Sunday, 20 August 2017

गणेश जी को खुश करने के उपाय राशि के अनुसार,,,गणेश चतुर्थी पर कैसे करें गणेश जी को खुश

गणेश जी को खुश करने के उपाय राशि के अनुसार,,,गणेश चतुर्थी पर कैसे करें गणेश जी को खुश,,गणेश उत्सव पर गणेश जी को खुश करने के लिए के 10 उपाय नित्य प्रात: व शायंकाल में गणेश की पूजा व दर्शन
बुधवार के दिन मूंग के लड्डू, दूर्वा, गुड़ एवं दक्षिणा गणपति भगवान को अर्पित करें
गणेश मन्त्रों का लाल चंदन की माला से ही जाप करें
पूजा में गणेश कवच, चालीसा, स्त्रोत तथा गणेश के 108 नामों का जाप करें
इन दिनों आप पूर्ण रूप ब्रहंचर्य का पालन करे तथा शुद्ध शाकाहार का सेंवन करें
मंगलवार के दिन गुड़ का भोग लगायें
नाखून काटना, बाल काटवाना, सेब करना आदि काम न करें
भूखे को मूंग की खिचड़ी खिलायें।
देशी घी व सिंदूर से गणेश भगवान की मालिश करें
21 ,दूर्वा की जोड़ी को गणेश स्त्रोत पढ़ने के बाद चढ़ाएं
गणेश चतुर्दशी है और शाम को भक्‍तगण वि‍घ्‍नहर्ता की कैसे पूजा करें और राशि‍यों के अनुसार कि‍तने लडडुओं का भोग कि‍स चीज में लगाकर करें और कि‍स मंत्र का जाप करें जि‍ससे गणेश जी प्रसन्‍न हो जायें और सभी के बि‍गडे हुये काम भी बनने लगेा बात
मेष राशि की करें इसके जातक 9 ,लडडू शहद में लपेट कर चढ़ातें हैं और ऊॅ गणेशाय नम: का जाप करते हैं तो उनके बि‍गड़े काम बनने लगेंगेा इसी प्रकार
वृष राशि के जातक यदि 6, लडडू का भोग गणेशजी को लगाकर ऊॅ वि‍घ्‍नाशाये नम: का मंत्र पढ़ते हैं तो उनके भी बि‍गड़े काम बनने शुरू हो जायेंगेा
मि‍थुन राशि के जातक गणेश जी को 5 ,,,लडडू पान के पत्‍ते पर रखकर चढा़ते हुये ऊॅ लम्‍बोदराय नम:मंत्र का जाप करते हैं तो गणेशजी उनकी सारी परेशानि‍यों को हर लेंगे
कर्क राशि के लोग गणेश जी को खुश करने के लिए 4,, लडडू दूध में लगाकर चढ़ाते हैं और ऊॅ पार्वती नम: मंत्र का जाप करते हैं तां उनके भी दुख दूर होने लगेंगेा
सिह राशि के लोग 10, लडडू शहद में मि‍लाकर चढ़ाते हैं और ऊॅ एकदंताये नम: मंत्र का जाप करते हैं तो उनके भी अच्‍छे दि‍न शुरू हो जायेंगेा
कन्‍या राशि के लोग 5, लडडू दूर्वा घास मि‍लाकर गणेश जी को अर्पित करते हैं और ऊॅ वटवै नम:मंत्र जपते हैं तो उनकी भी सारी परेशानी गणेशजी दूर कर देंगेा
तुला राशि के लोग 6, लडडू मलाई लगाकर गणेशजी को भोग लगाते हैं और ऊॅ सूपकर्णाय नम: मंत्र का जाप करते हैं तो उनकी भी सारी परेशानी दूर हो जायेगी ।इसी प्रकार
वृश्‍चि‍क राशि के लोग 9, लडडू शहद में मि‍लाकर ऊॅ गणेशाय नम:मंत्र का जाप,
धनु राशि के लोग 21, लडडू शक्‍कर डालकर एंव ऊॅ सिद्धिवि‍नायक नम: मंत्र का जाप,
मकर राशि के जातक 8,,लडडू ऊॅ वि‍नाकाय नम:का जाप,
कुंभ राशि के लोग 8,,लडडू को सौंफ में मि‍लाकर चढ़ाते हैं और ऊॅ वक्रतुंडाय नम:मंत्र का जाप और
मीन राशि के लोग 21,, लडडू केसर मि‍लाकर चढ़ाते हैं और ऊॅ पार्वतीपुत्राय नम: मंत्र का जाप करते हैं तो उनके बिगड़ हुये काम बनने लगेंगे।
।।Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.
गणेश जी का पूजन करने से सभी प्रकार के रोग, आर्थिक विपन्नता, भय, नौकरी, व्यवसाय, मकान, वाहन, विवाह, सन्तान, पदोन्नति आदि से जुड़ी समस्याओं का समाधान होगा।

