बलराम (बलभद्र) 21 अगस्त 2019 भगवान वासुदेव के ब्यूह या स्वरूप हैं। उनका कृष्ण के अग्रज और शेष का अवतार होना ब्राह्मण धर्म को अभिमत है। जैनों के मत में उनका संबंध तीर्थकर नेमिनाथ से है। बलराम या संकर्षण का पूजन बहुत पहले से चला आ रहा था, पर इनकी सर्वप्राचीन मूर्तियाँ मथुरा और ग्वालियर के क्षेत्र से प्राप्त हुई हैं। ये शुंगकालीन हैं। कुषाणकालीन बलराम की मूर्तियों में कुछ व्यूह मूर्तियाँ अर्थात् विष्णु के समान चतुर्भुज प्रतिमाए हैं और कुछ उनके शेष से संबंधित होने की पृष्ठभूमि पर बनाई गई हैं। ऐसी मूर्तियों में वे द्विभुज हैं और उनका मस्तक मंगलचिह्नों से शोभित सर्पफणों से अलंकृत है। बलराम का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में उठा हुआ है और बाएँ में मदिरा का चषक है। बहुधा मूर्तियों के पीछे की ओर सर्प का आभोग दिखलाया गया है। कुषाण काल के मध्य में ही व्यूहमूर्तियों का और अवतारमूर्तियों का भेद समाप्तप्राय हो गया था, परिणामत: बलराम की ऐसी मूर्तियाँ भी बनने लगीं जिनमें नागफणाओं के साथ ही उन्हें हल मूसल से युक्त दिखलाया जाने लगा। गुप्तकाल में बलराम की मूर्तियों में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। उनके द्विभुज और चतुर्भुज दोनों रूप चलते थे। कभी-कभी उनका एक ही कुंडल पहने रहना "बृहत्संहिता" से अनुमोदित था। स्वतंत्र रूप के अतिरिक्त बलराम तीर्थंकर नेमिनाथ के साथ, देवी एकानंशा के साथ, कभी दशावतारों की पंक्ति में दिखलाई पड़ते हैं।
कुषाण और गुप्तकाल की कुछ मूर्तियों में बलराम को सिंहशीर्ष से युक्त हल पकड़े हुए अथवा सिंहकुंडल पहिने हुए दिखलाया गया है। इनका सिंह से संबंध कदाचित् जैन परंपरा पर आधारित है।
मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र के अतिरिक्त - जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही - बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया। हल, मूसल तथा मद्यपात्र धारण करनेवाले सर्पफणाओं से सुशोभित बलदेव बहुधा समपद स्थिति में अथवा कभी एक घुटने को किंचित झुकाकर खड़े दिखलाई पड़ते हैं। कभी-कभी रेवती भी साथ में रहती हैं।
जन्म
बलराम का जन्म यदूकुल में हुआ। कंस ने अपनी प्रिय बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव से विधिपुर्वक कराया।
जब कंस अपनी बहन को रथ में बिठा कर वसुदेव के घर ले जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई और उसे पता चला कि उसकी बहन का आठवाँ संतान ही उसे मारेगा।
कंस ने अपनी बहन को कारागार में बंद कर दिया और क्रमश: 6 पुत्रों को मार दिया, 7वें पुत्र के रूप में नाग के अवतार बलराम जी थे जिसे श्री हरि ने योगमाया से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया।
आठवें गर्भ में कृष्ण थे।
परिचय
बलभद्र या बलराम श्री कृष्ण के सौतेले बड़े भाई थे जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम हैं। बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी जिन्हें चित्रा भी कहते हैं। इनका ब्याह रेवत की कन्या रेवती से हुआ था। कहते हैं, रेवती 21 हाथ लंबी थीं और बलभद्र जी ने अपने हल से खींचकर इन्हें छोटी किया था।
इन्हें नागराज अनंत का अंश कहा जाता है और इनके पराक्रम की अनेक कथाएँ पुराणों में वर्णित हैं। ये गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। दुर्योधन इनका ही शिष्य था। इसी से कई बार इन्होंने जरासंध को पराजित किया था। श्रीकृष्ण के पुत्र शांब जब दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा का हरण करते समय कौरव सेना द्वारा बंदी कर लिए गए तो बलभद्र ने ही उन्हें दुड़ाया था। स्यमंतक मणि लाने के समय भी ये श्रीकृष्ण के साथ गए थे। मृत्यु के समय इनके मुँह से एक बड़ा साँप निकला और प्रभास के समुद्र में प्रवेश कर गया था।
बलराम जंयती का महत्व
