श्री बाबा रामदेवजी जन्मोत्सव
घनी घनी खम्मा बाबा रामदेवजी ने ! बाबा भली करे !! जय बाबा री !!"
जयंती एवं समाधिस्थ* महामहोत्सव" के पावन पर्व पर-
ॐ बाबा श्रीरामदेवजीॐ को श्रद्धा पूर्वक सादर नमन"
करते हुए, आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं"!!
श्रीरामदेवजी का जन्म वि.संवत् १४०९
(१३५२ ई.) में भाद्रपद शुक्ल द्वितीया
को पोकरण (राज.) के राजा अजमलजी
तंवर के घर हुआ।
जन्म कथा" : कुछ विद्वान मानते हैं कि-
एक बार राजा अनंगपाल तीर्थयात्रा को
निकलते समय पृथ्वीराज चौहान को
राजकाज सौंप गए। तीर्थयात्रा से लौटने
के बाद पृथ्वीराज चौहान ने उन्हें राज्य
पुनः सौंपने से इंकार कर दिया। अनंगपाल
और उनके समर्थक दुखी हो जैसलमेर की
शिव तहसील में बस गए। कालान्तर मे
इन्हीं अनंगपाल के वंशजों में पोकरण के
राजा अजमल और मेणादे थे। नि:संतान
अजमल दंपत्तिश्रीकृष्ण के अनन्य
उपासक थे। एक बार कुछ किसान
खेत में बीज बोने जा रहे थे कि उन्हें
राजा अजमलजी रास्ते में मिल गए।
किसानों ने नि:संतान अजमलजी के
कारण शकुन खराब होने की आपस
में बातें की व ताना दिया। इन बातों को
अजमलजी ने सुन लिया। तब दु:खी
मन से अजमलजी ने अपने मन्दिर में
भगवान श्रीकृष्ण के दरबार में अपनी
व्यथा प्रस्तुत की। भगवान् श्रीकृष्ण ने
इस पर स्वप्न में उन्हें आश्वस्त किया कि
वे स्वयं उनके घर अवतार लेंगे।
तत्पश्चात् पुत्र "रामदेव" के रूप में
जन्मे श्रीकृष्ण पालने में खेलते
अवतरित हुए और अपने चमत्कारों से
लोगों की आस्था का केंद्र बनते गए।
उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने
लगीं, तेज प्रकाश से सारा नगर
जगमगाने लगा। महल में जितना भी
पानी था वह दूध में बदल गया, महल
के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक
कुम कुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए।
महल के मंदिर में रखा शंख स्वत: बज
उठा। उसी समय राजा अजमल जी को
भगवान द्वारकानाथ के दिये हुए वचन
याद आये और एक बार पुन: द्वारकानाथ
की जय बोली। इस प्रकार ने द्वारकानाथ
ने राजा अजमलजी के घर अवतार लिया।
ॐ श्री रामदेवाय नम:
जय श्री रामदेव सर्व सिद्धिकारी
ॐ श्री रामदेवाय नम:
भारत की इस पवित्र धरती पर समय-समय
पर अनेक संतों, महात्माओं, वीरों व
सत्पुरुषों ने जन्म लिया है । युग की आवश्यकतानुसार उन्होंने अपने व्यक्तित्व
और कृतित्व के बल से दुखों से त्रस्त
मानवता को दुखों से मुक्ति दिला कर
जीने की सही राह दिखाई।
१५वीं.शताब्दी के आरम्भ में भारत में
लूट खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम
झगडों आदि के कारण स्थितिया बड़ी
अराजक बनी हुई थी।
ऐसे विकट समय में पश्चिम राजस्थान
के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर में तोमर
वंशीय राजपूत शासक अजमालजी के
घर भाद्रपद शुक्ला द्वितीया संवत् १४०९
को बाबा रामदेवजी अवतरित हुए।
द्वारकानाथ ने राजा अजमलजी के घर अवतार लिया।
गुरु बालीनाथजी" की कृपा से, "लीले
घोड़े" के असवार "रामदेवजी" ने संवत्
१४२५ में पोकरण से (करिब ४ कोस)
१२ कि०मी० उत्तर दिशा में एक गांव
की स्थापना की जिसका नाम "रूणिचा"
रखा। लोग आकर रूणिचा में बसने लगे।
रूणिचा गांव (रामदेवरा) बड़ा सुन्दर
और रमणीय बन गया।
उन्होंने पोखरण राज्य अपनी बहिन
लच्छाबाई को दहेज में दे दिया और
रूणिचा के राजा बने।
