Tuesday, 6 March 2018

गणगौर की कहानी गणगौर की पूजा करने के ,गणगौर के गीत पूजा करते समय

गणगौर की कहानी गणगौर की पूजा करने के बाद हाथ में आखे ...गेंहू के दाने .. लेकर सुनी जाती है।
27 मार्च 2020 गणगौर की कहानी गणगौर की पूजा
अपने सुविधा अनुसार पांच या सात कहानी सुन सकते है। गणगौर के पूजन की विधि , गणगौर के गीत और गणगौर के उद्यापन की विधि कहानियों के बाद

दी गई है वहाँ क्लीक करके जान सकते हैं। इस समय सुनी जाने वाली कहानी में ये कहानियाँ सुनी जाती है

गणगौर की कहानी ,गणेश जी की कहानी ,लपसी तपसी की व अन्य कहानिया
यहाँ गणगौर की कहानियां दी गई है जो कि इस प्रकार है।
गणगौर की कहानी ,,1
राजा ने बोए जौ , चने और माली ने बोई दूब। राजा के जौ , चने बढ़ते जा रहे थे और माली की दूब घटती जा रही थी। माली को लगा कि कुछ
तो गड़बड़ है। इसलिए उसने सोचा छुपकर निगाह रखनी चाहिए। जब वह छुपकर देख रहा था तो उसने देखा कि कुछ छोटी-बड़ी लड़कियां
उसकी दूब तोड़ कर ले जा रही हैं। उसे बहुत गुस्सा आया उसने लड़कियों को डाँटा और उनकी चुन्नी छीन ली। लड़कियाँ माली से विनती करने
लगी कि हमारी चुन्नी दे दो ,और हमें दूब ले लेने दो हम यह दूब गणगौर की पूजा के लिए ले जा रहे हैं। इसके बदले गणगौर का पूजा पाटा हम तुम्हें दे देंगे।

माली ने उन्हें दूब लेने दी। गणगौर की पूजा करने के बाद लड़कियों ने पूजा पाटा माली को दे दिया और माली ने अपनी मालन को दे दिया।
मालन ने पाटा ओबरी में रख दिया।
गणगौर की कहानी
शाम को माली का बेटा आया और बोला माँ भूख लगी हैं ” माँ ने कहा बेटा
ओबरी छोटा कमरा में लड़कियों का पूजा पाटा रखा हैं

उसमें से कुछ खा ले। माली के बेटे ने कमरा खोलना चाहा लेकिन उससे कमरा नहीं खुला। बहुत कोशिश करने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला

तो उसने गुस्से में दरवाजे पर जोर से लात मारी पर दरवाजा फिर भी नहीं खुला तो माँ बोली बेटा ! तेरे से कमरा नहीं खुलता तो पराई जाई को
पता नहीं कैसे ढाबेगा।
मालन ने टीकी में से रोली निकाली ,आँखों की कोर से काजल निकाला और नखो में से मेंहदी निकाली। हथेली में लेकर सबको घोला और
ओबरी छोटा कमरा के छींटा दिया तो ओबरी खुल गयी। अंदर देखा तो ईशर गणगौर बैठे थे। ईसर जी ने बहुत सुंदर वस्त्र पहने हुए थे
और गौरा माँग सँवार रही थी व ओबरी में अन्न के भण्डार भरे पड़े थे। माली के बेटे , मालन को तथा माली को उनके सुन्दर दर्शन हुए।
गणगौर की कहानी
हे गणगौर माता ! जिस प्रकार माली के परिवार को दर्शन दिए उसी प्रकार सबको दर्शन देना और ईसर जी जैसा भाग और गौर जैसा सुहाग
सबको देना। कहानी कहने वाले हुंकार भरने वाले सबको देना और सबको अमर सुहाग का आशीवार्द देना।
जय शिव शंकर , जय माँ पार्वती ,
गणगौर की कहानी,,2
एक बार शंकर भगवान पार्वती जी और नारद जी के साथ पृथ्वी पर घूमने आये और एक गांव में पहुँचे। उस दिन चैत्र शुक्ल की तीज थी।
जैसे ही गाँव वालो को भगवान के आने की सूचना मिली तो धनवान स्त्रियां श्रृंगार में तथा आवभगत के लिए तरह तरह के भोजन बनाने में
व्यस्त हो गयी। कुछ गरीब परिवार की महिलाएं जैसी थी वैसी ही थाली में हल्दी , चावल और जल आदि लेकर आ गयी और शिव पार्वती
की भक्ति भाव से पूजा करने लगी। माता पार्वती उनकी पूजा से प्रसन्न हुयी और उन सबके ऊपर सुहाग रूपी हरिद्रा हल्दी छिड़क दी।
इस प्रकार माँ पार्वती का आशीवार्द व मंगल कामनाए पाकर अपने अपने घर चली गयी।
गणगौर की कहानी
कुछ देर बाद अमीर औरते भी सोलह श्रृंगार कर , छप्पन भोग सोने के थाल में सजाकर आ गयी। तब भगवान शंकर ने पार्वती जी को कहा
कि सारा आशीवार्द तो तुमने पहले ही उन स्त्रियों को दे दिया अब इनको क्या दोगी ? पार्वती जी ने कहा आप उनकी बात छोड़ दें। उन्हें ऊपरी

