Thursday, 31 July 2014

नाग पंचमी

नाग पंचमी पर्व की विविध कथाएँ प्रचलित है। नागपंचमी के संबंध में ऐसी ही दो बहुप्रचलित कथाएँ हम यहाँ उपलब्‍ध करवा रहे हैं।
नागपंचमी कथा ,,किसी राज्य में एक किसान परिवार रहता था। किसान के दो पुत्र व एक पुत्री थी। एक दिन हल जोतते समय हल से नाग के तीन बच्चे कुचल कर मर गए। नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का संकल्प किया। रात्रि को अंधकार में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दोनों लड़कों को डस लिया।
अगले दिन प्रातः किसान की पुत्री को डसने के उद्देश्य से नागिन फिर चली तो किसान कन्या ने उसके सामने दूध का भरा कटोरा रख दिया। हाथ जोड़ क्षमा माँगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुनः जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी। तब से आज तक नागों के कोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है।
नागपंचमी कथा- एक राजा के सात पुत्र थे, उन सबके विवाह हो चुके थे। उनमें से छह पुत्रों के संतान भी हो चुकी थी। सबसे छोटे पुत्र के अब तक के कोई संतान नहीं हुई, उसकी बहू को जिठानियां बाँझ कहकर बहुत ताने देती थीं।
एक तो संतान न होने का दुःख और उस पर सास, ननद, जिठानी आदि के ताने उसको और भी दुःखित करने लगे। इससे व्याकुल होकर वह बेचारी रोने लगती। उसका पति समझाता कि 'संतान होना या न होना तो भाग्य के अधीन है, फिर तू क्यों दुःखी होती है?' वह कहती- सुनते हो, सब लोग बाँझ- बाँझ कहकर मेरी नाक में दम किए हैं।
पति बोला- दुनिया बकती है, बकने दे मैं तो कुछ नहीं कहता। तू मेरी ओर ध्यान दे और दुःख को छोड़कर प्रसन्न रह। पति की बात सुनकर उसे कुछ सांत्वना मिलती, परंतु फिर जब कोई ताने देता तो रोने लगती थी।
*ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,,,,
इस प्रकार एक दिन नाग पंचमी आ गई। चौथ की रात को उसे स्वप्न में पाँच नाग दिखाई दिए, उनमें एक ने कहा- 'अरी पुत्री। कल नागपंचमी है, तू अगर हमारा पूजन करे तो तुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है। यह सुनकर वह उठ बैठी और पति को जगाकर स्वप्न का हाल सुनाया। पति ने कहा- यह कौन सी बड़ी बात है?
पाँच नाग अगर दिखाई दिए हैं तो पाँचों की आकृति बनाकर उसका पूजन कर देना। नाग लोग ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए उन्हें कच्चे दूध से प्रसन्न करना। दूसरे दिन उसने ठीक वैसा ही किया। नागों के पूजन से उसे नौ मास के बाद सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई

Photo: नाग पंचमी पर्व की विविध कथाएँ प्रचलित है। नागपंचमी के संबंध में ऐसी ही दो बहुप्रचलित कथाएँ हम यहाँ उपलब्‍ध करवा रहे हैं।
नागपंचमी कथा ,,किसी राज्य में एक किसान परिवार रहता था। किसान के दो पुत्र व एक पुत्री थी। एक दिन हल जोतते समय हल से नाग के तीन बच्चे कुचल कर मर गए। नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का संकल्प किया। रात्रि को अंधकार में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दोनों लड़कों को डस लिया।
अगले दिन प्रातः किसान की पुत्री को डसने के उद्देश्य से नागिन फिर चली तो किसान कन्या ने उसके सामने दूध का भरा कटोरा रख दिया। हाथ जोड़ क्षमा माँगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुनः जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी। तब से आज तक नागों के कोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है।
नागपंचमी कथा- एक राजा के सात पुत्र थे, उन सबके विवाह हो चुके थे। उनमें से छह पुत्रों के संतान भी हो चुकी थी। सबसे छोटे पुत्र के अब तक के कोई संतान नहीं हुई, उसकी बहू को जिठानियां बाँझ कहकर बहुत ताने देती थीं।
एक तो संतान न होने का दुःख और उस पर सास, ननद, जिठानी आदि के ताने उसको और भी दुःखित करने लगे। इससे व्याकुल होकर वह बेचारी रोने लगती। उसका पति समझाता कि 'संतान होना या न होना तो भाग्य के अधीन है, फिर तू क्यों दुःखी होती है?' वह कहती- सुनते हो, सब लोग बाँझ- बाँझ कहकर मेरी नाक में दम किए हैं।
पति बोला- दुनिया बकती है, बकने दे मैं तो कुछ नहीं कहता। तू मेरी ओर ध्यान दे और दुःख को छोड़कर प्रसन्न रह। पति की बात सुनकर उसे कुछ सांत्वना मिलती, परंतु फिर जब कोई ताने देता तो रोने लगती थी।
इस प्रकार एक दिन नाग पंचमी आ गई। चौथ की रात को उसे स्वप्न में पाँच नाग दिखाई दिए, उनमें एक ने कहा- 'अरी पुत्री। कल नागपंचमी है, तू अगर हमारा पूजन करे तो तुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है। यह सुनकर वह उठ बैठी और पति को जगाकर स्वप्न का हाल सुनाया। पति ने कहा- यह कौन सी बड़ी बात है?
पाँच नाग अगर दिखाई दिए हैं तो पाँचों की आकृति बनाकर उसका पूजन कर देना। नाग लोग ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए उन्हें कच्चे दूध से प्रसन्न करना। दूसरे दिन उसने ठीक वैसा ही किया। नागों के पूजन से उसे नौ मास के बाद सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई

कालसर्प दोष शांति के लिए छोटे किंतु असरदार उपाय


कालसर्प दोष शांति के लिए छोटे किंतु असरदार उपाय , जो निश्चित रुप से आपके जीवन पर होने वाले बुरे असर को रोकते हैं
जन्म कुण्डली में राहु और केतु की विशेष स्थिति से बनने वाले कालसर्प योग एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी कुंडली में परिलक्षित होता है। व्यावहारिक रूप से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है। या तो उसे संतान होती ही नहीं, या होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है।

तरह तरह के रोग भी उसे परेशान किये रहते हैं बुरे प्रभाव जीवन में तरह-तरह से बाधा पैदा कर सकते हैं। पूरी तरह से मेहनत करने पर भी अंतिम समय में सफलता से दूर हो सकते हैं। कालसर्प योग को लेकर यह धारणा बन चुकी है कि यह दु:ख और पीड़ा देने वाला ही योग है।

जबकि इस मान्यता को लेकर ज्योतिष के जानकार भी एकमत नहीं है। हालांकि यह बात व्यावहारिक रुप से सच पाई गई है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु के बीच सारे ग्रहों के आने से कालसर्प योग बन जाता हैं। उस व्यक्ति का जीवन असाधारण होता है। उसके जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे जाते है।वास्तव में कालसर्प योग के असर से कभी व्यक्ति को जीवन में अनेक कष्टों से दो-चार होना पड़ सकता है तो कभी यही योग ऊंचें पद, सम्मान और सफलता का कारण भी बन जाता है। इस तरह माना जा सकता है कि कालसर्प योग हमेशा पीड़ा देने वाला नहीं होता है।ज्योतिष विज्ञान के अनुसार कालसर्प योग का शुभ-अशुभ फल राशियों के स्वभाव और तत्व पर पर निर्भर करता है।

