Monday 30 April 2018

बुद्ध पूर्णिमा वैशाख पूर्णिमा

बुद्धम् शरणम् गच्छामि,,वैशाख पूर्णिमा**बुद्ध पूर्णिमा
वैशाख शुक्ल पूर्णिमा ! 30 अप्रैल सोमवार 2018 को -https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5।,,,,,,,,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557
"श्री भगवान बुद्ध जयंती महामहोत्सव"
के पावन पर्व पर-
"श्रीगौतम बुद्ध भगवान" को श्रद्धा पूर्वक
सादर नमन करते हुए आप सभी को
"हार्दिक शुभकामनाएं"!!!
"बुद्धम् शरणम् गच्छामि !
धम्मं शरणम् गच्छामि !
संघम् शरणम् गच्छामि !"
हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए "बुद्ध"
'विष्णु के नौवें अवतार' हैं।
अतः हिन्दुओं के लिए भी
यह दिन पवित्र माना जाता है।
इसी कारण बिहार स्थित
बोधगया नामक स्थान
हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों
के पवित्र तीर्थ स्थान हैं।
बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक
लोग मानते हैं और यह दुनिया का
चौथा सबसे बड़ा धर्म है।
गौतम बुद्ध"*
(सिद्धार्थ, महात्मा बुद्ध, शाक्य मुनि-
जन्म ५६३ ई.पूर्व - मृत्यु ४८३ई.पूर्व)
विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से एक
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे।
शाक्य नरेश राजा शुद्धोधन व
रानी महामाया के घर जन्मे 'सिद्धार्थ' विवाहोपरांत नवजात शिशु राहुल और
पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को
जरा, मरण और दु:खों से मुक्ति दिलाने
के मार्ग की तलाश में रात में राजपाठ
छोड़कर (जंगल) वन में चले गए।

गृह त्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों
तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने
कठोर तप किया। वर्षों की कठोर
साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में
'बोधी वृक्ष' के नीचे उन्हें 'ज्ञान' की प्राप्ति
हुई और वे 'सिद्धार्थ से बुद्ध' बन गए।
तभी से यह दिन 'बुद्ध पूर्णिमा' के रूप
में जाना और मनाया जाता है।

सच्चा 'आत्म बोध' प्राप्त कर लेने पर
इनका नाम 'बुद्ध' पड़ गया और उन्होंने
संसार में उसका प्रचार करके लोगों को कल्याणकारी धर्म की प्रेरणा देने की इच्छा प्रकट की। इसलिए गया से चलकर वे
'काशी पुरी' में चलें आए, जो उस समय
भी विद्या और धर्म चर्चा का एक प्रमुख
स्थान थी। यहाँ 'सारनाथ' नामक स्थान
में ठहरकर उन्होंने तपस्या करने वाले
व्यक्तियों और अन्य जिज्ञासु लोगों को
जो उपदेश दिया उसका वर्णन बौद्ध
धर्म ग्रंथों में इस प्रकार मिलता है।
गौतम बुद्ध के सिद्धांत"*
(१) जन्म दुःखदायी होता है। बुढा़पा
दुःखदायी होता है। बीमारी दुःखदायी
होती है। मृत्यु दुःखदायी होती है। वेदना,
रोना, चित्त की उदासीनता तथा निराशा
ये सब दुःखदायी हैं। बुरी चीजों का
संबंध भी दुःख देता है। आदमी जो
चाहता है उसका न मिलना भी दुःख
देता है।
*संक्षेप में 'लग्न के पाँचों खंड'
जन्म, बुढा़पा, रोग, मृत्यु और
अभिलाषा की अपूर्णता
दुःखदायक है।

(२) हे साधुओं ! पीडा़ का कारण इसी
'उदार सत्य' में निहित है। कामना-
जिससे दुनिया में फिर जन्म होता है,
जिसमें इधर- उधर थोडा़ आनंद मिल
जाता है- जैसे भोग की कामना, दुनिया
में रहने की कामना आदि भी अंत में
दुःखदायी होती है।

(३) हे साधुओं ! दुःख को दूर करने का
उपाय यही है कि कामना को निरंतर
संयमित और कम किया जाए। वास्तविक
सुख तब तक नहीं मिल सकता, जब तक
कि व्यक्ति कामना से स्वतंत्र न हो जाए
अर्थात् अनासक्त भावना से संसार के
सब कार्य न करने लगे।

(४) पीडा़ को दूर करने के आठ
उदार सत्य ये हैं-
*सम्यक् विचार *सम्यक् उद्देश्य
*सम्यक् भाषण *सम्यक् कार्य
*सम्यक् जीविका *सम्यक् प्रयत्न
*सम्यक् चित्त *सम्यक् एकाग्रता
सम्यक् का आशय यही है कि-
वह बात देश, काल, पात्र के
अनुकूल और कल्याणकारी हो।

*इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए
बुद्ध ने 'तीन मूल बातों' को जान लेने
की आवश्यकता बतलाई-
(१) संसार में जो कुछ भी दिख पड़ता है,
सब अस्थायी और शीघ्र नष्ट होने वाला है।
(२) जो कुछ दिख पड़ता है उसमें दुःख
छिपा हुआ है।
(३) इनमें से किसी में स्थायी आत्मा नहीं है, सब नष्ट होंगे।

*जब सभी चीजें नष्ट होने वाली हैं, तब
इनके फंदे में क्यों फँसा जाए? तपस्या
तथा उपवास करने से इनसे छुटकारा
नहीं मिल सकता।

*छुटकारे की जड़ तो मन है। मन ही मूल
और महामंत्र है। उसको इन सांसारिक
विषयों से खींचकर साफ और निर्मल
कर दो, तो मार्ग स्वयं स्पष्ट हो जायेगा।
राग और कामना (झूठा प्रेम व लालच)
न रहने से तुम्हारे बंधन स्वयं टूट जायेंगे।

*धर्म का सीधा रास्ता यही है कि शुद्ध मन
से काम करना, शुद्ध हृदय से बोलना,
शुद्ध चित्त रखना।

*कार्य, वचन तथा विचार की शुद्धता के
लिए ये दस आज्ञाएँ माननी चाहिए-
(१) किसी की हत्या न करना
(२) चोरी न करना
(३) दुराचार न करना
(४) झूठ न बोलना
(५) दूसरों की निंदा न करना
(६) दूसरों का दोष न निकालना
(७) अपवित्र भाषण न करना
(८) लालच न करना
(९) दूसरों से घृणा न करना
(१०) अज्ञान से बचना।

*भगवान् बुद्ध ने समझाया कि-
जो संसार में रहते हुए इन नियमों का
पालन करेगा और सबसे प्रेम- भाव
रखते हुए भी राग- द्वेष से अपने को
पृथक् रखेगा, वह अपने जीवन- काल
में और शरीरांत के पश्चात् भी सब प्रकार
के अशुभ परिणामों से मुक्त रहेगा।
बुद्ध के अंतिम शब्द
हे भिक्षुओं, इस समय आज तुमसे
इतना ही कहता हूँ कि जितने भी
संस्कार हैं, सब नाश होने वाले हैं,
प्रमाद रहित हो कर अपना
कल्याण करो।"!!Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557

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