अधिकमास ,,पुरुषोत्तम मास,, (मलमास) पड़ने के कारण लगभग सभी व्रत और त्योहार आम सालों की अपेक्षा कुछ जल्दी पड़ेंगे. 2015 में अधिकमास के कारण दो आषाढ़ होंगे. नए वर्ष के शुरू के छह माह में त्योहार गत वर्ष की अपेक्षा दस दिन पहले और बाद के छह माह में देरी से होंगे. ज्योतिषीय गणित के मुताबिक 16 दिसंबर को सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही मलमास शुरू हो गया है.
अधिकमास क्या है
सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति होना कहते हैं. सौर मास और राशियों दोनों की संख्या 12 होती है. जब दो पक्षों में संक्रांति नहीं होती, तब अधिकमास होता है. आमतौर पर यह स्थिति 32 माह और 16 दिन में एक बार यानी हर तीसरे वर्ष में बनती है. ऐसा सूर्य और पृथ्वी की गति में होने वाले परिवर्तन से तिथियों का समय घटने-बढऩे के कारण होता है.
नए वर्ष में आषाढ़ 3 जून को शुरू होकर 30 जुलाई तक रहेगा. इस अवधि में 17 जून से 16 जुलाई तक की अवधि को अधिकमास माना जाएगा. मौजूदा वर्ष की तुलना में पर्वों की तारीख हर तीन साल में घट-बढ़ गईं हैं. अब साल 2015 में आने वाले त्योहार 20 दिन बाद तक 10 दिन पहले आएंगे. ये पर्व वर्ष 2015 में अधिकमास के कारण बदल रहे हैं. त्योहारों की तिथियों का गणित, आषाढ़ के दो महीने पहले से आने के कारण हुआ है
पुरुषोत्तम मास तीन साल में एक बार आता है। इसे स्वयं भगवान ने अपने नाम से जोड़ा था। यह मास धर्म और पुण्य कार्य करने के लिए सर्वोत्तम होता है क्योंकि इस माह में पूजन-पाठ करने से अधिक पुण्य मिलता है। इस माह में श्राद्ध, स्नान और दान से कल्याण होता
अधिक मास में किए विधि-विधान के साथ जाने वाले धर्म-कर्म से करोड़ गुना फल मिलता है। पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए इस मास में पुण्य कर्म करना चाहिए।
इस संसार में मनुष्य माया से मुक्ति पाने के लिए जीवन भर भटकता रहता है पर उसे मुक्ति नहीं मिलती। जिस क्षण श्रीमद्भागवत व भगवान श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु के प्रति उसके मन में भाव जागता है, उसी क्षण माया से मुक्ति मिल जाती है। भगवान की भक्ति में लीन होकर प्राणी पापों से मुक्ति पाकर अपना लोक और परलोक दोनों सुधार लेता है।
अधिक मास में किए विधि-विधान के साथ जाने वाले धर्म-कर्म से करोड़ गुना फल मिलता है। पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए इस मास में पुण्य कर्म करना चाहिए।
इस संसार में मनुष्य माया से मुक्ति पाने के लिए जीवन भर भटकता रहता है पर उसे मुक्ति नहीं मिलती। जिस क्षण श्रीमद्भागवत व भगवान श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु के प्रति उसके मन में भाव जागता है, उसी क्षण माया से मुक्ति मिल जाती है। भगवान की भक्ति में लीन होकर प्राणी पापों से मुक्ति पाकर अपना लोक और परलोक दोनों सुधार लेता है।
पुरुषोत्तम मास में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और गणपति अथर्वशीर्ष मनुष्य को पुण्य की ओर ले जाते हैं। भागवत कथा व पुरुषोत्तम मास का संयोग भी अपने आप में बहुत दुर्लभ है। कहते हैं कि स्वर्ग में सब कुछ मिल सकता है, पर भागवत कथा नहीं। भगवान मिल जाएंगे, लेकिन भगवान की कथा नहीं। अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु ने मानव के पुण्य के लिए ही बनाया है।
पुराणों में उल्लेख है कि जब हिरण्य कश्यप को वरदान मिला कि वह साल के बारह माह में कभी न मरे तो भगवान ने मलमास की रचना की। जिसके बाद ही नृसिंह अवतार लेकर भगवान ने उसका वध किया। इस माह में भगवान विष्णु के नाम का जाप करना ही हितकर होता है। इस जाप से ही पापों से मुक्ति मिलती है।
पुराणों में उल्लेख है कि जब हिरण्य कश्यप को वरदान मिला कि वह साल के बारह माह में कभी न मरे तो भगवान ने मलमास की रचना की। जिसके बाद ही नृसिंह अवतार लेकर भगवान ने उसका वध किया। इस माह में भगवान विष्णु के नाम का जाप करना ही हितकर होता है। इस जाप से ही पापों से मुक्ति मिलती है।
अधिक मास कृष्ण पक्ष परमा एकादशी