Tuesday, 11 September 2018

गणेश चतुर्थी 22- अगस्त -2020

गणेश चतुर्थी 22- अगस्त -2020 मुहूर्त गणेश पूजा - सुबह 11- 02 से दिन 13- 32 चंद्र दर्शन से बचने का समय सुबह - 08- 59 से रात 21- 20 - 22 अगस्त चतुर्थी तिथि आरंभ - 23- 02 - रात 21 अगस्त - चतुर्थी तिथि समाप्त- रात 19:56 - 22 अगस्त भगवान गणपति को घर में विराजमान करने का विधान है।


 आइये, हम आपको बताते हैं कि किस प्रकार गणपति को अपने घर में विराजमान करें। कैसे उनका आह्वान करें। गणपति का आह्वान ठीक उसी प्रकार होता है, जैसे आप गृह प्रवे संकल्प: पहले दाएं हाथ में अक्षत और गंगाजल लेकर संकल्प करें कि हम गणपति को अपने घर तीन, पांच, सात और दस दिन के लिए विराजमान करेंगे। ऊं गणेशाय नम: मंत्र के साथ संकल्प लें। यह संकल्प हुआ कि आप भगवान गणपति को अपने घर में विराजमान करेंगे। प्रतिदिन उनकी पूजा करेंगे। आह्वान: संकल्प के बाद आप गणपति जी को लेकर आइये। लेकिन इससे पहले घर का सजाए-संवारे। घर स्वच्छ हो। जिस स्थान पर विराजमान करना हो, वह पवित्र होना चाहिए। आह्वान करें कि हे गणपति, हम आपको अपने घर में ......( दिन का उल्लेख करें) के लिए अपने समस्त परिवार.....( परिवार के सदस्यों के नाम लें).....अमुक गोत्र...( गोत्र का नाम लें) घर में सुख शांति समृद्धि के लिए प्रतिष्ठापित कर रहे हैं। हे गणपति, आप हमारी मनोकामनाएं पूरी करें और ऋद्धि-सिद्धि के साथ विराजमान हों। ज्ञात-अज्ञात यदि हमसे कोई भूल हो जाए तो आप क्षमा करना। आह्वान मंत्र कोई भी हो सकता है। यदि संस्कृत श्लोक न कर सकें तो ऊं गणेशाय नम: का ही जाप करते रहें। पूजा स्थल नियत दिन पर आप गणपति को अपने घर में विराजमान करें। कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं। चार हल्दी की बिंदी लगाएं। एक मुट्ठी अक्षत रखें। इस पर छोटा बाजोट, चौकी या पटरा रखें। लाल, केसरिया या पीले वस्त्र को उस पर बिछाएं। रंगोली, फूल, आम के पत्ते और अन्य सामग्री से स्थान को सजाएं। एक तांबे का कलश पानी भर कर, आम के पत्ते और नारियल के साथ सजाएं। यह समस्त तैयारी गणेश उत्सव के आरंभ होने के पहले कर लें। गणपति की प्रतिष्ठापना जब गजानन को लेने जाएं तो स्वच्छ और नवीन वस्त्र धारण करें। यथासंभव, चांदी की थाली में स्वास्तिक बनाकर और फूल-मालाओं से सजाकर उसमें गणपति को विराजमान करके लाएं। यदि चांदी की थाली संभव न हो पीतल या तांबे की भी चलेगी। मूर्ति बड़ी है तो आप हाथों में लाकर भी विराजमान कर सकते हैं। जब घर में विराजमान करें तो मंगलगान करें, कीर्तन करें। गणपति को लड्डू का भोग लगाएं। लाल पुष्प चढ़ाएं। प्रतिदिन प्रसाद के साथ पंच मेवा जरूर रखें। पांच इलायची और पांच कमलगट्टे भगवान गणपति के आगे एक छोटी कटोरी में पांच छोटी इलायची और पांच कमलगट्टे रख दें। गणेश चतुर्थी तक इनको गणपति के आगे ही रहने दें। चतुर्थी के बाद कमलगट्टे एक लाल कपड़े में करके पूजा स्थल पर रहने दें और छोटी इलायची को गणपति का प्रसाद मानते हुए ग्रहण कर लें। यह समस्त कार्यों की सिद्धि का उपाय है। सारे कष्ट इससे समाप्त होते हैं। चंद्रमा, राहू, केतू की छाया भी नहीं पड़ेगी। पूजन विधि : आचमन- ॐ केशवाय नम:। ॐ नारायणाय नम:। ॐ माधवाय नम:। कहकर हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें एवं ॐ ऋषिकेशाय नम: कहकर हाथ धो लें। इसके बाद शरीर शुद्धि करें.. ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। इसका ध्यान रखें जल से भरा हुआ कलश गणेश जी के बाएं रखें। चावल या गेहूं के ऊपर स्थापित करें। कलश पर मौली बांधें एवं आमपत्र के साथ एक नारियल उसके मुख पर रखें। गणेश जी के स्थान के सीधे हाथ की तरफ घी का दीपक एवं दक्षिणावर्ती शंख रखें। गणेश जी का जन्म मध्याह्न में हुआ था, इसलिए मध्याह्न में ही प्रतिष्ठापित करें। 10 दिन तक नियमित समय पर आरती करें। पूजा का समय नियत रखें। जाप माला की संख्या भी नियत ही रखें। गणेश जी के सम्मुख बैठकर उनसे संवाद करें। मंत्रों का जाप करें। अपने कष्ट कहें। शिव परिवार की आराधना अवश्य करें यानी भगवान शंकर और पार्वती जी का ध्यान अवश्य करें। सुपारी गणेश और मिट्टी के गणेश भी रख सकते हैं यदि आपकी सामर्थ्य न हो तो आप घर में सुपारी गणेश और पीली मिट्टी से गणेशाकृति बनाकर उनको स्थापित कर सकते हैं। इसमे कोई दोष नहीं है। सुपारी गणेश और पीली मिट्टी के गणेश जी बनाकर स्थापित करने से वास्तु दोष भी समाप्त होते हैं। लेकिन इतना ध्यान रखें कि पूजा नियमित हो। पीली मिट्टी के गणेश जी का स्नान नहीं हो सकता, इसलिए गंगाजल के छींटे लगा सकते हैं। गणेश पूजन (सरलतम विधि ) लम्बी सूंड, बड़ी आँखें ,बड़े कान ,सुनहरा सिन्दूरी वर्ण यह ध्यान करते ही प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का पवित्र स्वरुप हमारे सामने आ जाता है | सुखी व सफल जीवन के इरादों से आगे बढऩे के लिए बुद्धिदाता भगवान श्री गणेश के नाम स्मरण से ही शुरुआत शुभ मानी जाती है। जीवन में प्रसन्नता और हर छेत्र में सफलता प्राप्त करने हतु श्री गजानन महाराज के पूजन की सरलतम विधि विद्वान पंडित जी द्वारा बताई गयी है ,जो की आपके लिए प्रस्तुत है -प्रातः काल शुद्ध होकर गणेश जी के सम्मुख बैठ कर ध्यान करें और पुष्प, रोली ,अछत आदि चीजों से पूजन करें और विशेष रूप से सिन्दूर