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Friday, 18 August 2017

गणेश चतुर्थी 25 अगस्त को मनाई जाएगी पूजा का समय

गणेश चतुर्थी 25 अगस्त को मनाई जाएगी पूजा का समय / 11:00 से 13:30 ,,,अवधि = 2 घंटे 30 मिनट....गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतर्दर्शी तक यानी दस दिनों तक चलती है। इस बार ये 11 दिन चलेगी। 
चतुर्थारी तिथि प्रारम्भ = 24 / अगस्त / 2017 बजे 20:27 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्ति = 25 / अगस्त / 2017 बजे 20:31 बजे
गणेश जी को इस मंत्र से प्रसन्न करना चाहिए:
श्री गणेश मंत्र ॐ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
गणेश जी को प्रसन्न करने का एक मंत्र निम्न भी है:
ॐ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
मंत्र का जाप करने से गणेश जी बुद्धि प्रदान करते हैं:
श्री गणेश बीज मंत्र ॐ गं गणपतये नमः ।।
गणेश जी के इस मंत्र द्वारा सिद्धि की प्राप्ति होती है।
एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥
मंगल विधान और विघ्नों के नाश के लिए गणेश जी के इस मंत्र का जाप करें।
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌।
पूजा के दौरान गणेश जी के निम्न मंत्रों का प्रयोग करना चाहिए:
इस मंत्र के द्वारा भगवान गणेश को दीप दर्शन कराना चाहिए-
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् |
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने |
त्राहि मां निरयाद् घोरद्दीपज्योत
भगवान गणपति की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें सिन्दूर अर्पण करना चाहिए-
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् |
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ||

इस मंत्र के द्वारा भगवान गणेश को नैवेद्य समर्पण करना चाहिए-
नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरू |
ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गरतिम् ||
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च |
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद

भगवान गणेश की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें पुष्प-माला समर्पण करना चाहिए-

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो |
मयाहृतानि पुष्पाणि गृह्यन्तां पूजनाय भोः ||

गणपति पूजन के दौरान इस मंत्र के द्वारा भगवान गणेश को यज्ञोपवीत समर्पण करना चाहिए-

नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् | उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर

पूजा के दौरान इस मंत्र के द्वारा भगवान गजानन श्री गणेश को आसन समर्पण करना चाहिए-

नि षु सीड गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम् |
न ऋते त्वत् क्रियते किंचनारे महामर्कं मघवन्चित्रमर्च ||

गणेश पूजा के उपरान्त इस मंत्र के द्वारा भगवान् भालचंद्र को प्रणाम करना चाहिए

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय |
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ||

विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा करते समय इस मंत्र के द्वारा उनका आवाहन करना चाहिए-

गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे |
निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ||

इस मंत्र के द्वारा प्रातः काल भगवान श्री गणेश जी का स्मरण करना चाहिए-

प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम् |
तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयोः शिवाय ||

गणपति पूजन के समय इस मंत्र से भगवान गणेश जी का ध्यान करना चाहिए
खर्व स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम |
दंताघातविदारितारिरूधिरैः सिन्दूरशोभाकरं वन्दे शलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम् ||

