Monday, 24 August 2020

महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष से शुरू होता है

महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष से शुरू होता है और इसकी समाप्ति अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होती है। सोलह दिनों के इन व्रतों में जो भी व्यक्ति मां लक्ष्मी की सुबह और शाम पूरी श्रद्धा से पूजा अर्चना करता है। उसके जीवन में धन, संपदा, सुख और समृद्धि की कोई कमीं नही रहती तो चलिए जानते हैं  महालक्ष्मी व्रत का शुभ
महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ -25 अगस्त 2020
महालक्ष्मी व्रत समाप्ति - 10 सितंबर 2020
महलक्ष्मी व्रत 2020 शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - रात 12 बजकर 21 मिनट से (25 अगस्त 2020)
अष्टमी तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 10 बजकर 39 मिनट तक (26 अगस्त 2020)
चन्द्रोदय समय - रात 12 बजकर 23 मिनट
महालक्ष्मी व्रत का महत्व
महालक्ष्मी व्रत के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष से शुरू होता है और इसकी समाप्ति अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि होती है। सोलह दिनों तक किए जाने वाले इस व्रत में शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। सोलह दिन के इस व्रत में अन्न को ग्रहण नहीं किया जाता है और जब यह व्रत पूर्ण हो जाए तो इसका उद्यापन करना भी आवश्यक है।
लेकिन यदि कोई व्यक्ति सोलह दिनों के नियमों को पूर्ण नहीं कर सकता तो वह अपने सामर्थ्य के अनुसार कम दिनों के व्रत कर सकता है और मां लक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त कर सकता है। शास्त्रों में इस व्रत की बहुत अधिक महत्वता बताई गई है। यदि कोई स्त्री इस व्रत को करती है तो उसे धन, धान्य, सुख, समृद्धि, संतान आदि सभी चीजों की प्राप्ति होती है और यदि कोई पुरुष इस व्रत को करता है तो उसे धन, सपंदा,नौकरी, व्यापार आदि सभी चीजों में तरक्की मिलती है।
महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि
1.महालक्ष्मी व्रत करने वाले साधक को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद लाल वस्त्र धारण करने चाहिए।
2. इसके बाद चावल का घोल बनाकर पूजा स्थान पर मां लक्ष्मी के चरण बनाने चाहिए।
3.माता लक्ष्मी के चरण बनाने के बाद चौकी को आम के पत्तों से सजाएं
4. मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करने के बाद अपनी कलाई पर 16 गांठ लगाकर एक धागा बांधे।
5. इसके बाद माता लक्ष्मी की गज लक्ष्मी प्रतिमा चौकी पर स्थापित करें और कलश की स्थापना भी करें।
6. कलश की स्थापना करने के बाद पहले गणेश जी की पूजा करें उन्हें दूर्वा अर्पित करें और उनकी विधिवत पूजा करें।
7. इसके बाद माता लक्ष्मी को पुष्प माला, नैवेध, अक्षत,सोना या चाँदी आदि सभी चीजें अर्पित करें।
8.यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद महालक्ष्मी व्रत की कथा पढ़ें या सुने।
9. इसके बाद माता लक्ष्मी की आरती उतारें और उन्हें खीर का भोग लगाएं। इसी प्रकार शाम के समय भी पूजा करें।
10.पूजा के बाद एक दीपक माता लक्ष्मी के आगमन के लिए घर के बाहर भी जलाएं और शाम की पूजा के बाद चंद्रमा को अर्घ्य अवश्य दें।
महलक्ष्मी व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर मे एक गरीब ब्राह्मण रहा करता था। वह ब्राह्मण भगवान विष्णु का बहुत ही बड़ा भक्त था और पूरे विधि- विधान से उनकी पूजा किया करता था। भगवान विष्णु भी अपने भक्त से बहुत से प्रसन्न रहते थे। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और उससे वरदान मांगने के लिए कहा। उस ब्राह्मण ने भगवान विष्णु से अपने घर में लक्ष्मी जी के निवास की इच्छा जाहिर की। ब्राह्मण की बात सुनकर भगवान विष्णु ने उसे लक्ष्मी प्राप्ति का मार्ग बताया। विष्णु जी ने कहां कि मंदिर के सामने रोज एक वृद्ध स्त्री आती है जो वहां पर उपले थापती हैं, तुम जाकर उस स्त्री को अपने घर आने के लिए आमंत्रित करो। वह स्त्री कोई और नही बल्कि देवी लक्ष्मी ही है।
