दूर्वाष्टमी व्रत = भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दूर्वाष्टमी का व्रत किया जाता हैं।
इस दिन प्रात: स्नानादि से निर्वत हो लाल रंग के वस्त्र पहनकर एक पाटे पर दूर्वा, बालको की मुर्तिया , सर्पों की मूर्ति , एक मटका और एक स्त्री का चित्र मिट्टी से बनाकर चावल , जल , दूध , रोली , आटा , घी , चीनी मिलाकर मोई बनाकर पूजा करे। गंध , पुष्प , धुप , दीप , खजूर , नारियल , अक्षत , माला आदि से मन्त्रो से पूजा करे।
त्वं दूर्वे अमृत जन्मासि वन्दिता व सुरसुरे:।
सौभाग्यं संतति कृत्वा सर्वकार्यकरी भव।।
यथा शाखाप्रशाखाभिविरस्त्रितासी महीतले।
तथा ममामी संतानं देहि त्वमजरामरे।।
मीठे बाजरे का बायना निकाल कर दक्षिणा ब्लाउज पिस सासुजी को पाँव लग कर दे। फिर दूर्वाष्टमी की कथा सुनकर इस दिन ठंडा भोजन करना चाहिये।
पूजन का शुभ मुहूर्त = 25 अगस्त मंगलवार दोपहर 12.22 से दोपहर 01.49 तक रहेगा। मंगलवार 25 अगस्त को दोपहर 12.21 से भद्रा शुरू होगी और रात्रि 11 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी, धर्मग्रंथों के अनुसार जब चंद्रमा मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक राशि में रहे तो भद्रा स्वर्ग लोक की होती है। भद्रा जब स्वर्ग लोक की होती है तो आप शुभ कार्य कर सकते हैं, मंगलवार 25 अगस्त को भद्रा वृश्चिक राशि में होगी, इसलिए दूर्वाष्टमी (द्रूवड़ी) पूजन पर भद्रा का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
द्रूवड़ी के दिन महिलाएं और नवविवाहिता, इस व्रत को करती है और सरोवर अथवा बहते पानी वाले स्थानों पर जाकर पूजन करती हैं। संतान एवं परिवार की सुख समृद्धि मांगती है। इसमें पारंपरिक गीत गाती हैं। इसके अलावा पूजन में मीठे रोट, दूर्वा, अंकुरित मोठ, मूंग,चने फल एवं वस्त्र आदि चढ़ाया जाता है। पूजन में छोटे बच्चों को पूजन स्थल पर उठाकर परिक्रमा करवाते है। इस व्रत में श्रीगणेश जी एवं श्री लक्ष्मीनारायण का पूजन किया जाता है। दूर्वाष्टमी का व्रत करने से सुख, सौभाग्य व दूर्वा के अंकुरों के समान उसके कुल की वृद्धि होती हैं।
द्रूवड़ी पूजन के लिए मूंग,चने आदि भिगोने शुभ मुहूर्त 24 अगस्त सुबह 09:15 के बाद पूरा दिन शुभ है। यह व्रत विशेष रुप से स्त्रियों का पर्व होता है। इस दिन अंकुरित मोठ, मूंग, तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है। प्रसाद रूप में इन्हें ही चढाया जाता है। सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में पूजन कर फिर दूर्वाष्टमी की कथा सुनकर भोजन करें।
दूर्वाष्टमी की कहानी
एक साहूकार था उसके आठ बेटे थे। बेटे विवाह योग्य हुये तो सबसे बड़े बेटे का विवाह तय कर दिया। विवाह का मुहूर्त दूर्वाष्टमी का निकला। जब विवाह होने लगा तो फेरो के समय एक सर्प वहाँ आया और दुल्हे को डस लिया और साहूकार के बेटे की मृत्यु हो गई। सभी लडको के विवाह का मुहूर्त दूर्वाष्टमी का निकला और इसी तरह साहूकार के सात बेटों को सर्प ने डस लिया। आठवे बेटे का विवाह तय हुआ। लडके की बहन का ससुराल किसी गाँव में था। वह उसको लेने गया , लेकर जब वापस आने लगा तो बहन को प्यास लगी बहन एक कुँए पर गई।
