Tuesday, 20 August 2019

बहुला चतुर्थी ,भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।

बहुला चतुर्थी व्रत से संबंधित एक बड़ी ही रोचक कथा प्रचलित है।
 जब भगवान विष्णु का कृष्ण रूप में अवतार हुआ तब इनकी लीला में शामिल होने के लिए देवी-देवताओं ने भी गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया। कामधेनु नाम की गाय के मन में भी कृष्ण की सेवा का विचार आया और अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में आ गई।
भगवान श्रीकृष्ण का बहुला गाय से बड़ा स्नेह था। एक बार श्रीकृष्ण के मन में बहुला की परीक्षा लेने का विचार आया। जब बहुला वन में चर रही थी तब भगवान सिंह रूप में प्रकट हो गए। मौत बनकर सामने खड़े सिंह को देखकर बहुला भयभीत हो गई। लेकिन हिम्मत करके सिंह से बोली, 'हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है। बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी।'
सिंह ने कहा कि सामने आए आहार को कैसे जाने दूं, तुम वापस नहीं आई तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा। बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर कहा कि मैं अवश्य वापस आऊंगी। बहुला की शपथ से प्रभावित होकर सिंह बने श्रीकृष्ण ने बहुला को जाने दिया। बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस वन में आ गई।
बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि 'हे बहुला, तुम परीक्षा में सफल हुई। अब से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ-माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी। तुम्हारी पूजा करने वाले को धन और संतान का सुख मिलेगा।

बहुला चौथ का पर्व मनाया जाएगा। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन बहुला चतुर्थी व्रत किया जाता है। इसे संकटनाशक चतुर्थी माना गया है। इसी दिन संकष्टी गणेश चतुर्थी होने के कारण यह व्रत अधिक महत्व का होगा। बहुला चतुर्थी व्रत में गौ-पूजन को बहुत महत्व दिया गया है।

बहुला चौथ की पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन माताएं कुम्हारों द्वारा मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती, कार्तिकेय-श्रीगणेश तथा गाय की प्रतिमा बनवा कर मंत्रोच्चारण तथा विधि-विधान के साथ इसे स्थापित करके पूजा-अर्चना करने की मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि इस तरह के पूजन से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं।
बहुला चतुर्थी (चौथ) तिथि को भगवान श्री कृष्ण ने गौ-पूजा के दिन के रूप में मान्यता प्रदान की है। अत: इस दिन श्री कृष्‍ण भगवान का गौ माता का पूजन भी किया जाता है।

कैसे करें बहुला चौथ का व्रत
बहुला चतुर्थी व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

इस चतुर्थी को आम बोलचाल की भाषा में बहुला चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।

इस दिन चाय, कॉफी या दूध नहीं पीना चाहिए, क्योंकि यह दिन गौ-पूजन का होने से दूधयुक्त पेय पदार्थों को खाने-पीने से पाप लगता है। इस संबंध में यह मान्यता है कि इस दिन गाय का दूध एवं उससे बनी हुई चीजों को नहीं खाना चाहिए।

जो व्यक्ति चतुर्थी को दिनभर व्रत रखकर शाम (संध्या) के समय भगवान श्री कृष्‍ण, शिव परिवार तथा गाय-बछड़े की पूजा करता है उसे अपार धन तथा सभी तरह के ऐश्वर्य और संतान की चाह रखने वालों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।

बहुला व्रत माताओं द्वारा अपने पुत्र की लंबी आयु की कामना के लिए रखा जाता है।

इस व्रत को करने से शुभ फल प्राप्त होता है, घर-परिवार में सुख-शांति आती है एवं मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

यह व्रत करने से परिवार और संतान पर आ रहे विघ्न संकट तथा सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं।

