Sunday, 11 January 2015

श्री गायत्री चालीसा श्री गायत्री जी की आरती

 श्री गायत्री चालीसा   श्री गायत्री जी की आरती
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी । गायत्री नित कलिमल दहनी ॥ 
अक्षर चौबिस परम पुनीता । इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥ 
शाश्वत सतोगुणी सतरुपा । सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥ 
हंसारुढ़ सितम्बर धारी । स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥ 
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला । शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥ 
ध्यान धरत पुलकित हिय होई । सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥ 
कामधेनु तुम सुर तरु छाया । निराकार की अदभुत माया ॥ 
तुम्हरी शरण गहै जो कोई । तरै सकल संकट सों सोई ॥ 
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली । दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥ 
तुम्हरी महिमा पारन पावें । जो शारद शत मुख गुण गावें ॥ 
चार वेद की मातु पुनीता । तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥ 
महामंत्र जितने जग माहीं । कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥ 
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै । आलस पाप अविघा नासै ॥ 
सृष्टि बीज जग जननि भवानी । काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥ 
ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते । तुम सों पावें सुरता तेते ॥ 
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे । जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥ 
महिमा अपरम्पार तुम्हारी । जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥ 
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना । तुम सम अधिक न जग में आना ॥ 
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा । तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥ 
जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई । पारस परसि कुधातु सुहाई ॥ 
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई । माता तुम सब ठौर समाई ॥ 
ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे । सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥ 
सकलसृष्टि की प्राण विधाता । पालक पोषक नाशक त्राता ॥ 
मातेश्वरी दया व्रत धारी । तुम सन तरे पतकी भारी ॥ 
जापर कृपा तुम्हारी होई । तापर कृपा करें सब कोई ॥ 
मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें । रोगी रोग रहित है जावें ॥ 
दारिद मिटै कटै सब पीरा । नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥ 
गृह कलेश चित चिंता भारी । नासै गायत्री भय हारी ॥ 
संतिति हीन सुसंतति पावें । सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥ 
भूत पिशाच सबै भय खावें । यम के दूत निकट नहिं आवें ॥ 
जो सधवा सुमिरें चित लाई । अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥ 
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी । विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥ 
जयति जयति जगदम्ब भवानी । तुम सम और दयालु न दानी ॥ 
जो सदगुरु सों दीक्षा पावें । सो साधन को सफल बनावें ॥ 
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी । लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥ 
अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता । सब समर्थ गायत्री माता ॥ 
ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी । आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥ 
जो जो शरण तुम्हारी आवें । सो सो मन वांछित फल पावें ॥ 
बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ । धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥ 
सकल बढ़ें उपजे सुख नाना । जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥ 
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय । तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥ 
ॐ भूर्भवः स्वः त्तसवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
दोहा    हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ॥  

आरती श्री गायत्री जी की,,,,जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जगपालक क‌र्त्री॥ जयति ..
दु:ख शोक, भय, क्लेश कलश दारिद्र दैन्य हत्री।
ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिन जगत धातृ अम्बे।
भव भयहारी, जन-हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥ जयति ..
भय हारिणी, भवतारिणी, अनघेअज आनन्द राशि।
अविकारी, अखहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥ जयति ..
कामधेनु सतचित आनन्द जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥ जयति ..
ऋग, यजु साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्त्र सुषुमन शोभा गुण गरिमे॥ जयति ..
स्वाहा, स्वधा, शची ब्रह्माणी राधा रुद्राणी।
जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला कल्याणी॥ जयति ..
जननी हम हैं दीन-हीन, दु:ख-दरिद्र के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तउ बालक हैं तेरे॥ जयति ..
स्नेहसनी करुणामय माता चरण शरण दीजै।
विलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥ जयति ..
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन को पवित्र करिये॥ जयति ..
तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि-पुष्टि द्दाता।
सत मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥

Photo: "" ॐ भूर्भुवः स्वःतत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात ""
गायत्री मंत्र (वेद ग्रंथ की माता के मंत्र ) को हिन्दू धर्म में सबसे उत्तम मंत्र माना जाता है | यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है | इस मंत्र का मतलब है - हे प्रभु, क्रिपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये | यह मंत्र सूर्य देवता (सवितुर) के लिये प्रार्थना रूप से भी माना जाता है | हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं ,आप हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले हैं ,आप हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं | हे संसार के विधाता हमें शक्ति दो कि हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त कर सकें | क्रिपा करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें | गायत्री मंत्र के पहले नौं शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं |
ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
तत = वह, 
सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)धियो = बुद्धि,
यो = जो, 
नः = हमारी, 
प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)इस प्रकार से कहा जा सकता है कि गायत्री मंत्र में तीन पहलूओं क वर्णं है - स्त्रोत, ध्यान और प्रार्थना
इस मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। इन तीन समय को संध्याकाल भी कहा जाता हैं।
1.गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए।
2.मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर मध्यान्ह का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।
3.इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए।
इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।इस मंत्र के जप से हमें यह दस लाभ प्राप्त होते हैं | उत्साह एवं सकारात्मकता, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से घृणा होती है, परमार्थ में रूचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है, आर्शीवाद देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्रसिद्धि प्राप्त होती है, क्रोध शांत होताहै, ज्ञान की वृद्धि होती है।

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