Tuesday, 27 February 2018

होलिका दहन मुहूर्त ,18,17 से 20,44 ,,अवधि ,2 घण्टे 26 मिनट्स




होलिका दहन मुहूर्त ,18,17 से 20,44 ,,अवधि ,2 घण्टे 26 मिनट्स
भद्रा पूँछ ,,09,37 से ,,10,38,,,भद्रा मुख ,10,38 से,12,19
।https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ ,9,मार्च,20 20 को 03,03 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त ,9 मार्च/20 20 को .23,16 बजे
होलिका दहन, होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है।
होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए
1. पहला, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।
2. दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।
होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत होलिका जलकर भस्म हो गयी और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
होलिका दहन का इतिहास
होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी
होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है. इस पूजा को करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. पूजा करने के लिये निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए.
एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है.

इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है.

होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए. गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है. इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है.

कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है. फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है. रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है. गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है. पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है.

सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है. इसमें अग्नि प्रज्जवलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है. सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है. अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है, तथा महिलाएं गीत गाती है. तथा बडों का आशिर्वाद लिया जाता है.
सेंक कर लाये गये धान्यों को खाने से निरोगी रहने की मान्यता है.
ऎसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है. तथा इस राख का शरीर पर लेपन भी किया जाता है.
राख का लेपन करते समय निम्न मंत्र का जाप करना कल्याणकारी रहता है
वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।
अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥
होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.
अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌
!!Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557

Monday, 26 February 2018

गुड़ी पड़वा आप को नव विक्रम सम्वत्सर २०७८

गुड़ी पड़वा आप को नव विक्रम सम्वत्सर २०७८ और चैत्र नवरात्रि एवं गुड़ी पाडवा के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई और
गुड़ी पाडवा चैत्र शुद्ध प्रतिपदा वर्ष के साढ़े तीन शुभ मुहूर्तों में से एक माना जाता है। सोने की लंका विजय के पश्चात भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का दिन भी चैत्र शुद्ध प्रतिपदा ही था। तब अयोध्यावासियों ने घर-घर गुढ़ी तोरण लगाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की थी। तभी से इस परंपरा का पालन किया जाने लगा।
इस त्योहार में मोक्षद्वार का गुरुमंत्र छिपा है। तनकर खड़ी बांस की गुड़ी ' परमार्थ में पूर्ण शरणागति का संदेश देती है, वहीं पाड़वा अर्थात साष्टांग नमस्कार (सिर, हाथ, पैर, हृदय, आंख, जांघ, वचन और मन) आठ अंगों से भूमि पर लेटकर किए जाने वाले प्रणाम का संकेत है। इस त्योहार में आदर्श जीवन का प्रतिबिंब नजर आता है कि विनय से ही विद्या प्राप्त की जा सकती है।
'गुढ़ी' की लाठी को तेल हल्दी लगाकर सजाते हैं। उस पर चांदी या तांबे का लोटा उल्टा डाल रेशमी वस्त्र पहना फूलों और शक्कर के हार और नीम की टहनी बांध दरवाजे पर खड़ी करते हैं।
तनी हुई रीढ़ से इज्जत के साथ गर्दन हमेशा ऊंची रख जीना यही तो 'गुढ़ी' हमें सिखाती है। इस प्रकल्प में ईश्वरीय अनुष्ठान भी जरूरी है यह सीख भी कहीं न कहीं छिपी हुई है। बांस की लाठी में रीढ़ की समानता नजर आती है तो चांदी का कलश मस्तक का प्रतीक है।
यह कलश ब्रह्मांड की विद्युत तरंगों को खींच कलशरूपी पिरामिड से नीचे की दिशा में शक्ति को फैलाता है। उत्तम चैत्र मास और ऋतु वसंत का यह दिन जब सूर्य किरणों में नई चमक होती है तो तनी हुई रीढ़ पर अधिष्ठित कलश सूर्य किरणों को एकत्र कर उन्हें परावर्तित भी करता है।
गुढ़ी का संदेश यही है कि हम सूर्य से शक्ति पाएं और समाज के शुभकर्मों में लगाएं। स्नान, सुगंधित वस्तुओं, षडरस (मीठा, नमकीन, कडुवा, चरपरा, कसैला और खट्टा इन छह रसों), रेशमी वस्त्रालंकार, पकवान इन तमाम वस्तुओं का उपभोग इस अवसर पर जरूरी होता है।
ऋतु के संधिकाल में तृष्णा हरण हेतु शक्कर और अमृत गुणों से भरपूर रोगरोधक नीम और गुड़ धनिए की योजना हमारे बुजुर्गों के आयुर्वेद समन्वय के नजरिए को दर्शाती है। ब्रह्मपुराण, अथर्ववेद और शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी।
महाभारत में युधिष्ठिर का राज्यारोहण इसी दिन माना जाता है। इस दिन प्रात: सूर्य को अर्घ दिया जाता है। गुड़ी ब्रह्मध्वज के प्रतीक के तौर पर लगाई जाती है। महाराष्ट्र में छत्रपत्रि शिवाजी की विजय ध्वजा के प्रतीक के तौर पर इसे लगाया जाता है।
चैत्र ही ऐसा महीना है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पुष्पित होती हैं। प्रकृति में जीवन का नया संचार होता है। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस भी माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है इसलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।
इस दिन को आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में 'उगादि' और महाराष्ट्र में 'गुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है। आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में आम इसी दिन से खाया जाता है। आज भी हमारे यहां शिक्षा, राजकीय कोष या किसी भी शुभ कार्य के लिए इस अवसर को चुना जाता है और उसके पीछे मान्यता यही है कि इस अवसर पर मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन सभी आलस्य त्याग सचेतन हो जाते हैं।ज्ञानचंद बूंदीवाल
वंसतोत्सव का भी यही आधार है। जब चहुंओर नवीनता का भाव रहता है तो हम भी नयावर्ष क्यों न मनाएं। इसी कारण यहां से नववर्ष की शुरुआत मानी है।॥.Astrologer Gyanchand Bundiwal। nagpur . 0 8275555557