इतना ही नहीं यह व्रत जन्म-मरण की योनि से मुक्ति भी दिलाता है।
बहुला चौथ की कथा
विष्णु जी जब कृष्ण रूप में धरती में आये थे, तब उनकी बाल लीलाएं सभी देवी देवता को भाती थी. गोपियों के साथ उनकी रास लीला हो या माखन चोरी कर खाना, इन सभी बातों से वे सबका मन मोह लेते थे. कृष्ण जी लीलाओं को देखने के लिए कामधेनु जाति की गाय ने बहुला के रूप में नन्द की गोशाला में प्रवेश किया. कृष्ण जी को यह गाय बहुत पसंद आई, वे हमेशा उसके साथ समय बिताते थे. बहुला का एक बछड़ा भी था, जब बहुला चरने के लिए जाती तब वो उसको बहुत याद करता था।

एक बार जब बहुला चरने के लिए जंगल गई, चरते चरते वो बहुत आगे निकल गई, और एक शेर के पास जा पहुंची. शेर उसे देख खुश हो गया और अपना शिकार बनाने की सोचने लगा. बहुला डर गई, और उसे अपने बछड़े का ही ख्याल आ रहा था. जैसे ही शेर उसकी ओर आगे बढ़ा, बहुला ने उससे बोला कि वो उसे अभी न खाए, घर में उसका बछड़ा भूखा है, उसे दूध पिलाकर वो वापस आ जाएगी, तब वो उसे अपना शिकार बना ले. शेर ये सुन हंसने लगा, और कहने लगा मैं कैसे तुम्हारी इस बात पर विश्वास कर लूँ. तब बहुला ने उसे विश्वास दिलाया और कसम खाई कि वो जरूर आएगी।

बहुला वापस गौशाला जाकर बछड़े को दूध पिलाती है, और बहुत प्यार कर, उसे वहां छोड़, वापस जंगल में शेर के पास आ जाती है. शेर उसे देख हैरान हो जाता है. दरअसल ये शेर के रूप में कृष्ण होते है, जो बहुला की परीक्षा लेने आते हैं। कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ जाते हैं और बहुला को कहते है कि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुआ, तुम परीक्षा में सफल रही. समस्त मानव जाति द्वारा सावन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा अर्चना की जाएगी और समस्त जाति तुम्हें गौमाता कहकर संबोधित करेगी। कृष्ण जी ने कहा कि जो भी ये व्रत रखेगा उसे सुख, समृद्धि, धन, ऐश्वर्या व संतान की प्राप्ति होगी।

बहुला चतुर्थी का उत्सव कैसे मनाया जाए
1.बहुला चतुर्थी के पवित्र दिन पर, भक्त सुबह जल्दी उठते हैं, एक पवित्र स्नान करते हैं और फिर गायों के साथ-साथ बछड़ों को नहलाते हैं और उनके छप्पर (गायों के रहने का स्थान) को साफ करते हैं।
2.भक्त इस दिन बहुला चतुर्थी का उपवास रखते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लोगों को चाकू से कटा हुआ या गेहूं से बना कुछ भी खाद्य पदार्थ उपभोग करने की अनुमति नहीं होती है।
3.प्रार्थनाओं के लिए, भक्त भगवान कृष्ण या भगवान विष्णु के मंदिरों में जाते हैं।
4.भक्त भगवान कृष्ण या भगवान विष्णु की मूर्तियों या चित्रों की पूजा करके घर पर प्रार्थनाएं भी कर सकते हैं। धूप, फल, फूल और चंदन का उपयोग देवता की पूजा के लिए किया जाता है।
5.भक्त भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण के मंत्रों का उच्चारण करते हैं एवं ध्यान लगाते हैं।
6.संध्या के समय के दौरान, भक्त बछड़ों और गायों की पूजा करते हैं जिसे गोधुली पूजा के नाम से जाना जाता है।
7.अगर भक्तों के पास कोई गाय नहीं है तो वे गाय और बछड़े की तस्वीर की भी पूजा कर सकते हैं और उनकी प्रार्थना कर सकते हैं  .
Gyanchand Bundiwal.
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