Tuesday, 10 July 2018

चंद्रग्रहण 27=28 जुलाई की रात 11=54 बजे से शुरू होकर रात के 3=49 बजे समाप्त होगा। 3=55



चंद्रग्रहण 27=28 जुलाई की रात 11=54 बजे से शुरू होकर रात के 3=49 बजे समाप्त होगा। 3=55 घंटे लंबे इस ग्रहण का सूतक 27 जुलाई की दोपहर 2=54 बजे से ही लग जाएगा
साल का दूसरा एवं आखिरी चंद्रग्रहण 27=28 जुलाई की दरमियानी रात पड़ेगा। चंद्रग्रहण 27 जुलाई की रात 11=54 बजे से शुरू होकर रात के 3=49 बजे समाप्त होगा। 3=55 घंटे लंबे इस ग्रहण का सूतक 27 जुलाई की दोपहर 2=54 बजे से ही लग जाएगा। शहर के अधिकतर ज्योतिषियों और पंडितों का कहना है कि ग्रहण के सूतक से पहले गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाना श्रेष्ठ है। इसके लिए शहर में गुरु पूर्णिमा पर होने वाले बड़े आयोजन एक दिन पहले यानि 26 जुलाई को आयोजित किए जाएंगे। इसी दिन धूमधाम से कई जगहों पर गुरुपूर्णिमा मनाई जाएगी
आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा शुक्रवार 27 जुलाई को है। इसी दिन गुरु पूर्णिमा भी है। इसी तारीख में रात को खग्रास चंद्रग्रहण होगा। इस तरह का संयोग पूरे 104 साल बाद बन रहा है। गुरुपूर्णिमा के दिन ही चंद्रग्रहण होने के चलते इसका सूतक दोपहर से लग जाएगा। गुरुपूर्णिमा एक दिन पहले 26 जुलाई को मनाई जाएगी। उन्होंने बताया कि चंद्रग्रहण 27 और 28 जुलाई की मध्य रात्रि में लगने वाला ग्रहण करीब 3 घंटे 55 मिनट का होगा। चंद्रग्रहण का सूतक दिन में 2=54 मिनट से होगा। गुरु पूर्णिमा शहर में सूतक लगने के कारण कुछ स्थानों पर गुरु पूर्णिमा एक दिन पहले 26 जुलाई को मनाई जाएगी। रात 10 बजकर 21 मिनट पर पूर्णिमा तिथि का प्रवेश होगा। सूतक में मंदिर के पट बंद रहते हैं। जलपान, भोजन बंद रहता है। रात्रिकालीन कार्यक्रम जागरण, भंडारा, पूजा-पाठ वर्जित के कारण गुरु पूर्णिमा एक दिन पहले भी मनाना कोई दोष नहीं है, क्योंकि पूर्णिमा का प्रवेश रात्रि में होगा
ग्रहण ऐसे समय में पड़ रहे हैं जब 9 में से 6 ग्रह वक्री अर्थात उल्टी चाल चल में रहेंगे। साथ ही 18 जुलाई को नवग्रहों में कालसर्प योग की छाया रहेगी। इसके कारण सभी ग्रह राहु-केतु के अधीन आ जाएंगे। यह संयोग न केवल मानसून को प्रभावित करेगा बल्कि प्राकतिक आपदाओं की आशंकाएं भी पैदा करता है। 27 को भारत में पड़ रहा खग्रास चंद्र ग्रहण का प्रारंभ रात 11=54 बजे होगा, जबकि इसकी समाप्ति रात 3=49 पर होगी। इससे 18 जुलाई से एक महीने तक विश्व में कहीं भी जन्म लेने वाले शिशु की कुंडली में कालसर्प दोष रहेगा
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय राहु देवताओं के बिच छल से बैठ गया था। समुद्र मंथन में निकले चौदह रत्न में अम्रत भी था। जब मोहनी रूप धारण कर भगवान विष्णु देवताओं को अमृत पिला रहे थे, उसी समय राहु भी देवताओं का रूप धारण कर छल से देवताओं की पंक्ति में बैठ गया। उसने देवताओं के साथ-साथ अमृत पान कर लिया।
सूर्य और चंद्रमा ने राहु को ऐसा करते हुए देख लिया। उन्होंने भगवान विष्णु को तत्कल इसके बारे में बताया तो क्रोध में भगवान विष्णु ने चक्र से राहु का सिर काट दिया, लेकिन तब तक राहु अमृतपान कर चुका था। इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई उसका मस्तक वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु बन गया।