चैत्र नवरात्रि घटस्थापना मंगलवार, अप्रैल 13, 2021


चैत्र नवरात्रि घटस्थापना मंगलवार, अप्रैल 13, 2021 को
पहला नवरात्र, मां शैलपुत्री की पूजा, गुड़ी पड़वा, नवरात्रि आरंभ, घटस्थापना, हिंदू नव वर्ष की शुरुआत। 
घटस्थापना मुहूर्त - 05:56 से 10:08 अवधि - 04 घण्टे 12 मिनट्स
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - 11:49 से 12:39 अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर है।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 12, 2021 को 08:00 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त - अप्रैल 13, 2021 को 10:16 बजे
नवरात्रि का पहला दिन 13 अप्रैल 2021  शैलपुत्री
नवरात्रि का दूसरा दिन 14 अप्रैल 2021 ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि का तीसरा दिन 15 अप्रैल 2021 चंद्रघंटा
नवरात्रि का चौथा दिन 16 अप्रैल 2021 कूष्मांडा
नवरात्रि का पांचवां दिन 17 अप्रैल 2021स्कंदमाता
नवरात्रि का छठा दिन 18 अप्रैल 2021 कात्यायनी
नवरात्रि का सातवां दिन 19 अप्रैल 2021 कालरात्रि
नवरात्रि का आठवां दिन 20 अप्रैल 2021 महागौरी
नवरात्रि का नौवां दिन  21 अप्रैल 2021 सिद्धिदात्री
नवरात्रि का दसवां दिन 22 अप्रैल 2021 व्रत पारण
नवरात्र का प्रयोग प्रारम्भ करनेके पहले सुगन्धयुक्त तैलके उद्वर्तनादिसे मङ्गलस्त्रान करके नित्यकर्म करे और स्थिर शान्तिके पवित्र स्थानमें शुभ मृत्तिकाकी वेदी बनाये । उसमें जौ और गेहूँ – इन दोनोंको मिलाकर बोये । वहीं सोने, चाँदी, ताँबे या मिट्टीके कलशको यथाविधि स्थापन करके गणेशादिका पूजन और पुण्याहवाचन करे और पीछे देवी ( या देव ) के समीप शुभासनपर पूर्व या उत्तर मुख बैठकर “मम महामायाभगवती वा मायाधिपति भगवत प्रीतये आयुर्बलवित्तारोयसमादरादिप्राप्तये वा नवरात्रव्रतमहं करिष्ये । यह संकल्प करके मण्डलके मध्यमें रखे हु‌ए कलशपर सोने, चाँदी, धातु, पाषाण, मृत्तिका या चित्रमय मूर्ति विराजमान करे और उसका आवाहन आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्त्रान, वस्त्र, गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, नीराजन, पुष्पाञ्जलि, नमस्कार और प्रार्थना आदि उपचारोंसे पूजन करे । स्त्री हो या पुरुष, सबको नवरात्र करना चाहिये । यदि कारणवश स्वयं न कर सकें तो प्रतिनिधि ( पति पत्नी, ज्येष्ठ पुत्र, सहोदर या ब्राह्मण ) द्वारा करायें । नवरात्र नौ रात्रि पूर्ण होनेसे पूर्ण होता है । इसलिये यदि इतना समय न मिले या सामर्थ्य न हो तो सात, पाँच, तीन या एक दिन व्रत करे और व्रतमें भी उपवास, अयाचित, नक्त या एकभुक्त जो बन सके यथासामर्थ्य वही कर ले यदि सामर्थ्य हो तो नौ दिनतक नौ ( और यदि सामर्थ्य न हो तो सात, पाँच, तीन या एक ) कन्या‌ओंको देवी मानका उनको गन्ध – पुष्पादिसे अर्चित करके भोजन कराये और फिर आप भोजन करे । व्रतीको चाहिये कि उन दिनोंमें भुशयन, मिताहार, ब्रह्मचर्यका पालन, क्षमा, दया, उदारता एवं उत्साहदिकी वृद्धि और क्रोध, लोभ, मोहादिका त्याग रखे । चैत्र के नवरात्रमें शक्तिकी उपासना तो प्रसिद्ध ही हैं, साथ ही शक्तिधरकी उपासना भी की जाती है । उदाहरणार्थ एक ओर देवीभागवत कालिकापुराण, मार्कण्डेयपुराण, नवार्णमन्त्नके पुरश्चरण और दुर्गापाठकी शतसहस्त्रायुतचण्डी आदि होते हैं कलश स्थापना विधि नवरात्रि में कलश स्थापना देव-देवताओं के आह्वान से पूर्व की जाती है। कलश स्थापना करने से पूर्व आपको कलश और खेतरी को तैयार करना होगा जिसकी सम्पूर्ण विधि नीचे दी गयी है सबसे पहले मिट्टी के बड़े पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालें। और उसमे जवारे के बीज डाल दें। अब इस पात्र में दोबारा थोड़ी मिटटी और डालें। और फिर बीज डालें। उसके बाद सारी मिट्टी पात्र में दाल दें और फिर बीज डालकर थोडा सा जल डालें। (ध्यान रहे इन बीजों को पात्र में इस तरह से लगाएं की उगने पर यह ऊपर की तरफ उगें। यानी बीजों को खड़ी अवस्था में लगायें। और ऊपर वाली लेयर में बीज अवश्य डालें। अब कलश और उस पात्र की गर्दन पर मोली बांध दें। साथ ही तिलक भी लगाएं। इसके बाद कलश में गंगा जल भर दें। इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का भी दाल दें। अब इस कलश के किनारों पर 5 अशोक के पत्ते रखें। और कलश को ढक्कन से ढक दें। अब एक नारियल लें और उसे लाल कपडे या कल चुन्नी में लपेट लें। चुन्नी के साथ इसमें कुछ पैसे भी रखें। इसके बाद इस नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र से बांध दें। तीनों चीजों को तैयार करने के बाद सबसे पहले जमीन को अच्छे से साफ़ करके उसपर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखें। उसके ऊपर मिटटी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें। आपकी कलश स्थापना सम्पूर्ण हो चुकी है। इसके बाद सभी देवी देवताओं का आह्वान करके विधिवत नवरात्रि पूजन करें। इस कलश को आपको नौ दिनों तक मंदिर में ही रखे देने होगा। बस ध्यान रखें की खेतरी में सुबह शाम आवश्यकतानुसार पानी डालते रहें। सिद्धिदात्री पूजा, राम नवमी, नवरात्रि पारण, नवरात्रि हवन नवरात्री में नौ देवियों की पूजा होती है ये नौ देवियाँ है शैलपुत्री – इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है। ब्रह्मचारिणी – इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी। चंद्रघंटा – इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली। कूष्माण्डा – इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है। स्कंदमाता – इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता। कात्यायनी – इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि। कालरात्रि – इसका अर्थ- काल का नाश करने वली। महागौरी – इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां। सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली। पूजा का कृत्य प्रारम्भ। प्रातःकाल नित्य स्नानादि कृत्य से फुरसत होकर पूजा के लिए पवित्र वस्त्र पहन कर उपरोक्त पूजन सामग्री व श्रीदुर्गासप्तशती की पुस्तक ऊँचे आसन में रखकर, पवित्र आसन में पूर्वाविमुख या उत्तराभिमुख होकर भक्तिपूर्वक बैठे और माथे पर चन्दन का लेप लगाएं, पवित्री मंत्र बोलते हुए पवित्री करण, आचमन, आदि को विधिवत करें। तत्पश्चात् दायें हाथ में कुश आदि द्वारा पूजा का संकल्प करे। आज ही नवरात्री मे नवदुर्गा पूजन हेतु अपना स्थान सुरक्षित करे | सभी प्रकार की कामनाओ हेतु 1 देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यषो देहि द्विषो जहि।। अगर आप की अनावश्यक विलम्ब हो रहा है तो इस मंत्र का प्रयोग करते हुए पाठ करे 2 पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।। रोग से छुटकारा पाने के लिए 3 रोगानषेषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति। पूजन करने की विधि मंत्रों से तीन बार आचमन करें। 