Monday, 16 July 2018

गुरु पूर्णिमा, आषाढ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप मेंमनाया जाता है.

गुरु पूर्णिमा, आषाढ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप मेंमनाया जाता है. हमारी संकृति में गुरु का विशेष महत्व है. गुरु ही हमें ईश्वर से मिलने का मार्ग हमें दिखाते है और हमें सद्‌गति प्रदान करते है. हमारे जन्मदाता तो माता पिता हैं, पर हमारे कर्म के दाता गुरुदेव है. इनकी शरण में आकर दुखिया और रोगी को चैन मिल जाता है. गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा का विधान है. प्राचीन काल में विार्थी प्रायः गुरुकुलों में ही शिक्षा प्राप्त करने जाते थे. छात्र इस दिन श्रृद्धा भाव से प्रेरित अपने गुरू का पूजन करके अपनी सामर्थ्य के अनुसार गुरुजी को प्रसन्न करते थे. इस दिन विद्या ग्रहण करने वाले छात्रों को पूजा आदि से निवृत्त होकर अपने गुरु के पास जाकर वस्त्र, फल व माला अर्पण करके उन्हें प्रसन्न करना चाहिए. गुरु का आशीर्वाद ही मंगलकारी और ज्ञानवर्द्धक होता है. चारों वेदों के व्याख्याता गुरु व्यास थे. हमें वेदों का दान देने वाले व्यास जी ही हैं. इसलिए वो हमारे आदि गुरु हुए. गुरु पूर्णिमा के दिन ही ऋषि व्यास का भी जन्मदिन मनाया जाता है. उन की स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने गुरु को व्यास जी का ही अंश मान कर सम्मानपूर्वक उन की पूजा करनी चाहिए. गुरु की कृपा से ही विद्या की प्राप्ति होती है.
गुरु के महत्व को हमारे सभी संतो, ऋषियों एवं महान विभूतियों ने उध स्थान दिया है. संस्कृत में गु का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान)एवं रु का अर्थ होता है प्रकाश(ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं.
हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं. जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, सांसारिक दुनिया में हमें प्रथम बार बोलना, चलना तथा शुरुआती आवश्यकताओं को सिखाते हैं. अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है. जीवन का विकास सुचारू रूप से चलता रहे, उसके लिए हमें गुरु की आवश्यकता होती है. भावी जीवन का निर्माण गुरू द्वारा ही होता है.
मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विशेष योगदान है. महर्षि वाल्मीकि जिनका पूर्व नाम रत्नाकर था. वे अपने परिवार कापालन पोषण करने हेतु दस्युकर्म करते थे. महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की, ये तभी संभव हो सका, जब गुरू रूपी नारद जी ने उनका ह्दय परिर्वतित किया. मित्रों, पंचतंत्र की कथाएं हम सब ने सुनी है. नीति कुशल गुरू विष्णु शर्मा ने किस तरह राजा अमरशक्ति के तीनों अज्ञानी पुत्रों को कहानियों एवं अन्य माध्यमों से उन्हें ज्ञानी बना दिया.
गुरु शिष्य का संबंध सेतु के समान होता है. गुरू की कृपा से शिष्य के लक्ष्य का मार्ग आसान होता है.
स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से परमात्मा को पाने की चाह थी. उनकी ये इच्छा तभी पूरी हो सकी, जब उनको गुरु परमहंस का आशीर्वाद मिला. गुरु की कृपा से ही आत्म साक्षात्कार हो सका.
छत्रपति शिवाजी पर अपने गुरु समर्थ गुरु रामदास का प्रभाव हमेशा रहा.
गुरु द्वारा कहा एक शब्द या उनकी छवि मानव की कायापलट सकती है. कबीर दास जी का अपने गुरु के प्रति जो समर्पण था, उसको स्पष्ट करना आवश्यक है क्योंकि गुरु के महत्व को सबसे ज्यादा कबीर दास जी के दोहों में देखा जा सकता है. एक बार रामानंद जी गंगा स्नान को जा रहे थे, सीढी उतरते समय उनका पैर कबीर दास जी के शरीर पर पड गया. रामानंद जी के मुख से राम-राम शब्द निकल पडा. उसी शब्द को कबीर दास जी ने दीक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपने गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया. ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि जीवन में गुरु के महत्व का वर्णन कबीर दास जी ने अपने दोहों में पूरी आत्मियता से किया है.
गुरू गोविंद दोऊ खडे काके लागू पांव
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय.
गुरू का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ है. हमारे सभ्य सामाजिक जीवन का आधार स्तभ गुरू हैं। कई ऐसे गुरू हुए हैं, जिन्होने अपने शिष्य को इस तरह शिक्षित किया कि उनके शिष्यों ने राष्ट्र की धारा को ही बदल दिया।
आचार्य चाणक्य ऐसी महान विभूती थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। गुरू चाणक्य कुशल राजनितिज्ञ एवं प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में विश्व विख्यात हैं। उन्होने अपने वीर शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को शासक पद पर सिहांसनारूढ करके अपनी जिस विलक्षंण प्रतिभा का परिचय दिया उससे समस्त विश्व परिचित है।
गुरु हमारे अंतर मन को आहत किये बिना हमें सभ्य जीवन जीने योग्य बनाते हैं। दुनिया को देखने का नजरिया गुरू की कृपा से मिलता है। पुरातन काल से चली आ रही गुरु महिमा को शब्दों में लिखा ही नही जा सकता। संत कबीर भी कहते हैं कि
सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा न जाए॥
गुरु पूर्णिमा के पर्व पर अपने गुरु को सिर्फ याद करने का प्रयास है। गुरू की महिमा बताना तो सूरज को दीपक दिखाने के समान है। गुरु की कृपा हम सब को प्राप्त हो। अंत में कबीर दास जी के निम्न दोहे से अपनी कलम को विराम देते हैं।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥
इस दिन क्या करना चाहिए
१. जिसने अपने गुरु बनाए हैं वह गुरु के दर्शन करें।
२. हिन्दु शास्त्र में श्री आदि शंकराचार्य को जगतगुरु माना जाता है इसलिए उनकी पूजा करनी चाहिए।
३. गुरु के भी गुरु यानि गुरु दत्तात्रेय की पूजा करनी चाहिए एवं दत बावनी का पठन करना चाहिए।
ज्योतिष और कुंडली के आधार पर नीचे दी गयी स्थिति में गुरु यंत्र रखना चाहिए, एवं गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए-
१. आपकी कुंडली में गुरु नीचस्थ राशि में यानि की मकर राशि में है तो गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए।
२. गुरु-राहु, गुरु-केतु या गुरु-शनि युति में होने पर भी यह यंत्र लाभदायी है।
३. आपकी कुंडली में गुरु नीचस्थ स्थान में यानि कि ६, ८ या १२ वे स्थान में है तो आपको गुरु यंत्र रखना चाहिए एवं उसकी नियमित तौर पर पूजा करनी चाहिए।
४. कुंडली में गुरु वक्री या अस्त है तो गुरु अपना बल प्राप्त नहीं कर पाता, इसलिए आपको इस यंत्र की पूजा करनी चाहिए।
५. जिनकी कुंडली में विद्याभ्यास, संतान, वित्त एवं दाम्पत्यजीवन सम्बंधित तकलीफ है तो उन्हें विद्वान ज्योतिष की सलाह लेकर गुरु का रत्न पुखराज कल्पित करना आवश्यक है।
६. इस के अलावा आपकी कुंडली में हो रहे हर तरह के वित्तीय दोष को दूर करने के लिए आप श्री यंत्र की पूजा करेंगे तो अधिक लाभ होगा।

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