वहाँ बेमाता कुछ बना रही थी और बार = बार बिगाड़ रही थी। बहन ने पूछा = आप यह क्या कर रही हैं तब बेमाता ने बताया की एक साहूकार हैं जिसके सात बेटे मर चुके हैं और आठंवा भी मरने वाला हैं सो उसके लिए ढकनी दे रही हूँ ” क्यू बहन ने पूछा उसको बचाने का कोई उपाय हैं क्या मैं उस भाई की अभागन बहन हूँ। अगर उसकी बहन , भुआ यदि दूर्वाष्टमी का व्रत एवं पूजन करती हो तो वह हर काम उल्टा करे और भाई को ताने मारे और बारात में साथ जावे , कुम्हार से हांड़ी ढक्कन सहित लावे कच्चा करवा में दूध लावे जब सर्प ढसने आवे और दूध पीने लगे तब हांड़ी का ढक्कन बंद कर उस पर कच्चा सूत लपेट कर बांध देवे तो काल की घड़ी टल जावेगी तो उसके जीवन की रक्षा की जा सकती हैं। बस फिर क्या था बहन उसी समय से ही ताने मारना शुरू हो गई। भाई ने सोचा बहन पानी पिने गई तब ठीक थी शायद बहन को चोट – फेट हो गई। बहन भाई को गालिया बकती रही बड़ी मुश्किल के बाद दोनों घर पहुंचे। भाई का बिन्द्याक बैठाने लगे इस करम फूटे को चौकी पर मत बैठाओ सिला पर बैठाओ जिद्द करने लगी तो सिला पर बैठा कर बिन्द्याक बैठाया। भाई की निकासी होने लगी तो बहन बोली “ इसकी निकासी हवेली के पीछे के दरवाजे से करो सामने से नही करने दूँगी। सबने बहुत समझाया पर वह नहीं मानी चिल्लाने लगी सबने कहा यह बीमार हो जायेगी इसकी बात मान लो पीछे के दरवाजे से निकासी करवाई तभी सामने का दरवाजा गिर गया सबने कहा बहन ने भाई को बचा लिया , नहीं तो आज मर गया होता।
अब गाजे बाजे से बारात जाने लगी तो बहन बोली मैं भी बारात में जाउंगी सब ने समझाया तेरी तबियत ठीक नहीं हैं , ओरते बारात में नहीं जाती पर वह नही मानी साथ गई। रास्ते में विश्राम करने के लिए बारात बरगद के पेड़ के नीचे रुकने लगी तो बहन बोली इसकी बारात धुप में रुकवाओ सबने समझाया पर वह नहीं मानी तंग आकर धुप में बारात रुकवाई तभी बरगद का पेड़ गिर गया सबने कहा बहन की जिद्द ने सब बारातियों व भाई के जीवन कि रक्षा की भगवान जों करता हैं अच्छे के लिए करता हैं।
बारात पहुची भाई तोरण मारने लगा तो बहन गालिया बकने लगी इस करमफूटे का तोरण सामने के दरवाजे से नहीं करने दूँगी और आरती चौमुखे दीपक से नही करने दूँगी पीछे के दरवाजे से तोरण मारो और जगमग खीरे की थाली भरकर आरती करो। सब ने लडकी वालो को कहा जों ये कहे वही करो ये लाडली बहन हैं। तोरण मारते वक्त सामने का दरवाजा गिर गया। आरती करते समय ऊपर से सर्प आकर गिरा तो जगमगाते खीरे में जल गया। सब ने कहा खीरे नहीं होते तो सर्प काट खाता फिर बहन जिद्द करके फेरो में बैठी। दो फेरे होते ही सर्प आया बहन ने पहले से ही करवे में कच्चा दूध रखा था। सर्प जैसे ही दूध पीने लगा तो बहन ने सर्प को हांड़ी में डालकर ऊपर से कच्चे सूत की तांती बांध दी और गौडे के नीचे दबा लिया। उसी समय नागिन आई और कहने लगी = पापन हत्यारन छोड़ मेरे सर्प राज को” तब बहन बोली तेरे नागराज ने तो मेरे सातों भाइयो को डस लिया पहले उन सब को जीवित कर तू तो एक घड़ी में ही व्याकुल हो गई मेरी सात भाभिया कब से दुखी हैं। नागिन ने सातों भाइयो को जीवन दान दिया पीछे बहन ने सर्पराज को छोड़ दिया।
