Monday, 3 June 2013

अंगारकी चतुर्थी श्री गणेश अंगारकी चतुर्थी

श्री गणेश अंगारकी चतुर्थी...........अंगारकी गणेश चतुर्थी के विषय में गणेश पुराण में विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है, कि किस प्रकार गणेश जी द्वारा दिया गया वरदान कि मंगलवार के दिन चतुर्थी तिथि अंगारकी चतुर्थी के नाम प्रख्यात संपन्न होगा आज भी उसी प्रकार से स्थापित है. अंगारकी चतुर्थी का व्रत मंगल भगवान और गणेश भगवान दोनों का ही आशिर्वाद प्रदान करता है तथा किसी भी कार्य में कभी विघ्न नहीं आने देते.
मंगलवार के दिन चतुर्थी का संयोग अत्यन्त शुभ एवं सिद्धि प्रदान करने वाला होता है. भक्त को संकट, विघ्न तथा सभी प्रकार की बाधाएँ दूर करने के लिए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए. चतुर्थी को भगवान गणेश जी की पूजा का विशेष नियम बताया गया है. भगवान गणेश समस्त संकटों का हरण करने वाले होते हैं.
गणेश चतुर्थी के साथ अंगारकी का संबोधित होना इस बात को व्यक्त करता है कि यह चतुर्थी मंगलवार के दिन सम्पन्न होनी है. धर्म ग्रंथों में अंगारकि गणेश चतुर्थी के विषय में विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है जिसके अनुसार, पृथ्वी पुत्र मंगल देव जी ने भगवान गणेश को प्रसन्न करने हेतु बहुत कठोर तप किया. मंगल देव की तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान गणेश जी ने उन्हें दर्शन दिए.
और चतुर्थी तिथि का संयोग जब भी मंगलवार अर्थात अंगारक के साथ आएगा वह तिथि अंगारकी गणेश चतुर्थी के नाम से संबोधित होने का आशिर्वाद प्रदान किया. इसी कारण मंगलवार के दिन चतुर्थी तिथि होने पर यह चतुर्थी अंगारक कहलाती है. श्री गणेश जी की पूजा समस्त देव पूजित हो जाते हैं, यदि इस दिन ‘ ऊं गं गौं गणपतये नम:’ का जाप करता है, तो निश्चय ही व्यक्ति को समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है




बद्रीनाथ जी की जय

श्री बद्रीनाथ जी की जय,श्री बद्रीनाथ जी की जय,श्री बद्रीनाथ जी की जय,
पवन मन्द सुगंधशीतल हेम मंदिर शोभितम निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम शेष सुमिरन करत निशिदिन धरतध्यान महेश्वरम श्री वेद ब्रह्मा करद स्तुति श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम शक्ति गौरी गणेश शारद नारद मुनि उच्चारणम योग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम इन्द्र, चन्द्र कुबेर, धुनिकर, धूपदीप प्रकाशितम सिद्ध मुनिजन करत जै-जै श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम यक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गन्धर्व प्रकाशितम कैलाश में एक देव निरंजन शैल शिखर महेश्वरम राजा युधिष्ठर करत स्तुति श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम श्री बद्रीजी के पंचरत्न पढ़त पाप विनाशनम कौटि तीर्थ भवेत पुण्य प्राप्येत फलदायकम।

श्रीनाथजी की जय हो


श्रीनाथजी की जय हो, श्रीनाथजी की जय हो,श्रीनाथजी की जय हो,
मारा घटमां बिराजता श्रीनाथजी, यमुनाजी, महाप्रभुजी मारु मनडुं छे गोकुळ वनरावन मारा तनना आंगणियामां तुलसीनां वन मारा प्राण जीवन….मारा घटमां. मारा आतमना आंगणे श्रीमहाकृष्णजी मारी आंखो दीसे गिरिधारी रे धारी मारु तन मन गयुं छे जेने वारी रे वारी हे मारा श्याम मुरारि…..मारा घटमां.
हे मारा प्राण थकी मने वैष्णव व्हाला नित्य करता श्रीनाथजीने काला रे वाला में तो वल्लभ प्रभुजीनां कीधां छे दर्शन मारुं मोही लीधुं मन…..मारा घटमां.
ुं तो नित्य विठ्ठल वरनी सेवा रे करुं हुं तो आठे समा केरी झांखी रे करुं में तो चितडुं श्रीनाथजीने चरणे धर्युं जीवन सफळ कर्युं … मारा घटमां.
में तो पुष्टि रे मारग केरो संग रे साध्यो मने धोळ किर्तन केरो रंग रे लाग्यो में तो लालानी लाली केरो रंग रे मांग्यो हीरलो हाथ लाग्यो … मारा घटमां.
आवो जीवनमां ल्हावो फरी कदी ना मळे वारे वारे मानवदेह फरी न मळे फेरो लख रे चोर्यासीनो मारो रे फळे मने मोहन मळे … मारा घटमां...


