Thursday, 18 June 2020

बुधवार व्रत महात्म्य व्रत एवं उद्यापन विधि

बुधवार व्रत महात्म्य व्रत एवं उद्यापन विधि व्रत नियम एवं महात्म्य,,अग्नि पुराण के अनुसार बुध संबंधी व्रत विशाखा नक्षत्रयुक्त बुधवार को आरंभ करना चाहिए और लगातार सात बुधवार अथवा यथा सामर्थ्य व्रत करना चाहिए। बुधवार का व्रत शुरू करने से पहले गणेश जी के साथ नवग्रहों की पूजा करनी चाहिए। व्रत के दौरान भागवत महापुराण का पाठ करना चाहिए। बुधवार व्रत शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार से शुरू करना अच्छा माना जाता है। इस दिन प्रातः उठकर संपूर्ण घर की सफाई करें। तत्पश्चात स्नानादि से निवृत्त हो जाएँ। इसके बाद पवित्र जल का घर में छिड़काव करें। घर के ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान गणेश जी या शिव परिवार की प्रतिमा या चित्र किसी कांस्य पात्र में स्थापित करें। तत्पश्चात धूप, बेल-पत्र, अक्षत और घी का दीपक जलाकर पूजा करें। व्रत करने वाले को हरे रंग की माला या वस्त्रों का अधिक प्रयोग करना चाहिए। इस दिन गणेश जी को 21 गांठो सहित दूर्वा चढ़ाने का विधान है मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान गणेश जी की कृपा शीघ्र ही प्राप्त होने लगती है। भगवान गणेश जी भाग्य के बंधन खोलकर सौभाग्य प्राप्ति का वरदान देते है इसके विषय मे एक प्रचलित कथा भी है पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था, उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। अनलासुर एक ऐसा दैत्य था, जो मुनि-ऋषियों और साधारण मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था। इस दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर इंद्र सहित सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि भगवान महादेव से प्रार्थना करने जा पहुंचे और सभी ने महादेव से यह प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का खात्मा करें। तब महादेव ने समस्त देवी-देवताओं तथा ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर, उनसे कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश केवल श्री गणेश ही कर सकते हैं। फिर सबकी प्रार्थना पर श्री गणेश ने अनलासुर को निगल लिया, तब उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। इस परेशानी से निपटने के लिए कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर श्री गणेश को खाने को दीं। यह दूर्वा श्री गणेशजी ने ग्रहण की, तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुई। ऐसा माना जाता है कि श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई। व्रत के दिन बुध मंत्र ‘ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाये नम:’ का 9,000 बार या 5 माला जप करें। या फिर इस मंत्र से बुध की प्रार्थना करें। बुध त्वं बुद्धिजनको बोधदः सर्वदा नृणाम्‌। तत्वावबोधं कुरुषे सोमपुत्र नमो नमः॥ पूजन मंत्र जप, एवं प्रार्थना के बाद बुधवार कथा का पाठ सुने इसके बाद सामार्थ्य अनुसार श्रीगणेश चालीसा, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का पाठ भी करना चाहिये। पूरे दिन व्रत कर शाम के समय फिर से पूजा कर एक समय भोजन करना चाहिए। बुधवार व्रत में हरे रंग के वस्त्रों, फूलों और सब्जियों का दान देना चाहिए। इस दिन एक समय दही, मूंग दाल का हलवा या हरी वस्तु से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। व्रत कथा,,समतापुर नगर में मधुसूदन नामक एक व्यक्ति रहता था। वह बहुत धनवान था। मधुसूदन का विवाह बलरामपुर नगर की सुंदर और गुणवंती लड़की संगीता से हुआ था। एक बार मधुसूदन अपनी पत्नी को लेने बुधवार के दिन बलरामपुर गया। मधुसूदन ने पत्नी के माता-पिता से संगीता को विदा कराने के लिए कहा। माता-पिता बोले- 'बेटा, आज बुधवार है। बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं करते।' लेकिन मधुसूदन नहीं माना। उसने ऐसी शुभ-अशुभ की बातों को न मानने की बात कही। दोनों ने बैलगाड़ी से यात्रा प्रारंभ की। दो कोस की यात्रा के बाद उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया। वहाँ से दोनों ने पैदल ही यात्रा शुरू की। रास्ते में संगीता को प्यास लगी। मधुसूदन उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने चला गया। थोड़ी देर बाद जब