ज्योतिष विज्ञान अनुसार छायाग्रहों यानि दिखाई न देने वाले राहू और केतु के कारण कुण्डली में बने कालसर्प योग के शुभ होने पर जीवन में सुख मिलता है, किंतु इसके बुरे असर से व्यक्ति जीवन भर कठिनाईयों से जूझता रहता है राहु शंकाओं का कारक है और केतु उस शंका को पैदा करने वाला इस कारण से जातक के जीवन में जो भी दुख का कारण है वह चिरस्थाई हो जाता है,इस चिरस्थाई होने का कारण राहु और केतु के बाद कोई ग्रह नही होने से कुंडली देख कर पता किया जाता है,यही कालसर्प दोष माना जाता है,यह बारह प्रकार का होता है। दोष शांति का अचूक काल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग पूजा का विशेष काल है। यह घड़ी ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से भी बहुत अहम मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के देवता शेषनाग हैं। इसलिए यह दिन बहुत शुभ फल देने वाला माना जाता है। नागपंचमी के दिन कालसर्प दोष शांति के लिए नाग और शिव की विशेष पूजा और उपासना जीवन में आ रही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियों और बाधाओं को दूर कर सुखी और शांत जीवन की राह आसान बनाती है।
राहु केतु मध्ये सप्तो विध्न हा काल सर्प सारिक:।
सुतयासादि सकलादोषा रोगेन प्रवासे चरणं ध्रुवम।।
कालसर्प योग के प्रकार,,
मूलरूप से कालसर्प योग के बारह प्रकार होते हैं इन्हें यदि 12 लग्नों में विभाजित कर दें तो 12 x 12 =144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं I परन्तु 144 प्रकार के कालसर्प योग तब संभव हैं जब शेष 7 ग्रह राहु से केतु के मध्य स्थित होँ I यदि शेष 7 ग्रह केतु से राहु के मध्य स्थित होँ, तो 12 x 12 = 144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं I इसी प्रकार से कुल 144 + 144 = 288 प्रकार के कालसर्प योग स्थापित हो सकते हैं ईन सभी प्रकार के कालसर्प योगों का प्रतिफल एकदूसरे से भिन्न होता है I मूलरूप से कालसर्प योगों के बारह प्रकार हैं जो विश्वविख्यात सर्पों के नाम पर आधारित हैं.
1अनंत कालसर्प योग
2 कुलिक कालसर्प योग
3 वासुकि कालसर्प योग
4 शंखपाल कालसर्प योग
5पदम कालसर्प योग
6 महापदम कालसर्प योग
7 तक्षक कालसर्प योग
8 कारकोटक कालसर्प योग
9 शंखचूड़ कालसर्प योग
10 घातक कालसर्प योग 11विषधर कालसर्प योग 12 शेषनाग कालसर्प योग .
कालसर्प दोष और कष्ट ?
1.अनंत कालसर्प योग- यदि लग्न में राहु एवं सप्तम् में केतु हो, तो यह योग बनता है. जातक कभी शांत नहीं रहता. झूठ बोलना एवं षड़यंत्रों में फंस कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाता रहता है.
2.कुलिक कालसर्प योग- यदि राहु धन भाव में एवं केतु अष्टम हो, तो यह योग बनता है. इस योग में पुत्र एवं जीवन साथी सुख, गुर्दे की बीमारी, पिता सुख का अभाव एवं कदम कदम पर अपमान सहना पड़ सकता है.
3.वासुकी कालसर्प योग- यदि कुंडली के तृतीय भाव में राहु एवं नवम भाव में केतु हो एवं इसके मध्य सारे ग्रह हों, तो यह योग बनता है. इस योग में भाई-बहन को कष्ट, पराक्रम में कमी, भाग्योदय में बाधा, नौकरी में कष्ट, विदेश प्रवास में कष्ट उठाने पड़ते हैं.  *ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,,,
4.शंखपाल कालसर्प योग- यदि राहु नवम् में एवं केतु तृतीय में हो, तो यह योग बनता है. जातक भाग्यहीन हो अपमानित होता है, पिता का सुख नहीं मिलता एवं नौकरी में बार-बार निलंबित होता है.
5. पद्म कालसर्प योग- अगर पंचम भाव में राहु एवं एकादश में केतु हो तो यह योग बनता है, इस योग में संतान सुख का अभाव एवं वृद्धा अवस्था में दुखद होता है. शत्रु बहुत होते हैं, सट्टे में भारी हानि होती है.
6.महापद्म कालसर्प योग- यदि राहु छठें भाव में एवं केतु व्यय भाव में हो, तो यह योग बनता है इसमें पत्नी विरह, आय में कमी, चरित्र हनन का कष्ट भोगना पड़ता है.
7.तक्षक कालसर्प योग- यदि राहु सप्तम् में एवं केतु लग्न में हो तो यह योग बनता है. ऐसे जातक की पैतृक संपत्ति नष्ट होती है, पत्नी सुख नहीं मिलता, बार-बार जेल यात्र करनी पड़ती है.
8.कर्कोटक कालसर्प योग- यदि राहु अष्टम में एवं केतु धन भाव में हो, तो यह योग बनता है. इस योग में भाग्य को लेकर परेशानी होगी. नौकरी की संभावनाएं कम रहती है, व्यापार नहीं चलता, पैतृक संपत्ति नहीं मिलती और नाना प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं.
9.शंखचूड़ कालसर्प योग- यदि राहु सुख भाव में एवं केतु कर्म भाव में हो, तो यह योग बनता है. ऐसे जातक के व्यवसाय में उतार-चढ़ाव एवं स्वास्थ्य खराब रहता है
10.घातक कालसर्प योग- यदि राहु दशम् एवं केतु सुख भाव में हो तो यह योग बनता है. ऐसे जातक संतान के रोग से परेशान रहते हैं, माता या पिता का वियोग होता है. .
11.विषधर कालसर्प योग- यदि राहु लाभ में एवं केतु पुत्र भाव में हो तो यह योग बनता है. ऐसा जातक घर से दूर रहता है, भाईयों से विवाद रहता है, हृदय रोग होता है एवं शरीर जर्जर हो जाता है.
12.शेषनाग कालसर्प योग- यदि राहु व्यय में एवं केतु रोग में हो, तो यह योग बनता है. ऐसे जातक शत्रुओं से पीड़ित हो शरीर सुखित नहीं रहेगा, आंख खराब होगा एवं न्यायालय का चक्कर लगाता रहेगा.
काल सर्प योग में जन्मे जातक में प्रायः निम्नलिखित लक्षण पाए जाते है।
1- सपने में उसे नदी, तालाब,कुए,और समुद्र का पानी दिखाई देता है।
2- सपने में वह खुद को पानी में गिरते एवं उससे बाहर निकलने का प्रयास करते करते हुए देखता है।
3- रात को उल्टा होकर सोने पर ही चेन की नींद आती है |
4- सपने में उसे मकान अथवा पेरो से फल आदि गिरते दिखाई देता है।
5- पानी से ओर ज्यादा ऊंचाई से डर लगता है |
6- मन में कोई अज्ञात भय बना रहता है |
7- वह खुद को अन्य लोगो से झगड़ते हुए देखता है।
8- उन्हें बुरे सपने आते है जिसमे अक्सर साँप दिखाई देता है।
9- यदि वह संतानहीन हो तो उसे किसी स्त्री के गोद में मृत बालक दिखाई देता है।
10- - सपने उसे विधवा स्त्रीयां दिखाई पड़ती है।
11- नींद में शरीर पर साप रेंगता महसूस होता है।
12- श्रवन मास में मन हमेशा प्रफुलित रहता है |
ये कुछ प्रमुख लक्षण है जों किसी भी कालसर्प वाले जातक में दिखाई देते है कहने का मतलब यह की इन मे से सभी लक्षण नहीं हों तो भी काफी लक्षण मिलते है | इसलिए जिसकी भी कुंडली में कालसर्प योग हों वो छोटे उपाय करे ओर जीवन में खुशियों का आनंद ले |
कालसर्प दोष भंग के लिए दैनिक छोटे उपाय
1 108 राहु यंत्रों को जल में प्रवाहित करें।
2 सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
3 शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग.।
4 अमावस्या के दिन पितरों को शान्त कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शान्ति पाठ कराये।
5 शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
6. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान पर सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।.
7 शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाये व मंत्र जाप करें (ग्यारह शनिवार )
8 सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
9 काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें ।
10 सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी में नागदेवता का विसर्जन करें।
11 श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
12 प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - हर हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें। हर रोज श्रावण के महिने में करें।
13. सरल उपाय- कालसर्प योग वाला युवा श्रावण मास में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें।
14 यदि रोजगार में तकलीफ आ रही है अथवा रोजगार प्राप्त नहीं हो रहा है तो पलाश के फूल गोमूत्र में डूबाकर उसको बारीक करें। फिर छाँव में रखकर सुखाएँ। उसका चूर्ण बनाकर चंदन के पावडर में मिलाकर शिवलिंग पर त्रिपुण्ड बनाएँ। 41 दिन दिन में नौकरी अवश्य मिलेगी।.
15 शिवलिंग पर प्रतिदिन मीठा दूध उसी में भाँग डाल दें, फिर चढ़ाएँ इससे गुस्सा शांत होता है, साथ ही सफलता तेजी से मिलने लगती है।
16 किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय' की 21 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प शिवलिंग पर समर्पित करें।
17 शत्रु से भय है तो चाँदी के अथवा ताँबे के सर्प बनाकर उनकी आँखों में सुरमा लगा दें, फिर शिवलिंग पर चढ़ा दें, भय दूर होगा व शत्रु का नाश होगा।
18 यदि पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका में क्लेश हो रहा हो, आपसी प्रेम की कमी हो रही हो तो भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या बालकृष्ण की मूर्ति जिसके सिर पर मोरपंखी मुकुट धारण हो घर में स्थापित करें एवं प्रतिदिन उनका पूजन करें एवं ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: शिवाय का यथाशक्ति जाप करे। कालसर्प योग की शांति होगी।
19 किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
20 किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें
21 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
22 महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
23 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
24 86 शनिवार का व्रत करें और राहु,केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें
25 नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
26 प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
27 कालसर्प योग हो और जीवन में लगातार गंभीर बाधा आ रही हो तब किसी विद्वान ब्राह्मण से राहु और केतु के मंत्रों का जप कराया जाना चाहिए और उनकी सलाह से राहु और केतु की वस्तुओं का दान या तुलादान करना चाहिए।)-
28 शिव के ही अंश बटुक भैरव की आराधना से भी इस दोष से बचाव हो सकता है।
29 प्रथम पूज्य शिव पुत्र श्री गणेश को विघ्रहर्ता कहा जाता है। इसलिए कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए गणेश पूजा भी करनी चाहिए।
30-पुराणों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने कालिय नाग का मद चूर किया था। इसलिए इस दोष शांति के लिए श्री कृष्ण की आराधना भी श्रेष्ठ है।
31विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
32 एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें
,,,,,रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,,,,
नागपंचमी के दिन दूध-जलेबी का दान करें।
लाल रंग के कपडे की छोटी थैली में खांड या सौंठ भरकर अपने पास रखें
चांदी का ठोस हाथी घर में रखें।
रसोईघर में ही भोजन करें।
प्रत्येक शनिवार जलेबी का दान करें।
किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाने के बाद ही कोई काम प्रारंभ करें।
काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें और भोजनालय में ही बैठकर भोजन करें अन्य कमरों में नहीं।
किसी शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
काले और सफेद तील बहते जल में प्रवाह करें। किसी भी मंदिर में केले का दान करें।
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग चिपका दें तथा एक बार देवदारु, सरसों तथा लोहवान इन तीनों को उबाल कर स्नान करें।
सोने की चेन पहनें।
सरस्वती का पूजन नीले पुष्पों से करें।
कन्या तथा बहन को उपहार देते रहें।
किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय' की 11 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि सामग्रियां श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के उपरांत शिवलिंग पर समर्पित करें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्रा सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।
अपने गले में सोमवार, मंगलवार और शनिवार के दिन लाल धागे में 8 मुखी 2 दानें रुद्राक्ष, 9 मुखी 2 दानें रुद्राक्ष और 12 मुखी 3 दानें रुद्राक्ष धारण करें। कष्टों से अवश्य छुटकारा मिलेगा।
धर्म स्थान में तांबे के बर्तन दान में दें।