गणेश जी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए। गणेश जी की मूर्ति को स्थापित पर सिन्दूर चढ़ाते हुए निम्न तरीके से गणेश जी की पूजा करनी चाहिए:
1.सबसे पहले गणेश प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाना चाहिए।
2.शुद्धिकरण के लिए प्रतिमा तथा स्थापना स्थल पर शुद्ध जल छिड़कते हुए गणेश जी के लिए फूलों का आसन सजाना चाहिए।
3.इसके उपरांत गणपति जी का ध्यान करते हुए निष्ठा भाव से पूजा करने का संकल्प लेना चाहिए।
4.गणेश जी की पूजा में दूर्वा का विशेष महत्त्व होता है, इसलिए दूर्वा से जल छिड़ककर मूर्ति को स्नान करवाना चाहिए।
5.गणेश प्रतिमा पर नए वस्त्र एवं उपवस्त्र चढ़ाने चाहिए।
6.सिन्दूर, फूल, दूर्वा चढ़ाते हुए सुगंधित धूप और दीप से गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।
7.गणेश जी की आरती उतारते हुए उन्हें विभिन्न प्रकार के फूल अर्पित करना चाहिए।
8.इसके बाद श्री फल या नारियल चढ़ाते हुए गणेश जी को 21 लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। इसमें से पांच लड्डू मूर्ति के पास छोड़कर बाकि भक्तों में प्रसाद के रूप में बांट देना चाहिए।
9.अंत में सभी गलतियों की छमा याचना करते हुए भगवान को प्रणाम करना चाहिए।
10.पूजा के दौरान "गं गणपतये नमः" मंत्र का जाप करना चाहिए।
11.24 / 08 / 2017 , चंद्रमा को न देखने का समय = 20:27 बजे 20:35
अवधि = 0 घंटे 8 मिनट
12 .25 / 08 / 2017 , चंद्रमा को न देखने का समय = 0 9: 01 से 21:15
अवधि = 12 घंटे 13 मिनट
गणपति विसर्जन तिथियाँ,,2017
26 अगस्त, 2017 को गणेश विसर्जन डेढ़ दिन पर होगा।
27 अगस्त, 2017 को गणेश विसर्जन तीसरे दिन होगा।
29 अगस्त, 2017 को गणेश विसर्जन 5 वें दिन होगा।
1 सितंबर, 2017 को गणेश विसर्जन 7 वें दिन होगा।
10 वें दिन गणेश विसर्जन 4 सितंबर, 2017 को होगा।
11 वें दिन (अनंत चतुर्दशी) गणेश विसर्जन 5 सितंबर, 2017 को होगा।
कुछ लोग गणेश चतुर्थी के अगले दिन गणेश विसर्जन करते हैं, हालांकि कुछ लोग गणेश चतुर्थी के बाद 3, 5, 7, 10 वें और 11 वें दिन पर गणेश विसर्जन करते हैं।
।॥Astrologer Gyanchand Bundiwal Nagpur M. 0 8275555557

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गणेश पूजन,, सरलतम विधि.. श्री गणेशाय नमः

गणेश पूजन,, सरलतम विधि.. श्री गणेशाय नमः लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि । तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥ 
लम्बी सूंड, बड़ी आँखें ,बड़े कान ,सुनहरा सिन्दूरी वर्ण यह ध्यान करते ही प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का पवित्र स्वरुप हमारे सामने आ जाता है | सुखी व सफल जीवन के इरादों से आगे बढऩे के लिए बुद्धिदाता भगवान श्री गणेश के नाम स्मरण से ही शुरुआत शुभ मानी जाती है। जीवन में प्रसन्नता और हर छेत्र में सफलता प्राप्त करने हतु श्री गजानन महाराज के पूजन की सरलतम विधि विद्वान पंडित जी द्वारा बताई गयी है ,जो की आपके लिए प्रस्तुत है -प्रातः काल शुद्ध होकर गणेश जी के सम्मुख बैठ कर ध्यान करें और पुष्प, रोली ,अछत आदि चीजों से पूजन करें और विशेष रूप से सिन्दूर चढ़ाएं तथा दूर्बा दल(११या २१ दूब का अंकुर )समर्पित करें|यदि संभव हो तो फल और मीठा चढ़ाएं (मीठे में गणेश जी को मूंग के लड्डू प्रिय हैं ) |
अगरबत्ती और दीप जलाएं और नीचे लिखे सरल मंत्रों का मन ही मन 11, 21 या अधिक बार जप करें :
ॐ चतुराय नम: |ॐ गजाननाय नम: |ॐ विघ्रराजाय नम: |ॐ प्रसन्नात्मने नम: |
पूजा और मंत्र जप के बाद श्री गणेश आरती कर सफलता व समृद्धि की कामना करें।
सामान्य पूजन,,,पूजन सामग्री (सामान्य पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,गंगाजल,सिन्दूर,रोली,रक्षा,कपूर,घी,दही,दूब,चीनी,पुष्प,पान,सुपारी,रूई,प्रसाद (लड्डू गणेश जी को बहुत प्रिय है) |
विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें और आवाहन मंत्र पढकर अक्षत डालें | 
ध्यान श्लोक - शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये 
षोडशोपचार पूजन - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ध्यायामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आवाहयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आसनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अर्घ्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पाद्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पंचामृत स्नानं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . वस्त्र युग्मं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . यज्ञोपवीतं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आभरणानि समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . गंधं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अक्षतान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पैः पूजयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . प्रतिष्ठापयामि 