मधुसूदन कहीं से जल लेकर वापस आया तो वह बुरी तरह हैरान हो उठा क्योंकि उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा था। संगीता भी मधुसूदन को देखकर हैरान रह गई। वह दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई। मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा- 'तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो?' मधुसूदन की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा- 'अरे भाई, यह मेरी पत्नी संगीता है। मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया हूँ। लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?' मधुसूदन ने लगभग चीखते हुए कहा- 'तुम जरूर कोई चोर या ठग हो। यह मेरी पत्नी संगीता है। मैं इसे पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने गया था।' इस पर उस व्यक्ति ने कहा- 'अरे भाई! झूठ तो तुम बोल रहे हो। संगीता को प्यास लगने पर जल लेने तो मैं गया था। मैंने तो जल लाकर अपनी पत्नी को पिला भी दिया है। अब तुम चुपचाप यहाँ से चलते बनो। नहीं तो किसी सिपाही को बुलाकर तुम्हें पकड़वा दूँगा।' दोनों एक-दूसरे से लड़ने लगे। उन्हें लड़ते देख बहुत से लोग वहाँ एकत्र हो गए। नगर के कुछ सिपाही भी वहाँ आ गए। सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए। सारी कहानी सुनकर राजा भी कोई निर्णय नहीं कर पाया। संगीता भी उन दोनों में से अपने वास्तविक पति को नहीं पहचान पा रही थी। राजा ने दोनों को कारागार में डाल देने के लिए कहा। राजा के फैसले पर असली मधुसूदन भयभीत हो उठा। तभी आकाशवाणी हुई- 'मधुसूदन! तूने संगीता के माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया। यह सब भगवान बुधदेव के प्रकोप से हो रहा है।' मधुसूदन ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की कि 'हे भगवान बुधदेव मुझे क्षमा कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई। भविष्य में अब कभी बुधवार के दिन यात्रा नहीं करूँगा और सदैव बुधवार को आपका व्रत किया करूँगा।' मधुसूदन के प्रार्थना करने से भगवान बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया। तभी दूसरा व्यक्ति राजा के सामने से गायब हो गया। राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देख हैरान हो गए। भगवान बुधदेव की इस अनुकम्पा से राजा ने मधुसूदन और उसकी पत्नी को सम्मानपूर्वक विदा किया। कुछ दूर चलने पर रास्ते में उन्हें बैलगाड़ी मिल गई। बैलगाड़ी का टूटा हुआ पहिया भी जुड़ा हुआ था। दोनों उसमें बैठकर समतापुर की ओर चल दिए। मधुसूदन और उसकी पत्नी संगीता दोनों बुधवार को व्रत करते हुए आनंदपूर्वक जीवन-यापन करने लगे। भगवान बुधदेव की अनुकम्पा से उनके घर में धन-संपत्ति की वर्षा होने लगी। जल्दी ही उनके जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ भर गईं। बुधवार का व्रत करने से स्त्री-पुरुषों के जीवन में सभी मंगलकामनाएँ पूरी होती हैं। बुधवार व्रत उद्यापन विधि जितना आपने व्रत शुरु करने के समय संकल्प किया उतना व्रत करने के बाद बुधवार व्रत का उद्यापन करें। उद्यापन पूजन सामग्ररी बुध या गणेश भगवान की मूर्ति – 1 कांस्य का पात्र -1 चावल/अक्षत – 250 ग्राम धूप – 1 पैकेट दीप - 2 गंगाजल फूल लाल चंदन- – 1 पैकेट गुड़ हरा वस्त्र -1.25 मीटर (2) यज्ञोपवीत- 1 जोड़ा रोली गुलाल नैवेद्य(मूंग दाल से बनी हुई) जल पात्र पंचामृत (कच्चा दूध, दही, घी,मधु तथा शक्कर मिलाकर बनायें) पान - 2 सुपारी- 2 लौंग– 1 पैकेट इलायची- 1 पैकेट ऋतुफल कपूर आरती के लिये पात्र हवन की सामग्री हवन कुंड आम की समिधा (लकड़ी) हवन सामग्री- 1 पैकेट उद्यापन क्रम वैदिक रीति से बुधवार के व्रत करने वाले साधको के लिये यहाँ हम वैदिक मंत्रों द्वारा उद्यापन एवं बुधवार पूजन विधि सांझा कर रहे है। वैदिक मंत्र की जानकारी न होने की अवस्था मे आप किसी ब्राह्मण द्वारा यह विधि करा सकते है अगर यह कराने में भी असमर्थ है तो नीचे दी हुई विधि द्वारा सामग्री चढ़ाते हुए सामान्य पूजन कर सकते है ध्यान रखें देव पूजन में भाव का महत्त्व सर्वप्रथम है लौकिक पूजन की अपेक्षा मानसिक पूजन का फल अधिक बताया गया है इसलिये प्रत्येक वस्तु चाहिए वह उपलब्ध हो या ना हो उसे उपलब्ध होने पर चढ़ा कर उपलब्ध ना होने पर मानसिक रूप से चढ़ाकर वही भाव दर्शाने से पूजा