गाजे बाजे से दुल्हन लेकर सातों भाइयो के साथ बारात रवाना हुई। रास्ते में दूर्वाष्टमी का व्रत आया बहन ने बारात रुकवाई सातों भाई – भाभियों के साथ पूजा कर विधि विधान से कथा सुनाई फिर भीगे मीठे बाजरे का बायना निकाला बहन ने भाभियों से कहा , “ हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दूर्वाष्टमी का व्रत किया जाता हैं। इस दिन प्रात: स्नानादि से निर्वत हो लाल रंग के वस्त्र पहनकर एक पाटे पर दूर्वा अर्थात बालको की मुर्तिया , सर्पों की मूर्ति , एक मटका और एक स्त्री का चित्र मिट्टी से बनाकर चावल , जल , दूध , रोली , आटा , घी , चीनी मिलाकर मोई बनाकर पूजा करे। बायना चरण स्पर्श कर सासुजी को देवे। उधर साहूकार साहुकारनी बारात की राह देख रहे थे। पनिहारिनों ने आकर बताया बहन भाई भाभियों को लेकर आ रही हैं स्वागत की तैयारी करो।
स्वागत के बाद बहन अपने घर जाने लगी माँ ने कहा तेरे दूर्वाष्टमी के व्रत के फल के कारण सातों भाइयो को लाई हैं अब कुछ दिन अपनी भाभियों के साथ मौज मना। बहन ने कहा माँ में अपने घर बच्चो को देखूंगी कब से छोड़ा हैं। उसके भाइयो ने गाँव में हेला फिरा दिया की सब कोई दुबडी आठे (दूर्वाष्टमी) का व्रत करना सब मेहमानों ने बहन की बढाई की , बहन को ढेर सारे उपहार कपड़े देकर मंगल गीत गाकर विदा किया। हे दूर्वाष्टमी माता ! जैसे उसके भाई को जीवन दान दिया वैसे सबको देना।
इस दिन प्रात: स्नानादि से निर्वत हो लाल रंग के वस्त्र पहनकर एक पाटे पर दूर्वा, बालको की मुर्तिया , सर्पों की मूर्ति , एक मटका और एक स्त्री का चित्र मिट्टी से बनाकर चावल , जल , दूध , रोली , आटा , घी , चीनी मिलाकर मोई बनाकर पूजा करे। गंध , पुष्प , धुप , दीप , खजूर , नारियल , अक्षत , माला आदि से मन्त्रो से पूजा करे।
त्वं दूर्वे अमृत जन्मासि वन्दिता व सुरसुरे:।
सौभाग्यं संतति कृत्वा सर्वकार्यकरी भव।।
यथा शाखाप्रशाखाभिविरस्त्रितासी महीतले।
तथा ममामी संतानं देहि त्वमजरामरे।।
मीठे बाजरे का बायना निकाल कर दक्षिणा ब्लाउज पिस सासुजी को पाँव लग कर दे। फिर दूर्वाष्टमी की कथा सुनकर इस दिन ठंडा भोजन करना चाहिये।
पूजन का शुभ मुहूर्त = 25 अगस्त मंगलवार दोपहर 12.22 से दोपहर 01.49 तक रहेगा। मंगलवार 25 अगस्त को दोपहर 12.21 से भद्रा शुरू होगी और रात्रि 11 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी, धर्मग्रंथों के अनुसार जब चंद्रमा मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक राशि में रहे तो भद्रा स्वर्ग लोक की होती है। भद्रा जब स्वर्ग लोक की होती है तो आप शुभ कार्य कर सकते हैं, मंगलवार 25 अगस्त को भद्रा वृश्चिक राशि में होगी, इसलिए दूर्वाष्टमी (द्रूवड़ी) पूजन पर भद्रा का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