नाग पंचमी नागचन्द्रेश्वर मंदिर है महाकाल की नगरी उज्जैन में

 नाग पंचमी नागचन्द्रेश्वर मंदिर है महाकाल की नगरी उज्जैन में एक दुर्लभ जिसके पट श्रावण शुक्ल पंचमी यानि की नाग पंचमी के दिन ही खुलते हैं| यह मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर के सबसे उपरी तल पर स्थित है| हिंदू मान्यताओं के अनुसार सर्प भगवान शिव का कंठाहार और भगवान विष्णु का आसन है लेकिन यह विश्व का संभवत:एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव, माता पार्वती एवं उनके पुत्र गणेशजीको सर्प सिंहासन पर आसीन दर्शाया गया है। इस मंदिर के दर्शनों के लिए नागपंचमी के दिन सुबह से ही लोगों की लम्बी कतारे लग जाती है|
भगवान भोलेनाथ को अर्पित फूल व बिल्वपत्र को लांघने से मनुष्य को दोष लगता है। कहते हैं कि भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने से यह दोष मिट जाता है| महाकाल की नगरी में देवता भी अछूते नहीं रहे वह भी इस दोष से बचने के लिए नागचंद्रेश्वर का दर्शन करते हैं। ऐसा धर्मग्रंथों में उल्लेख है। भगवान नागचंद्रेश्वर को नारियल अर्पित करने की परंपरा है। पंचक्रोशी यात्री भी नारियल की भेंट चढ़ाकर भगवान से बल प्राप्त करते हैं और यात्रा पूरी होने पर मिट्टी के अश्व अर्पित कर उनका बल लौटाते हैं।
मान्यता है कि सर्पो के राजा तक्षक ने भगवान भोलेनाथ की यहां घनघोर तपस्या की थी। तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और तक्षक को अमरत्व का वरदान दिया। ऐसा माना जाता है कि उसके बाद से तक्षक नाग यहां विराजित है, जिस पर शिव और उनका परिवार आसीन है। एकादशमुखी नाग सिंहासन पर बैठे भगवान शिव के हाथ-पांव और गले में सर्प लिपटे हुए है।
इस अत्यंत प्राचीन मंदिर का परमार राजा भोज ने एक हजार और 1050 ई. के बीच पुनर्निर्माण कराया था। 1732 में तत्कालीन ग्वालियर रियासत के राणा जी सिंधिया ने उज्जयिनी के धार्मिक वैभव को पुन:स्थापित करने के भागीरथी प्रयास के तहत महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्वार कराया।,,,

*ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,,,, 
एक प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार देवर्षि नारद इंद्र की सभा में कथा सुना रहे थे। इंद्र ने नारद जी से पूछा कि हे मुनि, आप त्रिलोक के ज्ञाता हैं। मुझे पृथ्वी पर ऐसा स्थान बताओ, जो मुक्ति देने वाला हो। यह सुनकर मुनि ने कहा कि उत्तम प्रयागराज तीर्थ से दस गुना ज्यादा महिमा वाले महाकाल वन में जाओ। वहां महादेव के दर्शन मात्र से ही सुख, स्वर्ग की प्राप्ति होती है। वर्णन सुनकर सभी देवता विमान में बैठकर महाकाल वन आए। उन्होंने आकाश से देखा कि चारों ओर साठ करोड़ से भी शत गुणित लिंग शोभा दे रहे हैं। उन्हें विमान उतारने की जगह दिखाई नहीं दे रही थी।
इस पर निर्माल्य उल्लंघन दोष जानकर वे महाकाल वन नहीं उतरे, तभी देवताओं ने एक तेजस्वी नागचंद्रगण को विमान में बैठकर स्वर्ग की ओर जाते देखा। पूछने पर उसने महाकाल वन में महादेव के उत्तम पूजन कार्य को बताया। देवताओं के कहने पर कि वन में घूमने पर तुमने निर्माल्य लंघन भी किया होगा, तब उसके दोष का उपाय बताओ।
नागचंद्रगण ने ईशानेश्वर के पास ईशान कोण में स्थित लिंग का महात्म्य बताया। इस पर देवता महाकाल वन गए और निर्माल्य लंघन दोष का निवारण उन लिंग के दर्शन कर किया। कहते हैं कि यह बात नागचंद्रगण ने बताई थी, इसीलिए देवताओं ने इस लिंग का नाम नागचंद्रेश्वर महादेव रखा।


Monday, 28 July 2014

महाकाल स्तोत्रं ॐ महाकाल महाकाय महाकाल जगत्पते



महाकाल स्तोत्रं  ॐ महाकाल महाकाय महाकाल जगत्पते 

महाकाल महायोगिन महाकाल नमोस्तुते 
महाकाल महादेव महाकाल महा प्रभो 
महाकाल महारुद्र महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महाज्ञान महाकाल तमोपहन
महाकाल महाकाल महाकाल नमोस्तुते 
भवाय च नमस्तुभ्यं शर्वाय च नमो नमः 
रुद्राय च नमस्तुभ्यं पशुना पतये नमः 
उग्राय च नमस्तुभ्यं महादेवाय वै  नमः 
भीमाय च नमस्तुभ्यं मिशानाया नमो नमः 
ईश्वराय नमस्तुभ्यं तत्पुरुषाय वै नमः 
सघोजात नमस्तुभ्यं शुक्ल वर्ण नमो नमः 
अधः काल अग्नि रुद्राय रूद्र रूप आय वै नमः 
स्थितुपति लयानाम च हेतु रूपआय वै नमः 
परमेश्वर रूप स्तवं नील कंठ नमोस्तुते 
पवनाय नमतुभ्यम हुताशन नमोस्तुते 
सोम रूप नमस्तुभ्यं सूर्य रूप नमोस्तुते 
यजमान नमस्तुभ्यं अकाशाया नमो नमः 
सर्व रूप नमस्तुभ्यं विश्व रूप नमोस्तुते 
ब्रहम रूप नमस्तुभ्यं विष्णु रूप नमोस्तुते 
रूद्र रूप नमस्तुभ्यं महाकाल नमोस्तुते 
स्थावराय नमस्तुभ्यं जंघमाय नमो नमः 
नमः उभय रूपा भ्याम शाश्वताय नमो नमः 
हुं हुंकार नमस्तुभ्यं निष्कलाय नमो  नमः 
सचिदानंद रूपआय महाकालाय ते नमः 
प्रसीद में नमो नित्यं मेघ वर्ण नमोस्तुते 
प्रसीद  में महेशान दिग्वासाया नमो नमः 
ॐ ह्रीं माया - स्वरूपाय सच्चिदानंद तेजसे 
स्वः सम्पूर्ण मन्त्राय सोऽहं हंसाय ते नमः  
फल श्रुति ,,,,इत्येवं देव देवस्य मह्कालासय भैरवी
कीर्तितम पूजनं सम्यक सधाकानाम सुखावहम




Sunday, 27 July 2014

शुभ रात्रि जय श्री राम,रात्रि है राम से खुशी भी राम से है

शुभ रात्रि जय श्री राम,रात्रि है राम से खुशी भी राम से है, तकरार भी राम से है, प्यार भी राम से है, जय श्री राम,रुठना भी राम से है, मनाना भी राम से है, बात भी राम से है, मिसाल भी राम से है, जय श्री राम,सुबह भी राम से है, शाम भी राम से है,जिन्दगी की शुरुआत भी राम से है,जिन्दगी मे मुलाकात भी राम से है,मौहब्बत भी राम से है, प्रार्थना भी जय श्री रा से है,जय श्री राम,काम भी जय श्री राम से है, नाम भी जय श्री राम से है,ख्याल भी राम से है, मनोकामना भी जय श्री राम से है,ख्वाब भी जय श्री राम से है, माहौल भी जय श्री राम से है, यादे भी राम से है, मुलाकाते भी जय श्री राम से है,जय श्री राम,सपने भी राम से है, अपने भी राम से है,या यूं कहो,अपनी तो दुनिया ही राम से है,जय श्री राम

Photo: शुभ रात्रि जय श्री राम,रात्रि है  राम से खुशी भी  राम से है, तकरार भी  राम से है, प्यार भी  राम से है, जय श्री राम,रुठना भी  राम से है, मनाना भी  राम से है, बात भी  राम से है, मिसाल भी  राम से है, जय श्री राम,सुबह भी  राम से है, शाम भी  राम से है,जिन्दगी की शुरुआत भी  राम से है,जिन्दगी मे मुलाकात भी  राम से है,मौहब्बत भी  राम से है, प्रार्थना भी जय श्री रा से है,जय श्री राम,काम भी जय श्री राम से है, नाम भी जय श्री राम से है,ख्याल भी  राम से है, मनोकामना भी जय श्री राम से है,ख्वाब भी जय श्री राम से है, माहौल भी जय श्री राम से है, यादे भी  राम से है, मुलाकाते भी जय श्री राम से है,जय श्री राम,सपने भी  राम से है, अपने भी  राम से है,या यूं कहो,अपनी तो दुनिया ही  राम से है,जय श्री राम

Monday, 21 July 2014

कामिका एकादशी कथा ,श्रावण कृष्ण एकादशी,


कामिका एकादशी कथा ,श्रावण कृष्ण एकादशी,,,कुंतीपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन, आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी तथा चातुर्मास्य माहात्म्य मैंने भली प्रकार से सुना। अब कृपा करके श्रावण कृष्ण एकादशी का क्या नाम,
है सो बताइए।

श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ। नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था कि हे पितामह! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है, उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा करके कहिए।
नारदजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो।
जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।
जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। अत: पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन अवश्यमेव करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसाररूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है।
हे नारद! स्वयं भगवान ने यही कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से।
तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है।
,,,(jyotish aur ratna paramarsh karta)08275555557 ,,
कामिका एकादशी की रात्रि को दीपदान तथा जागरण के फल का माहात्म्य चित्रगुप्त भी नहीं कह सकते। जो इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं, वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं।

ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।

Photo: कामिका एकादशी कथा,मंगलवार, 22 जुलाई 2014  ,श्रावण कृष्ण एकादशी,,,कुंतीपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन, आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी तथा चातुर्मास्य माहात्म्य मैंने भली प्रकार से सुना। अब कृपा करके श्रावण कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, सो बताइए।
श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ। नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था कि हे पितामह! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है, उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा करके कहिए।
नारदजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो।
जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।
जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। अत: पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन अवश्यमेव करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसाररूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है।
हे नारद! स्वयं भगवान ने यही कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से।
तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है।

कामिका एकादशी की रात्रि को दीपदान तथा जागरण के फल का माहात्म्य चित्रगुप्त भी नहीं कह सकते। जो इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं, वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं।

ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।

Thursday, 17 July 2014

गणेश नामवली-108,,,, नाम के अर्थ

गणेश नामवली-108,,नाम  के अर्थ
1. बालगणपति: सबसे प्रिय बालक
2. भालचन्द्र: जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो
3. बुद्धिनाथ: बुद्धि के भगवान
4. धूम्रवर्ण: पुं० उक्त प्रकार का रंग
5. एकाक्षर: एकल अक्षर
6. एकदन्त: एक दांत वाले
7. गजकर्ण: हाथी की तरह आंखें वाला
8. गजानन: हाथी के मुँख वाले भगवान
9. गजनान: हाथी के मुख वाले भगवान
10. गजवक्र: हाथी की सूंड वाला
11. गजवक्त्र: जिसका हाथी की तरह मुँह है
12. गणाध्यक्ष: सभी जणों का मालिक
13. गणपति: सभी गणों के मालिक
14. गौरीसुत: माता गौरी का बेटा
15. लम्बकर्ण: बड़े कान वाले देव
16. लम्बोदर: बड़े पेट वाले
17. महाबल: अत्यधिक बलशाली वाले प्रभु
18. महागणपति: देवातिदेव
19. महेश्वर: सारे ब्रह्मांड के भगवान
20. मंगलमूर्त्ति: सभी शुभ कार्य के देव
21. मूषकवाहन: जिसका सारथी मूषक है
22. निदीश्वरम: धन और निधि के दाता
23. प्रथमेश्वर: सब के बीच प्रथम आने वाला
24. शूपकर्ण: बड़े कान वाले देव
25. शुभम: सभी शुभ कार्यों के प्रभु
26. सिद्धिदाता: इच्छाओं और अवसरों के स्वामी
27. सिद्दिविनायक: सफलता के स्वामी
28. सुरेश्वरम: देवों के देव
29. वक्रतुण्ड: घुमावदार सूंड
30. अखूरथ: जिसका सारथी मूषक है
31. अलम्पता: अनन्त देव
32. अमित: अतुलनीय प्रभु
33. अनन्तचिदरुपम: अनंत और व्यक्ति चेतना
34. अवनीश: पूरे विश्व के प्रभु
35. अविघ्न: बाधाओं को हरने वाले
36. भीम: विशाल
37. भूपति: धरती के मालिक
38. भुवनपति: देवों के देव
39. बुद्धिप्रिय: ज्ञान के दाता
40. बुद्धिविधाता: बुद्धि के मालिक
41. चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले
42. देवादेव: सभी भगवान में सर्वोपरी
43. देवांतकनाशकारी: बुराइयों और असुरों के विनाशक
44. देवव्रत: सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले
45. देवेन्द्राशिक: सभी देवताओं की रक्षा करने वाले
46. धार्मिक: दान देने वाला
47. दूर्जा: अपराजित देव
48. द्वैमातुर: दो माताओं वाले
49. एकदंष्ट्र: एक दांत वाले
50. ईशानपुत्र: भगवान शिव के बेटे
51. गदाधर: जिसका हथियार गदा है
52. गणाध्यक्षिण: सभी पिंडों के नेता
53. गुणिन: जो सभी गुणों क ज्ञानी
54. हरिद्र: स्वर्ण के रंग वाला
55. हेरम्ब: माँ का प्रिय पुत्र
56. कपिल: पीले भूरे रंग वाला
57. कवीश: कवियों के स्वामी
58. कीर्त्ति: यश के स्वामी
59. कृपाकर: कृपा करने वाले
60. कृष्णपिंगाश: पीली भूरी आंखवाले
61. क्षेमंकरी: माफी प्रदान करने वाला
62. क्षिप्रा: आराधना के योग्य
63. मनोमय: दिल जीतने वाले
64. मृत्युंजय: मौत को हरने वाले
65. मूढ़ाकरम: जिन्में खुशी का वास होता है
66. मुक्तिदायी: शाश्वत आनंद के दाता
67. नादप्रतिष्ठित: जिसे संगीत से प्यार हो
68. नमस्थेतु:  सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले
69. नन्दन: भगवान शिव का बेटा
70. सिद्धांथ:  सफलता और उपलब्धियों की गुरु
71. पीताम्बर: पीले वस्त्र धारण करने वाला
72. प्रमोद: आनंद
73. पुरुष: अद्भुत व्यक्तित्व
74. रक्त: लाल रंग के शरीर वाला
75. रुद्रप्रिय: भगवान शिव के चहीते
76. सर्वदेवात्मन: सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकार्ता
77. सर्वसिद्धांत: कौशल और बुद्धि के दाता
78. सर्वात्मन: ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला
79. ओमकार: ओम के आकार वाला 
80. शशिवर्णम: जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो
81. शुभगुणकानन: जो सभी गुण के गुरु हैं
82. श्वेता: जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है
83. सिद्धिप्रिय: इच्छापूर्ति वाले
84. स्कन्दपूर्वज: भगवान कार्तिकेय के भाई
85. सुमुख: शुभ मुख वाले
86. स्वरुप: सौंदर्य के प्रेमी
87. तरुण: जिसकी कोई आयु न हो
88. उद्दण्ड: शरारती
89. उमापुत्र: पार्वती के बेटे
90. वरगणपति: अवसरों के स्वामी
91. वरप्रद: इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता
92. वरदविनायक: सफलता के स्वामी
93. वीरगणपति: वीर प्रभु
94. विद्यावारिधि: बुद्धि की देव
95. विघ्नहर: बाधाओं को दूर करने वाले
96. विघ्नहर्त्ता: बुद्धि की देव
97. विघ्नविनाशन: बाधाओं का अंत करने वाले
98. विघ्नराज: सभी बाधाओं के मालिक
99. विघ्नराजेन्द्र: सभी बाधाओं के भगवान
100. विघ्नविनाशाय: सभी बाधाओं का नाश करने वाला
101. विघ्नेश्वर: सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान
102. विकट: अत्यंत विशाल
103. विनायक: सब का भगवान
104. विश्वमुख:  ब्रह्मांड के गुरु
105. विश्वराजा: संसार के स्वामी
105. यज्ञकाय:  सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला
106. यशस्कर:  प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी
107. यशस्विन: सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव
108. योगाधिप: ध्यान के प्रभु 

!।!!!! Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557 !!!