सामग्री भगवान अवश्य स्वीकार करते है एवं पूजा सफल मानी जाती है। व्रती को बुधवार के दिन प्रात:काल उठकर नित क्रम कर स्नान कर । हरा वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को स्वच्छ कर शुद्ध कर लें। सभी सामग्री एकत्रित कर लें। लकड़ी के चौकी पर हरा वस्त्र बिछायें । कांस्य का पात्र रखें । पात्र के ऊपर बुध देव की प्रतिमा अथवा श्रीगणेश को स्थापित करें । सामने आसन पर बैठ जायें। सभी पूजन सामग्री एकत्रित कर बैठ जायें। पवित्रीकरण सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर मंत्र के द्वारा अपने ऊपर जल छिड़कें ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा। यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥ इसके पश्चात् पूजा कि सामग्री और आसन को भी मंत्र उच्चारण के साथ जल छिड़क कर शुद्ध कर लें:- पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥ अब आचमन करें,,,पुष्प से एक –एक करके तीन बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए- ॐ केशवाय नमः ॐ नारायणाय नमः ॐ वासुदेवाय नमः फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। गणेश पूजन,,इसके बाद सबसे पहले गणेश जी का पूजन पंचोपचार विधि (धूप, दीप, पूष्प, गंध, एवं नैवेद्य) से करें। चौकी के पास हीं किसी पात्र में गणेश जी के विग्रह को रखकर पूजन करें। यदि गणेश जी की मूर्ति उपलब्ध न हो तो सुपारी पर मौली लपेट कर गणेश जी बनायें। संकल्प ,,हाथ में जल, अक्षत, पान का पत्ता, सुपारी और कुछ सिक्के लेकर निम्न मंत्र के साथ उद्यापन का संकल्प करें:‌ - ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। श्री मद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम्‌ उत्तमे अमुकमासे (जिस माह में उद्यापन कर रहे हों, उसका नाम) अमुकपक्षे (जिस पक्ष में उद्यापन कर रहे हों, उसका नाम) अमुकतिथौ (जिस तिथि में उद्यापन कर रहे हों, उसका नाम) बुधवासरान्वितायाम्‌ अमुकनक्षत्रे (उद्यापन के दिन, जिस नक्षत्र में सुर्य हो उसका नाम) अमुकराशिस्थिते सूर्ये (उद्यापन के दिन, जिस राशिमें सुर्य हो उसका नाम) अमुकामुकराशिस्थितेषु (उद्यापन के दिन, जिस –जिस राशि में चंद्र, मंगल,बुध, गुरु शुक, शनि हो उसका नाम) चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः (अपने गोत्र का नाम) अमुक नाम (अपना नाम) अहं बुधवार व्रत उद्यापन करिष्ये । सभी वस्तुएँ बुध देव के पास छोड़ दें। ध्यान,,दोनों हाथ जोड़ बुध देव का ध्यान करें:- बुधं त्वं बोधजनो बोधव: सर्वदानृणाम्। तत्त्वावबोधंकुरु ते सोम पुत्र नमो नम:॥ आवाहन ,,अब हाथ में अक्षत तथा फूल लेकर बुध देव का आवाहन निम्न मंत्र के द्वारा करें:- ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च । अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।। सभी वस्तुएँ बुध देव के पास छोड़ दें। आसन ,,हाथ में पुष्प लेकर मंत्र के द्वारा बुध देव को आसन समर्पित करें पाद्य,,पाद्य धोने के लिये मंत्र के उच्चारण क साथ पुष्प से बुध देव को जल अर्पित करें:- ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: पाद्यो पाद्यम समर्पयामि अर्घ्य,,पुष्प से अर्घ्य के लिये बुध देव को जल अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: अर्घ्यम समर्पयामि आचमन ,,पुष्प से आचमन के लिये बुध देव को जल अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:- ऊँ सौम्यग्रहाय नम: आचमनीयम् जलम् समर्पयामि। स्नान,,पुष्प से स्नान के लिये बुध देव को जल अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:- ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: स्नानम् जलम् समर्पयामि। पंचामृत- स्नान ,पुष्प से पंचामृत स्नान के लिये बुध देव को पंचामृत अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:- ऊँ सोमात्मजाय नम: पंचामृत स्नानम् समर्पयामि। शुद्धोदक- स्नान,,पंचामृत स्नान के बाद दूसरे पात्र में गंगाजल लेकर चम्मच से बुध देव को शुद्धोदक स्नान के लिये जल अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:- ऊँ बुधाय नम: शुद्धोदक स्नानम् समर्पयामि। यज्ञोपवीत,,मंत्र उच्चारण के द्वारा बुध देव को यज्ञोपवीत अर्पित करें :- ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: यज्ञोपवीतम् समर्पयामि वस्त्र,,मंत्र