4 मंत्र ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः 5 तथा हृषिकेषाय नमः बोलते हुए हाथ धो लें। 6 आसन धारण के मंत्र ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरू चासनम्।। 7 पवित्रीकरण हेतु मंत्र ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षंतद्बाह्याभ्यन्तरं शुचि।। 8 चंदन लगाने का मंत्रः ॐ आदित्या वसवो रूद्रा विष्वेदेवा मरूद्गणाः। तिलकं ते प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थसिद्धये।। रक्षा सूत्र मंत्र (पुरूष को दाएं तथा स्त्री को बांए हाथ में बांधे) 9 मंत्रः ॐ येनबद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।तेनत्वाम्अनुबध्नामि रक्षे माचल माचल ।। 10 दीप जलाने का मंत्रः ॐ ज्योतिस्त्वं देवि लोकानां तमसो हारिणी त्वया। पन्थाः बुद्धिष्च द्योतेताम् ममैतौ तमसावृतौ।। 11 संकल्प की विधिः ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः, ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरूषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपराद्र्धे श्रीष्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे- ऽष्टाविंषतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकषर्मा अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतोल आदि मंत्रो को शुद्धता से बोलते हुए शास्त्री विधि से पूजा पाठ का संकल्प लें। प्रथमतः श्री गणेश जी का ध्यान, आवाहन, पूजन करें। 12 श्री गणश मंत्र ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ। निर्विध्नं कुरू मे देव सर्वकायेषु सर्वदा।। कलश स्थापना के नियम:-पूजा हेतु कलश सोने, चाँदी, तांबे की धातु से निर्मित होते हैं, असमर्थ व्यक्ति मिट्टी के कलश का प्रयोग करत सकते हैं। ऐसे कलश जो अच्छी तरह पक चुके हों जिनका रंग लाल हो वह कहीं से टूटे-फूटे या टेढ़े न हो, दोष रहित कलश को पवित्र जल से धुल कर उसे पवित्र जल गंगा जल आदि से पूरित करें। कलश के नीचे पूजागृह में रेत से वेदी बनाकर जौ या गेहूं को बौयें और उसी में कलश कुम्भ के स्थापना के मंत्र बोलते हुए उसे स्थाति करें। कलश कुम्भ को विभिन्न प्रकार के सुगंधित द्रव्य व वस्त्राभूषण अंकर सहित पंचपल्लव से आच्छादित करें और पुष्प, हल्दी, सर्वोषधी अक्षत कलश के जल में छोड़ दें। कुम्भ के मुख पर चावलों से भरा पूर्णपात्र तथा नारियल को स्थापित करें। सभी तीर्थो के जल का आवाहन कुम्भ कलश में करें। 13 आवाहन मंत्र करें: ॐ कलषस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रूद्रः समाश्रितः। मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।। गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू ।। षोडषोपचार पूजन प्रयोग विधि – 14 आसन (पुष्पासनादि)-ॐ अनेकरत्न-संयुक्तं नानामणिसमन्वितम्। कात्र्तस्वरमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।। 15 पाद्य (पादप्रक्षालनार्थ जल) ॐ तीर्थोदकं निर्मलऽचसर्वसौगन्ध्यसंयुतम्। पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं तेप्रतिगृह्यताम्।। 16 अघ्र्य (गंध पुष्प्युक्त जल) ॐ गन्ध-पुष्पाक्षतैर्युक्तं अध्र्यंसम्मपादितं मया।गृह्णात्वेतत्प्रसादेन अनुगृह्णातुनिर्भरम्।। 17 आचमन (सुगन्धित पेय जल) ॐ कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु षीतलम्। तोयमाचमनायेदं पीयूषसदृषं पिब।। 18 स्नानं (चन्दनादि मिश्रित जल) ॐ मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागरूवासितैः।पयोभिर्निर्मलैरेभिःदिव्यःकायो हि षोध्यताम्।। 19 वस्त्र (धोती-कुत्र्ता आदि) ॐ सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे। मया सम्पादिते तुभ्यं गृह्येतां वाससी षुभे।। 20 आभूषण (अलंकरण) ॐ अलंकारान् महादिव्यान् नानारत्नैर्विनिर्मितान्। धारयैतान् स्वकीयेऽस्मिन् षरीरे दिव्यतेजसि।। 21 गन्ध (चन्दनादि) ॐ श्रीकरं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। वपुषे सुफलं ह्येतत् षीतलं प्रतिगृह्यताम्।। 22 पुष्प (फूल) ॐ माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्त्तितः।मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि पादयोरर्पितानि ते।। 23 धूप (धूप) ॐ वनस्पतिरसोद्भूतः सुगन्धिः घ्राणतर्पणः।सर्वैर्देवैः ष्लाघितोऽयं सुधूपः प्रतिगृह्यताम्।। 24 दीप (गोघृत) ॐ साज्यः सुवर्तिसंयुक्तो वह्निना द्योतितो मया।गृह्यतां दीपकोह्येष त्रैलोक्य-तिमिरापहः।। 25 नैवेद्य (भोज्य) ॐ षर्कराखण्डखाद्यानि दधि-क्षीर घृतानि च। रसनाकर्षणान्येतत् नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।। 26 आचमन (जल) ॐ गंगाजलं समानीतं सुवर्णकलषस्थितम्। सुस्वादु पावनं ह्येतदाचम मुख-षुद्धये।। 27 दक्षिणायुक्त ताम्बूल (द्रव्य पानपत्ता) ॐ लवंगैलादि-संयुक्तं ताम्बूलं दक्षिणां तथा। पत्र-पुष्पस्वरूपां हि गृहाणानुगृहाण माम्।। 28 आरती (दीप से) ॐ चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निस्तथैव च। त्वमेव सर्व-ज्योतींषि आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम्।। 29 परिक्रमाः ॐ यानि कानि च पापानि जन्मांतर-कृतानि च। प्रदक्षिणायाः नष्यन्तु सर्वाणीह पदे पदे।। भागवती एवं उसकी प्रतिरूप देवियों की एक परिक्रमा करनी चाहिए।यदि चारों ओर परिक्रमा का स्थान न हो तो आसन पर खड़े होकर दाएं घूमना चाहिए। 30 क्षमा प्रार्थना: ॐ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि भक्त एष हि क्षम्यताम्।। अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम। तस्मात्कारूण्यभावेन भक्तोऽयमर्हति क्षमाम्।। मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं तथैव च। यत्पूजितं मया ह्यत्र परिपूर्ण तदस्तु मे।। 31 ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पष्यन्तु मा कष्चिद् दुःख-भाग्भवेत् ।।Astrologer Gyanchand Bundiwal। nagpur . 0 8275555557