उत्तर पूजा - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . धूपं आघ्रापयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . दीपं दर्शयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . नैवेद्यं निवेदयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . फलाष्टकं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ताम्बूलं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . कर्पूर नीराजनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंगल आरतीं समर्पयामि ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलिः समर्पयामि
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च |
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ..|
प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंत्र पुष्पं समर्पयामि |
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ |
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा |
प्रार्थनां समर्पयामि | आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं |
पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम |
क्षमापनं समर्पयामि |
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुनरागमनाय च ||
वृहद पूजन विधि
पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर |
विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -
आवाहन करें 
गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं |
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||
आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव |
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||

और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें -
अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च |
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन ||
आसन 
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम |
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||
पाद्य ,,पैर धुलना
उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम |
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम ||
आर्घ्य हाथ धुलना 
अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै :|
करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ||
आचमन 
सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |
आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ||
स्नान 
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:
स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ||
दूध् से स्नान 
कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम |
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ||
दही से स्नान
पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं |
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ||
घी से स्नान 
नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं |
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
शहद से स्नान
तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः |
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
शर्करा (चीनी) से स्नान 
इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम |
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
पंचामृत से स्नान 
पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं |
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान 
मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम |
तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||
वस्त्र 
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे |
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ||
उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा 
सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : |
वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ||
यज्ञोपवीत 
नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||
मधुपर्क 
कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ||
गन्ध 
श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम |
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ||
रक्त(लाल )चन्दन
रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम |
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ||
रोली 
कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम |
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ||
सिन्दूर 
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ||
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ||
अक्षत 
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ||
पुष्प
पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: |
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ||
पुष्प माला 
माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो |
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ||
बेल का पत्र 
त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : ||
दूर्वा 
त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि |
सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ||
दूर्वाकर 
दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम |
आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:||
शमीपत्र 
शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |
धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ||
अबीर गुलाल 
अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च |
अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ||
आभूषण 
अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान |
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ||
सुगंध तेल 
चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |
वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ||
धूप
वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ||
दीप 
आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ||
नैवेद्य
शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||
मध्येपानीय 
अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या |
त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ||
ऋतुफल
नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम |
कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां ||
आचमन 
गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |
आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम |
अखंड ऋतुफल 
इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ||
ताम्बूल पूंगीफलं 
पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम |
एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ||
दक्षिणा(दान)
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: |
अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ||
आरती 
चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |
त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||
पुष्पांजलि 
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च |
पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ||
प्रार्थना
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ||
अनया 
पूजया गणपति: प्रीयतां न मम ||
।॥Astrologer Gyanchand Bundiwal Nagpur M. 0 8275555557
श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा |
माता जाकी पारवती,पिता महादेवा ||
एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी |
मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी || जय
अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया |
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया || जय 
हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा || जय
दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी |
कामना को पूरा करो जग बलिहारी || जय

