555557
website www.kundanjewellersnagpur.com

Latest Blog

शीतला माता की पूजा और कहानी

 शीतला माता की पूजा और कहानी   होली के बाद शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इसे बसौड़ा पर्व भी कहा जाता है  इस दिन माता श...