Saturday, 24 February 2018

नवग्रहों के 9 वैदिक मंत्र ,,नवग्रह मंत्र और जप संख्या ,,नवग्रहों के मूल मंत्र



नवग्रहों के 9 वैदिक मंत्र ,,नवग्रह मंत्र और जप संख्या ,,नवग्रहों के मूल मंत्र  https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5।,,,,,,,,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557
सूर्य- ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्
चन्द्र- ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।
भौम- ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।।
बुध- ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेधामयं च। अस्मिन्त्सधस्‍थे अध्‍युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यशमानश्च सीदत।।
गुरु- ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
शुक्र- ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपित्क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।।
शनि- ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।
राहु- ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता।।
केतु- ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे।
नवग्रहों के मूल मंत्र
सूर्य : ॐ सूर्याय नम:
चन्द्र : ॐ चन्द्राय नम:
गुरू : ॐ गुरवे नम:
शुक्र : ॐ शुक्राय नम:
मंगल : ॐ भौमाय नम:
बुध : ॐ बुधाय नम:
शनि : ॐ शनये नम: अथवा ॐ शनिचराय नम:
राहु : ॐ राहवे नम:
केतु : ॐ केतवे नम:
नवग्रहों के बीज मंत्र
सूर्य – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नमः
जप संख्या – 7000
जप समय – सूर्योदय काल
चंद्रमा – ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्राय नमः
जप संख्या – 11000
जप समय – संध्याकाल
मंगल – ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नमः
जप संख्या – 10000
जप समय – दिन का प्रथम प्रहर
बुध – ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नमः
जप संख्या – 9000
जप समय – मध्याह्न काल
बृहस्पति – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नमः
जप संख्या – 19000
जप समय – प्रात:काल
शुक्र – ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः
जप संख्या – 18000
जप समय – ब्रह्मवेला
शनि – ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नमः
जप संख्या – 23000
जप समय – संध्याकाल
राहु – ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नमः
जप संख्या – 18000
जप समय – रात्रिकाल
केतु – ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नमः
जप संख्या – 17000
जप समय – रात्रिकाल
समुषद्भिरजायथा:।।!!Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557

Friday, 23 February 2018

तुलजाष्टकम् तुलजा भवानी

तुलजाष्टकम् तुलजाभवानी
दुग्धेन्दु कुन्दोज्ज्वलसुन्दराङ्गींमुक्ताफलाहारविभूषिताङ्गीम् ।
शुभ्राम्बरां स्तनभरालसाङ्गींवन्देऽहमाद्यां तुलजाभवानीम् ॥ १॥https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5।,,,,,,,,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557
बालार्कभासामतिचारुहासांमाणिक्यमुक्ताफलहारकण्ठीम् ।
रक्ताम्बरां रक्तविशालनेत्रींवन्देऽहमाद्यां तुलजाभवानीम् ॥ २॥
श्यामाङ्गवर्णां मृगशावनेत्रांकौशेयवस्त्रां कुसुमेषु पूज्याम् ॥ 
कस्तूरिकाचन्दनचर्चिताङ्गींवन्देऽहमाद्यां तुलजाभवानीम् ॥ ३॥
पीताम्बरां चम्पककान्तिगौरीं अलङ्कृतामुत्तममण्डनैश्च ।
नाशाय भूतां भुवि दानवानां वन्देऽहमाद्यां तुलजाभवानीम् ॥ ४॥
चन्द्रार्कताटङ्कधरां त्रिनेत्रां
शूलं दधानामतिकालरूपाम् ।
विपक्षनाशाय धृतायुधां तां
वन्देऽहमाद्यां तुलजाभवानीम् ॥ ५॥
ब्रह्मेन्द्र नारायणरुद्रपूज्यां
देवाङ्गनाभिः परिगीयमानाम् ।
स्तुतां वचोभिर्मुनिनारदाद्यैः
वन्देऽहमाद्यां तुलजाभवानीम् ॥ ६॥
अष्टाङ्गयोगे सनकादिभिश्च
ध्यातां मुनीन्द्रैश्च समाधिगम्याम् ।
भक्तस्य नित्यं भुवि कामधेनुं
वन्देऽहमाद्यां तुलजाभवानीम् ॥ ७॥
सिंहासनस्थां परिवीज्यमानां
देवैः समस्तैश्च सुचामरैश्च ।
छत्रं दधानामतिशुभ्रवर्णां
वन्देऽहमाद्यां तुलजाभवानीम् ॥ ८॥
पूर्णः कटाक्षोऽखिललोकमातु-
र्गिरीन्द्रकन्यां भजतां सुधन्याम् ।
दारिद्र्यकं नैव कदा जनानां
चिन्ता कुतः स्याद्भवसागरस्य ॥ ९॥
तुलजाष्टकमिदं स्तोत्रं त्रिकालं यः पठेन्नरः ।
आयुः कीर्तिर्यशो लक्ष्मी धनपुत्रानवाप्नुयात् ॥ १०॥
Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557 !!!
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचितं तुलजाष्टकम् सम्पूर्णम् ॥