पदार्थो से निर्मित रस दिया है इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा परन्तु इन लोगो को मैं अपनी अंगुली चीरकर रक्त सुहाग रस दूंगी जो मेरे

समान ही सौभाग्यशाली बन जायेगी। जब कुलीन स्त्रियां शिव पार्वती की पूजा कर चुकी तब माँ पार्वती ने अपनी अंगुली चीर कर उन पर रक्त

छिड़क कर अखण्ड सौभाग्य का वर दिया।
इसके बाद पार्वती जी शिव जी को कहा मै नदी मै नहाकर आती हूँ। माँ पार्वती ने नदी के किनारे जाकर बालू से शिव लिंग बनाया और

आराधना करने लगी। शिव जी ने प्रसन्न होकर वरदान दिया कि आज के दिन जो भी स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेंगी उनके

पति चिरंजीव रहेंगे और अंत में उन्हें मोक्ष मिलेगा। इसके बाद पार्वती जी वहाँ गयी जहाँ शिव जी व नारद को छोड़कर गयी थी।

शिव जी ने देर से आने कारण पूछा तो पार्वती जी ने बहाना बनाया और कहा कि नदी के किनारे मेरे भाई भाभी मिल गए थे। उन्होंने दूध भात
खाने का आग्रह किया , इसीलिए देरी हो गई। शिव जी बोले हम भी दूध भात खाएंगे और जंगल की तरफ चल दिए पार्वती जी ने सोचा पोल
खुल जाएगी वह प्रार्थना करती हुई पीछे पीछे चल दी।
गणगौर की कहानी
जंगल में पहुँचने पर देखा सुंदर माया का महल बना हुआ था उसमें पार्वती जी के भाई और भाभी विद्यमान थे। भाई भाभी ने उन सबका स्वागत
सत्कार किया और आवभगत की और वहां रुकने का आग्रह किया। तीनो ने आतिथ्य स्वीकार किया। तीन दिन वहाँ रुके फिर वहां से रवाना
हो गए। तीनों चलते चलते काफी दूर तक आ गए।
शाम होने पर शिव जी पार्वती जी से बोले कि मैं अपनी माला तो तुम्हारे मायके ही भूल आया हूँ। पार्वती जी ने कहा कि मैं लेकर आती है
और माला लेने जाने लगी। शिव जी बोले इस वक्त तुम्हारा जाना ठीक नहीं है। उन्होंने नारद जी को माला लेने भेज दिया। नारद जी वहाँ
पहुंचे तो देखा कि वहाँ कुछ नहीं था। महल का तो नामो निशान भी नहीं था। अँधेरे में जंगली जानवर घूम रहे थे अंधकार पूर्ण वातावरण
डरावना लग रहा था। यह देख कर नारद जी आश्चर्य में पड़ गए। ..गणगौर की कहानी

तभी बिजली कड़की और माला उन्हें एक पेड़ पर टंगी दिखाई दी। माला लेकर नारद जी तुरन्त वहाँ से दौड़ते हुए शिव जी के पास पहुंचे और

शिव जी को वहाँ का वर्णन सुनाया। सुनकर शिवजी हँसने लगे और उन्होंने नारद जी को बताया कि पार्वती जी अपनी पार्थिव पूजा की बात
गुप्त रखना चाहती थी , इसीलिए झूठा बहाना बनाया था और फिर असत्य को सत्य करने के लिए उन्होंने अपनी पतिधर्म की शक्ति से माया