चढ़ाएं तथा दूर्बा दल(११या २१ दूब का अंकुर )समर्पित करें|यदि संभव हो तो फल और मीठा चढ़ाएं (मीठे में गणेश जी को मूंग के लड्डू प्रिय हैं ) अगरबत्ती और दीप जलाएं और नीचे लिखे सरल मंत्रों का मन ही मन 11, 21 या अधिक बार जप करें :- ॐ चतुराय नम: | ॐ गजाननाय नम: |ॐ विघ्रराजाय नम: | ॐ प्रसन्नात्मने नम: | पूजा और मंत्र जप के बाद श्री गणेश आरती कर सफलता व समृद्धि की कामना करें। सामान्य पूजन पूजन सामग्री (सामान्य पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,गंगाजल,सिन्दूर,रोली,रक्षा,कपूर,घी,दही,दूब,चीनी,पुष्प,पान,सुपारी,रूई,प्रसाद (लड्डू गणेश जी को बहुत प्रिय है) | विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें और आवाहन मंत्र पढकर अक्षत डालें | ध्यान श्लोक - शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये .. षोडशोपचार पूजन - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ध्यायामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आवाहयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आसनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अर्घ्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पाद्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पंचामृत स्नानं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . वस्त्र युग्मं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . यज्ञोपवीतं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आभरणानि समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . गंधं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अक्षतान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पैः पूजयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . प्रतिष्ठापयामि . और गणेश जी के इन नामों का जप करें - ॐ गणपतये नमः॥ ॐ गणेश्वराय नमः॥ ॐ गणक्रीडाय नमः॥ ॐ गणनाथाय नमः॥ ॐ गणाधिपाय नमः॥ ॐ एकदंष्ट्राय नमः॥ ॐ वक्रतुण्डाय नमः॥ ॐ गजवक्त्राय नमः॥ ॐ मदोदराय नमः॥ ॐ लम्बोदराय नमः॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः॥ ॐ विकटाय नमः॥ ॐ विघ्ननायकाय नमः॥ ॐ सुमुखाय नमः॥ ॐ दुर्मुखाय नमः॥ ॐ बुद्धाय नमः॥ ॐविघ्नराजाय नमः॥ ॐ गजाननाय नमः॥ ॐ भीमाय नमः॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥ ॐ आनन्दाय नमः॥ ॐ सुरानन्दाय नमः॥ ॐमदोत्कटाय नमः॥ ॐ हेरम्बाय नमः॥ ॐ शम्बराय नमः॥ ॐशम्भवे नमः ॥ॐ लम्बकर्णाय नमः ॥ॐ महाबलाय नमः॥ॐ नन्दनाय नमः ॥ॐ अलम्पटाय नमः ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐमेघनादाय नमः ॥ॐ गणञ्जयाय नमः ॥ॐ विनायकाय नमः ॥ॐविरूपाक्षाय नमः ॥ॐ धीराय नमः ॥ॐ शूराय नमः ॥ॐवरप्रदाय नमः ॥ॐ महागणपतये नमः ॥ॐ बुद्धिप्रियायनमः ॥ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ॐ रुद्रप्रियाय नमः॥ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ॐ उमापुत्राय नमः ॥ ॐ अघनाशनायनमः ॥ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥ॐमूषकवाहनाय नः ॥ ॐ सिद्धिप्रदाय नमः॥ॐ सिद्धिपतयेनमः ॥ॐ सिद्ध्यै नमः ॥ॐ सिद्धिविनायकाय नमः॥ ॐ विघ्नाय नमः ॥ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥ॐ सिंहवाहनायनमः ॥ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥ ॐ कटिंकटाय नमः ॥ॐराजपुत्राय नमः ॥ॐ शकलाय नमः ॥ॐ सम्मिताय नमः॥ ॐ अमिताय नमः ॥ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः ॥ॐदुर्जयाय नमः ॥ॐ धूर्जयाय नमः ॥ ॐ अजयाय नमः ॥ॐभूपतये नमः ॥ॐ भुवनेशाय नमः ॥ॐ भूतानां पतये नमः॥ ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ॐविश्वमुखाय नमः ॥ॐ विश्वरूपाय नमः ॥ ॐ निधये नमः॥ॐ घृणये नमः ॥ॐ कवये नमः ॥ॐ कवीनामृषभाय नमः॥ ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥ॐज्येष्ठराजाय नमः ॥ॐ निधिपतये नमः ॥ ॐनिधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थायनमः ॥ॐ सूर्यमण्डलमध्यगाय नमः ॥ ॐकराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ॐ पूषदन्तभृतेनमः ॥ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥ ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ॐकुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥ॐ कुण्डलिने नमः॥ ॐ हारिणे नमः ॥ॐ वनमालिने नमः ॥ॐ मनोमयाय नमः ॥ॐवैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥ ॐ पादाहत्याजितक्षितयेनमः ॥ॐ सद्योजाताय नमः ॥ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥ ॐमेखलिन नमः ॥ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ॐदुस्स्वप्नहृते नमः ॥ॐ प्रहसनाय नमः ॥ ॐ गुणिनेनमः ॥ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ॐ सुरूपाय नमः ॥ॐसर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥ ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥ॐपीताम्बराय नमः ॥ॐ खड्गधराय नमः ॥ ॐखण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ॐ चित्राङ्कश्यामदशनायनमः ॥ॐ फालचन्द्राय नमः ॥ ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ॐयोगाधिपाय नमः ॥ॐ तारकस्थाय नमः ॥ॐ पुरुषाय नमः॥ ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ॐविजयस्थिराय नमः ॥ ॐ गणपतये नमः ॥