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Sunday, 13 August 2017

गोपालाक्षयकवचम्

गोपालाक्षयकवचम्
इन्द्राद्यमरवर्गेषु ब्रह्मन्यत्परमाऽद्भुतम् ।
अक्षयं कवचं नाम कथयस्व मम प्रभो ॥ १॥
यद्धृत्वाऽऽकर्ण्य वीरस्तु त्रैलोक्य विजयी भवेत् ।
ब्रह्मोवाच ।
शृणु पुत्र मुनिश्रेष्ठ कवचं परमाद्भुतम् ॥ २॥
इन्द्रादिदेववृन्दैश्च नारायणमुखाच्छ्रतम् ।
त्रैलोक्यविजयस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः ॥ ३॥
ऋषिश्छन्दो देवता च सदा नारायणः प्रभुः ।
अस्य श्रीत्रैलोक्यविजयाक्षयकवचस्य प्रजापतिऋर्षिः,
अनुष्टुप्छन्दः, श्रीनारायणः परमात्मा देवता,
धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः ।
पादौ रक्षतु गोविन्दो जङ्घे पातु जगत्प्रभुः ॥ ४॥
ऊरू द्वौ केशवः पातु कटी दामोदरस्ततः ।
वदनं श्रीहरिः पातु नाडीदेशं च मेऽच्युतः ॥ ५॥
वामपार्श्वं तथा विष्णुर्दक्षिणं च सुदर्शनः ।
बाहुमूले वासुदेवो हृदयं च जनार्दनः ॥ ६॥
कण्ठं पातु वराहश्च कृष्णश्च मुखमण्डलम् ।
कर्णौ मे माधवः पातु हृषीकेशश्च नासिके ॥ ७॥
नेत्रे नारायणः पातु ललाटं गरुडध्वजः ।
कपोलं केशवः पातु चक्रपाणिः शिरस्तथा ॥ ८॥
प्रभाते माधवः पातु मध्याह्ने मधुसूदनः ।
दिनान्ते दैत्यनाशश्च रात्रौ रक्षतु चन्द्रमाः ॥ ९॥

पूर्वस्यां पुण्डरीकाक्षो वायव्यां च जनार्दनः ।
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ॥ १०॥

तव स्नेहान्मयाऽऽख्यातं न वक्तव्यं तु कस्यचित् ।
कवचं धारयेद्यस्तु साधको दक्षिणे भुजे ॥ ११॥

देवा मनुष्या गन्धर्वा यज्ञास्तस्य न संशयः ।
योषिद्वामभुजे चैव पुरुषो दक्षिणे भुजे ॥ १२॥

निभृयात्कवचं पुण्यं सर्वसिद्धियुतो भवेत् ।
कण्ठे यो धारयेदेतत् कवचं मत्स्वरूपिणम् ॥ १३॥

युद्धे जयमवाप्नोति द्यूते वादे च साधकः ।
सर्वथा जयमाप्नोति निश्चितं जन्मजन्मनि ॥ १४॥

अपुत्रो लभते पुत्रं रोगनाशस्तथा भवेत् ।
सर्वतापप्रमुक्तश्च विष्णुलोकं स गच्छति ॥ १५॥
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॥ इति ब्रह्मसंहितोक्तं श्रीगोपालाक्षयकवचं सम्पूर्णम्

जय श्री कृष्ण ,जबते सुनी मैय्या जशोदा की ,वृषभानु लली झूलन कूबुलाई।

जय श्री कृष्ण ,जबते सुनी मैय्या जशोदा की ,वृषभानु लली झूलन कूबुलाई।हाथ हाथ कूदे लौ मोहन,आनंद सिंधु ह्रदय न समाई। बैठ सखियन सो करी बिनती ,कहै श्यामा कू कोउ किजौ युक्ती। जो संग झूलू नंदभवन तिहारे ,और भेद न जान पावै जेकोई। कही सखी सुनो ब्रजराजदुलारी ,सखी बना लै चलिहौ मोहन कू। पूछै जो मैय्या अति भौरी ,सखी दूजै गाम सो आयी बताई। लौ मोहनी भए भेष धर मोहन, चले लली संग अति अकुलाते। एक हाथ को घूंघट करिहो ,घाघरो चोली बड्यो सुहाई। लली को झूलन आनंद बढावो, कियो न्यारौ प्रबंध सबनते। देखी नवी सखी जो मैय्या पूछी, हाल सबै कह सखियन सुनाई। बैठी हिंडोला लाडली लाली ,बारी बारी ते सखियन संगै।अब लौ दैखो बारी मोहनी ,बन्यौ श्यामसुन्दर कौ आई।मैय्या सौ सकुचा रह्यो मोहन ,भेद खुल्यौ न कही छूवत लाली सो। पहिलौ झोटौ दियो सखियन ने, अंग लली ते लाल मिलाई। बिसरन लागी जबै सुध बुध सब ,मधुमंगल ओर भृकुटी सखी तानी। झट दौडो मैय्या कू पकरयौ ,कहै भूख मोये लग आयी माई। सुन मुस्काये आवन की कह ,मैय्या जबै गई भवन सौ भीतर। कब सौ रौक राखी हसी निकरी ,सखियन लोट पोट हुयी जाई। आनंद प्रेम सौ डूबै रहै दोउ,आनंद सखियन हिय उर बरसौ। प्राण प्यारौ युगल छबि की ,सबै सखिया बार बार बलि जाई।
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श्री गोविन्द दामोदरस्तोत्र ॥