शिव 108 रूपों और नाम का अर्थ,,108 Names of Lord Shiva


शिव 108 रूपों और नाम का अर्थ,,108 Names of Lord Shiva ,,,https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5।,,,,,,,,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557,1. शिव - कल्याण स्वरूप 2. महेश्वर - माया के अधीश्वर 3. शम्भू - आनंद स्स्वरूप वाले 4. पिनाकी - पिनाक धनुष धारण करने वाले 5. शशिशेखर - सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले 6. वामदेव - अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले 7. विरूपाक्ष - भौंडी आँख वाले 8. कपर्दी - जटाजूट धारण करने वाले 9. नीललोहित - नीले और लाल रंग वाले 10. शंकर - सबका कल्याण करने वाले 11. शूलपाणी - हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले 12. खटवांगी - खटिया का एक पाया रखने वाले 13. विष्णुवल्लभ - भगवान विष्णु के अतिप्रेमी 14. शिपिविष्ट - सितुहा में प्रवेश करने वाले 15. अंबिकानाथ - भगवति के पति 16. श्रीकण्ठ - सुंदर कण्ठ वाले 17. भक्तवत्सल - भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले 18. भव - संसार के रूप में प्रकट होने वाले 19. शर्व - कष्टों को नष्ट करने वाले 20. त्रिलोकेश - तीनों लोकों के स्वामी 21. शितिकण्ठ - सफेद कण्ठ वाले 22. शिवाप्रिय - पार्वती के प्रिय 23. उग्र - अत्यंत उग्र रूप वाले 24. कपाली - कपाल धारण करने वाले 25. कामारी - कामदेव के शत्रु 26. अंधकारसुरसूदन - अंधक दैत्य को मारने वाले 27. गंगाधर - गंगा जी को धारण करने वाले 28. ललाटाक्ष - ललाट में आँख वाले 29. कालकाल - काल के भी काल 30. कृपानिधि - करूणा की खान 31. भीम - भयंकर रूप वाले 32. परशुहस्त - हाथ में फरसा धारण करने वाले 33. मृगपाणी - हाथ में हिरण धारण करने वाले 34. जटाधर - जटा रखने वाले 35. कैलाशवासी - कैलाश के निवासी 36. कवची - कवच धारण करने वाले 37. कठोर - अत्यन्त मज़बूत देह वाले 38. त्रिपुरांतक - त्रिपुरासुर को मारने वाले 39. वृषांक - बैल के चिह्न वाली झंडा वाले 40. वृषभारूढ़ - बैल की सवारी वाले 41. भस्मोद्धूलितविग्रह - सारे शरीर में भस्म लगाने वाले 42. सामप्रिय - सामगान से प्रेम करने वाले 43. स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले 44. त्रयीमूर्ति - वेदरूपी विग्रह करने वाले 45. अनीश्वर - जिसका और कोई मालिक नहीं है 46. सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले 47. परमात्मा - सबका अपना आपा 48. सोमसूर्याग्निलोचन - चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले 49. हवि - आहूति रूपी द्रव्य वाले 50. यज्ञमय - यज्ञस्वरूप वाले 51. सोम - उमा के सहित रूप वाले 52. पंचवक्त्र - पांच मुख वाले 53. सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाले 54. विश्वेश्वर - सारे विश्व के ईश्वर 55. वीरभद्र - बहादुर होते हुए भी शांत रूप वाले 56. गणनाथ - गणों के स्वामी 57. प्रजापति - प्रजाओं का पालन करने वाले 58. हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले 59. दुर्धुर्ष - किसी से नहीं दबने वाले 60. गिरीश - पहाड़ों के मालिक 61. गिरिश - कैलाश पर्वत पर सोने वाले 62. अनघ - पापरहित 63. भुजंगभूषण - साँप के आभूषण वाले 64. भर्ग - पापों को भूंज देने वाले 65. गिरिधन्वा - मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले 66. गिरिप्रिय - पर्वत प्रेमी 67. कृत्तिवासा - गजचर्म पहनने वाले 68. पुराराति - पुरों का नाश करने वाले 69. भगवान् - सर्वसमर्थ षड्ऐश्वर्य संपन्न 70. प्रमथाधिप - प्रमथगणों के अधिपति 71. मृत्युंजय - मृत्यु को जीतने वाले 72. सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले 73. जगद्व्यापी - जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले 74. जगद्गुरु - जगत् के गुरु 75. व्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले 76. महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता 77. चारुविक्रम - सुन्दर पराक्रम वाले 78. रूद्र - भक्तों के दुख देखकर रोने वाले 79. भूतपति - भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी 80. स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले 81. अहिर्बुध्न्य - कुण्डलिनी को धारण करने वाले 82. दिगम्बर - नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले 83. अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले 84. अनेकात्मा - अनेक रूप धारण करने वाले 85. सात्त्विक - सत्व गुण वाले 86. शुद्धविग्रह - शुद्धमूर्ति वाले 87. शाश्वत - नित्य रहने वाले 88. खण्डपरशु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले 89. अज - जन्म रहित 90. पाशविमोचन - बंधन से छुड़ाने वाले 91. मृड - सुखस्वरूप वाले 92. पशुपति - पशुओं के मालिक 93. देव - स्वयं प्रकाश रूप 94. महादेव - देवों के भी देव 95. अव्यय - खर्च होने पर भी न घटने वाले 96. हरि - विष्णुस्वरूप 97. पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाड़ने वाले 98. अव्यग्र - कभी भी व्यथित न होने वाले 99. दक्षाध्वरहर - दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले 100. हर - पापों व तापों को हरने वाले 101. भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोड़ने वाले 102. अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले 103. सहस्राक्ष - अनंत आँख वाले 104. सहस्रपाद - अनंत पैर वाले 105. अपवर्गप्रद - कैवल्य मोक्ष देने वाले 106. अनंत - देशकालवस्तुरूपी परिछेद से रहित 107. तारक - सबको तारने वाला 108. परमेश्वर - सबसे परे ईश्वर  Gyanchand Bundiwal jyotish aur ratna paramarsh karta 08275555557 ,,