उच्चारण के द्वारा बुध देव को वस्त्र अर्पित करें :- ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: वस्त्रम् समर्पयामि गंध,,मंत्र उच्चारण के द्वारा बुध देव को गंध अर्पित करें :- ऊँ सौम्यग्रहाय नम: गंधम् समर्पयामि। अक्षत,,,मंत्र उच्चारण के द्वारा बुध देव को अक्षत अर्पित करें :- ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: अक्षतम् समर्पयामि। पुष्प,,मंत्र उच्चारण के द्वारा बुध देव को पुष्प अर्पित करें :- ऊँ सोमात्मजाय नम: पुष्पम् समर्पयामि। पुष्पमाला,,,मंत्र उच्चारण के द्वारा बुध देव को पुष्पमाला अर्पित करें :- ऊँ बुधाय नम: पुष्पमाला समर्पयामि। धूप,,,मंत्र उच्चारण के द्वारा बुध देव को धूप अर्पित करें :- ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: धूपम् समर्पयामि दीप ,,मंत्र उच्चारण के द्वारा बुध देव को दीप दिखायें:- ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: दीपम् दर्शयामि नैवेद्य ,,मंत्र उच्चारण के द्वारा बुध देव को नैवेद्य अर्पित करें:- ऊँ सौम्यग्रहाय नम: नैवेद्यम् समर्पयामि आचमन ,,पुष्प से आचमन के लिये बुध देव को जल अर्पित करते हुये मंत्र का उच्चारण करें:- ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम: आचमनीयम् जलम् समर्पयामि। करोद्धर्तन ,,मंत्र उच्चारण के द्वारा बुध देव को करोद्धर्तन के लिये चंदन अर्पित करें:- ऊँ सोमात्मजाय नम: करोद्धर्तन समर्पयामि। ताम्बुलम् ,,,पान के पत्ते को पलट कर उस लौंग,इलायची,सुपारी, कुछ मीठा रखकर दो ताम्बूल बनायें। मंत्र के द्वारा बुध देव को ताम्बुल अर्पित करें:- ऊँ बुधाय नम: ताम्बूलम् समर्पयामि। दक्षिणा ,, मंत्र के द्वारा बुध देव को दक्षिणा अर्पित करें:- ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम: दक्षिणा समर्पयामि | हवन –कुण्ड में आम की समिधा सजायें। हवन कुण्ड की पंचोपचार विधि से पूजा करें। हवन सामग्री में घी, तिल, जौ तथा चावल मिलाकर निम्न मंत्र के द्वारा 108 आहुति दें :- ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च । अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।स्वाहा॥ आरती। ,एक थाली या आरती के पात्र में दीपक तथा कपूर प्रज्वलित कर गणेश जी की आरती उसके बाद बुध देव की आरती करें:- श्री गणेश जी की आरती,, जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा, जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा !! !! एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी, माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी, जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा !! !! अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया, बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया, जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा !! !! हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा, लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा, जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा !! !! दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी, कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी, जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा !! बुध देव की आरती,,आरती युगलकिशोर की कीजै । तन मन न्यौछावर कीजै।। गौरश्याम मुख निरखन लीजे। हरी को स्वरुप नयन भरी पीजै ॥ रवि शशि कोटि बदन की शोभा। ताहि निरिख मेरो मन लोभा ॥ ओढे नील पीत पट सारी । कुंज बिहारी गिरिवर धारी॥ फूलन की सेज फूलन की माला । रतन सिंहासन बैठे नंदलाला॥ कंचन थार कपूर की बाती । हरी आए निर्मल भई छाती॥ श्री पुरषोत्तम गिरिवर धारी। आरती करत सकल ब्रज नारी॥ नन्द -नंदन वृषभानु किशोरी । परमानन्द स्वामी अविचल जोरी॥ आरती का तीन बार प्रोक्षण करके सबसे पहले सभे देवी-देवताओं को आरती दें। उसके बाद उपस्थित व्यक्तियों को आरती दिखायें एवं स्वयं भी आरती ले। प्रदक्षिणा अपने स्थान पर खड़े हो जायें और बायें से दायें की ओर घूमकर प्रदक्षिणा करें:- ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम: प्रदक्षिणा समर्पयामि दोनों हाथ जोड़कर मंत्र के द्वारा बुध देव से प्रार्थना करें:- प्रियंग कालिकाभासं रूपेणाप्रतिमं बुधम्। सौम्य सौम्य गुणापेतं तं बुधप्रणमाम्यहम्॥ क्षमा-प्रार्थना ,,दोनों हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें:- आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् । पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर: ॥ विसर्जन विसर्जन के लिये हाथ में अक्षत , पुष्प लेकर मंत्र –उच्चारण के द्वारा विसर्जन करें :- स्वस्थानं गच्छ देवेश परिवारयुत: प्रभो । पूजाकाले पुनर्नाथ त्वग्राऽऽगन्तव्यमादरात्॥ अब 21 अथवा सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन करायें और दक्षिणा और भगवान गणेश के किसी भी स्तोत्र अथवा पाठ की एक एक पुस्तक हरे वस्त्र सहित दें। तत्पश्चात् बंधु-बांधवों सहित स्वयं भोजन करें। श्री गणेश चालीसा ॥दोहा॥ जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥ ॥चौपाई॥ जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभः काजू॥ जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥ वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥ राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥ पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥ सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥ धनि शिव सुवन षडानन भ्राता। गौरी लालन विश्व-विख्याता॥ ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मुषक वाहन सोहत द्वारे॥ कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुची पावन मंगलकारी॥ एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥ भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥ अतिथि जानी के गौरी सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥ अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥ मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥ गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥ अस कही अन्तर्धान रूप हवै। पालना पर बालक स्वरूप हवै॥ बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥ सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥ शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥ लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥ निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥ गिरिजा कछु मन भेद बढायो। उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥ कहत लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥ नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहयऊ॥ पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥ गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी। सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥ हाहाकार मच्यौ कैलाशा। शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥ तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटी चक्र सो गज सिर लाये॥ बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥ नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥ बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥ चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥ चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥ धनि गणेश कही शिव हिये हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥ तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥ मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥ भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥ अब प्रभु दया दीना पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥ ॥दोहा॥ श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान। नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥ सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश। पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश॥ गणपति अथर्वशीर्ष का हिन्दी अनुवाद सहित गणेश जी की अनेक श्लोक, स्तोत्र, जाप द्वारा गणेशजी को मनाया जाता है। इनमें से गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी बहुत मंगलकारी है। गणपति अथर्वशीर्ष ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि त्वमेव केवलं कर्ताऽ सि त्वमेव केवलं धर्ताऽसि त्वमेव केवलं हर्ताऽसि त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1। । अर्थ,, ॐकारापति भगवान गणपति को नमस्कार है। हे गणेश! तुम्हीं प्रत्यक्ष तत्व हो। तुम्हीं केवल कर्ता हो। तुम्हीं केवल धर्ता हो। तुम्हीं केवल हर्ता हो। निश्चयपूर्वक तुम्हीं इन सब रूपों में विराजमान ब्रह्म हो। तुम साक्षात नित्य आत्मस्वरूप हो। ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।। अर्थ ,, मैं ऋत न्याययुक्त बात कहता हूँ। सत्य कहता हूँ। अव त्व मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चातात। अव पुरस्तात। अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।। सर्वतो माँ पाहि-पाहि समंतात्।।3।। अर्थ , हे पार्वतीनंदन! तुम मेरी (मुझ शिष्य की) रक्षा करो। वक्ता (आचार्य) की रक्षा करो। श्रोता की रक्षा करो। दाता की रक्षा करो। धाता की रक्षा करो। व्याख्या करने वाले आचार्य की रक्षा करो। शिष्य की रक्षा करो। पश्चिम से रक्षा। पूर्व से रक्षा करो। उत्तर से रक्षा करो। दक्षिण से रक्षा करो। ऊपर से रक्षा करो। नीचे से रक्षा करो। सब ओर से मेरी रक्षा करो। चारों ओर से मेरी रक्षा करो। त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।। अर्थ ,, तुम वाङ्‍मय हो, चिन्मय हो। तुम आनंदमय हो। तुम ब्रह्ममय हो। तुम सच्चिदानंद अद्वितीय हो। तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुम दानमय विज्ञानमय हो। सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।। अर्थ ,,यह जगत तुमसे उत्पन्न होता है। यह सारा जगत तुममें लय को प्राप्त होगा। इस सारे जगत की तुममें प्रतीति हो रही है। तुम भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश हो। परा, पश्चंती, बैखरी और मध्यमा वाणी के ये विभाग तुम्हीं हो। त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।। अर्थ तुम सत्व, रज और तम तीनों गुणों से परे हो। तुम जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं से परे हो। तुम स्थूल, सूक्ष्म औ वर्तमान तीनों देहों से परे हो। तुम भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों से परे हो। तुम मूलाधार चक्र में नित्य स्थित रहते हो। इच्छा, क्रिया और ज्ञान तीन प्रकार की शक्तियाँ तुम्हीं हो। तुम्हारा योगीजन नित्य ध्यान करते हैं। तुम ब्रह्मा हो, तुम विष्णु हो, तुम रुद्र हो, तुम इन्द्र हो, तुम अग्नि हो, तुम वायु हो, तुम सूर्य हो, तुम चंद्रमा हो, तुम ब्रह्म हो, भू:, र्भूव:, स्व: ये तीनों लोक तथा ॐकार वाच्य पर ब्रह्म भी तुम हो। गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं। तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं। गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं। अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं। नाद: संधानं। सँ हितासंधि: सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि: निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम:।।7।। अर्थ ,, गण के आदि अर्थात 'ग्' कर पहले उच्चारण करें। उसके बाद वर्णों के आदि अर्थात 'अ' उच्चारण करें। उसके बाद अनुस्वार उच्चारित होता है। इस प्रकार अर्धचंद्र से सुशोभित 'गं' ॐकार से अवरुद्ध होने पर तुम्हारे बीज मंत्र का स्वरूप (ॐ गं) है। गकार इसका पूर्वरूप है।बिन्दु उत्तर रूप है। नाद संधान है। संहिता संविध है। ऐसी यह गणेश विद्या है। इस महामंत्र के गणक ऋषि हैं। निचृंग्दाय छंद है श्री मद्महागणपति देवता हैं। वह महामंत्र है- ॐ गं गणपतये नम:। एकदंताय विद्‍महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात।।8। अर्थ ,, एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें। यह गणेश गायत्री है। एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।। भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।। अर्थ ,,एकदंत चतुर्भज चारों हाथों में पाक्ष, अंकुश, अभय और वरदान की मुद्रा धारण किए तथा मूषक चिह्न की ध्वजा लिए हुए, रक्तवर्ण लंबोदर वाले सूप जैसे बड़े-बड़े कानों वाले रक्त वस्त्रधारी शरीर प रक्त चंदन का लेप किए हुए रक्तपुष्पों से भलिभाँति पूजित। भक्त पर अनुकम्पा करने वाले देवता, जगत के कारण अच्युत, सृष्टि के आदि में आविर्भूत प्रकृति और पुरुष से परे श्रीगणेशजी का जो नित्य ध्यान करता है, वह योगी सब योगियों में श्रेष्ठ है। नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नम: प्रमथपतये। नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय। विघ्ननाशिने शिवसुताय। श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।। अर्थ ,, व्रात (देव समूह) के नायक को नमस्कार। गणपति को नमस्कार। प्रथमपति (शिवजी के गणों के अधिनायक) के लिए नमस्कार। लंबोदर को, एकदंत को, शिवजी के पुत्र को तथा श्रीवरदमूर्ति को नमस्कार-नमस्कार ।।