श्री गोविन्द दामोदरस्तोत्र
अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानां दुःशासनेनाहृतवस्त्रकेशा ।
कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १॥
श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे ।
त्रायस्व मां केशव लोकनाथ गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २॥
विक्रेतुकामाखिलगोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्तिः ।
दध्यादिकं मोहवशादवोचद् गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३॥
उलूखले सम्भृततण्डुलाश्च सङ्घट्टयन्त्यो मुसलैः प्रमुग्धाः ।
गायन्ति गोप्यो जनितानुरागा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४॥
काचित्कराम्भोजपुटे निषण्णं क्रीडाशुकं किंशुकरक्ततुण्डम् ।
अध्यापयामास सरोरुहाक्षी गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५॥
गृहे गृहे गोपवधूसमूहः प्रतिक्षणं पिञ्जरसारिकाणाम् ।
स्खलद्गिरं वाचयितुं प्रवृत्तो गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६॥
पर्य्यङ्किकाभाजमलं कुमारं प्रस्वापयन्त्योऽखिलगोपकन्याः ।
जगुः प्रबन्धं स्वरतालबन्धं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ७॥

रामानुजं वीक्षणकेलिलोलं गोपी गृहीत्वा नवनीतगोलम् ।
आबालकं बालकमाजुहाव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ८॥

विचित्रवर्णाभरणाभिरामेऽभिधेहि वक्त्राम्बुजराजहंसि ।
सदा मदीये रसनेऽग्ररङ्गे गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ९॥

अङ्काधिरूढं शिशुगोपगूढं स्तनं धयन्तं कमलैककान्तम् ।
सम्बोधयामास मुदा यशोदा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १०॥

क्रीडन्तमन्तर्व्रजमात्मजं स्वं समं वयस्यैः पशुपालवालैः ।
प्रेम्णा यशोदा प्रजुहाव कृष्णं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ११॥

यशोदया गाढमुलूखलेन गोकण्ठपाशेन निबध्यमानः ।
रुरोद मन्दं नवनीतभोजी गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १२॥

निजाङ्गने कङ्कणकेलिलोलं गोपी गृहीत्वा नवनीतगोलम् ।
आमर्दयत्पाणितलेन नेत्रे गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १३॥

गृहे गृहे गोपवधूकदम्बाः सर्वे मिलित्वा समवाययोगे ।
पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १४॥

मन्दारमूले वदनाभिरामं विम्बाधरे पूरितवेणुनादम् ।
गोगोपगोपीजनमध्यसंस्थं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १५॥

उत्थाय गोप्योऽपररात्रभागे स्मृत्वा यशोदसुतबालकेलिम् ।
गायन्ति प्रोच्चैर्दधि मन्थयन्त्यो गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १६॥

जग्धोऽथ दत्तो नवनीतपिण्डो गृहे यशोदा विचिकित्सयन्ती ।
उवाच सत्यं वद हे मुरारे गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १७॥

अभ्यर्च्य गेहं युवतिः प्रवृद्धप्रेमप्रवाहा दधि निर्ममन्थ ।
गायन्ति गोप्योऽथ सखीसमेता गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १८॥

क्वचित् प्रभाते दधिपूर्णपात्रे निक्षिप्य मन्थं युवती मुकुन्दम् ।
आलोक्य गानं विविधं करोति गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १९॥

क्रीडापरं भोजनमज्जनार्थं हितैषिणी स्त्री तनुजं यशोदा ।
आजूहवत् प्रेमपरिप्लुताक्षी गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २०॥

