पुत्रदा..वैकुण्ठ एकादशी...... जानिए इस व्रत का महत्व व रोचक कथा......
पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का महत्व पुराणों में वर्णित है। इस बार यह एकादशी 22 जनवरी, मंगलवार को है। इस व्रत को करने से योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। उसके अनुसार-
पूर्वकाल में भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। उनके यहां कोई संतान नहीं थी इसलिए दोनों पति-पत्नी सदा चिन्ता और शोक में रहते थे। शोकमग्न होकर एक दिन राजा सुकेतुमान घोड़े पर सवार होकर वन में चले गये। वहां घुमते-घुमते राजा को दोपहर हो गई। तब राजा को भूख और प्यास सताने लगी। वे पानी की खोज में इधर-उधर भटकने लगे।
तभी उन्हें वन में एक सरोवर दिखाई दिया। सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। राजा ने घोड़े से उतरकर सभी मुनियों को वंदना की। राजा की स्तुति सुनकर मुनि अति प्रसन्न हुए और बोले- राजन। हम लोग तुम पर प्रसन्न हैं। तुम अपने मन की बात हमें बताओ। राजा बोले- मुनिजन आप लोग कौन हैं, तथा यहाँ किस कार्य के लिए एकत्रित हुए हैं? मुनि बोले- राजन। हम लोग विश्वेदेव हैं। यहाँ स्नान के लिए आए हैं।
माघ मास निकट आया है। आज से पाँचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायेगा। आज ही पुत्रदा नाम की एकादशी है, जो व्रत करने वाले मनुष्यों को पुत्र देती है। राजा ने कहा- विश्वेदेवगण। यदि आप लोग मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये। मुनि बोले- राजन। आज पुत्रदा नाम की एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो। भगवान की कृपा से तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा।
इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने पुत्रदा एकादशी व्रत का पालन किया। फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये। कुछ ही दिनों बाद रानी चम्पा ने गर्भधारण किया। उचित समय आने पर रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट किया तथा वह प्रजा का पालक हुआ।
पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का महत्व पुराणों में वर्णित है। इस बार यह एकादशी 22 जनवरी, मंगलवार को है। इस व्रत को करने से योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। उसके अनुसार-
पूर्वकाल में भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। उनके यहां कोई संतान नहीं थी इसलिए दोनों पति-पत्नी सदा चिन्ता और शोक में रहते थे। शोकमग्न होकर एक दिन राजा सुकेतुमान घोड़े पर सवार होकर वन में चले गये। वहां घुमते-घुमते राजा को दोपहर हो गई। तब राजा को भूख और प्यास सताने लगी। वे पानी की खोज में इधर-उधर भटकने लगे।
तभी उन्हें वन में एक सरोवर दिखाई दिया। सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। राजा ने घोड़े से उतरकर सभी मुनियों को वंदना की। राजा की स्तुति सुनकर मुनि अति प्रसन्न हुए और बोले- राजन। हम लोग तुम पर प्रसन्न हैं। तुम अपने मन की बात हमें बताओ। राजा बोले- मुनिजन आप लोग कौन हैं, तथा यहाँ किस कार्य के लिए एकत्रित हुए हैं? मुनि बोले- राजन। हम लोग विश्वेदेव हैं। यहाँ स्नान के लिए आए हैं।
माघ मास निकट आया है। आज से पाँचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायेगा। आज ही पुत्रदा नाम की एकादशी है, जो व्रत करने वाले मनुष्यों को पुत्र देती है। राजा ने कहा- विश्वेदेवगण। यदि आप लोग मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये। मुनि बोले- राजन। आज पुत्रदा नाम की एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो। भगवान की कृपा से तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा।
इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने पुत्रदा एकादशी व्रत का पालन किया। फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये। कुछ ही दिनों बाद रानी चम्पा ने गर्भधारण किया। उचित समय आने पर रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट किया तथा वह प्रजा का पालक हुआ।