हिन्दू धर्म के सभी देवी देवताओं की और त्योहारों की जानकारी। भगवान के मंत्र स्तोत्र तथा सहस्त्र नामावली की जानकारी ।
Sunday, 28 June 2015
मधुराष्टकम्
मधुराष्टकम्
रचना: श्रीमद्वल्लभाचार्यविरचितं
अधरं मधुरं वदनं मधुरं
वचनं मधुरं चरितं मधुरं
वेणु-र्मधुरो रेणु-र्मधुरः
गीतं मधुरं पीतं मधुरं
करणं मधुरं तरणं मधुरं
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा
गोपी मधुरा लीला मधुरा
गोपा मधुरा गावो मधुरा
Saturday, 27 June 2015
परमा एकादशी अधिकमास या मलमास
परमा एकादशी ,, अथवा,,हरिवल्लभा अधिकमास या मलमास प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अधिक मास या मल मास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशी होती है। अधिक मास में दो एकादशी होती है जो परमा और पद्मिनी के नाम से जानी जाती है। परमा एकादशी का जो महात्मय है आइये पहले हम उसे देखते हैं। अधिक मास में कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है वह हरिवल्लभा अथवा परमा एकदशी के नाम से जानी जाती है ऐसा श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा व विधि भी बताई थी
काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। ब्रह्मण धर्मात्मा था और उसकी पत्नी पतिव्रता। यह परिवार स्वयं भूखा रह जाता परंतु अतिथियों की सेवा हृदय से करता। धनाभाव के कारण एक दिन ब्रह्मण ने ब्रह्मणी से कहा कि धनोपार्जन के लिए मुझे परदेश जाना चाहिए क्योंकि अर्थाभाव में परिवार चलाना अति कठिन है।
ब्रह्मण की पत्नी ने कहा कि मनुष्य जो कुछ पाता है वह अपने भाग्य से पाता है। हमें पूर्व जन्म के फल के कारण यह ग़रीबी मिली है अत: यहीं रहकर कर्म कीजिए जो प्रभु की इच्छा होगी वही होगा। ब्रह्मण को पत्नी की बात ठीक लगी और वह परदेश नहीं गया। एक दिन संयोग से कौण्डिल्य ऋषि उधर से गुजर रहे थे तो उस ब्रह्मण के घर पधारे। ऋषि को देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषिवर की खूब आवभगत की।
ऋषि उनकी सेवा भावना को देखकर काफी खुश हुए और ब्राह्मण एवं ब्राह्मणी द्वारा यह पूछे जाने पर की उनकी गरीबी और दीनता कैसे दूर हो सकती है, उन्होंने कहा मल मास में जो शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है वह परमा एकादशी के नाम से जानी जाती है, इस एकादशी का व्रत आप दोनों रखें। ऋषि ने कहा यह एकादशी धन वैभव देती है तथा पाप का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली है। किसी समय में धनाधिपति कुबेर ने इस व्रत का पालन किया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया।*ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,,,Gems For Everyone
समय आने पर सुमेधा नामक उस ब्राह्मण ने विधि पूर्वक इस एकादशी का व्रत रखा जिससे उनकी गरीबी का अंत हुआ और पृथ्वी पर काफी समय तक सुख भोगकर वे पति पत्नी श्री विष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गये।
इस एकादशी व्रत की विधि बड़ी ही कठिन है। इस व्रत में पांच दिनों तक निराहार रहने का व्रत लिया जाता है। व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल एवं फूल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पांच दिनों तक श्री हरि में मन लगाकर व्रत का पालन करना चाहिए। पांचवें दिन ब्रह्मण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए।
पद्मिनी (कमला) एकादशी,,अधिकमास
पद्मिनी (कमला) एकादशी,,अधिकमास में शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी (कमला) एकादशी कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
पद्मिनी एकादशी भगवान को अति प्रिय है। इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक को जाता है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति सभी प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्चर्या का फल प्राप्त कर लेता है। इस व्रत की कथा के अनुसार:
श्री कृष्ण कहते हैं त्रेता युग में एक परम पराक्रमी राजा कीतृवीर्य था। इस राजा की कई रानियां थी परतु किसी भी रानी से राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद दु:खी रहते थे। संतान प्राप्ति की कामना से तब राजा अपनी रानियो के साथ तपस्या करने चल पड़े। हजारों वर्ष तक तपस्या करते हुए राजा की सिर्फ हडि्यां ही शेष रह गयी परंतु उनकी तपस्या सफल न रही। रानी ने तब देवी अनुसूया से उपाय पूछा। देवी ने उन्हें मल मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा।