सरस्वती ,,या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।


या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दितासा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5   1॥शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌। हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌ वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान्‌ बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2
मां शारदे! हंसासिनी!वागीश! वीणावादिनी!मुझको अगम स्वर-ज्ञान दो।।माँ सरस्वती! वरदान दो।।निष्काम हो मन कामना,मेरी सफल हो साधना,नव गति, नई लय तान दो।माँ सरस्वती! वरदान दो।।हो सत्य जीवन-सारथी,तेरी करूँ नित आरती,समृद्धि, सुख, सम्मान दो।माँ सरस्वती! वरदान दो।।मन, बुद्धि, हृदय पवित्र हो,मेरा महान चरित्र हो,विद्या, विनय, बल दान दो।माँ सरस्वती! वरदान दो।।सौ वर्ष तक जीते रहें,सुख-अमिय हम पीते रहें,निज चरण में सुस्थान दो।माँ सरस्वती! वरदान दो।।यह विश्व ही परिवार हो,सबके लिए सम प्यार हो,'आदेश' लक्ष्य महान दो।माँ सरस्वती! वरदान दो।।
!!Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557

शुभ रात्रि जग मे सुंदर हैं दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम

शुभ रात्रि जग मे सुंदर हैं दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम बोलो राम राम राम, बोलो शाम शाम श्याम माखन ब्रिज मे एक चुरावे, एक बेर भीलनी के खावे प्रेम् भावः से भरे अनोखे दोनों के है काम चाहे कृष्ण कहो या राम एक कंस पापी को मारे, एक दुष्ट रावन संहारे दोनों दिन के दुःख हरत है दोनों बल के धाम चाहे कृष्ण कहो या राम एक राधिका के संग राजे , एक जानकी संग विराजेचाहे सीता राम कहो या बोलो राधे श्याम

नवरात्रि व्रत,,, Navratri नवरात्र व्रत दुर्गासप्तमी एवं पुराणों में दुर्गा के नौ रूपों क्रमश:

 नवरात्रि  व्रत,,,  Navratri  नवरात्र व्रत
दुर्गासप्तमी एवं पुराणों में दुर्गा के नौ रूपों क्रमश: शैलपुत्री, ब्रम्ह्चारिणी, चंद्रघण्टा, कूश्माण्डी,स्कंदमाता,कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धदात्री का उल्लेख मिलता है। उमा, पार्वती, रम्भा, तोतला और त्रिपुरा उल्लेखनीय है। द्वादश गौरी के नाम और उनके आयुध निम्नानुसार है :-१. उमा :- अक्षसूत्र, पद्म, दर्पण, कमंडलु।२. पार्वती :- वाहन सिंह और दोनों पार्श्वों में अग्निकुण्ड और हाथों में अक्षसूत्र, शिव, गणेश और कमंडलु। ३. गौरी :- अक्षसूत्र, अभय मुद्रा, पद्म और कमण्डलु। ४. ललिता :- भाूल, अक्षसूत्र, वीणा तथा कमण्डलु। ५. श्रिया :- अक्षसूत्र, पद्म, अभय मुद्रा, वरद मुद्रा। ६. कृश्णा :- अक्षसूत्र, कमण्डलु, दो हाथ अंजलि मुद्रा में तथा चारों ओर पंचाग्निकुंड। ७. महे वरी :- पद्म और दर्पण। ८. रम्भा :- गजारूढ़, करों में कमण्डलु, अक्षमाला, वज्र और अंकुश। ९. सावित्री :- अक्षसूत्र, पुस्तक, पद्म और कमण्डलु। १०. त्रिशण्डा या श्रीखण्डा :- अक्षसूत्र, वज्र, भाक्ति और कमण्डलु। ११. तोतला :- अक्षसूत्र, दण्ड, खेटक,चामर। १२. त्रिपुरा :- पाश, अंकुश, अभयपुद्रा और वरदमुद्रा।

 DURGA MAA by VISHNU108

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