सुखं शयानं निलये च विष्णुं देवर्षिमुख्या मुनयः प्रपन्नाः ।
तेनाच्युते तन्मयतां व्रजन्ति गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २१॥

विहाय निद्रामरुणोदये च विधाय कृत्यानि च विप्रमुख्याः ।
वेदावसाने प्रपठन्ति नित्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २२॥

वृन्दावने गोपगणाश्च गोप्यो विलोक्य गोविन्दवियोगखिन्नम् ।
राधां जगुः साश्रुविलोचनाभ्यां गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २३॥

प्रभातसञ्चारगता नु गावस्तद्रक्षणार्थं तनयं यशोदा ।
प्राबोधयत् पाणितलेन मन्दं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २४॥

प्रबालशोभा इव दीर्घकेशा वाताम्बुपर्णाशनपूतदेहाः ।
मूले तरूणां मुनयः पठन्ति गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २५॥

एवं ब्रुवाणा विरहातुरा भृशं व्रजस्त्रियः कृष्णविषक्तमानसाः ।
विसृज्य लज्जां रुरुदुः स्म सुस्वरं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २६॥

गोपी कदाचिन्मणिपिञ्जरस्थं शुकं वचो वाचयितुं प्रवृत्ता ।
आनन्दकन्द व्रजचन्द्र कृष्ण गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २७॥

गोवत्सबालैः शिशुकाकपक्षं बध्नन्तमम्भोजदलायताक्षम् ।
उवाच माता चिबुकं गृहीत्वा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २८॥

प्रभातकाले वरवल्लवौघा गोरक्षणार्थं धृतवेत्रदण्डाः ।
आकारयामासुरनन्तमाद्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २९॥

जलाशये कालियमर्दनाय यदा कदम्बादपतन्मुरारिः ।
गोपाङ्गनाश्चुक्रुशुरेत्य गोपा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३०॥

अक्रूरमासाद्य यदा मुकुन्दश्चापोत्सवार्थं मथुरां प्रविष्ठः ।
तदा स पौरैर्जयतीत्यभाषि गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३१॥

कंसस्य दूतेन् यदैव नीतौ वृन्दावनान्ताद् वसुदेवसूनू ।
रुरोद गोपी भवनस्य मध्ये गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३२॥

सरोवरे कालियनागबद्धं शिशुं यशोदातनयं निशम्य ।
चक्रुर्लुठन्त्यः पथि गोपबाला गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३३॥

अक्रूरयाने यदुवंशनाथं सङ्गच्छमानं मथुरां निरीक्ष्य ।
ऊचुर्वियोगत् किलगोपबाला गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३४॥

चक्रन्द गोपी नलिनीवनान्ते कृष्णेन हीना कुसुमे शयाना ।
प्रफुल्लनीलोत्पललोचनाभ्यां गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३५॥

मातापितृभ्यां परिवार्यमाणा गेहं प्रविष्टा विललाप गोपी ।
आगत्य मां पालय विश्वनाथ गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३६॥

वृन्दावनस्थं हरिमाशु बुद्ध्वा गोपी गता कापि वनं निशायाम् ।
तत्राप्यदृष्ट्वातिभयादवोचद् गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३७॥

सुखं शयाना निलये निजेऽपि नामानि विष्णो प्रवदन्ति मर्त्याः ।
ते निश्चितं तन्मयतां व्रजन्ति गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३८॥

सा नीरजाक्षीमवलोक्य राधां रुरोद गोविन्दवियोगखिन्नाम् ।
सखी प्रफुल्लोत्पललोचनाभ्यां गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३९॥

जिह्वे रसज्ञे मधुरप्रिया त्वं सत्यं हितं त्वं परमं वदामि ।
आवर्णयेथा मधुराक्षराणि गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४०॥

आत्यन्तिकव्याधिहरं जनानां चिकित्सकं वेदविदो वदन्ति ।
संसारतापत्रयनाशबीजं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४१॥

ताताज्ञया गच्छति रामचन्द्रे सलक्ष्मणेऽरण्यचये ससीते ।
चक्रन्द रामस्य निजा जनित्री गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४२॥

एकाकिनी दण्डककाननान्तात् सा नीयमाना दशकन्धरेण ।
सीता तदाक्रन्ददनन्यनाथा गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४३॥