श्री पीताम्बरा ष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

श्री पीताम्बरा ष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् इतीदं नामसाहस्रं ब्रह्मन्स्ते गदितं मया । नाम्नामष्टोत्तरशतं शृणुष्व गदितं मम ॥ १॥ ॐ पीताम्बरा शूलहस्ता वज्रा वज्रशरीरिणी । तुष्टिपुष्टिकरी शान्तिर्ब्रह्माणी ब्रह्मवादिनी ॥ २॥https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5।,,,,,,,,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557 सर्वालोकननेत्रा च सर्वरोगहरापि च । मङ्गला मङ्गलास्नाता निष्कलङ्का निराकुला ॥ ३॥ विश्वेश्वरी विश्वमाता ललिता ललिताकृतिः । सदाशिवैकग्रहणी चण्डिका चण्डविक्रमा ॥ ४ सर्वदेवमयी साक्षात्सर्वागमनिरूपिता । ब्रह्मेशविष्णुनमिता सर्वकल्याणकारिणी ॥ ५॥ योगमार्गपरायोगीयौगिध्येयपदाम्बुजा । योगेन्द्रा योगिनीपूज्या योगसूर्याङ्गनन्दिनी ॥ ६॥ इन्द्रादिदेवतावृन्दस्तूयमानात्मवैभवा । विशुद्धिदा भयहरा भक्तद्वेषीक्षयङ्करी ॥ ७॥ भवपाशविनिर्मुक्ता भेरुण्डा भैरवार्चिता । बलभद्रप्रियाकाराहालामदरसोधृता ॥ ८॥ पञ्चभूतशरीरस्था पञ्चकोशप्रपञ्चहृत् । सिंहवाहा मनोमोहा मोहपाशनिकृन्तनी ॥ ९॥ मदिरा मदिरोन्मादमुद्रा मुद्गरधारिणी । सावित्री प्रसावित्री च परप्रियविनायका ॥ १०॥ यमदूती पिङ्गनेत्रा वैष्णवी शाङ्करी तथा । चन्द्रप्रिया चन्दनस्था चन्दनारण्यवासिनी ॥ ११॥ वदनेन्दुप्रभापूर पूर्णब्रह्माण्डमण्डला । गान्धर्वी यक्षशक्तिश्च कैराती राक्षसी तथा ॥ १२॥ पापपर्वतदम्भोलिर्भयध्वान्तप्रभाकरा । सृष्टिस्थित्युपसंहारकारिणि कनकप्रभा ॥ १३॥ लोकानां देवतानाञ्च योषितां हितकारिणी । ब्रह्मानन्दैकरसिका महाविद्या बलोन्नता ॥ १४॥ महातेजोवती सूक्ष्मा महेन्द्रपरिपूजिता । परापरवती प्राणा त्रैलोक्याकर्षकारिणी ॥ १५॥ किरीटाङ्गदकेयूरमाला मञ्जिरभूषिता । सुवर्णमालासञ्जप्ताहरिद्रास्रक् निषेविता ॥ १६॥ उग्रविघ्नप्रशमनी दारिद्र्यद्रुमभञ्जिनी । राजचोरनृपव्यालभूतप्रेतभयापहा ॥ १७॥ स्तम्भिनी परसैन्यानां मोहिनी परयोषिताम् । त्रासिनी सर्वदुष्टानां ग्रासिनी दैत्यराक्षसाम् ॥ १८॥ आकर्षिणी नरेन्द्राणां वशिनी पृथिवीमृताम् । मारिणी मदमत्तानां द्वेषिणी द्विषितां बलात् ॥ १९॥ क्षोभिणि शत्रुसङ्घानां रोधिनी शस्त्रपाणिनाम् । भ्रामिणी गिरिकूटानां राज्ञां विजय वर्द्धिनी ॥ २०॥ ह्लीं कार बीज सञ्जाप्ता ह्लीं कार परिभूषिता । बगला बगलावक्त्रा प्रणवाङ्कुर मातृका ॥ २१॥ प्रत्यक्ष देवता दिव्या कलौ कल्पद्रुमोपमा । कीर्त्तकल्याण कान्तीनां कलानां च कुलालया ॥ २२॥ सर्व मन्त्रैक निलया सर्वसाम्राज्य शालिनी । चतुःषष्ठी महामन्त्र प्रतिवर्ण निरूपिता ॥ २३॥ स्मरणा देव सर्वेषां दुःखपाश निकृन्तिनी । महाप्रलय सङ्घात सङ्कटद्रुम भेदिनी ॥ २४॥ इतिते कथितं ब्रह्मन्नामसाहस्रमुत्तमम् । अष्टोत्तरशतं चापि नाम्नामन्ते निरूपितम् ॥ २५॥ काश्मीर केरल प्रोक्तं सम्प्रदायानुसारतः । नामानिजगदम्बायाः पठस्वकमलासन ॥ २६॥ तेनेमौदानवौवीरौस्तब्ध शक्ति भविष्यतः । नानयोर्विद्यते ब्रह्मनूभयं विद्या प्रभावतः ॥ २७॥ ईश्वर उवाच । इत्युक्तः सतदाब्रह्मा पठन्नामसहस्रकम् । स्तम्भयामास सहसा तयीः शक्तिपराक्रमात् ॥ २८॥ इतिते कथितं देवि नामसाहस्रमुत्तमम् । परं ब्रह्मास्त्र विद्याया भुक्ति मुक्ति फलप्रदम् ॥ २९॥ यः पठेत्पाठयेद्वापि शृणोति श्रावयेदिदम् । स सर्वसिद्धि सम्प्राप्य स्तम्भयेदखिलं जगत् ॥ ३०॥ इति मे विष्णुना प्रोक्तं महास्तम्भकरं परम् । धनधान्य गजाश्वादि साधकं राज्यदायकम् ॥ ३१॥ प्रातःकाले च मध्याह्ने सन्ध्याकाले च पार्वति । एकचित्तः पठेदेतत्सर्वसिद्धिं च विन्दति ॥ ३२॥ पठनादेकवारस्य सर्वपापक्षयो भवेत् । वारद्वयस्य पठनाद्गणेश सदृशो भवेत् ॥ ३३॥ त्रिवारं पठनादस्य सर्वसिद्ध्यति नान्यथा । स्तवस्यास्य प्रभावेण जीवन्मुक्तो भवेन्नरः ॥ ३४॥ मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम् । विद्यार्थी लभते विद्यां वश्यार्थी वशयेज्जगत् ॥ ३५॥ महीपतिर्वत्सरस्य पाठाच्छत्रुक्षयो भवेत् । पृथ्वीपतिर्वशस्तस्य वत्सरात्स्मरसुन्दरः ॥ ३६॥ य पठेत्सर्वदा भक्त्या श्रीयुक्तो भवति प्रिये । गणाध्यक्षः प्रतिनिधिः कविः काव्य इवापरः ॥ ३७॥ गोपनीयं प्रयत्नेन जननीजारवत्प्रिये । शक्तियुक्तः पठेन्नित्यं पीताम्बरधरः स्वयम् ॥ ३८ य इदं पठते नित्यं शिवेन सदृशो भवेत् । धर्मार्थकाममोक्षाणां पतिर्भवति मानवः ॥ ३९॥ सत्यं सत्यं मया देवि रहस्यं सम्प्रकाशितम् । स्तवस्यास्य प्रभावेन किं न सिद्ध्यति भूतले ॥ ४०॥ स्तम्भितावास्कराः सर्वे स्तवराजस्य कीर्त्तनात् । मधु कैटभ दैतेन्द्रौध्वस्तशक्ति बभूवतुः ॥ ४१॥ इदं सहस्रनामाख्यं स्तोत्रं त्रैलोक्य पावनम् । एतत्पठति यो मन्त्री फलं तस्य वदाम्यहम् ॥ ४२॥ राजानो वश्यतां यान्ति यान्ति पापानि संक्षयः । गिरयः समतां यान्ति वह्निर्गच्छति शीतताम् ॥ ४३॥ प्रचण्डा सौम्यतां यान्ति शोषयान्त्येव सिन्धवः । धनैः कोशा विवर्धते जनैश्च विविधालयाः ॥ ४४॥ मन्दिराः स्करगैः पूर्णा हस्तिशालाश्च हस्तिभिः । स्तम्भयेद्विषतां वाचं गतिं शस्त्रं पराक्रमम् ॥ ४५॥ रवेरथं स्तम्भयति सञ्चारं च नभस्वतः । किमन्यं बहुनोक्तेन सर्वकार्यकृति क्षयम् ॥ ४६॥ स्तवराजमिदं जप्त्वा न मातुर्गर्भगो भवेत् । तेनेष्टाक्रतवः सर्वे दत्तादानपरम्पराः ॥ ४७॥ व्रतानि सर्वाण्यातानियेनायं पठ्यते स्तवः । निशीथकाले प्रजपेदेकाकी स्थिर मानसः ॥ ४८॥ पीताम्बरधरी पीतां पीतगन्धानुलेपनाम् । सुवर्णरत्नखचितां दिव्य भूषण भूषिताम् ॥ ४९॥ संस्थाप्य वामभागेतु शक्तिं स्वामि परायणाम् । तस्य सर्वार्थ सिद्धिःस्याद्यद्यन्मनसि कल्पते ॥ ५०॥ ब्रह्महत्यादि पापानि नश्यन्तेस्यजपादपि । सहस्रनाम तन्त्राणां सारमाकृत पार्वति ॥ ५१॥ मया प्रोक्तं रहस्यं ते किमन्य श्रोतुमर्हसि ॥ ५२॥ Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557 !!! इति श्रीउत्कट शम्बरे नागेन्द्रप्रयाण तन्त्रे षोडश साहस्रग्रन्थे विष्णु शङ्कर संवादेश्रीपीताम्बरा अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