देवताओं के साथ छल-छदम का दुष्परिणाम तो आखिरकार राहु को भुगतना ही पड़ा। मगर, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें अपने दुष्कर्म पर पछताप भी नहीं होता। राहु के साथ भी ऐसा ही था। चंद्रमा और और सूर्य ने राहु को ऐसा करते हुए पकड़ा था, तब से राहु उनसे बैर रखता है। वह समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा को ग्रसने की कोशिश करता है, जिससे ग्रहण लगता है।
राहु और केतु ग्रह तो है नहीं, तो क्या हैं
राहु और केतु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। इन्हें छाया ग्रह की क्षेणी में रखा गया है। दरअसल, हर वयक्ति या वस्तु की छाया होती है। उसी तरह ग्रहों की छाया को भी ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। जब सूर्य, चंद्रमा और धरती एक सीध में आ जाते हैं, तो सूर्य की छाया को यदि पृथ्वी रोक लेती है, तो चंद्रमा दिखाई नहीं देता है
इस स्थिति में चंद्र ग्रहण होता है। वहीं, जब सूर्य और धरती के बीच चंद्रमा आ जाता है, तो वह सूर्य की छाया को धरती तक नहीं पहुंचने देता है, जिससे सूर्य ग्रहण होता है। यानी पिंड की छाया दूसरे पिंडों पर पड़ने से ही सूर्य और चंद्र ग्रहण होते हैं। यह छाया ही राहु और केतु कहलाती है।
ज्योतिष में गणना बिंदु हैं राहु और केतु
सूर्य के चारों ओर धरती परिक्रमा करती है और धरती के चारों ओर चंद्रमा घूमता है। ये दोनों परिभ्रमण पथ एक-दूसरे को 2 बिंदुओं पर काटते हैं। सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी एवं सूर्य, चन्द्र के परिभ्रमण-पथ पर कटने वाले दोनों बिंदु लंबवत होते हैं। इन्हीं बिंदुओं के एक सीध में होने पर अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण और पूर्णिमा की रात को चंद्र ग्रहण होता है। प्राचीन ज्योतिषियों ने इन बिंदुओं को महत्वपूर्ण समझते हुए इन बिंदुओं का नाम 'राहु' और 'केतु' रखा था।
कुंडली में राहु-केतु परस्पर 6 राशि और 180 अंश की दूरी पर होते हैं, जो सामान्यत: कुंडली में आमने-सामने स्थित होते हैं। इनकी दैनिक गति 3 कला और 11 विकला हैं। ज्योतिष के अनुसार 18 वर्ष 7 माह 18 दिवस और 15 घटी- ये संपूर्ण राशियों में भ्रमण करते हैं
ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय
सनातन धर्मानुसार ऋषि मुनियों ने इनके दुष्प्रभाव से बचने के लिए कुछ उपाय बताए हैं जो कि निम्न है:
1.ग्रहण में सभी वस्तुओं में कुश डाल देनी चाहिए कुश से दूषित किरणों का प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि कुश जड़ी- बूटी का काम करती है.
2. ग्रहण के समय तुलसी और शमी के पेड़ को नहीं छूना चाहिए. कैंची, चाकू या फिर किसी भी धारदार वस्तु का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
3. ग्रहण में किसी भी भगवान की मूर्ति और तस्वीर को स्पर्श नहीं चाहिए. इतना ही नहीं सूतक के समय से ही मंदिर के दरवाजे बंद कर देने चाहिए.
4. ग्रहण के दिन सूतक लगने के बाद छोटे बच्चे, बुजुर्ग और रोगी के अलावा कोई व्यक्ति भोजन नहीं करे.
5. ग्रहण के समय खाना पकाने और खाना नहीं खाना चाहिए, इतना ही नहीं सोना से भी नहीं चाहिए. ऐसा कहा जाता है कि ग्रहण के वक्त सोने और खाने से सेहत पर बुरा असर पड़ता है.
6. क्योंकि ग्रहण के वक्त वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो कि बच्चे और मां दोनों के लिए हानिकारक मानी जाती है.
7. गर्भावस्था की स्थिति में ग्रहण काल के समय अपने कमरे में बैठ कर के भगवान का भजन ध्यान मंत्र या जप करें.
8. ग्रहण काल के समय प्रभु भजन, पाठ , मंत्र, जप सभी धर्मों के व्यक्तियों को करना चाहिए, साथ ही ग्रहण के दौरान पूरी तन्मयता और संयम से मंत्र जाप करना विशेष फल पहुंचाता है. इस दौरान अर्जित किया गया पुण्य अक्षय होता है। कहा जाता है इस दौरान किया गया जाप और दान, सालभर में किए गए दान और जाप के बराबर होता है.