ॐ ध्वजिने नमः ॥ॐदेवदेवाय नमः ॥ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥ ॐ वायुकीलकायनमः ॥ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥ॐ नादाय नमः ॥ ॐनादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ॐ वराहवदनाय नमः ॥ॐमृत्युञ्जयाय नमः ॥ ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ॐइच्छाशक्तिधराय नमः ॥ॐ देवत्रात्रे नमः ॥ ॐदैत्यविमर्दनाय नमः ॥ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः ॥ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ॐशम्भुतेजसे नमः ॥ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥ ॐगौरीसुखावहाय नमः ॥ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ॐगौरीतेजोभुवे नमः ॥ ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ॐयज्ञकायाय नमः ॥ॐ महानादाय नमः ॥ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥ ॐ शुभाननाय नमः ॥ॐ सर्वात्मने नमः ॥ॐसर्वदेवात्मने नमः ॥ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥ ॐककुप्छ्रुतये नमः ॥ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥ॐ चिद्व्योमफालाय नमः ॥ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ॐजगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥ ॐ अग्न्यर्कसोमदृशेनमः ॥ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ॐ धर्माय नमः ॥ॐधर्मिष्ठाय नमः ॥ ॐ सामबृंहिताय नमः ॥ॐग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ॐवासवनासिकाय नमः ॥ ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥ॐसोमार्कघण्टाय नमः ॥ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥ ॐनदीनदभुजाय नमः ॥ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥ॐतारकानखाय नमः ॥ ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥ॐब्रह्मविद्यामदोत्कटाय नमः ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः॥ ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ॐअर्णवोदराय नमः ॥ ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षःकिन्नरमानुषाय नमः|| उत्तर पूजा - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . धूपं आघ्रापयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . दीपं दर्शयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . नैवेद्यं निवेदयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . फलाष्टकं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ताम्बूलं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . कर्पूर नीराजनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंगल आरतीं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलिः समर्पयामि यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च | तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंत्र पुष्पं समर्पयामि | वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा | प्रार्थनां समर्पयामि | आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं | पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम | क्षमापनं समर्पयामि | ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुनरागमनाय च || वृहद पूजन विधि पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर | विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें - और आवाहन करें - गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं | उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम || आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव | यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव || और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें -अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च | अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन || आसन- रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम | आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः || पाद्य (पैर धुलना)- उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम | पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम || आर्घ्य(हाथ धुलना )- अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै :| करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते || आचमन - सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः || स्नान - गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:| स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे || दूध् से स्नान - कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम | पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं | दही से स्नान- पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं | दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां || घी से स्नान - नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं | घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम || शहद से स्नान- तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः | तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम || शर्करा (चीनी) से स्नान - इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम || पंचामृत से स्नान - पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं | पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम || शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान -मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम | तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम || वस्त्र -सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे | मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां || उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा )- सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : | वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो || यज्ञोपवीत - नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : || मधुपर्क -कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां || गन्ध - श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम | विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां || रक्त(लाल )चन्दन- रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम | मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम || रोली - कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम | कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: || सिन्दूर- सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् || शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां || अक्षत -अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः || पुष्प- पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: | पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां || पुष्प माला - माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो | मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: || बेल का पत्र - त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : || दूर्वा - त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि | सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव || दूर्वाकर - दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम |आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:|| शमीपत्र - शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी || अबीर गुलाल - अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च । अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे || आभूषण - अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान | गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: | सुगंध तेल ,, चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां || धूप- वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां || दीप - आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया | दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम || नैवेद्य- शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां | मध्येपानीय - अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या | त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि || ऋतुफल- नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम | कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां || आचमन - गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम || अखंड ऋतुफल - इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि || ताम्बूल पूंगीफलं - पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम | एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां || दक्षिणा(दान)- हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: | अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे || आरती - चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च | त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम || पुष्पांजलि ,,नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च | पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: || प्रार्थना- रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक: भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात || अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम || श्री गणेश जी की आरती जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा | माता जाकी पारवती,पिता महादेवा | एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी | मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी || जय अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया | बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया || जय हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा | लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा || जय दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी कामना को पूरा करो जग बलिहारी | Gyanchand Bundiwal. 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