श्री लक्ष्मीनृसिंह पञ्चरत्नम्

श्री लक्ष्मीनृसिंह पञ्चरत्नम्
त्वत्प्रभुजीवप्रियमिच्छसि चेन्नरहरिपूजां कुरु सततं
प्रतिबिम्बालंकृतिधृतिकुशलो बिम्बालंकृतिमातनुते ।
चेतोभृङ्ग भ्रमसि वृथा भवमरुभूमौ विरसायां
भज भज लक्ष्मीनरसिंहानघपदसरसिजमकरन्दम् ॥ १॥https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5।,,,,,,,,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557
शुक्त्तौ रजतप्रतिभा जाता कतकाद्यर्थसमर्था चे-
द्दुःखमयी ते संसृतिरेषा निर्वृतिदाने निपुणा स्यात् ।
चेतोभृङ्ग भ्रमसि वृथा भवमरुभूमौ विरसायां
भज भज लक्ष्मीनरसिंहानघपदसरसिजमकरन्दम् ॥ २॥
आकृतिसाम्याच्छाल्मलिकुसुमे स्थलनलिनत्वभ्रममकरोः
गन्धरसाविह किमु विद्येते विफलं भ्राम्यसि भृशविरसेस्मिन् ।
चेतोभृङ्ग भ्रमसि वृथा भवमरुभूमौ विरसायां
भज भज लक्ष्मीनरसिंहानघपदसरसिजमकरन्दम् ॥ ३॥
स्रक्चन्दनवनितादीन्विषयान्सुखदान्मत्वा तत्र विहरसे
गन्धफलीसदृशा ननु तेमी भोगानन्तरदुःखकृतः स्युः ।
चेतोभृङ्ग भ्रमसि वृथा भवमरुभूमौ विरसायां
भज भज लक्ष्मीनरसिंहानघपदसरसिजमकरन्दम् ॥ ४॥
तव हितमेकं वचनं वक्ष्ये शृणु सुखकामो यदि सततं
स्वप्ने दृष्टं सकलं हि मृषा जाग्रति च स्मर तद्वदिति।
चेतोभृङ्ग भ्रमसि वृथा भवमरुभूमौ विरसायां
भज भज लक्ष्मीनरसिंहानघपदसरसिजमकरन्दम् ॥ ५॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य
श्री गोविन्द भगवत्पूज्यपाद शिष्यस्य श्रीमच्छंकर भगवतः कृतौ
Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557 !!!
लक्ष्मीनृसिंह पञ्चरत्नम् सम्पूर्णम् ॥