अगर वह स्त्री तुम्हारे घर में आ गई तो तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा। यह कहकर विष्णु जी अंर्तध्यान हो गए। इसके बाद वह ब्राह्मण दूसरे दिन सुबह 4 बजे ही मंदिर के द्वार पर जाकर बैठ गया। जैसे ही वह वृद्ध स्त्री उपले थापने के लिए मंदिर आई तो उस ब्राह्मण ने विष्णु जी के कहे अनुसार उस वृद्ध स्त्री को अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया। जब ब्राह्मण ने माता लक्ष्मी को घर आने को कहा तो वह समझ गई की ऐसा करने के लिए उसे भगवान विष्णु ने ही कहा है। इसके बाद लक्ष्मी जी ने कहा कि तुम महालक्ष्मी व्रत करो,यह व्रत 16 दिनों तक किया जाता है और इसमें 16 रातों तक चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है।
ऐसा करने से तुम्हारी इच्छा जल्द ही पूर्ण हो जाएगी। उस ब्राह्मण ने माता लक्ष्मी के कहे अनुसार महालक्ष्मी व्रत किया और उत्तर दिशा में मुख करके लक्ष्मी जी को पुकारा,इसके बाद लक्ष्मी जी ने भी अपना वचन पूर्ण किया
सोलह तार का एक डोरा अथवा धागा लेकर उसमें सोलह ही गाँठे लगा लें. इसके बाद हल्दी की गाँठ को पीसकर उसका पीला रँग डोरे पर लगा लें जिससे यह पीला हो जाएगा. पीला होने के बाद इसे हाथ की कलाई पर बाँध लेते हैं. यह व्रत आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी तक चलता है. जब व्रत पूरा हो जाए तब एक वस्त्र से मंडप बनाया जाता है जिसमें महालक्ष्मी जी की मूर्त्ति रखी जाती है और पंचामृत से स्नान कराया जाता है. उसके बाद सोलह श्रृंगार से पूजा की जाती है. रात में तारों को अर्ध्य देकर लक्ष्मी जी की प्रार्थना की जाती है.
व्रत करने वाले को ब्राह्मण को भोजन कराना चहिए. उनसे हवन कराकर खीर की आहुति देनी चाहिए. चंदन, अक्षत, दूब, तालपत्र, फूलमाला, लाल सूत, नारियल, सुपारी अत्था भिन्न-भिन्न पदार्थ किसी नए सूप में 16-16 की संख्या में रखते हैं. फिर दूसरे नए सूप से इन सभी को ढककर नीचे दिया मंत्र बोलते हैं
क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्रसहोदरा ।
व्रतेनानेन सन्तुष्टा भव भर्तोवपुबल्लभा ।।
इसका अर्थ है “क्षीरसागर में प्रकट हुई लक्ष्मी, चन्द्रमा की बहन, श्रीविष्णुवल्लभ, महालक्ष्मी इस व्रत से सन्तुष्ट हों.”
इसके बाद 4 ब्राह्मण तथा 16 ब्राह्मणियों को भोजन कराना चाहिए और सामर्थ्यानुसार दक्षिणा भी देनी चाहिए. उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण कर लेना चाहिए. जो लोग इस व्रत को करते हैं वह इस लोक का सुख भोगकर अन्त समय में लक्ष्मी लोक जाते हैं.
श्रीमहालक्ष्मी जी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता , मैया जय लक्ष्मी माता,
तुमको निस दिन सेवत, हरी, विष्णु दाता
ॐ जय लक्ष्मी माता
उमा राम ब्रह्माणी, तुम ही जग माता, मैया, तुम ही जग माता ,
सूर्यचंद्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता .
ॐ जय लक्ष्मी माता .
दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पति दाता, मैया सुख सम्पति दाता
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि सिद्दी धन पाता

ॐ जय लक्ष्मी माता.
जिस घर में तुम रहती, तह सब सुख आता,
मैया सब सुख आता, ताप पाप मिट जाता, मन नहीं घबराता.
ॐ जय लक्ष्मी माता.
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो,
मैया माँ स्वीकार करो, ज्ञान प्रकाश करो माँ, मोहा अज्ञान हरो.
ॐ जय लक्ष्मी माता.
महा लक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गावे
मैया निस दिन जो गावे,
और आनंद समाता, पाप उतर जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता.


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