रामाद्वियुक्ता जनकात्मजा सा विचिन्तयन्ती हृदि रामरूपम् ।
रुरोद सीता रघुनाथ पाहि गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४४॥

प्रसीद विष्णो रघुवंशनाथ सुरासुराणां सुखदुःखःहेतो ।
रुरोद सीता तु समुद्रमध्ये गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४५॥

अतर्जले ग्राहगृहीतपादो विसृष्टविक्लिष्टसमस्तबन्धुः ।
तदा गजेन्द्रो नितरां जगाद गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४६॥

हंसध्वजः शङ्खयुतो ददर्श पुत्रं कटाहे प्रपतन्तमेनम् ।
पुण्यानि नामानि हरेर्जपन्तं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४७॥

दुर्वाससो वाक्यमुपेत्य कृष्णा सा चाब्रवीत् काननवासिनीशम् ।
अन्तःप्रविष्टं मनसाजुहाव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४८॥

ध्येयः सदा योगिभिरप्रमेयः चिन्ताहरश्चिन्तितपारिजतः ।
कस्तूरिकाकल्पितनीलवर्णो गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४९॥

संसारकूपे पतितोऽत्यगाधे मोहान्धपूर्णे विषयाभितप्ते ।
करावलम्बं मम देहि विष्णो गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५०॥

त्वामेव याचे मम देहि जिह्वे समागते दण्डधरे कृतान्ते ।
वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५१॥

भजस्व मन्त्रं भवबन्धमुत्यै जिह्वे रसज्ञे सुलभं मनोज्ञम् ।
द्वैपायनाद्यैर्मुनिभिः प्रजप्तं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५२॥

गोपाल वंशीधर रूपसिन्धो लोकेश नारायण दीनबन्धो ।
उच्चस्वरैस्त्वं वद सर्वदैव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५३॥

जिह्वे सदैवं भज सुन्दराणि नामानि कृष्णस्य मनोहराणि ।
समस्तभक्तार्तिविनाशनानि गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५४॥

गोविन्द गोविन्द हरे मुरारे गोविन्द गोविन्द मुकुन्द कृष्ण ।
गोविन्द गोविन्द रथाङ्गपाणे गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५५॥

सुवावसाने त्विदमेव सारं दुःखावसाने त्विदमेव गेयम् ।
देहवसाने त्विदमेव जाप्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५६॥

दुर्वारवाक्यं परिगुह्य कृष्णा मृगीव भीता तु कथं कथञ्चित् ।
सभां प्रविष्टा मनसाजुहाव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५७॥

श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५८॥

श्रीनाथ विश्वेश्वर विश्वमूर्ते श्रीदेवकीनन्दन दैत्यशत्रो ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५९॥

गोपीपते कंसरिपो मुकुन्द लक्ष्मीपते केशव वासुदेव ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६०॥

गोपीजनाह्लादकर व्रजेश गोचारणारण्यकृतप्रवेश ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६१॥

प्राणेश विश्वम्भर कैटभारे वैकुण्ठ नारायण चक्रपाणे ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६२॥

हरे मुरारे मधुसूदनाद्य श्रीराम सीतावर रावणारे ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६३॥

श्रीयादवेन्द्राद्रिधराम्बुजाक्ष गोगोपगोपीसुखदानदक्ष ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६४॥

धराभरोत्तारणगोपवेष विहारलीलाकृतबन्धुशेष ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६५॥

बकीबकाघासुरधेनुकारे केशीतृणावर्तविघातदक्ष ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६६॥

श्रीजानकीजीवन रामचन्द्र निशाचरारे भरताग्रजेश ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६७॥

नारायणानन्त हरे नृसिंह प्रह्लादबाधाहर हे कृपालो ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६८॥

लीलामनुष्याकृतिरामरूप प्रतापदासीकृतसर्वभूप ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६९॥

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ७०॥

वक्तुं समर्थोऽपि न वक्ति कश्चिदहू जनानां व्यसनाभिमुख्यम् ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ७१॥
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इति श्री बिल्वमङ्गलाचार्य विरचितं श्रीगोविन्ददामोदर स्तोत्रं सम्पूर्णम्
श्लोक ४२-४५ पाठान्तर
गोविन्द दामोदर माधवेति
स्थानमे
हे राम रघुनन्दन राघवेति
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