महल रचा था। सच्चाई बताने के लिए ही मैने तुम्हे वहाँ माला लेने भेजा था।
यह जानकर नारद जी माँ पार्वती की पतिव्रता शक्ति से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने माँ पार्वती की बहुत प्रसंशा की और पूजा करने की बात
छिपाने को भी सही ठहराया क्योंकि पूजा-पाठ गुप्त रूप से पर्दे में रहकर ही करने चाहिए। उन्होंने खुश होकर कहा कि जो स्त्रियां इस दिन
गुप्त रूप से पूजन कार्य करेगी उनकी सब मनोकामना पूरी होगी और उनका सुहाग अमर रहेगा।

चूँकि पार्वती जी ने व्रत छिपकर किया था अतः उसी परम्परा के अनुसार आज भी इस दिन पूजा के अवसर पर पुरुष उपस्थित नहीं रहते हैं।
खरी की खोटी अधूरी की पूरी ,,
जय शिव शंकर जय माँ पार्वती ,,

1..किवाड़ी खुलवाने का गीत
गौर ए गणगौर माता खोलए किवाड़ी
बाहर ऊबी थारी पूजण वाली।
पूजो ए पूजो बाईयां , काई काई मांगों
म्हे मांगा अन्न धन , लाछर लक्ष्मी।
जलहर जामी बाबुल मांगा, राता देई मायड़
कान कंवर सो बीरो मांगा , राई सी भौजाई।
ऊँट चढयो बहनोई मांगा , चूंदड़ वाली बहना
पूस उड़ावन फूफो मांगा , चूड़ला वाली भुवा।
काले घोड़े काको मांगा , बिणजारी सी काकी
कजल्यो सो बहनोई मांगा , गौरा बाई बहना।
भल मांगू पीहर सासरो ये भल मांगू सौ परिवार ये
गौर ए गणगौर माता खोलए किवाड़ी।

2..गणगौर के गीत पूजा करते समय
गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का आला-गीला , गौर का सोना का टीका
टीका दे , टमका दे , बाला रानी बरत करयो
करता करता आस आयो वास आय
खेरे खांडे लाडू आयो , लाडू ले बीरा ने दियो
बीरो ले मने पाल दी , पाल को मै बरत करयो
सन मन सोला , सात कचौला , ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा
जोड़ ज्वारा ,गेंहू ग्यारा , राण्या पूजे राज ने , म्हे पूजा सुहाग ने
राण्या को राज बढ़तो जाए , म्हाको सुहाग बढ़तो जाय ,
कीड़ी- कीड़ी , कीड़ी ले , कीड़ी थारी जात है , जात है गुजरात है ,
गुजरात्यां को पाणी , दे दे थाम्बा ताणी
ताणी में सिंघोड़ा , बाड़ी में भिजोड़ा
म्हारो भाई एम्ल्यो खेमल्यो , सेमल्यो सिंघाड़ा ल्यो
लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो
झर झरती जलेबी ल्यो , हरी -हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो
इस तरह सोलह बार बोल कर आखिरी में बोले एक-लो , दो लो। सोलह-लो।

गीत 3...
ऊँचो , चवरो , चोकुंटो , जल जमना रो नीर मंगाय।
  1. जठ ईशर जी सांपज ,बाई गवरा गवर पूजाय।
गवर पूजावंता यूं केब ,सायब आ जोड़ी अबछाल राख
अबछल पीवर सासरो , ए बाई ,अब छल सो परिवार ,
ऊँचो चवरो चोकुंटो जल जमना रो नीर मंगाय।
अपने घर वालो के नाम लेते जाएँ

गीत 4,,
गणगौर का गीत चोपड़ा का
गौर थारो चोपडो माणक मोती छायो ऐ
माणक मोती छायो ऐ यो तो सच्चा मोती धायो ऐ
ब्रह्मदास जी रा ईसरदास जी रोली रंग लाया ऐ
ईसरदास जी रा कानीराम जी परण पधराया ऐ
परण पधारया वाकी माया टीका काड़या ऐ
रोली का वे टीका काड़या ऊपर चावल चेपया ऐ
गौर थारो चोपडो माणक मोतिया छायो ऐ
माणक मोतिया छायो ऐ वो तो सच्चा मोती छायो ऐ।
,,ब्रह्मदास जी की जगह दादा ससुर जी का ,ईसरदास की जगह पति का और कानीराम जी की जगह पुत्र का नाम लेना चाहिए ,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.

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