दूर्वा अष्टमी भगवान गणेश की पूजा जिस चीज के बिना अधूरी मानी जाती है
और है दूर्वा घास . राक्षस को जिन्दा निगल जाने के बाद गणेश जी के पेट में उठे हुए दर्द को इसने अपने अमृत तुल्य गुण के कारण शांत कर दिया था |
,,दूर्वा क्यों मानी जाती है पवित्र
आइये अब जानते है दूर्वा की उत्पति की कहानी
दूर्वा इतनी पवित्र और पूजनीय इसलिए है क्योकि यह भगवान विष्णु के द्वारा ही उत्पन्न हुई है | भविष्य पुराण में बताया गया है की जब देवताओ और असुरो के बीच समुन्द्र मंथन किया गया तब क्षीर सागर में भगवान विष्णु ने मंदराचल पर्वत को अपने जांघ पर धारण दिया और फिर मंथन के समय रगड लगने से विष्णु जी रोम समुन्द्र में गिर गये | फिर इन्हे समुन्द्र की लहरों के द्वारा उछाला गया और ये धरती पर आ कर दूर्वा घास का रूप ले लिए |
मंथन में जब धन्वन्तरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए तब देवताओ ने इस कलश को इस दूर्वा पर ही रखा था | इसी अमृत को छूने मात्र से दूर्वा अमर हो गयी |
इसी कारण यह देवताओ , मनुष्यों द्वारा वन्दनीय मानी जाने लगी |
दूर्वाष्टमी दूर्वा अष्टमी का व्रत और पूजा विधि
भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी को देवताओ ने गंध , पुष्प , धुप दीप , मिठाई , फल ,अक्षत , माला आदि से दूर्वा का पूजन किया | कहते है इस दिन दूर्वा का पूजन करने से वंश का कभी क्षय नही होता | दूर्वा के अंगो की तरह उसके कुल की वृधि होती है | दूर्वा की पूजा करने से सौभाग्य और नाना प्रकार के सुखो की प्राप्ति होती है |
दूर्वा पूजन में मुख्य मंत्र
त्वं दूर्वे अमृतनजन्मासी वन्दिता च सुरासुरैः |सौभाग्यं संतति कृत्वा सर्वकार्य करी भव ।।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्विस्तृतासि महीतले ।तथा ममापि संतानं देहि त्वमजरामरे ।।
मंत्र अर्थ :
हे दूर्वे! तुम अमृताजन्मा हो। देवता और असुरों के द्वारा. वन्दित हो।
हमें सौभाग्य और संतान प्राप्त करवाके सभी कार्यो को पूर्ण करवाओ |
जैसे आप धरती पर अपनी शाखा प्रशाखा के रूप में फैली हो वैसे ही हमें पुत्र पौत्रादी प्रदान करो |
और है दूर्वा घास . राक्षस को जिन्दा निगल जाने के बाद गणेश जी के पेट में उठे हुए दर्द को इसने अपने अमृत तुल्य गुण के कारण शांत कर दिया था |
,,दूर्वा क्यों मानी जाती है पवित्र
आइये अब जानते है दूर्वा की उत्पति की कहानी
दूर्वा इतनी पवित्र और पूजनीय इसलिए है क्योकि यह भगवान विष्णु के द्वारा ही उत्पन्न हुई है | भविष्य पुराण में बताया गया है की जब देवताओ और असुरो के बीच समुन्द्र मंथन किया गया तब क्षीर सागर में भगवान विष्णु ने मंदराचल पर्वत को अपने जांघ पर धारण दिया और फिर मंथन के समय रगड लगने से विष्णु जी रोम समुन्द्र में गिर गये | फिर इन्हे समुन्द्र की लहरों के द्वारा उछाला गया और ये धरती पर आ कर दूर्वा घास का रूप ले लिए |
मंथन में जब धन्वन्तरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए तब देवताओ ने इस कलश को इस दूर्वा पर ही रखा था | इसी अमृत को छूने मात्र से दूर्वा अमर हो गयी |
इसी कारण यह देवताओ , मनुष्यों द्वारा वन्दनीय मानी जाने लगी |
दूर्वाष्टमी दूर्वा अष्टमी का व्रत और पूजा विधि
भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी को देवताओ ने गंध , पुष्प , धुप दीप , मिठाई , फल ,अक्षत , माला आदि से दूर्वा का पूजन किया | कहते है इस दिन दूर्वा का पूजन करने से वंश का कभी क्षय नही होता | दूर्वा के अंगो की तरह उसके कुल की वृधि होती है | दूर्वा की पूजा करने से सौभाग्य और नाना प्रकार के सुखो की प्राप्ति होती है |
दूर्वा पूजन में मुख्य मंत्र
त्वं दूर्वे अमृतनजन्मासी वन्दिता च सुरासुरैः |सौभाग्यं संतति कृत्वा सर्वकार्य करी भव ।।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्विस्तृतासि महीतले ।तथा ममापि संतानं देहि त्वमजरामरे ।।
मंत्र अर्थ :
हे दूर्वे! तुम अमृताजन्मा हो। देवता और असुरों के द्वारा. वन्दित हो।
हमें सौभाग्य और संतान प्राप्त करवाके सभी कार्यो को पूर्ण करवाओ |
जैसे आप धरती पर अपनी शाखा प्रशाखा के रूप में फैली हो वैसे ही हमें पुत्र पौत्रादी प्रदान करो |
दूर्वा घास के स्वास्थ्य फायदे
1 इसमे एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबिल तत्व होते है जो प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है |
2 दूर्वा में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-सेप्टिक गुण होते है जो त्वचा सम्बन्धी रोगों को दूर करता है |
3 नागे पाँव सुबह के समय दूर्वा पर चलने से आँखों की रोशनी बढती है |
4 दूब के रस को हरा रक्त कहा जाता है, क्योंकि इसे पीने से एनीमिया की समस्या को ठीक किया जा सकता है।
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