9. ग्रहण के दिन सभी धर्मों के व्यतियों को शुद्ध आचरण करना चाहिए
10. किसी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहिए, सब के साथ करना चाहिए.
11. सभी के साथ अच्छा व्यवहार करें, और मीठा बोलें.
12. ग्रहण के समय जाप, मंत्रोच्चारण, पूजा-पाठ और दान तो फलदायी होता ही है.
13. ग्रहण मोक्ष के बाद घर में सभी वस्तुओं पर गंगा जल छिड़कना चाहिए, उसके बाद स्नान आदि कर के भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए और हवन करना चाहिए और भोजन दान करना चाहिए. धर्म सिंधु के अनुसार ग्रहण मोक्ष के उपरांत हवन करना, स्नान, स्वर्ण दान, तुला दान, गौ दान भी श्रेयस्कर है.
14. ग्रहण के समय वस्त्र, गेहूं, जौं, चना आदि का श्रद्धानुसार दान करें , जो कि श्रेष्ठकर होता है
चन्द्रग्रहण का राशियों पर प्रभाव रहेगा
15 शुभफलदायक-मेष, सिंह, वृश्चिक, मीन
16 मध्यमफलदायक-वृषभ, कर्क, कन्या, धनु
16 अशुभ फलदायक-मिथुन, तुला, मकर, कुंभ
17 अत: वृषभ, कर्क, कन्या, धनु, मिथुन, तुला, मकर, कुंभ राशिवाले जातकों को ग्रहण के दर्शन करना शुभ नहीं रहेगा।
18 यह खग्रास चन्द्रग्रहण मकर राशि पर मान्य है इसलिए मकर राशिवाले जातकों को यह ग्रहण विशेष रूप से अनिष्ट फलदायक रहेगा। ग्रहण अवधि में घर रहकर अपने ईष्टदेव का पूजन, जप, तप, आराधन करना श्रेयस्कर रहेगा।
19 मिथुन, तुला, मकर, कुंभ राशिवालों को नीचे दी गई वस्तुओं का दान करना लाभप्रद रहेगा
मिथुन-हरे वस्त्र, मूंग, हरे फ़ल, कांसा, धार्मिक पुस्तकें इत्यादि।
20 तुला-श्वेत वस्त्र, सौंदर्य सामग्री, चांदी, चावल, दूध-दही, शकर, घी, सफ़ेद फूल इत्यादि।
21 मकर-काला वस्त्र, उड़द, काले-तिल, सुगन्धित तेल, छाता, कम्बल इत्यादि।
22 कुंभ नीला वस्त्र, कोयला, चमड़े के जूते, लोहा, सरसों का तेल, इमरती इत्यादि।
23   ॐ अमृतंग अन्गाये विद्ममहे कलारुपाय धीमहि,तन्नो सोम प्रचोदयात
ॐ अत्रि पुत्राय विद्महे सागरोद्भवाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्
ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि, तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात!
24  चन्द्रः कर्कटकप्रभुः सितनिभश्चात्रेयगोत्रोद्भव
श्चाग्नेयः चतुरस्स्र्रवारुणमुखश्चापोप्युमाधीश्वरः ।।
षट्सप्ताग्निदशशोभनफलो ज्ञोरिः गुरोर्कप्रियः
स्वामीयामुनदेशजो हिमकरः कुर्यात्सदा मङ्गलम् ।।
25  सेतो वर्ण भएका, कर्कटराशिका मालिक, गोचरमा छैठौं, सातौं र दसौं स्थानमा शुभफल प्रदान गर्ने, सूर्य र बृहस्पति मित्र भएका, बुध शत्रु हुने, यामुनदेशमा उत्पन्न, उमा र ईश्वर अधिदेवता हुने, ग्रहसभामा आग्नेयकोणमा धनुष आकारमा विराजमान, आग्नेय दिशाका मालिक आत्रेयगोत्र भएका चन्द्रले हामीलाई माङ्गल्य प्रदान गरून् 

ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:।
वाक् सिद्धि हेतु,,,ॐ ह्लीं दूं दूर्गाय: नम:
लक्ष्मी प्राप्ति हेतु तांत्रिक मंत्र,,,,ॐ श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं ॐ स्वाहा:।
नौकरी एवं व्यापार में वृद्धि हेतु प्रयोग.,,,ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।

मुकदमे में विजय के लिए,,,ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ओम् स्वाहा।।
।।,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557



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