बाबा श्रीरामदेवजी अतिथियों की
सेवा में ही अपना धर्म समझते थे।
अंधे, लूले-लंगड़े, कोढ़ी व दुखियों को
हमेशा हृदय से लगाकर रखते थे । इधर
रामदेव जी की माता मैणादे एक दिन
अपने पति राजा अजमलजी से कहने
लगी कि अपना राजकुमार बड़ा हो
गया है अब इसकी सगाई कर दीजिये
ताकि हम भी पुत्र वधु देख सकें । जब
बाबा रामदेव जी (द्वारकानाथ) ने जन्म
(अवतार) लिया था उस समय रूक्मणी
को वचन देकर आये थे कि मैं तेरे
साथ विवाह रचाऊंगा। संवत् १४२६ में
अमर कोट के ठाकुर दलजी सोढा़ की
पुत्री नैतलदे के साथ श्रीरामदेवजी का
विवाह हुआ।
बाबा ने लोक में व्याप्त अत्याचार,
वैर-द्वेष, छुआछुत का विरोध कर
अछुतोद्धार का सफल आन्दोलन
चलाया। हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक
बाबा रामदेव ने अपने अल्प जीवन के
तेंतीस वर्षों में वह कार्य कर दिखाया
जो सैकडो वर्षों में भी होना सम्भव
नही था। सभी प्रकार के भेद-भाव को
मिटाने एवं सभी वर्गों में एकता स्थापित
करने की पुनीत प्रेरणा के कारण बाबा रामदेवजी जहाँ हिन्दुओ के देव है तो
मुस्लिमों के लिए रामसा पीर। मुस्लिम
भक्त बाबा को रामसा पीर कह कर
पुकारते है।
पीर 'रामसा पीर' कहा जाता है। सबसे
ज्यादा चमत्कारिक और सिद्ध पुरुषों में
इनकी गणना की जाती है।
राजस्थान के जनमानस में पॉँच पीरों
की प्रतिष्ठा है। जिनमे बाबा रामसापीर
का विशेष स्थान है।
पांच पीरों के बारे
में एक प्रसिद्ध दोहा इस प्रकार है:
"पाबू, हड़बू, रामदे, मांगलिया, मेहा।
पांचो पीर पधारज्यों, गोगाजी जेहा॥"
बाबा रामदेवजी घर घर जाते और लोगों
को उपदेश देते कि उँच-नीच, जात-पात
कुछ नहीं है, हर जाति को बराबर अधिकार मिलना चाहिये। बाबा रामदेव ने छुआछुत
के खिलाफ कार्य कर सिर्फ़ दलितों का
पक्ष ही नही लिया वरन् उन्होंने दलित
समाज की सेवा भी की ।
बाबा रामदेव जन्म से क्षत्रिय थे, लेकिन
उन्होंने डाली बाई नामक एक दलित
कन्या को अपने घर बहन-बेटी की
तरह रखकर पालन-पोषण कर समाज
को यह संदेश दिया कि कोई छोटा या
बड़ा नहीं होता। रामदेव बाबा को
डाली बाई एक पेड़ के नीचे मिली थी।यही कारण है
कि आज बाबा के भक्तो मे एक बहुत
बड़ी संख्या दलित भक्तों की है।
बाबा रामदेव पोकरण के शासक भी
रहे। लेकिन उन्होंने राजा बनकर नही
अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरुरत मंदों
की सेवा भी की । यही नही उन्होंने
पोकरण की जनता को 'भैरव राक्षस'
के आतंक से भी मुक्त कराया।
भैरव नाम के एक राक्षस ने पोकरण
में आतंक मचा रखा था।
'प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी' के
"मारवाड़ रा परगना री विगत" नामक
ग्रंथ में इस घटना का उल्लेख मिलता है।
भैरव राक्षस का आतंक पोखरण क्षेत्र
में ३६ कोस तक फैला हुआ था। यह
राक्षस मानव की सुगंध सूंघकर उसका
वध कर देता था। बाबा के गुरु
बालीनाथजी के तप से यह राक्षस
डरता था, किंतु फिर भी इसने इस क्षेत्र
को जीव हत्या कर दिया करता था।
अंत में बाबा रामदेवजी बालीनाथजी
के धूणे में गुदड़ी में छुपकर बैठ गए।
जब भैरव राक्षस आया और उसने
गुदड़ी खींची तब अवतारी रामदेवजी
को देखकर वह अपनी पीठ दिखाकर
भागने लगा और कैलाश टेकरी के पास
गुफा में जा घुसा। वहीं रामदेवजी ने घोड़े
पर बैठकर उसका वध कर दिया था।
इस प्रकार के अपने जीवनकाल में बाबा रामदेवजी ने इस तरह के २४ परचे दिए।
