Sunday, 27 January 2013

शनिदेव,,जय श्री शनिदेव.शनि शिंगणापुर

 शनिदेव,,जय श्री शनिदेव.शनि शिंगणापुर **शनि की साढेसाती के अशुभ फलों के उपाय

नीलांजन समाभासम रविपुत्रं यमाग्रजम छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम नमामि ..... शनैश्चरम**लगभग तीन हजार जनसंख्या के शनि शिंगणापुर गाँव में किसी भी घर में दरवाजा नहीं है। कहीं भी कुंडी तथा कड़ी लगाकर ताला नहीं लगाया जाता। इतना ही नहीं, घर में लोग आलीमारी, सूटकेस आदि नहीं रखते। ऐसा शनि भगवान की आज्ञा से किया जाता है।
शनि की साढेसाती के अशुभ फलों के उपाय..
1. राजा दशरथ विरचित शनि स्तोत्र के सवा लक्ष जप।
2. शनि मंदिर या चित्र पूजन कर प्रतिदिन इस मंत्र का पाठ करें:-
नमस्ते कोण संस्थाय, पिंगलाय नमोस्तुते।
नमस्ते वभु्ररूपाय, कृष्णाय च नमोस्तुते ।।
नमस्ते रौद्रदेहाय, नमस्ते चांतकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय, नमस्ते सौरये विभौ।।
नमस्ते मंदसंज्ञाय, शनैश्चर नमोस्तुते।
प्रसादं कुरू में देवेश, दीनस्य प्रणतस्य च।।
3. घर में पारद और स्फटिक शिवलिंग (अन्य नहीं) एक चौकी पर, शुचि बर्तन में स्थापित कर, विधानपूर्वक पूजा अर्चना कर, रूद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए।
4. सुंदरकाण्ड का पाठ एवं हनुमान उपासना, संकटमोचन का पाठ करें।
5. हनुमान चालीसा, शनि चालीसा और शनैश्चर देव के मंत्रों का पाठ करें। ऊँ शं शनिश्चराय नम:।।
6. शनि जयंती पर, शनि मंदिर जाकर, शनिदेव का अभिषेक कर दर्शन करें।
7. ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम: के 23,000 जप करें फिर 27 दिन तक शनि स्तोत्र के चार पाठ रोज करें।
अन्य उपाय
1. शनिवार को सायंकाल पीपल के पेड के नीचे मीठे तेल का दीपक जलाएं।
2. घर के मुख्य द्वार पर, काले घोडे की नाल, शनिवार के दिन लगावें।
3. काले तिल, ऊनी वस्त्र, कंबल, चमडे के जूते, तिल का तेल, उडद, लोहा, काली गाय, भैंस, कस्तूरी, स्वर्ण, तांबा आदि का दान करें।
4. शनिदेव के मंदिर जाकर, उन्हें काले वस्त्रों से सुसज्जित कराकर यथाविध काले गुलाब जामुन का प्रसाद चढाएं।
5. घोडे की नाल अथवा नाव की कील का छल्ला बनवाकर मघ्यमा अंगुली में पहनें।
6. अपने घर के मंदिर में एक डिबिया में सवा तीन रत्ती का नीलम सोमवार को रख दें और हाथ में 12 रूपये लेकर प्रार्थना करें शनिदेव ये आपके नाम के हैं फिर शनिवार को इन रूपयों में से 10 रूपये के सप्तधान्य (सतनाज) खरीदकर शेष 2 रूपये सहित झाडियों या चींटी के बिल पर बिखेर दें और शनिदेव से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें।
7. कडवे तेल में परछाई देखकर, उसे अपने ऊपर सात बार उसारकर दान करें, पहना हुआ वस्त्र भी दान दे दें, पैसा या आभूषण आदि नहीं।
8. शनि विग्रह के चरणों का दर्शन करें, मुख के दर्शन से बचें।
9. शनिव्रत : श्रावण मास के शुक्ल पक्ष से, शनिव्रत आरंभ करें, 33 व्रत करने चाहिएँ, तत्पश्चात् उद्यापन करके, दान करें।
शनि मेहनत और कठिन समय में अन्धेरे में बिना साधनों के कार्य करने की शिक्षा देता है,राहु छुपी हुयी शक्ति के रूप मे कार्य करने की शिक्षा देता है,केतु सहायता लेकर कार्य करने की शिक्षा को देता है। जीवन में शनि का समय उन्नीस साल का होता है,और अन्य ग्रहों का अलग अलग समय नियत किया गया है। लेकिन शनि का साढेशाती का समय जीवन में लगभग छ: बार आता है,जिसमें तीन बार ऊपर उठने का और तीन बार नीचे गिरने का होता है। इस उठने और गिरने के समय में मनुष्य को कठिन समय का उपयोग करना पडता है,लेकिन जैसे ही वह कठिन समय को व्यतीत कर लेता है तो उसे आगे के जीवन में दूसरे ग्रहों से सम्बन्धित कार्य करने में दिक्कत नही आती है,वह अपने को किसी भी समय की विकट परिस्थितियों में काम करने का आदी हो जाता है।
जो कार्य मनुष्य अपने आराम के लिये करने के लिये उद्धत रहता है। प्रत्येक ग्रह अपने अपने अनुसार मनुष्य को कार्य करने की शिक्षा देता है। उन शिक्षाओं में सूर्य देखने के बाद कार्य करने की शिक्षा देता है,चन्द्रमा सोचने के बाद कार्य करने की शिक्षा देता है,मंगल हिम्मत से कार्य करने की शिक्षा देता है,बुध पूंछ पूंछ कर और महसूस करने के बाद कार्य करने की शिक्षा देता है,गुरु सम्बन्ध बनाकर और शिक्षा को लेकर ज्ञान को बढा कर कार्य करने की शिक्षा देता है,शुक्र भावनाओं को और प्रतिस्पर्धा को सामने रखकर एक दूसरे की कला को विकसित करने के बाद कार्य को करने की शिक्षा देता है