Wednesday, 21 February 2018

श्री ललिता त्रिपुरसुन्दरी अपराध क्षमापण स्तोत्रम् ॥ shri lalita tripurasundarI aparadha kshamapana stotram

श्री ललिता त्रिपुरसुन्दरी अपराध क्षमापण स्तोत्रम् ॥
shri lalita tripurasundarI aparadha kshamapana stotram
https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5।,,,,,,,,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557
कंजमनोहर पादचलन्मणि नूपुरहंस विराजिते
कंजभवादि सुरौघपरिष्टुत लोकविसृत्वर वैभवे ।
मंजुळवाङ्मय निर्जितकीर कुलेचलराज सुकन्यके
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ १॥
एणधरोज्वल फालतलोल्लस दैणमदाङ्क समन्विते
शोणपराग विचित्रित कन्दुक सुन्दरसुस्तन शोभिते ।
नीलपयोधर कालसुकुन्तल निर्जितभृङ्ग कदम्बके
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ २॥
ईतिविनाशिनि भीति निवारिणि दानवहन्त्रि दयापरे
शीतकराङ्कित रत्नविभूषित हेमकिरीट समन्विते ।
दीप्ततरायुध भण्डमहासुर गर्व निहन्त्रि पुरांबिके
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ ३॥
लब्धवरेण जगत्रयमोहन दक्षलतांत महेषुणा
लब्धमनोहर सालविषण्ण सुदेहभुवापरि पूजिते ।
लंघितशासन दानव नाशन दक्षमहायुध राजिते
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ ४॥
ह्रींपद भूषित पंचदशाक्षर षोडशवर्ण सुदेवते
ह्रीमतिहादि महामनुमंदिर रत्नविनिर्मित दीपिके ।
हस्तिवरानन दर्शितयुद्ध समादर साहसतोषिते
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ ५॥
हस्तलसन्नव पुष्पसरेक्षु शरासन पाशमहांकुशे
हर्यजशम्भु महेश्वर पाद चतुष्टय मंच निवासिनि ।
हंसपदार्थ महेश्वरि योगि समूहसमादृत वैभवे
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ ६॥
सर्वजगत्करणावन नाशन कर्त्रि कपालि मनोहरे
स्वच्छमृणाल मरालतुषार समानसुहार विभूषिते ।
सज्जनचित्त विहारिणि शंकरि दुर्जन नाशन तत्परे
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ ७॥
कंजदळाक्षि निरंजनि कुंजर गामिनि मंजुळ भाषिते
कुंकुमपंक विलेपन शोभित देहलते त्रिपुरेश्वरि ।
दिव्यमतंग सुताधृतराज्य भरे करुणारस वारिधे
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ ८॥
हल्लकचम्पक पंकजकेतक पुष्पसुगंधित कुंतले
हाटक भूधर शृंगविनिर्मित सुंदर मंदिरवासिनि ।
हस्तिमुखाम्ब वराहमुखीधृत सैन्यभरे गिरिकन्यके
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ ९॥
लक्ष्मणसोदर सादर पूजित पादयुगे वरदेशिवे
लोहमयादि बहून्नत साल निषण्ण बुधेश्वर सम्युते ।
लोलमदालस लोचन निर्जित नीलसरोज सुमालिके
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ १०॥
ह्रीमितिमंत्र महाजप सुस्थिर साधकमानस हंसिके
ह्रींपद शीतकरानन शोभित हेमलते वसुभास्वरे ।
हार्दतमोगुण नाशिनि पाश विमोचनि मोक्षसुखप्रदे
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ ११॥
सच्चिदभेद सुखामृतवर्षिणि तत्वमसीति सदादृते
सद्गुणशालिनि साधुसमर्चित पादयुगे परशाम्बवि ।
सर्वजगत् परिपालन दीक्षित बाहुलतायुग शोभिते
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ १२॥
कंबुगळे वर कुंदरदे रस रंजितपाद सरोरुहे
काममहेश्वर कामिनि कोमल कोकिल भाषिणि भैरवि ।
चिंतितसर्व मनोहर पूरण कल्पलते करुणार्णवे
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ १३॥
लस्तकशोभि करोज्वल कंकणकांति सुदीपित दिङ्मुखे
शस्ततर त्रिदशालय कार्य समादृत दिव्यतनुज्वले ।
कश्चतुरोभुवि देविपुरेशि भवानि तवस्तवने भवेत्
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ १४॥
ह्रींपदलांचित मंत्रपयोदधि मंथनजात परामृते
हव्यवहानिल भूयजमानक खेंदु दिवाकर रूपिणि ।
हर्यजरुद्र महेश्वर संस्तुत वैभवशालिनि सिद्धिदे
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ १५॥
श्रीपुरवासिनि हस्तलसद्वर चामरवाक्कमलानुते
श्रीगुहपूर्व भवार्जित पुण्यफले भवमत्तविलासिनि ।
श्रीवशिनी विमलादि सदानत पादचलन्मणि नूपुरे
पालयहे ललितापरमेश्वरि मामपराधिनमंबिके ॥ १६॥
,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557
॥ इति श्रीललितात्रिपुरसुंदरी अपराध
क्षमापणस्तोत्रं सम्पूऱ्णम् ॥