शिव के नाम अर्थ नाममंत्र

शिव के नाम  अर्थ नाममंत्र
 1,,,शिव कल्याण स्वरुप ॐ शिवाय नमः
2 ,,,महेश्वर माया के अधीश्वर ॐ महेश्वराय नमः
3,शम्भु आंनद स्वरुप वाले ॐ शम्भवे नमः
4 ,,,पिनाकी पिनाक धानुष धारण ॐ पिनाकिने नमः
5 ,,,शशिशेखर सिर पर चंद्र्मा धारण करने वाले ॐ शशिशेखराय नमः
6   वामदेव अत्यन्त सुन्दर स्वरुप धारण करने वाले ॐ वामदेवाय नमः
7   विरूपाक्ष भौंडे आँख वाले ॐ विरूपाक्षाय नमः
8   कपर्दी जटाजूट धारण करने वाले ॐ कपर्दिने नमः
9    नीललोहित नीले और लाल रंग वाले ॐ नीललोहिताय नमः
10  शर सबका कल्याण करने वाले ॐ शंकराय नमः
11   शूलपाणि हाथ में त्रिशुल धारण करने वाले ॐ शूलपाणये नमः
12   खट्वी खटिया का एक पाया रखने वाला ॐ खट्वांगिने नमः
13     विष्णुवल्लभ भगवान विष्णु के अतिप्रेमी ॐ विष्णुवल्लभाय नमः
 14   शिपिविष्ट सितुहा में प्रवेश करने वाले ॐ शिपिविष्टाय नमः
 15  अम्बिकानाथ भगवती के पति ॐ अम्बिकानाथा नमः
16    श्रीकण्ठ सुन्दर कण्ठ वाले ॐ श्रीकण्ठाय नमः
 17   भक्तवत्सल भक्तों को अत्यन्त स्नेह करने वाले ॐ भक्तवत्सलाय नमः
18  भव संसार के रूप में प्रकट होने वाले ॐ भवाय नमः
19   शर्व कष्टों को नष्ट करने वाले ॐ शर्वाय नमः
20  त्रिलोकेश तीनों लोकों के स्वामी ॐ त्रिलोकेशाय नम
21  शितिकण्ठ सफेद कण्ठ वाले ॐ शितिकण्ठाय नमः
22   शिवाप्रिय पार्वती के प्रिय ॐ शिवाप्रियाय नमः
23  उग्र: अत्यन्त उग्र रूप वाले ॐ उग्राय नमः
24  कपाली कपाल धारण करने वाले ॐ कपालिने नमः
25  कामारी कामदेव के शत्रु ॐ कामारये नमः
26  अन्धकासुरसूदन: अंधक दैत्य को मारने वाले ॐ अन्धकासुरसूदनाय नमः
27   गङ्गाधर गंगा जी को धारण करने वाले ॐ गंगाधराय नमः
28  ललाटाक्ष लिलार में आँख वाले ॐ ललाटाक्षाय नमः
29  कालकाल काल के भी काल ॐ कालकालाय नमः
30  कृपानिधि करुणा के खान ॐ कृपानिधये नमः
31  भीम भयंकर रूप वाले ॐ भीमाय नमः
,,,(jyotish aur ratna paramarsh karta)08275555557 ,,
32  परशुहस्त हाथ में फरसा धारण करने वाले ॐ परशुहस्ताय नमः
33  मृगपाणी हाथ में हिरण धारण करने वाले ॐ मृगपाण्ये नमः
34  जटाधर: जटा रखने वाले ॐ जटाधराय नमः
35  कैलाशवासी कैलास के निवासी ॐ कैलाशवासिने नमः
36  कवची कवच धारण करने वाले ॐ कवचिने नमः
37  कठोर अत्यन्त मजबूत देह वाले ॐ कठोराय नमः
38  त्रिपुरान्तक त्रिपुरासुर को मारने वाले ॐ त्रिपुरान्तकाय नमः
39  वृषांक बैल के चिन्ह वाली झ्ण्डा वाले ॐ वृषांकाय नमः
40  वृषभारूढ बैल की सवारी वाले ॐ वृषभारूढाय नमः
41  भस्मोद्धूलितविग्रह सारे शरीर में भस्म लगाने वाले ॐ भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमः
42  सामप्रिय सामगान से प्रेम करने वाले ॐ सामप्रियाय नमः
43  स्वरमय सातो स्वरों में निवास करने वाले ॐ स्वरमयाय नमः
44   त्रयीमूर्ति वेदरूपी विग्रह वाले ॐ त्रयीमूर्तये नमः
45  अनीश्वर जिसका और कोई मालिक नहीं है ॐ अनीश्वराय नमः
46  सर्वज्ञ सब कुछ जानने वाले ॐ सर्वज्ञाय नमः
47  परमात्मा सबका अपना आपा ॐ परमात्मने नमः
48  सोमसूर्याग्निलोचन चन्द्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले ॐ सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः
49  हवि आहुति रूपी द्रव्य वाले ॐ हवये नमः
50  यज्ञमय यज्ञस्वरूप वाले ॐ यज्ञमयाय नमः



Photo: शिव के नाम  नाम  अर्थ नाममंत्र
शिव कल्याण स्वरुप  ॐ शिवाय नमः
महेश्वर माया के अधीश्वर  ॐ महेश्वराय नमः
शम्भु आंनद स्वरुप वाले  ॐ शम्भवे नमः
पिनाकी पिनाक धानुष धारण  ॐ पिनाकिने नमः
शशिशेखर सिर पर चंद्र्मा धारण करने वाले  ॐ शशिशेखराय नमः
वामदेव अत्यन्त सुन्दर स्वरुप धारण करने वाले ॐ वामदेवाय नमः
विरूपाक्ष भौंडे आँख वाले  ॐ विरूपाक्षाय नमः
कपर्दी जटाजूट धारण करने वाले  ॐ कपर्दिने नमः
नीललोहित नीले और लाल रंग वाले  ॐ नीललोहिताय नमः
शर सबका कल्याण करने वाले  ॐ शंकराय नमः
शूलपाणि हाथ में त्रिशुल धारण करने वाले  ॐ शूलपाणये नमः
खट्वी खटिया का एक पाया रखने वाला  ॐ खट्वांगिने नमः
विष्णुवल्लभ भगवान विष्णु के अतिप्रेमी  ॐ विष्णुवल्लभाय नमः
शिपिविष्ट सितुहा में प्रवेश करने वाले  ॐ शिपिविष्टाय नमः
अम्बिकानाथ भगवती के पति  ॐ अम्बिकानाथा नमः
श्रीकण्ठ सुन्दर कण्ठ वाले  ॐ श्रीकण्ठाय नमः
भक्तवत्सल भक्तों को अत्यन्त स्नेह करने वाले  ॐ भक्तवत्सलाय नमः
भव संसार के रूप में प्रकट होने वाले  ॐ भवाय नमः
शर्व कष्टों को नष्ट करने वाले  ॐ शर्वाय नमः
त्रिलोकेश तीनों लोकों के स्वामी  ॐ त्रिलोकेशाय नम
शितिकण्ठ सफेद कण्ठ वाले  ॐ शितिकण्ठाय नमः
शिवाप्रिय पार्वती के प्रिय  ॐ शिवाप्रियाय नमः
उग्र: अत्यन्त उग्र रूप वाले  ॐ उग्राय नमः
कपाली कपाल धारण करने वाले  ॐ कपालिने नमः
कामारी कामदेव के शत्रु  ॐ कामारये नमः
अन्धकासुरसूदन: अंधक दैत्य को मारने वाले  ॐ अन्धकासुरसूदनाय नमः
गङ्गाधर गंगा जी को धारण करने वाले  ॐ गंगाधराय नमः
ललाटाक्ष लिलार में आँख वाले  ॐ ललाटाक्षाय नमः
कालकाल काल के भी काल  ॐ कालकालाय नमः
कृपानिधि करुणा के खान  ॐ कृपानिधये नमः
भीम भयंकर रूप वाले  ॐ भीमाय नमः
परशुहस्त हाथ में फरसा धारण करने वाले  ॐ परशुहस्ताय नमः
मृगपाणी हाथ में हिरण धारण करने वाले  ॐ मृगपाण्ये नमः
जटाधर: जटा रखने वाले  ॐ जटाधराय नमः
कैलाशवासी कैलास के निवासी  ॐ कैलाशवासिने नमः
कवची कवच धारण करने वाले  ॐ कवचिने नमः
कठोर अत्यन्त मजबूत देह वाले  ॐ कठोराय नमः
त्रिपुरान्तक त्रिपुरासुर को मारने वाले  ॐ त्रिपुरान्तकाय नमः
वृषांक बैल के चिन्ह वाली झ्ण्डा वाले  ॐ वृषांकाय नमः
वृषभारूढ बैल की सवारी वाले  ॐ वृषभारूढाय नमः
भस्मोद्धूलितविग्रह सारे शरीर में भस्म लगाने वाले  ॐ भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमः
सामप्रिय सामगान से प्रेम करने वाले  ॐ सामप्रियाय नमः
स्वरमय सातो स्वरों में निवास करने वाले  ॐ स्वरमयाय नमः
त्रयीमूर्ति वेदरूपी विग्रह वाले  ॐ त्रयीमूर्तये नमः
अनीश्वर जिसका और कोई मालिक नहीं है  ॐ अनीश्वराय नमः
सर्वज्ञ सब कुछ जानने वाले  ॐ सर्वज्ञाय नमः
परमात्मा सबका अपना आपा  ॐ  परमात्मने नमः
सोमसूर्याग्निलोचन चन्द्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले  ॐ सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः
हवि आहुति रूपी द्रव्य वाले  ॐ हवये नमः
यज्ञमय यज्ञस्वरूप वाले  ॐ यज्ञमयाय नमः