अनुसूया ने रानी को व्रत का विधान भी बताया। रानी ने तब देवी अनुसूया के बताये विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान दीजिए। भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो जो तीनों लोकों में आदरणीय हो और आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो। भगवान तथास्तु कह कर विदा हो गये। कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। कालान्तर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिसने रावण को भी बंदी बना लिया था।
भगवान श्री कृष्ण ने एकादशी का जो व्रत विधान बताया है वह इस प्रकार है। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजन करें। निर्जल व्रत रखकर पुराण का श्रवण अथवा पाठ करें। रात्रि में भी निर्जल व्रत रखें और भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। रात्रि में प्रति पहर विष्णु और शिव की पूजा करें। प्रत्येक प्रहर में भगवान को अलग अलग भेंट प्रस्तुत करें जैसे प्रथम प्रहर में नारियल, दूसरे प्रहर में बेल, तीसरे प्रहर में सीताफल और चौथे प्रहर में नारंगी और सुपारी निवेदित करें।*ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,,,Gems For Everyone
पद्मिनी एकादशी भगवान को अति प्रिय है। इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक को जाता है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति सभी प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्चर्या का फल प्राप्त कर लेता है। इस व्रत की कथा के अनुसार:
श्री कृष्ण कहते हैं त्रेता युग में एक परम पराक्रमी राजा कीतृवीर्य था। इस राजा की कई रानियां थी परतु किसी भी रानी से राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद दु:खी रहते थे। संतान प्राप्ति की कामना से तब राजा अपनी रानियो के साथ तपस्या करने चल पड़े। हजारों वर्ष तक तपस्या करते हुए राजा की सिर्फ हडि्यां ही शेष रह गयी परंतु उनकी तपस्या सफल न रही। रानी ने तब देवी अनुसूया से उपाय पूछा। देवी ने उन्हें मल मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा।
अनुसूया ने रानी को व्रत का विधान भी बताया। रानी ने तब देवी अनुसूया के बताये विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान दीजिए। भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो जो तीनों लोकों में आदरणीय हो और आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो। भगवान तथास्तु कह कर विदा हो गये। कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। कालान्तर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिसने रावण को भी बंदी बना लिया था।
भगवान श्री कृष्ण ने एकादशी का जो व्रत विधान बताया है वह इस प्रकार है। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजन करें। निर्जल व्रत रखकर पुराण का श्रवण अथवा पाठ करें। रात्रि में भी निर्जल व्रत रखें और भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। रात्रि में प्रति पहर विष्णु और शिव की पूजा करें। प्रत्येक प्रहर में भगवान को अलग अलग भेंट प्रस्तुत करें जैसे प्रथम प्रहर में नारियल, दूसरे प्रहर में बेल, तीसरे प्रहर में सीताफल और चौथे प्रहर में नारंगी और सुपारी निवेदित करें।*ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,,,Gems For Everyone
Tuesday, 23 June 2015
रामाष्टकं । Raama AshTakam । अथ रामाष्टकम् ।।
रामाष्टकं ।। अथ रामाष्टकम् ।।
सियावर रामचंद्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय
सुग्रीवमित्रं परमं पवित्रं सीताकलत्रं नवमेघगात्रम् ।
कारुण्य पात्रं शतपत्रनेत्रं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
संसारसारं निगमं प्रचारं धर्मावतारं हत भूमि भारम् ।
सदा निर्विकारं सुख सिन्धुसारं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
लक्ष्मी विलासं जगतां निवासं भूदेव वासं सुख सिन्धु हासम् ।
लङ्का विनाशं भवनं प्रकाशं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