बलराम जंयती का पर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार द्वापर युग में शेषनाग ने भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में जन्म लिया था। बलराम का अस्त्र हल है इसलिए बलराम को हलधर भी कहा जाता है। इसके अलावा बलराम ने मूसल को भी धारण किया है। बलराम जंयती के अन्य नाम भी है। इस जंयती को हलषष्ठी और हरछठ भी कहा जाता है। बलराम जंयती के दिन धरती से पैदा होने वाले अन्न को ग्रहण किया जाता है। इस जयंती को दूध और दही का सेवन नहीं किया जाता। यह दिन संतान संबंधी परेशानियों के लिए भी उत्तम माना जाता है। जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं होती वह इस व्रत को पूरे विधि विधान से करती हैं। संतान संबंधी परेशानियों के निवारण के लिए बलराम जंयती काफी शुभ मानी जाती है।
बलराम कौन थे
पुराणों के अनुसार बलराम को भगवान श्री कृष्म का बड़ा भाई माना जाता है। बलराम शेषनाग के ही अवतार थे। बलराम को अत्याधिक शक्तिशाली भी माना जाता था। बलराम ने ही दुर्योधन और भीम को गदा युद्ध सीखाया था। बलराम भी श्री कृष्ण की तरह ही देवकी की संतान थे। बलराम देवकी की संतान थे। कंस देवकी के सभी बच्चों की हत्या कर देता था। देवकी और वासुदेव के तप के बल पर यह सांतवा गर्भ वासुदेव की पहली पत्नी के गर्भ में स्थापित हो गया। लेकिन वासुदेव की पहली पत्नी के आगे यह समस्या थी कि वह इस बच्चे को कैसे पाले। क्योंकि उस समय वासुदेव कंस की करागार में बंद थे। इसलिए बलराम के जन्म लेते ही उन्हें नंद बाबा के यहां पलने के लिए भेज दिया।
बलराम जंयती पूजा विधि
1.बलराम जंयती के दिन महिलाओं को महूआ की दातुन से दांत साफ करने चाहिए।
2.इस दिन पूरे घर को भैंस गोबर से लिपा जाता है।
3.बलराम जंयती के दिन भगवान गणेश और माता गौरा कि पूजा की जाती है।
4.बलराम जंयती पर महिलाएं तालाब के किनारे या घर में ही तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं।
5.अतं मे महिलाएं बलराम जंयती की कथा सुनती हैं।
बलराम की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव एक ग्वालिन स्त्री गर्भवती थी। उसके प्रसव में कुछ समय ही बाकी था। लेकिन वह अपनी स्थिति की परवाह न करते हुए भी दूध दही को बेचने के लिए निकल पड़ी।
घर से कुछ दूर जाने पर पर ही उसे प्रसव पीड़ा शुरु हो गई और उसने झरबेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दे दिया। उसी दिन हल षष्ठी भी थी। वह ग्वालिन थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर से अपने काम पर चली गई। इससे हल षष्ठी का व्रत करने वाले लोगो का व्रत खंडित हो गया।
ग्वालिन की इस गलती के कारण झरबेरी के नीचे लेटे उसके बच्चे को किसान का हल लग गया। किसान ने जब उस बच्चे का रोना सुना तो वह अत्यंत ही दुखी हुआ और बच्चे को झरबेरी के कांटों से टांके लगाकर भाग गया।जब ग्वालिन वापस लौटी तो उसे अपने बच्चे मृत पाया ।
अपने बच्चे को देखकर अपना किया हुआ पाप याद आया। उसने तुरंत ही लोगों को जाकर पूरी बात बताई और अपने बच्चे की दशा के बारे में भी बताया। उसके इस प्रकार से क्षमा मांगने पर सभी गांव वालों ने उसे क्षमा कर दिया। जब ग्वालिन वापस उसी स्थान पर आई तो उसका बच्चा जिंदा था और वह खेल रहा था।।'
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मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र के अतिरिक्त - जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही - बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया। हल, मूसल तथा मद्यपात्र धारण करनेवाले सर्पफणाओं से सुशोभित बलदेव बहुधा समपद स्थिति में अथवा कभी एक घुटने को किंचित झुकाकर खड़े दिखलाई पड़ते हैं। कभी-कभी रेवती भी साथ में रहती हैं।
जन्म
बलराम का जन्म यदूकुल में हुआ। कंस ने अपनी प्रिय बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव से विधिपुर्वक कराया।
जब कंस अपनी बहन को रथ में बिठा कर वसुदेव के घर ले जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई और उसे पता चला कि उसकी बहन का आठवाँ संतान ही उसे मारेगा।
कंस ने अपनी बहन को कारागार में बंद कर दिया और क्रमश: 6 पुत्रों को मार दिया, 7वें पुत्र के रूप में नाग के अवतार बलराम जी थे जिसे श्री हरि ने योगमाया से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया।
आठवें गर्भ में कृष्ण थे।
परिचय
बलभद्र या बलराम श्री कृष्ण के सौतेले बड़े भाई थे जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम हैं। बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी जिन्हें चित्रा भी कहते हैं। इनका ब्याह रेवत की कन्या रेवती से हुआ था। कहते हैं, रेवती 21 हाथ लंबी थीं और बलभद्र जी ने अपने हल से खींचकर इन्हें छोटी किया था।
