Thursday, 11 June 2015

अधिकमास पुरुषोत्तम मास (मलमास)

अधिकमास ,,पुरुषोत्तम मास,, (मलमास) पड़ने के कारण लगभग सभी व्रत और त्योहार आम सालों की अपेक्षा कुछ जल्दी पड़ेंगे. 2015 में अधिकमास के कारण दो आषाढ़ होंगे. नए वर्ष के शुरू के छह माह में त्योहार गत वर्ष की अपेक्षा दस दिन पहले और बाद के छह माह में देरी से होंगे. ज्योतिषीय गणित के मुताबिक 16 दिसंबर को सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही मलमास शुरू हो गया है.
अधिकमास क्या है 
सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति होना कहते हैं. सौर मास और राशियों दोनों की संख्या 12 होती है. जब दो पक्षों में संक्रांति नहीं होती, तब अधिकमास होता है. आमतौर पर यह स्थिति 32 माह और 16 दिन में एक बार यानी हर तीसरे वर्ष में बनती है. ऐसा सूर्य और पृथ्वी की गति में होने वाले परिवर्तन से तिथियों का समय घटने-बढऩे के कारण होता है.
नए वर्ष में आषाढ़ 3 जून को शुरू होकर 30 जुलाई तक रहेगा. इस अवधि में 17 जून से 16 जुलाई तक की अवधि को अधिकमास माना जाएगा. मौजूदा वर्ष की तुलना में पर्वों की तारीख हर तीन साल में घट-बढ़ गईं हैं. अब साल 2015 में आने वाले त्योहार 20 दिन बाद तक 10 दिन पहले आएंगे. ये पर्व वर्ष 2015 में अधिकमास के कारण बदल रहे हैं. त्योहारों की तिथियों का गणित, आषाढ़ के दो महीने पहले से आने के कारण हुआ है

पुरुषोत्तम मास तीन साल में एक बार आता है। इसे स्वयं भगवान ने अपने नाम से जोड़ा था। यह मास धर्म और पुण्य कार्य करने के लिए सर्वोत्तम होता है क्योंकि इस माह में पूजन-पाठ करने से अधिक पुण्य मिलता है। इस माह में श्राद्ध, स्नान और दान से कल्याण होता

में किए विधि-विधान के साथ जाने वाले धर्म-कर्म से करोड़ गुना फल मिलता है। पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए इस मास में पुण्य कर्म करना चाहिए। 

इस संसार में मनुष्य माया से मुक्ति पाने के लिए जीवन भर भटकता रहता है पर उसे मुक्ति नहीं मिलती। जिस क्षण श्रीमद्भागवत व भगवान श्रीकृष्ण, भगवान विष्‍णु के प्रति उसके मन में भाव जागता है, उसी क्षण माया से मुक्ति मिल जाती है। भगवान की भक्ति में लीन होकर प्राणी पापों से मुक्ति पाकर अपना लोक और परलोक दोनों सुधार लेता है। 
पुरुषोत्तम मास में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और गणपति अथर्वशीर्ष मनुष्य को पुण्य की ओर ले जाते हैं। भागवत कथा व पुरुषोत्तम मास का संयोग भी अपने आप में बहुत दुर्लभ है। कहते हैं कि स्वर्ग में सब कुछ मिल सकता है, पर भागवत कथा नहीं। भगवान मिल जाएंगे, लेकिन भगवान की कथा नहीं। अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु ने मानव के पुण्य के लिए ही बनाया है। 

पुराणों में उल्लेख है कि जब हिरण्य कश्यप को वरदान मिला कि वह साल के बारह माह में कभी न मरे तो भगवान ने मलमास की रचना की। जिसके बाद ही नृसिंह अवतार लेकर भगवान ने उसका वध किया। इस माह में भगवान विष्णु के नाम का जाप करना ही हितकर होता है। इस जाप से ही पापों से मुक्ति मिलती है।
अधिक मास कृष्ण पक्ष परमा एकादशी

अधिक मास या मल मास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशी होती है। अधिक मास में दो एकादशी होती है जो परमा और पद्मिनी के नाम से जानी जाती है। अधिक मास में कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है वह हरिवल्लभा अथवा परमा एकदशी के नाम से जानी जाती है ऐसा श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है । भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा व विधि भी बताई थी।

 काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। ब्रह्मण धर्मात्मा था और उसकी पत्नी पतिव्रता। यह परिवार स्वयं भूखा रह जाता परंतु अतिथियों की सेवा हृदय से करता। धनाभाव के कारण एक दिन ब्रह्मण ने ब्रह्मणी से कहा कि धनोपार्जन के लिए मुझे परदेश जाना चाहिए क्योंकि अर्थाभाव में परिवार चलाना अति कठिन है।

ब्रह्मण की पत्नी ने कहा कि मनुष्य जो कुछ पाता है वह अपने भाग्य से पाता है। हमें पूर्व जन्म के फल के कारण यह ग़रीबी मिली है अत: यहीं रहकर कर्म कीजिए जो प्रभु की इच्छा होगी वही होगा। ब्रह्मण को पत्नी की बात ठीक लगी और वह परदेश नहीं गया। एक दिन संयोग से कौण्डिल्य ऋषि उधर से गुजर रहे थे तो उस ब्रह्मण के घर पधारे। ऋषि को देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषिवर की खूब आवभगत की।

ऋषि उनकी सेवा भावना को देखकर काफी खुश हुए और ब्राह्मण एवं ब्राह्मणी द्वारा यह पूछे जाने पर की उनकी गरीबी और दीनता कैसे दूर हो सकती है, उन्होंने कहा मल मास में जो शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है वह परमा एकादशी के नाम से जानी जाती है, इस एकादशी का व्रत आप दोनों रखें। ऋषि ने कहा यह एकादशी धन वैभव देती है तथा पाप का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली है । किसी समय में धनाधिपति कुबेर ने इस व्रत का पालन किया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया।

समय आने पर सुमेधा नामक उस ब्राह्मण ने विधि पूर्वक इस एकादशी का व्रत रखा जिससे उनकी गरीबी का अंत हुआ और पृथ्वी पर काफी समय तक सुख भोगकर वे पति पत्नी श्री विष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गये।

इस एकादशी व्रत की विधि बड़ी ही कठिन है। इस व्रत में पांच दिनों तक निराहार रहने का व्रत लिया जाता है। व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल एवं फूल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पांच दिनों तक श्री हरि में मन लगाकर व्रत का पालन करना चाहिए। पांचवें दिन ब्रह्मण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए।  

 


Latest Blog

शीतला माता की पूजा और कहानी

 शीतला माता की पूजा और कहानी   होली के बाद शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इसे बसौड़ा पर्व भी कहा जाता है  इस दिन माता श...