अक्सर जीव कभी अपने अपने अनुसार कार्य नही करता है,अगर वह करता भी है तो उसे आराम करने की अधिक तलब होती है,आराम के साधनों के लिये वह तरह तरह के प्रयोग करता है और कार्य को पूरा करने के लिये वह नियत समय का उपयोग नही करता है,इन सब के लिये शनि उस किये जाने वाले कार्य को करने के लिये अपने अपने अनुसार उन साधनों से दूर करता है

शनि कर्म करने का अधिकार और कर्म करने की शक्ति के साथ क्रिया के दौरान काम करने के बाद सीखने और किये जाने वाले कार्यों से थकने के बाद आराम करने के साधन देता है,राहु किये जाने वाले कार्यों में अचानक परिवर्तन करने की शक्ति देता है,केतु हर जीव के अन्दर सहायता के रूप में शरीर के अंगों सह्ति संसारिक प्राणियों के रूप में अपनी अपनी क्रिया से सहायता के लिये पैदा करता है। क्रियाओं को करने के बाद जीव के द्वारा जो गल्ती होती है और जो कार्य सुचारु रूप से नही किये जाते है या जिन कार्यों के दौरान कार्य नियम से नही किये जाते है,अथवा जीव अपनी बुद्धि के अनुसार जो कार्य जिस समय पर किया जाना था उस कार्य को उस समय पर नही करता है तो शनि उस जीव को अपने अपने समय में कार्य को दुबारा करने के लिये या कार्य को कठिन अवस्था में करने के लिये अपने समय को देता है। जो कर्म मनुष्य के द्वारा समय पर नही किया गया है,या समय पर उस कार्य की शिक्षा अपने ऐशो आराम के कारण नही ले पाया है तो शनि उस कार्य को करने के लिये प्रेक्टिकल रूप से कार्य को करने की शिक्षा देता है।
.जय जय श्री शनिदेव.शनि शिंगणापुर 

 

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