द्रूवड़ी के दिन महिलाएं और नवविवाहिता, इस व्रत को करती है और सरोवर अथवा बहते पानी वाले स्थानों पर जाकर पूजन करती हैं। संतान एवं परिवार की सुख समृद्धि मांगती है। इसमें पारंपरिक गीत गाती हैं। इसके अलावा पूजन में मीठे रोट, दूर्वा, अंकुरित मोठ, मूंग,चने फल एवं वस्त्र आदि चढ़ाया जाता है। पूजन में छोटे बच्चों को पूजन स्थल पर उठाकर परिक्रमा करवाते है। इस व्रत में श्रीगणेश जी एवं श्री लक्ष्मीनारायण का पूजन किया जाता है। दूर्वाष्टमी का व्रत करने से सुख, सौभाग्य व दूर्वा के अंकुरों के समान उसके कुल की वृद्धि होती हैं।
द्रूवड़ी पूजन के लिए मूंग,चने आदि भिगोने शुभ मुहूर्त 24 अगस्त सुबह 09:15 के बाद पूरा दिन शुभ है। यह व्रत विशेष रुप से स्त्रियों का पर्व होता है। इस दिन अंकुरित मोठ, मूंग, तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है। प्रसाद रूप में इन्हें ही चढाया जाता है। सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में पूजन कर फिर दूर्वाष्टमी की कथा सुनकर भोजन करें।
दूर्वाष्टमी की कहानी
एक साहूकार था उसके आठ बेटे थे। बेटे विवाह योग्य हुये तो सबसे बड़े बेटे का विवाह तय कर दिया। विवाह का मुहूर्त दूर्वाष्टमी का निकला। जब विवाह होने लगा तो फेरो के समय एक सर्प वहाँ आया और दुल्हे को डस लिया और साहूकार के बेटे की मृत्यु हो गई। सभी लडको के विवाह का मुहूर्त दूर्वाष्टमी का निकला और इसी तरह साहूकार के सात बेटों को सर्प ने डस लिया। आठवे बेटे का विवाह तय हुआ। लडके की बहन का ससुराल किसी गाँव में था। वह उसको लेने गया , लेकर जब वापस आने लगा तो बहन को प्यास लगी बहन एक कुँए पर गई।
वहाँ बेमाता कुछ बना रही थी और बार = बार बिगाड़ रही थी। बहन ने पूछा = आप यह क्या कर रही हैं तब बेमाता ने बताया की एक साहूकार हैं जिसके सात बेटे मर चुके हैं और आठंवा भी मरने वाला हैं सो उसके लिए ढकनी दे रही हूँ ” क्यू बहन ने पूछा उसको बचाने का कोई उपाय हैं क्या मैं उस भाई की अभागन बहन हूँ। अगर उसकी बहन , भुआ यदि दूर्वाष्टमी का व्रत एवं पूजन करती हो तो वह हर काम उल्टा करे और भाई को ताने मारे और बारात में साथ जावे , कुम्हार से हांड़ी ढक्कन सहित लावे कच्चा करवा में दूध लावे जब सर्प ढसने आवे और दूध पीने लगे तब हांड़ी का ढक्कन बंद कर उस पर कच्चा सूत लपेट कर बांध देवे तो काल की घड़ी टल जावेगी तो उसके जीवन की रक्षा की जा सकती हैं। बस फिर क्या था बहन उसी समय से ही ताने मारना शुरू हो गई। भाई ने सोचा बहन पानी पिने गई तब ठीक थी शायद बहन को चोट – फेट हो गई। बहन भाई को गालिया बकती रही बड़ी मुश्किल के बाद दोनों घर पहुंचे। भाई का बिन्द्याक बैठाने लगे इस करम फूटे को चौकी पर मत बैठाओ सिला पर बैठाओ जिद्द करने लगी तो सिला पर बैठा कर बिन्द्याक बैठाया। भाई की निकासी होने लगी तो बहन बोली “ इसकी निकासी हवेली के पीछे के दरवाजे से करो सामने से नही करने दूँगी। सबने बहुत समझाया पर वह नहीं मानी चिल्लाने लगी सबने कहा यह बीमार हो जायेगी इसकी बात मान लो पीछे के दरवाजे से निकासी करवाई तभी सामने का दरवाजा गिर गया सबने कहा बहन ने भाई को बचा लिया , नहीं तो आज मर गया होता।