श्री गणेशापराधक्षमापण स्तोत्रम् Shri Ganesha Aparadhaxamapanastotram

श्री गणेशापराधक्षमापण स्तोत्रम् Shri Ganesha Aparadhaxamapanastotram सुमुखो मखभुङ्मुखार्चितः सुखवृद्ध्यै निखिलार्तिशान्तये। अखिलश्रुतिशीर्षवर्णितः सकलाद्यः स सदाऽस्तु मे हृदि ॥ १॥https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5।,,,,,,,,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557 प्रणवाकृतिमस्तके नयः प्रणवो वेदमुखावसानयोः। अयमेव विभाति सुस्फुटं ह्यवतारः प्रथमः परस्य सः ॥ २॥ प्रथमं गुणनायको बभौ त्रिगुणानां सुनियन्त्रणाय यः। जगदुद्भवपालनात्ययेष्वजविष्ण्वीशसुरप्रणोदकः ॥ ३॥ विधिविष्णुहरेन्द्रदेवतादिगणानां परिपालनाद्विभुः। अपि चेन्द्रियपुञ्जचालनाद्गणनाथः प्रथितोऽर्थतः स्फुटम् ॥ ४॥ अणिमामुखसिद्धिनायका भजतः साधयतीष्टकामनाः। अपवर्गमपि प्रभुर्धियो निजदासस्य तमो विहृत्य यः ॥ ५॥ जननीजनकः सुखप्रदो निखिलानिष्टहरोऽखिलेष्टदः। गणनायक एव मामवेद्रदपाशाङ्कुशमोदकान् दधत् ॥ ६॥ शरणं करुणार्णवः स मे शरणं रक्ततनुश्चतुर्भुजः। शरणं भजकान्तरायहा शरणं मङ्गलमूर्तिरस्तु मे ॥ ७॥ सततं गणनायकं भजे नवनीताधिककोमलान्तरम्। भजनाद्भवभीतिभञ्जनं स्मरणाद्विघ्ननिवारणक्षमम् ॥ ८॥ अरुणारुणवर्णराजितं तरुणादित्यसमप्रभं प्रभुम्। वरुणायुधमोदकावहं करुणामूर्तिमहं प्रणौमि तम् ॥ ९॥ क्व नु मूषकवाहनं प्रभुं मृगये त्वज्ञतमोऽवनीतले। विबुधास्तु पितामहादयस्त्रिषु लोकेष्वपि यं न लेभिरे ॥ १०॥ शरणागतपालनोत्सुकं परमानन्दमजं गणेश्वरम्। वरदानपटुं कृपानिधिं हृदयाब्जे निदधामि सर्वदा ॥ ११॥ सुमुखे विमुखे सति प्रभौ न महेन्द्रादपि रक्षणं कदा। त्वयि हस्तिमुखे प्रसन्नताऽभिमुखेनापि यमाद्भयं भवेत् ॥ १२॥ सुतरां हि जडोऽपि पण्डितः खलु मूकोऽप्यतिवाक्पतिर्भवेत्। गणराजदयार्द्रवीक्षणादपि चाज्ञः सकलज्ञातामियात् ॥ १३॥ अमृतं तु विषं विषं सुधा परमाणुस्तु नगो नगोऽप्यणुः। कुलिशं तु तृणं तृणं पविर्गणनाथाशु तवेच्छया भवेत् ॥ १४॥ गतोऽसि विभो विहाय मां ननु सर्वज्ञ न वेत्सि मां कथम्। किमु पश्यसि विश्वदृङ् न मां न दया किमपि ते दयानिधे ॥ १५॥ अयि दीनदयासरित्पते मयि नैष्ठुर्यमिदं कुतः कृतम्। निजभक्तिसुधालवोऽपि यन्न हि दत्तो जनिमृत्युमोचकः ॥ १६॥ नितरां विषयोपभोगतः क्षपितं त्वायुरमूल्यमेनसा। अहहाज्ञतमस्य साहसं सहनीयं कृपया त्वया विभो ॥ १७॥ भगवन्नहि तारकस्य ते वत मन्त्रस्य जपः कृतस्तथा। न कदैकधियापि चिन्तनं तव मूर्तेस्तु मयातिपाप्मना ॥ १८॥ भजनं न कृतं समर्चनं तव नामस्मरणं न दर्शनम्। हवनं प्रियमोदकार्पणं नवदूर्वा न समर्पिता मया ॥ १९॥ नच साधुसमागमः कृतस्तव भक्ताश्च मया न सत्कृताः। द्विजभोजनमप्यकारि नो वत दौरात्म्यमिदं क्षमस्व मे ॥ २०॥ न विधिं तव सेवनस्य वा नच जाने स्तवनं मनुं तथा। करयुग्मशिरःसुयोजनं तव भूयाद्गणनाथपूजनम् ॥ २१॥ अथ का गणनाथ मे गतिर्नहि जाने पतितस्य भाविनी। इति तप्ततनुं सदाऽव मामनुकम्पार्द्रकटाक्षवीक्षणैः ॥ २२॥ इह दण्डधरस्य सङ्गमेऽखिलधैर्यच्यवने भयङ्करे। अविता गणराज को नु मां तनुपातावसरे त्वया विना ॥ २३॥ वद कं भवतोऽन्यमिष्टदाच्छरणं यामि दयाधनादृते। अवनाय भवाग्निभर्जितो गतिहीनः सुखलेशवर्जितः ॥ २४॥ श्रुतिमृग्यपथस्य चिन्तनं किमु वाचोऽविषयस्य संस्तुतिम्। किमु पूजनमप्यनाकृतेरसमर्थो रचयामि देवते ॥ २५॥ किमु मद्विकलात्स्वसेवनं किमु रङ्कादुपचारवैभवम्। जडवाङ्मतितो निजस्तुतिं गणनाथेच्छसि वा दयानिधे ॥ २६॥ अधुनापि च किं दया न ते मम पापातिशयादितीश चेत्। हृदये नवनीतकोमले न हि काठिन्यनिवेशसम्भवः ॥ २७॥ व्यसनार्दितसेवकस्य मे प्रणतस्याशु गणेश पादयोः। अभयप्रदहस्तपङ्कजं कृपया मूर्ध्नि कुरुष्व तावकम् ॥ २८॥ जननीतनयस्य दृक्पथं मुहुरेति प्रसभं दयार्द्रधीः। मम दृग्विषयस्तथैव भो गणनाथाशु भवनुकम्पया ॥ २९॥ गजराजमुखाय ते नमो मृगराजोत्तमवाहनाय ते द्विजराजकलाभृते नमो गणराजाय सदा नमोऽस्तु ते ॥ ३०॥ गणनाथ गणेश विघ्नराट् शिवसूनो जगदेकसद्गुरो। सुरमानुषगीतमद्यशः प्रणतं मामव संसृतेर्भयात् ॥ ३१॥ जय सिद्धिपते महामते जय बुद्धीश जडार्तसद्गते। जय योगिसमूहसद्गुरो जय सेवारत कल्पनातरो ॥ ३२॥ तनुवाग् हृदयैरसच्च सद्यदनस्थात्रितये कृतं मया। जगदीश करिष्यमाणमप्यखिलं कर्म गणेश तेऽर्पितम् ॥ ३३॥ इति कृष्णमुखोद्गतं स्तवं गणराजस्य पुरः पठेन्नरः। सकलाधिविवर्जितो भवेत्सुतदारादिसुखी स मुक्तिभाक् ॥ ३४॥ ,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557 इति मुद्गलपुराणन्तर्वर्ति श्रीगणेशापराधक्षमापणस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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