स्वामी अयप्पा, शरणम स्वामी अयप्पा स्वामी अयप्पा
केरल। दक्षिण भारत में शबरीमलई में अयप्पा स्वामी मंदिर है
। इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह रहकर यहां एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं।
केरल में भगवान अयप्पा का यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।जहां करोड़ों की संख्या में हर साल तीर्थयात्री आते हैं।यहां विराजते हैं भगवान अय्यप्पा। इनकी कहानी भी बहुत अनूठी है। अय्यप्पा का एक नाम 'हरिहरपुत्र' है यानी हरि (विष्णु) और हर (शिव) के पुत्र। हरि के मोहनी रूप को ही अय्यप्पा की मां माना जाता है।
शबरीमलई का नाम शबरी के नाम पर पड़ा है। जी हां, वही रामायण वाली शबरी जिसने भगवान राम को जूठे फल खिलाए थे और राम ने उसे नवधा-भक्ति का उपदेश दिया था।
इतिहासकारों के मुताबिक, पंडालम के राजा राजशेखर ने अय्यप्पा को पुत्र के रूप में गोद लिया। लेकिन भगवान अय्यप्पा को ये सब अच्छा नहीं लगा और वो महल छोड़कर चले गए।
आज भी यह प्रथा है कि हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर पंडालम राजमहल से अय्यप्पा के आभूषणों को संदूकों में रखकर एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जो 90 किलोमीटर की यात्रा तय करके तीन दिन में शबरीमलई पहुंचती है।
कहा जाता है इसी दिन यहां एक निराली घटना होती है। पहाड़ी की कांतामाला चोटी पर असाधारण चमक वाली ज्योति दिखलाई देती है।
15 नवंबर का मंडलम और 14 जनवरी की मकर विलक्कू, ये शबरीमलई के प्रमुख उत्सव हैं। मलयालम पंचांग (माह) के पहले पांच दिनों और विशु माह यानी अप्रैल में ही इस मंदिर के पट खोले जाते हैं।
उत्सव के दौरान भक्त घी से प्रभु अय्यप्पा की मूर्ति का अभिषेक करते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को 'स्वामी तत्वमसी' के नाम से संबोधित किया जाता है। उन्हें कुछ बातों का खास ख्याल रखना पड़ता है। इस समय श्रद्धालुओं को तामसिक प्रवृत्तियों और मांसाहार से बचना पड़ता है।
इस मंदिर में सभी जाति के लोग जा सकते हैं।।'Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.
केरल। दक्षिण भारत में शबरीमलई में अयप्पा स्वामी मंदिर है
। इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह रहकर यहां एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं।
केरल में भगवान अयप्पा का यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।जहां करोड़ों की संख्या में हर साल तीर्थयात्री आते हैं।यहां विराजते हैं भगवान अय्यप्पा। इनकी कहानी भी बहुत अनूठी है। अय्यप्पा का एक नाम 'हरिहरपुत्र' है यानी हरि (विष्णु) और हर (शिव) के पुत्र। हरि के मोहनी रूप को ही अय्यप्पा की मां माना जाता है।
शबरीमलई का नाम शबरी के नाम पर पड़ा है। जी हां, वही रामायण वाली शबरी जिसने भगवान राम को जूठे फल खिलाए थे और राम ने उसे नवधा-भक्ति का उपदेश दिया था।
इतिहासकारों के मुताबिक, पंडालम के राजा राजशेखर ने अय्यप्पा को पुत्र के रूप में गोद लिया। लेकिन भगवान अय्यप्पा को ये सब अच्छा नहीं लगा और वो महल छोड़कर चले गए।
आज भी यह प्रथा है कि हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर पंडालम राजमहल से अय्यप्पा के आभूषणों को संदूकों में रखकर एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जो 90 किलोमीटर की यात्रा तय करके तीन दिन में शबरीमलई पहुंचती है।
कहा जाता है इसी दिन यहां एक निराली घटना होती है। पहाड़ी की कांतामाला चोटी पर असाधारण चमक वाली ज्योति दिखलाई देती है।
15 नवंबर का मंडलम और 14 जनवरी की मकर विलक्कू, ये शबरीमलई के प्रमुख उत्सव हैं। मलयालम पंचांग (माह) के पहले पांच दिनों और विशु माह यानी अप्रैल में ही इस मंदिर के पट खोले जाते हैं।
उत्सव के दौरान भक्त घी से प्रभु अय्यप्पा की मूर्ति का अभिषेक करते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को 'स्वामी तत्वमसी' के नाम से संबोधित किया जाता है। उन्हें कुछ बातों का खास ख्याल रखना पड़ता है। इस समय श्रद्धालुओं को तामसिक प्रवृत्तियों और मांसाहार से बचना पड़ता है।
इस मंदिर में सभी जाति के लोग जा सकते हैं।।'Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.