लोगों की रक्षा और सेवा करने के लिए
उनको कई चमत्कार दिखाए। आज
भी बाबा अपनी समाधि पर साक्षात
विराजमान हैं। आज भी वे अपने भक्तों
को चमत्कार दिखाकर उनके होने का
अहसास कराते रहते हैं। बाबा द्वारा
चमत्कार दिखाने को परचा देना कहते है।
आख़िर जन-जन की सेवा के
साथ सभी को एकता का पाठ पढाते
बाबा रामदेवजी ने भाद्रपद शुक्ला दशमी को जीवित समाधी ले ली।
श्रीबाबा रामदेवजी की समाधी
संवत् १४४२ (ई.१३८५) को
श्री बाबा रामदेवजी ने अपने हाथ में
श्रीफल लेकर सब बड़े बुढ़ों को प्रणाम
किया तथा सबने पत्र पुष्प् चढ़ाकर
रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा
से अन्तिम पूजन किया। रामदेवजी ने
समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने
अन्तिम उपदेश देते हुए कहा प्रति माह
की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ,
भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना,
रात्रि जागरण करना । प्रतिवर्ष मेरे
जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान
समाधिस्थ होने की स्मृति में मेरे समाधि
स्थल पर मेला लगेगा । मेरे समाधी पूजन
में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना
मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा।
इस प्रकार बाबा श्रीरामदेवजी महाराज
ने समाधी ली।
तबसे "समाधि स्थल" पर प्रतिवर्ष
"भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से दशमी" तक दर्शनार्थियों का वृहद मेला लगता है।
और बाबा रामदेवजी के भक्त दूर- दूर
से रुणिचा उनके दर्शनार्थ और मन्नत व
अराधना करने आते है । वे अपने भक्तों
के दु:ख दूर करते हैं, मुरादें पूरी करते हैं।
हर साल लगने वाले मेले में तो लाखों की
तादात में जुटी उनके भक्तो की भीड़ से
उनकी महत्ता व उनके प्रति जन समुदाय
की श्रद्धा का आकलन आसानी से
किया जा सकता है।
श्री रामदेव रक्षा करो,
हरो संकट संताप।
सुख कर्त्ता समरथ धणी,
जपु निरंतर जाप।।"
जय गुरुदेव !! जय रामापीर !!
घनी घनी खम्मा बाबा रामदेवजी ने !
बाबा भली करे !! जय बाबा री !!
घनी घनी खम्मा बाबा रामदेवजी ने ! बाबा भली करे !! जय बाबा री
रामदेवजी महाराज री आरती पिछम दिशा सूं म्हारा पीरजी पधारीया, घर अजमल अवतार लीयोंलाछा-सुगणाबाई करै हर री आरती !
हरजी भाटी चंमर ढोळेखम्मा खम्मा खम्मा रे कंवर अजमल रा, खम्मा खम्मा खम्मा रे कंवर
अजमल राविणा रे तंदुरा धणी रै नौपत बाजे, झालर रौ झणकार पड़े....लाछा-सुगणाबाई.....
धिरत मीठाई हरी रै चढ़े रे चुरमा, धुपौ री धमराळ पड़े....लाछा-सुगणाबाई.....
गंगा-जमुना बहे रे सरस्वती, रामदेव बाबौ स्नान करै....लाछा-सुगणाबाई.....
दुरांरै देसौरा बाबा आवै रे जातरूं, दरगा आगे नमन करै....लाछा-सुगणाबाई.....
छोटा-म्होटा टाबरिया पीरजी पुकारै, म्होटोड़ा तौ रामदेवजी कहवै जीयौ....लाछा-सुगणाबाई.....
हरि शरणौ में भाटी हरजी बोल्या, नवरे खंडौ में निशाण पड़ै....लाछा-सुगणाबाई.....
श्री रामदेव रक्षा करो, हरो संकट संताप।सुखकर्ता समरथ धणी जपुंनिरंतर जाप।।
श्री रामदेव रक्षा करो, हरो संकट संताप।सुख कर्त्ता समरथ धणी, जपु निरंतर जाप
जय गुरुदेव !! जय रामापीर !!घनी घनी खम्मा बाबा रामदेवजी ने !
बाबा भली करे !! जय बाबा री
सभी भक्तो को बाबा के अवतरण दिवस की शुभकामनाये.
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