श्रावण मास में आशुतोष भगवान शंकर शिव की आराधना हेतु महत्तवपूर्ण है श्रावण मास

श्रावण मास में आशुतोष भगवान शंकर 
की पूजा का विशेष महत्व है। जो प्रतिदिन पूजन न
कर सकें उन्हें सोमवार को शिव पूजा अवश्य
करनी चाहिए और व्रत रखना चाहिए। सोमवार भगवान
शंकर का प्रिय दिन है, अतः सोमवार
को शिवाराधना करनी चाहिए। इसी प्रकार मासों में
श्रावण मास भगवान शंकर को विशेष प्रिय है।
श्रावणमास में प्रतिदिन शिवोपासना का विधान है।
श्रावण में पार्थिव शिवपूजा का विशेष महत्त्व है।
अतः इस महीने शिव पूजा या पार्थिव
शिवपूजा अवश्य करना चाहिए।
इस मास में लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ
कराने का भी विधान है। श्रावणमास में जितने
भी सोमवार पड़ते हैं, उन सब में शिवजी का व्रत
किया जाता है। इस व्रत में प्रातः गंगा स्नान
अथवा किसी पवित्र नदी या सरोवर में
अथवा विधिपूर्वक घर पर ही स्नान करके शिवमन्दिर
में जाकर स्थापित शिवलिंग या अपने घर में पार्थिव
मूर्ति बनाकर यथाविधि षोडशोपचार-पूजन
किया जाता है। यथासम्भव विद्वान ब्राह्मण से
रुद्राभिषेक भी कराना चाहिए। इस व्रत में
श्रावणमाहात्म्य और श्रीशिवमहापुराण
की कथा सुनने का विशेष महत्त्व है। पूजन के पश्चात्
ब्राह्मण-भोजन कराकर एक बार ही भोजन करने
का विधान है। भगवान शिव का यह व्रत
सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है।
मनीषियों का कहना है कि समुद्र मंथन भी श्रावन
मास में ही हुआ। इस मंथन मंज 14 प्रकार के तत्व
निकले। इसमें जहर को छोड़ कर सभी 13
तत्वों को देवताओं और राक्षसों में वितरित
किया गया।
इन सभी तत्वों में से निकले जहर को भगवान् शिव
पी गये और इसे अपने कंठ में संग्रह कर लिया। इस
प्रकार इनका नाम नील कंठ पड़ा। इसके बाद देवताओं
ने भगवान शिव को जहर के संताप से बचाने के लिए
उन्हें गंगा जल अर्पित किया। इसके बाद से ही शिव
भक्त श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक
करते हैं।
श्रावण मास भगवान शिव का प्रिय मास है। इसलिए
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपनाएं कुछ
जरुरी बातें...
- श्रावन मास में रुद्राक्ष पहनना बहुत ही शुभ
माना गया है। इसलिए पूरे मास रुद्राक्ष
की माला धारण करें व रुद्राक्ष माला का जाप करें।
- शिव को भभूती लगावें। अपने मस्तक पर भी लगावें।
- शिव चालीसा और आरती का गायन करें।
- महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
- सोमवार को श्रद्धापूर्वक व्रत धारण करें. (यदि पूरे
दिन का व्रत सम्भव न हो तो सूर्यास्त तक भी व्रत
धारण किया जा सकता है)
- बेलपत्र, दूध, शहद और पानी से शिवलिंग
का अभिषेक करें।
आज सावन का पहला सोमवार है. श्रावण मास में आशुतोष भगवान शंकर
की पूजा का विशेष महत्व है। जो प्रतिदिन पूजन न
कर सकें उन्हें सोमवार को शिव पूजा अवश्य
करनी चाहिए और व्रत रखना चाहिए। सोमवार भगवान
शंकर का प्रिय दिन है, अतः सोमवार
को शिवाराधना करनी चाहिए। इसी प्रकार मासों में
श्रावण मास भगवान शंकर को विशेष प्रिय है।
श्रावणमास में प्रतिदिन शिवोपासना का विधान है।
श्रावण में पार्थिव शिवपूजा का विशेष महत्त्व है।
अतः इस महीने शिव पूजा या पार्थिव
शिवपूजा अवश्य करना चाहिए।
इस मास में लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ
कराने का भी विधान है। श्रावणमास में जितने
भी सोमवार पड़ते हैं, उन सब में शिवजी का व्रत
किया जाता है। इस व्रत में प्रातः गंगा स्नान
अथवा किसी पवित्र नदी या सरोवर में
अथवा विधिपूर्वक घर पर ही स्नान करके शिवमन्दिर
में जाकर स्थापित शिवलिंग या अपने घर में पार्थिव
मूर्ति बनाकर यथाविधि षोडशोपचार-पूजन
किया जाता है। यथासम्भव विद्वान ब्राह्मण से
रुद्राभिषेक भी कराना चाहिए। इस व्रत में
श्रावणमाहात्म्य और श्रीशिवमहापुराण
की कथा सुनने का विशेष महत्त्व है। पूजन के पश्चात्
ब्राह्मण-भोजन कराकर एक बार ही भोजन करने
का विधान है। भगवान शिव का यह व्रत
सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है।
मनीषियों का कहना है कि समुद्र मंथन भी श्रावन
मास में ही हुआ। इस मंथन मंज 14 प्रकार के तत्व
निकले। इसमें जहर को छोड़ कर सभी 13
तत्वों को देवताओं और राक्षसों में वितरित
किया गया।*ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,,,,

इन सभी तत्वों में से निकले जहर को भगवान् शिव
पी गये और इसे अपने कंठ में संग्रह कर लिया। इस
प्रकार इनका नाम नील कंठ पड़ा। इसके बाद देवताओं
ने भगवान शिव को जहर के संताप से बचाने के लिए
उन्हें गंगा जल अर्पित किया। इसके बाद से ही शिव
भक्त श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक
करते हैं।
श्रावण मास भगवान शिव का प्रिय मास है। इसलिए
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपनाएं कुछ
जरुरी बातें...
- श्रावन मास में रुद्राक्ष पहनना बहुत ही शुभ
माना गया है। इसलिए पूरे मास रुद्राक्ष
की माला धारण करें व रुद्राक्ष माला का जाप करें।
- शिव को भभूती लगावें। अपने मस्तक पर भी लगावें।
- शिव चालीसा और आरती का गायन करें।
- महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
- सोमवार को श्रद्धापूर्वक व्रत धारण करें. (यदि पूरे
दिन का व्रत सम्भव न हो तो सूर्यास्त तक भी व्रत
धारण किया जा सकता है)
- बेलपत्र, दूध, शहद और पानी से शिवलिंग
का अभिषेक करें।

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