इन्हें नागराज अनंत का अंश कहा जाता है और इनके पराक्रम की अनेक कथाएँ पुराणों में वर्णित हैं। ये गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। दुर्योधन इनका ही शिष्य था। इसी से कई बार इन्होंने जरासंध को पराजित किया था। श्रीकृष्ण के पुत्र शांब जब दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा का हरण करते समय कौरव सेना द्वारा बंदी कर लिए गए तो बलभद्र ने ही उन्हें दुड़ाया था। स्यमंतक मणि लाने के समय भी ये श्रीकृष्ण के साथ गए थे। मृत्यु के समय इनके मुँह से एक बड़ा साँप निकला और प्रभास के समुद्र में प्रवेश कर गया था।
बलराम जंयती का महत्व
बलराम जंयती का पर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार द्वापर युग में शेषनाग ने भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में जन्म लिया था। बलराम का अस्त्र हल है इसलिए बलराम को हलधर भी कहा जाता है। इसके अलावा बलराम ने मूसल को भी धारण किया है। बलराम जंयती के अन्य नाम भी है। इस जंयती को हलषष्ठी और हरछठ भी कहा जाता है। बलराम जंयती के दिन धरती से पैदा होने वाले अन्न को ग्रहण किया जाता है। इस जयंती को दूध और दही का सेवन नहीं किया जाता। यह दिन संतान संबंधी परेशानियों के लिए भी उत्तम माना जाता है। जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं होती वह इस व्रत को पूरे विधि विधान से करती हैं। संतान संबंधी परेशानियों के निवारण के लिए बलराम जंयती काफी शुभ मानी जाती है।
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पुराणों के अनुसार बलराम को भगवान श्री कृष्म का बड़ा भाई माना जाता है। बलराम शेषनाग के ही अवतार थे। बलराम को अत्याधिक शक्तिशाली भी माना जाता था। बलराम ने ही दुर्योधन और भीम को गदा युद्ध सीखाया था। बलराम भी श्री कृष्ण की तरह ही देवकी की संतान थे। बलराम देवकी की संतान थे। कंस देवकी के सभी बच्चों की हत्या कर देता था। देवकी और वासुदेव के तप के बल पर यह सांतवा गर्भ वासुदेव की पहली पत्नी के गर्भ में स्थापित हो गया। लेकिन वासुदेव की पहली पत्नी के आगे यह समस्या थी कि वह इस बच्चे को कैसे पाले। क्योंकि उस समय वासुदेव कंस की करागार में बंद थे। इसलिए बलराम के जन्म लेते ही उन्हें नंद बाबा के यहां पलने के लिए भेज दिया।
बलराम जंयती पूजा विधि
1.बलराम जंयती के दिन महिलाओं को महूआ की दातुन से दांत साफ करने चाहिए।
2.इस दिन पूरे घर को भैंस गोबर से लिपा जाता है।
3.बलराम जंयती के दिन भगवान गणेश और माता गौरा कि पूजा की जाती है।
4.बलराम जंयती पर महिलाएं तालाब के किनारे या घर में ही तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं।
5.अतं मे महिलाएं बलराम जंयती की कथा सुनती हैं।
बलराम की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव एक ग्वालिन स्त्री गर्भवती थी। उसके प्रसव में कुछ समय ही बाकी था। लेकिन वह अपनी स्थिति की परवाह न करते हुए भी दूध दही को बेचने के लिए निकल पड़ी।
घर से कुछ दूर जाने पर पर ही उसे प्रसव पीड़ा शुरु हो गई और उसने झरबेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दे दिया। उसी दिन हल षष्ठी भी थी। वह ग्वालिन थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर से अपने काम पर चली गई। इससे हल षष्ठी का व्रत करने वाले लोगो का व्रत खंडित हो गया।
ग्वालिन की इस गलती के कारण झरबेरी के नीचे लेटे उसके बच्चे को किसान का हल लग गया। किसान ने जब उस बच्चे का रोना सुना तो वह अत्यंत ही दुखी हुआ और बच्चे को झरबेरी के कांटों से टांके लगाकर भाग गया।जब ग्वालिन वापस लौटी तो उसे अपने बच्चे मृत पाया ।
अपने बच्चे को देखकर अपना किया हुआ पाप याद आया। उसने तुरंत ही लोगों को जाकर पूरी बात बताई और अपने बच्चे की दशा के बारे में भी बताया। उसके इस प्रकार से क्षमा मांगने पर सभी गांव वालों ने उसे क्षमा कर दिया। जब ग्वालिन वापस उसी स्थान पर आई तो उसका बच्चा जिंदा था और वह खेल रहा था।।'
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