मंदारमालं वचने रसालं गुणयं विशलं हत सप्ततालम् ।
क्रव्यादकालं सुरलोकपालं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
वेदांत ज्ञानं सकल सतानं हंतारमानं त्रिदशं प्रधानम्।
गजेन्द्रपालं विगता विशालं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
खेलाऽतिभीतं स्वजने पुनीतं स्यामो प्रगीतं वचने अहीतम् ।
रागेनगीतं वचने अहीतं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
लीलाशरीरं रणरङ्ग धीरं विश्वै कवीरं रघुवंशधारम् ।
गम्भीरनादं जितसर्ववादं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
श्यामाभिरामं नयनाभिरामं गुणाभिरामं वचनाभिरामं ।
विश्वप्रणामं कतभक्तिकामं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
।। इति रामाष्टकम् सम्पूर्णम् ।।
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
Raama AshTakam ।। ath Raama AshTakam ।।
Sugreeva Mithram Paramam Pavithram
Seethaa Kalathram Nava Megha Gaathram ।
Kaarunya Paathram Satha Pathra Nethram
Shree Raama Chandhram Sathatham Namaami ।।
Sansaara Saaram Nigama Prachaaram
Dharmaava Thaaram Hrutha Bhoomi Bhaaram ।
Sadhaa Nirvikaaram Sukha Sindhu Saaram
Shree Raama Chandhram Sathatham Namaami ।।
Lakshmee Vilaasam Jagathaam Nivaasam
Bhoodheva Vaasam Saradhindhu Haasam ।
Lankaa Vinaasam Bhuvana Prakaasam
Shree Raama Chandhram Sathatham Namaami ।।
Mandhaara Maalam Vachane Rasaalam
Gunair Visaalam Hrutha Saptha Saalam ।
Kravyaadha Kaalam Sura Loka Paalam
Shree Raama Chandhram Sathatham Namaami ।।
Syaamaabhi Raamam Nayanaabhi Raamam
Gunaabhi Raamam Vachanaabhi Raamam ।
Viswa Pranaamam Krutha Bhaktha Kaamam
Shree Raama Chandhram Sathatham Namaami ।।
Vedhaantha Vedhyam Sakalaischa Maanyam
Hruthaari Maanam Krathushu Pradhaanam ।
Gajendhra Paalam Vigathaabhi Maanam
Shree Raama Chandhram Sathatham Namaami ।।
Leelaa Sareeram Rana Ranga Dheeram
Vaaswaika Veeram Raghu Vamsa Dheeram ।
Gambheera Naadham Jitha Sarva Vaadham
Shree Raama Chandhram Sathatham Namaami ।।
Aghethi Bheetham Sujane Vineetham
Thamo Viheenam Manu Vamsa Dheepam ।
Thaaraa Prageetham Vyasane Cha Mithram
Shree Raama Chandhram Sathatham Namaami ।।
।। iti raama ashTakam sampoorNam ।।
हनुमान वडवानल स्तोत्रम्
हनुमान वडवानल स्तोत्रम्
विनियोगः- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीहनुमान् वडवानल देवता,
ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे,
मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं
समस्त-पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये ।
ध्यानः-
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ।।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम
सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार
लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिरः
कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत
श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार
सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद
सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय
ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन
भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर,
संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान्
छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां
ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं
ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी
डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं
भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय
ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन
परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु
शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय
नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान्
यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय
पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय
सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ।
इति श्री हनुमान वडवानल स्तोत्रम् सम्पूर्णम्।
हनुमत्स्त्रोतं,,,विभषणकृतं
हनुमत्स्त्रोतं,,,विभषणकृतं
नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे ।
नम: श्रीरामभक्ताय श्यामास्याय च ते नम: ॥
नमो वानरवीराय सुग्रीवसख्यकारिणे ।
लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे ॥
सीताशोकविनाशाय राममुद्राधराय च ।
रावणान्तकुलच्छेदकारिणे ते नमो नम: ॥
मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नम: ।
अशोकवनविध्वंसकारिणे भयहारिणे ॥
वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिने ।
वनपालशिरश्छेदलङ्काप्रासादभ ञ्जिने ॥
ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलाड्गूलधारिणे ।
सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नम: ॥
अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्मपाशनिवारिणे ।
लक्ष्मणाङ्गमहाशक्तिघातक्षत विनाशिने ॥
रक्षोध्नाय रिपुध्नाय भूतध्नाय च ते नम: ।
ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नम: ॥
परसैन्यबलध्नाय शस्त्रास्त्रध्नाय ते नम: ।
विषध्नाय द्विषध्नाय ज्वरध्नाय च ते नम: ॥
महाभयरिपुध्नाय भक्तत्राणैककारिणे ।
परप्रेरितमन्त्राणां यन्त्राणां स्तम्भकारिणे ॥
पय:पाषाणतरणकारणाय नमो नम: ।
बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे ॥
नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च ।
रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे ॥
प्रतिग्रामस्थितायाथ रक्षोभूतवधार्थिने ।
करालशैलशस्त्राय द्रुमशस्त्राय ते नम: ॥
बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्तिधराय च ।
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नम: ॥
कौपीनवाससे तुभ्यं रामभक्तिरताय च ।
दक्षिणाशाभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने ॥
कृत्याक्षतव्यथाध्नाय सर्वक्लेशहराय च ।
स्वाम्याज्ञापार्थसंग्रामसं ख्ये संजयधारिणे ॥
भक्तान्तदिव्यवादेषु संग्रामे जयदायिने ।
किल्किलाबुबुकोच्चारघोरशब्द कराय च ॥
सर्पाग्निव्याधिसंस्तम्भकार िणे वनचारिणे ।
सदा वनफलाहारसंतृप्ताय विशेषत: ॥
महार्णवशिलाबद्धसेतुबन्धाय ते नम: ।
वादे विवादे संग्राम भये घोरे महावने ॥
सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्य: स्तोत्रपाठद् भयं न हि ।
दिव्ये भूतभये व्याधौ विषे स्थावरजङ्गमे ॥
राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च ।
जले सर्वे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे ॥
पठेत् स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्य: सर्वतो नर: ।
तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तवपाठत: ॥
सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिदं स्तवम् ।
सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥
विभषणकृतं स्तोत्रं ताक्ष्र्येण समुदीरितम् ।
ये पठिष्यन्ति भक्त्या वै सिद्धयस्तत्करे स्थिता: ॥
इति श्रीसुदर्शनसंहितायां विभीषणगरुडसंवादे विभषणकृतं हनुमत्स्त्रोतं सम्पूर्णम्।
नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे ।
नम: श्रीरामभक्ताय श्यामास्याय च ते नम: ॥
नमो वानरवीराय सुग्रीवसख्यकारिणे ।
लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे ॥
सीताशोकविनाशाय राममुद्राधराय च ।
रावणान्तकुलच्छेदकारिणे ते नमो नम: ॥
मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नम: ।
अशोकवनविध्वंसकारिणे भयहारिणे ॥
वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिने ।
वनपालशिरश्छेदलङ्काप्रासादभ
ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलाड्गूलधारिणे ।
सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नम: ॥
अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्मपाशनिवारिणे ।
लक्ष्मणाङ्गमहाशक्तिघातक्षत
रक्षोध्नाय रिपुध्नाय भूतध्नाय च ते नम: ।
ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नम: ॥
परसैन्यबलध्नाय शस्त्रास्त्रध्नाय ते नम: ।
विषध्नाय द्विषध्नाय ज्वरध्नाय च ते नम: ॥
महाभयरिपुध्नाय भक्तत्राणैककारिणे ।
परप्रेरितमन्त्राणां यन्त्राणां स्तम्भकारिणे ॥
पय:पाषाणतरणकारणाय नमो नम: ।
बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे ॥
नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च ।
रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे ॥
प्रतिग्रामस्थितायाथ रक्षोभूतवधार्थिने ।
करालशैलशस्त्राय द्रुमशस्त्राय ते नम: ॥
बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्तिधराय च ।
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नम: ॥
कौपीनवाससे तुभ्यं रामभक्तिरताय च ।
दक्षिणाशाभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने ॥
कृत्याक्षतव्यथाध्नाय सर्वक्लेशहराय च ।
स्वाम्याज्ञापार्थसंग्रामसं
भक्तान्तदिव्यवादेषु संग्रामे जयदायिने ।
किल्किलाबुबुकोच्चारघोरशब्द
सर्पाग्निव्याधिसंस्तम्भकार
सदा वनफलाहारसंतृप्ताय विशेषत: ॥
महार्णवशिलाबद्धसेतुबन्धाय ते नम: ।
वादे विवादे संग्राम भये घोरे महावने ॥
सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्य: स्तोत्रपाठद् भयं न हि ।
दिव्ये भूतभये व्याधौ विषे स्थावरजङ्गमे ॥
राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च ।
जले सर्वे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे ॥
पठेत् स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्य: सर्वतो नर: ।
तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तवपाठत: ॥
सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिदं स्तवम् ।
सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥
विभषणकृतं स्तोत्रं ताक्ष्र्येण समुदीरितम् ।
ये पठिष्यन्ति भक्त्या वै सिद्धयस्तत्करे स्थिता: ॥
इति श्रीसुदर्शनसंहितायां विभीषणगरुडसंवादे विभषणकृतं हनुमत्स्त्रोतं सम्पूर्णम्।
Sunday, 14 June 2015
सरस्वती स्त्रोतम
सरस्वती स्त्रोतम
या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युत शङ्करप्रभृतिभिर्देवैस्सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाड्यापहा ॥ १ ॥
दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिनिभै रक्षमालान्दधाना
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपिच शुकं पुस्तकं चापरेण ।
भासा कुन्देन्दुशङ्खस्फटिकमणिनिभा भासमानाज़्समाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥ २ ॥
सुरासुरैस्सेवितपादपङ्कजा करे विराजत्कमनीयपुस्तका ।
विरिञ्चिपत्नी कमलासनस्थिता सरस्वती नृत्यतु वाचि मे सदा ॥ ३ ॥
सरस्वती सरसिजकेसरप्रभा तपस्विनी सितकमलासनप्रिया ।
घनस्तनी कमलविलोललोचना मनस्विनी भवतु वरप्रसादिनी ॥ ४ ॥
सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥ ५ ॥
सरस्वति नमस्तुभ्यं सर्वदेवि नमो नमः ।
शान्तरूपे शशिधरे सर्वयोगे नमो नमः ॥ ६ ॥
नित्यानन्दे निराधारे निष्कलायै नमो नमः ।
विद्याधरे विशालाक्षि शुद्धज्ञाने नमो नमः ॥ ७ ॥
शुद्धस्फटिकरूपायै सूक्ष्मरूपे नमो नमः ।
शब्दब्रह्मि चतुर्हस्ते सर्वसिद्ध्यै नमो नमः ॥ ८ ॥
मुक्तालङ्कृत सर्वाङ्ग्यै मूलाधारे नमो नमः ।
मूलमन्त्रस्वरूपायै मूलशक्त्यै नमो नमः ॥ ९ ॥
मनोन्मनि महाभोगे वागीश्वरि नमो नमः ।
वाग्म्यै वरदहस्तायै वरदायै नमो नमः ॥ १० ॥
वेदायै वेदरूपायै वेदान्तायै नमो नमः ।
गुणदोषविवर्जिन्यै गुणदीप्त्यै नमो नमः ॥ ११ ॥
सर्वज्ञाने सदानन्दे सर्वरूपे नमो नमः ।
सम्पन्नायै कुमार्यै च सर्वज्ञे ते नमो नमः ॥ १२ ॥
योगानार्य उमादेव्यै योगानन्दे नमो नमः ।
दिव्यज्ञान त्रिनेत्रायै दिव्यमूर्त्यै नमो नमः ॥ १३ ॥
अर्धचन्द्रजटाधारि चन्द्रबिम्बे नमो नमः ।
चन्द्रादित्यजटाधारि चन्द्रबिम्बे नमो नमः ॥ १४ ॥
अणुरूपे महारूपे विश्वरूपे नमो नमः ।
अणिमाद्यष्टसिद्धायै आनन्दायै नमो नमः ॥ १५ ॥
ज्ञान विज्ञान रूपायै ज्ञानमूर्ते नमो नमः ।
नानाशास्त्र स्वरूपायै नानारूपे नमो नमः ॥ १६ ॥
पद्मजा पद्मवंशा च पद्मरूपे नमो नमः ।
परमेष्ठ्यै परामूर्त्यै नमस्ते पापनाशिनी ॥ १७ ॥
महादेव्यै महाकाल्यै महालक्ष्म्यै नमो नमः ।
ब्रह्मविष्णुशिवायै च ब्रह्मनार्यै नमो नमः ॥ १८ ॥
कमलाकरपुष्पा च कामरूपे नमो नमः ।
कपालिकर्मदीप्तायै कर्मदायै नमो नमः ॥ १९ ॥
सायं प्रातः पठेन्नित्यं षण्मासात्सिद्धिरुच्यते ।
चोरव्याघ्रभयं नास्ति पठतां शृण्वतामपि ॥ २० ॥
इत्थं सरस्वती स्तोत्रमगस्त्यमुनि वाचकम् ।
सर्वसिद्धिकरं नॄणां सर्वपापप्रणाशनम् ॥ २१ ॥
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