अब गाजे बाजे से बारात जाने लगी तो बहन बोली मैं भी बारात में जाउंगी सब ने समझाया तेरी तबियत ठीक नहीं हैं , ओरते बारात में नहीं जाती पर वह नही मानी साथ गई। रास्ते में विश्राम करने के लिए बारात बरगद के पेड़ के नीचे रुकने लगी तो बहन बोली इसकी बारात धुप में रुकवाओ सबने समझाया पर वह नहीं मानी तंग आकर धुप में बारात रुकवाई तभी बरगद का पेड़ गिर गया सबने कहा बहन की जिद्द ने सब बारातियों व भाई के जीवन कि रक्षा की भगवान जों करता हैं अच्छे के लिए करता हैं।
बारात पहुची भाई तोरण मारने लगा तो बहन गालिया बकने लगी इस करमफूटे का तोरण सामने के दरवाजे से नहीं करने दूँगी और आरती चौमुखे दीपक से नही करने दूँगी पीछे के दरवाजे से तोरण मारो और जगमग खीरे की थाली भरकर आरती करो। सब ने लडकी वालो को कहा जों ये कहे वही करो ये लाडली बहन हैं। तोरण मारते वक्त सामने का दरवाजा गिर गया। आरती करते समय ऊपर से सर्प आकर गिरा तो जगमगाते खीरे में जल गया। सब ने कहा खीरे नहीं होते तो सर्प काट खाता फिर बहन जिद्द करके फेरो में बैठी। दो फेरे होते ही सर्प आया बहन ने पहले से ही करवे में कच्चा दूध रखा था। सर्प जैसे ही दूध पीने लगा तो बहन ने सर्प को हांड़ी में डालकर ऊपर से कच्चे सूत की तांती बांध दी और गौडे के नीचे दबा लिया। उसी समय नागिन आई और कहने लगी = पापन हत्यारन छोड़ मेरे सर्प राज को” तब बहन बोली तेरे नागराज ने तो मेरे सातों भाइयो को डस लिया पहले उन सब को जीवित कर तू तो एक घड़ी में ही व्याकुल हो गई मेरी सात भाभिया कब से दुखी हैं। नागिन ने सातों भाइयो को जीवन दान दिया पीछे बहन ने सर्पराज को छोड़ दिया।
गाजे बाजे से दुल्हन लेकर सातों भाइयो के साथ बारात रवाना हुई। रास्ते में दूर्वाष्टमी का व्रत आया बहन ने बारात रुकवाई सातों भाई – भाभियों के साथ पूजा कर विधि विधान से कथा सुनाई फिर भीगे मीठे बाजरे का बायना निकाला बहन ने भाभियों से कहा , “ हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दूर्वाष्टमी का व्रत किया जाता हैं। इस दिन प्रात: स्नानादि से निर्वत हो लाल रंग के वस्त्र पहनकर एक पाटे पर दूर्वा अर्थात बालको की मुर्तिया , सर्पों की मूर्ति , एक मटका और एक स्त्री का चित्र मिट्टी से बनाकर चावल , जल , दूध , रोली , आटा , घी , चीनी मिलाकर मोई बनाकर पूजा करे। बायना चरण स्पर्श कर सासुजी को देवे। उधर साहूकार साहुकारनी बारात की राह देख रहे थे। पनिहारिनों ने आकर बताया बहन भाई भाभियों को लेकर आ रही हैं स्वागत की तैयारी करो।
स्वागत के बाद बहन अपने घर जाने लगी माँ ने कहा तेरे दूर्वाष्टमी के व्रत के फल के कारण सातों भाइयो को लाई हैं अब कुछ दिन अपनी भाभियों के साथ मौज मना। बहन ने कहा माँ में अपने घर बच्चो को देखूंगी कब से छोड़ा हैं। उसके भाइयो ने गाँव में हेला फिरा दिया की सब कोई दुबडी आठे (दूर्वाष्टमी) का व्रत करना सब मेहमानों ने बहन की बढाई की , बहन को ढेर सारे उपहार कपड़े देकर मंगल गीत गाकर विदा किया। हे दूर्वाष्टमी माता ! जैसे उसके भाई को जीवन दान दिया वैसे सबको देना।