Sunday 18 January 2015

साल में चार बार मां दुर्गा को समर्पित नवरात्र का आगाज होता है वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र आते हैं- माघ शुक्ल पक्ष व आषाढ़ शुक्ल पक्ष में।

साल में चार बार मां दुर्गा को समर्पित नवरात्र का आगाज होता है।सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

चैत्र या वासंतिक नवरात्र व आश्विन या शारदीय नवरात्र, जबकि इसके अतिरिक्त दो और नवरात्र भी हैं, जिनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। इन नवरोत्रों को गुप्त नवरात्र कहते हैं। वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र आते हैं- माघ शुक्ल पक्ष व आषाढ़ शुक्ल पक्ष में। इस प्रकार कुल मिला कर वर्ष में चार नवरात्र होते हैं। यह चारों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय मनाए जाते हैं।

कल से महापर्व गुप्त नवरात्र का आरंभ हो गया है। नवरात्र में मां दुर्गा के नव रूपों की पूजा होती है। देवी दुर्गा के नौ रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं। नवरात्र में देवी की साधना और अध्यात्म का अद्भुत संगम होता है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाए तो देवी का आशीर्वाद मिलता है और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

मंत्रों में बहुत शक्ति होती है। जो भक्त मां दुर्गा जी के निम्न मंत्र को सच्चे मन से भजता है उसकी प्रत्येक समस्या और परेशानियां दूर हो जाती है। किसी भी तरह के कल्याण के लिए करें सिद्ध मंत्र का जाप

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
सप्‍तश्र्लोकी दुर्गा का पाठ
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्रतः॥
देव्युवाच
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्‌।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥
विनियोगः
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः अनुष्टप्‌ छन्दः, श्रीमह्मकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥
॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌

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