10।। एतदथर्वशीर्ष योऽधीते। स ब्रह्मभूयाय कल्पते। स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते। स सर्वत: सुखमेधते। स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।। अर्थ ,, यह अथर्वशीर्ष (अथर्ववेद का उप‍‍‍निषद) है। इसका पाठ जो करता है, ब्रह्म को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है। सब प्रकार के विघ्न उसके लिए बाधक नहीं होते। वह सब जगह सुख पाता है। वह पाँचों प्रकार के महान पातकों तथा उपपातकों से मुक्त हो जाता है। सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति। प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति। सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति। सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति। धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।। अर्थ ,, सायंकाल पाठ करने वाला दिन के पापों का नाश करता है। प्रात:काल पाठ करने वाला रात्रि के पापों का नाश करता है। जो प्रात:- सायं दोनों समय इस पाठ का प्रयोग करता है वह निष्पाप हो जाता है। वह सर्वत्र विघ्नों का नाश करता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करता है। इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्। यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति। सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।। अर्थ ,, इस अथर्वशीर्ष को जो शिष्य न हो उसे नहीं देना चाहिए। जो मोह के कारण देता है वह पातकी हो जाता है। सहस्र (हजार) बार पाठ करने से जिन-जिन कामों-कामनाओं का उच्चारण करता है, उनकी सिद्धि इसके द्वारा ही मनुष्य कर सकता है। अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति स विद्यावान भवति। इत्यथर्वणवाक्यं। ब्रह्माद्यावरणं विद्यात् न बिभेति कदाचनेति।।14।। अर्थ ,, इसके द्वारा जो गणपति को स्नान कराता है, वह वक्ता बन जाता है। जो चतुर्थी तिथि को उपवास करके जपता है वह विद्यावान हो जाता है, यह अथर्व वाक्य है जो इस मं‍त्र के द्वारा तपश्चरण करना जानता है वह कदापि भय को प्राप्त नहीं होता। यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति। यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति स मेधावान भवति। यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छित फलमवाप्रोति। य: साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।। अर्थ ,,जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का यजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। जो लाजो (धानी-लाई) के द्वारा यजन करता है वह यशस्वी होता है, मेधावी होता है। जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा यजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है। जो घृत के सहित समिधा से यजन करता है, वह सब कुछ प्राप्त करता है। अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति। सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति। महाविघ्नात्प्रमुच्यते। महादोषात्प्रमुच्यते। महापापात् प्रमुच्यते। स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति। य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।। अर्थ , आठ ब्राह्मणों को सम्यक रीति से ग्राह कराने पर सूर्य के समान तेजस्वी होता है। सूर्य ग्रहण में महानदी में या प्रतिमा के समीप जपने से मंत्र सिद्धि होती है। वह महाविघ्न से मुक्त हो जाता है। जो इस प्रकार जानता है, वह सर्वज्ञ हो जाता है वह सर्वज्ञ हो जाता है। साधक इस दिन सामर्थ्य अनुसार श्रीगणेश सहस्त्र नामावली का पाठ करना चाहे तो अति उत्तम है क्योंकि पूजा पाठ से ज्यादा तप का महत्त्व है किसी भी रूप में अधिक से अधिक समय भगवान का नाम स्मरण भी तप की ही श्रेणी में आता है। Gyanchand Bundiwal. 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